मटर एवं चने में फली छेदक इल्ली की रोकथाम के उपाय

A problem of pod borer in pea and gram crop
  • किसान भाइयों एवं बहनों, फली छेदक मटर एवं चने की फसल का प्रमुख कीट है जो फसल को भारी नुकसान पहुंचाता है। 

  • इसकी इल्ली गहरे रंग की होती है जो बाद में गहरे भूरे रंग की हो जाती है यह कीट फूल आने के समय से फसल कटाई तक फसल को नुकसान पहुंचाते है।

  • यह कीट फली में छेद करके अंदर प्रवेश कर दाने को खाकर नुकसान पहुंचाती है। 

  • इसके नियंत्रण के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी @ 100 ग्राम या फ्लुबेंडियामाइड 39.35 % एससी @ 50 मिली या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5 % एससी @ 60 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।  

  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से  छिड़काव करें।

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भिंडी में रस चूसक कीटों का प्रकोप एवं नियंत्रण के उपाय

Infestation of sucking pests in okra crop

  • भिंडी की फसल में रस चूसक कीट जैसे माहू, हरा तेला, मकडी, सफेद मक्खी आदि का आक्रमण सामान्यतः दिखाई देता है।

  • इन सभी रस चूसक कीटों के निम्फ तथा प्रौढ़ दोनों ही भिंडी के पौधों के कोमल भागों, फूलों-पत्तियों से रस चूसते है। जिससे पौधों की बढ़वार रुक जाती है, पत्तियां मुरझा जाती है तथा पीली पड़ जाती है, अधिक आक्रमण होने पर तो पत्तियां गिर भी जाती है। 

  • संक्रमित भाग पर ये कीट एक चिपचिपा पदार्थ भी स्त्रावित करते है, जिससे फफूंद का संक्रमण बढ़ सकता है एवं प्रकाश संश्लेषण क्रिया में बाधा आती है। 

  • इनमें से सफेद मक्खी भिंडी के प्रमुख विषाणु जनित रोग पीला शिरा मोजेक वायरस को फैलाने में भी सहायक होती है। 

  • माहू/हरा तेला नियंत्रण के लिए:- एसीफेट 50 % + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% एसपी @ 400 ग्राम या एसिटामिप्रीड 20 % एसपी @ 100 ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एसएल @ 100 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।   

  • सफेद मक्खी नियंत्रण के लिए:- डायफैनथीयुरॉन 50% डब्ल्यूपी @ 250 ग्राम या फ्लोनिकामिड 50% डब्ल्यूजी @ 60 ग्राम या एसिटामिप्रीड 20 % एसपी @ 100 ग्राम/एकड़ की दर छिड़काव करें।

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बदलते मौसम में रोग और कीटों से कैसे बचाएं अपनी फसल

How to protect your crop from diseases and pests in changing weather
  • इस महीने कहीं पर बारिश तो कहीं कोहरे की वजह से तापमान में उतार चढ़ाव होता रहा है, जिसके कारण फसलों पर रोगों एवं कीटों का खतरा बढ़ जाता है, जो कि उपज की गुणवत्ता के लिए हानिकारक है। ऐसे में अगर किसान कुछ बातों का ध्यान रखें तो नुकसान से बच सकते हैं।

  • मौसम में होते बदलाव में सरसों की फसल में माहू कीट का खतरा अक्सर बढ़ जाता है, इसकी रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 30.5% एससी @ 50 मिली या फ्लोनिकामिड 50% डब्ल्यूजी @ 60 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

  • चने में फली छेदक इल्ली के नियंत्रण के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी @ 100 ग्राम या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5 % एससी @ 60 मिली/एकड़ की दर से  छिड़काव करें। इसके साथ फेरोमोन ट्रैप 10 नग प्रति एकड़ खेतों में स्थापित करें। 

