भिंडी को सफेद मक्खी से बचाना है जरूरी, ऐसे करें प्रबंधन

Whitefly management in Okra
  • भिंडी की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले सफ़ेद मक्खी दरअसल छोटे छोटे कीट होते हैं।

  • इसके शिशु तथा प्रौढ़ दोनों ही पत्तियों की निचली सतह से रस चूसकर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। जिससे पौधे की वृद्धि कम होती है व उपज में कमी देखी जाती है।

  • सफेद मक्खी भिंडी में पीत शिरा मोजेक वायरस का प्रमुख वाहक होती है जिसे पीलिया रोग के नाम से जाना जाता है।

  • इसके अधिक प्रकोप की स्थिति में फसल पूर्णतः संक्रमित हो जाती है। फसल के पूर्ण विकसित हो जाने पर भी इस कीट का प्रकोप होता है। इसके कारण से फसलों की पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं।

  • इस कीट के रोकथाम के लिए डायफेन्थुरान 50% डब्ल्यूपी @ 250 ग्राम या फ्लोनिकामिड 50% डब्ल्यूजी @ 60 मिली या एसिटामिप्रिड 20% एसपी @ 100 ग्राम या पायरीप्रोक्सीफेन 10% + बॉयफेनथ्रीन 10% ईसी @ 250 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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धान की 15 से 20 दिन की पौधशाला में जरूर करें ये आवश्यक छिड़काव

Necessary spraying management in 15 to 20 days of paddy nursery
  • छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों में भी रबी धान की पौधशाला/नर्सरी इस समय चल रही है l 

  • तापमान में गिरावट एवं पाले जैसी सम्भावना में धान के किसानों को पौधशाला का विशेष ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है। 

  • साथ ही इस अवस्था में फसल में तना छेदक, रस चूसक कीट व जड़ गलन रोग के प्रकोप की सम्भावना अधिक होती है।

  • इसके प्रबंधन के लिए करमानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मेन्कोज़ेब 63% डब्ल्यूपी) @ 30 ग्राम + फिपनोवा (फिप्रोनिल 5% एससी) @ 30 ग्राम प्रति पंप की दर से छिड़काव करें। 

  • खरीफ धान की पौधशाला की तुलना में रबी धान की पौधशाला में 10 से 15 दिन अधिक लगता है एवं धान की जड़ों का विकास भी कम दिखता है। इसके लिए ह्यूमिक एसिड @ 10 ग्राम प्रति पंप की दर से छिड़काव करें। 

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भिंडी की फसल में फूल गिरने के कारण एवं रोकथाम के उपाय

Management for flower growth in okra crop
  • किसान भाइयों सब्जी वर्गीय फसलों में भिंडी का अपना अलग ही महत्व है।

  • भिंडी की फसल में फूल आने पर इसमें फूल गिरने की समस्या देखी जाती है। 

  • इसी कारण भिंडी की फसल में फूल अवस्था में पोषक तत्व प्रबंधन करना बहुत जरूरी है।

  • भिंडी की फसल में पोषक तत्वों की कमी के कारण फूल गिरने की समस्या देखी जाती है l 

  • अधिक मात्रा में फूल गिरने के कारण फसल उत्पादन भी प्रभावित होता है l 

  • इस समस्या के निवारण के लिए सूक्ष्म पोषक तत्व का मिश्रण @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग कर सकते है। 

  • फूल गिरने से रोकने के लिए होमब्रेसिनोलाइड @ 100 मिली/एकड़ या पाक्लोबुट्राज़ोल 40% एससी @ 30 मिली/एकड़ की दर से उपयोग करें। 

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मटर की फसल में ऐसे करें पाउडरी मिल्ड्यू रोग का नियंत्रण

Know how to control powdery mildew disease in pea crop
  • यह मटर की फसल में कवक से होने वाला एक मुख्य रोग है l  इस रोग के लक्षण सबसे पहले पुरानी पत्तियों पर आते हैं। इसके बाद पौधे के अन्य भागों पर भी ये दिखाई देते हैं।  

  • मटर की पत्तियों की दोनों सतहों पर पाउडर जमा हो जाता है l कोमल तने और फली आदि पर चूर्णिल धब्बे बन जाते हैंl पौधे की सतह पर सफ़ेद चूर्ण दिखाई देते हैं। फल या तो लगते नहीं हैं या छोटे रह जाते हैं।  

  • रासायनिक उपचार के लिए हेक्साकोनाज़ोल 5% SC @ 400 मिली या सल्फर 80% WDG @ 500  ग्राम या टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

  • जैविक उपचार के लिए ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव कर सकते हैं।

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गेहूँ में पद विगलन रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control measures of Foot rot in wheat
  • यह रोग अधिक तापमान वाले प्रदेशों जैसे मध्यप्रदेश, गुजरात तथा कर्नाटक में मुख्य रूप से देखा जाता है। यह रोग मुख्यतः सोयाबीन के बाद गेहूँ की फसल लेने पर अधिक देखने को मिलता है।

  • यह रोग स्क्लेरोशियम रोलफसाई नामक फफूंद से होता है जो कि संक्रमित भूमि में पाया जाता है। इस रोग से ग्रसित पौधों की जड़ से ऊपर कॉलर वाले भाग पर सफेद फफूंद पैदा होती है तथा तने का भूमि से ऊपर का भाग सड़ जाता है और आखिर में रोगी पौधा मर जाता है।

