कपास की फसल को व्हाइट ग्रब प्रकोप से दें सुरक्षा, ऐसे करें बचाव

Measures for the prevention of white grub in cotton

व्हाइट ग्रब को सफेद गिडार कीट के नाम से भी जाना जाता। दिन के समय मिट्टी में रहने वाले यह कीट रात के समय अधिक सक्रिय होते हैं। इस कीट का लार्वा जड़ों को खा कर के पौधों को क्षति पहुंचाते हैं। जड़ों के क्षतिग्रस्त होने के कारण पौधों को उचित मात्रा में पोषक तत्व नहीं मिल पाता है। जिससे पौधे सूखने लगते हैं और कुछ समय बाद नष्ट हो जाते हैं। 

नियंत्रण के उपाय:

  • यदि ये कीट दिखाई दें तो पर्याप्त मात्रा में सिंचाई करें। ऐसा करने से खेत में नमी रहती है और कीट मिट्टी से बाहर निकल आते हैं। 

  • कटाई के तुरंत बाद गहरी जुताई करें इससे जमीन के अंदर छिपे रहने वाले ये कीट सूर्य की गर्मी से नष्ट हो जाते हैं और फसलों पर इनका प्रकोप कम हो जाता है साथ ही खेतों में वर्षा के जल को धारण करने की क्षमता भी बढ़ती है, जो फसलों को सूखे की समस्या से बचाती है।

  • इस कीट से बचाव के लिए फ्युरी (कार्बोफ्यूरान 3% सीजी) 4 किलो/एकड़ की दर से प्रयोग करें।

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सब्जी वर्गीय फसलों में निमेटोड की समस्या एवं रोकथाम के उपाय

Problem of Nematode in vegetable crops and their prevention

निमेटोड सूक्ष्म कृमि जैसे कीट होते हैं जो मुख्य रूप से सब्जी वर्गीय फसलों जैसे – टमाटर, बैगन, मिर्च, भिंडी, खीरा आदि की जड़ों पर आक्रमण करते हैं। पौधों के जड़ों पर गांठें बनना ही इस सूक्ष्म कृमि का मुख्य लक्षण है। रोगग्रसित पौधों की जड़ों पर छोटी-छोटी गांठें बन जाती हैं, जिसके कारण पौधे में पोषक तत्व और पानी सोखने की क्षमता कम हो जाती है, जिससे पौधे पीले और छोटे रह जाते हैं। पौधे की वृद्धि रुक जाती है और अंत में सम्पूर्ण फसल सूख जाती है।

नियंत्रण के उपाय:

गर्मियों में खेत की हल्की सिंचाई के बाद 2-3 गहरी जुताई 10-12 दिन के अन्तर पर करें। इससे सूत्रकृमि ऊपरी सतह पर आकर अधिक तापमान से मर जायेगें।

इसके नियंत्रण के लिए निमेटो फ्री प्लस (वर्टिसिलियम क्लैमाइडोस्पोरियम) 2-4 किलो/एकड़ में खेत की तैयारी, बुवाई या रोपाई के समय खेत में डालें। वेलम प्राइम (फ्लुओपिरम 34.48% एससी) 250 मिली/एकड़ से ड्रिप या ड्रेंचिंग से भूमि को उपचारित करें। 

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मूंग की फसल में एन्थ्रेक्नोज रोग की पहचान एवं निवारण के उपाय

Identification and prevention of anthracnose disease in moong crops

इस रोग के कारण फसल की उत्पादकता व गुणवत्ता दोनों प्रभावित होती है। रोग ग्रसित फलियों पर धब्बे दिखाई देते हैं, ये धब्बे हल्के भूरे एवं लाल रंग के होते हैं। ऐसे हीं धब्बे पत्ती एवं तने पर भी बनते हैं। जब आद्रता अधिक हो तब ये फसल में तेजी से फैलते हैं। फलियों पर इसके धब्बे गोलाकार हंसिये के आकार के दिखाई देते हैं तथा रोग ग्रस्त भाग झड़ जाता है। इस रोग से, ग्रसित बीज की गुणवत्ता को भी नुकसान पहुँचता है।

नियंत्रण के उपाय:

  • बुवाई से पहले धानुस्टीन (कार्बेन्डाजिम 50% डब्ल्यूपी) 2 ग्राम/किग्रा बीज की दर से बीजोपचार करना चाहिए।