  • गोभी वर्गीय फसलों में इस मौसम में, डायमंड बैक मॉथ (हीरक प्रष्ट फुदका) कीट के प्रकोप की सम्भावना अधिक रहती है। ऐसे में फसल की निगरानी के लिए फेरोमोन ट्रैप 10 नग प्रति एकड़ की दर से खेतों में लगाएं। रासायनिक नियंत्रण के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी @ 100 ग्राम या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% एससी @ 60 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

  • गेहूँ में इस समय कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% डब्ल्यूपी @ 300 ग्राम या हेक्साकोनाज़ोल 5% एससी @ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करने से अनावृत्त कंडवा रोग एवं अन्य फफूंदी जनित रोगों से फसल को बचाया जा सकता है।

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खरीफ प्याज को भंडारित करते समय रखी जाने वाली सावधानियां

Precautions to be taken while storing Kharif Onion
  • प्याज की मांग पूरे वर्ष रहती है। अतः प्याज का भंडारण पूरे वर्ष की आपूर्ति के लिए अति आवश्यक होता है। हमारे देश में प्याज की अपर्याप्त भंडारण सुविधा एवं बेमौसम बरसात के कारण 30-40 प्रतिशत प्याज सड़ जाता है।

  • ज्यादातर किसान भाई रबी के प्याज का ही भण्डारण करते हैं क्योंकि खरीफ और पछेती खरीफ प्याज की अपेक्षा रबी प्याज में बेहतर भंडारण क्षमता होती है। 

  • पत्ते पीले रंग में बदलने तथा गर्दन पतली होने तक पौधों को खेतों में सुखाना चाहिए फिर पर्याप्त वायु संचार के साथ छाया में सुखाया जाना चाहिए। छाया में सुखाने से कन्दों की सूरज की तीखी किरणों से रक्षा होती है, रंग में सुधार आता है और बाहरी सतह सूख जाती है। 

  • कई बार कुदाली या फावड़े से कंद को घाव हो जाता है। कंद की छटाई करते समय दाग लगे हुए कंद को अलग निकाल देना चाहिए। बाद में इन्हीं ख़राब कंदो से सडन पैदा हो कर अन्य दूसरे कंदों में भी सडन शुरू हो जाती है।

  • प्याज के अच्छे भंडारण के लिए, जूट (टाट)/प्लास्टिक की 50 किग्रा की जालीदार बोरियां का या प्लास्टिक/लकड़ी की टोकरीयों का उपयोग करना चाहिए।

  • प्याज को पैकिंग के बाद 5 फीट ऊंचाई तक भंडार गृह में रखना चाहिए ताकि निकालने में आसानी हो। 

  • अच्छे भंडारण के लिए भंडार गृहों का तापमान 30-35˚ सें. तथा सापेक्ष आर्द्रता 65-70 प्रतिशत होनी चाहिए।

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अजोला दुधारू पशुओं के लिए है एक वरदान

Azolla a nutritious aquatic fodder for livestock
  • नमस्कार किसान भाइयों हमारे देश की अर्थव्यवस्था में पशुपालन का महत्वपूर्ण स्थान है, हमारे यहां किसान की जोत का आकार दिन प्रतिदिन छोटा होता जा रहा है और किसान चाह कर भी, हरे चारे की खेती करने में खुद को असमर्थ पा रहे हैं। यही वजह है कि देश में हरे चारे की उपलब्धता बहुत कम होती जा रही है।         

  • ऐसे में पशुओं के लिए हरे चारे के रूप में अजोला एक अच्छा विकल्प है।

  • अजोला उगाने के लिए हरे चारे की फसलों को उगाने की तरह उपजाऊ भूमि की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है।

  • इसे किसी भी प्रकार की भूमि में गड्ढा खोदकर और उसमें पानी भर कर जलीय चारे के रूप में उगाया जा सकता है।

  • अगर जमीन रेतीली है तो उसमे गड्ढे में प्लास्टिक की शीट बिछा कर पानी भर कर अजोला को उगाया जा सकता है।

