धान में ब्लास्ट रोग के लक्षणों को पहचानें और करें बचाव

Identify and prevent the symptoms of Blast disease in paddy
  • इस रोग के लक्षण पौधे के सभी ऊपरी हिस्से जैसे पत्ते, पत्ती कॉलर, नोड्स, गर्दन और पेनिकल आदि पर दिखाई देते हैं।

  • इसके प्रारंभिक लक्षण के रूप में पौधों के ऊपर भूरे-हरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। छोटी धारिया पत्तियों पर दिखाई देती हैं और बाद में ये आपस में मिल जाती हैं जिससे धब्बो का आकार बड़ा हो जाता है। इन धब्बो का केंद्र स्लेटी रंग का दिखाई देता है।

  • पुराने धब्बे अण्डाकार या स्पिंडल के आकार के होते हैं जो भूरे से सफ़ेद रंग के होते हैं तथा इनके किनारे नेक्रोटिक दिखाई देते हैं। इनपर कई अनियमित धब्बे आपस में मिलकर पैच बनाते हैं।

  • नोडल संक्रमण की वजह से संक्रमित नोड पर दरार हो जाती है तथा कॉम टूट कर गिर जाता है।

  • आंतरिक संक्रमण भी पौधे के आधार पर से शुरू होता है, जिससे बाली सफेद होने लगती है। इसके लक्षण बोरर या पानी की कमी के जैसे दिखाई देते हैं।

  • इंटर्नोड पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं तथा रोग की गंभीर अवस्था में पेनिकल गिरने लगते हैं।

  • यदि इंटर्नोड का संक्रमण धान की दूधिया अवस्था से पहले होता है, तो कोई दाना नहीं बनता है, लेकिन यदि संक्रमण बाद में होता है, तो खराब गुणवत्ता के दाने बनते हैं।

  • इसके प्रबंधन के लिए टेबुकोनाज़ोल 50% + ट्रायफ्लॉक्सीस्ट्रोबिन 25% WG 150 ग्राम/एकड़ या ट्रायसायक्लोज़ोल 70% WP 120 ग्राम/एकड़ या आइसोप्रोथायोलीन 40% EC 300 मिली/एकड़ का छिड़काव करें।

  • जैविक प्रबंधन के लिए सूडोमोनास फ्लोरोसेंस 250 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें।

फसल की बुआई के साथ ही अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

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मोजेक विषाणु से सोयाबीन की फसल को होगा भारी नुकसान

Mosaic virus can cause heavy damage to soybean crop

सोयाबीन की फसल में लगने वाले मोजैक वायरस की घातकता हम इस बात से समझ सकते हैं की इसके कारण फसल के उपज में 8 से 35% तक का नुकसान हो सकता है।

इस वायरस को फैलाने वाला वाहक रस चूसक कीट ‘सफेद मक्खी’ होती है। मोजैक वायरस के लक्षण सोयाबीन की फसल की किस्मों के अनुसार भिन्न – भिन्न हो सकते हैं। इसके प्रकोप के कारण पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं एवं पत्तियो पर पीले- हरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। अपूर्ण विकास के कारण पत्तियाँ विकृत भी हो जाती हैं तथा नीचे की ओर मुड़ी हुए दिखाई देती हैं। इसके कारण पौधे का विकास सही से नहीं हो पाता है एवं फली अच्छे से नहीं बन पाती है। इन सब कारणों से उत्पादन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता हैl

इसके नियंत्रण के लिए सबसे पहले रस चूसक कीटों को नियंत्रित करना जरूरी होता है।

  • इसके लिए पहले स्प्रे में – थायनोवा 25 100 ग्राम प्रति एकड़

  • दूसरे स्प्रे में – नोवासेटा 100 ग्राम प्रति एकड़ और कासु बी 300 मिली प्रति एकड़

  • या फिर आप दूसरे स्प्रे में स्ट्रेप्टोसायक्लीन @ 20 ग्राम प्रति एकड़

  • तीसरा स्प्रे: मारकर @ 300 मिली प्रति एकड़ और शीथमार @ 300 मिली प्रति एकड़ छिड़काव करे।

