उड़द की फसल में इस रोग से होगा नुकसान, जानें नियंत्रण के उपाय

leaf spot in black gram crop
  • भारी बारिश के बाद उड़द की फसल में लीफ स्पॉट की समस्या देखने की मिल सकती है। यह एक प्रमुख रोग है जो की सर्कोस्पोरा नामक फफूंद से होता है। यह एक मिट्टी एवं बीज जनित बीमारी हैl इसके लक्षण में संक्रमित पत्तियों पर छोटे, भूरे, पीले रंग के पानी से भरे गोलाकार धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं।

  • संक्रमण ज्यादातर पुरानी पत्तियों पर दिखाई देता है जिससे पत्तियां गल कर गिर जाती हैं। हरी फलियों पर छोटे पानी से लथपथ धब्बे नजर आते हैंl इन घावों एवं धब्बों के केंद्र अनियमित, हल्के भूरे रंग के हो जाते हैं और खुरदरी सतह के साथ थोड़े धंसे हुए हो जाते हैं।

  • इस रोग के बचाव के लिए रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें, बीज को उपचारित करके बुवाई करें एवं जल निकास की उचित व्यवस्था करें।

  • इसके नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63%@ 300 ग्राम प्रति एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 50% + ट्रायफ्लोक्सीस्त्रोबिन 25% WG 120 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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बेहतर पौध विकास हेतु प्याज की नर्सरी में ऐसे करें छिड़काव प्रबंधन

Spraying management in onion nursery for better plant development
  • लेट खरीफ और रबी प्याज की नर्सरी तैयार करने के लिए उचित समय मध्य अगस्त से मध्य सितम्बर का होता है।

  • अधिक लाभ कमाने के लिए प्याज को पहले नर्सरी में बोना बहुत आवश्यक है।

  • प्याज़ की नर्सरी की बुवाई के बाद छिड़काव प्रबंधन करना भी बहुत आवश्यक होता है l

  • यह छिड़काव कवक जनित रोगों व कीटों के नियंत्रण एवं पोषण प्रबंधन के लिए किया जाता है।

  • इस समय छिड़काव करने से प्याज़ की नर्सरी को अच्छी शुरुआत मिलती है।

  • बुवाई के 7 दिन बाद कवक जनित रोगों के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 30 ग्राम प्रति पंप की दर से छिड़काव करें।

  • कीट प्रबंधन के लिए थियामेंथोक्साम 25% WG@ 10 ग्राम प्रति पंप की दर से छिड़काव करें।

  • पोषण प्रबंधन के लिए ह्यूमिक एसिड @ 10 ग्राम प्रति पंप की दर से छिड़काव करें।

  • बुवाई के 20 दिन बाद मेटालेक्सिल 8% + मैनकोज़ेब 64% WP 50 ग्राम और फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG 8 ग्राम प्रति पंप की दर से छिड़काव करें।

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फसलों के लिए ह्यूमिक एसिड का महत्व

Use of humic acid in organic farming
  • ह्यूमिक एसिड खदान से उत्पन्न एक बहुपयोगी खनिज है। इसे सामान्य भाषा में मिट्टी का कंडीशनर कहा जा सकता है जो कि बंजर भूमि की उर्वरा को बढ़ाता है। यह मिट्टी की संरचना को सुधार कर उसे नया जीवनदान देता है।

  • इसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य मिट्टी को भुरभुरी बनाना होता है जिससे जड़ों का विकास अधिक हो सके।

  • ये प्रकाश संलेषण की क्रिया को तेज करता है जिससे पौधे में हरापन आता है और शाखाओं में वृद्धि होती है।

  • यह पौधों की तृतीयक जडों का विकास करता है जिससे की मृदा से पोषक तत्वों का अवशोषण अधिक होता है।

  • पौधों की चयापचयी क्रियाओं में वृद्धि कर फसल उत्पादन को भी यह बढ़ाता है।

  • पौधों में फलों और फूलों की वृद्धि कर फसल की उपज को बढ़ाने में भी यह सहायक होता है।

