गेहूँ की फसल में फॉल आर्मी वर्म के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय!

Symptoms and control of fall armyworm in wheat crop

मौसम में आए परिवर्तन के चलते गेहूँ की फसल पर इल्लियों का प्रकोप बढ़ गया है। हैरानी की बात तो यह है कि गेहूँ की फसल में पहले कभी भी यह इल्ली नहीं देखी गई थी। लेकिन पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी गेहूँ की फसल पर इल्ली का प्रकोप दिखाई दे रहा है। इस कीट का नाम फॉल आर्मी वर्म है। यह बहुभक्षी कीट है। यह मुख्य रूप से मक्का की फसल को नुकसान पहुंचाता है। लेकिन आज कल  यह कीट गेहूँ की फसल को भी नुकसान पहुंचा रहा है। इसका प्रकोप बादलों वाले मौसम में अधिक बढ़ता है। साथ ही ऐसे वक़्त में यह फसलों को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। ज्यादा ठंड पड़ने पर कीट प्रकोप कम हो जाता है।

कीट की पहचान: नव निषेचित इल्ली सामान्य रूप हल्के पीले हरे रंग की होती है जिसका सिर काला होता है। द्वितीय अवस्था के पश्चात सिर का रंग लाल भूरा हो जाता है। इस लाल रंग के सिर पर उल्टे वाई आकार की काली संरचना इस कीट की प्रमुख पहचान है। वयस्क इल्ली तम्बाकू की इल्ली से काफी समानता लिए हुए धब्बेदार धूसर से गहरे-भूरे रंग की होती है। मादा कीट अंडों को धूसर रंग की पपड़ी से ढक देती है जो सामान्यतः: फफूंद होने का आभास देती है। 

नियंत्रण के उपाय: इस कीट के नियंत्रण के लिए, इमानोवा (इमामेक्टिन बेंजोएट 5 % एसजी) @ 80 ग्राम + बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना 5% डब्ल्यूपी) 250 ग्राम + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 50 मिली, प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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भिंडी की फसल में 15 दिन की अवस्था में पोषक तत्व प्रबंधन!

Nutrient management in okra crop at 15 days old stage

भिंडी की फसल में बुवाई के 15 से 20 दिन की अवस्था में, यूरिया @ 50 किग्रा + कोसावेट (सल्फर 90% डब्ल्यूजी) @ 5 किग्रा + जिंक सल्फेट @ 5 किग्रा + कैल्बोर 5 किग्रा,  को आपस में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र के हिसाब से भुरकाव करें एवं हल्की सिंचाई करें। 

उपयोग के फायदे 

  • यूरिया: फसल में यूरिया नाइट्रोज़न की पूर्ति का सबसे बड़ा स्रोत है। इसके उपयोग से, पत्तियों में पीलापन एवं सूखने की समस्या नहीं आती है। यूरिया प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को भी तेज़ करता है।

  • ज़िंक: जिंक भिंडी के पौधों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और क्लोरोफिल निर्माण में मदद करता है। जो चयापचय प्रतिक्रियाओं को चलाने के लिए जिम्मेदार होता है। इससे उत्पादन के साथ-साथ फसल की गुणवत्ता में भी वृद्धि होती है। जिंक के अलावा, इससे फसलों को सल्फर की उपलब्धता भी होती है एवं सल्फ़र फल निर्माण में भी सहायक होता है। साथ ही सल्फर प्रोटीन निर्माण में भी मदद करता है।

  • कैलबोर: कैलबोर में कैल्शियम + बोरोन होते हैं जो पोषण, विकास, प्रकाश संश्लेषण, शर्करा के परिवहन और कोशिका भित्ति निर्माण के लिए आवश्यक होते हैं।

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तरबूज़ की फसल में पोषक तत्व प्रबंधन!

Nutrient Management in Watermelon Crop!
  • तरबूज़ की फसल में बुवाई के बाद, 40 दिन तक वानस्पतिक अवस्था चलती है, इसके बाद फूल आना शुरू हो जाता है। 

  • जब फसल 25 से 30 दिन की हो रही हो, तब इस अवस्था में 10:26:26 @ 75 किग्रा + पोटाश @ 25 किग्रा + बोरान 800 ग्राम + कैल्शियम नाइट्रेट @10 किग्रा, को आपस में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र के हिसाब से भुरकाव करें एवं हल्की सिंचाई करें। 

  • जंहा पर फसल 45 से 50 दिन की हो रही है, 19:19:19 @ 50 किग्रा या 20:20:20 @ 50 किग्रा + एमओपी @ 50 किग्रा, इन सभी को आपस में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र के हिसाब से भुरकाव करें एवं हल्की सिंचाई करें।

