फसलों में नीम खली के फायदे

Neem cake and its uses
  • किसान भाइयों नीम खली एक जैविक उर्वरक है। इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, जिंक, कॉपर, सल्फर, कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन एवं अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व पाए जाते हैं।  

  • नीम खली के उपयोग के दोहरे फायदे होते है, यह फर्टिलाइजर के साथ साथ कीटनाशक का काम भी करती है।

  • नीम खली में 8-10% नीम तेल रहता है जिसे हम जैविक कीटनाशक के रूप में इस्तेमाल करते है। जब हम लगातार रासायनिक कीटनाशक का उपयोग करते है तो कीटों में उस रसायन के प्रति प्रतिरोधक क्षमता आ जाती है और अगली बार कीट और मजबूत हो जाते है परन्तु यदि हम नीम खली का उपयोग कीटनाशक के रूप में करते है तो यह कीटों के हार्मोन्स पर प्रभाव डालता है जिससे वो आगे बिल्कुल वृद्धि नहीं कर पाते और नष्ट हो जाते है।

  • नीम खली के उपयोग से मृदा में नमी बनी रहती है एवं पौधों की पत्तियों एवं तनों में चमक आती है। 

  • नीम खली के प्रयोग से पौधों में एमिनो एसिड का स्तर बढ़ता है। जो क्लोरोफिल का स्तर भी बढ़ाती है, जिससे पौधा हरा भरा दिखाई देता है।

  • नीम खली के उपयोग से फफूंदी जनित रोग, हानिकारक बैक्टीरिया तथा चीटियों से भी बचाव होता है।

  • यदि आपके पौधों में फूल नहीं आ रहे है या फूल आ कर गिर रहे है या फलों का आकार छोटा है तो नीम खली के उपयोग से यह सभी समस्या दूर हो जाती है।

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कद्दू वर्गीय फसलों में डाउनी मिल्ड्यू रोग का ऐसे करें प्रबंधन

Management of downy mildew in cucurbits

  • कद्दू वर्गीय फसलों में डाउनी मिल्ड्यू यानि मृदुरोमिल आसिता रोग एक गंभीर फफूंदी जनित रोग माना जाता है।

  • इसके कारण रात के तापमान में कमी एवं अधिक आर्द्रता होने पर पत्तियों के ऊपरी भाग पर कोणीय आकार के पीले धब्बे बन जाते हैं।

  • पत्तियों की निचली सतह पर स्लेटी, भूरे से नारंगी, काले रंग के स्पोर्स दिखाई देते हैं। 

  • जैसे-जैसे यह रोग बढ़ता है, संक्रमित पत्तियाँ गलने लगती हैं और झुलस कर गिर जाती हैं। 

  • इसके लक्षण पके फलों पर भूरे धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं और बाद में फल विकृत हो जाते हैं।

  • विकृत फल खाने योग्य तो होता है लेकिन बाजार में इसका बहुत कम या कोई मूल्य नहीं होता है।

  • रासायनिक नियंत्रण- एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 11% + टेबुकनाज़ोल 18.3% एससी @ 300 मिली या मेटालैक्सिल 8% + मैनकोज़ेब 64% डब्ल्यूपी @ 600 ग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करें।

  • जैविक नियंत्रण- स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस @ 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें। 

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गेहूँ में 85-90 दिनों पर यह छिड़काव अपनाएं, बम्पर पैदावर पाएं

Spraying management in 85-90 days crop in wheat
  • किसान भाइयों गेहूँ की फसल रबी की प्रमुख फसलों में से एक है।

  • गेहूँ की फसल 80-90 दिनों की अवस्था में परिपक्वता की अवस्था में रहती है, इस अवस्था में फसल को पर्याप्त मात्रा में आवश्यक पोषक तत्वों को देना बहुत आवश्यक होता है साथ ही फफूंदी जनित रोग जैसे अनावृत कंडवा, रस्ट आदि रोगों से सुरक्षा प्रदान करना भी आवश्यक होता है।

