प्याज में गुलाबी सड़न रोग की पहचान एवं नियंत्रण के उपाय

Prevention of pink rot disease in onion crop
  • प्रिय किसान भाइयों प्याज की फसल में होने वाला गुलाबी सड़न एक प्रमुख रोग है।

  • इसका सबसे मुख्य लक्षण, प्याज़ की जड़ों का गुलाबी होकर सड़ जाना है, इसके कारण कंद का विकास बहुत अधिक प्रभावित होता है, कंद छोटा रह जाता है।

  • इसके नियंत्रण के लिए निम्न उत्पादों का उपयोग कर सकते है।

  • कीटाजिन 48% ईसी @ 400 मिली प्रति एकड़ या थायोफिनेट मिथाइल 70% डब्ल्यूपी @ 300 ग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करें। 

  • जैविक नियंत्रण के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम प्रति एकड़ मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें एवं स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करें।

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आलू के कंद फटने के कारण एवं रोकथाम के उपाय

Are your potato tubers cracking
  • किसान मित्रों आलू की फसल जब 80 -90 दिन की हो जाती है तो कंद फटने की समस्या मुख्यतः देखी जाती है।

  • आलू की फसल में कंद फटने के निम्न कारण होते हैं जैसे – अत्यधिक नाइट्रोजन, खराब मिट्टी की संरचना, बोरॉन की कमी और कम रोपण घनत्व इस विकार के मुख्य कारण हैं। इसके अलावा खेत में अनियमित सिंचाई अर्थात खेत में ज्यादा सिंचाई के बाद में पूरी तरह से सूखने दें एवं अधिक सिंचाई दोबारा करने के कारण भी कंद फटने लगते है। 

  • कंदो पर कटे निशान, गले हुए धब्बे होने के कारण फफूंदी जनित रोगों एवं कीटों प्रकोप अधिक होने की सम्भावना रहती है।

  • फसल उत्पादन का अच्छा बाजार मूल्य प्राप्त करने के लिए आलू अच्छा चमकदार, बड़े आकार का होना चाहिए।

  • आलू में अच्छी चमक एवं फटने से रोकने के लिए बोरॉन 500 ग्राम + कैल्शियम नाइट्रेट 1 किलो प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • एक समान सिंचाई और उर्वरकों की सही मात्रा उपयोग करने से कंदों को फटने से रोका जा सकता है।

  • जिन क्षेत्रों में यह समस्या हर वर्ष देखने को मिलती है वहाँ धीमी वृद्धि करने वाले किस्मों का उपयोग करें इससे भी इस विकार को कम कर सकते है।

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मशरूम की खेती कर लाखों कमाएं

Earn millions by cultivating mushrooms
  • किसान भाइयों, पिछले कुछ वर्षों से भारतीय बाजार में मशरूम की मांग बहुत तेजी से बढ़ी है। जिस हिसाब से बाजार में मांग है उस हिसाब से इसका उत्पादन नहीं है, ऐसे में किसान मशरूम की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। 

  • मशरूम की खेती के लिए एक कमरा ही पर्याप्त रहता है। जिस किसान के पास जगह की कमी है वो इस खेती को अपनाकर अच्छा लाभ कमा सकते है।

  • विश्व में मशरूम की लगभग 10000 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 70 प्रजातियां ही खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं।

  • भारतीय वातावरण में मुख्य रूप से पांच प्रकार के खाद्य मशरूमों की व्यवसायिक खेती की जाती है। जिसमे मुख्य रूप से, सफेद बटन मशरूम, ढींगरी मशरूम, दूधिया (मिल्की) मशरूम, पैडी स्ट्रॉ मशरूम, शिटाके मशरूम है।

  • ढिंगरी मशरूम जो आयस्टर मशरूम के नाम से लोकप्रिय है। अधिकतर लोग, आयस्टर मशरूम को खाना पसंद करते है l ढिंगरी मशरूम की खेती के लिए उचित समय सितम्बर महीने से 15 नवंबर तक रहता है। 

  • अपने उच्च पोषण एवं औषधीय गुणों के कारण मशरूम की उपयोगिता भोजन और औषधि दोनों में ही अधिक है।