  • अजोला गाय, भैंस, मुर्गियों व बकरियों के लिए आदर्श चारा है। 

  • अजोला खिलाने से दुध देने वाले पशुओं के दूध उत्पादन में बढ़ोतरी होती है।

  • जो मुर्गी सामान्य रूप से साल में 150 अंडे देती है उन्हें अजोला आहार के रूप में देने से वह साल में 180-190 अंडे तक दे सकती है।

  • इतना ही नहीं, मछली उत्पादन में भी अजोला लाभकारी साबित हुआ है। 

  • अच्छी गुणवत्ता, पाचन शीलता और प्रचुर मात्रा में प्रोटीन का स्रोत होने के कारण अजोला किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।

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प्याज में गुलाबी सड़न रोग की पहचान एवं नियंत्रण के उपाय

Prevention of pink rot disease in onion crop
  • प्रिय किसान भाइयों प्याज की फसल में होने वाला गुलाबी सड़न एक प्रमुख रोग है।

  • इसका सबसे मुख्य लक्षण, प्याज़ की जड़ों का गुलाबी होकर सड़ जाना है, इसके कारण कंद का विकास बहुत अधिक प्रभावित होता है, कंद छोटा रह जाता है।

  • इसके नियंत्रण के लिए निम्न उत्पादों का उपयोग कर सकते है।

  • कीटाजिन 48% ईसी @ 400 मिली प्रति एकड़ या थायोफिनेट मिथाइल 70% डब्ल्यूपी @ 300 ग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करें। 

  • जैविक नियंत्रण के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम प्रति एकड़ मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें एवं स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करें।

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आलू के कंद फटने के कारण एवं रोकथाम के उपाय

Are your potato tubers cracking
  • किसान मित्रों आलू की फसल जब 80 -90 दिन की हो जाती है तो कंद फटने की समस्या मुख्यतः देखी जाती है।

  • आलू की फसल में कंद फटने के निम्न कारण होते हैं जैसे – अत्यधिक नाइट्रोजन, खराब मिट्टी की संरचना, बोरॉन की कमी और कम रोपण घनत्व इस विकार के मुख्य कारण हैं। इसके अलावा खेत में अनियमित सिंचाई अर्थात खेत में ज्यादा सिंचाई के बाद में पूरी तरह से सूखने दें एवं अधिक सिंचाई दोबारा करने के कारण भी कंद फटने लगते है। 

  • कंदो पर कटे निशान, गले हुए धब्बे होने के कारण फफूंदी जनित रोगों एवं कीटों प्रकोप अधिक होने की सम्भावना रहती है।

  • फसल उत्पादन का अच्छा बाजार मूल्य प्राप्त करने के लिए आलू अच्छा चमकदार, बड़े आकार का होना चाहिए।

  • आलू में अच्छी चमक एवं फटने से रोकने के लिए बोरॉन 500 ग्राम + कैल्शियम नाइट्रेट 1 किलो प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • एक समान सिंचाई और उर्वरकों की सही मात्रा उपयोग करने से कंदों को फटने से रोका जा सकता है।

  • जिन क्षेत्रों में यह समस्या हर वर्ष देखने को मिलती है वहाँ धीमी वृद्धि करने वाले किस्मों का उपयोग करें इससे भी इस विकार को कम कर सकते है।

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मशरूम की खेती कर लाखों कमाएं

Earn millions by cultivating mushrooms
  • किसान भाइयों, पिछले कुछ वर्षों से भारतीय बाजार में मशरूम की मांग बहुत तेजी से बढ़ी है। जिस हिसाब से बाजार में मांग है उस हिसाब से इसका उत्पादन नहीं है, ऐसे में किसान मशरूम की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। 

  • मशरूम की खेती के लिए एक कमरा ही पर्याप्त रहता है। जिस किसान के पास जगह की कमी है वो इस खेती को अपनाकर अच्छा लाभ कमा सकते है।

