ट्रायकोडर्मा से आपकी खेती में मिलता है बहुत लाभ, पढ़ें पूरी जानकारी

Trichoderma's importance in agriculture
  • मिट्टी में प्राकृतिक रूप से बहुत प्रकार के कवक पाए जाते है जिनमें से कुछ  हानिकारक होते हैं और कुछ लाभकारी होते हैं और इन्ही लाभकारी कवकों में से एक ट्रायकोडर्मा भी होता है। 

  • यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण एवं कृषि की दृष्टि से एक उपयोगी जैव कवकनाशी है 

  • ट्रायकोडर्मा विभिन्न प्रकार के मृदा जनित रोगों जैसे फ्यूजेरियम, पिथियम, फाइटोफ्थोरा, राइजोक्टोनिया, स्क्लैरोशियम आदि से बचाव करता है। 

  • ट्रायकोडर्मा फ़सलों को प्रभावित करने वाले रोग जैसे आर्द्र गलन, जड़ गलन, उकठा, तना गलन, फल सड़न, तना झुलसाआदि की रोकथाम में सहायक है। 

  • ट्राइकोडर्मा रोग उत्पन्न करने वाले कारकों को रोकता है एवं फसल के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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अदरक की फसल में जीवाणु झुलसा रोग के प्रबंधन की प्रक्रिया

Management of Bacterial Blight Disease in Ginger Crop
  • अदरक की फसल में बारिश के समय प्रायः जीवाणु झुलसा रोग का प्रकोप देखा जाता है। इसमें पानी से लथपथ धब्बे अदरक के आभासी तने (स्यूडो स्टेम) के कॉलर क्षेत्र में दिखाई देते हैं जो की ऊपर और नीचे की ओर बढ़ते हैं।

  • इस रोग का पहला विशिष्ट लक्षण निचली पत्तियों के किनारों का हल्का मुड़ना है जो ऊपर की ओर फैलता है।

  • सबसे पहले पीलापन निचली पत्तियों से शुरू होता है और धीरे-धीरे ऊपरी पत्तियों तक बढ़ता है। बाद की अवस्था में, पौधे में गंभीर पीलेपन और मुरझाने के लक्षण प्रदर्शित होते हैं।

  • प्रभावित पौधे के संवहनी ऊतक पर गहरे रंग की धारियां दिखाई देती है इसके अलावा जब प्रभावित स्यूडो स्टेम और कंद को दबाया जाता है, तो संवहनी उत्तक से धीरे से दूधिया तेल बाहर निकलता है।

  • इसके प्रबंधन के लिए कासुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 46% WP @ 300 ग्राम/एकड़ या स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट IP 90% W/W + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड IP 10% W/W @ 24 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।

  • जैविक नियंत्रण के लिए स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 1 किलो/एकड़ का उपयोग करें।

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आलू की फसल में मिट्टी उपचार के मिलते हैं कई फायदे

Benefits of soil treatment in potato crop
  • आलू की फसल में बुवाई के पूर्व मिट्टी उपचार बहुत आवश्यक है l

  • मिट्टी की उर्वरता और पोषक तत्व प्रबंधन फसल की अच्छी उपज एवं रोग मुक्त फसल के लिए बहुत महत्वपूर्ण कारक है जो फसल की उपज और गुणवत्ता पर सीधा प्रभाव डालते हैं।

  • रबी के मौसम में आलू की बुवाई के पूर्व मिट्टी में बहुत अधिक नमी होने के कारण कवक जनित रोग एवं कीट का बहुत अधिक प्रकोप होता है।

  • कवक जनित रोग एवं कीट के निवारण के लिए मिट्टी उपचार कवकनाशी और कीटनाशी से किया जाता है।

  • मिट्टी उपचार कवकनाशी और कीटनाशी से करने से आलू की फसल में कंद गलन जैसे रोग नहीं लगते हैं।

  • मिट्टी उपचार के द्वारा आलू में लगने वाले उकठा रोग से भी बचाव होता है।

  • मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए भी मिट्टी उपचार बहुत आवश्यक है। इसके लिए मुख्य पोषक तत्वों का उपयोग किया जाता है l

  • मिट्टी उपचार करने से मिट्टी की संरचना में सुधार होता है एवं उत्पादन भी काफी हद तक बढ़ जाता है।

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रबी मौसम की प्याज नर्सरी में पोषण प्रबंधन है जरूरी, जानें पूरी प्रक्रिया

How to do nutrition management in onion nursery of rabi season
  • प्याज़ की नर्सरी में समयानुसार पोषक तत्वों का प्रबंधन करना अति आवश्यक होता है। इससे अंकुरण और पौधे की वानस्पतिक वृद्धि में सहायता मिलती है।

