मुख्य खेत में रोपाई के पहले जरूर करें प्याज के पौध का उपचार

onion seedlings
  • प्याज की पौध की मुख्य खेत में रोपाई के लिए सबसे पहले स्वस्थ पौध का चयन करें एवं 12 से 14 सेमी लंबी या नर्सरी में बुवाई के 5-6 सप्ताह पुरानी पौध की हीं रोपाई करें।

  • कभी कभी प्याज के पौध.. मिट्टी, जलवायु और सिंचाई के आधार पर 6-7 सप्ताह में भी रोपाई के योग्य हो जाते हैं।

  • बहरहाल रोपाई के पूर्व प्याज की पौध की जड़ों को राइजोकेअर (ट्राइकोडर्मा विरिडी 1.0 % डब्ल्यूपी) @ 2.5 ग्राम या स्प्रिंट (कार्बेन्डाजिम 25%+ मैनकोजेब 50% डब्ल्यूएस) @ 3 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से तैयार घोल में 10 मिनट तक डूबा कर रखें।

  • इससे प्रारंभिक अवस्था में आने वाले रोग जैसे- आद्र गलन, जड़ गलन से फसल को बचाया जा सकता है।

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मिर्च की फसल में चिनोफोरा ब्लाइट रोग की पहचान एवं रोकथाम के उपाय

choanephora blight disease

मिर्च की फसल में इस रोग का कारक चिनोफोरा कुकुर्बिटारम है। इस रोग के कवक आमतौर पर पौधे के ऊपरी हिस्से, फूल ,पत्तियों,नई शाखाओं और फलों को संक्रमित करते हैं। प्रारम्भिक अवस्था में पानी से लथपथ क्षेत्र पत्ती पर विकसित होते हैं। जिस कारण प्रभावित शाखा सूखकर लटक जाती है। अधिक संक्रमण बढ़ने पर फल भूरे से काले रंग के हो जाते हैं, संक्रमित भाग पर कवक की परत देखी जा सकती है। 

जैविक प्रबंधन:- कॉम्बैट (ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम या मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 1 % डब्ल्यूपी) @ 500 ग्राम, प्रति एकड़ के हिसाब से प्रयोग करें।

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मिर्च की फसल में फ्यूजेरियम विल्ट के लक्षण एवं रोकथाम के उपाय

Fusarium wilt disease

मिर्च की फसल में होने वाला फ्यूजेरियम विल्ट रोग एक घातक रोग है। यह बीज एवं मृदा जनित बीमारी है। इस रोग से प्रभावित पौधे अचानक मुरझा कर धीरे-धीरे सूखने लगते हैं। ऐसे पौधे हाथ से खींचने पर आसानी से उखड़ जाते हैं। फ्यूजेरियम विल्ट रोग के कारण रोगी पौधों की जड़ें अंदर से भूरी व काली हो जाती हैं।

रोगी पौधों को चीर कर देखने पर ऊतक काले दिखाई देते हैं। पौधों की पत्तियां मुरझा कर नीचे गिर जाती हैं। हवा और जमीन में ज्यादा नमी व गर्मी होने के कारण एवं सिंचाई से नमी का वातावरण मिलने पर यह रोग बढ़ता है।

जैविक प्रबंधन

  • कॉम्बैट (ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम या मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 1 % डब्ल्यूपी) @ 500 ग्राम, प्रति एकड़ के हिसाब से प्रयोग करें।

2 किलो कॉम्बैट (ट्राइकोडर्मा विरिडी) फॉर्म्युलेशन को 50 किलो गोबर की खाद  के साथ मिलाएं, फिर उसके ऊपर पानी छिड़कें और एक पतली पॉलिथीन शीट से ढक दें 15 दिनों के बाद जब ढेर पर माय सेलिया की वृद्धि दिखाई दे, तो मिश्रण को एक एकड़  क्षेत्र में प्रयोग करें।

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बुआई से पहले जरूर करें गेहूँ के बीजों का उपचार

seed treatment in wheat
  • गेहूँ के बीजों का उपचार करके बुआई करने पर यह पौधों को मिट्टी और बीज जनित रोग जैसे स्मट, बंट रोग से बचाता है।

  • यह उपचार जड़ माहु के आक्रमण से भी बचाव करता है और फसल को स्वस्थ रखता है। 

  • इस प्रक्रिया को करने से बीज ख़राब नहीं होते हैं, जिससे अधिक बीज का अंकुरण होता है और स्वस्थ पौधों का विकास होता है। 

  • बीज उपचार करने से कृषि लागत कम आती है एवं उत्पादन में वृद्धि होती है। 

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भिंडी के लिए खेत की तैयारी एवं पोषक तत्व प्रबंधन

