कपास, भारत की प्रमुख नकदी फसल है। इसे सफेद सोना भी कहते हैं। भारत में अनेक कीट-पतंगों और रोगों से कपास की पैदावार काफी कम मिलती है। कपास को अनेक किस्म की सुंडियों (पतंगों) से भी काफी नुकसान होता है। सुंडियों का प्रकोप उस वक़्त ज़्यादा होता है जब कपास के पौधे 50 से 65 दिन के हो जाते हैं। इससे बचाव का एकमात्र उपाय है फेरोमोन ट्रैप, जबकि बाकी रोगों और कीटों के लिए अन्य उपचार मौजूद हैं।
फेरोमोन ट्रैप के इस्तेमाल से सुंडियों की रोकथाम करके कपास के प्रति हेक्टेयर उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।
फेरोमोन ट्रैप क्या है:- फेरोमोन ट्रैप में अलग-अलग प्रजातियों के नर वयस्क कीटों को आकर्षित करने के लिए कृत्रिम रबर का ल्यूर (सेप्टा) लगाया जाता है। इसमें उसी प्रजाति के नर को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए रसायन लगा होता है। आकर्षित नर पतंग ट्रैप में लगी प्लास्टिक की थैली में आने के बाद वहाँ फंसकर मर जाते हैं। फेरोमोन ट्रैप का प्रयोग सुंडियों को ग़ैर-रासायनिक तरीके से खत्म करने का इकलौता तरीका है।
फेरोमोन ट्रैप से जुड़ी सावधानियां:-
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ट्रैप में उपयोग होने वाले ल्यूर (सेप्टा) को 15 दिनों के बाद अवश्य ही बदलें।
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ल्यूर बदलने से पहले और बाद में हाथों को साबुन से अच्छी तरह अवश्य धो लें।
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हर रोज़ सुबह लगाये गये सभी ट्रैप का निरीक्षण करें और फंसे हुए पतंगों का निरीक्षण करने के बाद ही उन्हें नष्ट करें, और सुझाये गये कीटनाशक का छिड़काव करें।
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