भारी बारिश के बाद अधिक नमी से मिट्टी व फसल को होंगे ये नुकसान

Damage to soil and crop due to excess moisture after heavy rains
  • पानी हर फसल के लिए जरूरी है पर वही जब अधिक हो जाए तो फसल बर्बाद भी कर सकता है।

  • भारी बारिश के बाद खेत में उचित जल निकास नहीं होने पर मिट्टी में बहुत अधिक नमी होने के कारण कवक जनित रोगों एवं जीवाणु जनित रोगों के प्रकोप होने की बहुत अधिक संभावना होती है l साथ ही अधिक नमी के कारण मिट्टी में कीटों का प्रकोप भी बहुत अधिक होने लगता है।

  • अधिक बारिश के कारण मिट्टी का कटाव होता है जिसके कारण मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है।

  • अगर हम फसल की बात करें तो फसलों में पीलापन, पत्ते मुड़ना, फसल का समय से पहले मुरझाना, फलों का अपरिपक्व अवस्था में गिरना, फलों पर अनियमित आकार के धब्बे हो जाना आदि अधिक नमी के कारण होता है l

  • इसके कारण फसल में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है जिससे फसल का उत्पादन भी बहुत प्रभावित होता है l

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जानें आखिर क्यों सिंगल सुपर फास्फेट को कृषि के लिए कहा जाता है वरदान?

Why single super phosphate a boon for agriculture
  • सिंगल सुपर फास्फेट (एसएसपी) कम लागत में अधिक पैदावार लेने के लिए कृषि के लिए वरदान साबित होगा। किसान डीएपी उर्वरक के बजाय अब सिंगल सुपर फास्फेट उर्वरक का प्रयोग कर सकते हैं।

  • सिंगल सुपर फास्फेट एक फॉस्फोरस युक्त उर्वरक है जिसमें कि 16 प्रतिशत फॉस्फोरस, 11 प्रतिशत सल्फर एवं 21% कैल्शियम की मात्रा होती है l दानेदार एसएसपी में सूक्ष्म तत्वों के रूप में जिंक और बोरॉन भी पाया जाता है। इसमें उपलब्ध सल्फर के कारण यह उर्वरक तिलहनी एवं दलहनी फसलों के लिये अन्य उर्वरकों की अपेक्षा अधिक लाभदायक होता है।

  • सिंगल सुपर फास्फेट में उपलब्ध सल्फर जो तिलहनी फसलें जैसे सरसों की फसल में तेल की मात्रा एवं दलहनी फसल जैसे चना, मूंग, उड़द आदि में प्रोटीन की मात्रा बढ़ाता है।

  • इसीलिए किसानों को अधिक से अधिक सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग करना चाहिए। रबी मौसम में सरसों एवं चना में सिंगल सुपर फास्फेट का उपयोग कर कम लागत में अधिक पैदावार ले सकते हैं।

  • कृषक सिंगल सुपर फास्फेट ही क्यों खरीदें: सिंगल सुपर फास्फेट उर्वरक डीएपी की अपेक्षा सस्ता है एवं बाजार में आसानी से उपलब्ध है l प्रति बैग डीएपी में 23 किलोग्राम फॉस्फोरस एवं 9 किलोग्राम नत्रजन होता है l

  • यदि डीएपी के विकल्प के रूप में 3 बैग सिंगल सुपर फास्फेट एवं 1 बैग यूरिया का प्रयोग किया जाता है तो इससे भी कम मूल्य पर अधिक नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस प्राप्त किया जा सकता है l इसके अतिरिक्त फसल को सल्फर और कैल्शियम भी अलग से नहीं डालना पड़ता जिससे फसल लागत कम लगती है l

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मटर की खेती को बनाएं मुनाफे की खेती, चुनें उन्नत बीज किस्में

