कपास में पत्ती सुरंग कीट पहुंचाएगा भारी नुकसान, जानें नियंत्रण के उपाय

Measures to control leaf miner in cotton

कपास की फसल में लगने वाले पत्ती सुरंगक कीट आकार में बहुत ही छोटे होते हैं। इसे अंग्रेजी में लीफ माइनर भी कहा जाता है। ये कीट पत्तियों के अंदर जाकर सुरंग की आकृति बनाते हैं। इससे पत्तियों पर सफेद धारीयां नजर आती हैं जिससे पौधों को प्रकाश संश्लेषण क्रिया करने में बाधा उत्पन्न होती है। इन वजहों से पौधे को सही पोषण नहीं मिल पाता है और फसल को भारी नुकसान पहुँचता है। 

रोकथाम: इसका प्रकोप दिखाई देने पर, नीमगोल्ड नीम तेल 1000 मिली/एकड़ या बवेकर्व (बवेरिया बेसियाना 5% WP) 500 ग्राम/एकड़ की दर 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें। 

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें। 

Share

जल्द ही मध्यप्रदेश में मानसून देगा दस्तक, देखें मौसम पूर्वानुमान

know the weather forecast,

आज मानसून ने काफी दिन के बाद प्रगति की है। महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के कुछ और भागों में मानसून आगे बढ़ा है। पश्चिम बंगाल और बिहार में भी मानसून ने पहुंच बना ली है। अब देश के कई राज्यों में झमाझम बारिश होने की संभावना है। अगले तीन दिन के दौरान बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, पूर्वी उत्तर प्रदेश और पूर्वी मध्य प्रदेश में मानसून आगे बढ़ सकता है। 25 और 26 जून तक पूर्वी गुजरात और दक्षिण पूर्वी राजस्थान में भी मानसून की बारिश शुरू हो जाएगी। दिल्ली में 26 तारीख से बारिश शुरू होगी और उसके बाद कभी भी मानसून दिल्ली में दस्तक दे सकता है।

स्रोत: स्काइमेट वेदर

मौसम संबंधित पूर्वानुमानों की जानकारियों के लिए रोजाना ग्रामोफ़ोन ऐप पर जरूर आएं। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर जरूर करें।

Share

कपास की फसल में न बढ़ने दे खरपतवार, जल्द करें नियंत्रण के उपाय

Measures to control leaf miner in cotton

उच्च गुणवत्ता की फसल प्राप्त करने के लिए, कपास की फसल को खरपतवारों से मुक्त रखना आवश्यक है। खरपतवार के कारण कपास की पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, साथ ही साथ कपास की गुणवत्ता भी खराब होती है।

खरपतवारों की रोकथाम के लिए कपास की फसल में निराई-गुड़ाई समय-समय पर करें। पहली निराई-गुड़ाई बुआई के 15 से 20वें दिन पर तथा दूसरी 50 से 55वें दिन की फसल की अवस्था होने पर करें।

रासायनिक नियंत्रण के लिए, बुवाई के बाद एवं बीज अंकुरित होने से पहले, धानुटॉप (पेंडीमेथालिन 30% EC) 1 लीटर/एकड़ की दर से 200 लीटर में मिलाकर छिड़काव करें। 

बेहतर परिणाम के लिए, खरपतवार नाशक दवा का उपयोग करें और इसके उपयोग के समय इस बात का ध्यान रखें की मिट्टी में नमी जरूर हो।   

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें। 

Share

कपास में बढ़ रही है आद्र गलन की समस्या, जानें निवारण के उपाय

Whitefly infestation and control measures in tomatoes

आद्र गलन रोग कपास की फसल में लगने वाले कुछ घातक रोगों में से एक है। इस रोग के कारण 5 से 20 प्रतिशत तक फसल नष्ट हो जाते हैं। आद्र गलन रोग का प्रभाव 10-15 दिन के पौधों में ज्यादा देखने को मिलता है। इस रोग से पौधों की जड़ें और तना गलने लगते हैं। पौधों के तने पतले होने लगते है और पत्ते मुरझाने लगते हैं। इस रोग की समस्या बढ़ने पर, पत्तियां पीली होकर, सूखने लगती हैं और पौधे जमीन पर गिर जाते हैं। 

