- कपास की फसल में डेंडु का निर्माण 40-45 दिनों में शुरू हो जाता है।
- इस अवस्था में पोषण प्रबंधन उचित तरीके से करना बहुत जरूरी होता है।
- पोषण प्रबंधन के लिए यूरिया- 30 किग्रा/एकड़, MoP- 30 किग्रा/कड़, मेग्निसियम सल्फेट- 10 किग्रा प्रति एकड की दर से करना बहुत आवश्यक है।
- सिंचित फसल उपरोक्त मात्रा से लगभग 2 से 3 गुणा अधिक पोषक तत्व लेती हैं।
- इस प्रकार डेंडु निर्माण के समय उपरोक्त पोषण प्रबंधन करने से डेंडु निर्माण अच्छा होता है और कपास का उत्पादन भी अच्छा होता है।
मध्यप्रदेश सरकार मंडी शुल्क कम करने की तैयारी में, जल्द आ सकता है संशोधन विधेयक
हाल ही में मध्यप्रदेश सरकार ने प्रदेश के किसानों को उनकी फसल की उपज का उचित मूल्य दिलाने के कई कार्य किये हैं। इनमें निजी मंडी की स्थापना और व्यापारियों को खेत व घर से उपज खरीदने की छूट देने का निर्णय भी शामिल है। अब इसी कड़ी में प्रदेश सरकार एक और बड़ा कदम उठाने की तैयारी में है।
मध्यप्रदेश सरकार मंडी शुल्क को कम करने की तैयारी में है। शिवराज सरकार ने मंडी अधिनियम में संशोधन के लिए जो अध्यादेश जारी किया था, उसको लेकर विधानसभा के मानसून सत्र में विधेयक लाने वाली है। इसमें मंडी में व्यापार करना और सरल बनाया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक अपर मुख्य सचिव श्रम डॉ. राजेश राजौरा की अगुवाई वाली समिति मंडी अधिनियम में संशोधन का खाका तैयार कर रही है।
गौरतलब है की मंडियों में होने वाले सौदे में प्रति क्विंटल डेढ़ प्रतिशत मंडी शुल्क लिया जाता है। पर सरकार जिन नए प्रावधानों को लाने की तैयारी में है उसके तहत इसे घटाया जा सकता है, ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान मंडी में अपनी उपज लेकर आएं।
स्रोत: नई दुनिया
Shareकपास की फसल में डेंडु बनते समय छिड़काव प्रबंधन
- कपास की फसल में डेंडु बनते समय फल व फली छेदक कीट के प्रकोप के कारण डेंडू को नुकसान पहुँच सकता है।
- कीट का प्रकोप फसल के प्रारंभिक अवस्था से ही शुरू हो जाता है। इसके अलावा गुलाबी इल्ली और बिहार कम्बलिया कीट आदि का प्रकोप भी होता है, अतः इनका नियंत्रण करना भी बहुत आवश्यक होता है।
- इस के साथ-साथ कवक जनित एवं कीट जनित बीमारियों का नियंत्रण भी बहुत आवश्यक होता है एवं अच्छे डेंडू निर्माण के लिए भी इन वृद्धि कारकों का छिड़काव करना जरूरी होता है।
- फसल बुआई के 40-45 दिनों बाद छिड़काव प्रबंधन के रूप में प्रोफेनोस 40% + साइपरमेथिन 4% EC@400 मिली/एकड़ + एबामेक्टिन 1.9% EC@400 मिली/एकड़ + कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ब 63% WP@ 400 ग्राम/एकड़ + जिब्बरेलिक एसिड @ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- इनका छिड़काव करने से डेंडू का निर्माण बहुत अच्छा होता है एवं कपास का उत्पादन बहुत अधिक रहता है।
नर्सरी से खेत में रोपाई के बाद मिर्च की फसल में प्रथम उर्वरक प्रबंधन
- खेत में रोपाई के 20 से 30 दिन बाद मिर्च की फसल के बेहतर विकास के लिए आवश्यक प्रमुख सूक्ष्म पोषक तत्व का फसल में उपयोग करना बहुत आवश्यक है।
- ये सभी पोषक तत्व मिर्च की फसल में सभी तत्वों की पूर्ति करते हैं जिसके कारण मिर्च की फसल में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है।
- पोषक तत्व प्रबंधन में यूरिया- 25 किग्रा, डीएपी- 20 किग्रा, मैग्नीशियम सल्फेट- 15 किग्रा, सल्फर (कॉसवेट) – 3 किग्रा और जिंक सल्फेट- 5 किग्रा प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें।
