जायद मूंग की फसल को खरपतवारों के प्रकोप से ऐसे बचाएं

Weed management in summer moong

मूंग की फसल में खरपतवारों का नियंत्रण सही समय पर नहीं करने से फसल की उपज में 40-60 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है। खरीफ मौसम में फसलों में संकरी पत्ती वाले खरपतवार जैसे – सँवा (इकैनोक्लोआ कोलोनम/क्रस्गली),दूब घास (साइनेडान डेकटीलॉन) एवं चौड़ी पत्ती वाले   पत्थरचटा ( ट्राएंथमा मोनोगायना), कनकवा (कोमेलिना बेंघालेंसिस), मह्कुवा (अजिरेटम कोनोजाइड), सफ़ेद मुर्ग (सिलोसिया अरजेन्शिया), हजारदाना (फाएलेंथस निरुरी), लह्सुआ (डाइजेरा अरवेंसिस) तथा मोथा (साइप्रस रोटनडस, साइप्रस इरिया) आदि वर्ग के खरपतवार बहुतायत से निकलते हैं। फसल व खरपतवार के प्रतिस्पर्धा की क्रांतिक अवस्था मूंग में प्रथम 30 से 35 दिनों तक रहती है, इसलिए प्रथम निदाई गुड़ाई 15-20 दिनों पर तथा द्वितीय 35-40 दिनों पर करनी चाहिए। कतार में बोई गई फसल में व्हील हो नामक यंत्र द्वारा यह कार्य आसानी से किया जा सकता है। इसके अलावा किसान भाई खरपतवारनाशक का छिड़काव करके भी  प्रभावी नियंत्रण पा सकते हैं। खरपतवारनाशक दवाओं के छिड़काव हेतु हमेशा फ्लैट फेन नोजेल का प्रयोग करें और प्रति एकड़ छिड़काव के लिए 200 लीटर पानी का उपयोग करें। 

उपयोग हेतु कुछ प्रमुख खरपतवारनाशक: 

  •  दोस्त सुपर @ 700 मिली/एकड़ (बुवाई के तीन दिन के अंदर करें छिड़काव)

  • वीड ब्लॉक @ 300 मिली/एकड़ (बुवाई के15-20 दिन बाद)

  • रगा सुपर @ 400 मिली/एकड़ (बुवाई के 15-20 दिन बाद – सकरी पत्ती खरतवार हेतु)

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ग्रीष्म ऋतु में खाली खेतों में जरूर करें ये कृषि कार्य

Do these agricultural work in empty fields in summer
  • किसान भाइयों, रबी फसलों की कटाई के बाद ग्रीष्म ऋतु में खेत खाली रहने की स्थिति में गहरी जुताई, मृदा सौरीकरण, मृदा परीक्षण आदि करना अत्यंत लाभदायक होता है। 

  • गहरी जुताई- अगली फसल से अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए रबी की फसल की कटाई के तुरन्त बाद गहरी जुताई कर ग्रीष्म ऋतु में खेत को खाली रखना लाभदायक रहता है। अप्रैल से जून तक ग्रीष्मकालीन जुताई की जाती है। जहां तक हो सके किसान भाइयों को गर्मी की जुताई रबी की फसल कटने के तुरंत बाद मिट्टी पलटने वाले हल से कर देनी चाहिए। 

  • मृदा सौरीकरण- इसके लिए मृदा की सतह पर, पॉलीथीन की एक चादर बिछा दें। इससे मृदा की गर्मी से परत के नीचे का तापमान बहुत बढ़ जाता है। इससे रोगों के कीटाणु, अनावश्यक बीज, कीट-पतंगों के अंडे आदि, सब नष्ट हो जाते हैं। मृदा सौरीकरण के लिए 15 अप्रैल से 15 मई तक का समय उत्तम रहता है l 

  • मृदा परीक्षण-  फसल कटने के बाद मिट्टी की जांच जरूर कराएं। मिट्टी परीक्षण से मिट्टी का पीएच, विद्युत चालकता, जैविक कार्बन के साथ साथ मुख्य और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का पता लगाया जाता है जिसे समयानुसार सुधारा जा सकता है। 

