Identification of root aphid in Wheat Crop

  • गेहूँ में माहु का प्रकोप नवंबर- फरवरी माह में देखने को अधिक मिलता है|
  • वर्षा आधारित एवं देर से बुवाई की हुई फसल में यह कीड़ा अधिक नुकसान करता है|
  • छोटे-छोटे पीले रंग के मच्छर गेहूँ के तने के आसपास दिखाई देते है|
  • यह पौधों से रस चूसता है जिस कारण पौधा पीला पड़ने लगता है|
  • यह कीड़ा वायरस रोग फ़ैलाने में भी मदद करता है|
  • खड़ी फसल में इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL 60-70 या थायमेथॉक्ज़ाम 25% WG @ 100 ग्राम के साथ बिवेरिया बेसियाना 2 किलो प्रति एकड़ की दर से  खाद/रेत/मिट्टी में मिला कर जमीन से दे और सिंचाई करें |

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Major Diseases and Their Control Measures of Wheat

गेंहू की प्रमुख बीमारियों में कण्डुआ (रस्ट) रोग प्रमुख है| कंडुआ रोग 3 प्रकार का होता है | पीला कंडुआ, भूरा कंडुआ और काला कंडुआ |

 

  • पीला कंडुआ:- यह रोग पकसीनिया स्ट्रीफोर्मियस नामक फफूंद से होता है | यह फफूंद नारंगी-पीले रंग के बीजाणु के द्वारा ग्रसित खेत से स्वस्थ खेत को प्रभावित करता है यह पत्तों की नसों की लंबाई के साथ पट्टियों में विकसित होकर छोटे-छोटे, बारीक़ धब्बे विकसित कर देता है| धीरे-धीरे यह पत्तियों की दोनों सतह पर फ़ैल जाता है| |
  • अनुकूल परिस्थितियां:- यह रोग अधिक ठण्ड और आद्र जलवायु लगभग 10-15° से.ग्रे. तापमान पर फैलता है| इस पर बने हुए पॉवडरी धब्बे 10-14 दिनों में फूट जाते है और विभिन्न माध्यमों जैसे- हवा, बरसात और सिंचाई के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पहुँचते है | इससे लगभग गेंहू की फसल में  25% हानि होती है|
  • भूरा कण्डुआ:- यह रोग पकसीनिया ट्रीटीसीनिया नामक फफूंद से होता है | यह फफूंद पत्तियों के ऊपरी सतह से शुरू होकर तनों पर लाल-नारंगी रंग के धब्बे बनता है | यह धब्बे 1.5 एम.एम.के अंडाकार आकृति के होते है|
  • अनुकूल परिस्थितियां:- यह रोग 15 -20°से.ग्रे. तापमान पर फैलता है| इसके बीजाणु विभिन्न माध्यमों जैसे- हवा,बरसात और सिंचाई के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान  पहुँचते है | इसके लक्षण 10-14 दिनों में दिखने लग जाते है|
  • काला कण्डुआ:- यह रोग पकसीनिया ग्रेमिनिस नामक फफूंद से होता है | यह रोग बाजरे की फसल पर भी क्षति पहुँचाता है| यह फफूंद पौधों की पत्तियों और तनों पर लम्बे,अण्डाकार आकृति में लाल-भूरे रंग के धब्बे बनाता है| कुछ दिनों बाद यह धब्बे फट जाते है और इनमे से पाउडरी तत्त्व निकलता है जो की विभिन्न माध्यमों जैसे- सिंचाई, बरसात और हवा के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पहुँचता है और अन्य फसलों को क्षति पहुँचाता है |
  • अनुकूल परिस्थितियां:- काला कण्डुआ अन्य कण्डुआ की तुलना में अधिक तापमान 18 -30°से.ग्रे.पर फैलता है| बीजों को नमी (ओस, बारिश या सिंचाई) की आवश्यकता होती है और फसल को संक्रमित करने के लिए छह घंटे तक लगते हैं और संक्रमण के 10-20 दिनों के बाद धब्बे देखे जा सकते है|

नियंत्रण:-

  • कंडुआ रोग के नियंत्रण के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिए|
  • रोग प्रति-रोधी किस्मों की  बुवाई करें |
  • बीज या उर्वरक उपचार बुवाई के चार सप्ताह तक कण्डुआ को नियंत्रित कर सकता है और उसके बाद इसे दबा सकता है।
  • एक ही सक्रिय घटक वाले कवकनाशी  का बार-बार उपयोग नहीं करें।
  • कासुगामीसिन 5%+कॉपर ऑक्सीक्लोरिड 45% डब्लू.पी. 320 ग्राम/एकड़ या प्रोपिकोनाज़ोल 25% ई.सी.240 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें|