आद्र गलन रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • इस रोग से फसल को बचाने के लिए फसल चक्र अपनाएं और आद्र गलन रोग की प्रतिरोधी बीज किस्मों का चयन करें।

  • बुवाई से पूर्व बीजोपचार करना अति आवश्यक है। 

  • जैविक नियंत्रण के लिए, कॉम्बैट (ट्राइकोडर्मा विरडी) 8 ग्राम/किलो बीज  या

  • विटावैक्स पावर  (कार्बोक्सिन 37.5% + थिरम 37.5% WS) 3 ग्राम/किलो बीज से उपचारित करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें। 

Share

फास्फोरस सॉल्युबलाइजिंग बैक्टीरिया से फसलों को मिलते हैं कई लाभ

Crops get many benefits from phosphorus solubilizing bacteria

फसल उत्पादन में जिन 16 आवश्यक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, उनमें प्रमुख रूप से नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश तत्व का महत्व सबसे अधिक होता है। इन तत्वों में से किसी भी एक तत्व की कमी से फसल उत्पादन में गंभीर रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

लगातार उर्वरकों के उपयोग से खेतों की मिट्टी कठोर होती जा रही है, या पहले जैसा उत्पादन लेने में अधिक उर्वरक देना पड़ रहा है, इससे भूमि की गुणवत्ता भी नष्ट हो रही है। फास्फोरस युक्त रासायनिक उर्वरक जैसे सिंगल सुपर फास्फेट, डीएपी आदि की जो भी मात्रा हम फसल उत्पादन के लिए खेतों में डालते हैं, उसका सिर्फ 20 से 25 प्रतिशत भाग ही पौधों को उपलब्ध हो पाता है, शेष फास्फोरस मिट्टी के कणों द्वारा स्थिर कर लिया जाता है। रासायनिक क्रियाओं द्वारा अघुलनशील मिश्रण में परिवर्तित हो जाता है। यह जीवाणु अघुलनशील और अनुपलब्ध फास्फोरस तत्व को घुलनशील तत्व में बदलकर पौधों को उपलब्ध कराने में मदद करते हैं। फास्फोरस घोलक जीवाणु रॉक फास्फेट व ट्राइकैल्सियम फॉस्फेट जैसे अघुलनशील फास्फोरस धारित उर्वरक के कणों को सूक्ष्म आकार में बदलकर घुलनशील बना कर पौधों को पोषक तत्व के रूप में उपलब्ध करा देता है। इसके प्रयोग से लगभग 10 से 12 किलो प्रति एकड़ फास्फोरस युक्त रासायनिक उर्वरक की बचत की जा सकती है।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

फसलों में आधार खाद नहीं डालने से होगा बड़ा नुकसान, पढ़ें पूरी जानकारी

Why is it necessary to apply basic fertilizers in crops

खेतों में उर्वरकों का प्रयोग करने से पहले अगर मिट्टी परीक्षण करवा लिया जाए और इसके परीक्षण रिपोर्ट के आधार पर उर्वरक डाले जाएँ तो इससे हमें पता रहता कि हमें किस मात्रा में खाद का उपयोग करना है। इसलिए किसान अपने खेत का मिट्टी परीक्षण जरूर करवाएं। बहरहाल बहुत सारे किसान बुआई के समय आधार खाद का उपयोग हीं नहीं करते, वे अक्सर ये धारणा रखते हैं कि अभी गर्मी ज्यादा है तो खाद देना उचित नहीं होगा और बारिश होने पर देंगे लेकिन यह सोच गलत है। जड़ों का निर्माण, पौधे की वृद्धि और शाखाओं के निर्माण के लिए प्रारंभिक अवस्था में आधार खाद डालना अतिआवश्यक होता है, अन्यथा उत्पादन में भारी कमी हो जाएगी।

