पशुओं के नवजात बछड़े व बछिया को स्वस्थ रखने के उपाय

Measures to keep the newborn calf heifer of animals healthy

आज के नवजात बछिया कल के दुधारु पशु होते हैं, इसलिए इनका पालन पोषण और उचित प्रबंधन किसी भी डेयरी विकास के सफलता का आधार होता है। 

  • बछड़े/बछिया के जन्म लेने के तुरंत बाद ही उनके नाक एवं मुँह को साफ करना चाहिए।

  • नवजात के छाती पर धीरे-धीरे मालिश करें ताकि वह आसानी से सांस ले सके।

  • मुँह के अंदर दो उंगलियाँ डालें और उनको जीभ पर रखें, जिससे नवजात को दूध पीना आरंभ करने में मदद होगी। 

  • नवजात बछड़े/बछिया को सुरक्षित वातावरण में रखना चाहिए। 

  • जन्म के आधे घंटे के भीतर, नवजात पशु को खीस पिलाएं। खीस में दूध की तुलना में इसमें 4-5 गुना अधिक प्रोटीन, 10 गुना विटामिन ए और पर्याप्त मात्रा में खनिज तत्व होते हैं जो नवजात में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं। 

  • तीसरे सप्ताह के दौरान कृमिनाशक दवा दें, और इसके बाद तीसरे एवं छठे माह की उम्र में भी ये दवा देना चाहिए। 

  • दूसरे सप्ताह से नवजात को अच्छी गुणवत्ता वाली सूखी घास और शिशु आहार खिलाना चाहिए। 

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मिट्टी परीक्षण से एकदम सटीक परिणाम पाने के लिए ऐसे करें मिट्टी के नमूने को एकत्र

Sample Collection Method for Soil Testing

मिट्टी परीक्षण की पूरी प्रक्रिया में जो सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है वो है मिट्टी का सही नमूना एकत्र करना। नमूना लेने के लिये ध्यान दें की, नमूना लेने से पूर्व खेत में ली गई फसल की बढ़वार एक ही रही हो, उनमें एक समान उर्वरक उपयोग किये गए हों।

नमूना एकत्रीकरण विधि:

  • जिस खेत में नमूना लेना हो उसमें जिग-जैग प्रकार से घूम कर 10-15 स्थानों पर निशान बना लें जिससे खेत के सभी हिस्से उसमें शामिल हो सके।

  • चुने गए स्थानों पर ऊपरी सतह से घास-फूस, कूड़ा करकट आदि हटा दें।

  • इन सभी स्थानों पर 15 सें.मी. (6-9 इंच) गहरा “वी” आकार का गड्ढा खोदें।

  • गड्ढे को साफ कर खुरपी से 2 से.मी. मोटी मिट्टी की तह को निकाल ले तथा साफ बाल्टी या ट्रे में रखें।

  • एकत्रित की गई पूरी मिट्टी को हाथ से अच्छी तरह से मिला लें तथा साफ कपड़े पर डालकर गोल ढेर बना लें।

  • बनाए गए ढेर को चार बराबर भागों में बाटें एवं दो ढेरों को हटा दें।

  • अब शेष बचे दो ढेरों की मिट्टी पुन: अच्छी तरह से मिलाएं व गोल ढेर बनाएं। यह प्रक्रिया तब तक दोहराएं जब तक 500 ग्राम मिट्टी शेष न रह जाए। 

  • सूखी मिट्टी के नमूने को साफ प्लास्टिक थैली में रखें तथा इसे एक कपड़े की थैली में डाल दें।

  • नमूने से संबंधित दो सूचना पत्र बनाएं जिस पर नमूने से जुड़ी सभी जानकारी लिखी हो।

  • एक पत्र को प्लास्टिक की थैली के अन्दर तथा दूसरे को थैली के बाहर बांध दें।

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मूंग की फसल में खरपतवारों का बढ़ेगा प्रकोप, जानें बचाव के उपाय