  • ध्यान रहे की इन तीनों छिड़काव के मध्य 5 से 7 दिन का अंतराल जरूर रखेंl

  • इसके अलावा सफ़ेद मक्खी के नियंत्रण के लिए नोवासेटा 100 ग्राम/एकड़

  • या फिर मारकर @ 300 मिली/एकड़

  • या फिर पेजर @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • इसके जैविक नियंत्रण के लिए कालचक्र @ 1 किलो/एकड़

  • या फिर बवे कर्ब 250 ग्राम एकड़ की दर से छिड़काव करें।

स्मार्ट कृषि एवं उन्नत कृषि उत्पादों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। उन्नत कृषि उत्पादों व यंत्रों की खरीदी के लिए ग्रामोफ़ोन के बाजार विकल्प पर जाना ना भूलें।

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कद्दू वर्गीय फसलों को फल मक्खी के प्रकोप से ऐसे बचाएं

Management of fruit fly in gourd crops
  • फल मक्खी के लार्वा फलों में छेद करके उनके भीतरी भाग को खाते हैं और इनसे ग्रसित फल खराब होकर गिर जाते हैं।

  • मक्खी प्रायः कोमल फलों पर ही अंडे देती है और अपने अंडे देने वाले भाग से फलों में छेद करके उन्हें हानि पहुचाती है। इन छेदों से, फलों का रस निकलता हुआ दिखाई देता है। अंततः छेद ग्रसित फल सड़ने लगते हैं।

  • इसके प्रबंधन के लिए ग्रसित फलों को इकट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए।

  • इन मक्खियों को नियंत्रित करने के लिये कद्दू वर्गीय फसलों की कतारों के बीच में मक्के के पौधों को उगाया जाना चाहिए। पौधे की ऊंचाई ज्यादा होने के कारण मक्खी पत्तों के नीचे अंडे देती है।

  • गर्मी के दिनों में, गहरी जुताई करके मृदा के अंदर उपस्थित, मक्खी की सुप्त अवस्था (प्यूपा) को नष्ट कर देना चाहिए।

  • कीट के प्रभावी नियंत्रण के लिए लाइट ट्रैप या फेरोमोन ट्रैप का उपयोग करें।

  • इसके अलावा थियामेंथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 9.5% ZC 80 मिली/एकड़ या प्रोफेनोफोस 40% + साइपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG 40 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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एजोटोबैक्टर जैव उर्वरक का फसलों के लिए महत्व

Importance of Azotobacter biofertilizer for crops
  • एजोटोबैक्टर एक जीवाणु है जो जैविक खाद के रूप में उपयोग किया जाता है।

  • यह एक जैविक उत्पाद है जो के फसलों में नत्रजन स्थिरीकरण, के लिए उपयोग किया जाता है।

  • यह जैव उर्वरक सभी प्रकार की गैर दलहनी फसलें (दलहनी जाति की फसलों को छोड़कर) में प्रयोग किया जा सकता है।

  • इसकी वजह से फसलों के उत्पादन में 10 से 20 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी होती है तथा फलों एवं दानों का प्राकृतिक स्वाद बना रहता है।

  • इस जैविक उर्वरक का उपयोग करने से 20 से 30 किग्रा० नत्रजन की बचत भी की जा सकती है।

  • इसका उपयोग करने से फसलों का अंकुरण शीघ्र होता है तथा जड़ों का विकास अधिक एवं शीघ्र होता है।

  • इसके उपयोग से फसलों में रोगजनकों के प्रति प्रतिरोधकता बढ़ जाती है।

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मिर्च की फसल में थ्रिप्स के प्रकोप को ऐसे करें नियंत्रित

How to control the attack of thrips in chilli crop

  • यह छोटे एवं कोमल शरीर वाले हल्के पीले रंग के कीट होते हैं, इस कीट का शिशु कीट एवं वयस्क कीट दोनों ही मिर्च की फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। यह पत्तियों की ऊपरी सतह पर अधिक मात्रा में एवं पत्तियों की निचली सतह पर भी पाए जाते हैं।

  • ये अपने तेज मुखपत्र के साथ मिर्च की फसल की पत्तियों और एवं फूलों का रस चूसते हैं। थ्रिप्स के प्रकोप से पत्तियां किनारों से भूरी हो जाती हैं, एवं प्रभावित पौधे की पत्तियां सुखी एवं मुरझाई हुई दिखाई देती हैं साथ ही विकृत होकर ऊपर की ओर मुड़ जाती हैं।

