टमाटर की फसल को काफी नुकसान पहुंचाता है अमेरिकन कीट

Tomato tuta absoluta
  • अमेरिकन पिनवॉर्म [टुटा एब्सोलुटा] टमाटर के प्रमुख और महत्वपूर्ण कीटों में से एक है। टुटा एब्सोल्यूटा अपने जीवन चक्र के सभी चरणों में अत्यधिक हानिकारक प्रकृति के साथ गंभीर कीट बन जाता है।

  • टमाटर को फसल के पूरे जीवन चक्र में इस कीट से बचने और उसका प्रबंधन करने के लिए आईपीएम प्रथाओं को अपनाया जा सकता है। टुटा एब्सोल्यूटा के संक्रमण के कारण फसल को 60 से 100% तक का नुकसान हो सकता है।

  • इसका संक्रमण टमाटर की शीर्ष कलियों, पत्तियों, तने, फूलों और फलों पर देखा जा सकता है। इस संक्रमण के कारण काले धब्बे के साथ बारीक चूर्ण दिखाई देता है।

  • यह पत्तियों पर बड़ी सुरंग बनाकर पत्तियों के लैमिना को अंदर से खा जाता है जिससे प्रकाश संश्लेषक गतिविधि प्रभावित होती है, साथ ही यह फलों पर छेद करके उन्हें खाने योग्य नहीं रहने देता है।

  • इसके प्रबंधन के लिए गैर-सोलानेसियस फसलों (अधिमानतः क्रूसिफेरस फसलों) के साथ फसल चक्र अपनाएं।

  • पत्ती के अंदर कैटरपिलर के प्यूपा और अंडे देने वाले वयस्क कीट बनने से पहले संक्रमित पत्तियों को हटाएँ।

  • फेरोमोन ट्रैप का उपयोग भी इससे बचाव के लिए लाभदायक रहता है l

  • रासायनिक नियंत्रण के लिए सायनट्रानिलीप्रोल 10.26% OD @ 240 मिली + नीम ऑइल 10000 पीपीएम @ 200 मिली या क्युँनालफॉस 25% EC 400 मिली + एबामेक्टिन 1.9% EC 150 मिली + नीम ऑइल 10000 पीपीएम @ 200 मिली या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 5 %WP 250 मिली + नीम ऑइल 10000 पीपीएम @ 200 मिली प्रति एकड़ छिड़काव करें।

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सोयाबीन की फसल में फूल व फल गिरने की समस्या का ऐसे करें निदान

Prevention of flower and fruit fall problem in soybean
  • सोयाबीन की फसल में फूल एवं फलियों का गिरना एक आम समस्या है, इसके गिरने के कई कारण हो सकते हैं जिनमें पोषक तत्वों की कमी, बीमारी एवं कीटों के प्रकोप आदि प्रमुख हैं।

  • सोयाबीन के बेहतर उत्पादन में फूलों एवं फलियों की संख्या बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

नीचे दिए गए कुछ उत्पादों के द्वारा सोयाबीन की फसल में फूलों एवं फलियों को झड़ने से बचा कर उनकी संख्या को बढ़ाया जा सकता है जिसके परिणाम स्वरूप उपज बढ़ जाती है।

  • होमोब्रासिनोलॉइड 0.04% डब्लू/डब्लू 100-120 मिली/एकड़ का स्प्रे करें।

  • समुद्री शैवाल का सत् 400 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।

  • सूक्ष्म पोषक तत्त्व 300 ग्राम/एकड़ का स्प्रे करें।

  • जिब्रेलिक अम्ल 0.001% 300 मिली/एकड़ का छिड़काव करें।

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सोयाबीन की 70-90 दिनों की फसल अवस्था में ऐसे करें छिड़काव प्रबंधन

Spray Management in soybean crops in 70-90 days
  • सोयाबीन की 70-90 दिनों की फसल अवस्था फली बनने वाली होती है। इस समय अच्छे पोषण के साथ साथ फसल को रोगों जैसे पोड ब्लाइट, रस्ट एवं कीटों जैसे पोड बोरर आदि से बचाव की जरूरत होती है।