Know the high yielding varieties of peas

रबी मौसम की दलहनी फसलों में मटर का विशेष स्थान होता है साथ ही इसका उपयोग सब्जियों में भी किया जाता है इसलिए इसकी खपत खूब रहती है। यही कारण है की किसान भाई इसकी खेती बढ़-चढ़ कर करते हैं। मटर की खेती से अधिक उपज प्राप्त करने के लिए मटर की कुछ मुख्य किस्मों का उपयोग बुवाई के लिए करना चाहिए। ये किस्में अधिक पैदावार देने वाली एवं रोग प्रतिरोधी होती हैं। इस लेख में मटर की उन्नत किस्में कौन-कौन सी है, उनकी विशेषताएं क्या है और इससे किसानों को कितनी पैदावार मिल सकती है, की जानकारी का विस्तार से दी जा रही है। 

  1. मालव सुपर अर्केल और मालव अर्केल: यह मटर की दो मुख्य किस्में हैं जिनको अर्केल किस्म के नाम से भी जाना जाता है। इनकी फसल अवधि 60 से 70 दिनों की होती है। इन किस्मो में फल की तुड़ाई 2-3 बार की जा सकती है। इसमें एक मटर की फली में बीजों की संख्या 6-8 रहती है। इन किस्मो में पौधा बोना होता है एवं यह उच्च उत्पादन वाली किस्में होती हैं। इसकी फलिया गहरे हरे रंग की होती है और ये दोनों किस्म पाउडरी मिल्डयू के लिए प्रतिरोधी है। इन किस्मों में 55-60 दिनों में पहली तुड़ाई की जा सकती है  एवं प्रति एकड़ उपज 2 टन होती है। 

  1. मालव वेनेज़िया, यूपीएल/एडवंटा/गोल्डन GS10, मालव MS10: यह मटर की तीन मुख्य किस्में हैं जिनको पेंसिल किस्म के नाम से भी जाना जाता है। यह खाने में मीठी होती हैं और इनकी फसल अवधि 75-80 दिनों की होती है। इनकी तुड़ाई 2-3 बार की जा सकती है। इनकी एक फली में बीजों की संख्या 8-10 रहती है। इनके पौधे माध्यम आकार के एवं इनकी शाखाएँ फैली हुई होती हैं। इन किस्मों की प्रति एकड़ उपज 4 टन होती है एवं ये किस्में पाउडरी मिल्डयू के लिए प्रतिरोधी होती हैं।

  1. मास्टर हरिचंद्र PSM-3, सीड एक्स PSM-3 और अंकुर सीड्स अन्वय: यह मटर की दो मुख्य किस्मे है जिनको PSM-3 किस्म के नाम से भी जाना जाता है। इनकी फसल अवधि 60 दिनों की होती है। इन किस्मों में फल की तुड़ाई 1 बार होती है। यह जल्दी पकने वाली किस्में हैं जिसे आर्केल एंड जीसी 141 के क्रॉस के माध्यम से विकसित किया गया है। इसके पौधे गहरे हरे पत्ते के साथ बौने होते हैं। इसकी फली 6-8 बीजों से भरी होती है। इन किस्मों की पैदावार 3 टन/एकड़ रहती है।

4. मास्टर हरिचंद्र AP3: इस किस्म की फसल अवधि 60-70 दिनों की होती है और इसकी तुड़ाई 1 बार होती है। इसकी फली 6-8 बीजों से भरी होती है। यह एक जल्दी पकने वाली किस्म है। बुवाई के 70 दिनों के बाद पहली कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसको अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में बोया जाता है। यह औसतन 2 टन /एकड़ की पैदावार देती है।

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प्याज व लहसुन में जलेबी रोग के प्रकोप की ऐसे करें रोकथाम

Jalebi disease in onion and garlic crop

  • प्याज व लहसुन में लगने वाली जलेबी रोग नमक समस्या एक आम समस्या है जो थ्रिप्स कीट के कारण होती है। यह रोग फसल को अलग अलग अवस्थाओं में बहुत नुकसान पहुंचाता है।

  • थ्रिप्स कीट फसल की पत्तियों को सबसे पहले अपने मुंह से खुरचता है, एवं पत्तियों के नाजुक भाग को खुरचने के बाद ये उसके रस को चूसने का काम करता है।

  • इसके कारण पत्तियाँ मुड़ने लगती है और धीरे-धीरे यह समस्या अधिक बढ़ जाती है। इसके कारण पत्तियां जलेबी का आकार लेने लगती है। इस तरह पौधा धीरे-धीरे सूखने लगता है यह समस्या जलेबी रोग के नाम से जानी जाती हैl

