तरबूज में फल मक्खी से होने वाले नुकसान एवं नियंत्रण के उपाय

Damage and control measure of fruit fly in watermelon

तरबूज की फसल में फल मक्खी का हमला बेहद गंभीर होता है। वयस्क मक्खी फूलों में या सीधे फलों में अंडे देती है और जब ये अंडे फूटते हैं तब इससे निकली इल्ली फल में छेद कर देती है और फलों को अंदर से खाती है। इससे फल के गूदे के भीतर भारी सड़न हो सकती है, साथ ही फल की त्वचा पर, जहां अंडे दिए जाते हैं, वहा छोटे-छोटे धब्बे पड़ते हैं। इससे हुए घाव से फल फफूंद एवं जीवाणु के संक्रमण के प्रति अतिसंवेदनशील हो जाते हैं। इसके कारण उपज में कमी आती है और फल की गुणवत्ता में भी प्रभाव पड़ता है। 

नियंत्रण: फल मक्खी के नियंत्रण एवं निगरानी के लिए, आईपीएम के अंतर्गत मेलन फ्लाय लूर @ 10 ट्रैप प्रति एकड़ के दर से खेत में लगाएं एवं नीमगोल्ड (अझाडिरॅक्टिन 0.3% EC) @ 1600 मिली प्रति एकड़ के दर से 150-200 लीटर पानी में छिड़काव करें।

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किस माह में कौन सी सब्जी की खेती देगी अच्छा मुनाफा?

Which vegetable cultivation will give good profit in which month
  • किसान भाइयों को हर फसल का बेहतर उत्पादन मिले इसके लिए समय से बुवाई करना जरूरी है इसके विपरीत असमय बुवाई से उत्पादन बहुत कम प्राप्त होता है। परिणामस्वरूप किसानों की आय में कमी हो जाती है।

  • अच्छी जानकारी के अनुसार खेती करना किसानों के लिए हमेशा फायदे का सौदा रही है। किसान भाई सब्जियों की खेती से अच्छा लाभ उठाने के लिए इस प्रकार खेती कर सकते हैं। 

  • जनवरी: गाजर, मूली, पालक, बैंगन, तरबूज आदि। 

  • फरवरी: कद्दू वर्गीय फसलें, खरबूज, तरबूज, पालक, फूलगोभी आदि। 

  • मार्च: ग्वार, करेला, तुरई, पेठा, तरबूज, भिंडी आदि। 

  • अप्रैल: मूली, पालक, धनिया आदि।

  • मई: बैंगन, मूली, मिर्च, धनिया आदि।

  • जून: खीरा, फलियाँ, भिंडी, टमाटर, प्याज आदि।

  • जुलाई: चौलाई, लोबिया, भिंडी, कद्दू वर्गीय फसलें आदि।

  • अगस्त: टमाटर, फूलगोभी, पत्ता गोभी आदि। 

  • सितंबर: शलजम, आलू, टमाटर, धनिया, सौंफ आदि।

  • अक्टूबर: राजमा, मटर, हरी प्याज, लहसुन आलू आदि। 

  • नवम्बर: चुकंदर, शिमला मिर्च, लहसुन, मटर, भिंडी आदि। 

  • दिसंबर: मूली, पालक, पत्ता गोभी, बैंगन, प्याज आदि।

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आलू भंडारित करते समय रखी जाने वाली सावधानियां

Keep these precautions at the time of storage in potato crop
  • किसान भाइयों आलू की खुदाई के बाद सबसे महत्वपूर्ण काम होता है इसका भंडारण करना। यदि सही तरीके से आलू को भंडारित किया जाए तो इसे कई महीनों तक खराब होने से बचाया जा सकता है। आलू के भंडारण के समय निम्न बातों का रखें ध्यान-

  • आलू को लम्बे समय तक भंडारित करने के लिए 2 से 4 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान उपयुक्त रहता है। 

  • आलू को रेफ्रिजरेटर में नहीं रखना चाहिए। इससे आलू के स्वाद पर प्रतिकूल असर होता है।

  • आलू का भंडारण हमेशा किसी हवादार जगह में करें।

  • भंडार गृह पूरी तरह सूखा होना चाहिए। उसमें नमी होने पर आलू भंडारण और उसकी सुरक्षा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

  • यदि किसी बक्से में आलू को भंडारित कर रहे हैं तो आलू के प्रत्येक परत के बीच अखबार जरूर रखें।

  • समय-समय पर भंडार गृह का निरीक्षण करते रहें।

  • भंडारण से पहले आलू को पानी से साफ न करें। इससे आलू में नमी बढ़ती है और भंडारण कम होता है।

