फ़सलों में पोटाश का महत्व

Importance of Potash in Crops
  • अच्छी फसल उत्पादन के लिए पोटाश एक आवश्यक पोषक तत्व होता है।

  • पोटाश की संतुलित मात्रा फसल में बहुत प्रकार की प्रतिकूल परिस्थिति जैसे बीमारियां, कीट, रोग, पोषण की कमी आदि के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।

  • यह दानों में चमक लाने तथा वज़न बढ़ाने में साहयक होता है एवं उपज की गुणवत्ता भी इससे बढ़ती है।

  • पोटाश के द्वारा फसल में अच्छा जड़ विकास एवं मज़बूत तना विकास होता है जिसके फलस्वरूप फसल मिट्टी में अपनी पकड़ अच्छी तरह से बना लेती है।

  • पोटाश की संतुलित मात्रा मिट्टी की जल धारण क्षमता का विकास करती है।

  • पोटाश फसलों की पैदावार एवं गुणवत्ता बढ़ाने वाला तत्व है।

  • इसकी कमी से फसल का विकास रुक जाता है और पत्तियो का रंग गहरा नहीं हो पाता है।

  • पोटाश की कमी से फसल की पुरानी पत्तियां किनारे से पीली पड़ जाती है एवं पत्तियों के ऊतक मर जाते हैं, बाद में पत्तियां सूख जाती हैं।

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जैविक नियंत्रक क्या हैं? जानें मिट्टी में इनकी उपयोगिता एवं फसल को मिलने वाले लाभ

What are Biological control agents? Their utility and benefits to soil and crop
  • पौधे के कीटों को नियंत्रित करने के लिए जिन जैविक कीटनाशकों और कवाकनाशकों का उपयोग किया जाता है उन्हीं नियंत्रकों को बायोकन्ट्रोल एजेंट या जैविक नियंत्रक कहा जाता है।

  • ये जैविक नियंत्रण कीटों जैसे कि नेमाटोड, खरपतवार, कीड़े और घुन को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

  • जैविक नियंत्रण एजेंट अपने प्राकृतिक दुश्मनों के साथ-साथ पौधों की मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पायी जाने वाली प्रजातियों को संतुलित बनाये रखने में मदद करते हैं।

  • जैविक नियंत्रक को एक जीवित जीव के अनुप्रयोग के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। अर्थात दूसरे जीवों को नियंत्रित करने वाले इस प्रक्रिया मे जो जीव भाग लेते हैं उनको जैविक नियंत्रक कहते हैं।

  • जैविक नियंत्रक के प्रकार है कीटनाशक, कवकनाशी बैक्टीरिया वायरस इत्यादि।

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आलू की उन्नत किस्में एवं खेत तैयार करने की विधि

Improved varieties of potato and method of preparation of the field
  • आलू की सामान्यता लगाई जाने वाली किस्म में सोलनम ट्यूबरोसम मुख्य है। इसके पौधे छोटे और मोटे तने वाले तथा इनकी पत्तियों का आकार बड़ा व अपेक्षाकृत लंबा होता है। आलू की किस्मों में आमतौर पर किसान भाई कुफरी ज्योति, कुफरी मुथु, कुफरी स्वर्णा, कुफरी मलार, कुफरी सोगा, कुफरी आनंद, कुफरी चमत्कार, कुफरी अलंकार और कुफरी गिरिराज का चुनाव कर सकते हैं।

  • उन्नत बीज किस्म के चयन के बाद बारी आती है आलू के खेत की तैयारी की, आलू की फसल के अच्छे ट्यूब्राइजेशन के लिए एक अच्छी तरह से भुरभुरी मिट्टी या सीड बेड की आवश्यकता होती है। खरीफ फसल की कटाई के तुरंत बाद खेत में मिट्टी पलटने वाले हल से एक बार 20-25 सेमी गहरी जुताई करें। इसके बाद, दो से तीन क्रॉस हैरोइंग या स्थानीय हल से चार से पांच जुताई करें, यह सतह को चिकना और समतल बनाने के लिए आवश्यक है। बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी बनाए रखें।