  • फसल में रोग के लक्षण दिखते ही धानुस्टीन (कार्बेन्डाजिम 50% डब्ल्यूपी)  100 ग्राम/एकड़ या एम-45 (मेन्कोजेब 70% डब्ल्यूपी) 400 ग्राम/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिला कर छिडकाव करें, आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के अंतराल पर दोहराना चाहिए।

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फूलगोभी की फसल में बोरोन तत्व की कमी की पहचान एवं निवारण के उपाय

Identification and prevention of Boron element deficiency in Cauliflower

सब्जी वाली फसलों में बोरोन तत्व की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। फूलगोभी में बोरोन की कमी से फूल की ऊपरी सतह पर भूरापन आ जाता है। सामान्य तौर पर फूल बनने के बाद बोरोन की कमी के लक्षण दिखाई देते हैं। शुरुआत में तने और फूल पर पानी से लथपथ भाग दिखाई देते हैं। ब्राउनिंग रोग बोरोन की कमी के कारण हीं उत्पन्न होता है। इसमें तना खोखला हो जाता है तथा फूल भूरे रंग का हो जाता है। 

इससे बचाव के लिए कैलबोर 5 किग्रा प्रति एकड़ के हिसाब से मिट्टी में मिलाएं एवं बोरोन 15 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। 

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बैंगन की फसल में फल छेदक व तना छेदक का ऐसे करें नियंत्रण

Measures to control fruit borer and stem borer in Brinjal crop

इस कीट का प्रकोप बैंगन में सबसे अधिक होता है। प्रारंभिक अवस्था में इसकी इल्ली कोमल तने में छेद करती है जिससे पौधे का तना एवं शीर्ष भाग सूख जाता है। इसके आक्रमण से फूल लगने के पहले हीं गिर जाते हैं। इसके बाद ये कीट फल में छेद बनाकर अंदर घुस जाते हैं और गूदे को खाते हैं। इससे ग्रसित फल सड़ जाते हैं और फल खाने योग्य भी नहीं रहते हैं। 

नियंत्रण के उपाय: इसके नियंत्रण के लिए स्पिनटोर (स्पिनोसैड 45%एससी) 75 मिली/एकड़ या फ़ेम (फ्लुबेंडियामाइड 39.35% एससी) 50 मिली/एकड़ या कवर (क्लोरेंट्रानिलिप्रोएल 18.5%एससी) 60मिली/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिला का छिड़काव करें।

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मिर्च की नर्सरी में आद्र गलन रोग की पहचान और नियंत्रण के उपाय

Damping Off Disease in Chilli Nursery

आद्र गलन रोग फफूंद के माध्यम से फैलता है और मिर्च की नर्सरी में इस रोग का प्रकोप बहुत ज्यादा देखने को मिलता है। वहीं इस रोग का प्रभाव 10 से 15 दिन के पौधों में ज्यादा देखने को मिलता है। इस रोग के लगने से पौधे की जड़ व तने में गलने की समस्या शुरू हो जाती है। इससे पौधों के तने पतले होने लगते हैं और पत्ते मुरझाने लगते हैं। इस रोग की समस्या बढ़ने पर, पत्तियां पीली होकर सूखने लगती हैं और पौधे जमीन पर गिर जाते हैं। रोपाई के समय जब पौधे ज्यादा मात्रा में निकाले जाते हैं तो यह बीमारी अधिक तीव्रता से फैलती है।

नियंत्रण के उपाय:

  • इस रोग से बचाव के लिए फसल चक्र अपनाएं, आद्र गलन रोग से प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें। बुवाई से पूर्व बीजोपचार करना अति आवश्यक है। 

  • जैविक नियंत्रण के लिए कोमबेट (ट्राइकोडर्मा विर्डी) को 8 ग्राम/किलो बीज को उपचारित करें। या 

  • विटावेक्स (कार्बोक्सिन37.5%+ थिरम37.5%डब्ल्यू एस) 3 ग्राम/किलो या धनुस्टिन (कार्बेन्डाजिम 50% डब्ल्यूपी) को 3 ग्राम/किलो बीज को उपचारित करें।

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मूंग की फसल में रस्ट रोग की समस्या एवं निवारण के उपाय

Problem and solution of Rust in Moong Crop
  • इस रोग के लक्षण पत्तियों की निचली सतह पर लाल भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।

