गेहूँ में सैनिक कीट/कटुआ का नियंत्रण

गेहूँ में सैनिक कीट/कटुआ का नियंत्रण :-

  • पत्तियों का झड़ना इस कीट की उपस्थिति का प्राथमिक लक्षण है|  
  • इसके लार्वा पत्तियों पर क्षति पहुँचाते हैं|
  • भारी उपद्रव बहुत विनाशकारी हो सकता है; इस स्थिति में लार्वा पौधे के ऊपरी भाग पर पहुँच कर बालियों के नीचे वाले भाग को काट देते है| एवं कुछ प्रजातियाँ मिट्टी में रहकर फसल के जड़ों को नुकसान पहुँचाती है|  
  • सैनिक कीट सुबह और शाम की अवधि के दौरान क्षति पहुँचाता है|

प्रबंधन –

  • इस कीट के लार्वा पत्तियों की निचली सतह पर पाये जाते है इन्हे आसानी से हाथ से पकड़कर नष्ट किया जा सकता है|
  • पक्षिओं को आकर्षित करने के लिए 4-5/एकड़ ‘’T’’ आकर की खूँटी का उपयोग करते है|
  • रासायनिक उपचार के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट (5% एस.जी) 100 ग्राम/एकड़ या फिप्रोनिल (5% एस.सी) 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें|

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आलू में अगेती झुलसा रोग का प्रबंधन

आलू में अगेती झुलसा रोग का प्रबंधन:-

  • रोगग्रस्त पौधों को ठीक से नष्ट किया जाना चाहिए, ठन्डे बादली मौसम में सिचाई नहीं करनी चाहिए, सिचाई का समय ऐसा हो की रात तक पौधे सुख जाये|
  • मिट्टी की उर्वरता और फसल की शक्ति को बनाए रखें| फसल खुदाई जब करे तब कंदों की छिलका सख्त हो जाए जिससे की उस पर खरोच के कारण संक्रमण ना हो |
  • 2 ग्राम मेन्कोजेब 75 डब्लूपी + 10 ग्राम यूरिया प्रति लीटर 15 दिन के अंतराल पर जब लक्षण शुरू होते हैं या कार्बेन्डाजिम 12% + मेन्कोजेब 63% WP @ 50 ग्रा / 15 लीटर पानी या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 % WP @ 50 ग्रा। / 15 लीटर पानी का छिडकाव करे |

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टमाटर में जड़ ग्रंथि सूत्रकृमि का प्रबन्धन

टमाटर में जड़ ग्रंथि सूत्रकृमि:-

हानि:-

  • पत्तियों का रंग हल्का पीला हो जाता है|
  • सूत्रकृमि से ग्रसित पौधों की वृद्धि रुक जाती है एवं पौधा छोटा ही रहता है| अधिक संक्रमण होने पर पौधा सुखकर मर जाता है|

नियंत्रण:-

  • प्रतिरोधक किस्मों को उगाये|
  • ग्रीष्म ऋतू में भूमि की गहरी जुताई करें|
  • नीम खली 80 किलो प्रति एकड़ की दर से देना चाहिए|
  • कार्बोफ्युरोन 3% G 8 किलो प्रति एकड़ की दर से देना चाहिए|
  • पेसिलोमाइसेस लिलासिनास -1% डब्ल्यूपी, बीज उपचार के लिए 10 ग्राम / किलोग्राम बीज, 50 ग्राम / मीटर वर्ग नर्सरी उपचार, 2.5 से 5 किलो / हेक्टेयर जमीन से देने के लिए 

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सफ़ेद मक्खी से नुक्सान के लक्षण एवं नियंत्रण

सफ़ेद मक्खी से नुक्सान के लक्षण एवं नियंत्रण:-

  • सफेद मक्खी एक रस चूसने वाली कीट होती है जो पत्तियों के निचले हिस्से पर बहुत संख्या में होती है| जब ग्रसित पौधे प्रभावित होते हैं, पंख वाले वयस्कों के बड़े झुण्ड हवा में उड़ते हैं।
  • शिशु और वयस्कों दोनों पोधे के नई वृद्धि से रस को चूसकर पौधों को नुकसान पहुंचा है, जिससे वृद्धि रुक जाती, पत्तियाँ पीली हो जाती है और पैदावार कम होती है। पौधे कमजोर और बीमारी के लिए अतिसंवेदनशील हो जाते हैं।
  • माहू की तरह, सफ़ेद मक्खी भी मधुस्त्राव छोड़ती है जिससे पत्तियाँ चिपचिपी हो जाती है और काली फफूद से घिर जाती है|
  • यह कई पौधे के वायरस रोग फ़ैलाने करने के लिए भी ज़िम्मेदार हैं।
  • 250 से अधिक फसलो को यह प्रभावित करता है जैसे निम्बू, कद्दू, आलू, खीरा, अंगूर, टमाटर, मिर्च और गुड़हल आदि|
  • ट्रायज़ोफ़ॉस 40% ईसी 45 एमएल / 15 लीटर पानी या डायफेनथीओरोन 50% WP 20 ग्राम / 15 लीटर पानी या एसिटामिप्रिड 20 एसपी 10 ग्रा। / 15 लीटर पानी सफ़ेद मक्खी के खिलाफ प्रभावी हैं|

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आलू में पत्ति रोल विषाणु रोग का प्रबंधन

