मूंग की बुवाई का उचित समय एवं खेत तैयार करने की विधि

Right time of sowing moong and field preparation
  • किसान भाइयों जायद के मौसम में किसानों के लिए कम अवधि वाली फसल मूंग एक बेहतर विकल्प है।

  • ग्रीष्मकालीन मूंग फसल की बुवाई का उचित समय फरवरी से मार्च एवं खरीफ  मूंग बुवाई का उचित समय जून-जुलाई माह रहता है।

  • मूंग की खेती के लिए दोमट से बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। इसके लिए मिट्टी का आदर्श पी एच मान 6.5 से 7.5 माना जाता है। 

  • ग्रीष्मकालीन मूंग खेत की तैयारी के लिये रबी फसलों की कटाई के बाद खेत की जुताई कर 4-5 दिन छोड़कर पलेवा करना चाहिए।

  • पलेवा के बाद 2-3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से कर पाटा लगाकर खेत को समतल एवं भुरभुरा कर लेना चाहिए। इससे उसमें नमी संरक्षित हो जाती है व बीजों से अच्छा अंकुरण होता है।

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आइये जानते हैं बीज उपचार करने की अलग अलग विधियां

Types of Seed treatments and its methods

बीज उपचार एक प्रमुख प्रक्रिया है, जिसमें पौधों को बीमारियों और कीटों से मुक्त रखने के लिए रसायन, जैव रसायन या ताप से उपचारित किया जाता हैं। पोषक तत्व स्थिरीकरण हेतु जीवाणु कल्चर से भी बीज उपचार किया जाता है। 

बीज उपचार की विधियां

  • भीगा बीज उपचार विधि:

बीज को पॉलीथिन या पक्की फर्श पर फैलाये, हल्का पानी का छिड़काव करें रसायन या जैव रसायन की अनुशंसित मात्रा को बीज के ढेर पर डालकर, उसे दस्ताने पहनकर हल्के हाथों से अच्छी तरह मिलाकर छाया में सुखा कर बुवाई करें।

  • सुखा बीज उपचार विधि:

बीज को एक बर्तन या पॉलीथिन पर रखें। उसमें रसायन या जैव रसायन को अनुशंसित मात्रा को मिलाएं और बर्तन को बंद कर अच्छी तरह हिलाये फिर उपचारित बीज को छांव में सुखाकर बुवाई करें। 

  • स्लरी बीज उपचार विधि:

स्लरी (घोल) बनाने हेतु रसायन या जैव रसायन की अनुशंसित मात्रा को 10 लीटर पानी में किसी टब या बड़े बर्तन में अच्छी तरह मिला लें। इस घोल में बीज को 10 से 15 मिनट तक डालकर रखें, फिर छाया में बीज को सुखाकर बुवाई करें।

  • गर्म पानी बीज उपचार विधि:

सर्वप्रथम धातु के बर्तन में पानी को 52 डिग्री सेंटीग्रेड तक गर्म करें। बीज को 30 मिनट तक उस बर्तन में डालकर छोड़ दें, ध्यान रखे उपरोक्त तापक्रम पूरी प्रक्रिया में बना रहना चाहिए। बीज को छाया में सुखाकर  बुआई करें।

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प्याज की रोपाई के 45 दिनों बाद किये जाने वाले आवश्यक कार्य

Important tips to be done after 45 days of onion transplanting
  • प्याज की रोपाई के बाद विभिन्न विभिन्न चरणों में फसल की विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है l आज हम प्याज की रोपाई के 45 दिनों बाद फसल के अच्छे विकास और पौध संरक्षण के बारे में बात करेंगे l  

  • प्राय इस समय फसल पर रस चूसक कीटों में थ्रिप्स एवं कवक जनित रोगो में सड़न एवं बैंगनी धब्बा रोग का प्रकोप अधिक होने की सम्भावना रहती है l 

  • इनके प्रकोप से फसल को संरक्षित रखने के लिए निम्न सुझाव अपना सकते है- 

  • जिब्रेलिक अम्ल  [नोवामेक्स] 300 मिली + फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG [पोलिस] 40 ग्राम + टेबुकोनाज़ोल10% + सल्फर 65% WG [स्वाधीन] 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से पानी में मिलाकर छिड़काव करें l 

  • रोगों के जैविक नियंत्रण के लिए स्यूडोमोनास [मोनास कर्ब] 250 ग्राम/एकड़ एवं कीटों के जैविक नियंत्रण के लिए बवेरिया बेसियाना [बवे कर्ब ] 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव कर सकते है l

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जानिए, मूंग की खेती में बीज उपचार करने के फायदे!

