जानवरों के लिए बेहद उपयोगी खाद्य है चरी

Useful Fodder for animals Barsim
  • चरी (बरसीम) पशुओं के लिए बहुत ही लोकप्रिय चारा है। यह अत्यंत पौष्टिक एवं स्वादिष्ट चारा है।

  • इसके अलावा यह लवणीय एवं क्षारीय भूमि को सुधारने के साथ-साथ भूमि की उर्वरा शक्ति में भी वृद्धि करती है।

  • चरी वर्ष के पूरे शीतकालीन समय में और गर्मी के आरम्भ तक हरे चारे के रूप में पशुओ के लिए उपलब्ध रहती है।

  • पशुपालन व्यवसाय में पशुओं से अधिक दुग्ध उत्पादन लेने के लिए हरे चारे का विशेष महत्व है।

  • पशुओं के आहार पर लगभग 70 प्रतिशत व्यय होता है और हरा चारा लगाकर इस व्यय को कम करके अधिक लाभ अर्जित किया जा सकता है।

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लहसुन की फसल में जड़ सड़न रोग का ऐसे करें नियंत्रण

Control of root rot disease in garlic crop
  • तापमान अचानक गिरने व बढ़ने के कारण यह रोग होता है। इस रोग के फंगस जमीन में पनपते हैं जिसके प्रकोप से लहसुन की फसल की जड़ें काली पड़ कर सड़ जाती हैं। इससे पौधे आवश्यक पोषक तत्व नहीं ले पाते तथा पौधे पीले होकर और मुरझा जाते हैं।

  • इस रोग के निवारण के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 300 ग्राम/एकड़ या कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या कीटाजिन 48% EC@ 200 मिली/एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • फसल की बुवाई हमेशा मिट्टी उपचार एवं बीज़ उपचार करके ही करें।

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मटर की बुवाई के 8 से 15 दिन में ये छिड़काव जरूर करें

Necessary spraying to be done in peas in 8 - 15 days after sowing
  • मटर की फसल अक्टूबर-नवंबर में लगाई जाने वाली प्रमुख फसल है। इसका प्रयोग हरी अवस्था में फलियों के रूप में सब्जी के लिए तथा सूखे दानों का प्रयोग दाल के लिए किया जाता है।

  • मटर बेहद पौस्टिक होती है और इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा विटामिन पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा इसमें खनिज पदार्थ भी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।

  • मटर में बुवाई के 8-15 दिन बाद फसल की वानस्पतिक वृद्धि एवं कीट व कवक जनित रोगों से बचाव के लिए निम्न छिड़काव आवश्यक हैं।

  • कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% @ 300 ग्राम + ऐसिटामिप्रिड 20% एसपी 100 ग्राम + समुद्री शैवाल 400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। इसके साथ सिलिकॉन आधारित स्टिकर/स्प्रेडर 5 मिली प्रति टैंक के हिसाब से भी मिला सकते हैं।

  • जैविक नियंत्रण के लिए स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें।

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लहसुन व प्याज की फसल को बदलते मौसम के प्रभावों से बचाएं

Changing weather effects on Garlic and Onion crops
  • मौसम में लगातार परिवर्तन होने से प्याज़ एवं लहसुन की फसल बहुत अधिक प्रभावित हो रही है।

  • इसके प्रभाव के कारण प्याज़ एवं लहसुन की फसल के पत्ते पीले एवं इनके किनारे सूखने लगते हैं।

  • कहीं कहीं फसल में सही एवं समान वृद्धि नहीं होती है।

  • प्याज़ एवं लहसुन की फसल में पत्तियों पर अनियमित धब्बे दिखाई देते हैं।

  • इन सभी समस्याओं के समाधान के लिए एवं मौसम की विपरीत परिस्थिति के कारण फसल को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए कासुगामाइसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W@ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • समुद्री शैवाल @ 400 मिली/एकड़ या ह्यूमिक अम्ल 100 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।

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बुवाई के बाद बीज अंकुरण बढ़ाने के लिए इन खास उपायों का करें उपयोग

Special measures to increase germination after sowing the crop
  • अधिकतर क्षेत्रों में रबी के मौसम की फसल बुवाई लगभग पूरी हो चुकी है।

  • मौसम में हो रहे परिवर्तनों के कारण कहीं कहीं फसल का अंकुरण बहुत अच्छे से नहीं हो पा रहा है। ऐसी स्थिति में किसान कुछ सरल उपाय अपनाकर फसल के अंकुरण प्रतिशत को बहुत हद तक बढ़ा सकते हैं।

  • बुवाई के समय खेत में अंकुरण के लिए पर्याप्त नमी होना बहुत आवश्यक है। पर्याप्त नमी में पौधे का अंकुरण अच्छा होता है और पौधों में नई जड़ें बनने लगती हैं।

  • जड़ों के अच्छे विकास एवं बढ़वार के लिए बुवाई के 15-20 दिनों के अंदर जैविक उत्पाद मैक्समायको 2 किलो/एकड़ का उपयोग मिट्टी उपचार के रूप में करें।

  • इसी के साथ समुद्री शैवाल @ 1.0 किलो/एकड़ या ह्यूमिक अम्ल @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार करें।

  • ग्रामोफोन के समृद्धि किट में उपलब्ध NPK कन्सोर्टिया 3 किलो प्रति एकड़ मिट्टी में उपयोग करने से अच्छे बीज अंकुरण के साथ जड़ों में भी अच्छा विकास देखने को मिलता है।

  • यदि मिट्टी में किसी भी प्रकार के कवक जनित रोगों का प्रकोप दिखाई दे तो उचित कवकनाशी का उपयोग कर सकते हैं।