  • फफूंदी जनित रोगों से बचाव के लिए जेरॉक्स (प्रोपिकोनाज़ोल 25% ईसी) @ 200 मिली प्रति एकड़ छिड़काव करें।  

  • जैविक उपचार के रूप में मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस) @ 250 ग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करें।

  • अगर फसल में इल्ली का प्रकोप दिखाई दे तो इमानोवा (इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी) @ 100 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

  • पोषक तत्व प्रबंधन एवं दाने की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए पानी में घुलनशील उर्वरक 00:00:50 @ 1 किलोग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करें। 

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प्याज की फसल में 75-80 दिनों पर जरुरी छिड़काव

If your onion is 75-80 days old then do this spraying
  • किसान भाइयों प्याज की फसल से उच्च गुणवत्ता युक्त उपज प्राप्त करने के लिए 75- 80 दिनों की अवस्था में कंदो का आकार बढ़ाने पर विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है साथ ही फसल को कीट एवं रोगों के नुकसान से भी बचाना होता है।

  • यदि प्याज के कंद का आकार एक सामान, बड़े एवं स्वस्थ होते है तो बाजार मूल्य भी अच्छा मिलता है और स्वस्थ कंदो को अधिक समय तक भंडारित भी किया जा सकता है। 

  • इस समय किसान भाई नीचे दिये सुझावों को अपनाकर उच्च उपज प्राप्त कर सकते हैं।

  • अच्छी उपज के लिए जल घुलनशील उर्वरकों का पर्णीय छिड़काव आवश्यक होता है। इसके लिए 00:00:50 @ 1 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव कर सकते हैं। यह प्याज का आकार बढ़ाने में सहायक होता है।

  • फसल में कीट एवं रोग प्रबंधन के लिए बेनेविया (सायंट्रानिलिप्रोल 10.26% ओडी) @ 250 मिली + फोलिक्योर (टेबुकोनाज़ोल 25.9% ईसी) @ 200 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। इन सभी दवाओं के साथ सिलिकोमैक्स (सिलिकॉन आधारित स्टिकर चिपको) @ 5 मिली प्रति 15 लीटर पानी के साथ मिलाकर छिड़काव करें।

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तरबूज बुवाई के 10-20 दिनों बाद किये जाने वाले आवश्यक कार्य

Essential activities to be done 10-20 days after sowing in watermelon

  • किसान भाइयों तरबूज की फसल में अंकुरण के बाद अच्छी जड़ एवं स्वस्थ पौधों के विकास के लिए पोषक तत्व प्रबंधन जितना आवश्यक होता है उतना ही पौध संरक्षण भी जरूरी होता है। बुवाई के 10 -20 दिनों के मध्य निम्न उत्पादों का उपयोग कर फसल की रक्षा कर सकते है।

  • उर्वरक प्रबंधन:- बुवाई के 10-15 दिनों बाद पौधों की वानस्पतिक वृद्धि एवं विकास के लिए यूरिया 75 किलो + सूक्ष्म पोषक तत्व मिश्रण (एग्रोमिन) 5 किलो + सल्फर (कोसावेट फर्टिस) – 5 किलो प्रति एकड़ की दर से मिट्टी में मिलाएं l 

  • छिड़काव प्रबंधन – बुवाई के 15-20 दिनों बाद रस चूसक कीट व फफूंदी जनित रोगों की रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 40% + फिप्रोनिल 40% डब्ल्यूजी @ 40 ग्राम + क्लोरोथैलोनिल 75% डब्ल्यूपी @ 400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

  • उपयुक्त मिश्रण के साथ ह्यूमिक एसिड (मैक्सरूट) 100 ग्राम मिला सकते है, यह पौधों की जड़ वृद्धि में मदद करता है। 

  • बुवाई के 10-25 दिनों में खरपतवार अधिक दिखाई देने पर इन्हें निराई गुड़ाई के माध्यम से निकाल दें। 

  • अगर बुवाई के समय ग्रामोफोन की समृद्धि किट का उपयोग नहीं किया गया है तो इस समय भी उपयोग कर अच्छा लाभ उठा सकते हैं। 

