प्याज की 50-60 दिनों की अवस्था में जरूरी हैं ये छिड़काव

Necessary spraying management in 50-60 days in onion crop

  • किसान मित्रों इस समय प्याज की फसल 50-60 दिन की अवस्था पर आने वाली है। इस समय प्याज की फसल में पोषक तत्वों की उचित पूर्ति के साथ साथ कीटों एवं फफूंद जनित रोगों से सुरक्षा का भी विशेष ध्यान रखना होता है l 

  • इस अवस्था में पोषक तत्व प्रबंधन करने के लिए कैल्शियम नाइट्रेट @ 10 किलो + पोटाश @ 25 किलो/एकड़ जमीन के माध्यम से उपयोग करें। 

  • पोषक तत्वों के प्रबंधन के लिए पानी में घुलनशील उर्वरक 00:52:34 @ 1 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर उपयोग करें।

  • कीटों एवं फफूंदीजनित रोगों से सुरक्षा के लिए थियामेथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% जेडसी @ 80 मिली + क्लोरोथैलोनिल 75% डब्ल्यूपी @ 400 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • मौसम में बदलाव, जैसे कोहरा, ओस, बारिश जैसी संभावना दिखाई देने पर सिलिकॉन आधारित स्टीकर (सिलिकोमैक्स) 5 मिली प्रति पंप के अनुसार, उपयुक्त कीटनाशक एवं फफूंदी नाशक के साथ मिलाकर, छिड़काव करना चाहिए है l

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जनवरी के दूसरे पखवाड़े में किये जाने वाले प्रमुख कृषि कार्य

Major agricultural works to be done in the second fortnight of January
  • किसान भाइयों जनवरी माह के दूसरे पखवाड़े में अधिकत्तर फसलें अपनी क्रांतिक बढ़वार की अवस्था में होती हैं। 

  • इस समय फसलों में सिंचाई से लेकर पौध संरक्षण तक विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। साथ ही तापमान में तीव्र गिरावट होने से कोहरे, पाले एवं बारिश की संभावना रहती है। फसलों को इन कुप्रभावों से बचाने के लिए तथा भरपूर उत्पादन प्राप्त करने के लिए निम्न उन्नत सस्य क्रियाओं को अपना सकते है –

  • इस समय रबी की सबसे प्रमुख फसल गेहूं कहीं कल्ले निकलने की अवस्था में है तो कहीं गांठे बनने वाली बनने की अवस्था पर है। इन दोनों ही अवस्थाओं में सिंचाई करना बेहद जरूरी है।

  • चने में फली बनते समय इल्ली एवं फफूंदी जनित रोगों का प्रकोप अधिक होने की सम्भावना रहती है l इसके प्रबंधन के लिए हेक्साकोनाज़ोल 5% एससी @ 400 मिली + इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी @ 100 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।    

  • आलू में कंदो का आकार बढ़ाने के लिए आलू खुदाई के 10-15 दिन पहले 00:00:50 @ 1 किलोग्राम एवं इसके साथ पिक्लोबूट्राज़ोल 40% एससी @ 30 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।  

  • कद्दू वर्गीय फसलों में डाउनी मिल्ड्यू के प्रबंधन के लिए एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 11% + टेबुकनाज़ोल 18.3% एससी @ 300 मिली प्रति एकड़ छिड़काव करें।

  • तरबूज एक ऐसा फल जिसे गर्मियों के मौसम में लगाया जाता है, लेकिन तरबूज की बुवाई या नर्सरी तैयार करने के लिए जनवरी माह सर्वोत्तम माना गया है

  • बरसीम, रिजका व जई की हर कटाई के बाद सिंचाई करते रहें इससे बढ़वार अच्छी होती है। 

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गाजर घास नियंत्रण के प्रभावी उपाय

Know the measures of Congress grass control
  • किसान भाइयों, गाजर घास एक खरपतवार है, जिसका वैज्ञानिक नाम पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस है, इसे कैरट ग्रास, कांग्रेस घास और क्षेत्रीय भाषा में सफेद टोपी, चटक चांदणी आदि नामों से भी जाना जाता है।

