जिंक घुलनशील बैक्टीरिया खेती के लिए है वरदान, फसलों को मिलते हैं कई लाभ

Importance of zinc solubilizing bacteria in the soil
  • जिंक एक अनिवार्य सुक्ष्म पोषक तत्व है जो पौधों के विकास के लिए बेहद आवश्यक हैं। परन्तु यह मिट्टी में अनुपलब्ध रूप में रहता हैं जिसे पौधे आसानी से उपयोग नहीं कर पाते। धान में ‘खैरा रोग’ के नियंत्रण के लिए यह सूक्ष्म तत्व बेहद सहायक होता है।

  • जिंक घुलनशील बैक्टीरिया को मिट्टी में मिलाने से अनेक फायदे मिलते हैं। इससे उर्वरक उपयोग दक्षता में सुधार होता है साथ हीं फसल की उपज अच्छी होती है, फसल की गुणवत्ता भी बेहतर होती है। यह मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार और हार्मोन की सक्रियता को बढ़ाने का भी कार्य करता है।

  • जिंक घुलनशील बैक्टीरिया मिट्टी में कार्बनिक अम्ल उत्पन्न करते हैं, जिससे अनुपलब्ध अवस्था में पड़े जिंक के तत्व को पौधों के लिए उपलब्ध रूप में बदल जाते हैं, इसके अलावा ये मिट्टी के pH का संतुलन बनाए रखते हैं।

  • अंतिम जुताई या बुवाई के समय, “जिंक घुलनशील बैक्टीरिया” को 2-4 किलो अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से भुरकाव करें।

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धान की नर्सरी में पीलापन बढ़ने पर हो जाएँ सावधान, जल्द अपनाएँ उचित नियंत्रण उपाय

The problem and solution of yellowing in paddy nursery

आमतौर पर धान की नर्सरी में पीलापन बढ़ने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे-पानी की कमी, अधिक तापमान, पोषक तत्वों की कमी और कीट एवं रोगों का प्रकोप आदि। इन सभी कारणों से धान की नर्सरी में पीलेपन की समस्या देखने को मिलती है। बेहतर फसल विकास के लिए, पानी में घुलनशील उर्वरक एनपीके 19:19:19 @ 75 ग्राम प्रति पम्प की दर से छिड़काव करें या तलवार जिंक सुपर-14 (चेलेटेड जिंक 12%) 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।

सूक्ष्म पोषक तत्वों की पूर्ति हेतु, (ट्राई-डिजॉल्व पैडी मैक्स) को 20 ग्राम प्रति पम्प और रस चूसक कीट एवं फफूंद जनित रोगों के लिए, थियानोवा-25 (थियामेथोक्सम 25% डब्लू जी) 10 ग्राम/पंप और करमानोवा (कार्बेनडाज़िम 12% + मैनकोज़ेब 63% WP) 25 ग्राम/पंप में मिला कर छिड़काव करें। 

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धान की फसल में खैरा रोग की पहचान एवं निवारण के उपाय

Identification and prevention of Khaira disease in paddy

खैरा रोग धान की फसल में लगने वाला एक प्रमुख रोग है। इस रोग में पत्तियों पर हल्के पीले रंग के धब्बे बनते हैं जो बाद में कत्थई रंग के हो जाते हैं। रोग की तीव्र अवस्था में रोग से ग्रसित पत्तियां सूखने लगती हैं। इसकी वजह से फसल में कल्ले भी कम निकलते हैं और पौधों की वृद्धि रुक जाती है। यह रोग मिट्टी में जस्ते (जिंक) की कमी के कारण होता है।

इसकी रोकथाम के लिए, ग्रोमोर (जिंक सल्फेट) 5 किग्रा प्रति एकड़ की दर से समान रूप से भुरकाव करें, या तलवार जिंक सुपर-14 (चिलेटेड जिंक 12%) को 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

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धान की नर्सरी में खरपतवार प्रकोप पहुंचाएगा नुकसान, जल्द करें नियंत्रण के उपाय

Weed control measures in the paddy nursery

धान की नर्सरी में खरपतवार निकलने के कारण पौधों को उचित मात्रा में पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं। दरअसल धान के पौधों के लिए जो पोषक तत्व नर्सरी में उपलब्ध रहते हैं या बाहर से डाले जाते हैं उसका उपभोग ये खरपतवार कर लेते हैं और पौधों को बढ़िया पोषण नहीं मिल पाता है। पोषक तत्वों की कमी के कारण धान के पौधे कमजोर हो जाते हैं, जिससे पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है। इससे धान के पौधों का विकास धीमी गति से होने लगता है।