  • यह बीज की अंकुरण क्षमता बढाता है तथा पौधों को प्रतिकूल वातावरण से भी बचाता है।

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सोयाबीन में पीलेपन की समस्या से होगा नुकसान, ऐसे करें नियंत्रण

Yellowing problem in soybean will cause damage

  • वर्तमान समय में सोयाबीन की फसल में पीलेपन की समस्या काफी देखने को मिल रही है।

  • सोयाबीन के पत्तों का पीलापन, सफ़ेद मक्खी के कारण होने वाले वायरस रोग एवं मिट्टी के पीएच, पोषक तत्वों की कमी, कवक जनित बीमारियों, सहित कई कारकों के कारण हो सकता है।

  • इन्हीं सभी कारकों के आधार पर, सोयाबीन की फसल एवं उपज को, कोई नुकसान पहुँचाए बिना प्रबंधन करना बहुत आवश्यक है।

  • सोयाबीन की फसल में नए एवं पुराने पत्ते और कभी-कभी सभी पत्ते हल्के हरे रंग या पीले रंग के हो जाते हैं। इसके कारन टॉप पर क्लोरोटिक हो जाती है एवं गंभीर तनाव में पत्तियां मर भी जाती हैं। कभी कभी पूरे खेत में फसल पर पीलापन दिखाई दे सकता है।

  • इस समस्या में कवक जनित रोगों के समाधान लिए टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG @ 500 ग्राम/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% WP @ 300 ग्राम/एकड़, हेक्साकोनाज़ोल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ का छिड़काव किया जा सकता है।

  • जैविक उपचार में, ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए 00:52:34 को एक किलो/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • कीट प्रकोप के कारण यदि पीलापन हो तो एसिटामिप्रीड 20% SP @ 100 ग्राम/एकड़ या थियामेंथोक्साम 25% WG @ 100 ग्राम/एकड़ या फेनप्रोप्रेथ्रिन 10% EC @ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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सोयाबीन की 60-70 दिन की फसल अवस्था में ये आवश्यक छिड़काव जरूर करें

Do this necessary spraying at the 60-70 day crop stage of soybean
  • बुआई के 60-70 दिन बाद सोयाबीन की फसल में फली बनने वाली अवस्था होती है, इस समय पॉड ब्लाइट और पॉड बोरर का प्रकोप मुख्यतः देखा जाता है। इसके नियंत्रण के लिए निम्न छिड़काव कर सकते हैं।

  • क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC 60 मिली/एकड़ या फ्लूबेंडामाइड 20% डब्ल्यूजी @ 100 ग्राम/एकड़ + स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट आईपी 90% डब्ल्यू/डब्ल्यू + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड आईपी 3% डब्ल्यू/डब्ल्यू @ 20 ग्राम/एकड़ या कासुगामाइसिन 3% एसएल @ 400 मिली/एकड़ + टेबुकोनाजोल 10% + सल्फर 65% डब्ल्यूजी @ 400 ग्राम/एकड़ छिड़काव कर सकते हैं।

  • जैविक नियंत्रण में मेटाराइजियम @ 1 किग्रा या बेवेरिया बेसियाना + मेटाराइजियम @ 1 किग्रा/एकड़ की दर से 15 दिनों के अंतराल पर स्प्रे करें। इससे रस चूसक कीट, गर्डल बीटल और पत्ती खाने वाले कैटरपिलर के प्रकोप से बचा जा सकता है।

  • इस समय फली में दाना अच्छा बनने के लिए जल घुलनशील उर्वरक 0:0:50 @ 800 ग्राम प्रति एकड़ छिड़काव कर सकते हैं।

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धान में ब्लास्ट रोग के लक्षणों को पहचानें और करें बचाव

Identify and prevent the symptoms of Blast disease in paddy
  • इस रोग के लक्षण पौधे के सभी ऊपरी हिस्से जैसे पत्ते, पत्ती कॉलर, नोड्स, गर्दन और पेनिकल आदि पर दिखाई देते हैं।

  • इसके प्रारंभिक लक्षण के रूप में पौधों के ऊपर भूरे-हरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। छोटी धारिया पत्तियों पर दिखाई देती हैं और बाद में ये आपस में मिल जाती हैं जिससे धब्बो का आकार बड़ा हो जाता है। इन धब्बो का केंद्र स्लेटी रंग का दिखाई देता है।