ड्रिप के लिए पोषक तत्व प्रबंधन 

  • जंहा पर फसल की अवधि 11 से 25 दिन की अवस्था की हो रही है वहां अभी – 19:19:19 @ 3 किग्रा + यूरिया @ 1 किग्रा + 00:52:34 @ 1 किग्रा + 13:00:45, @ 2 किग्रा + मैग्नीशियम सल्फेट @ 350 ग्राम प्रति दिन, प्रति 15 दिन तक ड्रिप के माध्यम से चलाएं। 

  • वहीं जंहा पर फसल की अवधि, 26 से 75 दिन की हो रही है, वहां 19:19:19 @ 1 किग्रा + 00:52:34 @ 500 ग्राम + 00:00:50 @ 1 किग्रा + 13:00:45, @ 1 किग्रा प्रति दिन, प्रति 50 दिन तक ड्रिप के माध्यम से चलाएं। 

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रबी धान की नर्सरी में पीलापन नियंत्रण एवं तेज बढ़वार हेतु आवश्यक छिड़काव

Necessary spraying for yellowness and growth in rabi paddy nursery

किसान गर्मी के धान की नर्सरी के लिए बीजों की बुआई काफी जगहों पर कर चुके हैं। परंतु मौसम के बदलाव की वजह से फसलों पर विपरीत प्रभाव हो रहा है, जिस कारण से धान की नर्सरी पीली पड़ रही है एवं पौधों की वानस्पतिक विकास भी सही से नहीं हो पा रही है। ऐसे स्थिति में आइये जानते है की नर्सरी को कैसे बचाएं।   

बचाव के उपाय

  • नर्सरी में शाम के समय सिंचाई जरूर करें। 

  • हो सके तो नर्सरी के चारों ओर शाम के समय धुआँ कर दें। 

  • पाला पड़ने की सम्भावना होने पर, मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 1.0% डब्ल्यूपी) @ 500 ग्राम + नोवामैक्स (जिब्रेलिक एसिड 0.001 % एल) @ 300 मिली, प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

या

  • वोकोविट (सल्फर 80% डब्ल्यूडीजी) @ 35 ग्राम + नोवामैक्स (जिब्रेलिक एसिड 0.001% एल) @ 30 मिली, प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से फसलों के ऊपर छिडक़ाव करें। इससे दो से ढाई डिग्री सेंटीग्रेड तक तापमान बढ सकता है।

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प्याज की फसल में बैंगनी धब्बा रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय!

Symptoms and control measures of Purple blotch disease in the onion crop

क्षति के लक्षण: इस रोग के प्रकोप से पत्तियों के ऊपरी भाग पर अनियमित हरिमाहीन क्षेत्र के साथ छोटे-छोटे सफेद बिंदु होते है। हरिमाहीन क्षेत्र में गोलाकार से आयताकार गाढ़े काले मखमली छल्ले या बैंगनी धब्बे दिखाई देते हैं। पत्तियों के आधार की ओर घाव विकसित होते हैं। संक्रमित पत्तियां नीचे की ओर लटक जाती हैं और मर जाती हैं। इस रोग से, संक्रमित पौधे के कंद भी संक्रमित हो जाते हैं।

नियंत्रण के उपाय: इस रोग के नियंत्रण के लिए, नोवाक्रस्ट (एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एससी) @ 300 मिली या स्कोर (डाइफेनोकोनाजोल 25% ईसी) @ 200 मिली + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 50 मिली + नोवामैक्स  (जिब्रेलिक एसिड 0.001% एल) @ 300 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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आलू की फसल में पोटेटो वायरस रोग की पहचान एवं नियंत्रण के उपाय!

Measures for identification and control of potato virus and disease in the potato crop

क्षति के लक्षण: इस वायरस का रोगवाहक माहु कीट है,साथ ही साथ, यह रोग प्रभावित आलू की बुवाई करने से एवं खरपतवार से भी फैलता है, एफिड(माहु) एक छोटे आकार का कीट है जो पत्तियो का रस चूसते है। जिसके फलस्वरूप पत्तियाँ सिकुड़ जाती है और पत्तियो का रंग पीला हो जाता है । पत्तियाँ ऐंठीं हुई दिखाई देती है। बाद में पत्तिया सूखकर गिर जाती हैं।

नियंत्रण के उपाय 

  • निगरानी के लिए 8 से 10 पीले चिपचिपे जाल प्रति एकड़ के हिसाब से स्थापित करें।

  • इस कीट के नियंत्रण के लिए, एडमायर (इमिडाक्लोप्रिड 70% डब्ल्यूजी) @ 36 ग्राम  या रोगोर (डाईमेथोएट 30% ईसी) @ 264 मिली  +  सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 50 मिली + नोवामैक्स (जिब्रेलिक एसिड 0.001 % एल) @ 300 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

  • 3 दिन बाद प्रिवेंटल BV, @ 100 ग्राम प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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मिर्च की फसल में रस चूसक कीटों के नियंत्रण के उपाय!

Measures to control sucking pests in chilli crops!

