तरबूज बुवाई के 10-20 दिनों बाद किये जाने वाले आवश्यक कार्य

Essential activities to be done 10-20 days after sowing in watermelon

  • किसान भाइयों तरबूज की फसल में अंकुरण के बाद अच्छी जड़ एवं स्वस्थ पौधों के विकास के लिए पोषक तत्व प्रबंधन जितना आवश्यक होता है उतना ही पौध संरक्षण भी जरूरी होता है। बुवाई के 10 -20 दिनों के मध्य निम्न उत्पादों का उपयोग कर फसल की रक्षा कर सकते है।

  • उर्वरक प्रबंधन:- बुवाई के 10-15 दिनों बाद पौधों की वानस्पतिक वृद्धि एवं विकास के लिए यूरिया 75 किलो + सूक्ष्म पोषक तत्व मिश्रण (एग्रोमिन) 5 किलो + सल्फर (कोसावेट फर्टिस) – 5 किलो प्रति एकड़ की दर से मिट्टी में मिलाएं l 

  • छिड़काव प्रबंधन – बुवाई के 15-20 दिनों बाद रस चूसक कीट व फफूंदी जनित रोगों की रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 40% + फिप्रोनिल 40% डब्ल्यूजी @ 40 ग्राम + क्लोरोथैलोनिल 75% डब्ल्यूपी @ 400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

  • उपयुक्त मिश्रण के साथ ह्यूमिक एसिड (मैक्सरूट) 100 ग्राम मिला सकते है, यह पौधों की जड़ वृद्धि में मदद करता है। 

  • बुवाई के 10-25 दिनों में खरपतवार अधिक दिखाई देने पर इन्हें निराई गुड़ाई के माध्यम से निकाल दें। 

  • अगर बुवाई के समय ग्रामोफोन की समृद्धि किट का उपयोग नहीं किया गया है तो इस समय भी उपयोग कर अच्छा लाभ उठा सकते हैं। 

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तरबूज की फसल में माहू व हरा तेला का अब होगा अंत

Management of aphids and jassids in watermelon crop
  • किसान भाइयों इस समय तरबूज की फसल की बुवाई कई जगह पर हो गई और कई स्थानों पर चल रही है। जहाँ पर फसल उग आई है वहाँ पर फसल में माहू एवं हरा तेला कीट का प्रकोप दिखाई दे रहा है। 

  • माहू एवं हरा तेला कीट मुलायम शरीर के छोटे कीट होते है जो पीले, भूरे, हरे या काले रंग के हो सकते है।

  • ये आमतौर पर छोटी पत्तियों और बेलों के कोनों पर समूह बनाकर पौधे से रस चूसते है तथा चिपचिपा मधु स्राव (हनीड्यू) करते हैं। जिससे काली फफूंद लग जाती है और पौध विकास में समस्या आती है।

  • गंभीर संक्रमण में पौधे की पत्तियां और टहनियां कुम्हला जाती है या पीली पड़ जाती हैं। 

  • इनके उचित प्रबंधन हेतु थायोमिथोक्साम 25% डब्ल्यूजी @ 100 ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एसएल @ 100 मिली या फ्लोनिकामिड 50% डब्ल्यूजी @ 60 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।   

  • जैविक नियंत्रण के लिए बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

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प्याज की रोपाई के 25 दिनों बाद इन आवश्यक सुझावों को जरूर अपनाएं

Know the necessary recommendations 25 days after transplanting onion seedlings
  • किसान भाइयों भारत में आमतौर पर प्याज की खेती रबी तथा खरीफ दोनों मौसम में की जाती है। मुख्यतः इस समय सभी जगह रबी प्याज की पौध रोपाई चल रही है या कही रोपाई हो चुकी है l जहां रोपाई हो चुकी है उसके 25 दिन बाद किसान निम्न आवश्यक सिफारिशें जरूर अपनाएं।   

  • छिड़काव के रूप में – पौधे के वानस्पतिक विकास को बढ़ाने और फसल में इल्ली एवं फफूंदी जनित रोगों के प्रकोप को रोकने के लिए पानी में घुलनशील उर्वरक (ग्रोमोर) 19:19:19 @ 1 किलोग्राम + लैमनोवा (लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 4.9% एससी) @ 200 मिली + नोवाकोन (हेक्साकोनाज़ोल 5% एससी) @ 400 मिली प्रति एकड़ की दर से पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 