किसान गर्मियों के मौसम में आपने खाली खेत खेत की गहरी जुताई अवश्य करें, ताकि मिट्टी में मौजूद फफूंद और अन्य कीट का नियंत्रण किया जा सके, और साथ ही साथ मिट्टी भूरभूरी हो जाए जिससे इसकी जल धारण क्षमता अधिक हो जाए। उपलब्ध होने पर अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद/कम्पोस्ट को 4 से 5 टन प्रति एकड़ की दर से, अवश्य देना चाहिए।

इसके साथ हीं ग्रामोफ़ोन की “कपास समृद्धि किट” से मिट्टी उपचार करें। इस किट में कई जबरदस्त उत्पाद हैं, जो भूमि प्रबंधन को बेहतर बनाते हैं। इस किट में जिंक सॉल्युबलाइजिंग बैक्टेरिया, समुद्री शैवाल, एमिनो एसिड, ह्यूमिक एसिड, ट्राइकोडर्मा विरिडी और एनपीके बैक्टेरिया का कन्सोर्टिया है, जो फसल को संपूर्ण विकास व पोषण देने के साथ-साथ हानिकारक मिट्टीजनित कवक रोगों से भी सुरक्षा देते हैं।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

कपास में बढ़ेगा हरा तेला, चेपा और सफेद मक्खी का प्रकोप, ऐसे करें रोकथाम

Outbreak and prevention of sucking pests like Aphids Jassids and Whitefly in cotton

इस कीट के शिशु व प्रौढ़ दोनो हीं रूप पत्तियों की निचली सतह पर रहकर पत्तियों का रस चूसते हैं। ये कीट आकार में बहुत छोटे होते हैं, और कपास की पत्तियों की निचली सतह पर समूह में पाए जाते हैं। ये कीट पौधे की पत्तियों से रस चूसते हैं, जिससे पत्तियों का आकार बिगड़ जाता है और पौधा कमजोर हो जाता है। ये कीट पत्तों पर मधुरस भी उत्सर्जित करते हैं, जिससे पौधों की पत्तियों पर एक काली परत बन जाती हैं, जिसके कारण प्रकाश संश्लेषण क्रिया नहीं हो पाती है और इसी वजह से पौधे सूखने लगते हैं। 

रोकथाम: इस कीट के निवारण के लिए, बुवाई से पहले बीज का उपचार जरूर करना चाहिए। फसल में कीट दिखाई दें तो, नीमगोल्ड (नीमआयल 3000 PPM 1 लीटर/एकड़ या बवेकर्ब (बवेरिया बेसियाना 5% WP) 500 ग्राम/एकड़ या पेजर (डायफेंथियुरॉन 50% WP) 240 ग्राम/एकड़ या उलाला (फ्लोनिकैमिड 50% WG) 60 ग्राम/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें। 

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे लाइक और शेयर करना ना भूलें।

Share

कपास की फसल में ट्राई-कोट मैक्स से पाएं तेज ग्रोथ और बंपर उपज

Get fast growth and bumper yield in cotton crop with Tri-Coat Maxx
  • ट्राई-कोट मैक्स उर्वरकों की कार्य क्षमता को बढ़ाता है, जिससे जड़ जमीन में अधिक गहराई तक जाती हैं और जड़ों जड़ का फैलाव फुटाव भी अच्छा होता है।

  • ट्राई-कोट मैक्स फसलों में पोषक तत्वों को एकत्रित करके पौधे की जड़ तक पहुंचने में मदद करता है, जिससे संपूर्ण पोषक तत्व फसल को मिल जाते हैं और पौधे का विकास अच्छा होता है।