Weed Management in Moong Crop

मूंग की फसल में खरपतवार नियंत्रण सही समय पर नही करने से फसल की उपज में 40-60 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है। फसल की शुरूआती अवस्था में बुआई के 15 से 45 दिन के मध्य फ़सलों को खरपतवारों से मुक्त रखना जरूरी है। सामान्यत: दो निराई-गुड़ाई, पहली 15-20 दिन के भीतर व दूसरी 30-35 दिनों के भीतर करनी चाहिए ताकि खरपतवारों का नियंत्रण हो सके। 

खरपतवार के रासायनिक प्रबंधन के लिए क्लीन सुपर (पेंडीमेथालिन 38.7%.सीएस) 700 मिली प्रति एकड़ के दर से बुआई के 72 घंटों के भीतर 150-200 लीटर साफ पानी में मिलाकर छिड़काव  करें। 

मूंग की खड़ी फसल में जंगली चौलाई, दूधी, जैसे खरपतवार जब 2-3 पत्ती अवस्था में होते है, तब वीडब्लॉक (इमाज़ेथापायर 10% एस एल+ सर्फेक्टेंट)@ 300 मिली प्रति एकड़  के दर से बुआई के 10-15 दिन बाद छिड़काव करें। 

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लहसुन की फसल को भंडारण के समय ब्लैक मोल्ड से कैसे बचाएं?

Know how to protect garlic crop from black mold during storage

लहसुन की फसल कटाई के बाद भंडारण के समय ब्लैक मोल्ड रोग का खतरा बढ़ जाता है। जहां भी प्याज और लहसुन का भंडारण किया जाता है वहा ये रोग लगना सामान्य होता है। 

लक्षण: लहसुन के पकने की अवस्था में ब्लैक मोल्ड आमतौर पर देखा जाता है। इस रोग के लक्षण लहसुन की कलियों के बीच और गांठों पर काले पाउडर के रूप में दिखाई देते हैं। इससे बाजार में लहसुन की कीमत कम होने लगती है, साथ ही प्रभवित गांठों का भंडारण ज्यादा समय तक नहीं रख जा सकता है। 

रोकथाम के उपाय:

  • लहसुन के भंडारण से पहले कंदों को अच्छी तरह सूखाकर साफ करें।

  • भंडारण में अच्छी तरह से पके, ठोस और स्वस्थ कंदों को ही रखें। 

  • भंडारण की जगह को नमी रहित और हवादार होना जरूरी होता है। 

  • भंडारण करने वाली जगह में कंदों का ढेर नहीं लगाना चाहिए।

  • कंदों को पत्तियों से गुच्छों में बांध कर रस्सियों पर लटका दें या फिर बांस की टोकरियों में भरकर रखें।

  • समय-समय पर सड़े-गले कंदों को निकालते रहना चाहिए।

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फसल की कटाई के बाद ऐसे करें फसल अवशेष का प्रबंधन

How to manage crop residue after harvest

फसलों की कटाई के बाद खेत में बचे फसल अवशेषों को जलाने की जगह रोटावेटर की सहायता से जुताई करें और एक पानी लगाए। इससे फसल अवशेष मिट्टी में मिल जाते हैं। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति बढऩे के साथ ही अनेक लाभ मिलते है। 

फसल अवशेषों को खेत में मिला देने से होने वाले लाभ

  • किसान फसल अवशेषों को रोटावेटर की सहायता से खेत में मिला कर जैविक खेती का लाभ ले सकते हैं।

  • फसल अवशेषों को खेत में ही मिला देने से जैव विविधता बनी रहती है। जमीन में मौजूद मित्र कीट शत्रु  कीटों को खा कर नष्ट कर देते हैं।

  • इससे जमीन में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है, फलस्वरूप फसल उत्पादन ज्यादा होता है।