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फसलों में कहीं मावठ से फायदा, तो कहीं ओलावृष्टि से नुकसान

Somewhere the weather is beneficial and somewhere it is getting fatal
  • प्रिय किसान भाइयों राज्य में इन दिनों मौसम से कहीं किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो रहा है तो कहीं नुकसान का। मावठ ज्यादातर फसलों के लिए अमृत की तरह है। लेकिन मावठ के साथ ही हो रही ओलावृष्टि से किसान फसल खराब होने से परेशान हैं।

  • जानकारों का कहना है कि रबी सीजन में हल्की बारिश फसलों के लिए अमृत की तरह है, जबकि ओलावृष्टि फसलों के लिए नुकसानदायक। 

  • मावठ में बारिश सभी इलाकों में समान होती हैं। जिससे किसानों को सिंचाई खर्च बचाने में भी मदद मिलती है। वहीं इससे तापमान में परिवर्तन देखा जाता है। ऐसा होने से पाला पड़ने की संभावना कम हो जाती है। इससे फसलों को नुकसान नहीं पहुंचता है।

  • बरसात से फसलों के उत्पादन में फायदा होता है। क्योंकि बरसात के पानी के साथ नाइट्रोजन भी आता है। इससे किसानों को यूरिया खाद की आवश्यकता कम पड़ती है। वहीं सिंचाई से मुक्ति मिलती है। हालांकि जरूरत से ज्यादा बारिश होने पर यह नुकसानदायक होती है।

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मावठा है गेहूँ की फसल के लिए बेहद फायदेमंद

Winter rain is beneficial for the wheat crop
  • किसान भाइयों शीतकाल की बारिश जिसे आम भाषा में मावठा नाम से जाना जाता है, मावठा गेहूं के किसानों के लिए किसी अमृत से कम नहीं है, हाँ पर तेज बारिश के साथ ओलावृष्टि होती है तो गेहूं में कम एवं अन्य फसलों में काफी नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है।

  • पिछले दिनों हुई बारिश से गेहूं की फसल में किसानों को अच्छा फायदा हुआ। जिससे कुल लागत में फसल की एक सिंचाई पर होने वाले पानी, बिजली खर्च के साथ मजदूरों का खर्च भी प्रति एकड़ की दर से बचा है।

  • खेत में खड़ी गेहूं की फसल में जिन किसानों ने पहला पानी दिया था, उसमें दूसरी बार पानी लग गया और जिन किसानों ने देरी से गेहूं बोए थे, उसमें पहले पानी की आवश्यकता थी, तो उसमें पहला पानी लग गया। 

  • जिन किसान भाइयो ने असिंचित गेहूं की बुवाई बिना उर्वरक के उपयोग की थी वो इस समय 20 किलो प्रति एकड़ के अनुसार यूरिया का उपयोग करें, भूमि में नमी होने से यूरिया धीमी गति से घुलकर पौधों को उपलब्ध होगी और निश्चित ही उपज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

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प्याज की 50-60 दिनों की अवस्था में जरूरी हैं ये छिड़काव

Necessary spraying management in 50-60 days in onion crop

  • किसान मित्रों इस समय प्याज की फसल 50-60 दिन की अवस्था पर आने वाली है। इस समय प्याज की फसल में पोषक तत्वों की उचित पूर्ति के साथ साथ कीटों एवं फफूंद जनित रोगों से सुरक्षा का भी विशेष ध्यान रखना होता है l 

  • इस अवस्था में पोषक तत्व प्रबंधन करने के लिए कैल्शियम नाइट्रेट @ 10 किलो + पोटाश @ 25 किलो/एकड़ जमीन के माध्यम से उपयोग करें। 

  • पोषक तत्वों के प्रबंधन के लिए पानी में घुलनशील उर्वरक 00:52:34 @ 1 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर उपयोग करें।