  • इस रोग के निवारण के लिए निम्र उत्पादों का उपयोग आवश्यक होता है। इसके निवारण के लिए प्रोफेनोफोस 50% EC @ 500 मिली/एकड़ या एसीफेट 75% SP @ 300 ग्राम/एकड़ या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 250 मिली/एकड़ या थियामेंथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 9.5% ZC @ 80 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG @ 40 ग्राम/एकड़ या फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ या एसीफेट 50 % + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% SP @ 400 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव कर सकते हैं।

  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।

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प्याज की 20-25 दिनों की नर्सरी अवस्था में छिड़काव प्रबंधन है जरूरी

Spraying management in onion nursery in 20-25 days
  • प्याज़ की नर्सरी की बुवाई के बीस से पच्चीस दिनों के अंदर छिड़काव प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।

  • यह छिड़काव कवक जनित रोगों व कीटों के नियंत्रण एवं अच्छी वृद्धि के लिए किया जाता है।

  • इस समय छिड़काव करने से प्याज़ की नर्सरी को अच्छी शुरुआत मिलती है।

  • कवक जनित रोगों के लिए मैनकोज़ेब 64% + मेटालैक्सिल 8% WP @ 60 ग्राम/पंप की दर छिड़काव करें।

  • कीट प्रबंधन के लिए फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG @ 5 ग्राम/पंप की दर से छिड़काव करें।

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ट्रायकोडर्मा से आपकी खेती में मिलता है बहुत लाभ, पढ़ें पूरी जानकारी

Trichoderma's importance in agriculture
  • मिट्टी में प्राकृतिक रूप से बहुत प्रकार के कवक पाए जाते है जिनमें से कुछ  हानिकारक होते हैं और कुछ लाभकारी होते हैं और इन्ही लाभकारी कवकों में से एक ट्रायकोडर्मा भी होता है। 

  • यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण एवं कृषि की दृष्टि से एक उपयोगी जैव कवकनाशी है 

  • ट्रायकोडर्मा विभिन्न प्रकार के मृदा जनित रोगों जैसे फ्यूजेरियम, पिथियम, फाइटोफ्थोरा, राइजोक्टोनिया, स्क्लैरोशियम आदि से बचाव करता है। 

  • ट्रायकोडर्मा फ़सलों को प्रभावित करने वाले रोग जैसे आर्द्र गलन, जड़ गलन, उकठा, तना गलन, फल सड़न, तना झुलसाआदि की रोकथाम में सहायक है। 

  • ट्राइकोडर्मा रोग उत्पन्न करने वाले कारकों को रोकता है एवं फसल के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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अदरक की फसल में जीवाणु झुलसा रोग के प्रबंधन की प्रक्रिया

Management of Bacterial Blight Disease in Ginger Crop
  • अदरक की फसल में बारिश के समय प्रायः जीवाणु झुलसा रोग का प्रकोप देखा जाता है। इसमें पानी से लथपथ धब्बे अदरक के आभासी तने (स्यूडो स्टेम) के कॉलर क्षेत्र में दिखाई देते हैं जो की ऊपर और नीचे की ओर बढ़ते हैं।

  • इस रोग का पहला विशिष्ट लक्षण निचली पत्तियों के किनारों का हल्का मुड़ना है जो ऊपर की ओर फैलता है।

  • सबसे पहले पीलापन निचली पत्तियों से शुरू होता है और धीरे-धीरे ऊपरी पत्तियों तक बढ़ता है। बाद की अवस्था में, पौधे में गंभीर पीलेपन और मुरझाने के लक्षण प्रदर्शित होते हैं।

  • प्रभावित पौधे के संवहनी ऊतक पर गहरे रंग की धारियां दिखाई देती है इसके अलावा जब प्रभावित स्यूडो स्टेम और कंद को दबाया जाता है, तो संवहनी उत्तक से धीरे से दूधिया तेल बाहर निकलता है।

  • इसके प्रबंधन के लिए कासुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 46% WP @ 300 ग्राम/एकड़ या स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट IP 90% W/W + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड IP 10% W/W @ 24 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।

  • जैविक नियंत्रण के लिए स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 1 किलो/एकड़ का उपयोग करें।