  • प्रत्येक छिड़काव में सिलिको मैक्स (सिलिकॉन आधारित स्टिकर चिपको) @ 5 मिली प्रति 15 लीटर पानी के साथ जरूर मिलाएं। 

  • मिट्टी में आवेदन – यूरिया @ 30 किलोग्राम + एग्रोमिन (सूक्ष्म पोषक तत्व मिश्रण) @ 5 किलोग्राम +  ग्रोमोर (जिंक सल्फेट) @ 5 किग्राग्राम प्रति एकड़ की दर से मिट्टी में उपयोग करें। यूरिया पौधों को नाइट्रोजन प्रदान करता है जो वानस्पतिक विकास को बढ़ाने में सहायक होता है, एग्रोमिन फसलों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को पूरा करता है एवं जिंक सल्फेट पौधों की वृद्धि और शक्ति को बढ़ाता है।

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टमाटर की फसल में लीफ माइनर का हो रहा प्रकोप, जानें नियंत्रण विधि

Leaf miner outbreak in tomato crop
  • किसान भाइयों टमाटर की फसल में लीफ माइनर (पर्ण सुरंगक) कीट बहुत ही छोटे होते हैं जो पत्तियों के अंदर जाकर हरित पदार्थ को खाकर सुरंग बनाते हैं। जिसके कारण पत्तियों पर सफेद लकीरें दिखाई देती है। 

  • प्रौढ़ कीट हल्के पीले रंग का होता है एवं शिशु कीट बहुत छोटे एवं पैर विहीन पीले रंग के होते हैं। 

  • इसकी क्षति के लक्षण सबसे पहले पत्तियों पर दिखाई देते है। 

  • जैसे ही लार्वा पत्ती के अंदर प्रवेश कर पत्तियों को खाना शुरू करता है पत्तियों के दोनों और सफेद सर्पिलाकार रचनाएँ दिखाई देने लगती है। 

  • इसके प्रकोप से प्रभावित पौधे पर फल कम लगते है और पत्तियां समय से पहले गिर जाती है। 

  • पौधों की बढ़वार रुक जाती है एवं पौधे छोटे रह जाते है। 

  • इसके प्रकोप के कारण पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया भी प्रभावित होती है।  

  • इस कीट के नियंत्रण के लिए एबामेक्टिन 1.9 % ईसी @ 150 मिली या स्पिनोसेड 45% एससी @ 75 मिली या सायनट्रानिलीप्रोल 10.26% ओडी @ 250 मिली प्रति एकड़ छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के लिए बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

आपकी जरूरतों से जुड़ी ऐसी ही अन्य महत्वपूर्ण सूचनाओं के लिए प्रतिदिन पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख और अपनी कृषि समस्याओं की तस्वीरें समुदाय सेक्शन में पोस्ट कर प्राप्त करें कृषि विशेषज्ञों की सलाह।

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प्याज में पत्तियां जलने के कारण एवं नियंत्रण के उपाय

Reasons and solutions to the problem of leaf tip burning in onion crop

  • किसान भाइयों इस समय प्याज की फसल में पत्तियों के नोक जलने की समस्या बहुत देखने को मिलती है। 

  • प्याज के किनारे जलने के विभिन्न कारण हो सकते हैं जैसे- फफूंदी जनित रोग, कीटों का प्रकोप एवं पोषक तत्व की कमी आदि। 

  • यदि मिट्टी या पत्ते पर किसी भी प्रकार के फफूंद का आक्रमण होता है तो भी प्याज के पत्ते के किनारे जलते है। 

  • यदि फसल की जड़ों या पत्तियों पर किसी प्रकार के कीट का प्रकोप हो तो भी यह समस्या होती है। 

  • प्याज की फसल में नत्रजन या किसी महत्वपूर्ण पोषक तत्व की यदि कमी हो जाती है तो भी पत्ते जलने की समस्या देखी जाती है इसके नियंत्रण के लिए निम्न उत्पादों का उपयोग लाभकारी होता है। 

  • फफूंदी जनित रोगों के नियंत्रण के लिए कीटाजिन 48% ईसी @ 200 मिली या कासुगामाइसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% डब्ल्यूपी @ 300 ग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें। 

  • कीटों की रोकथाम के लिए फिप्रोनिल 5% एससी @ 400 मिली या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 5% ईसी @ 250 मिली या फिप्रोनिल 40% +इमिडाक्लोप्रिड 40% डब्ल्यूजी @ 80 ग्राम प्रति एकड़ की दर उपयोग करें।  

  • पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए सीवीड एक्स्ट्रैक्ट @ 400 मिली या ह्युमिक एसिड 100 ग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें।

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मटर एवं चने में फली छेदक इल्ली की रोकथाम के उपाय

A problem of pod borer in pea and gram crop
  • किसान भाइयों एवं बहनों, फली छेदक मटर एवं चने की फसल का प्रमुख कीट है जो फसल को भारी नुकसान पहुंचाता है। 

  • इसकी इल्ली गहरे रंग की होती है जो बाद में गहरे भूरे रंग की हो जाती है यह कीट फूल आने के समय से फसल कटाई तक फसल को नुकसान पहुंचाते है।

  • यह कीट फली में छेद करके अंदर प्रवेश कर दाने को खाकर नुकसान पहुंचाती है। 

  • इसके नियंत्रण के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी @ 100 ग्राम या फ्लुबेंडियामाइड 39.35 % एससी @ 50 मिली या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5 % एससी @ 60 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।  

  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से  छिड़काव करें।

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भिंडी में रस चूसक कीटों का प्रकोप एवं नियंत्रण के उपाय

Infestation of sucking pests in okra crop

  • भिंडी की फसल में रस चूसक कीट जैसे माहू, हरा तेला, मकडी, सफेद मक्खी आदि का आक्रमण सामान्यतः दिखाई देता है।

  • इन सभी रस चूसक कीटों के निम्फ तथा प्रौढ़ दोनों ही भिंडी के पौधों के कोमल भागों, फूलों-पत्तियों से रस चूसते है। जिससे पौधों की बढ़वार रुक जाती है, पत्तियां मुरझा जाती है तथा पीली पड़ जाती है, अधिक आक्रमण होने पर तो पत्तियां गिर भी जाती है। 

  • संक्रमित भाग पर ये कीट एक चिपचिपा पदार्थ भी स्त्रावित करते है, जिससे फफूंद का संक्रमण बढ़ सकता है एवं प्रकाश संश्लेषण क्रिया में बाधा आती है। 

  • इनमें से सफेद मक्खी भिंडी के प्रमुख विषाणु जनित रोग पीला शिरा मोजेक वायरस को फैलाने में भी सहायक होती है। 

  • माहू/हरा तेला नियंत्रण के लिए:- एसीफेट 50 % + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% एसपी @ 400 ग्राम या एसिटामिप्रीड 20 % एसपी @ 100 ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एसएल @ 100 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।   

  • सफेद मक्खी नियंत्रण के लिए:- डायफैनथीयुरॉन 50% डब्ल्यूपी @ 250 ग्राम या फ्लोनिकामिड 50% डब्ल्यूजी @ 60 ग्राम या एसिटामिप्रीड 20 % एसपी @ 100 ग्राम/एकड़ की दर छिड़काव करें।

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बदलते मौसम में रोग और कीटों से कैसे बचाएं अपनी फसल

How to protect your crop from diseases and pests in changing weather
  • इस महीने कहीं पर बारिश तो कहीं कोहरे की वजह से तापमान में उतार चढ़ाव होता रहा है, जिसके कारण फसलों पर रोगों एवं कीटों का खतरा बढ़ जाता है, जो कि उपज की गुणवत्ता के लिए हानिकारक है। ऐसे में अगर किसान कुछ बातों का ध्यान रखें तो नुकसान से बच सकते हैं।

  • मौसम में होते बदलाव में सरसों की फसल में माहू कीट का खतरा अक्सर बढ़ जाता है, इसकी रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 30.5% एससी @ 50 मिली या फ्लोनिकामिड 50% डब्ल्यूजी @ 60 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

  • चने में फली छेदक इल्ली के नियंत्रण के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी @ 100 ग्राम या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5 % एससी @ 60 मिली/एकड़ की दर से  छिड़काव करें। इसके साथ फेरोमोन ट्रैप 10 नग प्रति एकड़ खेतों में स्थापित करें। 

  • गोभी वर्गीय फसलों में इस मौसम में, डायमंड बैक मॉथ (हीरक प्रष्ट फुदका) कीट के प्रकोप की सम्भावना अधिक रहती है। ऐसे में फसल की निगरानी के लिए फेरोमोन ट्रैप 10 नग प्रति एकड़ की दर से खेतों में लगाएं। रासायनिक नियंत्रण के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी @ 100 ग्राम या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% एससी @ 60 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