  • दलहनी फसलों के अवशेषों को जमीन में मिलाने से मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे अगली फसल का भी उत्पादन भी बढ़ता है।

  • किसानों द्वारा फसल अवशेष जलाने के बजाय भूसा बना कर रखने पर जहां एक ओर उनके पशुओं के लिए चारा मौजूद होगा, वहीं अतिरिक्त भूसे को बेच कर वे आमदनी भी बढ़ा सकते हैं।

फसल अवशेषों का कैसे करें प्रबंधन

  • फसल अवशेषों को पशु चारा अथवा औद्योगिक प्रबंधन के लिए एकत्रित किया जा सकता है।

  • धान की पराली को यूरिया/कैल्शियम हाइड्रोक्सॉइड से उपचार करके इसका उपयोग पशु चारे के लिए किया जा सकता है।

  • खेत में स्ट्रा बेलन मशीन की मदद से फसल अवशेषों के ब्लॉक बनाकर कम जगह में भंडारित करके, पशु चारा के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

  • गेहूँ के फनो पर रीपर मशीन को चलाकर भूसा बनाया जा सकता है।

  • फसल अवशेषों का उपयोग मशरूम की खेती करने में भी मदतगार होता है। 

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नींबू वर्गीय फसलों के प्रमुख कीट व नियंत्रण के उपाय

Symptoms of major pests in citrus crop

साइट्रस सिल्ला: इस कीट के वयस्क और निम्फ दोनों ही अवस्था कलियों, पत्तियों, शाखाओं के कोमल भागों से रस चूसते हैं और उनमें विषैला पदार्थ को इंजेक्ट करते हैं। निम्फ सफ़ेद क्रिस्टलीय पदार्थ उत्सर्जित करते हैं, जिस पर काला धब्बेदार सांचा विकसित हो सकता है, जो पौधों के प्रकाश संश्लेषक क्षेत्र को कम करता है। अधिक संक्रमण में पत्तियां विकृत हो जाती हैं और ऊपर की ओर सिकुड़ जाती हैं। साथ ही यह कीट साइट्रस ग्रीनिंग रोग फ़ैलाने के लिए वेक्टर बनता है। 

प्रबंधन: इसके नियंत्रण के लिए संक्रमण दिखाई देते ही, थियानोवा 25 (थायोमिथाक्साम 25% डब्लू जी) @ 40 ग्राम प्रति एकड़ या मिडिया ( इमिडाक्लोप्रिड 17.80% एस एल) 20 मिली प्रति एकड़ के दर से छिड़काव करें।

साइट्रस लीफ माइनर: यह कीट नर्सरी और बगीचा दोनों में नुकसान पहुंचाता है। इसकी इल्लियां कोमल पत्तियों पर हमला करती हैं और पत्तियों पर सर्पीली रेखाएं बनाकर पत्तियों को खाती हैं। प्रभावित पत्तियां हलके पीले रंग की हो जाती हैं और विकृत होकर नीचे गिर जाती हैं। इस कीट के संक्रमण से साइट्रस कैंकर रोग के विकास को बढ़ावा मिलता है। 

प्रबंधन: इस कीट के नियंत्रण के लिए, पौधों की सभी प्रभावित भागों की छटाई की जानी चाहिए। संक्रमण बढ़ने पर मिडिया ( इमिडाक्लोप्रिड  17.80% एस एल) 20 मिली या प्रोफेनोवा सुपर (प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% इसी) 2 मिली प्रति लीटर पानी के दर से छिड़काव करें।  

माहु: इस कीट के निम्फ और वयस्क स्वरूप कोमल पत्तियों एवं शखाओं से रस चूसते हैं। प्रभावित पत्ते पीले, रूखे और विकृत होकर सूख जाते हैं। पौधों की वृद्धि रुक जाती है और इसके मावा द्वारा उत्सर्जित हनीड्यू पर सूटी मोल्ड का उत्पादन हो जाता है। यदि संक्रमण फूल अवस्था के दौरान होता है, तो इसके परिणाम से फल कम बनते हैं।  