  • आलू की बुवाई आप रिज तथा फरो जैसे प्रचलित बिधियों से खेत को तैयार करके कर सकते हैं।

  • जिस मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा कम हो उस मिट्टी में 4 मैट्रिक टन प्रति एकड़ गोबर की ठीक से सड़ी हुई खाद को भूमि तैयार करने के दौरान देना चाहिए, यह मात्रा रोपण के एक पखवाड़े पहले दिया जाना चाहिए। बता दें की आलू के पौधे को अधिक मात्रा में पोषक तत्वों की आवश्यकता होती हैं।

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प्याज़ में आ रहे बैंगनी धब्बा रोग के लक्षणों की ऐसे करें पहचान व नियंत्रण

How to recognize Purple blotch disease in onion

प्याज में आने वाले बैगनी धब्बा रोग को अंग्रेजी में Purple blotch के नाम से भी जाना जाता है। यह एक मिट्टी जनित रोग है। इस रोग के कारण पत्तियों और डंठलों पर छोटे, धँसे हुए, सफेद धब्बों के साथ बैंगनी रंग के केंद्र बन जाते हैं। इसके घाव पत्तियों/डंठल को घेर लेते हैं और उनके गिरने का कारण बन सकते हैं। संक्रमित पौधे बल्ब विकसित करने में विफल हो जाते हैं।

रोकथाम के उपाय:

  • बुआई के लिए स्वस्थ बीजों का प्रयोग करें।

  • 2-3 साल का फसल चक्र अपनाएँ एवं उचित जल निकास की व्यवस्था करें।

  • नाइट्रोजन और फॉस्फोरस युक्त उर्वरकों की अनुसंशित मात्रा का उपयोग करें।

  • बुआई के पूर्व बीजों को गर्म पानी में 20 मिनट के लिए 50 डिग्री सेल्सियस पर उपचारित करें साथ ही प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।

मृदा उपचार: इस रोग से सुरक्षा के लिए, बुआई के पूर्व मिट्टी में ट्राइकोडर्मा विरिडी 500 ग्राम को 4 से 5 टन अच्छे से सड़ी हुई गोबर की खाद के साथ मिलाकर प्रति एकड़ समान रूप से फैलाएं। 30 दिन के बाद ट्राइकोडर्मा विरिडी 500 ग्राम/एकड़ का पुनः उपयोग करें।

रासायनिक नियंत्रण:

बीज उपचार: बुआई के पूर्व बीजों को करमानोवा 2.5 ग्राम/किलो ग्राम बीज के हिसाव से उपचारित करें।

फसल में रोग के लक्षण दिखाई देने पर रोकथाम के उपाय: रोग के प्रारंभिक लक्षण दिखाई देने पर हेक्साकोनाज़ोल 5% SC (नोवाकोन), @ 400 मिली + सिलिकोमैक्स (स्टीकर) @ 50 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें या किटाज़िन 48% ईसी @ 200 मिली +  सिलिकोमैक्स (स्टीकर), @ 50 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें या फिर जैविक नियंत्रण के लिए स्यूडोमोनास फ्लोरसेंस (मोनास कर्ब @250 ग्राम 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें)

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रबी फसलों में बुआई के पूर्व मिट्टी उपचार का महत्व

Importance of soil treatment before sowing of Rabi crops
  • किसी भी मौसम में फसल बुआई के पूर्व मिट्टी उपचार करना बहुत आवश्यक होता है।

  • मिट्टी की उर्वरता और पोषक तत्व प्रबंधन फसल से अच्छी उपज प्राप्त करने एवं रोग मुक्त फसल के लिए बहुत महत्वपूर्ण कारक होते हैं। यह फसल की उपज के साथ साथ गुणवत्ता पर भी सीधा प्रभाव डालते हैं।

  • खरीफ के मौसम के बाद रबी की बुआई के पूर्व मिट्टी में बहुत अधिक नमी होने के कारण कवक जनित रोगों एवं कीट जनित रोगों का बहुत अधिक प्रकोप होता है।

