तरबूज की फसल में समृद्धि किट डालें और जबरदस्त उपज निकालें

Add Samriddhi kit to watermelon crop and extract tremendous yield
  • तरबूज की फसल के लिए तैयार किये गए समृद्धि किट में एनपीके बैक्टीरिया का कंसोर्टिया (टी बी 3), जिंक सोल्यूब्लाज़िंग बैक्टेरिया (ताबा जी), समुद्री शैवाल, अमीनो अम्ल, ह्यूमिक अम्ल और माइकोराइजा (मैक्समायको) व ट्राइकोडर्मा विरिडी (कॉम्बैट) सम्मिलित है जो फसल के बेहतर उपज में सहायक होता है।

आइये इस किट के उत्पादों को विस्तार से जानते हैं

  • टी बी 3 – इस उत्पाद में तीन प्रकार के बैक्टीरिया नाइट्रोजन फिक्सेशन, फॉस्फोरस घुलनशील, पोटाश मोबीलाइसिंग बैक्टीरिया को शामिल किया गया है। यह मिट्टी एवं फसल में तीन प्रमुख तत्व नाइट्रोजन, पोटाश और फास्फोरस की पूर्ति में सहायक होता है।

  • ताबा जी – इसमें उपलब्ध बैक्टीरिया मिट्टी में मौजूद अघुलनशील जिंक को घुलनशील में परिवर्तित करता है और पौधों को उपलब्ध करवाता है। जिंक पौधों की वृद्धि के लिए सबसे महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्वों में से एक है।

  • मैक्समायको – इसमें उपलब्ध समुद्री शैवाल, अमीनो अम्ल, ह्यूमिक अम्ल फूलों और फलों की संख्या बढ़ाते हैं। पौधे की कमजोरियों को दूर कर मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाते हैं।

  • माइकोराइजा पौधे की जड़ों और उनके आस-पास की मिट्टी के बीच एक अच्छा संबंध बनाता है, जो कवक को पौधे के लिए नाइट्रोजन और फास्फोरस जैसे पोषक तत्वों को बढ़ाने और जड़ों के विकास में सहायक होता है।

  • कॉम्बैट- यह एक जैविक कवकनाशी है जो मिट्टी और बीज द्वारा होने वाले रोगजनकों को मारता है जिसकी वजह से जड़ सड़न, तना गलन, उकठा रोग जैसी गंभीर बीमारियों से रोकथाम करता है साथ ही जड़ विकास को तेज करता है।

कृषि एवं कृषि उत्पादों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। उन्नत कृषि उत्पादों की खरीदी के लिए ग्रामोफ़ोन के बाजार विकल्प पर जाना ना भूलें।

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गेहूँ में रतुआ या गेरुआ रोग की रोकथाम के उपाय

Management of rust disease in wheat

  • किसान भाइयों गेहूँ की फसल में मुख्यतः देखा जाने वाला प्रमुख रोग है रतुआ या गेरुआ रोग l यह पक्सीनिया रिकोंडिटा ट्रिटिसाई नामक फफूंद से होता है यह 3 प्रकार का भूरा रतुआ, पीला रतुआ या काला रतुआ होता है। 

  • इस रोग की पहचान यह है कि शुरुआती अवस्था में इस रोग के लक्षण नारंगी रंग के धब्बे पत्तियों की ऊपरी सतह पर उभरते हैं जो बाद में और घने होकर पूरी पत्तियों पर फैल जाते हैं। 

  • रोगी पत्तियां जल्दी सुख जाती हैं जिससे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में बाधा आती है और दाना हल्का बनता है। तापमान बढ़ने की स्थिति में इन धब्बों का रंग, पत्तियों की निचली सतह पर काला हो जाता है।  

  • इस रोग के रासायनिक नियंत्रण के लिए हेक्साकोनाजोल 5% एससी @ 400 मिली या प्रोपिकोनाज़ोल 25% ईसी @ 200 मिली या टेबुकोनाज़ोल 25.9% ईसी @ 200 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।  

  • जैविक नियंत्रण के लिए ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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फसलों में दीमक की रोकथाम के प्रभावी उपाय

Biological control of termites
  • किसान भाइयों फसलों में दीमक की समस्या एक गंभीर समस्या बन गई है। यह बागवानी फसलें जैसे अनार, आम, अमरूद, जामुन, नींबू, संतरा, पपीता, आंवला आदि में अधिक देखने को मिलती है। 