प्रबंधन: इसके नियंत्रण के लिए प्रकोप दिखाई देते ही, टफगोर (डायमेथोएट 30% इसी) @ 594 मिली प्रति एकड़ या मिडिया ( इमिडाक्लोप्रिड 17.80 % एस एल) @ 20 मिली प्रति एकड़ के दर से छिड़काव करें। 

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ऐसे तैयार करें कई पोषक तत्वों से भरपूर संपूर्ण पशु आहार साइलेज

Know the method of making silage for animals

साइलेज बनाने के लिए गड्ढा बनाएं जो 6 फुट गहरा तथा 5 फुट चौड़ा हो। गौरतलब है की एक साइलेज का गड्ढा जिसकी लम्बाई 10 फुट, चौड़ाई 5 फुट एवं गहराई 6 फुट हो, उसमें करीब 45 क्विंटल हरा चारा तैयार किया जा सकता है। ध्यान रखें की यह गड्ढा जहां बनाएं वह जगह ऊंची तथा ढालू हो जिससे की बारिश का पानी उसके अंदर न जा पाए। गड्ढे की दिवारें बिल्कुल सीधी, समतल व इसके कोने गोल होने चाहिए। कच्चे गड्ढे की दीवारें तथा फर्श को चारा भरने से पहले अच्छी तरह से मिट्टी से लिपाई कर देनी चाहिए जिससे उसमें हवा अंदर जाने के लिए रास्ता न रहे। हवा अंदर जाने पर साइलेज में फफूंद लग सकती है। हरा चारा भरने से पहले गड्ढे में भूसा, फूस या पुआल बिछा दें। दीवार व चारे के बीच में भी भूसा या पुआल डालें जिससे चारे व दीवार सीधे संपर्क में न रहे। गड्ढे में चारा थोड़ा-थोड़ा भरकर उसे पैरों से दबा-दबा कर भरें जिससे चारे के बीच हवा न रह पाए। गड्ढे को जमीन से 2-3 फुट ऊंचा बनाएं। गड्ढे के मुंह को बंद करने के लिए प्लास्टिक की चादर से ढककर उसके किनारों को अच्छी तरह से मिट्टी से दबा दें ताकि हवा चादर के अंदर न घुस सके। साइलेज तकरीबन दो महीने में तैयार हो जाता है।

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लहसुन की खुदाई के समय नहीं बरती सावधानी तो होगा नुकसान

Precautions to be taken while digging in garlic crop

लहसून की फसल 130 से 180 दिन में पूरी तरह पक कर तैयार हो जाती है। पूरी तरह तैयार होने पर फसल की पत्तियां पीली होने लगती है और सूख कर गिरने लगती है। साथ ही कंद के आस-पास पौधों की पकड़ कमजोर पड़ने से भी फसल के पकने का अनुमान लगाया जा सकता है। 

लहसुन की खुदाई के समय रखें इन बातों का ध्यान

  • फसल परिपक्व होने की अवस्था में सिंचाई पूरी तरह से रोक देनी चाहिए और कुछ दिनों बाद फसल की खुदाई शुरू कर देनी चाहिए।

  • लहसुन की मिट्टी पर पकड़ कमजोर होने पर हाथ से या कुदाल के प्रयोग से भी इसकी खुदाई की जा सकती है।

  • कुदाल से खुदाई करते समय कुदाल के नोक को जड़ पर न लगने दें।

  • खुदाई के बाद खेत में ही पत्तियों सहित लहसुन के पौधों को सूखने दें।

  • लहसुन में उपस्थित नमी को देखते हुए हीं इसे धूप में रखें। अधिक नमी या अधिक धूप फसल को खराब कर सकती है।

