सोयाबीन की फसल को मकड़ी के प्रकोप से ऐसे बचाएं

Mites management in soybean crop
  • यह कीट छोटे एवं लाल रंग के होते है जो सोयाबीन की फसल के कोमल भागों जैसे पत्ती, फूल, फली एवं टहनियों पर भारी मात्रा में पाए जाते हैं। जिन पौधों पर मकड़ी का प्रकोप होता है उनपर जाले दिखाई देते हैं।

  • यह कीट पौधे के कोमल भागों का रस चूसकर उनको कमज़ोर कर देते हैं एवं अंत में यह पौधे की बढ़वार पर प्रभाव डालते हैं।

  • रासायनिक प्रबंधन: सोयाबीन की फसल में मकड़ी कीट के नियंत्रण के लिए प्रॉपरजाइट 57% EC @ 400 मिली/एकड़ या स्पाइरोमैसीफेन 22.9% SC @ 200 मिली/एकड़ या एबामेक्टिन 1.9% EC @ 150 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार: जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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पत्ता गोभी की फसल में नरम सड़न रोग की ऐसे करें रोकथाम

How to control soft rot disease in cabbage crop
  • पत्ता गोभी का एक प्रमुख रोग है इरविनिया कैरोटोवोरा और इस बीमारी में पत्तियों पर छोटे, जलशक्त धब्बे बन जाते हैं जो बाद में तेजी से पूरी पत्ती पर फ़ैल जाते हैं।

  • इसके कारण ऊत्तक नरम और मुलायम हो जाते हैं साथ ही कुछ ही दिनों में प्रभावित पौधा गिर जाता है।

  • इस बीमारी के कारण प्रभावित जगह से दुर्गंध आती है। प्रभावित फूल पानी से भरे थैले की तरह पौधे से लटक जाते हैं।

  • इस बीमारी के प्रभावी नियंत्रण के लिए खेत में पौधे को उचित पंक्तियों में लगाएं जिससे उचित जल निकासी बनी रहे।

  • रासायनिक नियंत्रण के लिए वेलीडामाइसीन 3% SL @ 300 मिली/एकड़ या स्ट्रेप्टोमायसिन सल्फेट 90% + टेट्रासायक्लीन हाइड्रोक्लोराइड 10% W/W @ 24 ग्राम/एकड़ या कासुगामाईसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP @ 300 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें।

  • जैविक नियंत्रण के लिए स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 250 ग्राम प्रति एकड़ का छिड़काव करें।

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मिर्च की फसल में ऐसे करें जीवाणु पत्ती धब्बा रोग का नियंत्रण

How to control Bacterial leaf spot disease in chilli crops
  • इस रोग के कारण पत्तियों के ऊपर छोटे, वृत्ताकार या अनियमित, गहरे भूरे या काले रंग के धब्बे बन जाते हैं। जैसे-जैसे ये धब्बे आकार में बढ़ते हैं वैसे वैसे किनारे से हल्के और केंद्र से गहरे काले रंग के होते जाते हैं।

  • ये धब्बे अनियमित घावों का निर्माण करते हैं। गंभीर रूप से प्रभावित पत्तियां क्लोरोटिक हो जाती हैं और गिर जाती हैं।

  • तना संक्रमण के कारण शाखाओं में केंकर युक्त वृद्धि होती है और वे मुरझा जाते हैं। फलों पर, हल्के पीले रंग की सीमा वाले गोल, उभरे हुए पानी से लथपथ धब्बे बनते हैं।

  • ये धब्बे भूरे रंग में बदल जाते हैं जिससे केंद्र में एक अवसाद पैदा हो जाता है जिसमें जीवाणु की चमकदार बूंदें देखी जा सकती हैं।

  • नियंत्रण: पुरानी फसल के अवशेष को खेत से समाप्त कर देना चाहिए। साथ ही रोग मुक्त पौधों से बीज प्राप्त करना चाहिए।