  • यह जमीन में सुरंग बनाकर पौधों की जड़ों को खाते हैं। इसका प्रकोप अधिक होने पर ये तने को भी खाते हैं और मिट्टी युक्त संरचना भी बनाते हैं। 

  • गर्मियों में मिट्टी में दीमक को नष्ट करने के लिए ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें। खेत में हमेशा अच्छी तरह से पकी हुई गोबर खाद का प्रयोग करें। 

  • बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना) @ 1 किलोग्राम को 25 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद में मिलाकर पौधरोपण से पहले डालना चाहिए। 

  • दीमक के टीले को केरोसिन से भर दें ताकि दीमक की रानी के साथ-साथ अन्य दीमक भी मर जाएँ।

  • दीमक द्वारा तनों पर बनाये गए छेद में (लीथल सुपर 505) क्लोरोपाइरीफोस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी @ 250 मिली प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर प्रयोग करें और पेड़ की जड़ों के पास यही दवा 50 मिली प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर दें।

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सब्जियों वाली फसलों में ऐसे करें दीमक के प्रकोप का नियंत्रण

Control the outbreak of termites in horticultural crops like this
  • दीमक अपने प्रकोप से आलू , टमाटर, मिर्च, बैंगन, फूल गोभी, पत्ता गोभी, सरसों, राई, मूली, गेहूँ आदि फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है।

  • इस कीट के जैविक नियंत्रण के लिए निम्न उपाय कर सकते हैं

  • बीजो को कीटनाशकों के द्वारा बीज़ उपचार करके ही बोना चाहिए।

  • कीटनाशक मेट्राजियम से मिट्टी उपचार अवश्य करना चाहिए l

  • खड़ी फसल में दीमक नियंत्रण के लिए 1 -1.5 लीटर नीम का तेल प्रति एकड़ की दर से सिंचाई के  पानी के साथ दें या 15 – 20  किलो बजरी में मिलाकर भुरकाव कर सिंचाई करें।

  • दीमक प्रभावित क्षेत्रों में 200 किलो अरण्डी की खली प्रति एकड़ की दर से अंतिम जुताई के समय भूमि में डालें।

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तरबूज की फसल में ऐसे करें सिंचाई प्रबंधन

Irrigation management in watermelon crop
  • प्रिय किसान भाइयों तरबूज की फसल को अधिक पानी आवश्यकता होती है। लेकिन पानी का भराव इस फसल के लिए हानिकारक होता है l पौधे के निचले भाग में अधिक पानी देने से जड़ गलन एवं फल सड़न की समस्या देखी जाती है। 

  • तरबूज की खेती खासकर गर्म मौसम में होती हैं इसलिए इसमें सिंचाई की सुनिश्चित व्यवस्था एवं उचित अंतराल करना चाहिए। 

  • तरबूज में मुख्यतः सिंचाई 3-5 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए अर्थात मिट्टी में पर्याप्त नमी बनी रहनी चाहिए l 

  • फूल आने के पहले, फूल आने के समय एवं फल की वृद्धि के समय पानी की कमी से उत्पादन में बहुत कमी आ जाती है। 

  • फल पकने के समय सिंचाई रोक देना चाहिए ऐसा करने से फल की गुणवत्ता बढ़ती है और साथ ही फल फटने की समस्या भी नहीं आती है। 

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तरबूज की फसल में पाउडरी मिल्ड्यू रोग का ऐसे करें रोकथाम

Solution of powdery mildew disease in watermelon
  • किसान भाइयों जैसे – जैसे तापमान में बढ़ोतरी होती है वैसे -वैसे इस पाउडरी मिल्ड्यू रोग का प्रकोप बढ़ता जाता है। 

  • आमतौर पर यह रोग पत्तियों को प्रभावित करता हैं। पत्तियों की ऊपरी एवं निचली सतह पर सफेद रंग का चूर्ण दिखाई देता है l 

  • समाधान – इस रोग के प्रकोप को शुरुआती अवस्था में ही नियंत्रित करने से अच्छा परिणाम देखने को मिलता है। 

  • खेत में खरपतवार ना होने दे एवं प्रकोप अधिक होने की स्थिति में प्रभावित पौधों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।  

