मिर्च की फसल में डैम्पिंग ऑफ (आर्द्र गलन) के लक्षण और नियंत्रण के उपाय ?

क्षति के लक्षण

  • इस रोग का प्रकोप पौधे की छोटी अवस्था नर्सरी में एवं रोपाई के बाद होता है। इस रोग का कारण पीथियम  एफनिडर्मेटम, राइजोक्टोनिया सोलेनी फफूंद है, जिस वजह से नर्सरी में पौधा भूमि की सतह के पास से गल कर गिर जाता है।

रोकथाम / नियंत्रण के उपाय 

  • मिर्च की नर्सरी उठी हुयी क्यारी पद्धति से तैयार करें, जिसमें  जल निकास की उचित व्यवस्था हो।

  • बीज की  बुआई के पूर्व बीज को कॉम्बेट (ट्राइकोडर्मा विरिडी) @ 1 ग्राम + मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस) @ 1 ग्राम, प्रति 100 ग्राम बीज के हिसाब से बीज को उपचारित करें | 

  • नर्सरी में समस्या दिखाई देने पर, रोको (थायोफिनेट मिथाइल 70%डब्ल्यू/डब्ल्यू) @ 2 ग्राम + मैक्सरुट (ह्यूमिक, फ्लुविक एसिड) @ 1 ग्राम, प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव या ड्रेंचिंग करें।

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सब्जी वर्गीय फसलों में सूक्ष्म पोषक तत्व क्यों है जरूरी ?

भूमि में  मुख्य पोषक तत्वों के लगातार इस्तेमाल से सूक्ष्‍म पोषक तत्वों की कमी दिनों दिन बढ़ती जा रही है। किसान मुख्य पोषक तत्वों का उपयोग फसलों में ज्यादा करते है एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे – तांबा, जिंक, लोहा, मोलिब्डेनम, बोरॉन, मैंगनीज आदि का लगभग नगण्य उपयोग करते हैं। पौधों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होने पर उसके लक्षण पौधों में प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देने लगता है। फसल में इन पोषक तत्वों की कमी  इन्हीं तत्वों की पूर्ति के माध्यम से की जा सकती है।  

  • मॉलिब्डेनम कार्य:- पौधों में नाइट्रेट के अवशोषण के बाद मोलिब्डेनम नाइट्रेट को तोड़ने का काम करता है, जिससे नाइट्रेट पौधों के विभिन्न भागो में चला जाता है। इस कारण पौधे में नाइट्रोजन की कमी नहीं होती है और पौधे का विकास अच्छी तरह से होता है। मोलिब्डेनम जड़ ग्रंथि जीवाणुओं द्वारा वायुमंडलीय नाइट्रोजन के निर्धारण में मदद करता है। इसकी कमी से फूलगोभी में व्हिपटेल रोग होता है।

  • आयरन / लोहा:- आयरन क्लोरोफिल निर्माण में सहायक होता है। पौधों में श्वसन तथा प्रकाश-संश्लेषण के लिए आवश्यक है, इसकी कमी से पौधों में  हरिमाहीनता हो जाता है।

  • जिंक / जस्ता:- ज़िंक पौधों में एंजाइम क्रिया को उत्तेजित करता है। यह हार्मोन्स बनाने में सहायक होता है। साथ ही यह पौधे में रोग रोधक क्षमता को बढ़ाता है एवं नाइट्रोजन और फास्फोरस के उपयोग में सहायक होता है। 

  • तांबा/कॉपर:- तांबा एंजाइम में इलेक्ट्रॉन के स्थानांतरण का काम करता है। ये एंजाइम पौधों में ऑक्सीडेशन और रिडेक्शन क्रिया में सहयोग करता है। इसी क्रिया के द्वारा पौधों का विकास एवं प्रजनन होता है। 

  • बोरॉन:- फूलों में परागण, परागनली का निर्माण, फल व दाना बनाना, पादप हार्मोन के उपापचय एवं पौधे के सभी अंगों तक पहुंचाने का कार्य बोरान तत्व का है।