क्षति के लक्षण: मिर्च की फसल के लिए रस चूसक कीट “थ्रिप्स एवं मकड़ी” अत्यंत विनाशकारी कीट साबित होती है। यह मिर्च की फसल में पत्तियों, डंठल एवं फल आदि से रस चूसते हैं जिससे पत्तियां ऊपर एवं नीचे की ओर मुड़ जाती हैं। इसके कारण फल भी विकृत हो जाते हैं, जो कुरड़ा मुरड़ा या वायरस रोग का कारण बनते हैं।

नियंत्रण के उपाय: इस कीट के नियंत्रण के लिए, मेओथ्रिन (फेनप्रोपेथ्रिन 30% ईसी) @136 मिली या फॉस्माईट 50 (इथिआन  50% ईसी) @ 600-800 मिली + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 50 मिली + नोवामैक्स (जिब्रेलिक एसिड 0.001% एल) @ 300 मिली , प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

3 दिन बाद प्रिवेंटल BV, @ 100 ग्राम, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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फसलों में सल्फर की कमी के लक्षण एवं महत्व को पहचानें

Sulfur is an essential element, know its importance and deficiency symptoms
  • फसलों की बेहतर बढ़वार के साथ साथ अधिक उपज प्राप्त करने में नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश के बाद चौथा सबसे महत्वपूर्ण पोषक तत्व सल्फर है, जिसे गंधक के नाम से भी जाना जाता है।

  • सल्फर की कमी के कारण फसल में आने वाली नई पत्तियां पीले हरे रंग की हो जाती हैं यदि इसकी कमी बहुत अधिक हो तो पूरा पौधा पीले हरे रंग का हो जाता है। 

  • पत्तियां व तने में बैंगनीपन आ जाता है, पौधे व पत्तियां छोटी रह जाती हैं।  

  • सल्फर पत्तियों में क्लोरोफिल के निर्माण में सहायता करता है जिससे पौधों की पत्तियों का रंग हरा हो जाता है।

  • सल्फर पौधों में एंजाइम तथा विटामिन के निर्माण में सहायक होता है। 

  • दलहनी फसलों में यह जड़ों की ग्रंथी निर्माण के लिए आवश्यक है जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण करती है। 

  • सरसों, प्याज, लहसुन एवं मिर्च में उनकी प्राकृतिक गंध सल्फर के कारण ही रहती है।

  • तिलहन फसलों के बीजों में तेल की मात्रा भी सल्फर की वजह से बढ़ती है।

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टमाटर की फसल में लीफ माइनर कीट के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय!

Symptoms and control measures of leaf miner pest in tomato crop

लीफ माइनर क्षति के लक्षण: यह बहुत ही छोटे कीट होते हैं। इसकी क्षति के लक्षण सबसे पहले पत्तियों पर दिखाई देते हैं। इस कीट की मादा, पत्तियों के अंदर सुरंग बनाकर अंडे देती हैं। जिससे लार्वा बाहर आकर पत्तियों के हरे पदार्थ को खुरच कर खाते हैं जिसके कारण पत्तियों पर सफेद रंग की टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें दिखाई देती हैं। अधिक संक्रमण होने पर पत्तियां कमजोर होकर गिरने लगती हैं।

नियंत्रण के उपाय: इस कीट के नियंत्रण के लिए, बेनिविया (साइंट्रानिलिप्रोएल 10.26% ओडी) @ 360 मिली + नीमगोल्ड एजाडिरेक्टिन 3000 पीपीएम) @ 1000 मिली + सिलिकोमैक्स गोल्ड 50 मिली + नोवामैक्स (जिब्रेलिक एसिड 0.001 % एल) @ 300 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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आलू की फसल में पछेती झुलसा रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय!

Symptoms and control measures of late blight in potato crops

क्षति के लक्षण: इस रोग से पौधों की पत्तियाँ, तने एवं कंद प्रभावित होते हैं। सबसे पहले इस रोग के लक्षण पत्तियों के सिरों और किनारों पर पानी से लथपथ छोटे-छोटे भूरे धब्बे के रूप में विकसित होते हैं। इन धब्बों के चारों ओर कवक की एक सफेद कपास जैसी वृद्धि दिखाई देती है। अनुकूल मौसम की स्थिति में जैसे – कम तापमान, उच्च आर्द्रता आदि में रोग तेजी से फैलता है और पूरी फसल 10-14 दिनों के भीतर नष्ट हो सकती है और झुलसा हुआ रूप ले सकती है।

नियंत्रण के उपाय: इस रोग के नियंत्रण के लिए, नोवाक्रस्ट (एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकनाज़ोल 18.3% एससी) @ 300 मिली या करमानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यूपी) @ 700 ग्राम + नोवामैक्स (जिब्रेलिक एसिड 0.001 % एल) 300 मिली + सिलिकोमैक्स गोल्ड 50 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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