Know the importance of seed treatment in summer moong
  • रबी फसलों की कटाई के बाद जायद मौसम में किसान भाई अपने खेत को खाली छोड़ने के बजाय मूंग फसल बुवाई कर अतिरिक्त आय प्राप्त कर सकते है। 

  • बुवाई के पहले बीज उपचार करने से बीज जनित तथा मृदा जनित बीमारियों को आसानी से नियंत्रित कर फसल अंकुरण को बढ़ाया जा सकता है।

  • बीज उपचार करने से बीजो में एक समान अंकुरण देखने को मिलता है l 

  • बीज उपचार के तौर पर करमानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यूपी) @ 2.5 ग्राम/किलो बीज की दर से उपयोग करें।

  • इसके जैविक उपचार के लिए राइजोकेयर (ट्रायकोडर्मा विरिडी) @ 5-10 ग्राम/किलो बीज या मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस) @ 5-10 ग्राम/किलो बीज की दर से बीज उपचार करें।

  • कीट प्रकोप से बचाव के लिए रेनो (थायोमेथोक्साम एफएस) @ 4 मिली/किलोग्राम बीज की दर से उपयोग करें l 

  • अंत में बीज को विशेष जैव वाटिका -आर (राइजोबियम कल्चर) @ 5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीज उपचार कर बुवाई करें।

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भंडारित अनाज में लगने वाले प्रमुख कीट एवं रोकथाम के उपाय

Major insect pests in stored crops
  • फसल कटाई के बाद सबसे आवश्यक कार्य अनाज भंडारण का होता है। 

  • वैज्ञानिक विधि द्वारा अनाज भंडारण करने से अनाज को लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है l प्राय: खाद्यान्नों में लगने वाले कीट कोलिओप्टेरा एवं लेपिडोप्टेरा गण के होते हैं जो भंडारित अनाज में अधिक नमी और तापमान की दशा में अधिक हानि पहुँचाते है। 

  • अनाज भंडारण के समय लगने वाले प्रमुख कीट अनाज का छोटा बेधक, खपड़ा बीटल, आटे का लाल भृंग, दालों का भृंग, अनाज का पतंगा, चावल का पतंगा आदि प्रकार कीट भंडारण के दौरान अनाज को नुकसान पहुंचाते है l 

  • यह सभी कीट भंडारण के दौरान अनाज को खाकर खोखला कर देते है। जिससे उपज का बाजार मूल्य प्रभावित होता है l 

  • इन कीटो से अनाज को सुरक्षित रखने के लिए भंडारण करने के पहले गोदामों की अच्छी प्रकार से साफ-सफाई करें, एवं नीम की पत्तियां जलाकर, भण्डार गृह में धुआँ करें।

  • अनाज को अच्छी तरह से सुखाकर ही भंडारित करें एवं भंडारित करते समय रसायन ग्रेन गोल्ड 1 एम्पुल प्रति क्विंटल अनाज की दर से उपयोग करें l

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जाने क्या है जिंक सोल्यूबिलाइजिंग बैक्टीरिया के कार्य?

Know what is the function of zinc solubilizing bacteria
  • किसान भाइयों ज़िंक सोलुब्लाइज़िंग बैक्टीरिया सबसे महत्वपूर्ण बैक्टीरिया कल्चर है।

  • यह बैक्टीरया मिट्टी में मौजूद अघुलनशील ज़िंक को घुलनशील रूप में पौधों को उपलब्ध कराता है। यह पौधों के विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्वों में से एक है।

  • इसका उपयोग मृदा उपचार, बीज उपचार एवं छिड़काव के रूप में भी कर सकते है l

  • मृदा उपचार करने के लिए 4 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से 50-100 किलोग्राम पकी हुई गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट में मिलाकर बुवाई के पहले खेत में भुरकाव करें। 

  • बीज़ उपचार के लिए 5-10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार करें। 

  • बुवाई के बाद छिड़काव के रूप में 500 ग्राम – 1 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें। 

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तरबूज की फसल में समृद्धि किट डालें और जबरदस्त उपज निकालें

Add Samriddhi kit to watermelon crop and extract tremendous yield
  • तरबूज की फसल के लिए तैयार किये गए समृद्धि किट में एनपीके बैक्टीरिया का कंसोर्टिया (टी बी 3), जिंक सोल्यूब्लाज़िंग बैक्टेरिया (ताबा जी), समुद्री शैवाल, अमीनो अम्ल, ह्यूमिक अम्ल और माइकोराइजा (मैक्समायको) व ट्राइकोडर्मा विरिडी (कॉम्बैट) सम्मिलित है जो फसल के बेहतर उपज में सहायक होता है।

आइये इस किट के उत्पादों को विस्तार से जानते हैं

  • टी बी 3 – इस उत्पाद में तीन प्रकार के बैक्टीरिया नाइट्रोजन फिक्सेशन, फॉस्फोरस घुलनशील, पोटाश मोबीलाइसिंग बैक्टीरिया को शामिल किया गया है। यह मिट्टी एवं फसल में तीन प्रमुख तत्व नाइट्रोजन, पोटाश और फास्फोरस की पूर्ति में सहायक होता है।

  • ताबा जी – इसमें उपलब्ध बैक्टीरिया मिट्टी में मौजूद अघुलनशील जिंक को घुलनशील में परिवर्तित करता है और पौधों को उपलब्ध करवाता है। जिंक पौधों की वृद्धि के लिए सबसे महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्वों में से एक है।