  • रासायनिक उपचार: एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एससी @ 300 मिली/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यूपी @ 400 ग्राम/एकड़ या कीटाजिन 48% ईसी @ 300 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार: स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।

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सरसों में आरा मक्खी के प्रकोप की ऐसे करें पहचान व नियंत्रण

How to identify and control the outbreak of sawfly in mustard

  • सरसों की फसल में अंकुरण के 25-30 दिन बाद आरा मक्खी बहुत अधिक नुकसान पहुंचाता है।

  • इस कीट के मादा वयस्क का पिछला भाग काफी विकसित एवं आरी के जैसा होता है जिसकी मदद से ये पत्तियों में छेद करके अंडे देती है। यह पौधे से रस को चूसती है और फूल को संक्रमित कर उड़ जाती है। अक्सर पुष्प क्रम के प्रमुख भाग को यह मक्खी चट कर जाती है, जिससे पौधे की बढ़वार भी रुक जाती है।

  • इस कीट का लार्वा सूर्यास्त के बाद एवं प्रातः काल के समय पत्तियों को खाता है एवं दिन में मिट्टी के अंदर छिपा रहता है।

  • आरा मक्खी का फसल पर अधिक प्रकोप होने पर पत्तियों के स्थान पर शिराओं का जाल ही शेष रह जाता है।

  • इसके नियंत्रण के लिए प्रोफेनोफॉस 50% ईसी @ 500 मिली या थियामेथॉक्साम 12.6% + लैम्ब्डा सिहलोथ्रिन 9.5% जेडसी @ 80 ग्राम या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी @ 100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक नियंत्रण के लिए बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें l

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तरबूज की खेती से अच्छी उपज के लिए ऐसे करें उर्वरक प्रबंधन

  • तरबूज़ की फसल में उर्वरक प्रबंधन करने से, पोषण से संबंधित समस्याओं का समाधान होता है एवं उच्च गुणवत्ता वाली उपज प्राप्त होती है। 

  • बुवाई के पहले खेत जी तैयारी के समय DAP @ 50 किलो + बोरोनेटेड एसएसपी @ 75 किलो + पोटाश @ 75 किलो + जिंक सल्फेट @ 10 किलो + मैग्नीशियम सल्फेट @ 10 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से दें। 

  • बुवाई के समय 20 किलो यूरिया के साथ समृद्धि किट [ट्राइकोडर्मा विरडी (राइज़ोकेयर) 500 ग्राम + एनपीके बैक्टीरिया का संघ (टीम बायो-3) 3 किलो  + ZnSB (ताबा जी) 4 किलो + सीवीड एक्स्ट्रैक्ट, ह्यूमिक एसिड, अमीनो एसिड और माइकोराइजा (मैक्समायको ) 2 किलो] प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें।  

  • इस प्रकार उर्वरक प्रबंधन करने से फसल एवं मिट्टी में फास्फोरस, पोटाश, नाइट्रोजन के साथ अन्य  उर्वरक एवं पोषक तत्वों की पूर्ति आसानी से हो जाती है। 

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चने की फसल में ऐसे करें एस्कोकाइटा ब्लाइट की रोकथाम

Management of Ascochyta blight in Gram Crop
  • इन दिनों एस्कोकाइटा ब्लाइट के लक्षण चने की फसल में आमतौर पर देखने को मिल रहे हैं। इस रोग से ग्रसित पौधों के लक्षण पत्तियों, तने और पेटीओल्स पर छोटे – छोटे गोलाकार भूरे धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं।

  • अनुकूल परिस्थितियों में, ये धब्बे तेजी से बढ़ते हैं जो पत्तियों और कलियों को प्रभावित करते हैं।

  • गंभीर संक्रमण के समय पौधा अचानक से सूखने लगता है एवं संक्रमण के बाद वाली अवस्था में बीज सिकुड़ने लगते हैं।

  • ध्यान रखें की यह बीमारी बीज जनित होती है तथा पुरानी फसल के अवशेषों द्वारा अधिक फैलती है l 

प्रबंधन: 

  • रासायनिक नियंत्रण के लिए कासुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% डब्ल्यूपी @ 300 ग्राम  या कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यूपी @ 400 ग्राम या क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यूपी @ 400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें l 

  • जैविक  नियंत्रण के लिए स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस @ 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें l

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आलू की फसल में ऐसे करें सफेद मक्खी का नियंत्रण

Control of white fly in potato crop
  • इस कीट के शिशु एवं वयस्क दोनों ही आलू की फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाते हैं।

  • यह पत्तियों का रस चूस कर पौधे के विकास को बाधित कर देती है एवं पौधे पर उत्पन्न होने वाली सूटी मोल्ड नामक जमाव का कारण भी बनती है।

  • अधिक प्रकोप की स्थिति में आलू की फसल पूर्णतः संक्रमित हो जाती है। फसल के पूर्ण विकसित हो जाने पर भी इस कीट का प्रकोप होता है। इसके कारण से फसलों की पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं।

  • प्रबंधन: इस कीट के निवारण के लिए डायफेनथुरोंन 50% SP@ 250 ग्राम/एकड़ या फ्लोनिकामाइड 50% WG@ 60मिली/एकड़ या एसिटामेप्रिड 20% SP @ 100 ग्राम/एकड़ या पायरीप्रोक्सीफेन 10% + बॉयफेनथ्रीन 10% EC 250 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

फसल की बुआई के साथ ही अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

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