  • यांत्रिक विधि द्वारा, नम जमीन में, इस खरपतवार को फूल आने से पहले हाथ से या खुरपी से उखाड़कर, इकट्ठा करके जला देने से काफी हद तक इसका नियंत्रण किया जा सकता है।

  • उखाड़े गये पौधों को 3 से 6 फीट गहरे गड्ढों में गोबर के साथ मिलाकर दबा देने से अच्छी किस्म की खाद तैयार की जा सकती है।

  • इस घास के रासायनिक नियंत्रण के लिए 2,4 डी @ 40 मिली/पंप उपयोग करें। जब गाजर घास के पौधे 3-4 पत्तों की अवस्था में हो छिड़काव कर सकते हैं। 

  • गैर फसली क्षेत्र में ग्लाइफोसेट 41% एसएल @ 225 मिली प्रति पंप की दर से साफ पानी में मिलाकर छिड़काव करें। बेहतर परिणाम के लिए इसमें 250 ग्राम अमोनियम सल्फेट मिला सकते है।

  • जैविक नियंत्रण के लिए बीटल कीट जो गाजर घास को अच्छी तरह नष्ट करने में सक्षम होते हैं और अन्य उपयोगी फसलों पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं डालते। जून से अक्टूबर के प्रथम पखवाड़े में बीटल कीट अधिक सक्रिय रहता है और 1 एकड़ के लिए लगभग 3 से 4 लाख बीटल कीट पर्याप्त रहता है। 

  • केसिया टोरा, गेंदा, जंगली चौलाई जैसे कुछ पौधों की बुवाई मानसून से पहले अप्रैल-मई में करने से गाजर घास ग्रसित क्षेत्र का प्रसारण कम होने लगता है।

कृषि एवं कृषि उत्पादों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। उन्नत कृषि उत्पादों की खरीदी के लिए ग्रामोफ़ोन के बाजार विकल्प पर जाना ना भूलें।

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कद्दू वर्गीय फसलों में रस चूसक कीटों का प्रबंधन

Management of sucking pests in cucurbitaceae crops
  • किसान भाइयों एवं बहनों कद्दू वर्गीय फसलों में मुख्यतः लौकी, करेला, गिलकी, तुरई, कद्दू, परवल, पेठा एवं खीरा आदि इसी वर्ग में आते हैं। 

  • मौसम में हो रहे परिवर्तनों के कारण इन फसलों में रस चूसक कीट जैसे थ्रिप्स, माहू, हरा तेला, मकड़ी, सफेद मक्खी आदि पत्तियों, कोमल बेलों व फूलों का रस चूसकर बहुत नुकसान पहुंचाते है। इनका सही समय पर प्रबंधन आवश्यक है –

  • थ्रिप्स:- प्रोफेनोफोस 50% ईसी @ 500 मिली या एसीफेट 75% एसपी @ 300 ग्राम या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% सीएस @ 200 मिली या फिप्रोनिल 5% एससी @ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।  

  • माहू/हरा तेला:- एसीफेट 50 % + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% एसपी @ 400 ग्राम या  एसिटामिप्रीड 20 % एसपी @ 100 ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एसएल @ 100 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।   

  • सफेद मक्खी:- डायफैनथीयुरॉन 50% डब्ल्यूपी @ 250 ग्राम या फ्लोनिकामिड 50% डब्ल्यूजी @ 60 ग्राम या एसिटामिप्रीड 20 % एसपी @ 100 ग्राम/एकड़ की दर छिड़काव करें। 

  • मकड़ी:- प्रॉपरजाइट 57% ईसी @ 400 मिली या स्पाइरोमेसिफेन 22.9% एससी @ 250 मिली या एबामेक्टिन 1.9 % ईसी @ 150 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

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गेहूँ में बालियां निकलते समय जरूर करें ये आवश्यक छिड़काव