  • पोड ब्लाइट के नियंत्रण के लिए मैनकोज़ेब 75% WP @ 500 ग्राम/एकड़ या टेबुकोनाजोल 25.9% ईसी @ 250 मिली/एकड़ या टेबुकोनाजोल 10% + सल्फर 65%WG @ 500 ग्राम/एकड़ या थायोफेनेट मिथाइल 70% WP @ 300 ग्राम/एकड़ का छिड़काव कर सकते हैं।

  • रस्ट के नियंत्रण के लिए 2-3 छिड़काव प्रत्येक 15 दिनों के अंतराल में फसल में लक्षण दिखने के समय से ही कर देना चाहिए। इसके लिए हेक्साकोनाज़ोल 5% एससी @ 400 मिली या प्रोपिकोनाज़ोल 25% एससी @ 200 मिली/एकड़ का छिड़काव कर सकते हैं।

  • पोड बोरर के लिए एमेमेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी 100 ग्राम या फ्लुबेंडामाइड 20% डब्ल्यूजी 100 ग्राम या क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5 एससी 60 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव कर सकते हैं।

  • फसल में अच्छे उत्पादन के लिए जल घुलनशील उर्वरक 0:0:50 का 1 किग्रा प्रति एकड़ की दर से छिड़काव कर सकते हैं।

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सोयाबीन में बढ़ा तना मक्खी का प्रकोप, ऐसे करें प्रबंधन

How to manage stem fly in soybean crop

  • तना मक्खी के आक्रमण के लिए उच्च तापमान के बाद वर्षा के साथ अधिक आर्द्रता का होना अनुकूल वातावरण प्रदान करता है। वर्तमान में इस तरह के वातावरण के कारण तना मक्खी के प्रकोप देखा गया है।

  • खेतों में तना मक्खी से ग्रसित पौधों की, ऊपरी पत्तियां सिकुड़ने के साथ सूखती हुई दिखाई देती है। ऐसे पौधों का तना चीरकर देखें तो, तने के अंदर सुरंग सी नजर आती है, जिसमें कीट का लार्वा या प्यूपा भी नजर आता है।

  • तना मक्खी के प्रकोप को शुरुआती अवस्था में पहचानना मुश्किल है। इस कीट का प्रकोप होने पर पौधा मुरझाने या सूखने लगता है। यह कीट पत्तों पर अंडे देता है।

  • सोयाबीन की फसल में तना मक्खी के नियंत्रण के लिए सबसे महत्वपूर्ण यह है की, इल्ली के प्रकोप की शुरूआती अवस्था एवं तने में प्रवेश से पहले ही इसका नियंत्रण कर लिया जाए।

  • इसके लिए बवे कर्ब का छिड़काव समय समय पर करना बहुत आवश्यक है।

  • सोयाबीन की फसल में तना मक्खी के नियंत्रण के लिए निम्र उत्पादों का छिड़काव कर सकते हैं।

  • लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS@ 200 मिली/एकड़ या प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC@ 400 मिली/एकड़ या थियामेंथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 9.5% ZC @ 80 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG @ 40 ग्राम/एकड़ या बीटासायफ्लूथ्रिन 8.49% + इमिडाक्लोप्रिड 19.81 OD% @ 150 मिली/एकड़ का उपयोग करें।

  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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सोयाबीन की फसल में सफेद लट के प्रकोप की ऐसे करें रोकथाम

How to manage white grub in a soybean crop

  • सफेद लट दरअसल सफेद रंग का एक कीट है जो खेत में सुप्तावस्था में इल्ली के रूप में निवास करता है।

  • आमतौर पर प्रारंभिक रूप में ये सोयाबीन के पौधों की जड़ों में नुकसान पहुंचाते हैं।

  • सफेद लट के प्रकोप के लक्षण सोयाबीन के पौधे पर देखे जा सकते हैं। इन लक्षणों में पौधे का एकदम से मुरझा जाना, पौधे की बढ़वार रूक जाना और बाद में पौधे का मर जाना प्रमुख है।