  • प्रभावित पौधे के पत्ते आकार में बहुत छोटे और झुर्रीदार दिखाई देते तथा पत्ती की शिरा के बीच का भाग पीले रंग का दिखाई देता है  | 
  • इस रोग का प्रबंधन वायरस मुक्त बीज का प्रयोग करके किया जा सकता है|
  • माहू मुक्त क्षेत्रो में बीज तैयार करे |
  • रोग वाहक माहू की जनसंख्या नियंत्रण के लिए उपयुक्त सम्पर्क/दैहिक एसीटामिप्रिड 20% SP @ 10 ग्राम /15 लीटर  पानी के साथ स्प्रे करे | या 
  • इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL @ 10मिली /15 लीटर पानी के साथ स्प्रे करे |
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आलू की फसल में कैसे नियंत्रित करे अगेती झुलसा रोग का नियंत्रण

  • प्रभावित पौधे की पत्ती की सतह पर भूरे से काले रंग के अंडाकार आकार मृत धब्बे दिखाई देते है | 
  • कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोजेब 63% @ 300 ग्राम/एकड़ | 
  • थियोफैनेट मिथाइल 70% डब्ल्यूपी @ 250 ग्राम/एकड़ | 
  • क्लोरोथ्रोनिल 75% WP @ 250 ग्राम/एकड़ | 
  • कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 46% WP @ 300 ग्राम/एकड़ | 
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लहसुन एवं प्याज में मकडी का नियंत्रण

लहसुन एवं प्याज में मकडी का नियंत्रण:-

  • व्यस्क एवं अवयस्क दोनों ही कोमल पत्तियों एवं कलियों के बीच में लहसुन एवं प्याज में रस चूसते है| पत्तियाँ पुरी नहीं खुल पाती है पूरे पौधे की छोटा, टेड़ा, घुमावदार एवं पीले धब्बे दार हो जाता है|
  • धब्बे अधिकाँश पत्तियों के किनारों पर दिखाई देते है|
  • माइटस के प्रभावशाली नियंत्रण के लिए,  घुलनशील सल्फर 80% का 3 ग्राम प्रति लीटर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।  
  • अधिक प्रकोप होने पर प्रोपरजाईट 57% का  400 मिली. प्रति एकड़ के अनुसार 7 दिन के अंतराल से दो बार छिड़काव करें |

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आलू में पत्ति रोल विषाणु रोग का प्रबंधन

आलू में पत्ति रोल विषाणु रोग का प्रबंधन:-

  • इस रोग का प्रबंधन वायरस मुक्त बीज का प्रयोग करके किया जा सकता है|
  • माहू मुक्त क्षेत्रो में बीज तैयार करे |
  • रोग वाहक माहू की जनसंख्या नियंत्रण के लिए उपयुक्त सम्पर्क/दैहिक कीटनाशको का प्रयोग करे|
  • माहू के प्रभावी नियंत्रण के लिए, एसिटामिप्रिड 20% एसपी @ 10 ग्रा / 15 लीटर पानी या इमिडेकलोप्रिड 17.8% एसएल @ 10 एमएल / 15 लीटर पानी का छिड़काव करे |

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भिन्डी में पीला शिरा रोग (यलो वेन मोजैक रोग ) का प्रबंधन

भिन्डी का पीला शिरा रोग (यलो वेन मोजैक रोग ) :-

  • यह बीमारी सफ़ेद मक्खी नामक कीट के कारण होती है|
  • यह बीमारी भिंडी की सभी अवस्था में दिखाई देती है|
  • इस बीमारी में पत्तियों की शिराएँ पीली दिखाई देने लगती हैं|
  • पीली पड़ने के बाद पत्तियाँ मुड़ने लग जाती हैं|
  • इससे प्रभावित फल हल्के पीले, विकृत और सख्त हो जाते है|

प्रबंधन:-

  • वायरस से ग्रसित पौधों और पौधों के भागों को उखाड़ के नष्ट कर देना चाहिए|
  • कुछ किस्मे जैसे परभणी क्रांति, जनार्धन, हरिता, अर्का अनामिका और अर्का अभय इत्यादि वायरस के प्रति सहनशील होती है|
  • पौधों की वृद्धि की अवस्था में उर्वरकों का अधिक उपयोग ना करें|
  • जहाँ तक हो सके भिंडी की बुवाई समय से पहले कर दें|
  • फसल में प्रयोग होने वाले सभी उपकरणों को साफ रखें ताकि इन उपकरणों के माध्यम से यह रोग अन्य फसलों में ना पहुँच पाए|
  • जो फसलें इस बीमारीं से प्रभावित होती है उन फसलों के साथ भिंडी की बुवाई ना करें|
  • सफ़ेद मक्खी के नियंत्रण के लिए 4-5 चिपचिपे प्रपंच/एकड़ उपयोग कर सकते है|
  • डाइमिथोएट 30% ई.सी. 250  मिली /एकड़ पानी मे घोल बना कर स्प्रे करें|
  • इमिडाइक्लोप्रिड 17.8% SL 80 मिली /एकड़ की दर से स्प्रे करें|

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भिन्डी में सिंचाई प्रबन्ध

भिन्डी में सिंचाई प्रबन्ध :-

  • पहली सिंचाई पत्तियो के निकलते समय करना चाहियें |
  • गर्मी में 4-5 दिन के अन्तराल से सिंचाई करनी चाहियें|
  • यदि तापमान 400C हो तो हल्की सिंचाई करते रहना चाहियें, जिससे मिट्टी में नमी रहे एवं फल अच्छे से आये|
  • पानी का जमाव या पौधो को मुरझाने से रोकना चाहियें|
  • ड्रिप सिंचाई पद्धति के व्दारा 85% तक पानी की बचत की जा सकती है|
  • फल/बीजो को बनाते समय सूखे की स्थिति में फसल को 70% तक की हानि होती है|

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