जैविक खेती कैसे की जाती है, जानें इसके फायदे

What is organic farming and its benefits
  • जैविक खेती दरअसल खेती की वो पद्धति है जिसमें पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना एवं प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखते हुए भूमि, जल एवं वायु प्रदूषण किये बिना अधिक उत्पादन प्राप्त किया जाता है।

  • जैविक खेती में रसायनों का उपयोग कम से कम होता है।

  • जैविक खेती रासायनिक कृषि की अपेक्षा कम लागत वाली भी होती है।

  • इसमें सिंचाई की कम लागत आती है क्योंकि जैविक खाद जमीन में लम्बे समय तक नमी बनाये रखतें हैं जिससे सिंचाई की आवश्यकता रासायनिक खेती की अपेक्षा कम पड़ती है।

  • जैविक खेती में मिट्टी को एक जीवित माध्यम माना गया है जो पौधों व जीवों के अवशेष को खाद के रूप में भूमि को प्राप्त होते हैं।

  • जैविक खेती के प्रयोग से उगाई गई फसलों पर बीमारियों एवं कीटों का प्रकोप बहुत कम होता है।

  • इसका परिणाम यह होता है कि फसलें पूर्ण रूप से रसायन मुक्त और स्वस्थ होती हैं।

  • स्वास्थ्य की दृष्टि से जैविक उत्पाद सर्वश्रेष्ठ होते हैं एवं इनके प्रयोग से कई प्रकार के रोगों से बचा जा सकता है।

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गेहूँ की बुवाई के समय इस प्रकार करें उर्वरक प्रबंधन

Fertilizer management in wheat at the time of sowing
  • गेहूँ रबी के मौसम की एक मुख्य फसल है और इसकी बुवाई के समय उचित उर्वरक प्रबंधन करने से फसल को अच्छी शुरुआत मिलती है। इसके साथ ही जड़ें अच्छी बनती है एवं कल्ले अच्छे फूटते हैं।

  • इस समय उचित उर्वरक प्रबंधन करने के लिए यूरिया @ 20 किलो/एकड़ + DAP@ 50 किलो/एकड़ + MOP @ 25 किलो/एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • यूरिया नाइट्रोज़न का स्त्रोत है, DAP नाइट्रोज़न एवं फास्फोरस का स्त्रोत है एवं MOP आवश्यक पोटाश की पूर्ति करता है इस प्रकार गेहूँ की फसल में बुवाई के समय पोषण प्रबंधन करने से उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है l

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भिंडी की फसल में हो जाए उकठा रोग तो कैसे करें बचाव?

How to save the okra crop from wilt disease
  • इस रोग के शुरूआती लक्षण विकसित कोपल एवं पत्तियों के किनारों पर दिखते हैं। इससे पत्तियां मुड़ने लग जाती है।

  • इसके कारण पौधों के ऊपर के हिस्से पीले हो जाते हैं, कलिका की वृद्धि रुक जाती है, तने एवं ऊपर की पत्तियां अधिक कठोर, भंगुर व नीचे की पत्तियां पीली होकर झड़ जाती है।

  • आखिर में पूरा पौधा मुरझा जाता है व तना नीचे की और सिकुड़ जाता है।

  • इसके कारण फसल गोल घेरे में फसल सूखने लग जाती है।

  • इसके रासायनिक उपचार के तौर पर कासुगामायसिन 5% + कॉपरआक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या कासुगामायसिन 3% SL@ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • वहीं जैविक उपचार हेतु मायकोराइजा @ 4 किलो/एकड़ या ट्राइकोडर्मा विरिडी@ 1 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार करें। या फिर स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।

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टमाटर की फसल को नुकसान पहुंचाएगा जीवाणु झुलसा रोग

Bacterial Blight disease will damage the tomato crop
  • इस रोग के प्रकोप से पौधा बौना रह जाता है, पत्तियां पीली हो जाती हैं तथा अंत में पौधा मुरझा के गिर जाता है।