In wheat crops necessary spraying management at the time of earhead emergence
  • किसान भाइयों गेहूँ की फसल में 60 -90 दिनों की अवस्था बाली निकलने एवं बालियों में दाना भरने की होती है।

  • इस अवस्था में गेहूँ की फसल में पोषक तत्व प्रबंधन करना बहुत ही आवश्यक होता है।

  • फसल की अच्छी वृद्धि एवं बालियां बनने के लिए होमोब्रासिनोलाइड 0.04% @ 100 मिली + 00:52:34 @ 1 किलो प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें एवं 10 – 15 दिन बाद बालियों में अच्छा दाना भरने के लिए 00:00:50 @ 1 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।  

  • किसान भाई 00:52:34 के बदले मेजरसोल 500 ग्राम प्रति एकड़ का छिड़काव करें। 

  • बालियाँ निकलने की अवस्था में गेहूँ की फसल में फफूंदी जनित रोगों का प्रकोप अधिक होने की संभावना होती है। इसके लिए हेक्साकोनाज़ोल 5% एससी @ 400 मिली/एकड़ एवं 7-10 दिन बाद प्रोपिकोनाजोल 25% ईसी @ 200 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।  

  • जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें। 

  • इस समय इल्लीयों (सूंडी) का प्रकोप दिखाई देने पर इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी @ 100 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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ऐसे करें गेहूँ के लूज़ स्मट अर्थात अनावृत्त कंडवा रोग का नियंत्रण

Loose smut disease in wheat
  • प्रिय किसान भाइयों गेहूँ में लगने वाला लूज़ स्मट यानि अनावृत्त कंडवा रोग एक बीज़ जनित रोग है, इसका रोगकारक अस्टीलैगो सेजेटम नामक फफूंद है।

  • इस रोग से संक्रमित बीज ऊपर से बिल्कुल स्वस्थ बीजों की तरह ही दिखाई देते है।

  • इस रोग के लक्षण गेहूँ में बाली आने पर दिखाई देते हैं।

  • रोगी पौधों की बालियों में दाने की जगह रोगजनक के रोगकंड (स्पोर्स) काले पाउडर के रूप में पाये जाते हैं, जो कि हवा से उड़कर अन्य स्वस्थ बालियों को भी संक्रमित कर देते हैं।

  • इस रोग के नियंत्रण का सबसे अच्छा उपाय बीज़ उपचार ही है।

  • इसके आलावा इस रोग के नियंत्रण के लिए कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% डब्ल्यूपी @ 300 ग्राम या हेक्साकोनाज़ोल 5% एससी @ 400 मिली या टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% डब्ल्यूजी @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।  

  • जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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चने की 55 से 60 दिनों की फसल अवस्था में ये छिड़काव जरूर करें

Required spraying management in 55-60 days in gram crop
  • किसान भाइयों दलहनी फसलों में चना एक महत्वपूर्ण फसल है। भारत में उगाई जाने वाली दलहनी फसलों की कुल पैदावार का लगभग आधा हिस्सा चने से प्राप्त होता है। 

  • चने की फसल में 55 -60 दिनों की अवस्था में फली लगने लगती है इस समय कीटों एवं फफूंदी जनित रोगों का प्रकोप अधिक होने की संभावना रहती है। इसके प्रबंधन के लिए प्रोपिकोनाज़ोल 25% ईसी @ 200 मिली + इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी @ 100 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।  

  • जैविक उपचार के रूप में रोग प्रबंधन के लिए स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम एवं कीट प्रबंधन के लिए बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।     

  • चने की फसल में फलों की संख्या में वृद्धि के लिए समय पर पोषण प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण है। पोषण प्रबंधन के लिए 00:00:50 @ 1 किलो/एकड़ की दर से उपयोग करें। 

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प्याज लहसुन में पीलेपन की समस्या का ऐसे करें निदान