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सफेद लट्ट के अंडों को गर्मियों के मौसम में ऐसे करें नष्ट

Destroy the eggs of white grub in the summer season like this
  • किसान भाइयों, सफेद ग्रब एक सफेद रंग का कीट होता हैं जो मिट्टी में रहता है।

  • यह सूंडी प्रारंभिक रूप से जड़ों को नुकसान पहुंचाती हैं। 

  • सफेद ग्रब के प्रकोप के लक्षण फसलों पर देखे जा सकते हैं जैसे कि पौधे का एक दम से मुरझा जाना, पौधे की बढ़वार रूक जाना और बाद में पौधे का मर जाना इसके मुख्य लक्षण हैं।

  • इस कीट का नियंत्रण जून-जुलाई के शुरुआती सप्ताह में कर लेना चाहिए।  

  • इसके लिए गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें एवं मेटाराइजियम अनिसोप्लिया [कालीचक्र] 2 किलो + 50-75 किलो गोबर खाद/कम्पोस्ट के साथ मिलाकर प्रति एकड़ की दर से खाली खेत में भुरकाव करें।  

  • यदि फसल की अपरिपक्व अवस्था में भी इस कीट का प्रकोप दिखाई दे रहा हो तो सफेद ग्रब के नियंत्रण के लिए रासायनिक उपचार भी किया जा सकता है। 

  • इसके लिए फेनप्रोपेथ्रिन 10% ईसी [डेनिटोल] @ 500 मिली या क्लोथियानिडिन 50.00% WG @ [डेनटोटसू] @ 100 ग्राम या क्लोरपायरीफोस 20% EC [ट्राइसेल] @ 1 लीटर/एकड़ की दर से मिट्टी में मिला कर उपयोग कर सकते हैं।

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कद्दू वर्गीय फसलों में बढ़ेगा मकड़ी का प्रकोप, जानें नियंत्रण के उपाय

Mites infestation in cucurbitaceous crops
  • किसान भाइयों कद्दू वर्गीय फसलों में मकड़ी प्रमुख रूप से नुकसान पहुंचाती हैं। मकड़ी छोटे एवं लाल रंग के छोटे छोटे कीट होते है जो की कद्दू वर्गीय फसलों के कोमल भागों जैसे पत्तियों, फूलों, कलियों एवं टहनियों पर भारी मात्रा में पाए जाते हैं।

  • जिन पौधों पर मकड़ी का प्रकोप होता है उन पौधों पर जाले दिखाई देते हैं।

  • यह कीट पौधे के कोमल भागों का रस चूसकर उनको कमजोर कर देते हैं एवं अंत में पौधा मर जाता है।

  • रासायनिक नियंत्रण: प्रोपरजाइट 57% ईसी [ओमाईट] @ 200 मिली या स्पाइरोमैसीफेन 22.9% एससी [ओबेरोन] @ 200 मिली या ऐबामेक्टिन 1.8% ईसी [अबासीन] @ 150 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक प्रबधन: जैविक उपचार के रूप में मेट्राजियम @ 1  किलो/एकड़ की दर से उपयोग कर सकते है।

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पॉलीहाउस की फसलों के लिए भी जरूरी है मिट्टी परीक्षण

Soil health management is also necessary for polyhouse crops
  • पॉलीहाउस/ग्रीनहाउस में वर्ष भर फसलों की अच्छी पैदावार के लिए अलग अलग तरह की खादों का प्रयोग निरंतर किया जाता है।

  • इस कारण से 3-4 वर्षों में ही पॉलीहाउस की मिट्टी का स्वास्थ्य खराब होने लगता है l अच्छे बीज, उचित पोषक तत्व तथा सभी सावधानियों के बावजूद फसल की पैदावार तथा गुणवत्ता में भारी कमी आने लगती है। 

  • अतः यह आवश्यक है कि वैज्ञानिक ढंग से खेती करने के लिए किसान मिट्टी के स्वास्थ्य की लगातार जांच कराएं और उसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी रखें। 

  • मिट्टी की जांच के लिए सही तरीके से नमूना लेना बहुत महत्वपूर्ण है। 

  • नमूना पॉलीहाउस/ग्रीनहाउस के अंदर से अलग-अलग स्थानों से लिए जाता है, फिर इसे अच्छी तरह मिलाकर चार भागों में बाँट दिया जाता है। 