  • निचली पत्तियां मुरझाने से पहले ही गिर जाती हैं।

  • निचले तने के खंड को काटकर देखने पर जीवाणु रिसाव द्रव्य देखा जा सकता है।

  • तने से अस्थानिक जड़े विकसित हो जाती हैं।

  • इस रोग के नियंत्रण के लिए बिजाई से पहले ब्लीचिंग पाउडर 6 किलो प्रति एकड़ की दर से डालें।

  • स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट आई.पी. 90% w/w + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड I.P. 10% w/w 30 ग्राम/एकड़ या कासुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 46% WP @ 300 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • क्रूसिफ़ेरी सब्जी, गेंदा और धान के साथ फसल चक्र अपनाने से भी टमाटर की फसल में इस रोग से बचाव होती है।

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जब करें धान की कटाई तब इन बातों का रखें विशेष ध्यान

Things to keep in mind while harvesting paddy
  • धान की कटाई समय से करें अगर खेत में पानी भरा हुआ है तो उसे 8-10 दिन पहले ही खेत से बाहर निकाल दें। 

  • धान की कटाई तब करें जब 80% बालियाँ पीली पड़ जाए और दानों में 20-25% नमी हो।

  • धान की कटाई जमीन की सतह से लगी हुई होनी चाहिए, इससे अगले साल फफूंद जनित रोग लगने की संभावना काफी कम हो जाती है।  

  • धान की कटाई करके फसल को गंदे स्थान पर न रखें नहीं तो धान की गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है।

  • धान की कटाई करते समय धान की सभी बालियों को एक ही दिशा में रखें, इससे मड़ाई (थ्रेसिंग) के समय आसानी होती है l 

  • नम वातावरण में धान की कटाई से बचें l कटाई के बाद फसल को ओस एवं बारिश के पानी से बचाने का विशेष ध्यान रखें l 

  • कटाई के बाद धान को अधिक समय तक नहीं सुखाएं। 

  • धान की कटाई के बाद पराली को खेत में न जलाएं, इससे मिट्टी की गुणवत्ता ख़राब होती है। 

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लहसुन की 15-20 दिनों की फसल अवस्था में ये छिड़काव जरूर करें

Spraying recommendations for garlic crop in 15-20 days
  • लहसुन की फसल में अच्छे उत्पादन के लिए बुवाई के बाद समय-समय पर छिड़काव प्रबंधन करना बहुत आवश्यक है।

  • इसके द्वारा लहसुन की फसल को अच्छी शुरुआत मिलती है साथ ही लहसुन की फसल रोग रहित रहती है।

  • कवक जनित रोगों के निवारण के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक कवकनाशी के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • कीट नियंत्रण के लिए एसीफेट 75% SP @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक कीटनाशक के रूप में बवेरिया बेसियाना@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • पोषक तत्व प्रबधन लिए समुद्री शैवाल @ 400 ग्राम/एकड़ या जिब्रेलिक एसिड@ 300 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • इन सभी छिड़काव के साथ सिलिकॉन आधारित स्टीकर 5 मिली/15 लीटर पानी के हिसाब से उपयोग अवश्य करें।

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बेहद कम खर्च में ऐसे करें ड्रिप सिंचाई

Do drip irrigation in this way at very low cost

ड्रिप सिंचाई दरअसल सिंचाई का एक ऐसा तरीका है जो पानी की काफी बचत करता है साथ ही साथ यह पौधे की जड़ में पानी के धीरे-धीरे सोखने में मदद कर खाद और उर्वरक के अधिकतम उपयोगी इस्तेमाल में मदद करता है।

इस ड्रिप सिंचाई को आप आज के वीडियो में बताई गई विधि से बहुत ही कम खर्च पर उपयोग में ला सकते हैं।

वीडियो स्रोत: इंडियन फार्मर

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प्याज की फसल नुकसान पहुंचाएगा थ्रिप्स, ऐसे करें नियंत्रण

How to manage thrips in onion crop
  • थ्रिप्स छोटे एवं कोमल शरीर वाले कीट होते हैं, यह पत्तियों की ऊपरी सतह एवं अधिक मात्रा में पत्तियों की निचली सतह पर पाए जाते हैं।