  • मैंगनीज:- यह क्लोरोफिल निर्माण में सहायक होता है। विभिन्न क्रियाओं में यह उत्प्रेरक का कार्य करता है। पौधों में मैंगनीज की कमी से पत्तियों में छोटे-छोटे भूरे धब्बे बन जाते हैं। इनकी कमी के लक्षण दिखाई देने पर, सूक्ष्म पोशाक तत्व, मिक्सॉल (लौह, मैंगनीज, जस्ता, तांबा, बोरॉन, मोलिब्डेनम) @ 250 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।

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मिर्च की फसल में रस चूसक कीट की पहचान और नियंत्रण के उपाय

सफेद मक्खी

  • इसके शिशु एवं वयस्क पत्तियों की निचली सतह पर चिपक कर रस चूसते हैं, जिससे पत्तियां ऊपर की ओर मुड़ जाती हैं।

  • इस कीट का वयस्क हल्का पीला तथा इसके पंख सफेद रंग के होते हैं। ये कीट लिफ़ कर्ल रोग और पीला मोज़ैक वायरस को फैलाने का कारण बनते हैं। 

रोकथाम 

इसकी रोकथाम के लिए  प्रूडेंस  (पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% ईसी) @ 250 मिली  + सिलिको मैक्स @ 50 मिली प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।  

2 दिन बाद प्रिवैंटल  BV @ 100 ग्राम  प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।  

थ्रिप्स कीट: 

  • मिर्च की फसल में थ्रिप्स कीट भयंकर नुकसान पहुंचाता है। इन कीटों के वयस्क और शिशु दोनों पौधें को नुकसान पहुँचाते हैं। ये कीट मिर्च की पत्तियों के निचली सतह पर चिपका रहता है और पत्तियों का रस चूसता है। 

  • जिससे मिर्च की पत्तियों में झुर्रियां दिखाई देने लगती हैं तथा ये पत्तियां ऊपर की ओर मुड़ कर नाव के समान हो जाती है। 

  • अधिक प्रकोप होने पर पत्तियों का गुच्छा बन जाता है। जिसके कारण  उत्पादन में कमी आती है. ये कीट वायरस जनित रोग को फैलाने में सहायक है | 

रोकथाम 

बेनेविया (सायनट्रानिलीप्रोल 10.26% ओडी) @ 240 मिली + सिलिको मैक्स 50 मिली प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें। 2 दिन के बाद प्रिवैंटल  BV 100 ग्राम,प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें। 

मकड़ी:

यह बहुत ही छोटे कीट होते है जो पत्तियों की सतह से रस चूसते है जिससे पत्तियां नीचे की ओर मुड़ जाती है। पत्तियों को खाने से सतह पर सफेद से पीले रंग के धब्बे हो जाते है जैसे जैसे संक्रमण अधिक होता जाता है, पहले पत्तियाँ चांदी के रंग की दिखने लगती है और बाद में ये पत्तियां गिर जाती है.

नियंत्रण के उपाय 

इसके नियंत्रण के लिए ओमाइट (प्रोपरजाईट 57% EC) @ 400 मिली + सिलिको मैक्स @ 50 मिली प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।

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देश के विभिन्न मंडियों में 5 जुलाई को क्या रहे फलों और फसलों के भाव?

Todays Mandi Rates

देश के विभिन्न शहरों में फलों और फसलों की कीमतें क्या हैं?

