पछेती खरीफ प्याज की बढ़वार के लिए पोषक तत्व प्रबंधन

Nutritional management for the growth of late Kharif onions

इस समय पछेती खरीफ प्याज रोपाई के 20 से 25 दिन की हो रही है, इस अवस्था में पौध विकास के लिए, यूरिया 30 किलोग्राम + कोसावेट (सल्फर 90% डब्ल्यू जी) @ 10 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करने के बाद हल्की सिंचाई करें। साथ ही नोवामैक्स 30 मिली + 19:19:19 @ 70 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। 

यूरियाइसके उपयोग से, पत्तियों में पीलापन एवं सूखने की समस्या नहीं होती है। साथ ही ये नाइट्रोज़न प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को तेज़ करता है।

कोसावेट मिट्टी में लवणीय और क्षारीय पीएच को कम करने में मदद करता है। इसके साथ ही एन, पी, के जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों के अवशोषण में सुधार करने में मदद करता है। 

नोवामैक्स नोवामैक्स पौध वृद्धि में सहायता के साथ ही प्रकाश संश्लेषण एवं पौधों के चयापचय क्रिया में सुधार लाता है। इसके साथ ही ये पौध को तनाव मुक्त रखता है। 

19:19:19 इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाशियम तत्व पाए जाते हैं, जो फसल की वानस्पतिक वृद्धि को बढ़ाता है, साथ ही फसल को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है।

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बीज उपचार क्यों है जरूरी, जानें इससे मिलने वाले लाभ

Why seed treatment is necessary
  • अच्छी खेती के लिए बीजों की बुआई से पहले बीज उपचार करना बहुत ही आवश्यक होता है। इससे बीज और मिट्टी जनित रोगों की रोकथाम होती है।  

  • देश में फसलों के 70 से 80% किसान बीज नहीं बदलते हैं और पुराने बीजों का ही इस्तेमाल करते हैं। 

  • इस कारण बीजों में कीटों और रोगों के प्रकोप का खतरा ज्यादा रहता है, फलस्वरूप खेती की लागत बढ़ जाती है।

  • सिर्फ बीजों का उपचार कर लेने से ही 6-10% तक उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। 

  • बीजोपचार से अंकुरण अच्छा होने के साथ ही पौधों की वृद्धि भी बढ़िया होती है।

  • बीजोपचार से कीटनाशको का प्रभाव भी बढ़ जाता है तथा फसल 20 से 25 दिन के लिए सुरक्षित हो जाती है।

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लहसुन की खेती के लिए ऐसे करें खेत की तैयारी

Field preparation for garlic cultivation

लहसुन की खेती के लिए, उचित जल निकास वाली दोमट भूमि अच्छी होती है, क्योंकि भारी भूमि में इसके कंदों का विकास नहीं हो पाता है। खेत की एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें एवं इसके बाद, गोबर की खाद 5 टन + स्पीड कम्पोस्ट 4 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में समान रूप से भुरकाव करें तथा 2-3 जुताई हैरो की सहायता से करें। खेत में मौजूद अन्य अवांछित फसल अवशेषों को हटा दें, अगर मिट्टी में नमी कम हो तो पहले पलेवा करें फिर खेत की तैयारी करें और आखिर में पाटा चला कर खेत समतल बना लें। 

पोषक तत्व प्रबंधन:- फसल बुवाई के समय एसएसपी 50 किलोग्राम + डीएपी 30 किलोग्राम + यूरिया 20 किलोग्राम + पोटाश 40 किलोग्राम + राइजोकेयर (ट्राइकोडर्मा विराइड1.0 % डब्ल्यूपी) @ 500 ग्राम +  टीबी 3 (नाइट्रोजन स्थिरीकरण, फास्फेट घुलनशील, और पोटेशियम गतिशील जैव उर्वरक संघ) @ 3 किलोग्राम +  ताबा जी (जिंक घोलक बैक्टीरिया) @ 4 किलोग्राम +  मैक्सरूट (ह्यूमिक एसिड + पोटेशियम + फुलविक एसिड) @ 500 ग्राम + ट्राई-कोट मैक्स (जैविक कार्बन 3%, हुमिक, फुलविक, जैविक पोषक तत्वों का एक मिश्रण) @ 4 किलोग्राम + बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना) @ 500 ग्राम को आपस में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में समान रूप से भुरकाव करें।

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जानें प्राकृतिक खेती के महत्वपूर्ण सिद्धांत

Natural farming

प्राकृतिक खेती क्या है? – प्राकृतिक खेती (natural farming) देसी गाय पर आधारित प्राचीन खेती पद्धति है। जिसमें रासायनिक उर्वरकों और रसायनों के दूसरे उत्पाद का विकल्प के रूप में देसी गाय का गोमूत्र और गोबर  का उपयोग फसल उत्पादन में किया जाता है। यह भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है। प्राकृतिक खेती में रासायनिक कीटनाशक का उपयोग नहीं किया जाता है। इस प्रकार की खेती में जो तत्व प्रकृति में पाए जाते है, उन्हीं को कीटनाशक के रूप में काम में लिया जाता है।

