Some Information of Moong Cultivation

मुंग भारत के मुख्य दलहन फसलों में से एक है। यह रेशा और लोहा के साथ- साथ प्रोटीन का समृद्ध स्रोत है| इसे खरीफ और साथ ही गर्मियों की फसल के रूप में लगाया जा सकता है। इसकी विभिन्न प्रकार की मिट्टी पर खेती की जा सकती है| उचित जल निकास वाली दोमट और बलुई दोमट भूमि पर अच्छे परिणाम प्राप्त होते हे| क्षारीय और जल मग्न भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं है|

बुवाई का समय:- खरीफ की बुवाई के लिए सही समय जुलाई का पहला पखवाड़ा है। ग्रीष्म मूंग खेती के लिए इष्टतम समय फरवरी के दूसरे पखवाड़े से अप्रैल तक है।

फसल अंतर:-  खरीफ की बुवाई के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी की दूरी पर पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर। जायद की बुवाई के लिए से पंक्ति की दूरी 22.5 सेमी की दूरी पर पौधे से पौधे की दूरी 7 सेंटीमीटर|

बुवाई की गहराई:- 4-6 सेमी की गहराई पर बीज बोना

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Importance of Magnesium in Plants

मैग्नीशियम (Mg), कैल्शियम और सल्फर के साथ, सामान्य, स्वस्थ विकास के लिए पौधों द्वारा आवश्यक तीन द्वितीयक पोषक तत्वों में से एक है। शब्द “द्वितीयक” के द्वारा भ्रमित न हो क्योंकि यह मात्रा को संदर्भित करता है और न कि पोषक तत्व के महत्व को | एक द्वितीयक पोषक तत्व की कमी अन्य तीन प्राथमिक पोषक तत्वों (नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम) में से किसी एक या सूक्ष्म पोषक तत्वों (लौह, मैंगनीज, बोरान, जस्ता, तांबा और मोलिब्डेनम) की कमी के समान पौधे की वृद्धि के लिए हानिकारक है। इसके अलावा, कुछ पौधों में, मैग्नीशियम की ऊतक एकाग्रता फास्फोरस की तुलना में एक प्राथमिक पोषक तत्व के समान होती है।

मैग्नीशियम का कार्य

पौधे की कोशिकाओं में कई एंजाइमों को ठीक से प्रदर्शन करने के लिए मैग्नीशियम की आवश्यकता होती है। हालांकि, मैग्नीशियम की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका क्लोरोफिल अणु में केंद्रीय परमाणु के रूप में है। क्लोरोफिल एक वर्णक है जो पौधों को उनके हरे रंग का रंग देता है और प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया करता है। यह कई पौधों के विकास के लिए आवश्यक एंजाइमों के सक्रियण में सहायता करता है और प्रोटीन संश्लेषण में योगदान देता है।

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Excellent Growth of Root in Onion

किसान का नाम:- देवनारायण पाटीदार

गाँव:- कनारदी

तहसील :- तराना जिला:- उज्जैन

किसान भाई श्री देवनारायण पाटीदार जी ने प्याज में 4 किलो प्रति एकड़ के अनुसार माईकोराईज़ा (जैव उर्वरक) का उपयोग ग्रामोफ़ोन टीम की अनुशंसा से किया जिससे उन्हें उत्तम परिणाम प्राप्त हुए है | जड़ो का सम्पूर्ण विकास होने से पौधे का स्वस्थ अच्छा है एवं कंदों का आकार भी एक समान है |

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Factors Affecting storage of Onion and Garlic

