सब्जियों वाली फसलों में ऐसे करें दीमक के प्रकोप का नियंत्रण

Control the outbreak of termites in horticultural crops like this
  • दीमक अपने प्रकोप से आलू , टमाटर, मिर्च, बैंगन, फूल गोभी, पत्ता गोभी, सरसों, राई, मूली, गेहूँ आदि फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है।

  • इस कीट के जैविक नियंत्रण के लिए निम्न उपाय कर सकते हैं

  • बीजो को कीटनाशकों के द्वारा बीज़ उपचार करके ही बोना चाहिए।

  • कीटनाशक मेट्राजियम से मिट्टी उपचार अवश्य करना चाहिए l

  • खड़ी फसल में दीमक नियंत्रण के लिए 1 -1.5 लीटर नीम का तेल प्रति एकड़ की दर से सिंचाई के  पानी के साथ दें या 15 – 20  किलो बजरी में मिलाकर भुरकाव कर सिंचाई करें।

  • दीमक प्रभावित क्षेत्रों में 200 किलो अरण्डी की खली प्रति एकड़ की दर से अंतिम जुताई के समय भूमि में डालें।

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तरबूज की फसल में ऐसे करें सिंचाई प्रबंधन

Irrigation management in watermelon crop
  • प्रिय किसान भाइयों तरबूज की फसल को अधिक पानी आवश्यकता होती है। लेकिन पानी का भराव इस फसल के लिए हानिकारक होता है l पौधे के निचले भाग में अधिक पानी देने से जड़ गलन एवं फल सड़न की समस्या देखी जाती है। 

  • तरबूज की खेती खासकर गर्म मौसम में होती हैं इसलिए इसमें सिंचाई की सुनिश्चित व्यवस्था एवं उचित अंतराल करना चाहिए। 

  • तरबूज में मुख्यतः सिंचाई 3-5 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए अर्थात मिट्टी में पर्याप्त नमी बनी रहनी चाहिए l 

  • फूल आने के पहले, फूल आने के समय एवं फल की वृद्धि के समय पानी की कमी से उत्पादन में बहुत कमी आ जाती है। 

  • फल पकने के समय सिंचाई रोक देना चाहिए ऐसा करने से फल की गुणवत्ता बढ़ती है और साथ ही फल फटने की समस्या भी नहीं आती है। 

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तरबूज की फसल में पाउडरी मिल्ड्यू रोग का ऐसे करें रोकथाम

Solution of powdery mildew disease in watermelon
  • किसान भाइयों जैसे – जैसे तापमान में बढ़ोतरी होती है वैसे -वैसे इस पाउडरी मिल्ड्यू रोग का प्रकोप बढ़ता जाता है। 

  • आमतौर पर यह रोग पत्तियों को प्रभावित करता हैं। पत्तियों की ऊपरी एवं निचली सतह पर सफेद रंग का चूर्ण दिखाई देता है l 

  • समाधान – इस रोग के प्रकोप को शुरुआती अवस्था में ही नियंत्रित करने से अच्छा परिणाम देखने को मिलता है। 

  • खेत में खरपतवार ना होने दे एवं प्रकोप अधिक होने की स्थिति में प्रभावित पौधों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।  

  • इस रोग के रासायनिक प्रबंधन के लिए कस्टोडिया (एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एससी) @ 300 मिली या इंडेक्स (मायक्लोबुटानिल 10% डब्ल्यूपी) @ 100 ग्राम या करसर (फ्लुसिलाज़ोल 40% ईसी) @ 60 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।  

  • जैविक प्रबंधन में कॉम्बेट (ट्रायकोडर्मा विरिडी) @ 500 ग्राम + मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस) @ 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

  • ध्यान रखें इस रोग के लिए एक ही कवकनाशी का उपयोग बार – बार नहीं करना चाहिए। कवकनाशी बदल- बदल कर उपयोग करना चाहिए।

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तरबूज में गमी स्टेम ब्लाइट रोग की पहचान व नियंत्रण के उपाय