  • रासायनिक प्रबंधन: थ्रिप्स के प्रकोप के निवारण के लिए फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 250 मिली/एकड़ या स्पिनोसेड 45% SC @ 75 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक प्रबधन: इस कीट के नियंत्रण के लिए बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • मिर्च की फसल के अच्छे विकास एवं थ्रिप्स के कारण हुई क्षति में सुधार के लिए, सीवीड एक्सट्रेक्ट + एमिनो एसिड + फल्विक एसिड (विगरमैक्स जेल) का 400 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव अवश्य करें।

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सोयाबीन में बढ़ रही है रस्ट रोग की समस्या, जानें नियंत्रण उपाय

How to manage Rust disease in soybean crop
  • सोयाबीन की फसल में होने वाले रस्ट रोग को गेरुआ रोग के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग के प्रकोप की संभावना, लगातार वर्षा होने एवं तापमान कम (22 से 27 डिग्री सेल्सियस) तथा अधिक नमी (आपेक्षिक आर्द्रता 80-90 प्रतिशत) होने पर बढ़ होती है। रात या सुबह के समय कोहरा रहने पर रोग की तीव्रता बढ़ जाती है। जैसे जैसे तापमान में गिरावट आती है वैसे वैसे इस रोग का प्रकोप बढ़ता है।

  • इसके कारन पत्तियों पर पीले रंग का पाउडर जमा हो जाता है जिसके कारन पत्तियो की भोजन बनाने की प्रक्रिया बहुत प्रभावित होती है। इसके कारण बाद में पत्तियां सूखने लगती हैं और उत्पादन बहुत ज्यादा प्रभावित हो जाता है।

  • इस रोग के नियंत्रण के लिए, हेक्साकोनाज़ोल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ या प्रोपिकोनाज़ोल 25% EC @ 200 मिली/एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 25.9% EC @ 200 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • रोग प्रतिरोधक किस्में इंदिरा सोया-9, डी.एस.बी. 23-2 डी.एस.बी. 21 तथा फुले कल्याणी आदि की बुवाई करें। रोग ग्रस्त पौधे को उखाड़ कर पॉलीथिन में रखकर खेत के बाहर गड्ढे में गाड़ दें या नष्ट करें।

Gramophone azadi sale
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जिब्रेलिक एसिड का फसलों के लिए महत्त्व

Importance of gibberellic acid to crops
  • जिब्रेलिक एसिड एक जैविक वृद्धि यौगिक है जिसका उपयोग फसलों के बेहतर विकास के लिए किया जाता है।

  • यह एक प्रकार का जैव उर्वरक है जो फसलों के पत्ते एवं लम्बे तने के निर्माण में सहायक है।

  • यह प्रकाश संश्लेषण को बढ़ाता है, जिसके कारण बीज का अंकुरण तेज़ी से होता है।

  • यह एक शक्तिशाली हार्मोन है जो जड़ के विकास को बढ़ाकर फसल के उत्पादन को बढ़ाने में साहयता करता है।

  • यह अच्छे फूल एवं फल के उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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मक्का में फूल एवं भुट्टे बनने की अवस्था में ऐसे करें फसल प्रबंधन

Crop management in Maize at the time of flowering and cob formation
  • मक्का की फसल में फूल एवं भुट्टे बनने वाली अवस्था में फसल प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है। यह अवस्था बहुत अधिक संवेदनशील होती है। इस अवस्था में निम्न उत्पादों का उपयोग बहुत आवश्यक होता है।

  • फसल में कवक जनित रोगों के नियंत्रण के लिए क्लोरोथालोनिल 75% WP @ 400 ग्राम/एकड़ या थायोफिनेट मिथाइल 70% WP @ 300 ग्राम/एकड़ या हेक्साकोनाज़ोल 5% SC @ 300 मिली/एकड़ या मैंकोजेब 75% WP @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • कीट नियंत्रण के लिए क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC @ 60 मिली/एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @ 100 ग्राम/एकड़ या फ्लूबेण्डामाइड 20% WG @ 100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के लिए बवे कर्ब @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें। पोषण प्रबंधन के लिए 00:00:50 @ 1 किलो/एकड़ + प्रो-अमिनोमैक्स @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