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आलू की फसल में मिट्टी उपचार के मिलते हैं कई फायदे

Benefits of soil treatment in potato crop
  • आलू की फसल में बुवाई के पूर्व मिट्टी उपचार बहुत आवश्यक है l

  • मिट्टी की उर्वरता और पोषक तत्व प्रबंधन फसल की अच्छी उपज एवं रोग मुक्त फसल के लिए बहुत महत्वपूर्ण कारक है जो फसल की उपज और गुणवत्ता पर सीधा प्रभाव डालते हैं।

  • रबी के मौसम में आलू की बुवाई के पूर्व मिट्टी में बहुत अधिक नमी होने के कारण कवक जनित रोग एवं कीट का बहुत अधिक प्रकोप होता है।

  • कवक जनित रोग एवं कीट के निवारण के लिए मिट्टी उपचार कवकनाशी और कीटनाशी से किया जाता है।

  • मिट्टी उपचार कवकनाशी और कीटनाशी से करने से आलू की फसल में कंद गलन जैसे रोग नहीं लगते हैं।

  • मिट्टी उपचार के द्वारा आलू में लगने वाले उकठा रोग से भी बचाव होता है।

  • मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए भी मिट्टी उपचार बहुत आवश्यक है। इसके लिए मुख्य पोषक तत्वों का उपयोग किया जाता है l

  • मिट्टी उपचार करने से मिट्टी की संरचना में सुधार होता है एवं उत्पादन भी काफी हद तक बढ़ जाता है।

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रबी मौसम की प्याज नर्सरी में पोषण प्रबंधन है जरूरी, जानें पूरी प्रक्रिया

How to do nutrition management in onion nursery of rabi season
  • प्याज़ की नर्सरी में समयानुसार पोषक तत्वों का प्रबंधन करना अति आवश्यक होता है। इससे अंकुरण और पौधे की वानस्पतिक वृद्धि में सहायता मिलती है।

  • प्याज़ की रोपाई से पूर्व इसके बीजो की बुवाई नर्सरी में की जाती है। नर्सरी में बेड का आकार 3’ x 10’ और ऊंचाई 10-15 सेमी रखी जाती है।

  • नर्सरी में बीज बोने से पहले FYM @ 10 किलो/नर्सरी की दर से उपचार करें।

  • नर्सरी लगाते समय सीवीड, एमिनो, ह्यूमिक मायकोराइज़ा @ 25 ग्राम/नर्सरी से उपचारित करें।

  • प्याज़ की नर्सरी की बुवाई के सात दिनों के अंदर पोषण प्रबंधन किया जाता है। इस समय छिड़काव करने से प्याज़ की नर्सरी को अच्छी शुरुआत मिलती है।

  • पोषण प्रबंधन के लिए ह्यूमिक एसिड@ 10 ग्राम/पंप की दर से छिड़काव करें।

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मटर की रोगमुक्त एवं उत्तम फसल पाने में सहायक होगा मटर समृद्धि किट

Matar Samridhi Kit
  • मटर की फसल से अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए ग्रामोफ़ोन लेकर आया है मटर समृद्धि किट। 

  • यह किट भूमि सुधारक की तरह कार्य करती है।  

  • इस किट में दो आवश्यक बैक्टीरिया PK मिश्रण है जो की मिट्टी में PK की पूर्ति  करके फसल की वृद्धि में सहायता करते हैं। 

  • इस किट में जैविक फफूंदनाशक ट्राइकोडर्मा विरिडी है जो मृदा जनित रोगजनकों को मारता है। इससे जड़ सड़न, तना गलन, उकठा रोग आदि जैसी गंभीर बीमारियों से पौधे की रक्षा होती है।

  • इस किट में समुद्री शैवाल, एमिनो एसिड ह्यूमिक एसिड एवं मायकोराइज़ा जैसी सामग्री का संयोजन है जो मिट्टी की विशेषताओं और गुणवत्ता में काफी सुधार करता है। इसके अलावा मायकोराइज़ा सफेद जड़ के विकास में मदद करता है। ह्यूमिक  एसिड प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में सुधार करके मटर की फसल के बेहतर वानस्पतिक विकास में सहायता करता है।

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