प्राकृतिक खेती में खाद के रूप में गोबर, गौ मूत्र, जीवाणु खाद, फ़सल अवशेष द्वारा पौधों को पोषक तत्व दिए जाते हैं। प्राकृतिक खेती में प्रकृति में उपलब्ध जीवाणुओं, मित्र कीट और जैविक कीटनाशक द्वारा फ़सल को हानिकारक सूक्ष्म जीव और कीट से बचाया जाता है।

आइये  जानते है प्राकृतिक खेती के चार सिद्धांत  

👉🏻खेतों में कोई जुताई नहीं करना, यानी न तो उनमें जुताई करना, और न ही मिट्टी को  पलटना है । धरती अपनी जुताई स्वयं स्वाभाविक रूप से पौधों की जड़ों के प्रवेश तथा केंचुओं व छोटे प्राणियों, तथा सूक्ष्म जीवाणुओं के जरिए कर लेती है।

👉🏻किसी भी तरह की तैयार खाद या रासायनिक उर्वरकों का उपयोग न किया जाए। इस पद्धति में हरी खाद और गोबर की खाद को ही उपयोग में लाया जाता है।

👉🏻निराई-गुड़ाई न की जाए। न तो हल से, न शाकनाशियों के प्रयोग द्वारा। खरपतवार मिट्टी को उर्वर  बनाने तथा जैव-बिरादरी में संतुलन स्थापित करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। बुनियादी सिद्धांत यही है कि खरपतवार को पूरी तरह समाप्त करने की बजाए नियंत्रित किया जाना चाहिए।

👉🏻रसायनों पर बिल्कुल निर्भर न करना है। जोतने तथा उर्वरकों के उपयोग जैसी गलत प्रथाओं के कारण जब से कमजोर पौधे उगना शुरू हुए, तब से ही खेतों में बीमारियां लगने तथा कीट-असंतुलन की समस्याएं खड़ी होनी शुरू हुई। छेड़छाड़ न करने से प्रकृति-संतुलन बिल्कुल सही रहता है।

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टमाटर की फसल में सेप्टोरिया पत्ती धब्बा की समस्या एवं नियंत्रण के उपाय

Problem and control of Septoria leaf spot in tomato crop

सेप्टोरिया पत्ती धब्बा रोग का विकास 25 डिग्री सेल्सियस तापमान पर अधिक होता है। यह रोग फसल विकास के किसी भी अवस्था में हो सकता है, हालांकि आमतौर पर इसके लक्षण पहले पुरानी पत्तियों और तनों पर दिखाई देते हैं। जब पौधे में फल आने शुरू होते हैं, उस दौरान फल के डंठल, तनों और पुष्पकोष पर भी संक्रमण दिखाई देता है। इससे पत्तियों पर छोटे गोल जालीय धब्बे बन जाते हैं, साथ ही इनके किनारे पर गहरे भूरे रंग दिखते हैं।

निवारण के उपाय:-

👉🏻जैविक नियंत्रण के लिए, मोनास-कर्ब @ 500 ग्राम + कॉम्बैट @ 500 ग्राम  +  सिलिकोमैक्स @ 50 मिली प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

👉🏻रासायनिक नियंत्रण के लिए, मेरिवॉन @ 80-100 मिली +  सिलिकोमैक्स @ 50 मिली प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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धान की फसल में गॉल मिज कीट के क्षति के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control measures of Gall midge in paddy crop

प्रिय किसान, धान के फसल उत्पादन में इस कीट से 25 से 30% या उससे ज्यादा की गिरावट देखी गई है। इस कीट की इल्ली (मैगट) नये कल्ले के शीर्ष बिंदु को खाकर अंदर प्रवेश करते हैं एवं कल्ले के आधार पर एक गठान बन जाती है, जो बाद में गोल पाइप का रूप धारण कर लेती है। जिससे “प्याज के पत्ते” या “सिल्वर-शूट” के समान पोंगा का निर्माण होता है। प्रभावित कल्ले में धान की बाली नहीं आती है।  

नियंत्रण के उपाय 

इस कीट के नियंत्रण के लिए, थियानोवा 25 @ 40 ग्राम + सिलिकोमैक्स @ 50 मिली प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। या फुरी (कार्बोफ्यूरान 3% सीजी) @ 10 किग्रा प्रति एकड़ के हिसाब से जमीन में भुरकाव करें। 

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मक्के की फसल में लीफ ब्लाइट की समस्या एवं रोकथाम के उपाय

Leaf blight problem and prevention measures in maize crop

लीफ ब्लाइट मक्का की फसल में होने वाला एक प्रमुख रोग है। इस रोग के लक्षण पत्तियों पर दिखते हैं।  इस रोग के कारण पत्तियों की शिराओं के बीच में पीले भूरे अण्डाकार धब्बे बनते हैं, जो बाद में लंबे होकर चौकोर हो जाते हैं। इससे पत्तियां जली व झुलसी हुई दिखती हैं। 