  • पुराने धब्बे अण्डाकार या स्पिंडल के आकार के होते हैं जो भूरे से सफ़ेद रंग के होते हैं तथा इनके किनारे नेक्रोटिक दिखाई देते हैं। इनपर कई अनियमित धब्बे आपस में मिलकर पैच बनाते हैं।

  • नोडल संक्रमण की वजह से संक्रमित नोड पर दरार हो जाती है तथा कॉम टूट कर गिर जाता है।

  • आंतरिक संक्रमण भी पौधे के आधार पर से शुरू होता है, जिससे बाली सफेद होने लगती है। इसके लक्षण बोरर या पानी की कमी के जैसे दिखाई देते हैं।

  • इंटर्नोड पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं तथा रोग की गंभीर अवस्था में पेनिकल गिरने लगते हैं।

  • यदि इंटर्नोड का संक्रमण धान की दूधिया अवस्था से पहले होता है, तो कोई दाना नहीं बनता है, लेकिन यदि संक्रमण बाद में होता है, तो खराब गुणवत्ता के दाने बनते हैं।

  • इसके प्रबंधन के लिए टेबुकोनाज़ोल 50% + ट्रायफ्लॉक्सीस्ट्रोबिन 25% WG 150 ग्राम/एकड़ या ट्रायसायक्लोज़ोल 70% WP 120 ग्राम/एकड़ या आइसोप्रोथायोलीन 40% EC 300 मिली/एकड़ का छिड़काव करें।

  • जैविक प्रबंधन के लिए सूडोमोनास फ्लोरोसेंस 250 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें।

फसल की बुआई के साथ ही अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

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मोजेक विषाणु से सोयाबीन की फसल को होगा भारी नुकसान

Mosaic virus can cause heavy damage to soybean crop

सोयाबीन की फसल में लगने वाले मोजैक वायरस की घातकता हम इस बात से समझ सकते हैं की इसके कारण फसल के उपज में 8 से 35% तक का नुकसान हो सकता है।

इस वायरस को फैलाने वाला वाहक रस चूसक कीट ‘सफेद मक्खी’ होती है। मोजैक वायरस के लक्षण सोयाबीन की फसल की किस्मों के अनुसार भिन्न – भिन्न हो सकते हैं। इसके प्रकोप के कारण पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं एवं पत्तियो पर पीले- हरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। अपूर्ण विकास के कारण पत्तियाँ विकृत भी हो जाती हैं तथा नीचे की ओर मुड़ी हुए दिखाई देती हैं। इसके कारण पौधे का विकास सही से नहीं हो पाता है एवं फली अच्छे से नहीं बन पाती है। इन सब कारणों से उत्पादन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता हैl

इसके नियंत्रण के लिए सबसे पहले रस चूसक कीटों को नियंत्रित करना जरूरी होता है।

  • इसके लिए पहले स्प्रे में – थायनोवा 25 100 ग्राम प्रति एकड़

  • दूसरे स्प्रे में – नोवासेटा 100 ग्राम प्रति एकड़ और कासु बी 300 मिली प्रति एकड़

  • या फिर आप दूसरे स्प्रे में स्ट्रेप्टोसायक्लीन @ 20 ग्राम प्रति एकड़

  • तीसरा स्प्रे: मारकर @ 300 मिली प्रति एकड़ और शीथमार @ 300 मिली प्रति एकड़ छिड़काव करे।

  • ध्यान रहे की इन तीनों छिड़काव के मध्य 5 से 7 दिन का अंतराल जरूर रखेंl

  • इसके अलावा सफ़ेद मक्खी के नियंत्रण के लिए नोवासेटा 100 ग्राम/एकड़

  • या फिर मारकर @ 300 मिली/एकड़

  • या फिर पेजर @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • इसके जैविक नियंत्रण के लिए कालचक्र @ 1 किलो/एकड़

  • या फिर बवे कर्ब 250 ग्राम एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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कद्दू वर्गीय फसलों को फल मक्खी के प्रकोप से ऐसे बचाएं

