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कपास की फसल में बुवाई के 80-100 दिन बाद डेंडू अवस्था के समय डेंडू के विकास के साथ-साथ डेंडू के आकार को बढ़ाने और रस चूसने वाले कीट जैसे-एफिड, जैसिड, सफेद मक्खी, थ्रिप्स, माइट्स, डेंडू को नुकसान पहुंचाने वाली पिंक बॉल वर्म(गुलाबी सुंडी) आदि कीट एवं कवक जनित बीमारियों जैसे डेंडू की सड़न आदि के नियंत्रण के हेतु छिड़काव उपयोग में ला सकते हैं।
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गुलाबी सुंडी के प्रबंधन के लिए प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC@ 400 मिली/एकड़ या फेनप्रोप्रेथ्रिन 10% EC @ 400 मिली/एकड़ या नोवालूरान 5.25% + इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% SC @ 600 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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रस चूसक कीट प्रबंधन हेतु डायफैनथीयुरॉन 50% WP @ 250 ग्राम/एकड़ या पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% EC @ 250 मिली/एकड़ या इमिडाक्लोप्रिड 17.8%SL@ 100 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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कवक जनित रोगों के लिए थायोफिनेट मिथाइल 70% WP @300 ग्राम/एकड़ या हेक्साकोनाज़ोल 5% SC @ 300 मिली/एकड़ या मैंकोजेब 75% WP@ 500 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें।
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इस अवस्था में कपास की फसल को अधिक पोषण की आवश्यकता होती है इसलिए 0:0:50 @ 1 किलो प्रति एकड़ का छिड़काव कर सकते हैं। यह डेंडू के विकास के साथ-साथ डेंडू के आकार को बढ़ाने में भी मदद करता है।
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