आपकी जरूरतों से जुड़ी ऐसी ही अन्य महत्वपूर्ण सूचनाओं के लिए प्रतिदिन पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख और अपनी कृषि समस्याओं की तस्वीरें समुदाय सेक्शन में पोस्ट कर प्राप्त करें कृषि विशेषज्ञों की सलाह।

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सोयाबीन में एन्थ्रेक्नोज व पोड ब्लाइट प्रकोप के लक्षण व निवारण

Symptoms and Measures of Anthracnose disease in soybean
  • एन्थ्रेक्नोज सोयाबीन फसल का एक महत्वपूर्ण रोग है, जिससे उपज में 16-100 प्रतिशत तक की हानि देखी जा सकती है। यह बीमारी फसल विकास के सभी चरणों को प्रभावित करती है। इसके लक्षण पत्ते, फल, फली और यहां तक कि तने पर भी देखे जा सकते हैं। इसके कारण पौधे पर अनियमित आकार के धब्बे, काले गहरे धंसे हुए घाव या लाल भूरे धब्बे दिखाई देते हैं। प्रारंभिक अवस्था में प्रभावित होने वाले संक्रमण के कारण फली में कोई बीज नहीं बनता है। इस रोग के फैलने लिए अनुकूल तापमान 28-32ºC होता है, तथा यह पौधे को 22-25ºC के न्यूनतम तापमान पर संक्रमित करता है।

  • इसके निवारण के लिए टेबुकोनाजोल 10% + सल्फर 65% WG @ 500 ग्राम/एकड़ और कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ब 63% WP @ 300 ग्राम/एकड़ और थायोफिनेट मिथाइल 70% WP @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के लिए ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव कर सकते हैं।

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कद्दू वर्गीय फसलों में डाउनी मिल्ड्यू से होने वाले नुकसान को ऐसे करें कम

How to control downy mildew disease in cucurbits
  • कद्दू वर्गीय फसलों में डाउनी मिल्ड्यू एक गंभीर और आम फफूंद जनित रोग है जिसे मृदु रोमिल आसिता के नाम से भी जाना जाता है। यह गर्म और आर्द्र परिस्थितियों में जब आसमान में बादल छाए रहते हैं तब होता है।

  • इसके कारण पत्तियों के नीचे के हिस्से पर छोटे, पानी से लथपथ धब्बे बन जाते हैं जो माइसीलियम और बीजाणुओं के पाउडर रूप में नजर आते हैं।

  • इसका संक्रमण आमतौर पर पत्ती की शिराओं के पास केंद्रित होते हैं। सफेद धब्बे 1-6 सेंटीमीटर व्यास के होते हैं, जिसके ऊपर पत्ती की सतह पर पीले-हरे धब्बे होते हैं।

  • जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, संक्रमित पत्तियाँ गलने लगती है और झुलस जाती हैं। समय से पहले पौधों की पत्तियां मुड़ने लगती हैं और गिर जाती हैं। अपरिपक्व फलों पर फफूंदी सफेद मायसेलियम और बीजाणुओं के गोलाकार पैच के रूप में शुरू होती हैं जो पूरे फल को ढक देती हैं।

  • जैसे ही फल पकता है, कवक गायब हो जाते हैं, और भूरे निशान छोड़ देते हैं। निशान अंतर्निहित ऊतक के विकास को प्रतिबंधित करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप फल विकृत होते हैं। विकृत फल खाने योग्य होता है लेकिन बाजार में इसका बहुत कम या कोई मूल्य नहीं होता है।

  • फसलों पर डाउनी मिल्ड्यू रोग के रासायनिक नियंत्रण हेतु क्लोरोथालोनिल 75% WP 400 ग्राम या मेटलैक्सिल 8% + मेंकोजेब 64% 500 ग्राम प्रति एकड़ का छिड़काव करें।

  • जैविक नियंत्रण के लिए ट्राइकोडर्मा विरडी 0.5 किलो प्रति एकड़ का प्रयोग किया जा सकता है।

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