इससे बचाव के लिए बीज की बुवाई से 1 सप्ताह पहले हीं खेत में सिंचाई कर देनी चाहिए, और कुछ समय बाद खरपतवार निकलते ही गहरी जुताई करनी चाहिए। ऐसा करने से खेत में पहले से मौजूद खरपतवार नष्ट हो जाएंगे। बुवाई के 10 से 15 दिनों बाद यदि नर्सरी में खरपतवार नजर आ रहे हों तो निराई-गुड़ाई के द्वारा इन पर नियंत्रण करें।

रासायनिक नियंत्रण के लिए, बुवाई के 3 से 4 दिन बाद, साथी (पायराजोसल्फ्यूरॉन इथाइल 10% WP) 4 ग्राम/15 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।  

15 से 20 दिन बाद नॉमिनी गोल्ड (बिस्पायरीबैक सोडियम 10% SC) 8 मिली/15 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें। 

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कपास की 15 से 20 दिन की फसल अवस्था में जरूर डालें इन पोषक तत्वों का डोज

Nutrient management in cotton crop at 15 to 20 day stage

“कपास” की फसल से हाई क्वालिटी की जबरदस्त पैदावार प्राप्त करने के लिए फसल की सही देखभाल करने की आवश्यकता होती है। इसकी फसल में सही समय पर खाद देना बहुत आवश्यक है, इससे फसल का विकास अच्छा होता है और पौधे मजबूत एवं स्वस्थ्य रहते हैं। वर्तमान समय में जब कपास की फसल 15 से 20 दिन के बाद की अवस्था में है तब इस समय जरूरी पोषण देना आवश्यक होता है। 

फसल की बुवाई के 15 से 20 दिन बाद आप यूरिया 40 किलोग्राम, डीएपी 50 किलोग्राम, सल्फर 5 किलोग्राम, ज़िंक सल्फेट 5 किलोग्राम और ट्राई-कोट मैक्स 4 किलोग्राम को एक एकड़ के खेत में समान रूप से भुरकाव करें। 

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खरपतवार नाशक का उपयोग करते समय इन बातों का रखें ख़ास ख्याल

Take special care of these things while using Weedicides
  • विभिन्न फसलों के लिए, खरपतवार नाशक की जो मात्रा सिफारिश की गई है, उसी मात्रा में दवा का उपयोग करना चाहिए।

  • समय सीमा समाप्त हुई खरपतवार नाशक का उपयोग न करें। खरीदते समय इसका विशेष ध्यान रखें।

  • खरपतवार नाशक का छिड़काव करते समय जमीन में पर्याप्त नमी बनाए रखना जरूरी होता है।

  • खरपतवार नाशक के एक समान छिड़काव के लिए, स्प्रे पंप में फ्लैट फैन नोज़ल का उपयोग करें |

  • नेपसेक पंप, नली और नोजल को उपयोग से पहले एवं बाद में अच्छी तरह से साफ़ जरूर कर लें। 

  • छिड़काव के समय शरीर को अच्छी तरह ढक कर एवं दस्ताने, चश्मा आदि का उपयोग अवश्य करें। 

  • हमेशा साफ पानी में खरपतवार नाशक मिलाकर छिड़काव करें।

  • बारिश की संभावना होने पर व तेज हवा चलने पर खरपतवार नाशक का छिड़काव न करें।

  • छिड़काव करते समय “स्प्रेडर” (सिलिकोमैक्स गोल्ड) 50 मिली/एकड़ की दर से उपयोग अवश्य करें, जिससे दवा संपूर्ण पौधे में फैल सके।

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कपास में पत्ती सुरंग कीट पहुंचाएगा भारी नुकसान, जानें नियंत्रण के उपाय

Measures to control leaf miner in cotton

कपास की फसल में लगने वाले पत्ती सुरंगक कीट आकार में बहुत ही छोटे होते हैं। इसे अंग्रेजी में लीफ माइनर भी कहा जाता है। ये कीट पत्तियों के अंदर जाकर सुरंग की आकृति बनाते हैं। इससे पत्तियों पर सफेद धारीयां नजर आती हैं जिससे पौधों को प्रकाश संश्लेषण क्रिया करने में बाधा उत्पन्न होती है। इन वजहों से पौधे को सही पोषण नहीं मिल पाता है और फसल को भारी नुकसान पहुँचता है। 

रोकथाम: इसका प्रकोप दिखाई देने पर, नीमगोल्ड नीम तेल 1000 मिली/एकड़ या बवेकर्व (बवेरिया बेसियाना 5% WP) 500 ग्राम/एकड़ की दर 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें। 