  • इस प्रक्रिया को तब तक दोहराते रहते हैं जब तक नमूना आधा किलोग्राम न रह जाए।   

  • इस तरह से प्राप्त किये गये नमूने को जाँच केंद्र में भेज दिया जाता है एवं रिपोर्ट के अनुसार खेत उर्वरक का उपयोग किया जाता है। 

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मूंग में फली छेदक इल्ली के प्रकोप से होगा नुकसान, ऐसे करें नियंत्रण

Measures to control Pod Borer in Moong
  • किसान भाइयों इस समय मूंग की फसल में फली छेदक इल्ली का प्रकोप देखा जा रहा है। यह इल्ली मूंग की फसल को प्रमुख रूप से नुकसान पहुँचाती है। जिससे उत्पादन में भारी नुकसान देखा जाता है। 

  • फली छेदक इल्ली गहरे हरे रंग की होती है जो बाद में गहरे भूरे रंग की हो जाती है। ये कीट फूल आने के समय से फसल कटाई तक फसल को नुकसान पहुंचाते है। यह इल्ली फली में छेद करके अंदर प्रवेश कर दाने को खाकर नुकसान पहुंचाती है। 

  • इसके नियंत्रण के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी [एमानोवा] @ 100 ग्राम या फ्लुबेंडियामाइड 39.35 % एससी [फेम] @ 50 मिली या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5 % एससी [कोस्को] @ 60 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।  

  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना [बवे कर्ब] @ 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से  छिड़काव करें।

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कद्दू वर्गीय फसलों में बोरोन है बेहद महत्वपूर्ण, जानें इसकी कमी के लक्षण

Importance of Boron in Cucurbit crops and symptoms of deficiency

बोरोन का महत्व:  यह पौधे के ऊतकों का स्थिरीकरण करता है, और फसल की ताकत में सुधार करता है। बोरोन कैल्शियम के साथ मिलकर काम करता है और फसल की गुणवत्ता में वृद्धि करने में भी मदद करता है। इसके अलावा बोरोन का फसलों में फूल, फल विकास में भी मुख्य योगदान होता है। यह फूल व फलों को झड़ने से रोकने तथा फलों के आकार व गुणवत्ता को बढ़ाने में मुख्य भूमिका निभाता है।

बोरोन कमी के लक्षण: इसकी कमी के कारण पौधों की नई पत्तियाँ सामान्य से छोटी होती हैं, और मुड़ी हुई हो सकती हैं। पीलापन शिराओं के बीच सीमांत क्षेत्र से केंद्र की ओर बढ़ता है। सबसे छोटी पत्तियों की नोक सूखी हुई होती है, और इसके विकास बिंदु मर जाते हैं, फूल भी नहीं लगते हैं और फल खराब हो जाते हैं। फलों के आकार लेने पर फल के बाहर की त्वचा में लचीलापन जरूरी है, जिससे फल ठीक तरह से विकसित होता है, लेकिन बोरोन की कमी से फल की त्वचा में कठोरता आती है जिससे फल फट जाते हैं। 

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बेल वाली फसलों के लिए लाभकारी होता है छाया घर, जानें इसका महत्व

Importance of shade house for vine crops
  • किसान भाइयों शेडनेट (छाया घर) दरअसल जाल या अन्य बुनी हुई सामग्री से बना हुआ एक ऐसा ढांचा होता है जिसमें खुली जगहों से आवश्यकतानुसार धूप, नमी व वायु का प्रवेश होता रहता है। यह पौधे के विकास में सहायक उचित वातावरण बनाता है।  

  • यह बेल बूटेदार, सब्ज़ियों एवं पौधों की खेती में मदद करता है।

  • शेडनेट में खेती करने से कीटों का प्रकोप कम हो जाता है।

  • शेडनेट आंधी, वर्षा, ओले व पाले जैसे मौसम के प्राकृतिक प्रकोपों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है।

  • गर्मियों के दिनों में पौधों की मृत्यु दर कम करने के लिये भी शेडनेट का उपयोग किया जाता है।