  • नर्सरी को उस मिट्टी में लगाना चाहिए जहां मिर्च कई वर्षों से नहीं उगाई गई हो।

  • इसके रासायनिक नियंत्रण के लिए कासुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP @ 300 ग्राम प्रति एकड़ या स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90% + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10% W/W @ 24 ग्राम प्रति एकड़ का छिड़काव करें।

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प्याज व लहसुन समृद्धि किट से मिलेगी स्वस्थ फसल और बंपर उपज

Onion and garlic prosperity kit will get healthy crop and bumper yield
  • समृद्धि किट दरअसल मिट्टी में पाए जाने वाले आवश्यक पोषक तत्वों को घुलनशील रूप में परिवर्तित करके पौधे के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

  • यह मिट्टी में पाए जाने वाली हानिकारक कवकों को खत्म करके प्याज और लहसुन के पौधे को होने वाले नुकसान से बचाता है।

  • यह उत्पाद उच्च गुणवत्ता वाले प्राकृतिक अवयवों से बना है, यह मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की गतिविधि को बढ़ाने में सहायक है।

  • मिट्टी के पीएच को बेहतर बनाने में भी यह मदद करता है और जड़ों को एक अच्छी शुरुआत प्रदान करता है, ताकि जड़ पूरी तरह से विकसित हो सके, जो फसल के अच्छे उत्पादन का कारण बनती है।

  • यह मिट्टी की संरचना में सुधार करके मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता को कम नहीं होने देता है, जड़ प्रणाली द्वारा पोषक तत्वों में सुधार से जड़ विकास को बढ़ावा देता है।

  • जड़ों के द्वारा मिट्टी से पोषक तत्वों के अवशोषण में भी यह मदद करता है साथ ही मिट्टी में सूक्ष्म जीवो की गतिविधि को बढ़ावा देता है।

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फ़सलों में पोटाश का महत्व

Importance of Potash in Crops
  • अच्छी फसल उत्पादन के लिए पोटाश एक आवश्यक पोषक तत्व होता है।

  • पोटाश की संतुलित मात्रा फसल में बहुत प्रकार की प्रतिकूल परिस्थिति जैसे बीमारियां, कीट, रोग, पोषण की कमी आदि के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।

  • यह दानों में चमक लाने तथा वज़न बढ़ाने में साहयक होता है एवं उपज की गुणवत्ता भी इससे बढ़ती है।

  • पोटाश के द्वारा फसल में अच्छा जड़ विकास एवं मज़बूत तना विकास होता है जिसके फलस्वरूप फसल मिट्टी में अपनी पकड़ अच्छी तरह से बना लेती है।

  • पोटाश की संतुलित मात्रा मिट्टी की जल धारण क्षमता का विकास करती है।

  • पोटाश फसलों की पैदावार एवं गुणवत्ता बढ़ाने वाला तत्व है।

  • इसकी कमी से फसल का विकास रुक जाता है और पत्तियो का रंग गहरा नहीं हो पाता है।

  • पोटाश की कमी से फसल की पुरानी पत्तियां किनारे से पीली पड़ जाती है एवं पत्तियों के ऊतक मर जाते हैं, बाद में पत्तियां सूख जाती हैं।

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जैविक नियंत्रक क्या हैं? जानें मिट्टी में इनकी उपयोगिता एवं फसल को मिलने वाले लाभ

What are Biological control agents? Their utility and benefits to soil and crop
  • पौधे के कीटों को नियंत्रित करने के लिए जिन जैविक कीटनाशकों और कवाकनाशकों का उपयोग किया जाता है उन्हीं नियंत्रकों को बायोकन्ट्रोल एजेंट या जैविक नियंत्रक कहा जाता है।

  • ये जैविक नियंत्रण कीटों जैसे कि नेमाटोड, खरपतवार, कीड़े और घुन को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

  • जैविक नियंत्रण एजेंट अपने प्राकृतिक दुश्मनों के साथ-साथ पौधों की मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पायी जाने वाली प्रजातियों को संतुलित बनाये रखने में मदद करते हैं।