Yellowing in onion and garlic crop is a burning problem
  • किसान भाइयों इस समय प्याज एवं लहसुन की फसल में पीलेपन की समस्या बहुत अधिक दिखाई दे रही है जिसके कारण फसल की वृद्धि एवं विकास पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ रहा है।

  • फसल में पीलेपन के एक से अधिक कारण हो सकते हैं। जैसे फसल में रस चूसक कीटों का प्रकोप, फफूंदी जनित रोगों का संक्रमण, पानी की अधिकता, नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों या पोषक तत्वों की कमी कोई भी कारण हो सकता है। जिसके चलते फसल में पीलापन और पत्तियां सूखने जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं। इसके लिए निम्न उपाय अपनाए जा सकते हैं। 

  • यदि मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में उर्वरक पहले नहीं दिए गए हैं तो फसल में सिंचाई के बाद यूरिया जरूर दें।

  • यदि जल भराव की स्थिति दिखाई दे तो अतिरिक्त जल को बाहर निकालें।

  • यदि फफूंदी जनित रोगों के कारणों से है तो कासुगामाइसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% डब्ल्यूपी @ 300 ग्राम या थायोफिनेट मिथाइल 70% डब्ल्यूपी @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

  • रस चूसक कीटों के प्रकोप होने पर प्रोफेनोफॉस 40 % + सायपरमेथ्रिन 4% ईसी @ 400 मिली या फिप्रोनिल 40% +इमिडाक्लोप्रिड 40% डब्ल्यूजी @ 80 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • पोषक तत्वों की कमी के कारण होने पर सीवीड एक्सट्रैक्ट @ 400 मिली या ह्यूमिक एसिड @ 100 ग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें।

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टमाटर में जीवाणु झुलसा की घातक बीमारी का हो रहा प्रकोप

Symptoms and control measures of bacterial blight disease in tomato crops
  • इस रोग के प्रकोप से पौधा बौना रह जाता है, पत्तियां पीली हो जाती हैं तथा पौधा मुरझाकर अंत में गिर जाता है। साथ ही निचली पत्तियां मुरझाने से पहले ही गिर सकती हैं।

  • निचले तने के खंड को काटकर देखने पर, जीवाणु रिसाव द्रव्य देखा जा सकता है। तने से अस्थानिक जड़े विकसित हो जाती है।

  • इस रोग के नियंत्रण के लिए बुवाई से पहले ब्लीचिंग पाउडर 6 किलो प्रति एकड़ की दर से डालना चाहिए। 

  • स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट आई.पी. 90% w/w + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड I.P. 10% w/w @ 20 ग्राम/एकड़ या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्ल्यूपी @ 500 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें।

  • क्रूसीफेरी कुल की सब्जियां, गेंदा और धान के साथ फसल चक्र अपनाएं। 

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आलू की फसल में ब्लैक स्कर्फ रोग का कारण और नियंत्रण विधि

What causes black scarf disease in potatoes
  • आलू के पौधों में ब्लैक स्कर्फ रोग राइजोक्टोनिया सोलेनाई नामक फफूंद के कारण होता है l 

  • यह आलू के पौधों पर किसी भी अवस्था में दिखाई दे सकता है l 

  • यह रोग अचानक मौसम में बदलाव के कारण होता है, अधिक तापमान और आद्रता के होने यह रोग बहुत तेज़ी से बढ़ता है l 

  • इस रोग से ग्रसित पौधों पर काले उठे हुए धब्बे दिखाई देते हैं l 

  • आलू के कंद पर भी इस रोग के लक्षण दिखाई देते है जिसके कारण कंद खाने योग्य नही रहते हैं l 

  • इस रोग के नियंत्रण के लिए कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP @ 300 ग्राम या क्लोरोथालोनिल 75% WP @ 300 ग्राम या टेबुकोनाज़ोल 25.9% EC @ 200 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करे l 

  • थायोफेनेट मिथाइल 45% + पायराक्लोस्ट्रोबिन 5% FS 2 मिली प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार कर बुवाई करें l 

  • जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ के रूप में  उपयोग करे। 

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