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Soil Preparation and Sowing Time for Wheat

  • ग्रीष्मकालीन जुताई करें |

  • तीन वर्षों में एक बार गहरी जुताई करें |

  • 2 -3 बार कल्टीवेटर कर खेत को समतल करें |

  • बुवाई का उचित समय

  • असिंचित:- मध्य अक्टूबर से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक|

  • अर्धसिंचित:- नवम्बर माह का प्रथम पखवाड़ा|

  • सिंचित (समय से):- नवम्बर माह का द्वितीय पखवाड़ा|

  • सिंचित (देरी से):- दिसंबर माह का द्वितीय सप्ताह से|

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Management of Termites in Wheat

गेहूँ  में दीमक (उददी ) का प्रबंधन:-

  • बुवाई के बाद और कभी-कभी परिपक्वता की अवस्था पर दीमक द्वारा फसल को नुकसान पहुँचाया जाता है|  
  • दीमक प्रायः फसल की जड़ों, बढ़ते पौधों के तनों, पौधे के मृत ऊतकों को नुकसान पहुँचाती है|
  • क्षतिग्रस्त पौधे पूरी तरह से सूख जाते हैं और आसानी से जमीन से उखाड़े जा सकते है|
  • जिन क्षेत्रों में अच्छी तरह सड़ी हुई खाद का प्रयोग नहीं किया जाता उन क्षेत्रो में दीमक का प्रकोप अधिक होता है|

प्रबंधन

  • बुवाई के पहले खेत में गहरी जुताई करें|
  • खेत में अच्छी सड़ी हुई खाद का ही उपयोग करे|
  • दीमक के टीले को केरोसिन से भर दे ताकि दीमक की रानी के साथ-साथ अन्य सभी कीट मर जाएँ|
  • बुवाई से पहले क्लोरोपायरीफोस (20% ई.सी ) @ 5 मिली/ किलो बीज से बीजोपचार करें ।  
  • क्लोरोपायरीफोस (20% ई.सी) @ 1 लीटर/ एकड़ को किसी भी उर्वरक के साथ मिलाकर जमीन से दें और सिंचाई कर दे|

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Nutrient Management in Wheat

गेहूं मे पौषक तत्व प्रबंधन:- गेंहू की उपज में पौषक तत्त्व प्रबंधन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है मृदा मे उपलब्ध पौषक तत्त्व की जानकारी हेतु मिट्टी की जाँच बहुत आवश्यक है| इसी के आधार पर फसलो में पौषक तत्त्व प्रबंधन किया जाता हैं | सामन्यतः गेहू के लिए अनुसंशित मात्रा इस प्रकार हैं 

  • अच्छे से सडी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट को 6 -8  टन/एकड़ के हिसाब से हर 2 साल में मिट्टी में मिलाना चाहिये|
  • गोबर की खाद डालने से भूमि की संरचना में सुधार और पैदावार में बढ़ोतरी होती है।
  • गेंहू में 88  कि.ग्रा. यूरिया, 160 कि.ग्रा ,सिंगल सुपर फॉस्फेट एवं 40 कि.ग्रा. म्युरेट ऑफ़ पोटाश प्रति एकड़ के हिसाब से उपयोग करना चाहिये|
  • युरिया का उपयोग तीन भागों में करना चाहिए|
    1.) 44  कि.ग्रा. यूरिया की मात्रा बोनी के समय करें।
    2.) शेष 22 कि.ग्रा. पहली सिंचाई के समय डाले।
    3.) शेष 22 कि.ग्रा., दुसरी सिंचाई के समय डाले।
  • आशिंक सिंचाई उपलब्ध हो एवं अधिकतम दो सिंचाई होने पर यूरिया @ 175 , सुपर सिंगल फॉस्फेट@ 250 और म्युरेट ऑफ़ पोटाश @ 35-40 कि.ग्रा प्रति हेक्टेयर डाले।
    असिंचित अवस्था में नाइट्रोजन फास्फोरस एवं पोटॉश की पूरी मात्रा डालें|
  • यदि गेंहू की बुवाई मध्य दिसम्बर में करते है तो नत्रजन की 25 प्रतिशत मात्रा कम डालना चाहिये|

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Storage technique in wheat

  • 10 % नमी बीज के भण्डारण के लिए उचित रहती है इसके लिए बीजो को धुप में सुखना चाहिए|
  • अनाज को साफ करने के बाद अनाज को  बोरो में भर कर भंडारण करें।
  • मिश्रण से बचने के लिए हमेशा नए बैग में बीज रखें।
  • बीज के लिए उपयोग होने वाले अनाज का उच्च गुणवत्ता वाला होना आवश्यक है ।
  • गर्मियों में भंडार गृह का तापमान ठंडा रखें।  
  • समय समय पर अनाज की जांच करें।