  • प्याज़ की रोपाई से पूर्व इसके बीजो की बुवाई नर्सरी में की जाती है। नर्सरी में बेड का आकार 3’ x 10’ और ऊंचाई 10-15 सेमी रखी जाती है।

  • नर्सरी में बीज बोने से पहले FYM @ 10 किलो/नर्सरी की दर से उपचार करें।

  • नर्सरी लगाते समय सीवीड, एमिनो, ह्यूमिक मायकोराइज़ा @ 25 ग्राम/नर्सरी से उपचारित करें।

  • प्याज़ की नर्सरी की बुवाई के सात दिनों के अंदर पोषण प्रबंधन किया जाता है। इस समय छिड़काव करने से प्याज़ की नर्सरी को अच्छी शुरुआत मिलती है।

  • पोषण प्रबंधन के लिए ह्यूमिक एसिड@ 10 ग्राम/पंप की दर से छिड़काव करें।

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मटर की रोगमुक्त एवं उत्तम फसल पाने में सहायक होगा मटर समृद्धि किट

Matar Samridhi Kit
  • मटर की फसल से अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए ग्रामोफ़ोन लेकर आया है मटर समृद्धि किट। 

  • यह किट भूमि सुधारक की तरह कार्य करती है।  

  • इस किट में दो आवश्यक बैक्टीरिया PK मिश्रण है जो की मिट्टी में PK की पूर्ति  करके फसल की वृद्धि में सहायता करते हैं। 

  • इस किट में जैविक फफूंदनाशक ट्राइकोडर्मा विरिडी है जो मृदा जनित रोगजनकों को मारता है। इससे जड़ सड़न, तना गलन, उकठा रोग आदि जैसी गंभीर बीमारियों से पौधे की रक्षा होती है।

  • इस किट में समुद्री शैवाल, एमिनो एसिड ह्यूमिक एसिड एवं मायकोराइज़ा जैसी सामग्री का संयोजन है जो मिट्टी की विशेषताओं और गुणवत्ता में काफी सुधार करता है। इसके अलावा मायकोराइज़ा सफेद जड़ के विकास में मदद करता है। ह्यूमिक  एसिड प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में सुधार करके मटर की फसल के बेहतर वानस्पतिक विकास में सहायता करता है।

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सोयाबीन की फसल में मिलीबग का ऐसे करें नियंत्रण

How to control mealybug in soybean crop
  • मिलीबग एक प्रकार का रस चूसक कीट है जो पत्तियों और टहनियों पर आक्रमण करके उसका रस चूसता है l

  • यह कीट सफ़ेद रुई के तरह का होता है। इस कीट के वयस्क बहुत अधिक संख्या में पौधों से आवश्यक पोषक तत्वों को चूसकर फसल या पौधे के वर्द्धि या विकास को प्रभावित करते हैं।

  • मिलीबग सोयाबीन के तने, शाखाओं एवं पत्तों के नीचे बड़ी संख्या में समूह बना कर एक मोम की परत बना लेते हैं।

  • यह बड़ी मात्रा में मधुस्राव छोड़ते हैं जिस पर काली फफूंद जमती है।

  • ग्रसित पौधे कमज़ोर दिखाई देते हैं जिससे फलन क्षमता कम हो जाती है।

  • इस कीट के नियंत्रण के लिए थियामेंथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 9.5% ZC @ 80 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG @ 40 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • नीम तेल 10000 पीपीएम @ 200 मिली प्रति एकड़ छिड़काव कर सकते हैं।

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ऐसे करें बीज अंकुरण प्रतिशत का परीक्षण एवं जानें इसके लाभ

seed germination test method
  • रबी की बुवाई के पहले गेहूँ, चना, सरसों एवं दाल वाली फसलों में बीज़ परीक्षण किया जा सकता है।

  • बुवाई से पूर्व किसान स्वयं ही बीज अंकुरण परीक्षण करके अपनी फसल के उत्पादन को अच्छी किस्म की बुवाई करके बड़ा सकते है।

  • इसके लिए किसान पेपर विधि या सूती कपड़े की विधि का उपयोग कर सकते हैं।

  • पेपर विधि के लिए अख़बार को एन आकर में चार सामान रूप से मोड़ ले, पेपर के बीच वाली जगह पर बीजो को रखे, मुड़े हुए पेपर के दोनों हिस्सों को धागे से बांधे l