फलोद्यान योजना के अंतर्गत किसानों को 3 साल में मिलेंगे 2.25 लाख रुपये
लघु सीमांत किसानों के लिए सरकार फलोद्यान योजना शुरू कर रही है। अगर किसान इस योजना में शामिल होते हैं, तो उन्हें तीन साल में सरकार की तरफ से लगभग सवा दो लाख रुपए का अनुदान मिलेगा। योजना के तहत किसान को एक एकड़ में 4 फलों की पौध लगानी होगी। किसान चाहे तो इसे अपने खेतों की मेड़ पर भी लगा सकते हैं। 1 एकड़ क्षेत्रफल के लिए किसान को 4 सौ फलों के पौधे उपलब्ध कराए जाएंगे।
इस योजना के अंतर्गत शुरूआती साल में किसान को उद्यान लगाने के साथ उसकी देखरेख करने के एवज में मनरेगा के तहत 316 मानव दिवस की मजदूरी दी जाएगी। उद्यान की देखरेख में आने वाली सामग्री के लिए 35 हजार रुपए का अनुदान अलग से, तीन साल तक लगातार किसान को मिलता रहेगा।
इस योजना के अंतर्गत किसान क्षेत्रीय फल पपीता, अनार, जामुन, मुनगा, अमरूद, संतरा सहित वह फल लगा सकते है जिनके लिए उस स्थान विशेष का मौसम अनुकूल हैं। योजना में ऐसे कृषक परिवार जिसकी मुखिया कोई महिला या दिव्यांग हो, को प्राथमिकता दी जाएगी। इसके अलावा योजना का लाभ बीपीएल कार्डधारी, इंदिरा आवास योजना के हितग्राही, अनुसूचित जाति, जनजाति के साथ लघु सीमांत किसान ले सकते हैं।
स्रोत: भास्कर
Shareखेत में रोपाई के 15-20 बाद मिर्च की फसल में लगने वाले रोग एवं कीट से ऐसे करें बचाव
- मिर्च की फसल के नर्सरी से खेत में रोपाई के बाद कीट एवं रोग प्रबंधन के लिए छिड़काव करना बहुत आवश्यक होता है।
- इस अवस्था में मिर्च की फसल में रस चूसक कीट जैसे थ्रिप्स, एफिड आदि के अलावा कवक जनित बीमारियाँ जैसे डम्पिंग ऑफ आदि का प्रकोप भी होता है।
- इसी के साथ मिर्च के पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए वृद्धि कारकों का भी उपयोग करना पड़ता है।
- कीट एवं रोग प्रबंधन में निम्र उत्पादों का उपयोग करना चाहिए।
- इन सब के नियंत्रण के लिए थियोफिनेट मिथाइल @ 300 ग्राम/एकड़ + थियामेथोक्साम 25% WP@100 ग्राम/एकड़ + सीवीड @400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
फसल उत्पादन में मिट्टी के पीएच का महत्व
- मृदा पीएच को मिट्टी की अम्लता या क्षारीयता के रूप में जाना जाता है।
- पीएच 7 से कम पीएच की मिट्टी अम्लीय होती है और पीएच 7 से ज्यादा पीएच की मिट्टी क्षारीय होती है।
- पौधे के विकास के लिए पीएच बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह लगभग सभी आवश्यक पौष्टिक पोषक तत्वों की उपलब्धता को निर्धारित करता है। मिट्टी का पीएच मान 6.5 से लेकर 7.5 के बीच में होता है।
- मृदा पीएच पौधे की वृद्धि एवं उन पोषक तत्वों और रसायनों की मात्रा को प्रभावित करता है जो मिट्टी में घुलनशील होते हैं, और इस कारण पौधों को पोषक तत्वों की आवश्यक मात्रा उपलब्ध नहीं हो पाती है।
- अम्लीय पीएच के कारण (5.5 पीएच से कम) पौधे की वृद्धि रुक जाती है परिणामस्वरूप पौधे खराब हो जाते हैं।
- जब किसी पौधे की मिट्टी का पीएच बढ़ जाता है, तब पौधे की कुछ पोषक तत्वों को अवशोषित करने की क्षमता बाधित होती है। नतीजतन, कुछ पोषक तत्वों को ठीक से अवशोषित नहीं किया जा सकता है। मिट्टी का उच्च पीएच, मिट्टी में मौजूद लोहे को पौधे को आसान रूप में बदलने से रोकता है।