Nutrient management for okra

पौधो की अच्छी अंकुरण एवं जड़ विकास के लिए, मिट्टी का भुरभुरा होना आवश्यक है। पिछली फसल की कटाई के बाद एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें एवं इसके बाद गोबर की खाद 4 टन + स्पीड कम्पोस्ट 4 किग्रा प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में समान रूप से भुरकाव करें तथा 2-3 जुताई हैरो की सहायता से करें। अगर मिट्टी में नमी कम हो तो पहले पलेवा करें फिर खेत की तैयारी करें और आखिरी में पाटा चलाकर खेत समतल बना लें। 

पोषक तत्व प्रबंधन 

फसल बुवाई के समय या बुवाई के 25 दिन के अंदर, डीएपी 75 किलोग्राम + एमओपी 30 किलोग्राम + ट्राई कोट मैक्स (जैविक कार्बन 3%, ह्यूमिक, फुल्विक, जैविक पोषक तत्वों का एक मिश्रण) @ 4 किलोग्राम + टीबी 3 (नाइट्रोजन स्थिरीकरण बैक्टीरिया, फास्फेट घुलनशील बैक्टीरिया, और पोटेशियम गतिशील बैक्टीरिया) @ 3 किलोग्राम + ताबा जी (जिंक घुलनशील बैक्टीरिया) @ 4 किलोग्राम + नीम केक 50 किलोग्राम + एग्रोमीन ((जिंक, आयरन, मैग्नीज, कॉपर, बोरॉन और मोलिब्डेनम) @ 5 किलोग्राम + मैग्नीशियम सल्फेट @ 5 किलोग्राम इन सभी को आपस में मिलाकर एक एकड़ के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें।

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चने की फसल में उकठा रोग की पहचान व बचाव के उपाय

Fusarium wilt in gram crops

रोग की पहचान:- चने की फसल में यह फफूंद जनित रोग सबसे विनाशकारी साबित होता है। यह रोग किसी भी अवस्था में फसल को प्रभावित कर सकता है। इस रोग के चलते पत्तियां नीचे से ऊपर की ओर पीली और भूरी पड़ जाती हैं। अंत में पौधा मुरझाकर सूख जाता है।

तने को चीर कर देखने से आंतरिक उत्तक भूरे रंग का दिखाई देता है, जिस कारण से पोषक तत्व एवं पानी पौधों के सभी भाग तक नहीं पहुँच पाता है और पौधे मरने लगते हैं। पौधों को उखाड़ कर देखने पर कॉलर एवं जड़ क्षेत्र गहरा भूरा या काला रंग का दिखाई देता है। 

रोकथाम के उपाय:- इस रोग से बचने के लिए बुवाई के समय कॉम्बैट (ट्राइकोडर्मा विरिडी 1.0% डब्ल्यू.पी.) @ 10 ग्राम प्रति किग्रा बीज के हिसाब से उपचारित करके बोना चाहिए एवं अभी इसकी रोकथाम के लिए कॉम्बैट (ट्राइकोडर्मा विरिडी 1.0% डब्ल्यू.पी.) @ 1 किग्रा प्रति एकड़ के हिसाब से मिट्टी में समान रूप से भुरकाव कर हल्की सिंचाई करें।

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मिर्च की फसल में कॉलर रॉट की समस्या एवं रोकथाम के उपाय

Problem and prevention of collar rot in chilli crops

इस रोग का प्रकोप अधिक बारिश होने के बाद तेज धूप होने पर होता है। फंगस सबसे पहले तना एवं जड़ के बीच कॉलर को ग्रसित करता है, जिस कारण मिट्टी के आस पास कॉलर पर एक सफेद फफूंद एवं काले फफूंद दिखने लगते हैं। इसके अलावा तने के ऊतक हल्के भूरे और नरम हो जाता है और धीरे-धीरे मुरझाने लगता है। प्रकोप की अनुकूल परिस्थिति में यह रोग अन्य भाग को भी प्रभावित कर सकता है। अंत में रोग से फसल मुरझाकर मर जाती है। 

रोकथाम के उपाय 

इस रोग के रोकथाम के लिए, मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 1.0% डब्ल्यूपी) @ 500 ग्राम +  कॉम्बैट (ट्राईकोडरमा विरिडी 1.0% डब्ल्यूपी) @ 500 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से, जड़ क्षेत्र में ड्रेंचिंग करें।

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बीज उपचार क्यों है जरूरी, जानें इससे मिलने वाले लाभ

Why seed treatment is necessary
  • अच्छी खेती के लिए बीजों की बुआई से पहले बीज उपचार करना बहुत ही आवश्यक होता है। इससे बीज और मिट्टी जनित रोगों की रोकथाम होती है।  

  • देश में फसलों के 70 से 80% किसान बीज नहीं बदलते हैं और पुराने बीजों का ही इस्तेमाल करते हैं। 

  • इस कारण बीजों में कीटों और रोगों के प्रकोप का खतरा ज्यादा रहता है, फलस्वरूप खेती की लागत बढ़ जाती है।

  • सिर्फ बीजों का उपचार कर लेने से ही 6-10% तक उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। 