मंडी

फसल

न्यूनतम मूल्य (किलोग्राम में)

अधिकतम मूल्य (किलोग्राम में)

गुवाहाटी

प्याज़

11

गुवाहाटी

प्याज़

13

गुवाहाटी

प्याज़

15

गुवाहाटी

प्याज़

16

गुवाहाटी

प्याज़

11

गुवाहाटी

प्याज़

13

गुवाहाटी

प्याज़

15

गुवाहाटी

प्याज़

16

गुवाहाटी

प्याज़

15

गुवाहाटी

प्याज़

19

गुवाहाटी

प्याज़

21

गुवाहाटी

प्याज़

22

गुवाहाटी

लहसुन

22

27

गुवाहाटी

लहसुन

28

35

गुवाहाटी

लहसुन

35

40

गुवाहाटी

लहसुन

40

42

गुवाहाटी

लहसुन

23

26

गुवाहाटी

लहसुन

27

35

गुवाहाटी

लहसुन

35

40

गुवाहाटी

लहसुन

40

42

जयपुर

प्याज़

11

12

जयपुर

प्याज़

13

14

जयपुर

प्याज़

15

16

जयपुर

प्याज़

4

5

जयपुर

प्याज़

6

7

जयपुर

प्याज़

8

9

जयपुर

प्याज़

10

11

जयपुर

लहसुन

12

15

जयपुर

लहसुन

18

22

जयपुर

लहसुन

28

35

जयपुर

लहसुन

38

45

जयपुर

लहसुन

10

12

जयपुर

लहसुन

15

18

जयपुर

लहसुन

22

25

जयपुर

लहसुन

30

32

रतलाम

आलू

20

22

रतलाम

टमाटर

30

35

रतलाम

हरी मिर्च

25

30

रतलाम

अदरक

23

25

रतलाम

कद्दू

10

14

रतलाम

आम

40

45

रतलाम

आम

32

रतलाम

आम

30

33

रतलाम

पपीता

14

16

रतलाम

नींबू

25

35

रतलाम

फूलगोभी

15

18

रतलाम

प्याज़

4

6

रतलाम

प्याज़

8

11

रतलाम

प्याज़

12

14

रतलाम

प्याज़

14

15

रतलाम

लहसुन

7

14

रतलाम

लहसुन

15

21

रतलाम

लहसुन

26

32

रतलाम

लहसुन

35

40

नासिक

प्याज़

3

6

नासिक

प्याज़

5

9

नासिक

प्याज़

7

11

नासिक

प्याज़

11

15

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कपास की फसल में 20-25 दिन की अवस्था में पोषक तत्व प्रबंधन

कपास फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए पोषण हेतु आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा मिट्टी में होना आवश्यक है। अगर मिट्टी में ये पोषक तत्व फसल की आवश्यकतानुसार नहीं है और फसल लगाने के पूर्व या जब भी फसल इनकी कमी देखी जाए तो उनकी उचित मात्रा देना अच्छी फसल लेने के लिए परम आवश्यक है

कपास जब 20 से 25 दिन की हो जाये तब यूरिया 40 किलो + डीएपी 50 किग्रा + सल्फर 90% डब्ल्यू जी 5 किग्रा + जिंक सल्फेट 5 किग्रा को आपस में मिलाकर मिट्टी में मिलाएं। 

2 दिन बाद  19:19 :19 @1 किलो + नोवामैक्स (जिब्रेलिक एसिड 0.001%)@300 मिली प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।

अगर बुवाई के समय  कपास समृद्धि किट का उपयोग नहीं किये है, तो अभी इन खाद के साथ खेत में अवश्य ही डाले।

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सोयाबीन की फसल में खाद एवं उर्वरक प्रबंधन कैसे करें?

किसान भाइयों, सोयाबीन की उच्च पैदावार के लिए उचित पोषण प्रबंधन और उर्वरकों का प्रयोग बहुत आवश्यक है। सोयाबीन में पोषक तत्वों की मांग फसल बढ़वार से लेकर बीज भराव तक अधिकतम होती है। 

बुवाई के 1 सप्ताह पूर्व खेत की तैयारी करते समय गोबर की खाद 4 टन + कालीचक्र (मेट्राजियम) @ 2 किलोग्राम प्रति एकड़ मिट्टी में डालें।

