जब करें धान की कटाई तब इन बातों का रखें विशेष ध्यान

Things to keep in mind while harvesting paddy
  • धान की कटाई समय से करें अगर खेत में पानी भरा हुआ है तो उसे 8-10 दिन पहले ही खेत से बाहर निकाल दें। 

  • धान की कटाई तब करें जब 80% बालियाँ पीली पड़ जाए और दानों में 20-25% नमी हो।

  • धान की कटाई जमीन की सतह से लगी हुई होनी चाहिए, इससे अगले साल फफूंद जनित रोग लगने की संभावना काफी कम हो जाती है।  

  • धान की कटाई करके फसल को गंदे स्थान पर न रखें नहीं तो धान की गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है।

  • धान की कटाई करते समय धान की सभी बालियों को एक ही दिशा में रखें, इससे मड़ाई (थ्रेसिंग) के समय आसानी होती है l 

  • नम वातावरण में धान की कटाई से बचें l कटाई के बाद फसल को ओस एवं बारिश के पानी से बचाने का विशेष ध्यान रखें l 

  • कटाई के बाद धान को अधिक समय तक नहीं सुखाएं। 

  • धान की कटाई के बाद पराली को खेत में न जलाएं, इससे मिट्टी की गुणवत्ता ख़राब होती है। 

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लहसुन की 15-20 दिनों की फसल अवस्था में ये छिड़काव जरूर करें

Spraying recommendations for garlic crop in 15-20 days
  • लहसुन की फसल में अच्छे उत्पादन के लिए बुवाई के बाद समय-समय पर छिड़काव प्रबंधन करना बहुत आवश्यक है।

  • इसके द्वारा लहसुन की फसल को अच्छी शुरुआत मिलती है साथ ही लहसुन की फसल रोग रहित रहती है।

  • कवक जनित रोगों के निवारण के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक कवकनाशी के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • कीट नियंत्रण के लिए एसीफेट 75% SP @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक कीटनाशक के रूप में बवेरिया बेसियाना@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • पोषक तत्व प्रबधन लिए समुद्री शैवाल @ 400 ग्राम/एकड़ या जिब्रेलिक एसिड@ 300 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • इन सभी छिड़काव के साथ सिलिकॉन आधारित स्टीकर 5 मिली/15 लीटर पानी के हिसाब से उपयोग अवश्य करें।

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बेहद कम खर्च में ऐसे करें ड्रिप सिंचाई

Do drip irrigation in this way at very low cost

ड्रिप सिंचाई दरअसल सिंचाई का एक ऐसा तरीका है जो पानी की काफी बचत करता है साथ ही साथ यह पौधे की जड़ में पानी के धीरे-धीरे सोखने में मदद कर खाद और उर्वरक के अधिकतम उपयोगी इस्तेमाल में मदद करता है।

इस ड्रिप सिंचाई को आप आज के वीडियो में बताई गई विधि से बहुत ही कम खर्च पर उपयोग में ला सकते हैं।

वीडियो स्रोत: इंडियन फार्मर

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प्याज की फसल नुकसान पहुंचाएगा थ्रिप्स, ऐसे करें नियंत्रण

How to manage thrips in onion crop
  • थ्रिप्स छोटे एवं कोमल शरीर वाले कीट होते हैं, यह पत्तियों की ऊपरी सतह एवं अधिक मात्रा में पत्तियों की निचली सतह पर पाए जाते हैं।

  • अपने तेज मुखपत्र के साथ पत्तियों का रस चूसते हैं। इसके प्रकोप के कारण पत्तियां किनारों पर भूरी हो जाती हैं।

  • प्रभावित पौधे की पत्तियां सूखी एवं मुरझाई हुई दिखाई देती हैं, या पत्तियां विकृत हो जाती हैं और ऊपर की ओर मुड़ जाती हैं। यह कीट प्याज की फसल में जलेबी रोग का कारक है।