  • गेहूँ में इस समय कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% डब्ल्यूपी @ 300 ग्राम या हेक्साकोनाज़ोल 5% एससी @ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करने से अनावृत्त कंडवा रोग एवं अन्य फफूंदी जनित रोगों से फसल को बचाया जा सकता है।

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खरीफ प्याज को भंडारित करते समय रखी जाने वाली सावधानियां

Precautions to be taken while storing Kharif Onion
  • प्याज की मांग पूरे वर्ष रहती है। अतः प्याज का भंडारण पूरे वर्ष की आपूर्ति के लिए अति आवश्यक होता है। हमारे देश में प्याज की अपर्याप्त भंडारण सुविधा एवं बेमौसम बरसात के कारण 30-40 प्रतिशत प्याज सड़ जाता है।

  • ज्यादातर किसान भाई रबी के प्याज का ही भण्डारण करते हैं क्योंकि खरीफ और पछेती खरीफ प्याज की अपेक्षा रबी प्याज में बेहतर भंडारण क्षमता होती है। 

  • पत्ते पीले रंग में बदलने तथा गर्दन पतली होने तक पौधों को खेतों में सुखाना चाहिए फिर पर्याप्त वायु संचार के साथ छाया में सुखाया जाना चाहिए। छाया में सुखाने से कन्दों की सूरज की तीखी किरणों से रक्षा होती है, रंग में सुधार आता है और बाहरी सतह सूख जाती है। 

  • कई बार कुदाली या फावड़े से कंद को घाव हो जाता है। कंद की छटाई करते समय दाग लगे हुए कंद को अलग निकाल देना चाहिए। बाद में इन्हीं ख़राब कंदो से सडन पैदा हो कर अन्य दूसरे कंदों में भी सडन शुरू हो जाती है।

  • प्याज के अच्छे भंडारण के लिए, जूट (टाट)/प्लास्टिक की 50 किग्रा की जालीदार बोरियां का या प्लास्टिक/लकड़ी की टोकरीयों का उपयोग करना चाहिए।

  • प्याज को पैकिंग के बाद 5 फीट ऊंचाई तक भंडार गृह में रखना चाहिए ताकि निकालने में आसानी हो। 

  • अच्छे भंडारण के लिए भंडार गृहों का तापमान 30-35˚ सें. तथा सापेक्ष आर्द्रता 65-70 प्रतिशत होनी चाहिए।

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अजोला दुधारू पशुओं के लिए है एक वरदान

Azolla a nutritious aquatic fodder for livestock
  • नमस्कार किसान भाइयों हमारे देश की अर्थव्यवस्था में पशुपालन का महत्वपूर्ण स्थान है, हमारे यहां किसान की जोत का आकार दिन प्रतिदिन छोटा होता जा रहा है और किसान चाह कर भी, हरे चारे की खेती करने में खुद को असमर्थ पा रहे हैं। यही वजह है कि देश में हरे चारे की उपलब्धता बहुत कम होती जा रही है।         

  • ऐसे में पशुओं के लिए हरे चारे के रूप में अजोला एक अच्छा विकल्प है।

  • अजोला उगाने के लिए हरे चारे की फसलों को उगाने की तरह उपजाऊ भूमि की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है।

  • इसे किसी भी प्रकार की भूमि में गड्ढा खोदकर और उसमें पानी भर कर जलीय चारे के रूप में उगाया जा सकता है।

  • अगर जमीन रेतीली है तो उसमे गड्ढे में प्लास्टिक की शीट बिछा कर पानी भर कर अजोला को उगाया जा सकता है।

  • अजोला गाय, भैंस, मुर्गियों व बकरियों के लिए आदर्श चारा है। 

  • अजोला खिलाने से दुध देने वाले पशुओं के दूध उत्पादन में बढ़ोतरी होती है।

  • जो मुर्गी सामान्य रूप से साल में 150 अंडे देती है उन्हें अजोला आहार के रूप में देने से वह साल में 180-190 अंडे तक दे सकती है।

  • इतना ही नहीं, मछली उत्पादन में भी अजोला लाभकारी साबित हुआ है। 

  • अच्छी गुणवत्ता, पाचन शीलता और प्रचुर मात्रा में प्रोटीन का स्रोत होने के कारण अजोला किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।

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