बुवाई के समय सोयाबीन समृद्धि किट (एक किट प्रति एकड़) “किट में शामिल उत्पाद हैं – प्रो कॉम्बिमैक्स (एनपीके बैक्टीरिया का कंसोर्टिया) – 1 किलोग्राम + समुद्री शैवाल, अमीनो, ह्यूमिक (ट्राईकॉट मैक्स )- 4 किलोग्राम), सोयाबीन के लिए राइजोबियम (जैव वाटिका आर सोया)” – 1 किलोग्राम, प्रति एकड़ के हिसाब से अवश्य प्रयोग करें। 

साथ ही एमओपी 20 किलोग्राम, डीएपी 40 किलोग्राम, या (एसएसपी के साथ डीएपी 25 किलोग्राम), एसएसपी 50 किलोग्राम, अमोनियम सल्फेट/यूरिया एसएसपी के साथ 15/8 किलोग्राम), केलडान (कार्टाप हाइड्रोक्लोराइड) 5 किलोग्राम या दंतोत्सु (क्लोथियानिडिन 50% डब्ल्यूडीजी 100 ग्राम, जिंक सल्फेट 3 किलोग्राम, सल्फर 90% डब्ल्यू जी 5 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से अवश्य प्रयोग करें।

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जानिए, कपास की फसल में फेरोमोन ट्रैप क्यों लगाना चाहिए?

कपास, भारत की प्रमुख नकदी फसल है। इसे सफेद सोना भी कहते हैं। भारत में अनेक कीट-पतंगों और रोगों से कपास की पैदावार काफी कम मिलती है। कपास को अनेक किस्म की सुंडियों (पतंगों) से भी काफी नुकसान होता है। सुंडियों का प्रकोप उस वक़्त ज़्यादा होता है जब कपास के पौधे 50  से 65 दिन के हो जाते हैं। इससे बचाव का एकमात्र उपाय है फेरोमोन ट्रैप, जबकि बाकी रोगों और कीटों के लिए अन्य उपचार मौजूद हैं।

फेरोमोन ट्रैप के इस्तेमाल से सुंडियों की रोकथाम करके कपास के प्रति हेक्टेयर उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।

फेरोमोन ट्रैप क्या है:- फेरोमोन ट्रैप में अलग-अलग प्रजातियों के नर वयस्क कीटों को आकर्षित करने के लिए कृत्रिम रबर का ल्यूर (सेप्टा) लगाया जाता है। इसमें उसी प्रजाति के नर को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए रसायन लगा होता है। आकर्षित नर पतंग ट्रैप में लगी प्लास्टिक की थैली में आने के बाद वहाँ फंसकर मर जाते हैं। फेरोमोन ट्रैप का प्रयोग सुंडियों को ग़ैर-रासायनिक तरीके से खत्म करने का इकलौता तरीका है।

फेरोमोन ट्रैप से जुड़ी सावधानियां:-

  • ट्रैप में उपयोग होने वाले ल्यूर (सेप्टा) को 15 दिनों के बाद अवश्य ही बदलें।

  • ल्यूर बदलने से पहले और बाद में हाथों को साबुन से अच्छी तरह अवश्य धो लें।

  • हर रोज़ सुबह लगाये गये सभी ट्रैप का निरीक्षण करें और फंसे हुए पतंगों का निरीक्षण करने के बाद ही उन्हें नष्ट करें, और सुझाये गये कीटनाशक का छिड़काव करें।

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धान समृद्धि किट का उपयोग कब और कैसे करें?

किसान भाइयों, धान खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली प्रमुख अनाज वर्गीय फसलों में से एक है। इस समय आप धान की फसल की रोपाई कर रहे हैं। ऐसे समय आप फसल की बेहतर वृद्धि के लिए रोपाई के समय खेत में आवश्यकतानुसार ग्रामोफोन धान समृद्धि किट का प्रयोग करें। इस किट का उपयोग करने से फसल का विकास बहुत अच्छा होता है और उत्पादन में वृद्धि होती है। 

इस प्रकार करें किट का उपयोग 

धान की रोपाई के समय या रोपाई के 10-15 दिन बाद धान समृद्धि किट (ताबा जी – 4 किलोग्राम, टी बी 3 – 3 किलोग्राम, मैक्स माइको – 2 किलोग्राम) @ 1 किट को उस समय दिए जाने वाले उर्वरक के साथ मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में भुरकाव करें।

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देश के विभिन्न मंडियों में 2 जुलाई को क्या रहे फलों और फसलों के भाव?