  • थ्रिप्स के नियंत्रण के लिए रसायनों को अदला बदली करके ही उपयोग करना आवश्यक है।

  • प्रबंधन: थ्रिप्स के प्रकोप के निवारण के लिए फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 200 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG@ 40 ग्राम/एकड़ या थियामेंथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 9.5% ZC @ 80 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार: जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना@ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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ककड़ी की फसल को माहू के प्रकोप से होगा नुकसान

Infestation of aphid in Cucumber
  • इस कीट के शिशु व वयस्क रूप कोमल नाशपाती के आकार के काले रंग के होते हैं।

  • इसके शिशु एवं वयस्क समूह के रूप में पत्तियों की निचली सतह पर चिपके रहते हैं, जो पत्तियों का रस चूसते हैं।

  • इसके कारण पौधे के ग्रसित भाग पीले होकर सिकुड़ कर मुड़ जाते हैं।

  • अत्यधिक आक्रमण की अवस्था में पत्तियां सूख जाती हैं व धीरे-धीरे पूरा पौधा सूख जाता है। इससे फलों का आकार एवं गुणवत्ता कम हो जाती है।

  • माहू के द्वारा पत्तियों की सतह पर मधुरस का स्राव किया जाता है जिससे फंगस का विकास हो जाता है, जिसके कारण पौधे की प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है, और अंततः पौधे की वृद्धि रुक जाती है।

  • इसके नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8%SL@ 100 मिली/एकड़ या एसीफेट 75% SP@ 300 ग्राम/एकड़ या एसिटामिप्राइड 20% SP @ 100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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चने की फसल में जैविक खेती की ये सिफारिशें होंगी लाभदायक

Recommendations for organic farming in gram crop

चने की खेती शुष्क और कम पानी वाले क्षेत्रों में अधिक की जाती है। इसलिए जैविक चना उत्पादन भी सरलता से किया जा सकता है। इसकी जैविक खेती के लिए निम्न सुझाव अपना सकते हैं।

  • गर्मियों में भूमि की गहरी जुताई करें।

  • 4 टन गोबर की खाद तथा ट्राइकोडर्मा 2.5 किग्रा को 100 किग्रा केंचुआ खाद में मिलाकर बुवाई से पूर्व भूमि में मिलाएं।

  • बीज का उपचार राइजोबियम 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज + पी एस बी 2 ग्राम + ट्राइकोडर्मा 5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से करें।

  • गोमूत्र 5 लीटर + 5 किलो नीम की पत्तियां का सत् या एन पी वी 250 एल इ या नीम की निम्बोली के सत् का दो छिड़काव फली छेदक कीट का प्रकोप प्रारम्भ होने पर तथा दूसरा छिड़काव 15 दिन पश्चात पुनः दोहराएं।

  • “T” आकार की 20-25 खपच्चियाँ प्रति एकड़ की दर से खेत में लगाएं। यह खपच्चियाँ चने की ऊँचाई से 10-20 सेंटीमीटर अधिक ऊंची लगाना लाभदायक रहता है l इन खपच्चियो पर चिड़िया, मैना, बगुले आदि आकर बैठते है जो फली छेदक का भक्षण कर फसल को नुकसान से बचाते हैं।

  • गोबर की कच्ची खाद प्रयोग में ना लें। यह दीमक प्रकोप का प्रमुख कारण होती है।

  • कटुआ इल्ली के बचाव के लिए बुवाई के समय मेटाराइजियम या बवेरिया बेसियाना फफूंद का प्रयोग करें।

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भिंडी की फसल में बुआई के समय पोषण प्रबंधन कैसे करें?