Symptoms and treatment of gummy stem blight disease in watermelon crop
  • किसान भाइयों तरबूज की फसल में लगने वाला गमी स्टेम ब्लाइट (गमोसिस) के लक्षण सबसे पहले पत्तियों पर, फिर तने पर गहरे भूरे रंग के धब्बे या घावों के रूप में दिखाई देते हैं। 

  • घाव अक्सर पत्ती मार्जिन पर पहले विकसित होते हैं लेकिन अंततः पूरी पत्तियों पर फैल जाते हैं।

  • तने पर गमोसिस ब्लाइट के लक्षण घाव के रूप में दिखायी देते हैं ये आकार में गोलाकार होते हैं और भूरे रंग के होते हैं।  

  • गमोसिस ब्लाइट या गमी स्टेम ब्लाइट का एक मुख्य लक्षण यह है की इस रोग से ग्रसित तने से गोंद जैसा चिपचिपा पदार्थ निकलता है। 

  • इसके रासायनिक उपचार के लिए कोनिका (कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% डब्ल्यूपी) @ 300 ग्राम या जटायु (क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यूपी) @ 300 ग्राम या लार्क (टेबुकोनाज़ोल 25.9% ईसी) @ 200 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव कर प्रभावी नियंत्रण प्राप्त कर सकते है।  

  • जैविक उपचार के रूप में मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस) @ 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें।

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जानिए, फसलों में खलियों का प्रयोग एवं महत्व

Oil cake manure is better for crops

किसान भाइयों तिलहनी फसलों के बीजों से तेल निकालने के बाद जो अवशिष्ट पदार्थ बच जाता है उसे खली कहते हैं। जब इसे खेत मे खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है तब यह खली की खाद कहलाता है। 

खली 2 प्रकार की होती है –

  1. खाद्य खली: यह पशुओं के खाने योग्य होती हैं जैसे – बिनौला, सरसों, तारामीरा, मूंगफली, तिल, नारियल आदि l           

  2. अखाद्य खली: यह पशुओं के खाने योग्य नहीं होती हैं, इन्हें खेत में खाद के रूप में उपयोग किया जाता है। जैसे अरण्डी, महुआ, नीम, करंज आदि। यह फसल में कीटनाशक का कार्य भी करती हैं। 

खलियों में गोबर की खाद एवं कम्पोस्ट की तुलना में नाइट्रोजन अधिक मात्रा में पाई जाती है, साथ ही खलियों में फास्फोरस एवं पोटाश भी पाया जाता है। 

विभिन्न खली की खादों में उपलब्ध पोषक तत्वों की मात्रा –

खली 

नाइट्रोजन %

फास्फोरस %

पोटाश    %

अरण्डी

4.37

1.85

1.39

महुआ

2.51

0.80

1.85

नीम

5.22

1.08

1.48

करंज

3.97

0.94

1.27

खली की खाद सान्द्र कार्बनिक खादों के वर्ग में आती है इसका प्रयोग खेत में बुवाई पूर्व एवं पश्चात दोनों समय कर सकते है। 

बुवाई के पहले खलियों का प्रयोग – 

  1. महुआ की खली के अतिरिक्त सभी खलियो का चूर्ण बुवाई के 10 -15 दिन पूर्व खेत में प्रयोग करना चाहिए।

  2. महुआ की खली देरी से अपघटित होती है इसलिए इसका उपयोग खेत में बुवाई के 2 माह पहले करना चाहिए। इसमें सेपोनिन नामक रसायन पाया जाता है जिसकी उपस्थिति के कारण धान की फसल के लिए यह एक उत्तम खाद है। 

  3. खलियों को खेत में बिखर कर हल्की जुताई कर मिट्टी में मिला देना चाहिए। 

बुवाई पश्चात खलियों का प्रयोग – 

  1. अंकुरण के पश्चात पौधे के पास पिसी हुई खली के चूर्ण का प्रयोग करें।

  2. कंद मूल वाली फसलों में मिट्टी चढ़ाते समय खलियों का प्रयोग कर सकते है। 

  3. ध्यान रखे खलियों को खेत मे डालने के बाद उनके अपघटन के लिए मिट्टी में पर्याप्त नमी होना अति आवश्यक है। 

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नर्सरी तैयार करते समय यह सावधानियां अपनाएं और स्वस्थ पौध पाएं