  • अधिक समय तक भंडारण के लिए लहसुन को 2 से 3 सेंटीमीटर डंठल सहित काटें।

  • पर्याप्त भंडारण व्यवस्था उपलब्ध होने पर लहसुन को पत्तियों सहित बंडल बना कर रखें।

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मूंग की फसल में ऐसे करें तिहरा बीज उपचार और पाएं तेज शुरुआती बढ़वार

Method of seed treatment in moong crop

मूंग की फसल में बीज उपचार करने से बीज जनित तथा मिट्टी जनित बीमारियों का आसानी से नियंत्रण कर फसल के अंकुरण को भी बढ़ाया जा सकता है। बीज उपचार आमतौर पर 3 प्रकार से किया जाता है, जिसे हम ‘फकीरा’ (FIR) पद्धति कहते है। फकीरा पद्धति में हम बारी बारी से फफूंदनाशक, कीटनाशक और राइज़ोबियम से बीज उपचार करते हैं। 

फफूंदनाशक: इस बीज उपचार पद्धति में सबसे पहला फफूंदनाशक का प्रयोग करते हैं। इसका उपयोग जमीन में या बीज अंकुरण के समय लगने वाले फफूंद जानित रोग के रोकथाम के लिए करते हैं। फफूंदनाशक से बीज उपचार के लिए करमानोवा (कार्बेन्डाझिम 12% + मैंकोज़ेब 63% डब्लू पी) @ 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज के दर से उपयोग करें।

कीटनाशक: इसका प्रयोग फफूंदनाशक के बाद करना चाहिए। कीटनाशक से बीज उपचार करने से जमीन के अंदर पाए जाने वाले कीट अथवा फसल के शुरूआती अवस्था में लगने वाले रस चूसक कीट जैसे माहू या सफ़ेद मक्खी के रोकथाम में मदद मिलती है। कीटनाशक से बीज उपचार करने के लिए थियानोवा सुपर (थायोमिथाक्साम 30% एफएस) @ 4-5 मिली प्रति किलो बीज के दर से उपयोग करें।

 राइज़ोबियम: इसका प्रयोग कीटनाशक के बाद करना चाहिए। राइज़ोबियम एक जीवाणु है, जो मूंग के पौधों की जड़ों में सहजीवी के रूप में रहता है, और पौधों की जड़ों में गठानें बनाता है, जिससे वायुमंडलीय नाइट्रोजन सरल रूप में जमीन में उपलब्ध होता है, जो पौधे द्वारा किसी भी अवस्था में इस्तेमाल किया जा सकता है।

राइज़ोबियम से बीज उपचार करने के लिए जैव वाटिका (राइज़ोबियम) @ 5 ग्राम प्रति किलो बीज के दर से उपयोग करें। 

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तरबूज और खरबूज की फसल में पिंचिंग प्रक्रिया का क्या है महत्व?

Pinching in watermelon and muskmelon crop
  • किसान भाइयों तरबूज और खरबूज की फसल से अच्छी गुणवत्ता वाली उपज प्राप्त करने के लिए पिंचिंग एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। 

  • लताओं की अतिवृद्धि को रोकने हेतु एवं फलों के अच्छे विकास के लिए लताओं में पिंचिंग की प्रक्रिया की जाती है।

  • इस प्रक्रिया में जब बेल पर पर्याप्त फल लग जाते है तब लताओं के शीर्ष को तोड़ दिया जाता है परिणामस्वरूप लताओं की वानस्पतिक वृद्धि रुक जाती है। 

  • लताओं की वृद्धि रोकने से फलों के आकार और गुणवत्ता में सुधार होता है।

  • यदि एक बेल पर अधिक फल लगे हों तो छोटे और कमजोर फलों को हटा दें ताकि मुख्य फल की वृद्धि अच्छी हो सके।

  • अनावश्यक शाखाओं को हटाने से तरबूज और खरबूज के फलों को पूरा पोषण प्राप्त होता है और वह जल्दी बड़े होते हैं। 

अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

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