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कपास की फसल में न बढ़ने दे खरपतवार, जल्द करें नियंत्रण के उपाय

Measures to control leaf miner in cotton

उच्च गुणवत्ता की फसल प्राप्त करने के लिए, कपास की फसल को खरपतवारों से मुक्त रखना आवश्यक है। खरपतवार के कारण कपास की पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, साथ ही साथ कपास की गुणवत्ता भी खराब होती है।

खरपतवारों की रोकथाम के लिए कपास की फसल में निराई-गुड़ाई समय-समय पर करें। पहली निराई-गुड़ाई बुआई के 15 से 20वें दिन पर तथा दूसरी 50 से 55वें दिन की फसल की अवस्था होने पर करें।

रासायनिक नियंत्रण के लिए, बुवाई के बाद एवं बीज अंकुरित होने से पहले, धानुटॉप (पेंडीमेथालिन 30% EC) 1 लीटर/एकड़ की दर से 200 लीटर में मिलाकर छिड़काव करें। 

बेहतर परिणाम के लिए, खरपतवार नाशक दवा का उपयोग करें और इसके उपयोग के समय इस बात का ध्यान रखें की मिट्टी में नमी जरूर हो।   

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कपास में बढ़ रही है आद्र गलन की समस्या, जानें निवारण के उपाय

Whitefly infestation and control measures in tomatoes

आद्र गलन रोग कपास की फसल में लगने वाले कुछ घातक रोगों में से एक है। इस रोग के कारण 5 से 20 प्रतिशत तक फसल नष्ट हो जाते हैं। आद्र गलन रोग का प्रभाव 10-15 दिन के पौधों में ज्यादा देखने को मिलता है। इस रोग से पौधों की जड़ें और तना गलने लगते हैं। पौधों के तने पतले होने लगते है और पत्ते मुरझाने लगते हैं। इस रोग की समस्या बढ़ने पर, पत्तियां पीली होकर, सूखने लगती हैं और पौधे जमीन पर गिर जाते हैं। 

आद्र गलन रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • इस रोग से फसल को बचाने के लिए फसल चक्र अपनाएं और आद्र गलन रोग की प्रतिरोधी बीज किस्मों का चयन करें।

  • बुवाई से पूर्व बीजोपचार करना अति आवश्यक है। 

  • जैविक नियंत्रण के लिए, कॉम्बैट (ट्राइकोडर्मा विरडी) 8 ग्राम/किलो बीज  या

  • विटावैक्स पावर  (कार्बोक्सिन 37.5% + थिरम 37.5% WS) 3 ग्राम/किलो बीज से उपचारित करें।

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फास्फोरस सॉल्युबलाइजिंग बैक्टीरिया से फसलों को मिलते हैं कई लाभ

Crops get many benefits from phosphorus solubilizing bacteria

फसल उत्पादन में जिन 16 आवश्यक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, उनमें प्रमुख रूप से नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश तत्व का महत्व सबसे अधिक होता है। इन तत्वों में से किसी भी एक तत्व की कमी से फसल उत्पादन में गंभीर रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

लगातार उर्वरकों के उपयोग से खेतों की मिट्टी कठोर होती जा रही है, या पहले जैसा उत्पादन लेने में अधिक उर्वरक देना पड़ रहा है, इससे भूमि की गुणवत्ता भी नष्ट हो रही है। फास्फोरस युक्त रासायनिक उर्वरक जैसे सिंगल सुपर फास्फेट, डीएपी आदि की जो भी मात्रा हम फसल उत्पादन के लिए खेतों में डालते हैं, उसका सिर्फ 20 से 25 प्रतिशत भाग ही पौधों को उपलब्ध हो पाता है, शेष फास्फोरस मिट्टी के कणों द्वारा स्थिर कर लिया जाता है। रासायनिक क्रियाओं द्वारा अघुलनशील मिश्रण में परिवर्तित हो जाता है। यह जीवाणु अघुलनशील और अनुपलब्ध फास्फोरस तत्व को घुलनशील तत्व में बदलकर पौधों को उपलब्ध कराने में मदद करते हैं। फास्फोरस घोलक जीवाणु रॉक फास्फेट व ट्राइकैल्सियम फॉस्फेट जैसे अघुलनशील फास्फोरस धारित उर्वरक के कणों को सूक्ष्म आकार में बदलकर घुलनशील बना कर पौधों को पोषक तत्व के रूप में उपलब्ध करा देता है। इसके प्रयोग से लगभग 10 से 12 किलो प्रति एकड़ फास्फोरस युक्त रासायनिक उर्वरक की बचत की जा सकती है।

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