  • जैविक नियंत्रक को एक जीवित जीव के अनुप्रयोग के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। अर्थात दूसरे जीवों को नियंत्रित करने वाले इस प्रक्रिया मे जो जीव भाग लेते हैं उनको जैविक नियंत्रक कहते हैं।

  • जैविक नियंत्रक के प्रकार है कीटनाशक, कवकनाशी बैक्टीरिया वायरस इत्यादि।

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आलू की उन्नत किस्में एवं खेत तैयार करने की विधि

Improved varieties of potato and method of preparation of the field
  • आलू की सामान्यता लगाई जाने वाली किस्म में सोलनम ट्यूबरोसम मुख्य है। इसके पौधे छोटे और मोटे तने वाले तथा इनकी पत्तियों का आकार बड़ा व अपेक्षाकृत लंबा होता है। आलू की किस्मों में आमतौर पर किसान भाई कुफरी ज्योति, कुफरी मुथु, कुफरी स्वर्णा, कुफरी मलार, कुफरी सोगा, कुफरी आनंद, कुफरी चमत्कार, कुफरी अलंकार और कुफरी गिरिराज का चुनाव कर सकते हैं।

  • उन्नत बीज किस्म के चयन के बाद बारी आती है आलू के खेत की तैयारी की, आलू की फसल के अच्छे ट्यूब्राइजेशन के लिए एक अच्छी तरह से भुरभुरी मिट्टी या सीड बेड की आवश्यकता होती है। खरीफ फसल की कटाई के तुरंत बाद खेत में मिट्टी पलटने वाले हल से एक बार 20-25 सेमी गहरी जुताई करें। इसके बाद, दो से तीन क्रॉस हैरोइंग या स्थानीय हल से चार से पांच जुताई करें, यह सतह को चिकना और समतल बनाने के लिए आवश्यक है। बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी बनाए रखें।

  • आलू की बुवाई आप रिज तथा फरो जैसे प्रचलित बिधियों से खेत को तैयार करके कर सकते हैं।

  • जिस मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा कम हो उस मिट्टी में 4 मैट्रिक टन प्रति एकड़ गोबर की ठीक से सड़ी हुई खाद को भूमि तैयार करने के दौरान देना चाहिए, यह मात्रा रोपण के एक पखवाड़े पहले दिया जाना चाहिए। बता दें की आलू के पौधे को अधिक मात्रा में पोषक तत्वों की आवश्यकता होती हैं।

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प्याज़ में आ रहे बैंगनी धब्बा रोग के लक्षणों की ऐसे करें पहचान व नियंत्रण

How to recognize Purple blotch disease in onion

प्याज में आने वाले बैगनी धब्बा रोग को अंग्रेजी में Purple blotch के नाम से भी जाना जाता है। यह एक मिट्टी जनित रोग है। इस रोग के कारण पत्तियों और डंठलों पर छोटे, धँसे हुए, सफेद धब्बों के साथ बैंगनी रंग के केंद्र बन जाते हैं। इसके घाव पत्तियों/डंठल को घेर लेते हैं और उनके गिरने का कारण बन सकते हैं। संक्रमित पौधे बल्ब विकसित करने में विफल हो जाते हैं।

रोकथाम के उपाय:

  • बुआई के लिए स्वस्थ बीजों का प्रयोग करें।

  • 2-3 साल का फसल चक्र अपनाएँ एवं उचित जल निकास की व्यवस्था करें।

  • नाइट्रोजन और फॉस्फोरस युक्त उर्वरकों की अनुसंशित मात्रा का उपयोग करें।

  • बुआई के पूर्व बीजों को गर्म पानी में 20 मिनट के लिए 50 डिग्री सेल्सियस पर उपचारित करें साथ ही प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।

मृदा उपचार: इस रोग से सुरक्षा के लिए, बुआई के पूर्व मिट्टी में ट्राइकोडर्मा विरिडी 500 ग्राम को 4 से 5 टन अच्छे से सड़ी हुई गोबर की खाद के साथ मिलाकर प्रति एकड़ समान रूप से फैलाएं। 30 दिन के बाद ट्राइकोडर्मा विरिडी 500 ग्राम/एकड़ का पुनः उपयोग करें।