  • मैक्समायको – इसमें उपलब्ध समुद्री शैवाल, अमीनो अम्ल, ह्यूमिक अम्ल फूलों और फलों की संख्या बढ़ाते हैं। पौधे की कमजोरियों को दूर कर मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाते हैं।

  • माइकोराइजा पौधे की जड़ों और उनके आस-पास की मिट्टी के बीच एक अच्छा संबंध बनाता है, जो कवक को पौधे के लिए नाइट्रोजन और फास्फोरस जैसे पोषक तत्वों को बढ़ाने और जड़ों के विकास में सहायक होता है।

  • कॉम्बैट- यह एक जैविक कवकनाशी है जो मिट्टी और बीज द्वारा होने वाले रोगजनकों को मारता है जिसकी वजह से जड़ सड़न, तना गलन, उकठा रोग जैसी गंभीर बीमारियों से रोकथाम करता है साथ ही जड़ विकास को तेज करता है।

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गेहूँ में रतुआ या गेरुआ रोग की रोकथाम के उपाय

Management of rust disease in wheat

  • किसान भाइयों गेहूँ की फसल में मुख्यतः देखा जाने वाला प्रमुख रोग है रतुआ या गेरुआ रोग l यह पक्सीनिया रिकोंडिटा ट्रिटिसाई नामक फफूंद से होता है यह 3 प्रकार का भूरा रतुआ, पीला रतुआ या काला रतुआ होता है। 

  • इस रोग की पहचान यह है कि शुरुआती अवस्था में इस रोग के लक्षण नारंगी रंग के धब्बे पत्तियों की ऊपरी सतह पर उभरते हैं जो बाद में और घने होकर पूरी पत्तियों पर फैल जाते हैं। 

  • रोगी पत्तियां जल्दी सुख जाती हैं जिससे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में बाधा आती है और दाना हल्का बनता है। तापमान बढ़ने की स्थिति में इन धब्बों का रंग, पत्तियों की निचली सतह पर काला हो जाता है।  

  • इस रोग के रासायनिक नियंत्रण के लिए हेक्साकोनाजोल 5% एससी @ 400 मिली या प्रोपिकोनाज़ोल 25% ईसी @ 200 मिली या टेबुकोनाज़ोल 25.9% ईसी @ 200 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।  

  • जैविक नियंत्रण के लिए ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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फसलों में दीमक की रोकथाम के प्रभावी उपाय

Biological control of termites
  • किसान भाइयों फसलों में दीमक की समस्या एक गंभीर समस्या बन गई है। यह बागवानी फसलें जैसे अनार, आम, अमरूद, जामुन, नींबू, संतरा, पपीता, आंवला आदि में अधिक देखने को मिलती है। 

  • यह जमीन में सुरंग बनाकर पौधों की जड़ों को खाते हैं। इसका प्रकोप अधिक होने पर ये तने को भी खाते हैं और मिट्टी युक्त संरचना भी बनाते हैं। 

  • गर्मियों में मिट्टी में दीमक को नष्ट करने के लिए ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें। खेत में हमेशा अच्छी तरह से पकी हुई गोबर खाद का प्रयोग करें। 

  • बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना) @ 1 किलोग्राम को 25 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद में मिलाकर पौधरोपण से पहले डालना चाहिए। 

  • दीमक के टीले को केरोसिन से भर दें ताकि दीमक की रानी के साथ-साथ अन्य दीमक भी मर जाएँ।

  • दीमक द्वारा तनों पर बनाये गए छेद में (लीथल सुपर 505) क्लोरोपाइरीफोस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी @ 250 मिली प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर प्रयोग करें और पेड़ की जड़ों के पास यही दवा 50 मिली प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर दें।

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सब्जियों वाली फसलों में ऐसे करें दीमक के प्रकोप का नियंत्रण

Control the outbreak of termites in horticultural crops like this
  • दीमक अपने प्रकोप से आलू , टमाटर, मिर्च, बैंगन, फूल गोभी, पत्ता गोभी, सरसों, राई, मूली, गेहूँ आदि फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है।

  • इस कीट के जैविक नियंत्रण के लिए निम्न उपाय कर सकते हैं

  • बीजो को कीटनाशकों के द्वारा बीज़ उपचार करके ही बोना चाहिए।

  • कीटनाशक मेट्राजियम से मिट्टी उपचार अवश्य करना चाहिए l

  • खड़ी फसल में दीमक नियंत्रण के लिए 1 -1.5 लीटर नीम का तेल प्रति एकड़ की दर से सिंचाई के  पानी के साथ दें या 15 – 20  किलो बजरी में मिलाकर भुरकाव कर सिंचाई करें।

  • दीमक प्रभावित क्षेत्रों में 200 किलो अरण्डी की खली प्रति एकड़ की दर से अंतिम जुताई के समय भूमि में डालें।

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