आलू की फसल में बुआई के 1 से 5 दिनों में खरपतवार प्रबंधन

Weed Management in Potato Crop 1-5 Days of Sowing
  • बारिश के मौसम के बाद मिट्टी में बहुत अधिक नमी होने के कारण आलू की फसल की बुआई के बाद खरपतवार बहुत अधिक मात्रा में उगने लगते हैं।

  • सभी प्रकार के खरपतवारों का नियंत्रण समय पर एवं उचित खरपतवार नाशी का उपयोग करके किया जा सकता है।

  • रासायनिक विधि: इस विधि में रसायनों का उपयोग करके खरपतवारों का नियंत्रण किया जाता है। इन रसायनों का उपयोग समय समय पर करने से खरपतवारों पर आसानी से नियंत्रण किया जा सकता है।

  • बुआई के 1 से 3 दिनों बाद: खरपतवारों के रासायनिक नियंत्रण के लिए पेंडामेथलिन 38.7% CS @ 700 मिली/एकड़ का छिड़काव करेंI

  • इस प्रकार छिड़काव करने से बुआई के बाद शुरूआती अवस्था में उगने वाले खरपतवारों का नियंत्रण किया जा सकता है।

  • बुआई के बाद दूसरा छिड़काव: मेट्रीब्युजीन 70% WP @ 100 ग्राम प्रति एकड़ का छिड़काव बुआई के 3-4 दिन बाद या आलू का पौधा 5 सेमी. का होने से पहले करें।

  • खरपतवारनाशक के छिड़काव के समय पर्याप्त नमी का होना बहुत आवश्यक है।

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बीज उपचार क्यों है जरूरी, जानें इससे मिलने वाले लाभ

Why seed treatment is necessary
  • अच्छी खेती के लिए बीजों की बुआई से पहले बीज उपचार करना बहुत ही आवश्यक होता है। इससे बीज और मिट्टी जनित रोगों की रोकथाम होती है।  

  • देश में फसलों के 70 से 80% किसान बीज नहीं बदलते हैं और पुराने बीजों का ही इस्तेमाल करते हैं। 

  • इस कारण बीजों में कीटों और रोगों के प्रकोप का खतरा ज्यादा रहता है, फलस्वरूप खेती की लागत बढ़ जाती है।

  • सिर्फ बीजों का उपचार कर लेने से ही 6-10% तक उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। 

  • बीजोपचार से अंकुरण अच्छा होने के साथ ही पौधों की वृद्धि भी बढ़िया होती है।

  • बीजोपचार से कीटनाशको का प्रभाव भी बढ़ जाता है तथा फसल 20 से 25 दिन के लिए सुरक्षित हो जाती है।

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घरेलू गोबर की खाद का कृषि में क्या है महत्व

Importance of cow dung in agriculture
  • गोबर की खाद मिट्टी की भौतिक संरचना में सुधार करता है एवं मिट्टी में वायु के आवागमन को बढ़ाता है।

  • यह जल धारण क्षमता को बढ़ाकर मिट्टी में जल के स्तर को सुधारता है।

  • इसके उपयोग से पौधों की जड़ों का विकास अच्छा होता है एवं पौधे पोषक तत्वों को अधिक मात्रा में ग्रहण करते हैं।

  • यह मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ को बढ़ाने में सहायक होता है। इसके उपयोग से भूमि में जैविक कार्बन की मात्रा में सुधार होता है।

  • मिट्टी की क्षार विनिमय क्षमता भी इसके उपयोग से बढ़ जाती है।

  • इससे मिट्टी में लाभदायक जीवाणुओं की संख्या बढ़ती है, जिससे फसल की पैदावार बहुत अच्छी होती है।

  • गोबर की खाद जटिल यौगिकों को सरल यौगिकों में परिवर्तित करने में सहायता करता है।

  • मिट्टी के कणों को आपस में चिपका कर भूमि के कटाव को भी इससे रोका जा सकता है।

  • इसमें नाइट्रोजन 0.5%, फास्फोरस 0.25% एवं पोटाश 0.5% पाया जाता है l

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जैविक कीटनाशक मेट्राजियम ऐनआइसोफिलि के द्वारा मिट्टी उपचार एवं इसके फायदे

Soil treatment and its benefits with the biological insecticide METARHIZIUM ANISOPLIAE
  • मेट्राजियम ऐनआइसोफिलि एक बहुत ही उपयोगी जैविक फफूंदी है। 

  • सफेद ग्रब, दीमक, ग्रासहोपर, प्लांट होपर, वुली एफिड, बग और बीटल आदि के करीब 300 कीट प्रजातियों को नियंत्रित करने के लिए इसका उपयोग मिट्टी उपचार के रूप में किया जाता है।