Management of fruit fly in gourd crops
  • फल मक्खी के लार्वा फलों में छेद करके उनके भीतरी भाग को खाते हैं और इनसे ग्रसित फल खराब होकर गिर जाते हैं।

  • मक्खी प्रायः कोमल फलों पर ही अंडे देती है और अपने अंडे देने वाले भाग से फलों में छेद करके उन्हें हानि पहुचाती है। इन छेदों से, फलों का रस निकलता हुआ दिखाई देता है। अंततः छेद ग्रसित फल सड़ने लगते हैं।

  • इसके प्रबंधन के लिए ग्रसित फलों को इकट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए।

  • इन मक्खियों को नियंत्रित करने के लिये कद्दू वर्गीय फसलों की कतारों के बीच में मक्के के पौधों को उगाया जाना चाहिए। पौधे की ऊंचाई ज्यादा होने के कारण मक्खी पत्तों के नीचे अंडे देती है।

  • गर्मी के दिनों में, गहरी जुताई करके मृदा के अंदर उपस्थित, मक्खी की सुप्त अवस्था (प्यूपा) को नष्ट कर देना चाहिए।

  • कीट के प्रभावी नियंत्रण के लिए लाइट ट्रैप या फेरोमोन ट्रैप का उपयोग करें।

  • इसके अलावा थियामेंथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 9.5% ZC 80 मिली/एकड़ या प्रोफेनोफोस 40% + साइपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG 40 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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एजोटोबैक्टर जैव उर्वरक का फसलों के लिए महत्व

Importance of Azotobacter biofertilizer for crops
  • एजोटोबैक्टर एक जीवाणु है जो जैविक खाद के रूप में उपयोग किया जाता है।

  • यह एक जैविक उत्पाद है जो के फसलों में नत्रजन स्थिरीकरण, के लिए उपयोग किया जाता है।

  • यह जैव उर्वरक सभी प्रकार की गैर दलहनी फसलें (दलहनी जाति की फसलों को छोड़कर) में प्रयोग किया जा सकता है।

  • इसकी वजह से फसलों के उत्पादन में 10 से 20 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी होती है तथा फलों एवं दानों का प्राकृतिक स्वाद बना रहता है।

  • इस जैविक उर्वरक का उपयोग करने से 20 से 30 किग्रा० नत्रजन की बचत भी की जा सकती है।

  • इसका उपयोग करने से फसलों का अंकुरण शीघ्र होता है तथा जड़ों का विकास अधिक एवं शीघ्र होता है।

  • इसके उपयोग से फसलों में रोगजनकों के प्रति प्रतिरोधकता बढ़ जाती है।

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मिर्च की फसल में थ्रिप्स के प्रकोप को ऐसे करें नियंत्रित

How to control the attack of thrips in chilli crop

  • यह छोटे एवं कोमल शरीर वाले हल्के पीले रंग के कीट होते हैं, इस कीट का शिशु कीट एवं वयस्क कीट दोनों ही मिर्च की फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। यह पत्तियों की ऊपरी सतह पर अधिक मात्रा में एवं पत्तियों की निचली सतह पर भी पाए जाते हैं।

  • ये अपने तेज मुखपत्र के साथ मिर्च की फसल की पत्तियों और एवं फूलों का रस चूसते हैं। थ्रिप्स के प्रकोप से पत्तियां किनारों से भूरी हो जाती हैं, एवं प्रभावित पौधे की पत्तियां सुखी एवं मुरझाई हुई दिखाई देती हैं साथ ही विकृत होकर ऊपर की ओर मुड़ जाती हैं।

  • रासायनिक प्रबंधन: थ्रिप्स के प्रकोप के निवारण के लिए फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 250 मिली/एकड़ या स्पिनोसेड 45% SC @ 75 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक प्रबधन: इस कीट के नियंत्रण के लिए बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • मिर्च की फसल के अच्छे विकास एवं थ्रिप्स के कारण हुई क्षति में सुधार के लिए, सीवीड एक्सट्रेक्ट + एमिनो एसिड + फल्विक एसिड (विगरमैक्स जेल) का 400 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव अवश्य करें।

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