Nutrition management in okra at the time of sowing
  • भिंडी की फसल में बुआई के समय पोषण प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।

  • इस समय पोषण प्रबंधन करने से भिंडी की फसल को एक अच्छी शुरुआत मिलती है जिससे अंकुरण प्रतिशत काफी हद तक बढ़ाया जा सकता है।

  • इसके परिणामस्वरूप बेहतर वनस्पति विकास होता है और पौधों के स्वास्थ में भी सुधार होता है।

  • यह पौधे की प्रत्येक अवस्था जैसे फूल, फल, पत्ती आदि की अवस्था में वृद्धि में मदद करता है साथ ही साथ सफेद जड़ के विकास में भी मदद करता है।

  • इस समय पोषण प्रबंधन करने के लिए DAP @75किलो/एकड़ + MOP @30 किलो/एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ + NPK बैक्टीरिया @ 100 ग्राम/एकड़ + मायकोराइज़ा @ 2 किलो/एकड़ को आपस में मिलाकर बुआई के समय मिट्टी में भुरकाव करें।

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प्याज की फसल में कटवर्म कीट का प्रबंधन कैसे करें?

Cutworms management in onion
  • इस कीट का लार्वा पीले धूसर रंग के होता है और बाद में भूरे रंग का हो जाता है।

  • इस कीट को स्पर्श करने पर यह कुंडलित अवस्था में चला जाता है।

  • ये कीट रात के समय, आधार स्तर से प्याज के छोटे पौधों को काटता है और दिन के समय छिप जाता है।

  • नव विकसित कीट अधिक संख्या में प्याज के पत्ते पर फ़ीड करते हैं लेकिन बाद में अलग हो कर मिट्टी में प्रवेश करते हैं।

  • इसके नियंत्रण के लिए रोपाई के समय कारबोफुरान 3% GR @ 7.5 किलो/एकड़ की दर से जमीन में मिलाये।

  • कारटॉप हाइड्रोक्लोराइड 4% G@ 7.5 किलो/एकड़ की दर से जमीन में मिलाएं।

  • क्लोरपायरीफोस 20% EC@ 1 लीटर/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक नियंत्रक के रूप में हर छिड़काव के साथ बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।

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मिर्च की फसल में चिनोफोरा ब्लाइट के प्रकोप का ऐसे करें प्रबंधन

How to manage the outbreak of Choanephora Blight in Chili crop
  • यह एक कवक जनित रोग है और इस रोग के लक्षण फूलों और फलों पर दिखाई देते हैं।

  • इसके शुरूआती लक्षण पानी से लथपथ घाव के रूप में पत्तियों पर विकसित होते हैं।

  • सबसे पहले यह एक शाखा पर दिखाई देता है और फिर कुछ समय बाद यह कवक रोग बहुत तेज़ी से पूरे पौधे पर फैल जाता है।

  • इस रोग के निवारण के लिए क्लोरोथालोनिल 75% WP @ 300 ग्राम/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% WP@ 500 ग्राम/एकड़ या मेटिराम 55% + पायराक्लोस्ट्रोबिन 5% WG@ 600 ग्राम/एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 50% + ट्रायफ्लोक्सीस्त्रोबिन 25% WG @ 100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी@ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

आपकी जरूरतों से जुड़ी ऐसी ही अन्य महत्वपूर्ण सूचनाओं के लिए प्रतिदिन पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख और अपनी कृषि समस्याओं की तस्वीरें समुदाय सेक्शन में पोस्ट कर प्राप्त करें कृषि विशेषज्ञों की सलाह।

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प्याज़ की नर्सरी अवस्था में पत्ती धब्बा रोग का नियंत्रण

Leaf spot disease management in onion nursery
  • इस रोग में पत्तियों पर अनियमित आकार के धब्बे बन जाते हैं। ये धब्बे पीले या भूरे रंग के होते हैं।

  • ये धब्बे पत्तियों के शीघ्र पतन का कारण बनते हैं और इन धब्बों के कारण पत्तियो पर भूरे रंग की परत बन जाती है जो कि पौधे के भोजन निर्माण की प्रक्रिया को बाधित करती है।

  • इसके नियंत्रण हेतु थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W@ 300 ग्राम/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 300 ग्राम/एकड़ या हेक्साकोनाज़ोल 5% SC@ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • या फिर कीटाजिन 48% EC@ 200 ग्राम/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75% WP@ 400 ग्राम/एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • जैविक उपचार के रूप में ट्राइकोडर्मा विरिडी@ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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