Damping off disease in Onion

  • खरीफ के मौसम में विशेष रूप से भूमि मे अत्यधिक नमी एवं  मध्यम तापमान इस रोग के विकास के मुख्य कारक होते हैं।  
  • बीज में पहले से ही एवं पौधे मे आर्द्र विगलन हो जाता है।  
  • बाद की अवस्था में रोगजनक पौधा कालर भाग मे आक्रमण करता है।  
  • अतंतः काँलर भाग विगलित होकर पौध गल कर मर जाते हैं। 
  • बुवाई के लिए स्वस्थ बीज का चयन करना चाहिये। 
  • कार्बेन्डाजिम12% + मेनेकोज़ेब 63% या थियोफीनेट मिथाइल 70% WP 50 ग्राम प्रति पम्प का छिडकाव करें |

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Seed rate of onion crop

  • सामान्यत: 3-4 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से बीज दर रखना चाहिए|  
  • 3 x 0.6 मीटर की 40 – 44 क्यारियाँ एक एकड़ खेत की बुआई के लिए पर्याप्त होती है|
  • प्याज को सीधे खेत में छिडकाव के द्वारा भी बोया जाता है छिडकाव विधि में बीजदर 6 – 8 किलो ग्राम प्रति एकड़ रखना चाहिये |

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How to Control Downy Mildew in Cauliflower:-

  • उचित जल प्रबंधन करे ताकि मिट्टी की सतह पर अतिरिक्त नमी न रहे |
  • साफ़ (कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोजेब 63% WP) @ 300-400 ग्राम/एकड़ या 
  • रीडोमिल गोल्ड (मेटलैक्सिल-एम 4% + मैनकोजेब 64% WP) @ 300-400 ग्राम/एकड़
  • अमीस्टार (एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 23% एससी)@ 200 मिली/एकड़ | 
  • नेटिवो (टेबुकोनाज़ोल 50% + ट्राइफ्लोक्सिरोबिन 25% WG) @ 120 ग्राम/एकड़ का छिड़काव किया जा सकता है।
  • फसल चक्र अपनाये एवं खेत में साफ़ सफाई रखे।

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What’s the Symptoms of Downy Mildew in Cauliflower:-

  • तनो पर भूरे दबे हुए धब्बे दिखाई देते हैं जिन पर फफूदी की सफेद मृदुरोमिल वृद्वि होती है।
  • पत्तियों की निचली सतह पर बैगनी भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते है जिनमे भी मृदुरोमिल फफूदी की वृद्वि होती है।
  • इस रोग के प्रभाव से फूलगोभी का शीर्ष संक्रमित होकर सड़ जाता है।

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मिर्च में बैक्टीरियल लीफ स्पॉट का प्रबंधन

  • पुरानी फसल के अवशेष को खेत से समाप्त कर देना चाहिए। साथ ही रोग मुक्त पौधों से बीज प्राप्त करना चाहिए।
  • नर्सरी को उस में मिट्टी लगाना चाहिए जहां मिर्च कई वर्षों तक नहीं उगाया जाता है| 
  • स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट आईपी 90% डब्ल्यू/डब्ल्यू + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड आईपी 10% डब्ल्यू / डब्ल्यू @ 20 ग्राम प्रति एकड़ का छिड़काव करे| या 
  • कसुगामाइसिन 3% SL @ 30 मिली प्रति एकड़ |  या
  • कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP @ 250 ग्राम प्रति एकड़।

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मिर्च में बैक्टीरियल लीफ स्पॉट के लक्षण

  • पत्तियो के ऊपर छोटे, वृत्ताकार या अनियमित, गहरे भूरे या काले रंग के धब्बे होते हैं। जैसे-जैसे धब्बे आकार में बढ़ते हैं, केंद्र ऊतक के एक अंधेरे बैंड से घिरा हुआ हल्का हो जाता है।
  • धब्बे अनियमित घावों का निर्माण करते हैं। गंभीर रूप से प्रभावित पत्तियां क्लोरोटिक हो जाती हैं और गिर जाती हैं। पेटीओल और तने भी प्रभावित होते हैं।
  • स्टेम संक्रमण से कैंसर की वृद्धि और शाखाओं के विघटन का कारण बनता है। फलों पर, हल्के पीले रंग की सीमा के साथ गोल, उठे हुए पानी के धब्बे पैदा होते हैं।
  • धब्बे भूरे रंग में बदल जाते हैं जिससे केंद्र में एक अवसाद पैदा हो जाता है जिसमें बैक्टीरियल ऊज की चमकदार बूंदें देखी जा सकती हैं।