प्याज लहसून के भण्डारण को प्रभावित करने वाले कारक:- किस्म का चुनाव :- सभी किस्मो की भण्डारण क्षमता एक सी नहीं होती है। खरीफ में तैयार होने वाली किस्मों के प्याज टिकाउ नहीं हेाते हैं। रबी मौसम में तैयारी होने वाली किस्मों के प्याज साधारणत: 4-5 माह तक भण्डारित किये जाते हैं। यह किस्म के अनुसार कम या अधिक हो सकता है। पिछले 10-15 वर्षों के अनुभव बताते हैं कि एन-2-4-2, एग्रीफाउंड लार्इट रेड, अर्का निकेतन आदि किस्में 4-5 माह तक अच्छी तरह भण्डारित की जा सकती है। लहसुन की जी-1. जी- 2 ,जी 50 तथा जी 323 आदि जातियों को  6 से 8 महिने तक भण्डारण किया जा सकता हें

उर्वरक एवं  जल प्रबन्ध :- उर्वरकों की मात्रा, उसका प्रकार तथा जल प्रबन्ध का प्याज लहसुन  के भण्डारण पर प्रभाव पड़ता है। गोबर की खाद से भण्डारण क्षमता बढ़ती है। इसलिए अधिक मात्रा में गोबर की खाद या हरी खाद का उपयोग करना आवश्यक है। प्याज लहसून में प्रति हेक्टर 150 किग्रा. नत्रजन, 50 किग्रा.फास्फोरस तथा 50 किग्रा. पौटाश देने की सिफारिश की गर्इ है। यदि हो सके तो सारा नेत्रजन कार्बनिक खाद के माध्यम से देना चाहिए तथा नत्रजन की पूरी मात्रा रोपार्इ के 60 दिन से पहले दे देनी चाहिए। देर से नत्रजन देने से पौधों के तने (गर्दन) मोटे हो जाते हैं तथा प्याज में टिकते नहीं एवं फफुंदीजनक रोगों का अधिक प्रकोप होता है साथ ही प्रस्फुटन भी अधिक होता है। पोटेशियम की मात्रा 50 किग्रा. से बढ़ाकर 80 किग्रा. प्रति हेक्टर तक देनी चाहिए। इसी प्रकार का 50 किग्रा. प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करने से प्याज लहसुन की भण्डारण क्षमता व गुणवत्ता बढ़ती है। गन्धक की पूर्ति के लिए अमोनियम सल्फेट, सिंगल सुपर फास्फेट या पोटेशियम सल्फेट का प्रयोग करने से रोपार्इ के बाद पौधों को पर्याप्त मात्रा में गन्धक मिलता है

भण्डारण गृह का वातावरण :- प्याज लहसुन के अधिक समय तक भण्डारण के लिए भण्डारगृहों का तापमान तथा अपेक्षाकृत आद्रता महत्वपूर्ण कारक है। अधिक आर्द्रता (70% से अधिक) प्याज के भण्डारण का सबसे बडी शत्रु है। इससे फफुंदों का प्रकोप भी बढ़ता है व प्याज सड़ने लगता है।  इसके विपरीत आर्द्रता कम (65% से अधिक) होने पर प्याज के वाष्पोत्सर्जन अधिक होता है तथा वजन में कमी अधिक होने लगती है। अच्छे भण्डारण के लिए भण्डार गृहों का तापमान 25-30 डिग्री सें. तथा आर्द्रता 65-70 प्रतिशत के मध्य होनी चाहिए। मर्इ-जून के महीनों में भण्डारगृहों का तापमान अधिक होने से तथा नमी कम होने से वजन में कमी अधिक होती है। जुलार्इ से सितम्बर तक नमी 70 प्रतिशत से अधिक होती है। इससे सड़न बढ़ जाती है। इसी समय कम तापमान से अक्टूबर-नवम्बर में ससुप्ताविस्था टूट जाती एवं प्रस्फुटन की समस्या बढ़ जाती है।

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Use of growth regulators in Watermelon