  • इन उपायों को अपनाकर फसलों का अंकुरण बहुत हद तक बढ़ाया जा सकता है।

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टमाटर की फसल में फूलों की वृद्धि के समय इस प्रकार करें प्रबंधन

Flower promotion nutrients in Tomato
  • टमाटर की फसल में फूल वाली अवस्था बहुत ही महत्वपूर्ण होती है क्योंकि फसल में फलों का उत्पादन फूलों की संख्या पर ही निर्भर करती है।

  • बुआई के 30-45 दिनों बाद टमाटर की फसल में फूल वाली अवस्था प्रारम्भ होती है।

  • नीचे दिए गए कुछ उत्पादों के द्वारा टमाटर की फसल में फूलों की संख्या को बढ़ाया जा सकता है।

  • होमोब्रासिनोलॉइड 0.04% w/w 100-120 मिली/एकड़ का छिड़काव करें।

  • समुद्री शैवाल 300 मिली/एकड़ का छिड़काव के रूप में उपयोग करें।

  • जिब्रेलिक एसिड @ 200 मिली/एकड़ का छिड़काव के रूप में उपयोग करें।

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जैविक खेती कैसे की जाती है, जानें इसके फायदे

What is organic farming and its benefits
  • जैविक खेती दरअसल खेती की वो पद्धति है जिसमें पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना एवं प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखते हुए भूमि, जल एवं वायु प्रदूषण किये बिना अधिक उत्पादन प्राप्त किया जाता है।

  • जैविक खेती में रसायनों का उपयोग कम से कम होता है।

  • जैविक खेती रासायनिक कृषि की अपेक्षा कम लागत वाली भी होती है।

  • इसमें सिंचाई की कम लागत आती है क्योंकि जैविक खाद जमीन में लम्बे समय तक नमी बनाये रखतें हैं जिससे सिंचाई की आवश्यकता रासायनिक खेती की अपेक्षा कम पड़ती है।

  • जैविक खेती में मिट्टी को एक जीवित माध्यम माना गया है जो पौधों व जीवों के अवशेष को खाद के रूप में भूमि को प्राप्त होते हैं।

  • जैविक खेती के प्रयोग से उगाई गई फसलों पर बीमारियों एवं कीटों का प्रकोप बहुत कम होता है।

  • इसका परिणाम यह होता है कि फसलें पूर्ण रूप से रसायन मुक्त और स्वस्थ होती हैं।

  • स्वास्थ्य की दृष्टि से जैविक उत्पाद सर्वश्रेष्ठ होते हैं एवं इनके प्रयोग से कई प्रकार के रोगों से बचा जा सकता है।

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गेहूँ की बुवाई के समय इस प्रकार करें उर्वरक प्रबंधन

Fertilizer management in wheat at the time of sowing
  • गेहूँ रबी के मौसम की एक मुख्य फसल है और इसकी बुवाई के समय उचित उर्वरक प्रबंधन करने से फसल को अच्छी शुरुआत मिलती है। इसके साथ ही जड़ें अच्छी बनती है एवं कल्ले अच्छे फूटते हैं।

  • इस समय उचित उर्वरक प्रबंधन करने के लिए यूरिया @ 20 किलो/एकड़ + DAP@ 50 किलो/एकड़ + MOP @ 25 किलो/एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • यूरिया नाइट्रोज़न का स्त्रोत है, DAP नाइट्रोज़न एवं फास्फोरस का स्त्रोत है एवं MOP आवश्यक पोटाश की पूर्ति करता है इस प्रकार गेहूँ की फसल में बुवाई के समय पोषण प्रबंधन करने से उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है l

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भिंडी की फसल में हो जाए उकठा रोग तो कैसे करें बचाव?

How to save the okra crop from wilt disease
  • इस रोग के शुरूआती लक्षण विकसित कोपल एवं पत्तियों के किनारों पर दिखते हैं। इससे पत्तियां मुड़ने लग जाती है।

  • इसके कारण पौधों के ऊपर के हिस्से पीले हो जाते हैं, कलिका की वृद्धि रुक जाती है, तने एवं ऊपर की पत्तियां अधिक कठोर, भंगुर व नीचे की पत्तियां पीली होकर झड़ जाती है।

  • आखिर में पूरा पौधा मुरझा जाता है व तना नीचे की और सिकुड़ जाता है।

  • इसके कारण फसल गोल घेरे में फसल सूखने लग जाती है।

  • इसके रासायनिक उपचार के तौर पर कासुगामायसिन 5% + कॉपरआक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या कासुगामायसिन 3% SL@ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • वहीं जैविक उपचार हेतु मायकोराइजा @ 4 किलो/एकड़ या ट्राइकोडर्मा विरिडी@ 1 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार करें। या फिर स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।

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टमाटर की फसल को नुकसान पहुंचाएगा जीवाणु झुलसा रोग

Bacterial Blight disease will damage the tomato crop
  • इस रोग के प्रकोप से पौधा बौना रह जाता है, पत्तियां पीली हो जाती हैं तथा अंत में पौधा मुरझा के गिर जाता है।

  • निचली पत्तियां मुरझाने से पहले ही गिर जाती हैं।

  • निचले तने के खंड को काटकर देखने पर जीवाणु रिसाव द्रव्य देखा जा सकता है।

  • तने से अस्थानिक जड़े विकसित हो जाती हैं।

  • इस रोग के नियंत्रण के लिए बिजाई से पहले ब्लीचिंग पाउडर 6 किलो प्रति एकड़ की दर से डालें।

  • स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट आई.पी. 90% w/w + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड I.P. 10% w/w 30 ग्राम/एकड़ या कासुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 46% WP @ 300 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • क्रूसिफ़ेरी सब्जी, गेंदा और धान के साथ फसल चक्र अपनाने से भी टमाटर की फसल में इस रोग से बचाव होती है।

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