  • कीटों एवं फफूंदीजनित रोगों से सुरक्षा के लिए थियामेथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% जेडसी @ 80 मिली + क्लोरोथैलोनिल 75% डब्ल्यूपी @ 400 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • मौसम में बदलाव, जैसे कोहरा, ओस, बारिश जैसी संभावना दिखाई देने पर सिलिकॉन आधारित स्टीकर (सिलिकोमैक्स) 5 मिली प्रति पंप के अनुसार, उपयुक्त कीटनाशक एवं फफूंदी नाशक के साथ मिलाकर, छिड़काव करना चाहिए है l

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जनवरी के दूसरे पखवाड़े में किये जाने वाले प्रमुख कृषि कार्य

Major agricultural works to be done in the second fortnight of January
  • किसान भाइयों जनवरी माह के दूसरे पखवाड़े में अधिकत्तर फसलें अपनी क्रांतिक बढ़वार की अवस्था में होती हैं। 

  • इस समय फसलों में सिंचाई से लेकर पौध संरक्षण तक विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। साथ ही तापमान में तीव्र गिरावट होने से कोहरे, पाले एवं बारिश की संभावना रहती है। फसलों को इन कुप्रभावों से बचाने के लिए तथा भरपूर उत्पादन प्राप्त करने के लिए निम्न उन्नत सस्य क्रियाओं को अपना सकते है –

  • इस समय रबी की सबसे प्रमुख फसल गेहूं कहीं कल्ले निकलने की अवस्था में है तो कहीं गांठे बनने वाली बनने की अवस्था पर है। इन दोनों ही अवस्थाओं में सिंचाई करना बेहद जरूरी है।

  • चने में फली बनते समय इल्ली एवं फफूंदी जनित रोगों का प्रकोप अधिक होने की सम्भावना रहती है l इसके प्रबंधन के लिए हेक्साकोनाज़ोल 5% एससी @ 400 मिली + इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी @ 100 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।    

  • आलू में कंदो का आकार बढ़ाने के लिए आलू खुदाई के 10-15 दिन पहले 00:00:50 @ 1 किलोग्राम एवं इसके साथ पिक्लोबूट्राज़ोल 40% एससी @ 30 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।  

  • कद्दू वर्गीय फसलों में डाउनी मिल्ड्यू के प्रबंधन के लिए एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 11% + टेबुकनाज़ोल 18.3% एससी @ 300 मिली प्रति एकड़ छिड़काव करें।

  • तरबूज एक ऐसा फल जिसे गर्मियों के मौसम में लगाया जाता है, लेकिन तरबूज की बुवाई या नर्सरी तैयार करने के लिए जनवरी माह सर्वोत्तम माना गया है

  • बरसीम, रिजका व जई की हर कटाई के बाद सिंचाई करते रहें इससे बढ़वार अच्छी होती है। 

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गाजर घास नियंत्रण के प्रभावी उपाय

Know the measures of Congress grass control
  • किसान भाइयों, गाजर घास एक खरपतवार है, जिसका वैज्ञानिक नाम पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस है, इसे कैरट ग्रास, कांग्रेस घास और क्षेत्रीय भाषा में सफेद टोपी, चटक चांदणी आदि नामों से भी जाना जाता है।

  • यांत्रिक विधि द्वारा, नम जमीन में, इस खरपतवार को फूल आने से पहले हाथ से या खुरपी से उखाड़कर, इकट्ठा करके जला देने से काफी हद तक इसका नियंत्रण किया जा सकता है।

  • उखाड़े गये पौधों को 3 से 6 फीट गहरे गड्ढों में गोबर के साथ मिलाकर दबा देने से अच्छी किस्म की खाद तैयार की जा सकती है।

  • इस घास के रासायनिक नियंत्रण के लिए 2,4 डी @ 40 मिली/पंप उपयोग करें। जब गाजर घास के पौधे 3-4 पत्तों की अवस्था में हो छिड़काव कर सकते हैं। 

  • गैर फसली क्षेत्र में ग्लाइफोसेट 41% एसएल @ 225 मिली प्रति पंप की दर से साफ पानी में मिलाकर छिड़काव करें। बेहतर परिणाम के लिए इसमें 250 ग्राम अमोनियम सल्फेट मिला सकते है।