Precautions to be taken while preparing a nursery
  • पौधों को प्रारंभिक अवस्था में उचित देखरेख के लिए जिस छोटे स्थान पर रखा जाता है उसे पौधघर या नर्सरी कहते है।

  • पौधघर के लिए स्थान चयन – पौध घर की भूमि आसपास के स्थान से ऊंची हो, भूमि उपजाऊ व विकार रहित हो, पर्याप्त मात्रा में सूर्य प्रकाश उपलब्ध हो, सिंचाई की स्थायी व्यवस्था हो, प्रदूषण रहित स्थान हो, सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था हो, स्थानीय एवं सस्ते मजदूरों की उपलब्धता हो। इन सभी बातों का ध्यान पौधघर के लिए स्थान चयन करते समय रखें। 

  • उपजाऊ मिट्टी, रेत और केंचुआ खाद क्रमशः 2:1:1 में मिश्रित कर उपयोग में ले।

  • बीज बोने की क्यारियाँ 3 मीटर लम्बी एवं 1 मीटर चौड़ी तथा 10 – 15 सेमी ऊंची उठी हुई आदर्श मानी जाती है। 

  • बीज उपचार – बीजों को बुवाई के पूर्व करमानोवा (कार्बेन्डाजिम12% + मैनकोज़ेब 63% डब्ल्यूपी) @ 3 ग्राम/किलोग्राम बीज़ की दर से उपचारित करें। 

  • सिंचाई – शरद एवं ग्रीष्म ऋतु में अंकुरण के पहले प्रतिदिन सायंकाल हजारे से सिंचाई करना चाहिए। 

  • निराई गुड़ाई-  खरपतवारों को हाथ से या खुरपी से निकाल देना चाहिए एवं समय समय पर हल्की गुड़ाई करें।  

  • पौध संरक्षण –  फफूंदी जनित रोग एवं कीट प्रबंधन के लिए बुवाई के 20 -25 दिन बाद संचार (मेटलैक्सिल 8% + मैंकोज़ेब 64% डब्ल्यूपी) @ 60 ग्राम + पोलिस (फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% डब्ल्यू जी) @ 5 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर अच्छे से ड्रेंचिंग करें।

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एक प्याज समृद्धि किट से फसल को मिलेंगे अनेक फायदे

Onion Samriddhi Kit
  • किसान भाइयों ग्रामोफोन की विशेष समृद्धि किट मिट्टी में पाए जाने वाले आवश्यक पोषक तत्वों को घुलनशील रूप में परिवर्तित करके पौधे के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

  • यह किट मिट्टी में पाए जाने वाली हानिकारक फ़फ़ूँदो को खत्म करके पौधे को होने वाले नुकसान से बचाती है। 

  • यह उत्पाद उच्च गुणवत्ता वाले प्राकृतिक अवयवों से बना है, यह मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की गतिविधि को बढ़ाने में सहायक है।

  • यह किट मिट्टी के पीएच को बेहतर बनाने में मदद करता है और जड़ों को एक अच्छी शुरुआत प्रदान करता है, ताकि जड़ पूरी तरह से विकसित हो सके, जो फसल के अच्छे उत्पादन का कारण बनती है। 

  • इस किट में उपलब्ध उत्पाद मिट्टी की संरचना में सुधार करके मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता को कम नहीं होने देते है, जड़ प्रणाली द्वारा पोषक तत्वों में सुधार से जड़ विकास को बढ़ावा देता है।

  • जड़ों के द्वारा मिट्टी से पोषक तत्वों के अवशोषण में मदद करता है। मिट्टी में सूक्ष्म जीवो की गतिविधि को बढ़ावा देता है।

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फसलों में नीम खली के फायदे

Neem cake and its uses
  • किसान भाइयों नीम खली एक जैविक उर्वरक है। इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, जिंक, कॉपर, सल्फर, कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन एवं अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व पाए जाते हैं।  

  • नीम खली के उपयोग के दोहरे फायदे होते है, यह फर्टिलाइजर के साथ साथ कीटनाशक का काम भी करती है।