  • इसके बाद बीजों पर हल्का पानी डालकर गिला करें, एवं दो से पांच दिनों में अंकुरण की स्थिति देखकर अंकुरण प्रतिशत निकालें।

  • सूती कपड़ा विधि में 100 बीजों को गिनकर ले एवं कपड़े पर उनको फैला दें एवं हल्का पानी डाले एवं दो से पांच दिनों में अंकुरण की स्थिति देखकर प्रतिशत निकालें।

  • बीजों का परीक्षण करने से हमे बीज की उगने की क्षमता का पता चलता है कि हमारा बीज कितने प्रतिशत उगेगा जिससे की हम बीज दर घटा या बढ़ा सकते हैं।

  • बीज का परीक्षण करने से बीज में कीट व्याधि का पता चल जाता है। किसानों की आय बढ़ती है, लागत कम हो जाती है।

  • बीज परीक्षण से हमे स्वस्थ बीज मिल जाते हैं जिससे उपज बढ़ती है।

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आलू समृद्धि किट का ऐसे करें उपयोग और पाएं जबरदस्त उपज

How to use Potato Samriddhi Kit
  • ग्रामोफोन की पेशकश आलू समृद्धि किट का उपयोग मिट्टी उपचार के रूप में किया जाता है।

  • इस किट की कुल मात्रा 6.7 किलो है और यह मात्रा एक एकड़ के खेत के लिए पर्याप्त है।

  • इसका उपयोग यूरिया, DAP में मिलाकर किया जा सकता है और 50 किलो पकी हुई गोबर की खाद, या कम्पोस्ट या मिट्टी में भी मिलाकर कर इसका उपयोग कर सकते हैं।

  • इसके उपयोग के समय खेत में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है।

  • अगर बुआई के समय इस किट का उपयोग नहीं कर पाए हैं तो बुआई के बाद 15 -20 दिनों के अंदर इसका उपयोग मिट्टी में भुरकाव के रूप में कर सकते हैं।

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मिर्च की फसल में पौधे मुरझाने की समस्या का ऐसे करें निदान

Management of chilli wilt disease
  • मिर्च की फसल में विल्ट रोग के कारण पौधा सूखकर मुरझाने लगता है, पत्तियां ऊपर और अंदर की और मुड़ने लगती हैं और अंत में पत्तियां पीली पड़ कर मर जाती हैं।

  • इस रोग में तने और जड़ भी सूख कर मुरझाने लगते हैं साथ हीं पूरा पौधा कमजोर और झुलसा हुआ दिखाई देता है। आमतौर पर इस बीमारी के लक्षण खेत में एक ही क्षेत्र में दिखाई देते हैं और बाद में धीरे धीरे पूरे खेत के पौधों को संक्रमित कर देते हैं।

  • इसके प्रबंधन के लिए रोग प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करें।

  • ट्राइकोडर्मा विरडी 4 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलो बीज के साथ बुवाई से पूर्व बीजोपचार करें।

  • बेसल खुराक के साथ 50 किलो FYM के साथ 2 किलो ट्राइकोडर्मा विरडी मिलाएं।

  • स्यूडोमोनस @ 500 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।

  • थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W @ 300 ग्राम + कासुगामाइसिन 3% SL 400 मिली या कासुगामाइसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP 300 ग्राम प्रति एकड़ की दर से ड्रेंचिंग करें।

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समुद्री शैवाल आपकी फसल एवं खेत दोनों के लिए होता है महत्वपूर्ण

Seaweed Utility for Crops
  • समुद्री शैवाल बीज के जल्द अंकुरण एवं उच्च अंकुरण दर को बढ़ाने में मददगार होता है।यह फसल की जड़ विकास पर विशेष प्रभाव डालता है।

  • पोषक तत्वों की पर्याप्त आपूर्ति के आधार पर, समुद्री शैवाल पौधे की ऊँचाई, तने के व्यास, पत्ती की संख्या आदि के वृद्धि में मदद करते हैं।

  • उच्च उत्पादन एवं फसल सुधार में भी ये सहायक होते हैं।

  • मिट्टी में प्राकृतिक रूप से उपस्थित तत्वों के संरक्षण में भी ये सहायक होते हैं।

  • अति सूक्ष्म जीवों के द्वारा कार्बन व नाइट्रोजन के अनुपात को नियंत्रित करने में भी ये सहायक होते हैं।

  • पोषक तत्वों के अपघटन की प्रक्रिया को संतुलित करने में सहायक होते हैं।

  • कृषि भूमि की सतत रूप से प्रबंधन करने में मदद करते हैं।

  • मिट्टी की संरचना सुधारक की तरह कार्य करते हैं।

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