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तरबूज की फसल में माहू व हरा तेला का अब होगा अंत

Management of aphids and jassids in watermelon crop
  • किसान भाइयों इस समय तरबूज की फसल की बुवाई कई जगह पर हो गई और कई स्थानों पर चल रही है। जहाँ पर फसल उग आई है वहाँ पर फसल में माहू एवं हरा तेला कीट का प्रकोप दिखाई दे रहा है। 

  • माहू एवं हरा तेला कीट मुलायम शरीर के छोटे कीट होते है जो पीले, भूरे, हरे या काले रंग के हो सकते है।

  • ये आमतौर पर छोटी पत्तियों और बेलों के कोनों पर समूह बनाकर पौधे से रस चूसते है तथा चिपचिपा मधु स्राव (हनीड्यू) करते हैं। जिससे काली फफूंद लग जाती है और पौध विकास में समस्या आती है।

  • गंभीर संक्रमण में पौधे की पत्तियां और टहनियां कुम्हला जाती है या पीली पड़ जाती हैं। 

  • इनके उचित प्रबंधन हेतु थायोमिथोक्साम 25% डब्ल्यूजी @ 100 ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एसएल @ 100 मिली या फ्लोनिकामिड 50% डब्ल्यूजी @ 60 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।   

  • जैविक नियंत्रण के लिए बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

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प्याज की रोपाई के 25 दिनों बाद इन आवश्यक सुझावों को जरूर अपनाएं

Know the necessary recommendations 25 days after transplanting onion seedlings
  • किसान भाइयों भारत में आमतौर पर प्याज की खेती रबी तथा खरीफ दोनों मौसम में की जाती है। मुख्यतः इस समय सभी जगह रबी प्याज की पौध रोपाई चल रही है या कही रोपाई हो चुकी है l जहां रोपाई हो चुकी है उसके 25 दिन बाद किसान निम्न आवश्यक सिफारिशें जरूर अपनाएं।   

  • छिड़काव के रूप में – पौधे के वानस्पतिक विकास को बढ़ाने और फसल में इल्ली एवं फफूंदी जनित रोगों के प्रकोप को रोकने के लिए पानी में घुलनशील उर्वरक (ग्रोमोर) 19:19:19 @ 1 किलोग्राम + लैमनोवा (लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 4.9% एससी) @ 200 मिली + नोवाकोन (हेक्साकोनाज़ोल 5% एससी) @ 400 मिली प्रति एकड़ की दर से पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 

  • प्रत्येक छिड़काव में सिलिको मैक्स (सिलिकॉन आधारित स्टिकर चिपको) @ 5 मिली प्रति 15 लीटर पानी के साथ जरूर मिलाएं। 

  • मिट्टी में आवेदन – यूरिया @ 30 किलोग्राम + एग्रोमिन (सूक्ष्म पोषक तत्व मिश्रण) @ 5 किलोग्राम +  ग्रोमोर (जिंक सल्फेट) @ 5 किग्राग्राम प्रति एकड़ की दर से मिट्टी में उपयोग करें। यूरिया पौधों को नाइट्रोजन प्रदान करता है जो वानस्पतिक विकास को बढ़ाने में सहायक होता है, एग्रोमिन फसलों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को पूरा करता है एवं जिंक सल्फेट पौधों की वृद्धि और शक्ति को बढ़ाता है।

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टमाटर की फसल में लीफ माइनर का हो रहा प्रकोप, जानें नियंत्रण विधि

Leaf miner outbreak in tomato crop
  • किसान भाइयों टमाटर की फसल में लीफ माइनर (पर्ण सुरंगक) कीट बहुत ही छोटे होते हैं जो पत्तियों के अंदर जाकर हरित पदार्थ को खाकर सुरंग बनाते हैं। जिसके कारण पत्तियों पर सफेद लकीरें दिखाई देती है। 

  • प्रौढ़ कीट हल्के पीले रंग का होता है एवं शिशु कीट बहुत छोटे एवं पैर विहीन पीले रंग के होते हैं। 