  • इन रोगों के निवारण के लिए मिट्टी उपचार कवकनाशी एवं कीटनाशी से किया जाता है।

  • मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए भी मिट्टी उपचार बहुत आवश्यक होता है। इसके लिए मुख्य पोषक तत्वों का उपयोग किया जाता है।

  • मिट्टी उपचार करने से मिट्टी की सरचना में सुधार होता है एवं उत्पादन भी काफी हद तक बढ़ जाता है।

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कद्दू वर्गीय फसलों में कुकुम्बर मोज़ेक विषाणु जनित रोगों का प्रबंधन

Management of Cucumber mosaic viral diseases in cucurbits
  • कद्दू वर्गीय फसलों में मोज़ेक विषाणु जनित रोग आम तौर पर सफेद मक्खी तथा एफिड से फैलता है।

  • इस रोग में सामान्यतः पत्तियों पर अनियमित हल्की व गहरी हरी एवं पीली धारियां या धब्बे दिखाई देते हैं।

  • पत्तियों में घुमाव, अवरुद्ध, सिकुड़न एवं पत्तियों की शिराएं गहरी हरी या पीली हल्की हो जाती हैं।

  • पौधा छोटा रह जाता है और फल फूल कम लगते है या झड़ कर गिर जाते हैं।

  • संक्रमित फल अक्सर विकृत और फीके पड़ जाते हैं, छोटे रह जाते हैं और गंभीर रूप से संक्रमित होने पर नगण्य मात्रा में बीज पैदा करते हैं।

  • इस रोग से बचाव के लिए सफेद मक्खी और एफिड को नियंत्रित करना चाहिए।

  • इस प्रकार के कीटों से फसल की रक्षा हेतु 10-15 दिन के अंतराल पर एसिटामिप्रीड 20% SP @ 100 ग्राम या एसीफेट 75% SP @ 300 ग्राम या बायफैनथ्रिन 10% EC @ 300 मिली या डायफैनथीयुरॉन 50% WP @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक नियंत्रण के लिए मेट्राजियम @ 1 किलो/एकड़ या बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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प्याज की पत्तियों के ऊपरी सिरे सूख रहे हों तो जल्द करें उपचार

Why do onion plants show tip burn problems

  • टिप बर्न की समस्या में प्याज के पत्तियों के टिप यानी की ऊपरी सिरे जले जले से नजर आने लगते हैं। यह समस्या अगर फसल के परिपक्व होने की अवस्था के समय दिखती है तो यह प्रक्रिया स्वाभाविक हो सकती है, लेकिन युवा पौधों में अगर टिप बर्न की समस्या नजर आये तो आपको सावधान हो जाने की जरूरत है। युवा पौधों में यह कई कारणों से हो सकता है। इसके संभावित कारणों में “मिट्टी में महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की कमी” “फफूंदों से होने वाले संक्रमण या फिर रस चूसक कीट जैसे थ्रिप्स आदि के संक्रमण प्रमुख हो सकते हैं।

  • इसके अलावा तेज हवा, सूरज की अधिक रोशनी, मिट्टी में लवण की अधिकता और अन्य पर्यावरणीय कारक भी प्याज के शीर्ष को जला सकते हैं।

  • इसके उपचार के लिए आप थायनोवा 25 100 ग्राम, स्वाधीन 500 ग्राम, नोवामैक्स 300 मिली प्रति एकड़ की दर से पानी में घोलकर छिड़काव करें।

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कपास की फसल में फास्फोरस की कमी के लक्षण

Symptoms of phosphorus deficiency in cotton
  • कपास में फास्फोरस की कमी के लक्षण आमतौर पर अधिकांश अन्य पोषक तत्वों के साथ स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते हैं।

  • फास्फोरस की कमी के लक्षण छोटे एवं बहुत गहरे हरे रंग के पत्तों पर पहले दिखाई देते हैं। इसके कारण पत्तियों का रंग हल्का बैगनी या भूरा हो जाता है।