तरबुज में वृद्धि नियामको का उपयोग:- तरबूज में हार्मोन उपचार के लिये उन्ही हार्मोन का उपयोग करना चाहिए जो तरबूज की फसल के लिये लाभकारी हो तथा जिसका प्रभाव तरबूज की फसल पर हानिकारक न हो और जिनके उपयोग करने पर तरबूज में फल प्रदान करने वाले मादा पुष्पों की संख्या में वृद्धि हो|जिससे अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त हो, इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये इस फसल में हार्मोन उपचार महत्त्वपूर्ण क्रिया है जो इसके उत्पादन के लिये आवश्यक है|

तरबूज में 2-4 पत्ती की अवस्था पर इथ्रेल के 250 पी.पी.एम (4 मिली./पम्प) सांद्रण वाले घोल का छिडकाव करने से मादा पुष्पों की संख्या बढ़ जाती है,तथा उपज अधिक मिलती है|

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Use of Carbofuran for control of Soil Insects in Garlic

किसान का नाम:- रामचंद्र पाटीदार

गाँव:- खेदावत

तेहसील:- गुलाना

जिला:- शाजापुर

किसान भाई रामचंद्र जी के खेत में सफ़ेद गर्ब की समस्या थी उसके नियंत्रण के लिए इन्होने कार्बोफ्यूरान कीटनाशक का प्रयोग 15 दिन की लहसुन में किया जिसके अच्छे परिणाम प्राप्त हुए| साथ ही झाईम  का उपयोग किया जिससे लहसुन की जड़ो का अच्छा विकास हुआ और फसल स्वस्थ है |

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Role of Calcium in Plants

पौधे में कैल्शियम की भूमिका:- कैल्शियम एक आवश्यक पोषक तत्व है जिसकी कई भूमिकाएँ है|

  • अन्य पोषक तत्वों की चयापचय प्रक्रियाओं में भाग लेते हैं|
  • उचित पौध कोशिका वृद्धि को बढ़ावा देता है|
  • कोशिका भित्ती संरचना को मजबूत बनाना – कैल्शियम पौधे की कोशिका भित्ती का एक अनिवार्य हिस्सा है। यह कैल्शियम पेक्टेट यौगिक बनाता है जो कोशिका भित्ति और बाँध कोशिकाओं को स्थिरता प्रदान करते हैं।
  •  एंजाइमेटिक और हार्मोनल प्रक्रियाओं में भाग लेता है|
  • गर्मी के तनाव के खिलाफ पौधों की रक्षा करने में मदद करता है – कैल्शियम स्टोमेटा प्रकिया में सुधार करता है और हीट शोक प्रोटीन को बनाने में भाग लेता है।
  • रोगों से पौधों को बचाव करने में मदद करता है – कई कवक और जीवाणु गुप्त एंजाइमों जो पौधे की कोशिका भित्ति को खराब कर देते हैं। कैल्शियम द्वारा प्रेरित मजबूत कोशिका भित्ति आक्रमण से बचा सकती हैं।
  • फल की गुणवत्ता को प्रभावित करता है|
  • स्टोमेटा के नियमन में एक भूमिका अदा करता है |

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Management of Pea Pod Borer

मटर में फली छेदक:- इस कीट की ईल्ली फूलों की पंखुड़ी और डंठल खाता है। एक ईल्ली कई फूलों के डंठल को नुकसान पहुंचाती हैं| शुरुआत में ईल्ली पत्तियाँ खाती है फिर डंठल के मूल भाग में छेद करके फली में घुस जाती है तथा फली को अन्दर से खाती है |