रासायनिक नियंत्रण:

बीज उपचार: बुआई के पूर्व बीजों को करमानोवा 2.5 ग्राम/किलो ग्राम बीज के हिसाव से उपचारित करें।

फसल में रोग के लक्षण दिखाई देने पर रोकथाम के उपाय: रोग के प्रारंभिक लक्षण दिखाई देने पर हेक्साकोनाज़ोल 5% SC (नोवाकोन), @ 400 मिली + सिलिकोमैक्स (स्टीकर) @ 50 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें या किटाज़िन 48% ईसी @ 200 मिली +  सिलिकोमैक्स (स्टीकर), @ 50 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें या फिर जैविक नियंत्रण के लिए स्यूडोमोनास फ्लोरसेंस (मोनास कर्ब @250 ग्राम 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें)

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रबी फसलों में बुआई के पूर्व मिट्टी उपचार का महत्व

Importance of soil treatment before sowing of Rabi crops
  • किसी भी मौसम में फसल बुआई के पूर्व मिट्टी उपचार करना बहुत आवश्यक होता है।

  • मिट्टी की उर्वरता और पोषक तत्व प्रबंधन फसल से अच्छी उपज प्राप्त करने एवं रोग मुक्त फसल के लिए बहुत महत्वपूर्ण कारक होते हैं। यह फसल की उपज के साथ साथ गुणवत्ता पर भी सीधा प्रभाव डालते हैं।

  • खरीफ के मौसम के बाद रबी की बुआई के पूर्व मिट्टी में बहुत अधिक नमी होने के कारण कवक जनित रोगों एवं कीट जनित रोगों का बहुत अधिक प्रकोप होता है।

  • इन रोगों के निवारण के लिए मिट्टी उपचार कवकनाशी एवं कीटनाशी से किया जाता है।

  • मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए भी मिट्टी उपचार बहुत आवश्यक होता है। इसके लिए मुख्य पोषक तत्वों का उपयोग किया जाता है।

  • मिट्टी उपचार करने से मिट्टी की सरचना में सुधार होता है एवं उत्पादन भी काफी हद तक बढ़ जाता है।

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कद्दू वर्गीय फसलों में कुकुम्बर मोज़ेक विषाणु जनित रोगों का प्रबंधन

Management of Cucumber mosaic viral diseases in cucurbits
  • कद्दू वर्गीय फसलों में मोज़ेक विषाणु जनित रोग आम तौर पर सफेद मक्खी तथा एफिड से फैलता है।

  • इस रोग में सामान्यतः पत्तियों पर अनियमित हल्की व गहरी हरी एवं पीली धारियां या धब्बे दिखाई देते हैं।

  • पत्तियों में घुमाव, अवरुद्ध, सिकुड़न एवं पत्तियों की शिराएं गहरी हरी या पीली हल्की हो जाती हैं।

  • पौधा छोटा रह जाता है और फल फूल कम लगते है या झड़ कर गिर जाते हैं।

  • संक्रमित फल अक्सर विकृत और फीके पड़ जाते हैं, छोटे रह जाते हैं और गंभीर रूप से संक्रमित होने पर नगण्य मात्रा में बीज पैदा करते हैं।

  • इस रोग से बचाव के लिए सफेद मक्खी और एफिड को नियंत्रित करना चाहिए।

  • इस प्रकार के कीटों से फसल की रक्षा हेतु 10-15 दिन के अंतराल पर एसिटामिप्रीड 20% SP @ 100 ग्राम या एसीफेट 75% SP @ 300 ग्राम या बायफैनथ्रिन 10% EC @ 300 मिली या डायफैनथीयुरॉन 50% WP @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक नियंत्रण के लिए मेट्राजियम @ 1 किलो/एकड़ या बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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