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Post-harvest management in wheat

  • जब गेहूँ की बाली पीली होकर सूख जाये, तब फसल की कटाई शुरू कर सकते हैं|
  • गेहूँ की कटाई के दौरान इसमें 13-14% नमी होनी चाहिए |
  • गेहू को राइपर (मशीन) द्वारा काटने के बाद थ्रेशिंग फ्लोर पर 3-4 दिनों के लिए सुखाया जाता है|
  • बीजो को हमेशा नए थैलों में संग्रहित करना चाहिए| आमतौर पर गोदामों में रखे अनाजों पर कीटो का प्रकोप हो जाता  है, इससे बचने के लिए समय समय पर कीटनाशक रसायनो का ध्रुमन करना चाहिए|
  • भंडार गृह में गेहूँ के बीज में 10-11%  नमी होनी चाहिए।

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Use of wheat and gram sawdust/straw

  • भूसा वह फसल सामग्री हैंं। जो फसल से अनाज को अलग करने के बाद बचा हुआ अवशेष होता है
  • जिसका अनेक तरह से उपयोग किया जा सकता है जैसे खाद बनाने, मल्च के रूप  में, नर्सरी की तैयारी के समय, इसके आलावा मिट्टी की जैविक क्षमता को बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण होता है |  
  • गेहूं का भूसा/ पुआल मशरुम उत्पादन के लिए उपयुक्त सामग्री हैंं।
  • गेंहू और चने के भूसे का उपयोग गोबर की खाद बनाने में भी किया जाता है | और इसके साथ साथ गोबर के उपले बनाने के लिए भी इसे, गोबर के साथ मिलाया जाता हैंं।
  • कृषि उद्योग जैसे मुर्गी पालन आदि में सतह को सूखा रखने एवं तापमान नियंत्रित करने के लिए बिछाली के रूप में भी उपयोग किया जाता हे ।
  • गेहूं का भूसा / पुआल का उपयोग पशु आहार में भी किया जाता हैंं।

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Harvesting in wheat

  • जब पुआल पीला सूखा और भंगुर हो जाए एवं दाना कठोर हो जाए तब फसल की कटाई की जाती हैं |
  • हाल के वर्षों में देश के कई राज्यों में फसल की कटाई और गहाई के लिए थ्रेशिंग मशीन का उपयोग किया जाने लगा हैं|
  • जब अनाज में लगभग 15 प्रतिशत नमी हो तब फसल की कटाई कर लेना चाहिए।
  • गेहूं की बाली पीली होने पर ही फसल की कटाई की जाती हैं।
  • गेहूं की बुआई, से 110-130 दिनों अंतराल पर गेहूं कटाई की जाती हैंं।

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Lesser grain borer control in wheat

  • अनाजों को भंडारित करने के पहले उन्हें अच्छे से धुप में सूखा लेना चाहिए |
  • सीमेंट या कंक्रीट से बने हुए पक्के भंडारगृह का उपयोग करना चाहिए, जिसमे हवा का आगमन अच्छा हो|
  • भंडारगृह में अनाज के बोरो की थप्पी  के बीच कम से कम 2 फ़ीट का अंतर होना आवश्यक है |
  • भंडारगृह में बोरो की थप्पी इस प्रकार रखे की वह न तो छत को न ही दीवारों को छुए।
  • भंडारणगृह में हवा का आवागमन अगर अच्छा रहे तो यह अनाज में  नमी की मात्रा बढ़ने नहीं देता हैंं जिससे अनाज में विभिन्न तरह के रोग एवं कीट से बचाया जा सकता हैंं।
  • अनाज के भंडारण के लिए नम और गीले बैग का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
  • शुष्क मौसम के दौरान महीने में कम से कम एक बार और बारिश के मौसम में एक पखवाड़े में अनाज का  निरीक्षण किया जाना चाहिए। यदि अनाज में नमी की मात्रा अधिक दिखे तो उसे जल्द से जल्द भंडार गृह से अलग कर सूखाने का प्रबंध करना चाहिए।
  • मेलाथियाँन @ 100 मिलीग्राम प्रति वर्ग मीटर का छिडकाव करना चाहिए।
  • डाईक्लोरवास @ 0.5 ग्राम प्रति वर्ग मीटर का उपयोग भी अनाज को संक्रमित होने से बचता हैंं|
  • डेल्टामेथ्रिन की 10 ग्राम प्रति लीटर का घोल बना कर भंडारगृह में स्प्रे करे |
  • कीटनाशक जहर हैंं| इसलिए लेबल पर सभी सुरक्षित एहतियात का पालन करना आवश्यक हैंं।

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