  • यह धब्बे फलियों और तने पर बहुत कम लेकिन पत्तियों पर अधिक दिखाई देते हैं।

  • इस रोग से ग्रसित फलियां जल्दी परिपक्व हो जाती हैं, दाने सिकुड़े हुए बनते हैं और उपज में भारी कमी आती है।

  • इसके नियंत्रण के लिए एम -45 (मैनकोजेब 75% डब्ल्यूपी) 600-800 ग्राम/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें। 

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बिना खाद उर्वरक होगी मशरूम की खेती, मिलेगा बंपर मुनाफा

Medicinal Properties of Mushroom

किसान भाइयों मशरूम कवक वर्ग का एक पौधा है। इसका कवक जाल ही इसका फल भाग होता है जिसे मशरूम कहा जाता है। मशरूम की खेती के निम्न लाभ हैं –

👉🏻मशरूम को उगाने में खाद उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है। 

👉🏻इसकी खेती कर किसान, मध्यम वर्ग एवं मजदूर वर्ग के लोग अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर सकते हैं। 

👉🏻जिनके पास भूमि की कमी या उपलब्धता नहीं है, उनके लिए मशरूम की खेती सर्वश्रेष्ठ है। 

👉🏻मशरूम की खेती करने में लागत कम एवं उत्पादन ज्यादा प्राप्त होता है। 

👉🏻मशरूम की खेती में अन्य खेती की अपेक्षा जोखिम न के बराबर होती है।  

👉🏻मशरूम की खेती किसी भी मौसम में नियंत्रित वातावरण और तापमान एवं आद्रता में की जा सकती है। 

👉🏻मशरूम को ऐसी जगह भी उगाया जा सकता है जहां सूर्य का प्रकाश ना पहुंचता हो। 

👉🏻मशरूम की खेती में फसल अवशेष उपयोग में लिये जाते है जो आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। 

👉🏻मशरूम में उपयोगी एवं पौष्टिक पदार्थ होते है और कई प्रोटीनों से भरपूर होता है। 

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कपास की फसल में बुवाई के बाद ऐसे करें खरपतवारों का प्रबंधन

How to manage weed in cotton
  • कपास की फसल में खरपतवार के कारण पैदावार में बहुत ज्यादा कमी आती है। बुवाई से 50-60 दिनों तक कपास का खेत खरपतवार मुक्त होना चाहिए। यह अच्छी उपज के लिए आवश्यक है।

  • बुवाई के बाद पहली सिंचाई से पहले हाथ से खरपतवार हटाएं। साथ ही हर सिंचाई के बाद इस प्रक्रिया को दोहराएं। 

  • शाकनाशी का प्रयोग बुवाई के तीन दिन के अंदर करें, इसके लिए दोस्त (पेंडीमेथलीन 30% ईसी) 1000 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

  • शाकनाशी के प्रयोग के समय मिट्टी में पर्याप्त नमी मौजूद होनी चाहिए। इसके प्रयोग से फसल  20-30 दिनों तक खरपतवार मुक्त बनी रहती है। 

  • यदि बुआई के समय शाकनाशी का प्रयोग नहीं किया गया हो तो बुवाई के 18 से 20  दिन के बीच निराई-गुड़ाई जरूर करें।

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कपास की फसल में आद्र गलन की समस्या एवं निवारण के उपाय

Problem and solution of Damping Off in Cotton Crop

आद्र गलन रोग के लक्षण:

  • आद्र गलन रोग कपास की फसल में लगने वाले कुछ घातक रोगों में से एक है। इस रोग के कारण 5 से 20% तक फसल नष्ट हो जाते हैं। 

  • आद्र गलन रोग का प्रभाव 10-15 दिन के पौधों में ज्यादा देखने को मिलता है। इस रोग से पौधों के जड़ और तना गलने लगते हैं।

  • इससे तने पतले होने लगते हैं और पत्ते मुरझाने लगते हैं। इस रोग की समस्या बढ़ने पर, पौधों की पत्ती पीली होकर, सूखने लगती है एवं पौधे जमीन पर गिर जाते हैं।

आद्र गलन रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • इस रोग से बचाव के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिए और आद्र गलन रोग के प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए।

  • बीजों की बुवाई से पूर्व बीजोपचार करना अति आवश्यक है। 

  • जैविक नियंत्रण के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 8 ग्राम ट्राइकोडर्मा से उपचारित करें।

  • विटावेक्स (कार्बोक्सिन37.5%+ थिरम37.5%डब्ल्यू एस) 3 ग्राम/किलो बीज से उपचारित करें।

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