  • इसकी क्षति के लक्षण सबसे पहले पत्तियों पर दिखाई देते है। 

  • जैसे ही लार्वा पत्ती के अंदर प्रवेश कर पत्तियों को खाना शुरू करता है पत्तियों के दोनों और सफेद सर्पिलाकार रचनाएँ दिखाई देने लगती है। 

  • इसके प्रकोप से प्रभावित पौधे पर फल कम लगते है और पत्तियां समय से पहले गिर जाती है। 

  • पौधों की बढ़वार रुक जाती है एवं पौधे छोटे रह जाते है। 

  • इसके प्रकोप के कारण पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया भी प्रभावित होती है।  

  • इस कीट के नियंत्रण के लिए एबामेक्टिन 1.9 % ईसी @ 150 मिली या स्पिनोसेड 45% एससी @ 75 मिली या सायनट्रानिलीप्रोल 10.26% ओडी @ 250 मिली प्रति एकड़ छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के लिए बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

आपकी जरूरतों से जुड़ी ऐसी ही अन्य महत्वपूर्ण सूचनाओं के लिए प्रतिदिन पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख और अपनी कृषि समस्याओं की तस्वीरें समुदाय सेक्शन में पोस्ट कर प्राप्त करें कृषि विशेषज्ञों की सलाह।

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प्याज में पत्तियां जलने के कारण एवं नियंत्रण के उपाय

Reasons and solutions to the problem of leaf tip burning in onion crop

  • किसान भाइयों इस समय प्याज की फसल में पत्तियों के नोक जलने की समस्या बहुत देखने को मिलती है। 

  • प्याज के किनारे जलने के विभिन्न कारण हो सकते हैं जैसे- फफूंदी जनित रोग, कीटों का प्रकोप एवं पोषक तत्व की कमी आदि। 

  • यदि मिट्टी या पत्ते पर किसी भी प्रकार के फफूंद का आक्रमण होता है तो भी प्याज के पत्ते के किनारे जलते है। 

  • यदि फसल की जड़ों या पत्तियों पर किसी प्रकार के कीट का प्रकोप हो तो भी यह समस्या होती है। 

  • प्याज की फसल में नत्रजन या किसी महत्वपूर्ण पोषक तत्व की यदि कमी हो जाती है तो भी पत्ते जलने की समस्या देखी जाती है इसके नियंत्रण के लिए निम्न उत्पादों का उपयोग लाभकारी होता है। 

  • फफूंदी जनित रोगों के नियंत्रण के लिए कीटाजिन 48% ईसी @ 200 मिली या कासुगामाइसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% डब्ल्यूपी @ 300 ग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें। 

  • कीटों की रोकथाम के लिए फिप्रोनिल 5% एससी @ 400 मिली या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 5% ईसी @ 250 मिली या फिप्रोनिल 40% +इमिडाक्लोप्रिड 40% डब्ल्यूजी @ 80 ग्राम प्रति एकड़ की दर उपयोग करें।  

  • पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए सीवीड एक्स्ट्रैक्ट @ 400 मिली या ह्युमिक एसिड 100 ग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें।

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मटर एवं चने में फली छेदक इल्ली की रोकथाम के उपाय

A problem of pod borer in pea and gram crop
  • किसान भाइयों एवं बहनों, फली छेदक मटर एवं चने की फसल का प्रमुख कीट है जो फसल को भारी नुकसान पहुंचाता है। 

  • इसकी इल्ली गहरे रंग की होती है जो बाद में गहरे भूरे रंग की हो जाती है यह कीट फूल आने के समय से फसल कटाई तक फसल को नुकसान पहुंचाते है।

  • यह कीट फली में छेद करके अंदर प्रवेश कर दाने को खाकर नुकसान पहुंचाती है। 

  • इसके नियंत्रण के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी @ 100 ग्राम या फ्लुबेंडियामाइड 39.35 % एससी @ 50 मिली या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5 % एससी @ 60 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।  

  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से  छिड़काव करें।

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