  • अपने तेज मुखपत्र के साथ पत्तियों का रस चूसते हैं। इसके प्रकोप के कारण पत्तियां किनारों पर भूरी हो जाती हैं।

  • प्रभावित पौधे की पत्तियां सूखी एवं मुरझाई हुई दिखाई देती हैं, या पत्तियां विकृत हो जाती हैं और ऊपर की ओर मुड़ जाती हैं। यह कीट प्याज की फसल में जलेबी रोग का कारक है।

  • थ्रिप्स के नियंत्रण के लिए रसायनों को अदला बदली करके ही उपयोग करना आवश्यक है।

  • प्रबंधन: थ्रिप्स के प्रकोप के निवारण के लिए फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 200 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG@ 40 ग्राम/एकड़ या थियामेंथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 9.5% ZC @ 80 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार: जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना@ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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ककड़ी की फसल को माहू के प्रकोप से होगा नुकसान

Infestation of aphid in Cucumber
  • इस कीट के शिशु व वयस्क रूप कोमल नाशपाती के आकार के काले रंग के होते हैं।

  • इसके शिशु एवं वयस्क समूह के रूप में पत्तियों की निचली सतह पर चिपके रहते हैं, जो पत्तियों का रस चूसते हैं।

  • इसके कारण पौधे के ग्रसित भाग पीले होकर सिकुड़ कर मुड़ जाते हैं।

  • अत्यधिक आक्रमण की अवस्था में पत्तियां सूख जाती हैं व धीरे-धीरे पूरा पौधा सूख जाता है। इससे फलों का आकार एवं गुणवत्ता कम हो जाती है।

  • माहू के द्वारा पत्तियों की सतह पर मधुरस का स्राव किया जाता है जिससे फंगस का विकास हो जाता है, जिसके कारण पौधे की प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है, और अंततः पौधे की वृद्धि रुक जाती है।

  • इसके नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8%SL@ 100 मिली/एकड़ या एसीफेट 75% SP@ 300 ग्राम/एकड़ या एसिटामिप्राइड 20% SP @ 100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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चने की फसल में जैविक खेती की ये सिफारिशें होंगी लाभदायक

Recommendations for organic farming in gram crop

चने की खेती शुष्क और कम पानी वाले क्षेत्रों में अधिक की जाती है। इसलिए जैविक चना उत्पादन भी सरलता से किया जा सकता है। इसकी जैविक खेती के लिए निम्न सुझाव अपना सकते हैं।

  • गर्मियों में भूमि की गहरी जुताई करें।

  • 4 टन गोबर की खाद तथा ट्राइकोडर्मा 2.5 किग्रा को 100 किग्रा केंचुआ खाद में मिलाकर बुवाई से पूर्व भूमि में मिलाएं।

  • बीज का उपचार राइजोबियम 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज + पी एस बी 2 ग्राम + ट्राइकोडर्मा 5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से करें।

  • गोमूत्र 5 लीटर + 5 किलो नीम की पत्तियां का सत् या एन पी वी 250 एल इ या नीम की निम्बोली के सत् का दो छिड़काव फली छेदक कीट का प्रकोप प्रारम्भ होने पर तथा दूसरा छिड़काव 15 दिन पश्चात पुनः दोहराएं।

  • “T” आकार की 20-25 खपच्चियाँ प्रति एकड़ की दर से खेत में लगाएं। यह खपच्चियाँ चने की ऊँचाई से 10-20 सेंटीमीटर अधिक ऊंची लगाना लाभदायक रहता है l इन खपच्चियो पर चिड़िया, मैना, बगुले आदि आकर बैठते है जो फली छेदक का भक्षण कर फसल को नुकसान से बचाते हैं।

  • गोबर की कच्ची खाद प्रयोग में ना लें। यह दीमक प्रकोप का प्रमुख कारण होती है।

  • कटुआ इल्ली के बचाव के लिए बुवाई के समय मेटाराइजियम या बवेरिया बेसियाना फफूंद का प्रयोग करें।

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