  • नीम खली में 8-10% नीम तेल रहता है जिसे हम जैविक कीटनाशक के रूप में इस्तेमाल करते है। जब हम लगातार रासायनिक कीटनाशक का उपयोग करते है तो कीटों में उस रसायन के प्रति प्रतिरोधक क्षमता आ जाती है और अगली बार कीट और मजबूत हो जाते है परन्तु यदि हम नीम खली का उपयोग कीटनाशक के रूप में करते है तो यह कीटों के हार्मोन्स पर प्रभाव डालता है जिससे वो आगे बिल्कुल वृद्धि नहीं कर पाते और नष्ट हो जाते है।

  • नीम खली के उपयोग से मृदा में नमी बनी रहती है एवं पौधों की पत्तियों एवं तनों में चमक आती है। 

  • नीम खली के प्रयोग से पौधों में एमिनो एसिड का स्तर बढ़ता है। जो क्लोरोफिल का स्तर भी बढ़ाती है, जिससे पौधा हरा भरा दिखाई देता है।

  • नीम खली के उपयोग से फफूंदी जनित रोग, हानिकारक बैक्टीरिया तथा चीटियों से भी बचाव होता है।

  • यदि आपके पौधों में फूल नहीं आ रहे है या फूल आ कर गिर रहे है या फलों का आकार छोटा है तो नीम खली के उपयोग से यह सभी समस्या दूर हो जाती है।

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कद्दू वर्गीय फसलों में डाउनी मिल्ड्यू रोग का ऐसे करें प्रबंधन

Management of downy mildew in cucurbits

  • कद्दू वर्गीय फसलों में डाउनी मिल्ड्यू यानि मृदुरोमिल आसिता रोग एक गंभीर फफूंदी जनित रोग माना जाता है।

  • इसके कारण रात के तापमान में कमी एवं अधिक आर्द्रता होने पर पत्तियों के ऊपरी भाग पर कोणीय आकार के पीले धब्बे बन जाते हैं।

  • पत्तियों की निचली सतह पर स्लेटी, भूरे से नारंगी, काले रंग के स्पोर्स दिखाई देते हैं। 

  • जैसे-जैसे यह रोग बढ़ता है, संक्रमित पत्तियाँ गलने लगती हैं और झुलस कर गिर जाती हैं। 

  • इसके लक्षण पके फलों पर भूरे धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं और बाद में फल विकृत हो जाते हैं।

  • विकृत फल खाने योग्य तो होता है लेकिन बाजार में इसका बहुत कम या कोई मूल्य नहीं होता है।

  • रासायनिक नियंत्रण- एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 11% + टेबुकनाज़ोल 18.3% एससी @ 300 मिली या मेटालैक्सिल 8% + मैनकोज़ेब 64% डब्ल्यूपी @ 600 ग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करें।

  • जैविक नियंत्रण- स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस @ 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें। 

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गेहूँ में 85-90 दिनों पर यह छिड़काव अपनाएं, बम्पर पैदावर पाएं

Spraying management in 85-90 days crop in wheat
  • किसान भाइयों गेहूँ की फसल रबी की प्रमुख फसलों में से एक है।

  • गेहूँ की फसल 80-90 दिनों की अवस्था में परिपक्वता की अवस्था में रहती है, इस अवस्था में फसल को पर्याप्त मात्रा में आवश्यक पोषक तत्वों को देना बहुत आवश्यक होता है साथ ही फफूंदी जनित रोग जैसे अनावृत कंडवा, रस्ट आदि रोगों से सुरक्षा प्रदान करना भी आवश्यक होता है।

  • फफूंदी जनित रोगों से बचाव के लिए जेरॉक्स (प्रोपिकोनाज़ोल 25% ईसी) @ 200 मिली प्रति एकड़ छिड़काव करें।  

  • जैविक उपचार के रूप में मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस) @ 250 ग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करें।

  • अगर फसल में इल्ली का प्रकोप दिखाई दे तो इमानोवा (इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी) @ 100 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

  • पोषक तत्व प्रबंधन एवं दाने की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए पानी में घुलनशील उर्वरक 00:00:50 @ 1 किलोग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करें। 

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