  • जैविक नियंत्रण के लिए बीटल कीट जो गाजर घास को अच्छी तरह नष्ट करने में सक्षम होते हैं और अन्य उपयोगी फसलों पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं डालते। जून से अक्टूबर के प्रथम पखवाड़े में बीटल कीट अधिक सक्रिय रहता है और 1 एकड़ के लिए लगभग 3 से 4 लाख बीटल कीट पर्याप्त रहता है। 

  • केसिया टोरा, गेंदा, जंगली चौलाई जैसे कुछ पौधों की बुवाई मानसून से पहले अप्रैल-मई में करने से गाजर घास ग्रसित क्षेत्र का प्रसारण कम होने लगता है।

कृषि एवं कृषि उत्पादों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। उन्नत कृषि उत्पादों की खरीदी के लिए ग्रामोफ़ोन के बाजार विकल्प पर जाना ना भूलें।

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कद्दू वर्गीय फसलों में रस चूसक कीटों का प्रबंधन

Management of sucking pests in cucurbitaceae crops
  • किसान भाइयों एवं बहनों कद्दू वर्गीय फसलों में मुख्यतः लौकी, करेला, गिलकी, तुरई, कद्दू, परवल, पेठा एवं खीरा आदि इसी वर्ग में आते हैं। 

  • मौसम में हो रहे परिवर्तनों के कारण इन फसलों में रस चूसक कीट जैसे थ्रिप्स, माहू, हरा तेला, मकड़ी, सफेद मक्खी आदि पत्तियों, कोमल बेलों व फूलों का रस चूसकर बहुत नुकसान पहुंचाते है। इनका सही समय पर प्रबंधन आवश्यक है –

  • थ्रिप्स:- प्रोफेनोफोस 50% ईसी @ 500 मिली या एसीफेट 75% एसपी @ 300 ग्राम या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% सीएस @ 200 मिली या फिप्रोनिल 5% एससी @ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।  

  • माहू/हरा तेला:- एसीफेट 50 % + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% एसपी @ 400 ग्राम या  एसिटामिप्रीड 20 % एसपी @ 100 ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एसएल @ 100 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।   

  • सफेद मक्खी:- डायफैनथीयुरॉन 50% डब्ल्यूपी @ 250 ग्राम या फ्लोनिकामिड 50% डब्ल्यूजी @ 60 ग्राम या एसिटामिप्रीड 20 % एसपी @ 100 ग्राम/एकड़ की दर छिड़काव करें। 

  • मकड़ी:- प्रॉपरजाइट 57% ईसी @ 400 मिली या स्पाइरोमेसिफेन 22.9% एससी @ 250 मिली या एबामेक्टिन 1.9 % ईसी @ 150 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

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गेहूँ में बालियां निकलते समय जरूर करें ये आवश्यक छिड़काव

In wheat crops necessary spraying management at the time of earhead emergence
  • किसान भाइयों गेहूँ की फसल में 60 -90 दिनों की अवस्था बाली निकलने एवं बालियों में दाना भरने की होती है।

  • इस अवस्था में गेहूँ की फसल में पोषक तत्व प्रबंधन करना बहुत ही आवश्यक होता है।

  • फसल की अच्छी वृद्धि एवं बालियां बनने के लिए होमोब्रासिनोलाइड 0.04% @ 100 मिली + 00:52:34 @ 1 किलो प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें एवं 10 – 15 दिन बाद बालियों में अच्छा दाना भरने के लिए 00:00:50 @ 1 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।  

  • किसान भाई 00:52:34 के बदले मेजरसोल 500 ग्राम प्रति एकड़ का छिड़काव करें। 

  • बालियाँ निकलने की अवस्था में गेहूँ की फसल में फफूंदी जनित रोगों का प्रकोप अधिक होने की संभावना होती है। इसके लिए हेक्साकोनाज़ोल 5% एससी @ 400 मिली/एकड़ एवं 7-10 दिन बाद प्रोपिकोनाजोल 25% ईसी @ 200 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।  

  • जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें। 

  • इस समय इल्लीयों (सूंडी) का प्रकोप दिखाई देने पर इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी @ 100 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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