- मिट्टी का पीएच कम अम्लीय बनाने के लिए, चूने का उपयोग किया जाता है। कृषि में चूना पत्थर का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है। चूना पत्थर के कण जितने महीन होते हैं, उतनी ही तेजी से प्रभावी भी होते हैं। मिट्टी के पीएच मान को समायोजित करने के लिए विभिन्न मिट्टी को चूने की एक अलग मात्रा की आवश्यकता होगी।
- मिट्टी के पीएच को कम क्षारीय बनाने के लिए, जिप्सम का उपयोग किया जाता है। मिट्टी के पीएच मान को समायोजित करने के लिए विभिन्न मिट्टी को जिप्सम की एक अलग मात्रा की आवश्यकता होगी।
मानसून इफेक्ट: दलहन, तिलहन फ़सलों के साथ कपास की बुआई में 104 फीसदी की बढ़ोतरी
देश भर में कई राज्य में जून महीने में मानसून से पहले ही प्री मानसून के कारण अच्छी बारिश हुई थी और अब मानसून भी बहुत सारे राज्यों में सक्रिय होता नजर आ रहा है। इसी मानसूनी इफेक्ट का नतीजा है की खरीफ फ़सलों की बुआई में 104.25 फीसदी की भारी बढ़ोतरी देखने को मिली है।
खरीफ फ़सलों में दलहन के साथ तिलहन, कपास और मोटे अनाजों की बुआई बहुत अधिक हुई है। कृषि मंत्रालय के मुताबिक वर्तमान समय में खरीफ फ़सलों की बुआई बढ़कर 315.63 लाख हेक्टेयर में हो गई है जो पिछले साल इस समय तक 154.53 लाख हेक्टेयर तक ही पहुँच पाई थी।
खरीफ फ़सलों में मुख्यतः धान की रोपाई 37.71 लाख हेक्टेयर में हुई है जो पिछले साल इस समय तक 27.93 लाख हेक्टेयर से थोड़ी कम रही थे। दलहन फसलों की बुआई भी बढ़कर 19.40 लाख हेक्टेयर में हो गई है जो पिछले साल इस समय तक महज 6.03 लाख हेक्टेयर थी। बात करें कपास की बुआई की तो यह भी बढ़कर 71.69 लाख हेक्टेयर हो गया है जो की पिछले साल इस समय तक महज 27.08 लाख हेक्टेयर ही हो पाया था।
स्रोत: आउटलुक एग्रीकल्चर
Shareऐसे करें सोयाबीन की फसल में गर्डल बीटल का प्रबंधन
- गर्डल बीटल के द्वारा पौधे के तने को अंदर से लार्वा द्वारा खाया जाता है और तने के अंदर एक सुरंग बनाई जाती है।
- संक्रमित हिस्से वाले पौधे की पत्तियां पोषक तत्व प्राप्त करने में असमर्थ होती हैं और सूख जाती हैं।
- इस समस्या के समाधान के लिए लैंबडा सायलोथ्रिन 4.9% CS @ 200 मिली/एकड़ या प्रोफेनोफोस 40% EC + साइपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- क्विनालफॉस 25% EC@400 मिली/एकड़ या बायफैनथ्रीन @ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
कपास की फसल में कोणीय पत्ती (ऐगूलरलीफ स्पॉट) रोग का प्रबंधन
- पौधों में कोणीय पत्ती रोग कई प्रकार के बैक्टीरिया के कारण होता है जो बीज और पौधे के मलबे में जीवित रहते हैं, जिसमें स्यूडोमोनास सिरिंज और ज़ेंथोमोनस फ्रैगरिया शामिल हैं।
- पत्तियों की शिराओं के बीच पानी से लथपथ घाव इस बीमारी का एक लक्षण है, लक्षण अक्सर पत्तियों के नीचे पर दिखाई देते हैं। जिसके कारण पत्तिया मर जाती हैं।
- इसके कारण ऊतक भंगुर हो जाता है और उन पत्ती के हिस्से दूर हो जाते हैं, जिससे पीड़ित पत्तियों को एक रगड़ दिखाई देती है। कोणीय पत्ता स्पॉट घाव रोग के कारण पत्तियों से एक दूधिया तरल पदार्थ को बाहर निकालता है जो पत्ती की सतहों पर सूख जाता है। इसका गंभीर प्रकोप होने पर तने और फलों पर घाव दिखाई देते हैं।
- इस रोग के प्रबंधन के लिए कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP@300 ग्राम/एकड़ या कसुगामाइसिन 3% SL@ 400 मिली/एकड़ या स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड@ 24 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ या बेसिलस सबटिलिस@ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।