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Suitable Soil and Climate for Onion

प्याज के लिए उपयुक्त मौसम एवं मिट्टी:-

  • प्याज ठंडे मौसम की सब्जी है जिसे हल्के जलवायु वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है।
  • मानसून अवधि के दौरान जब औसत वर्षा 75-100 से.मी. अधिक होती है तब यह फसल नही होती हैं।
  • वानस्पतिक विकास के लिये आदर्श तापमान 12.8-23°C होता है।
  • कंद संरचना के विकास के लिये लम्बे दिन एवं उच्च तापमान (20-25°C) आवश्यक होता है।
  • शुष्क वातावरण कंद के परिपक्वता के लिये अनुकूल होता है।

मिट्टी :-

  • प्याज सभी तरह की भूमि में ऊगाया जा सकता है।
  • गहरी भुरभुरी और चिकनी बलुई मिट्टी प्याज उत्पादन के लिये सर्वोत्तम होती है।
  • अच्छी फसल की उत्पादन के लिये भूमि में ज्यादा कार्बनिक पदार्थ की मात्रा पर्याप्त जल निकासी एवं खरपतवार मुक्त होना चाहिये।
  • यह उच्च अम्लीयता एवं क्षारीयता के प्रति संवेदनशील होती है अतः भूमि का आदर्श pH मान 5.8 से 6.5 होना चाहिये।

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Suitable climate for Garlic Cultivation

लहसुन की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु:-

  • लहसुन को विभिन्न जलवायु में उगाया जा सकता हैं|
  • हालांकि बहुत अधिक गर्म एवं ठन्डे तापमान पर नहीं उगाया जा सकता हैं वानस्पतिक वृद्धि एवं कंदों के विकास के समय ठंडा एवं नमी युक्त वातावरण एवं कंदो की परिपक्वता के समय गर्म एवं शुष्क वातावरण की आवश्यकता होती हैं|
  • सामान्यत: बढ़वार के समय ठंडा मौसम अधिक उपज के लिए अच्छा होता हैं|
  • लम्बे समय तक 20°C या इससे कम तापमान 1-2 माह तक (लहसुन की किस्म के अनुसार) होने पर बलबिल्स बनते हैं ऐसे वातावरण में उत्पादन नहीं हो पाता हैं या छोटे कंद बनते हैं|

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Land preparation for Brinjal

  • बैगन की अच्छी वृद्धि एवं विकास के लिए खेत में जल निकासी की व्यवस्था अच्छी होनी चाहिये|
  • खेत की 4-5 बार जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी कर देना चाहिये |
  • खेत की अंतिम जुताई के समय गोबर की खाद को खेत में मिलाये |

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Nursery preparation in brinjal

  • भारी मृदा में ऊँची क्यारियों का निर्माण करना जरूरी होता हैं ताकि पानी भराव की समस्या को दूर कर सके|
  • रेतीली भूमि में बीजों की बुवाई समतल सतह तैयार करके की जाती है।
  • प्रातः ऊँची क्यारियों का आकार 3 x1 मी. और ऊँचाई 10 से 15 से.मी. के लगभग होता है।
  • दो क्यारियों के बीच की दूरी प्रायः 70 से.मी. के लगभग होना चाहिये ताकि अंतरसस्य क्रियाएँ जैसे सिंचाई एवं निदाई आसानी से की जा सके।
  • पौधशाला क्यारियों की ऊपरी सतह साफ़ एवं समतल होना चाहिये ।
  • पूणतः पकी गोबर की खाद या पात्तियों की सड़ी हुई खाद को क्यारियों का निर्माण करते समय मिलाना चाहिये।
  • पौधशाला में आर्द्रगलन से पौधों को मरने से रोकने के लिये मैनकोज़ेब 75% WP @ 400-600 ग्राम / एकड़ की दर से घोल बनाकर अच्छी तरह से क्यारियों में ड्रेंचिंग करे|

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