  • यदि आलू हरे. भूरे, सिकुड़े हुए नजर आने लगे और उनमे गंध हो तो ऐसे आलू को बाहर निकाल कर अलग कर दें। साथ ही अंकुरित आलू को भी अलग करें।

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आइये जानते हैं साइलेज बनाने की आसान विधि

Know the method of making Silage
  • किसान भाइयों साल भर पशुओं को हरा चारा उपलब्ध कराने के लिए साइलेज एक बहुत अच्छा स्रोत है। इसके लिए दाने वाली फसलें जैसे मक्का, ज्वार, बाजरा, जई आदि को साइलेज बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। 

  • इन फसलों में जब दाने दूधिया अवस्था में हो तब 2-5 सेंटीमीटर के छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें। 

  • काटे गए हरे चारे के टुकड़ों को जमीन पर कुछ घंटे के लिए फैला दे ताकि पानी की कुछ मात्रा वाष्पीकृत हो जाए।

  • अब कटे हुए चारे को पहले से तैयार साइलो पिट या साइलेज गड्ढों में डाल दें। 

  • गड्ढे में चारे को पैरों या ट्रैक्टर से अच्छे से दबाकर भरे जिससे चारे के बीच की हवा निकल जाए।

  • गड्ढे को पूरी तरह भरने के बाद उसके ऊपर मोटी पॉलिथीन डालकर अच्छी तरह से सील कर दें। 

  • इसके बाद पॉलीथिन कवर के ऊपर से मिट्टी की लगभग एक फीट मोटी परत चढ़ा दें जिससे हवा अंदर ना जा सके।

  • साइलेज के गड्ढों में भंडारित किए गए हरे चारे के टुकड़ों से साइलेज बनने लगता है, क्योंकि हवा और पानी के न होने से दबाए गए चारे में लैक्टिक अम्ल बनता है, जिस से चारा लंबे समय तक खराब नहीं होता है।

  • चारे की आवश्यकतानुसार गड्ढों को कम से कम 45 दिनों के बाद पशुओं को खिलाने के लिए खोलें।

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भिंडी में पीला शिरा मोज़ेक वायरस प्रकोप के लक्षण व नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of yellow vein mosaic virus in okra crop

यह एक विषाणु जनित रोग है जो फसल में उपस्थित रसचूसक किट के कारण से और ज्यादा फैलता है। 

लक्षण: इस रोग के शुरुआती अवस्था में ग्रासित पौधे की पत्तियों की शिराएँ पीली पड़ जाती हैं और धीरे धीरे रोग बढ़ता जाता है एवं रोग की बाद की अवस्था में यह पीलापन पूरी पत्ती पर फैल जाता है। इसके परिणामस्वरूप पत्तियाँ मुड़ने एवं सिकुड़ने लगती है, पौधे की वृद्धि रुक जाती है। प्रभावित पौधे के फल हल्के पीले, विकृत और सख्त हो जाते हैं।

नियंत्रण: यह रोग मुख्यत सफेद मक्खी से फैलता है, इसके नियंत्रण के लिए नोवासेटा (एसिटामिप्रिड 20% SP) @ 30 ग्राम प्रति एकड़ या पेजर (डायफैनथीयुरॉन 50% WP) @ 240 ग्राम /एकड़ के दर से 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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लहसुन की फसल में थ्रिप्स कीट से होगा नुकसान, जानें प्रबंधन के उपाय

Thrips damage and management in Garlic Crop

लहसुन की फसल में कई बार थ्रिप्स कीट नुकसान पहुंचाते हैं। ये कीट काफी सूक्ष्म होते हैं। इसके नर व मादा दोनों स्वरुप फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। यह कीट पौधों के नाजुक हिस्से पर प्रहार करते हैं, और इसके परिणाम से पौधे विकास नहीं कर पाते हैं। यह कीट पत्तियों को खरोंच कर उनमें छेद कर देती है और पतियों से सारा रस चूस लेते हैं। इस वजह से पत्तियां मुड़ जाती हैं, पौधे सूखकर गिरने लगते हैं, साथ ही लहसुन की गांठें छोटी रह जाती हैं। 

प्रबंधन: इसके रोकथाम के लिए टैफगोर (डाइमिथोएट 30 ईसी) @ 264 मिली या फिपनोवा(फिप्रोनिल 5% एससी) @ 400 मिली प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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प्याज़ की फसल में डाऊनी मिल्ड्यू रोग की पहचान एवं नियंत्रण