  • इसके रासायनिक नियंत्रण के लिए फेनप्रोपाथ्रिन 10% ईसी @ 500 मिली प्रति एकड़ या क्लोरपाइरीफोस 20% ईसी @ 1 लीटर/एकड़ का मिट्टी में प्रयोग करें।

  • इसके जैविक नियंत्रण के लिए मेटारायझियम एसपीपी @ 1 किग्रा/एकड़ या बावेरिया बेसियाना + मेटारायझियम एसपीपी @ 2 किग्रा/एकड़ का उपयोग उर्वरकों की पहली खुराक के साथ कवकीय सूत्रीकरण के रूप में करें।

  • इन उपचारों के अलावा आप यांत्रिक नियंत्रण के तौर पर लाइट ट्रैप का उपयोग भी कर सकते हैं। यह एक प्रकार का जाल होता है जिसमे लाइट लगा होता है जिसकी तरफ सफ़ेद लट आकर्षित होते हैं और जाल में फंस जाते हैं।

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मिर्च की 60-70 दिनों की फसल अवस्था में ये तीन कीट हो सकते हैं नुकसानदायक

Spray Management in Chilli Crops in 60-70 days
  • मिर्च की फसल में यह अवस्था फूल व फल बनने वाली होती है, इस अवस्था में पौधे को अच्छे पोषक तत्वों के साथ साथ पौध संरक्षण देना भी आवश्यक होता है। फसल से अधिक एवं उच्च गुणवत्ता पाने के लिए निम्न उत्पाद उपयोग में ला सकते हैं।

  • पोषण प्रबंधन के लिए रोपाई के बाद 60-70 दिन होने पर 45 किलो यूरिया + 50 किलो डी ए पी + 12 किलो मेग्नेशियम सल्फेट/एकड़ + फास्फोरस एवं पोटाश बैक्टीरिया 2 किलो प्रति एकड़ उपयोग करें।

  • इस समय फसल में पोड बोरर, माइट्स, थ्रिप्स आदि कीट एवं रोगों में फल सड़न रोग का प्रकोप मुख्यतः होने की सम्भावना रहती है, इससे बचाव के लिए थियामेथोक्साम 17.5% + इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG 100 gm + एमिनो एसिड 400 मिली + कैपटान 70% + हेक्साकोनाज़ोल 5% WP 250ग्राम/एकड़ छिड़काव करें।

  • जैविक नियंत्रण के लिए सूडोमोनास 1 किलो + बेसिलस सबटिलिस 500 मिली प्रति एकड़ का छिड़काव करें।

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ना होने दें कपास में मैग्नीशियम की कमी, जानें इसके लक्षण

Symptoms of magnesium deficiency in cotton
  • मैग्नीशियम की कमी के लक्षण सबसे पहले परिपक्व पत्तियों पर दिखाई देते हैं।

  • मैग्नीशियम की कमी के कारण पत्तियों की शिराये हरे-पीले रंग की दिखाई देती है।

  • गंभीर रूप से प्रभावित पत्तियों के किनारों पर हल्के भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।

  • मैग्नीशियम की कमी के कारण पत्ती लाल-भूरे रंग की होकर खुरदुरी हो जाती है।

  • मैग्नीशियम की कमी के कारण पत्तियों के किनारे रंगरहित या पीलापन लिए हुए दिखाई देते हैं।

  • मैग्नीशियम की कमी के कारण जड़ों का विकास नहीं हो पाता है और फसल कमजोर हो जाती है।

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कपास की 80-100 दिनों की फसल अवस्था में ये छिड़काव जरूर करें

Spray management in cotton in 80-100 days
  • कपास की फसल में बुवाई के 80-100 दिन बाद डेंडू अवस्था के समय डेंडू के विकास के साथ-साथ डेंडू के आकार को बढ़ाने और रस चूसने वाले कीट जैसे-एफिड, जैसिड, सफेद मक्खी, थ्रिप्स, माइट्स, डेंडू को नुकसान पहुंचाने वाली पिंक बॉल वर्म(गुलाबी सुंडी) आदि कीट एवं कवक जनित बीमारियों जैसे डेंडू की सड़न आदि के नियंत्रण के हेतु छिड़काव उपयोग में ला सकते हैं।