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देश के विभिन्न शहरों में फलों और फसलों की कीमतें क्या हैं?

मंडी

फसल

न्यूनतम मूल्य (किलोग्राम में)

अधिकतम मूल्य (किलोग्राम में)

रतलाम

आलू

22

23

रतलाम

टमाटर

40

45

रतलाम

हरी मिर्च

24

28

रतलाम

अदरक

28

30

रतलाम

कद्दू

10

14

रतलाम

आम

37

रतलाम

आम

32

रतलाम

आम

30

33

रतलाम

केला

22

24

रतलाम

पपीता

14

16

रतलाम

अनार

65

70

रतलाम

प्याज़

4

6

रतलाम

प्याज़

8

11

रतलाम

प्याज़

12

14

रतलाम

प्याज़

17

रतलाम

लहसुन

7

11

रतलाम

लहसुन

12

19

रतलाम

लहसुन

20

31

रतलाम

लहसुन

33

35

गुवाहाटी

प्याज़

11

गुवाहाटी

प्याज़

13

गुवाहाटी

प्याज़

15

गुवाहाटी

प्याज़

16

गुवाहाटी

प्याज़

11

गुवाहाटी

प्याज़

13

गुवाहाटी

प्याज़

15

गुवाहाटी

प्याज़

16

गुवाहाटी

प्याज़

15

गुवाहाटी

प्याज़

19

गुवाहाटी

प्याज़

21

गुवाहाटी

प्याज़

22

गुवाहाटी

लहसुन

22

27

गुवाहाटी

लहसुन

28

35

गुवाहाटी

लहसुन

35

40

गुवाहाटी

लहसुन

40

42

गुवाहाटी

लहसुन

23

26

गुवाहाटी

लहसुन

27

35

गुवाहाटी

लहसुन

35

40

गुवाहाटी

लहसुन

40

42

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भिंडी की फसल में सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा की पहचान एवं रोकथाम

किसान भाइयों, भिंडी की फसल में सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग एक संक्रामक बीमारी है। यह मिर्च, बैंगन, भिंडी, पपीता, अनार, मूंगफली, शकरकंद आदि फसलों का प्रमुख रोग है।

 क्षति के लक्षण:- 

  • यह रोग सर्कोस्पोरा मालाएंसिस नामक फफूंद के कारण होता है।

  • रोग में पत्तियों पर कोणीय से लेकर अनियमित धब्बे बनते हैं। 

  • जो कि बाद में भूरे या स्लेटी भूरे रंग के हो जाते हैं,अधिक संक्रमण की स्थिति में यह धब्बे पूरी पत्ती पर फ़ैल जाते हैं, जिसके कारण प्रभावित पत्तियाँ जल्दी ही गिर जाती हैं। 

रोकथाम –  

रोग के लक्षण दिखाई देने पर जटायु (क्लोरोथैलोनिल 75% डब्ल्यूपी) @ 400 ग्राम या नोवाकोन (हेक्साकोनाज़ोल 5% एससी) @ 400 मिली + सिलिको मैक्स @ 50 मिली + नोवामैक्स (जिब्रेलिक एसिड 0.001% एल) @ 300 मिली, प्रति एकड़ के हिसाब से 150-200 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें।  

जैविक नियंत्रण के लिए मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरेंस) 250-500 ग्राम/एकड़ के हिसाव से छिड़काव करें।

महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। आज की जानकारी पसंद आई हो तो लाइक और शेयर करना ना भूलें।

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