  • इसका उपयोग 1 किलो/एकड़ की दर से 50 -100 किलो पकी हुई गोबर की खाद में मिलाकर बुआई से पहले खेत में भुरकाव करें।

  • इस फफूंदी के स्पोर पर्याप्त नमी में कीट के शरीर पर अंकुरित हो जाते हैं। 

  • यह फफूंदी परपोषी कीट के शरीर को खा जाती है। 

  • इसका उपयोग खड़ी फसल में छिड़काव के रूप भी किया जा सकता है। 

  • इसके उपयोग के पूर्व खेत में आवश्यक नमी का होना बहुत आवश्यक है।

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टमाटर के खेत में कैल्शियम की कमी दूर करने के लिए मिट्टी उपचार

Soil treatment to overcome calcium deficiency in tomato field
  • कैल्शियम की कमी के कारण टमाटर की फसल को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए बुआई के पहले ही प्रबंधन के उपाय किये जाने चाहिए। 

  • इसके लिए रोपाई के 15 दिन पहले मुख्य खेत में अच्छे से पकी हुई या सड़ी हुई गोबर की खाद का उपयोग करें।

  • इसके पश्चात रोपाई के पहले कैल्शियम नाइट्रेट @ 10 किलो/एकड़ की दर से खेत में मिलाएँ।

  • कैल्शियम की कमी के लक्षण दिखाई देने पर कैल्शियम EDTA @ 150 ग्राम/एकड़ की दर से दो बार छिड़काव करें।

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बेमिसाल मजबूती वाले HyTarp तिरपाल की विशेषताएं

Features of Gramophone HyTarp Tarpaulin
  • यह तिरपाल पूरी तरह से वर्जिन प्लास्टिक से बनी है और इसमें मिट्टी या फिलर का कंटेंट नहीं है।

  • इस तिरपाल की मोटाई 200 GSM होने के साथ ये 3 लेयर बनी की है जिसकी वजह से तिरपाल काफी मजबूत और टिकाऊ है।

  • ये तिरपाल UV ट्रीटेड भी है जीसकी वजह से कड़ी धूप, ठंढ और बारीश में भी ये तिरपाल लंबे समय तक चलती है।

  • ये तिरपाल एक साईड से आर्मी ग्रीन और दूसरे साईड से ब्लैक कलर की है।

  • इस तिरपाल मे चारों बाजू में विशिष्ट अंतर छोड के अल्युमिनियम के आय लेट्स दिये गए हैं जो तिरपाल को रस्सी से बाँधने मे काम आयेंगे।

  • यह तिरपाल सभी रेग्युलर साईज 11×15, 15×18, 21×30, 24×36, 30×30 में उपलब्ध है।

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लहसुन की खेती के लिए ऐसे करें खेत की तैयारी

Field preparation for garlic cultivation

लहसुन की खेती के लिए, उचित जल निकास वाली दोमट भूमि अच्छी होती है, क्योंकि भारी भूमि में इसके कंदों का विकास नहीं हो पाता है। खेत की एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें एवं इसके बाद, गोबर की खाद 5 टन + स्पीड कम्पोस्ट 4 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में समान रूप से भुरकाव करें तथा 2-3 जुताई हैरो की सहायता से करें। खेत में मौजूद अन्य अवांछित फसल अवशेषों को हटा दें, अगर मिट्टी में नमी कम हो तो पहले पलेवा करें फिर खेत की तैयारी करें और आखिर में पाटा चला कर खेत समतल बना लें। 

पोषक तत्व प्रबंधन:- फसल बुवाई के समय एसएसपी 50 किलोग्राम + डीएपी 30 किलोग्राम + यूरिया 20 किलोग्राम + पोटाश 40 किलोग्राम + राइजोकेयर (ट्राइकोडर्मा विराइड1.0 % डब्ल्यूपी) @ 500 ग्राम +  टीबी 3 (नाइट्रोजन स्थिरीकरण, फास्फेट घुलनशील, और पोटेशियम गतिशील जैव उर्वरक संघ) @ 3 किलोग्राम +  ताबा जी (जिंक घोलक बैक्टीरिया) @ 4 किलोग्राम +  मैक्सरूट (ह्यूमिक एसिड + पोटेशियम + फुलविक एसिड) @ 500 ग्राम + ट्राई-कोट मैक्स (जैविक कार्बन 3%, हुमिक, फुलविक, जैविक पोषक तत्वों का एक मिश्रण) @ 4 किलोग्राम + बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना) @ 500 ग्राम को आपस में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में समान रूप से भुरकाव करें।

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प्याज की नर्सरी में कवक जनित रोगों का नियंत्रण

Fungus-borne disease control in onion nursery
  • खरीफ सीजन में होने वाले बारिश की वजह से खेत की मिट्टी में अत्यधिक नमी एवं मध्यम तापमान कवक जनित रोगों के विकास का मुख्य कारक होता है।