  • गुलाबी सुंडी के प्रबंधन के लिए प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC@ 400 मिली/एकड़ या फेनप्रोप्रेथ्रिन 10% EC @ 400 मिली/एकड़ या नोवालूरान 5.25% + इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% SC @ 600 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • रस चूसक कीट प्रबंधन हेतु डायफैनथीयुरॉन 50% WP @ 250 ग्राम/एकड़ या पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% EC @ 250 मिली/एकड़ या इमिडाक्लोप्रिड 17.8%SL@ 100 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • कवक जनित रोगों के लिए थायोफिनेट मिथाइल 70% WP @300 ग्राम/एकड़ या हेक्साकोनाज़ोल 5% SC @ 300 मिली/एकड़ या मैंकोजेब 75% WP@ 500 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें।

  • इस अवस्था में कपास की फसल को अधिक पोषण की आवश्यकता होती है इसलिए 0:0:50 @ 1 किलो प्रति एकड़ का छिड़काव कर सकते हैं। यह डेंडू के विकास के साथ-साथ डेंडू के आकार को बढ़ाने में भी मदद करता है।

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उड़द की फसल में इस रोग से होगा नुकसान, जानें नियंत्रण के उपाय

leaf spot in black gram crop
  • भारी बारिश के बाद उड़द की फसल में लीफ स्पॉट की समस्या देखने की मिल सकती है। यह एक प्रमुख रोग है जो की सर्कोस्पोरा नामक फफूंद से होता है। यह एक मिट्टी एवं बीज जनित बीमारी हैl इसके लक्षण में संक्रमित पत्तियों पर छोटे, भूरे, पीले रंग के पानी से भरे गोलाकार धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं।

  • संक्रमण ज्यादातर पुरानी पत्तियों पर दिखाई देता है जिससे पत्तियां गल कर गिर जाती हैं। हरी फलियों पर छोटे पानी से लथपथ धब्बे नजर आते हैंl इन घावों एवं धब्बों के केंद्र अनियमित, हल्के भूरे रंग के हो जाते हैं और खुरदरी सतह के साथ थोड़े धंसे हुए हो जाते हैं।

  • इस रोग के बचाव के लिए रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें, बीज को उपचारित करके बुवाई करें एवं जल निकास की उचित व्यवस्था करें।

  • इसके नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63%@ 300 ग्राम प्रति एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 50% + ट्रायफ्लोक्सीस्त्रोबिन 25% WG 120 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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बेहतर पौध विकास हेतु प्याज की नर्सरी में ऐसे करें छिड़काव प्रबंधन

Spraying management in onion nursery for better plant development
  • लेट खरीफ और रबी प्याज की नर्सरी तैयार करने के लिए उचित समय मध्य अगस्त से मध्य सितम्बर का होता है।

  • अधिक लाभ कमाने के लिए प्याज को पहले नर्सरी में बोना बहुत आवश्यक है।

  • प्याज़ की नर्सरी की बुवाई के बाद छिड़काव प्रबंधन करना भी बहुत आवश्यक होता है l

  • यह छिड़काव कवक जनित रोगों व कीटों के नियंत्रण एवं पोषण प्रबंधन के लिए किया जाता है।

  • इस समय छिड़काव करने से प्याज़ की नर्सरी को अच्छी शुरुआत मिलती है।

  • बुवाई के 7 दिन बाद कवक जनित रोगों के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 30 ग्राम प्रति पंप की दर से छिड़काव करें।

  • कीट प्रबंधन के लिए थियामेंथोक्साम 25% WG@ 10 ग्राम प्रति पंप की दर से छिड़काव करें।

  • पोषण प्रबंधन के लिए ह्यूमिक एसिड @ 10 ग्राम प्रति पंप की दर से छिड़काव करें।

  • बुवाई के 20 दिन बाद मेटालेक्सिल 8% + मैनकोज़ेब 64% WP 50 ग्राम और फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG 8 ग्राम प्रति पंप की दर से छिड़काव करें।

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