  • इस रोग के रासायनिक प्रबंधन के लिए कस्टोडिया (एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एससी) @ 300 मिली या इंडेक्स (मायक्लोबुटानिल 10% डब्ल्यूपी) @ 100 ग्राम या करसर (फ्लुसिलाज़ोल 40% ईसी) @ 60 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।  

  • जैविक प्रबंधन में कॉम्बेट (ट्रायकोडर्मा विरिडी) @ 500 ग्राम + मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस) @ 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

  • ध्यान रखें इस रोग के लिए एक ही कवकनाशी का उपयोग बार – बार नहीं करना चाहिए। कवकनाशी बदल- बदल कर उपयोग करना चाहिए।

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तरबूज में गमी स्टेम ब्लाइट रोग की पहचान व नियंत्रण के उपाय

Symptoms and treatment of gummy stem blight disease in watermelon crop
  • किसान भाइयों तरबूज की फसल में लगने वाला गमी स्टेम ब्लाइट (गमोसिस) के लक्षण सबसे पहले पत्तियों पर, फिर तने पर गहरे भूरे रंग के धब्बे या घावों के रूप में दिखाई देते हैं। 

  • घाव अक्सर पत्ती मार्जिन पर पहले विकसित होते हैं लेकिन अंततः पूरी पत्तियों पर फैल जाते हैं।

  • तने पर गमोसिस ब्लाइट के लक्षण घाव के रूप में दिखायी देते हैं ये आकार में गोलाकार होते हैं और भूरे रंग के होते हैं।  

  • गमोसिस ब्लाइट या गमी स्टेम ब्लाइट का एक मुख्य लक्षण यह है की इस रोग से ग्रसित तने से गोंद जैसा चिपचिपा पदार्थ निकलता है। 

  • इसके रासायनिक उपचार के लिए कोनिका (कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% डब्ल्यूपी) @ 300 ग्राम या जटायु (क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यूपी) @ 300 ग्राम या लार्क (टेबुकोनाज़ोल 25.9% ईसी) @ 200 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव कर प्रभावी नियंत्रण प्राप्त कर सकते है।  

  • जैविक उपचार के रूप में मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस) @ 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें।

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जानिए, फसलों में खलियों का प्रयोग एवं महत्व

Oil cake manure is better for crops

किसान भाइयों तिलहनी फसलों के बीजों से तेल निकालने के बाद जो अवशिष्ट पदार्थ बच जाता है उसे खली कहते हैं। जब इसे खेत मे खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है तब यह खली की खाद कहलाता है। 

खली 2 प्रकार की होती है –

  1. खाद्य खली: यह पशुओं के खाने योग्य होती हैं जैसे – बिनौला, सरसों, तारामीरा, मूंगफली, तिल, नारियल आदि l           

  2. अखाद्य खली: यह पशुओं के खाने योग्य नहीं होती हैं, इन्हें खेत में खाद के रूप में उपयोग किया जाता है। जैसे अरण्डी, महुआ, नीम, करंज आदि। यह फसल में कीटनाशक का कार्य भी करती हैं। 

खलियों में गोबर की खाद एवं कम्पोस्ट की तुलना में नाइट्रोजन अधिक मात्रा में पाई जाती है, साथ ही खलियों में फास्फोरस एवं पोटाश भी पाया जाता है। 

विभिन्न खली की खादों में उपलब्ध पोषक तत्वों की मात्रा –

खली 

नाइट्रोजन %

फास्फोरस %

पोटाश    %

अरण्डी

4.37

1.85

1.39

महुआ

2.51

0.80

1.85

नीम

5.22

1.08

1.48

करंज

3.97

0.94

1.27

खली की खाद सान्द्र कार्बनिक खादों के वर्ग में आती है इसका प्रयोग खेत में बुवाई पूर्व एवं पश्चात दोनों समय कर सकते है। 

बुवाई के पहले खलियों का प्रयोग – 

  1. महुआ की खली के अतिरिक्त सभी खलियो का चूर्ण बुवाई के 10 -15 दिन पूर्व खेत में प्रयोग करना चाहिए।

  2. महुआ की खली देरी से अपघटित होती है इसलिए इसका उपयोग खेत में बुवाई के 2 माह पहले करना चाहिए। इसमें सेपोनिन नामक रसायन पाया जाता है जिसकी उपस्थिति के कारण धान की फसल के लिए यह एक उत्तम खाद है। 