  • प्याज़ की पौधे में आर्द्र विगलन (डम्पिंग ऑफ), जड़ गलन, तना गलन, पत्तियों के पीले पड़ने की समस्या नर्सरी अवस्था में देखा जाता है।

  • इन रोगों में रोगजनक सबसे पहले पौध के कालर भाग में आक्रमण करते हैं और अतंतः कालर भाग और जड़ विगलित हो जाता है जिसके कारण पौध गिर कर मर जाते हैं।

  • कवक जनित रोगों के निवारण के लिए बुआई के समय स्वस्थ बीज का चयन करना चाहिये।

  • इसके साथ ही इस समस्या के निवारण हेतु कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 30 ग्राम/पंप या थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W @ 60 ग्राम/पंप या मैनकोज़ेब 64% + मेटालैक्सिल 8% WP @ 60 ग्राम/पंप की दर से छिडकाव करें।

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जानें प्राकृतिक खेती के महत्वपूर्ण सिद्धांत

Natural farming

प्राकृतिक खेती क्या है? – प्राकृतिक खेती (natural farming) देसी गाय पर आधारित प्राचीन खेती पद्धति है। जिसमें रासायनिक उर्वरकों और रसायनों के दूसरे उत्पाद का विकल्प के रूप में देसी गाय का गोमूत्र और गोबर  का उपयोग फसल उत्पादन में किया जाता है। यह भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है। प्राकृतिक खेती में रासायनिक कीटनाशक का उपयोग नहीं किया जाता है। इस प्रकार की खेती में जो तत्व प्रकृति में पाए जाते है, उन्हीं को कीटनाशक के रूप में काम में लिया जाता है।

प्राकृतिक खेती में खाद के रूप में गोबर, गौ मूत्र, जीवाणु खाद, फ़सल अवशेष द्वारा पौधों को पोषक तत्व दिए जाते हैं। प्राकृतिक खेती में प्रकृति में उपलब्ध जीवाणुओं, मित्र कीट और जैविक कीटनाशक द्वारा फ़सल को हानिकारक सूक्ष्म जीव और कीट से बचाया जाता है।

आइये  जानते है प्राकृतिक खेती के चार सिद्धांत  

👉🏻खेतों में कोई जुताई नहीं करना, यानी न तो उनमें जुताई करना, और न ही मिट्टी को  पलटना है । धरती अपनी जुताई स्वयं स्वाभाविक रूप से पौधों की जड़ों के प्रवेश तथा केंचुओं व छोटे प्राणियों, तथा सूक्ष्म जीवाणुओं के जरिए कर लेती है।

👉🏻किसी भी तरह की तैयार खाद या रासायनिक उर्वरकों का उपयोग न किया जाए। इस पद्धति में हरी खाद और गोबर की खाद को ही उपयोग में लाया जाता है।

👉🏻निराई-गुड़ाई न की जाए। न तो हल से, न शाकनाशियों के प्रयोग द्वारा। खरपतवार मिट्टी को उर्वर  बनाने तथा जैव-बिरादरी में संतुलन स्थापित करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। बुनियादी सिद्धांत यही है कि खरपतवार को पूरी तरह समाप्त करने की बजाए नियंत्रित किया जाना चाहिए।

👉🏻रसायनों पर बिल्कुल निर्भर न करना है। जोतने तथा उर्वरकों के उपयोग जैसी गलत प्रथाओं के कारण जब से कमजोर पौधे उगना शुरू हुए, तब से ही खेतों में बीमारियां लगने तथा कीट-असंतुलन की समस्याएं खड़ी होनी शुरू हुई। छेड़छाड़ न करने से प्रकृति-संतुलन बिल्कुल सही रहता है।

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सरसों की बुआई करते समय इन बातों का रखें ध्यान

Keep these things in mind while sowing mustard
  • सरसों की बुआई का सबसे अच्छा समय 5 से 25 अक्टूबर के बीच होता है।

  • इस समय सरसों की बुआई करने से अच्छा उत्पादन मिलता है, इसलिए किसानों को 25 अक्टूबर तक सरसों की बुआई कर देनी चाहिए।

  • सरसों की बुआई के लिए किसानों को एक एकड़ खेत में 1 किलो बीज का प्रयोग करना चाहिए।

  • सरसों को कतारों में बोना चाहिए ताकि निराई करने में आसानी हो।

  • सरसों की बुआई देसी हल या सीड ड्रिल से करनी चाहिए।

  • इसमें पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-12 सेमी रखा जाना चाहिए।

  • सरसों की बुआई करते समय इस बात का ध्यान रखें कि बीज 2-3 सेमी की गहराई में लगाई गई हो।

  • 100 सेमी से अधिक गहराई पर बीज नहीं बोना चाहिए क्योंकि अधिक गहराई पर बीज बोने से बीज के अंकुरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

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