  • इससे पौधा शुरूआती अवस्था से ही मजबूत और स्वस्थ्य हो जाता है। यह उत्पाद एक जैविक उत्पाद है, इसलिए इससे मिट्टी की संरचना एवं गुणवत्ता बेहतर होती है।

  • यह वनस्पति विकास और प्रजनन क्षमता बढ़ाने में मदद करता है। ट्राई-कोट मैक्स के उपयोग से मिट्टी में लंबे समय तक नमी रहती है।

  • इसके प्रयोग से फसल हरी और स्वस्थ्य रहती है, जिससे अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

  • ट्राई-कोट मैक्स के उपयोग के बात करें तो कम अवधि वाली फसल में 4 किलो/एकड़ और लंबी अवधि वाली फसल (गन्ना) में 8 किलो/एकड़ की दर से इसका भुरकाव करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

एजोटोबैक्टर क्यों होता है फसलों के लिए बेहद लाभकारी?

What is Azotobacter and what is its importance in crops

एजोटोबैक्टर ऑक्सीजन की उपस्थिति में वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने वाला जैव उर्वरक है। इसके प्रयोग से मिट्टी में 12-15 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति एकड़ स्थिर हो जाती है। एजोटोबैक्टर का उपयोग मिट्टी और बीजाें के उपचार तथा रोपाई के लिए किया जाता है। एजोटोबैक्टर का उपयोग मिट्टी के उपचार के लिए, 750 ग्राम एजोटोबैक्टर को 25 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद में समान रूप से मिलाएं और जुताई से पहले खेत मे डालें। एजोटोबैक्टर के उपयोग से लगभग 4-6 किलोग्राम तक नाइट्रोजन प्रति एकड़ परिवर्तित होकर पौधों को मिल जाती है। इसके इस्तेमाल से फसल का उत्पादन भी लगभग 10-20 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। एजोटोबैक्टर, भूमि में पर्याप्त मात्रा में जैव सक्रिय पदार्थ विटामिन के लिए वृद्धिकारक है। इसके कारण बीज का अंकुरण तथा पौधे की बढ़वार अच्छी होती है। 

एजोटोबैक्टर कल्चर के उपयोग की विधि: एजोटोबैक्टर कल्चर से बीजों को उपचारित करने के लिए आवश्यकतानुसार पानी में 50 ग्राम गुड़ घोलकर उसमें 200 ग्राम कल्चर मिलाएं। इसको एक एकड़ के बीजाें पर छिड़कते हुए हल्के हाथाें से मिला दें, ताकि बीजाें पर कल्चर की एक बारीक परत चढ़ सके, इसके बाद बीजों की बुवाई करें। 

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

सोयाबीन की खेत की तैयारी के समय उचित पोषण जरूर दें

Fertilizer Management in Soybean

किसानों को सोयाबीन की खेती से अच्छा मुनाफ़ा मिलता है। हालांकि कई बार सोयाबीन की खेती के समय कुछ लापरवाहियों के कारण पैदावार में कमी आ जाती है। इन लापरवाहियों में सही उर्वरक प्रबंधन ना करना भी शामिल है। सही समय पर एवं सही मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग नहीं करने से फसल की गुणवत्ता पर भी प्रतिकूल प्रभाव होता है। सोयाबीन की बेहतर फसल प्राप्त करने के लिए उर्वरक प्रबंधन करना अति आवश्यक है।

बेहतर फसल के लिए, खेत की तैयारी करते समय प्रति एकड़ खेत में 4-5 टन अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद का उपयोग करें।

सोयाबीन की अच्छी वृद्धि विकास के लिए, DAP-40 किलो, म्यूरेट ऑफ पोटाश-20 किलो, ग्रोमोर (सल्फर 90%) 5 किलो और ट्राई-कोट मैक्स  4 किलो प्रति एकड़ की दर से आखिरी जुताई या खेत की तैयारी करते समय दें। 

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share