  • टिशू कल्चर के पौधों की मजबूती के लिये भी इसका उपयोग किया जाता है।

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मूंग की उपज को कम कर देते हैं ये रोग

Molybdenum element is essential in the crop of green and black gram
  • किसान भाइयों, मूंग की फसल में विभिन्न प्रकार के रोग लगते हैं जो मूंग की उपज को प्रभावित करते हैं। इनमे से कुछ प्रमुख रोग निम्न हैं 

  • पत्ती धब्बा रोग: इस रोग के लक्षण पौधे के सभी भागों में पाए जाते हैं तथा पत्तियों पर इसका प्रभाव बहुत अधिक देखने को मिलता है l प्रारम्भ में रोग के लक्षण भूरे रंग के नाव के आकार के छोटे धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं, जो कि बड़े होकर पत्तियों के सम्पूर्ण भाग को झुलसा देते हैं तथा ऊतक मर जाते हैं जिससे पौधे का हरा रंग नष्ट हो जाता है।

  • सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग:- इस रोग का संक्रमण पहले पुरानी पत्तियों से प्रारंभ होता है l पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं जिनके किनारे भूरे लाल रंग के होते हैं, बाद में धब्बे अनियमित आकार के हो जाते है। पत्तियां पीली हो जाती हैं और गिर जाती हैं। पुष्पीकरण के समय अत्यधिक प्रकोप पर पत्तियाँ झड़ जाती हैं तथा दाने सिकुड़े हुए एवं बदरंग नजर आते हैं l

  • तना झुलसा रोग: रोग संक्रमण फसल की परिपक्वता के समय दिखाई देता है। इस रोग में भी पत्तियों पर अनियमित आकार के धब्बे दिखाई देते हैं। 

  • अंगमारी/झुलसा रोग: इस रोग में पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। तनों पर बैंगनी-काले रंग एवं फलियों पर लाल या भूरे रंग के अनियमित धब्बे दिखाई देते हैं। रोग की गंभीर अवस्था में तना कमजोर होने लगता है।

उपयुक्त रोगों के लिए उचित प्रबंधन – 

  • रासायनिक प्रबंधन: थायोफिनेट मिथाइल 70% डब्ल्यूपी [मिल्ड्यू विप] @ 300 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% डब्ल्यूपी [कारमानोवा] @ 300 ग्राम या टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% डब्ल्यूजी [स्वाधीन ] @ 500 ग्राम या क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यूपी [जटायु] @ 400 ग्राम /एकड़ की दर से छिडकाव करें। 

  • जैविक प्रबंधन: इन सभी रोगों के जैविक उपचार के लिए ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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खेतों में ड्रोन उपयोग के दौरान रखें इन बातों का खास ध्यान

This company is giving drones for free
  • किसान भाइयों, खेतों में छिड़काव के लिए ड्रोन एक सही विकल्प है। इससे मानव शक्ति की कम आवश्यकता के साथ पानी एवं रसायन में भी बचत होती है। ड्रोन से छिड़काव करते समय निम्न बातों का अवश्य रूप से ध्यान रखें। 

  • ड्रोन से छिड़काव करते समय पीपीई किट अवश्य पहनें। जिससे रसायन नाक एवं आँखों में ना जा पाये। 

  • छिड़काव करते समय धूम्रपान न करें।  

  • कम से कम 5 मिनट के लिए छिड़काव संचालन का परीक्षण करने के लिए शुद्ध पानी (बिना रसायन के) का छिड़काव करें। 

  • पानी में कीटनाशक को पूरी तरह से घोलने के लिए दो चरणों में तनुकरण सुनिश्चित करें। 

  • हवा की गति, आर्द्रता एवं तापमान के लिए मौसम की स्थिति की जाँच करें। ये स्थितियाँ छिड़काव दक्षता को प्रभावित करती है।

  • मधुमक्खी परागण के समय छिड़काव न करें।  

  • प्रभावी छिड़काव के लिए टैंक में पानी की मात्रा के साथ ड्रोन की उचित उड़ान ऊंचाई और गति सुनिश्चित करें। 

  • रसायन के अधिकतम उपयोग के लिए एन्टी ड्रिफ्ट नोजल का प्रयोग अवश्य रूप से करें।

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