प्रबंधन:- गर्मियों में गहरी जुताई करे जिससे जमीन में छिपे कीड़े को प्राकृतिक शिकारी खा सके|  फसल के चारो ओर टमाटर सुरक्षा फसल के रूप में लगाए| महत्वपूर्ण अंतर फसलों जैसे मक्का, लोबिया और बैगन का उपयोग कीट आबादी को कम करने में मदद करता है। खेत में पक्षी बैठने की व्यवस्था करें। 0.5%  जिगरी और 0.1% बोरिक एसीड के साथ HaNVP 100 LE प्रति एकड़ की दर से अंडा सेने की अवस्था पर छिडकाव करे और 15-20 दिनों में दोहराएं। रसायनों के उपयोग में 2.00 मिलीलीटर प्रोपेनोफॉस 50 ईसी प्रति लीटर पानी अंडानाशक के रूप में लेना चाहिए। फेरोमेन ट्रेप का उपयोग करे 4-5 ट्रेप प्रति हेक्टयर | शुरुआती अवस्था में नीम बीज करनाल सत 5% का स्प्रे करे | यदि संक्रमण अधिक होतो इंडोक्साकार्ब 14.5% SC 0.5 मिली या स्पिनोसेड 45% SC 0.1 मिली या 2.5 मिली क्लोरोपाईरीफास 20 EC प्रति ली. पानी के अनुसार छिडकाव करे |

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Healthy Potato Crop due to Sulphur Application

किसान का नाम:- सुरेश पाटीदार

गाँव:- कनार्दी

तहसील:- तराना

जिला:- उज्जैन

किसान भाई सुरेश जी ने 2 एकड़ में चिप्सोना-3 आलू लगाया है जिसमे उन्होंने सल्फर 90% WDG 6 kg/एकड़ के अनुसार प्रयोग किया है जिससे उन्हें अच्छे परिणाम प्राप्त हुए है | सल्फर एंजाइमों और अन्य प्रोटीन का एक महत्वपूर्ण घटक है और क्लोरोफिल गठन के लिए आवश्यक है।  मृदा द्वारा 20 किलो/हे. सल्फर खेत की तैयारी के समय देने की अनुशंसा की जाता है |

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Role of Potassium In Plant Growth

पोटेशियम (K) अनिवार्य रूप से संयंत्र शारीरिक प्रक्रियाओं में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। इसलिए पौधों में उचित वृद्धि और प्रजनन के लिए बहुत आवश्यक है। जहां तक ​​पौधों द्वारा आवश्यक पोषक तत्वों का संबंध है, नाइट्रोजन के बाद यह महत्वपूर्ण माना जाता है। पौधों में कई जैविक और रासायनिक प्रक्रियाओं में इसके योगदान के लिए इसे “गुणवत्ता पोषक तत्व” भी कहा जाता है पौधों में पोटेशियम की कई भिन्न भूमिकाएं हैं:·

प्रकाश संश्लेषण में, पोटेशियम स्टोमेटा के खुलने एवं बंद होने को नियंत्रित करता है, और इसलिए CO2 ग्रहण को नियंत्रित करता है।

पोटेशियम एंजाइम के सक्रियण को सक्रिय करता है और एडेनोसिन ट्राइफॉस्फेट (एटीपी) के उत्पादन के लिए आवश्यक है। एटीपी पौध उत्तकों में होने वाले कई रासायनिक प्रक्रियाओं के लिए एक महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत है।

पौधों में पानी के नियमन (वाष्प-विनियमन) में पोटेशियम एक प्रमुख भूमिका निभाता है। पोटाशियम के माध्यम से दोनों ही पौधों की जड़ों से पानी लेना और स्टोमेटा से पानी की हानि प्रभावित होती है।

सूखा प्रतिरोध को बढ़ाने के लिए जाना जाता है।

पौधों में प्रोटीन और स्टार्च संश्लेषण में पोटेशियम की आवश्यकता होती है। प्रोटीन संश्लेषण के लगभग हर चरण में पोटेशियम आवश्यक है स्टार्च संश्लेषण में प्रक्रिया, इस के लिए जिम्मेदार एंजाइम पोटेशियम द्वारा सक्रिय होता है।

एंजाइमों का सक्रियण – पौधों में कई वृद्धि संबंधित एंजाइमों के सक्रियण में पोटेशियम की एक महत्वपूर्ण भूमिका है।

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