  • बीजोपचार से अंकुरण अच्छा होने के साथ ही पौधों की वृद्धि भी बढ़िया होती है।

  • बीजोपचार से कीटनाशको का प्रभाव भी बढ़ जाता है तथा फसल 20 से 25 दिन के लिए सुरक्षित हो जाती है।

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लहसुन की खेती के लिए ऐसे करें खेत की तैयारी

Field preparation for garlic cultivation

लहसुन की खेती के लिए, उचित जल निकास वाली दोमट भूमि अच्छी होती है, क्योंकि भारी भूमि में इसके कंदों का विकास नहीं हो पाता है। खेत की एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें एवं इसके बाद, गोबर की खाद 5 टन + स्पीड कम्पोस्ट 4 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में समान रूप से भुरकाव करें तथा 2-3 जुताई हैरो की सहायता से करें। खेत में मौजूद अन्य अवांछित फसल अवशेषों को हटा दें, अगर मिट्टी में नमी कम हो तो पहले पलेवा करें फिर खेत की तैयारी करें और आखिर में पाटा चला कर खेत समतल बना लें। 

पोषक तत्व प्रबंधन:- फसल बुवाई के समय एसएसपी 50 किलोग्राम + डीएपी 30 किलोग्राम + यूरिया 20 किलोग्राम + पोटाश 40 किलोग्राम + राइजोकेयर (ट्राइकोडर्मा विराइड1.0 % डब्ल्यूपी) @ 500 ग्राम +  टीबी 3 (नाइट्रोजन स्थिरीकरण, फास्फेट घुलनशील, और पोटेशियम गतिशील जैव उर्वरक संघ) @ 3 किलोग्राम +  ताबा जी (जिंक घोलक बैक्टीरिया) @ 4 किलोग्राम +  मैक्सरूट (ह्यूमिक एसिड + पोटेशियम + फुलविक एसिड) @ 500 ग्राम + ट्राई-कोट मैक्स (जैविक कार्बन 3%, हुमिक, फुलविक, जैविक पोषक तत्वों का एक मिश्रण) @ 4 किलोग्राम + बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना) @ 500 ग्राम को आपस में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में समान रूप से भुरकाव करें।

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जानें प्राकृतिक खेती के महत्वपूर्ण सिद्धांत

Natural farming

प्राकृतिक खेती क्या है? – प्राकृतिक खेती (natural farming) देसी गाय पर आधारित प्राचीन खेती पद्धति है। जिसमें रासायनिक उर्वरकों और रसायनों के दूसरे उत्पाद का विकल्प के रूप में देसी गाय का गोमूत्र और गोबर  का उपयोग फसल उत्पादन में किया जाता है। यह भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है। प्राकृतिक खेती में रासायनिक कीटनाशक का उपयोग नहीं किया जाता है। इस प्रकार की खेती में जो तत्व प्रकृति में पाए जाते है, उन्हीं को कीटनाशक के रूप में काम में लिया जाता है।

प्राकृतिक खेती में खाद के रूप में गोबर, गौ मूत्र, जीवाणु खाद, फ़सल अवशेष द्वारा पौधों को पोषक तत्व दिए जाते हैं। प्राकृतिक खेती में प्रकृति में उपलब्ध जीवाणुओं, मित्र कीट और जैविक कीटनाशक द्वारा फ़सल को हानिकारक सूक्ष्म जीव और कीट से बचाया जाता है।

आइये  जानते है प्राकृतिक खेती के चार सिद्धांत  

👉🏻खेतों में कोई जुताई नहीं करना, यानी न तो उनमें जुताई करना, और न ही मिट्टी को  पलटना है । धरती अपनी जुताई स्वयं स्वाभाविक रूप से पौधों की जड़ों के प्रवेश तथा केंचुओं व छोटे प्राणियों, तथा सूक्ष्म जीवाणुओं के जरिए कर लेती है।

👉🏻किसी भी तरह की तैयार खाद या रासायनिक उर्वरकों का उपयोग न किया जाए। इस पद्धति में हरी खाद और गोबर की खाद को ही उपयोग में लाया जाता है।

👉🏻निराई-गुड़ाई न की जाए। न तो हल से, न शाकनाशियों के प्रयोग द्वारा। खरपतवार मिट्टी को उर्वर  बनाने तथा जैव-बिरादरी में संतुलन स्थापित करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। बुनियादी सिद्धांत यही है कि खरपतवार को पूरी तरह समाप्त करने की बजाए नियंत्रित किया जाना चाहिए।

👉🏻रसायनों पर बिल्कुल निर्भर न करना है। जोतने तथा उर्वरकों के उपयोग जैसी गलत प्रथाओं के कारण जब से कमजोर पौधे उगना शुरू हुए, तब से ही खेतों में बीमारियां लगने तथा कीट-असंतुलन की समस्याएं खड़ी होनी शुरू हुई। छेड़छाड़ न करने से प्रकृति-संतुलन बिल्कुल सही रहता है।

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