Identification and control of downy mildew disease in onion crop

डाऊनी मिल्ड्यू रोग की पहचान: यह एक फफूंद जनित रोग है, इसके लक्षण सुबह के समय जब पत्तियों पर ओस रहती है तब आसानी से देखे जा सकते हैं। पत्तियों, बीज, डंठलों की सतह पर हल्के पीले धब्बे विकसित होते हैं, और जैसे हीं यह धब्बे बड़े होते हैं इसकी  सतह पर धूसर बैंगनी रोएँदार फफूंद विकसित हो जाती है। संक्रमित पौधे बौने, विकृत और हल्के हरे रंग के हो सकते हैं, इस रोग में पौधे अक्सर मरते नहीं हैं, लेकिन कंद की गुणवत्ता खराब होती है। 

नियंत्रण: अच्छे कंद विकास एवं डाऊनी मिल्ड्यू रोग के नियंत्रण के लिए गोडीवा सुपर (एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% + डाइफ़ेनोकोनाज़ोल 11.4% एससी) @ 200 मिली या वोकोविट (सल्फर 80% डब्ल्यूडीजी) @ 125 ग्राम, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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कैसे उगाएं लहसुन के अच्छे कंद, जानें विशेषज्ञ द्वारा सुझाए गए उपाय

How to grow good garlic bulbs

लहसुन की फसल किसानों के लिए आर्थिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण होती है। इसी कारण इन फसलों का फसल प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है। लहसुन की फसल में विभिन्न प्रकार के कवक जनित रोगों एवं कीटों का प्रकोप भी बहुत अधिक मात्रा में होता है। साथ ही लहसुन की फसल में कंद के निर्माण के समय भी पोषक तत्वों की बहुत आवश्यकता होती है, क्योंकि पोषक तत्वों की कमी के कारण लहसुन की फसल में कंद फटने एवं लहसुन की गाँठ छोटी रहने की समस्या पैदा हो जाती है। 

अभी की अवस्था में लहसुन में अच्छे कंद एवं बेहतर कलियों के निर्माण के लिए पोषण प्रबंधन के तौर पर ग्रोमोर (कैल्शियम नाइट्रेट) @ 10 किलो और पोटाश @ 20 किलो/एकड़ की दर से भुरकाव करें। लहसुन की फसल में भुरकाव करते समय, एक बात का विशेष ध्यान रखें की उत्पाद का एक समान रूप से भुरकाव हो जिससे जड़ आसानी से इन्हे अवशोषित कर सके। 

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तरबूज की फसल में गमी तना झुलसा के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Gummy stem blight symptoms and control in watermelon crop

तरबूज की फसल में गमी तना झुलसा रोग गंभीर पर्णीय रोगों में से एक है। इस रोग में तने एवं पत्तियों पर भूरे धब्बे हो जाते हैं और यह धब्बे पीले ऊतकों से घिरे होते हैं। साथ ही तने में यह घाव बढ़कर गलन की समस्या बढ़ा देती है और इससे चिपचिपे, भूरे रंग के द्रव का बहाव होता है। इस रोग में फल शायद ही कभी प्रभावित होते हैं, लेकिन पर्णसमूह के नुकसान से उपज और फलों की गुणवत्ता भी प्रभावित हो सकती है।

नियंत्रण: गमी तना झुलसा से बचने के लिए रोग रहित बीज का उपयोग करें साथ ही सभी कद्दू वर्गीय फसलों में 2 वर्ष के फसल चक्र  अंतर रखें। साथ ही रोग के लक्षण दिखाई देने पर रासायनिक नियंत्रण के लिए संपर्क फफूंदनाशक जैसे जटायु (क्लोरोथॅलोनिल 75% डब्लूपी) @ 200 ग्राम प्रति एकड़ या एम 45 (मॅन्कोझेब 75% डब्लूपी)@ 600-800 ग्राम प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के दर से छिड़काव करें।

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बैंगन की फसल में मकड़ी की रोकथाम के उपाय

Mites management in brinjal crop
  • किसान भाइयों बैंगन की फसल में मकड़ी के प्रकोप की पहचान आसानी से कर सकते हैं। यह कीट छोटे एवं लाल रंग के होते हैं जो फसलों के कोमल भागों जैसे पत्तियों, फूलों, कलियों, मुलायम टहनियों पर भारी संख्या में देखे जा सकते हैं।

  • जिन पौधों पर मकड़ी का प्रकोप होता है उस पौधे पर जाले दिखाई देते है। यह कीट पौधे के कोमल भागों का रस चूसकर उनको कमज़ोर कर देते है जिससे धीरे धीरे पौधा मर जाता है। 

  • बैंगन की फसल में मकड़ी के नियंत्रण के लिए निम्र दवाओं का उपयोग किया जाता है।

  • प्रोपरजाइट 57 % ईसी @ 400 मिली या स्पाइरोमेसिफेन 22.9% एससी @ 200 मिली या ऐबामेक्टिन 1.8% ईसी @ 150 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के रूप में मेट्राजियम @ 1 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें। 

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