  3. खलियों को खेत में बिखर कर हल्की जुताई कर मिट्टी में मिला देना चाहिए। 

बुवाई पश्चात खलियों का प्रयोग – 

  1. अंकुरण के पश्चात पौधे के पास पिसी हुई खली के चूर्ण का प्रयोग करें।

  2. कंद मूल वाली फसलों में मिट्टी चढ़ाते समय खलियों का प्रयोग कर सकते है। 

  3. ध्यान रखे खलियों को खेत मे डालने के बाद उनके अपघटन के लिए मिट्टी में पर्याप्त नमी होना अति आवश्यक है। 

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नर्सरी तैयार करते समय यह सावधानियां अपनाएं और स्वस्थ पौध पाएं

Precautions to be taken while preparing a nursery
  • पौधों को प्रारंभिक अवस्था में उचित देखरेख के लिए जिस छोटे स्थान पर रखा जाता है उसे पौधघर या नर्सरी कहते है।

  • पौधघर के लिए स्थान चयन – पौध घर की भूमि आसपास के स्थान से ऊंची हो, भूमि उपजाऊ व विकार रहित हो, पर्याप्त मात्रा में सूर्य प्रकाश उपलब्ध हो, सिंचाई की स्थायी व्यवस्था हो, प्रदूषण रहित स्थान हो, सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था हो, स्थानीय एवं सस्ते मजदूरों की उपलब्धता हो। इन सभी बातों का ध्यान पौधघर के लिए स्थान चयन करते समय रखें। 

  • उपजाऊ मिट्टी, रेत और केंचुआ खाद क्रमशः 2:1:1 में मिश्रित कर उपयोग में ले।

  • बीज बोने की क्यारियाँ 3 मीटर लम्बी एवं 1 मीटर चौड़ी तथा 10 – 15 सेमी ऊंची उठी हुई आदर्श मानी जाती है। 

  • बीज उपचार – बीजों को बुवाई के पूर्व करमानोवा (कार्बेन्डाजिम12% + मैनकोज़ेब 63% डब्ल्यूपी) @ 3 ग्राम/किलोग्राम बीज़ की दर से उपचारित करें। 

  • सिंचाई – शरद एवं ग्रीष्म ऋतु में अंकुरण के पहले प्रतिदिन सायंकाल हजारे से सिंचाई करना चाहिए। 

  • निराई गुड़ाई-  खरपतवारों को हाथ से या खुरपी से निकाल देना चाहिए एवं समय समय पर हल्की गुड़ाई करें।  

  • पौध संरक्षण –  फफूंदी जनित रोग एवं कीट प्रबंधन के लिए बुवाई के 20 -25 दिन बाद संचार (मेटलैक्सिल 8% + मैंकोज़ेब 64% डब्ल्यूपी) @ 60 ग्राम + पोलिस (फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% डब्ल्यू जी) @ 5 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर अच्छे से ड्रेंचिंग करें।

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एक प्याज समृद्धि किट से फसल को मिलेंगे अनेक फायदे

Onion Samriddhi Kit
  • किसान भाइयों ग्रामोफोन की विशेष समृद्धि किट मिट्टी में पाए जाने वाले आवश्यक पोषक तत्वों को घुलनशील रूप में परिवर्तित करके पौधे के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

  • यह किट मिट्टी में पाए जाने वाली हानिकारक फ़फ़ूँदो को खत्म करके पौधे को होने वाले नुकसान से बचाती है। 

  • यह उत्पाद उच्च गुणवत्ता वाले प्राकृतिक अवयवों से बना है, यह मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की गतिविधि को बढ़ाने में सहायक है।

  • यह किट मिट्टी के पीएच को बेहतर बनाने में मदद करता है और जड़ों को एक अच्छी शुरुआत प्रदान करता है, ताकि जड़ पूरी तरह से विकसित हो सके, जो फसल के अच्छे उत्पादन का कारण बनती है। 

  • इस किट में उपलब्ध उत्पाद मिट्टी की संरचना में सुधार करके मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता को कम नहीं होने देते है, जड़ प्रणाली द्वारा पोषक तत्वों में सुधार से जड़ विकास को बढ़ावा देता है।

  • जड़ों के द्वारा मिट्टी से पोषक तत्वों के अवशोषण में मदद करता है। मिट्टी में सूक्ष्म जीवो की गतिविधि को बढ़ावा देता है।

फसल की बुआई के साथ ही अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

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