  • विश्व में मशरूम की लगभग 10000 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 70 प्रजातियां ही खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं।

  • भारतीय वातावरण में मुख्य रूप से पांच प्रकार के खाद्य मशरूमों की व्यवसायिक खेती की जाती है। जिसमे मुख्य रूप से, सफेद बटन मशरूम, ढींगरी मशरूम, दूधिया (मिल्की) मशरूम, पैडी स्ट्रॉ मशरूम, शिटाके मशरूम है।

  • ढिंगरी मशरूम जो आयस्टर मशरूम के नाम से लोकप्रिय है। अधिकतर लोग, आयस्टर मशरूम को खाना पसंद करते है l ढिंगरी मशरूम की खेती के लिए उचित समय सितम्बर महीने से 15 नवंबर तक रहता है। 

  • अपने उच्च पोषण एवं औषधीय गुणों के कारण मशरूम की उपयोगिता भोजन और औषधि दोनों में ही अधिक है।

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फसलों में कहीं मावठ से फायदा, तो कहीं ओलावृष्टि से नुकसान

Somewhere the weather is beneficial and somewhere it is getting fatal
  • प्रिय किसान भाइयों राज्य में इन दिनों मौसम से कहीं किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो रहा है तो कहीं नुकसान का। मावठ ज्यादातर फसलों के लिए अमृत की तरह है। लेकिन मावठ के साथ ही हो रही ओलावृष्टि से किसान फसल खराब होने से परेशान हैं।

  • जानकारों का कहना है कि रबी सीजन में हल्की बारिश फसलों के लिए अमृत की तरह है, जबकि ओलावृष्टि फसलों के लिए नुकसानदायक। 

  • मावठ में बारिश सभी इलाकों में समान होती हैं। जिससे किसानों को सिंचाई खर्च बचाने में भी मदद मिलती है। वहीं इससे तापमान में परिवर्तन देखा जाता है। ऐसा होने से पाला पड़ने की संभावना कम हो जाती है। इससे फसलों को नुकसान नहीं पहुंचता है।

  • बरसात से फसलों के उत्पादन में फायदा होता है। क्योंकि बरसात के पानी के साथ नाइट्रोजन भी आता है। इससे किसानों को यूरिया खाद की आवश्यकता कम पड़ती है। वहीं सिंचाई से मुक्ति मिलती है। हालांकि जरूरत से ज्यादा बारिश होने पर यह नुकसानदायक होती है।

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मावठा है गेहूँ की फसल के लिए बेहद फायदेमंद

Winter rain is beneficial for the wheat crop
  • किसान भाइयों शीतकाल की बारिश जिसे आम भाषा में मावठा नाम से जाना जाता है, मावठा गेहूं के किसानों के लिए किसी अमृत से कम नहीं है, हाँ पर तेज बारिश के साथ ओलावृष्टि होती है तो गेहूं में कम एवं अन्य फसलों में काफी नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है।

  • पिछले दिनों हुई बारिश से गेहूं की फसल में किसानों को अच्छा फायदा हुआ। जिससे कुल लागत में फसल की एक सिंचाई पर होने वाले पानी, बिजली खर्च के साथ मजदूरों का खर्च भी प्रति एकड़ की दर से बचा है।

  • खेत में खड़ी गेहूं की फसल में जिन किसानों ने पहला पानी दिया था, उसमें दूसरी बार पानी लग गया और जिन किसानों ने देरी से गेहूं बोए थे, उसमें पहले पानी की आवश्यकता थी, तो उसमें पहला पानी लग गया। 

  • जिन किसान भाइयो ने असिंचित गेहूं की बुवाई बिना उर्वरक के उपयोग की थी वो इस समय 20 किलो प्रति एकड़ के अनुसार यूरिया का उपयोग करें, भूमि में नमी होने से यूरिया धीमी गति से घुलकर पौधों को उपलब्ध होगी और निश्चित ही उपज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

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