  • फास्फोरस की कमी के कारण पौधे छोटे रह जाते हैं।

  • फास्फोरस की कमी के कारण पौधों की जड़ों का वृद्धि व विकास बहुत कम होता है और कभी-कभी जड़ सूख भी जाती है।

  • फास्फोरस की अधिक कमी के कारण तना गहरा पीला पड़ जाता है और फल व बीज का निर्माण अच्छे से नहीं होता है।

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प्याज की नर्सरी में पौध गलन रोग से होगा नुकसान

Damping-off disease will cause damage in onion nursery

  • प्याज की नर्सरी में लगे पौध को पौध गलन के कारण काफी नुकसान झेलना पड़ता है। पौध गलन को आद्र विगलन या अंग्रेजी में डम्पिंगऑफ के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग के रोगजनक सबसे पहले पौधे के कालर भाग पर आक्रमण करता है और अतंतः कालर भाग पूरी तरह से विगलित हो जाता है और पौधे गल कर मर जाते हैं।

  • इस रोग के निवारण के लिए बुवाई से समय स्वस्थ बीजों का चयन करना चाहिए। हालाँकि बुआई की प्रक्रिया तो ज्यादातर किसान भाइयों ने पूरी कर ली होगी तो अब बीजों का आप कुछ नहीं सकते। तो इस समस्या के निवारण हेतु आप करमानोवा 30 ग्राम/पंप या Roko 50 ग्राम/पंप या RIDOMIL GOLD 60 ग्राम/पंप की दर से छिड़काव करें।

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टमाटर की फसल को काफी नुकसान पहुंचाता है अमेरिकन कीट

Tomato tuta absoluta
  • अमेरिकन पिनवॉर्म [टुटा एब्सोलुटा] टमाटर के प्रमुख और महत्वपूर्ण कीटों में से एक है। टुटा एब्सोल्यूटा अपने जीवन चक्र के सभी चरणों में अत्यधिक हानिकारक प्रकृति के साथ गंभीर कीट बन जाता है।

  • टमाटर को फसल के पूरे जीवन चक्र में इस कीट से बचने और उसका प्रबंधन करने के लिए आईपीएम प्रथाओं को अपनाया जा सकता है। टुटा एब्सोल्यूटा के संक्रमण के कारण फसल को 60 से 100% तक का नुकसान हो सकता है।

  • इसका संक्रमण टमाटर की शीर्ष कलियों, पत्तियों, तने, फूलों और फलों पर देखा जा सकता है। इस संक्रमण के कारण काले धब्बे के साथ बारीक चूर्ण दिखाई देता है।

  • यह पत्तियों पर बड़ी सुरंग बनाकर पत्तियों के लैमिना को अंदर से खा जाता है जिससे प्रकाश संश्लेषक गतिविधि प्रभावित होती है, साथ ही यह फलों पर छेद करके उन्हें खाने योग्य नहीं रहने देता है।

  • इसके प्रबंधन के लिए गैर-सोलानेसियस फसलों (अधिमानतः क्रूसिफेरस फसलों) के साथ फसल चक्र अपनाएं।

  • पत्ती के अंदर कैटरपिलर के प्यूपा और अंडे देने वाले वयस्क कीट बनने से पहले संक्रमित पत्तियों को हटाएँ।

  • फेरोमोन ट्रैप का उपयोग भी इससे बचाव के लिए लाभदायक रहता है l

  • रासायनिक नियंत्रण के लिए सायनट्रानिलीप्रोल 10.26% OD @ 240 मिली + नीम ऑइल 10000 पीपीएम @ 200 मिली या क्युँनालफॉस 25% EC 400 मिली + एबामेक्टिन 1.9% EC 150 मिली + नीम ऑइल 10000 पीपीएम @ 200 मिली या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 5 %WP 250 मिली + नीम ऑइल 10000 पीपीएम @ 200 मिली प्रति एकड़ छिड़काव करें।

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