रोकथाम के उपाय: जैविक प्रबंधन हेतु कॉम्बैट (ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम या मोनास-कर्ब  @ 500 ग्राम, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। 

इसकी रोकथाम के लिए, एम 45 (मैंकोजेब 75% डब्ल्यूपी) @ 700 ग्राम या करमानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोजेब 63% डब्ल्यूपी) @ 400 ग्राम या गोडीवा सुपर (एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% + डाइफेनोकोनाज़ोल 11.4% एससी) @ 200 मिली + सिलिकोमैक्स @ 50 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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सोयाबीन की फसल में अत्यधिक जल भराव से जड़ गलन की समस्या एवं बचाव के उपाय

Root rot problem and preventive measures due to excessive water logging in soybean crops

जलभराव की स्थिति में पानी आवश्यकता से अधिक मात्रा में खेत में मौजूद होता है। खेत में अतिरिक्त जल से निम्न हानि होती है-

सोयाबीन की फसल में अत्यधिक जल भराव के कारण, वायु संचार में बाधा एवं मृदा तापक्रम में गिरावट आती है, साथ ही लाभदायक जीवाणुओं की सक्रियता कम हो जाती है, एवं नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्रिया सही से नहीं हो पाती है। इस कारण पौधो की जड़ों को पूरी मात्रा में हवा, पानी, पोषक तत्व एवं खाली स्थान नहीं मिल पाता है। अधिक जल भराव के कारण हानिकारक लवण एकत्रित होते है, जिससे जड़ सड़न की समस्या देखने को मिलती है l

खेत में जलभराव को कम करने के लिए जल निकास जरूरी है। ये ऐसी फसल है जो न तो सूखा सहन कर सकती है और न ही अधिक पानी सहन कर सकती है। इसलिए जल निकासी के लिए बुवाई के समय ही नालियां तैयार कर लेना चाहिए व खेत में जलभराव होने की स्थिति में खेत से अतिरिक्त जल निकास नालियां बनाकर जल को खेत से बाहर निकाल दें।

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कपास की फसल में माहू कीट की पहचान एवं नियंत्रण के उपाय

Identification and control measures of aphids in cotton crops

माहू:- ये छोटे आकार के कीट होते हैं। इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ हरे – पीले रंग के होते हैं, जो पत्तियों की निचली सतह पर असंख्य संख्या में पाए जाते हैं, जो पत्तियों का रस चूसते हैं। इसके फलस्वरूप पत्तियाँ सिकुड़ जाती हैं और पत्तियों का रंग पीला हो जाता है। प्रकोप बढ़ने पर पत्तियाँ ऐंठी हुई मतलब कड़क हो जाती हैं और कुछ समय बाद सूखकर गिर जाती हैं। इस कारण पौधे का विकास ठीक से नहीं पाता है एवं पौधा रोग ग्रस्त दिखाई देता है।  

नियंत्रण के उपाय:- 

  • इस कीट के नियंत्रण के लिए, मार्शल (कार्बोसल्फान 25% ईसी) @ 500 मिली या नोवासेटा (एसिटामिप्रीड 20 % एससी) @ 20 ग्राम या केआरआई-मार्च (बुप्रोफेज़िन 25% एससी) @ 400 मिली + सिलिकोमैक्स @ 50 मिली, प्रति एकड़ 150 -200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें

  • जैविक नियंत्रण के लिए, ब्रिगेड बी (बवेरिया बेसियाना 1.15% डब्ल्यूबी) @ 1 किग्रा/एकड़ 150 -200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

  • इसके अलावा किसान भाई कीट प्रकोप की सूचना के लिए, पीले चिपचिपे ट्रैप (येलो स्टिकी ट्रैप ) @ 8 -10, प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में स्थापित करें। 

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मक्के में बैक्टीरियल डंठल सड़न की समस्या एवं रोकथाम के उपाय

The problem and prevention of bacterial stalk rot in maize crops

किसान भाइयों, यह रोग अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में ज्यादा देखने की मिलती है। इस रोग का प्रकोप होने पर पौधों के शीर्ष भाग की मध्य वाली पत्तियां कुम्हलाकर सूखना प्रारंभ कर देती हैं। इसी दौरान डंठल में सड़न (सॉफ्ट रॉट) की समस्या होने लगती है। ये तेजी से तने के निचले भागों में फ़ैलने लगती है और इससे दुर्गन्ध भी आना शुरू हो जाती है।

इस रोग के असर से तना कमजोर हो जाता है पौधे का शीर्ष भाग नीचे की तरफ लटक जाता है। इस तरह के शीर्ष भाग की पत्तियों के समूह को खींचकर तने से आसानी से अलग किया जा सकता है।

नियंत्रण के उपाय 

जैविक नियंत्रण के लिए, मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस) @ 500 ग्राम प्रति एकड़ 150-200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। 

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