Maturity index of wheat

  • फसल तब काटी जाती हैंं जब दाने कठोर हो जाता हैंं और पुआल पीला सूखा और भंगुर हो जाता हैंं।
  • अनाज में लगभग 15 प्रतिशत नमी होने पर कटाई की जाती हैंं।
  • गेहूं की कटाई के समय गेहूं की वाली पीली हो जानी चाहिये।
  • गेहूं की बुआई से 110-130 दिनों बाद पर गेहूं कटाई की जाती हैंं।

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Management of Black Rust disease in Wheat

  • यह फफूंद पौधों की पत्तियों और तनों पर लम्बे,अण्डाकार आकृति में लाल-भूरे रंग के धब्बे बनाता है|
  • संक्रमण के 10-20 दिनों के बाद धब्बे देखे जा सकते है|
  • कुछ दिनों बाद यह धब्बे फट जाते है और इनमे से पाउडरी तत्त्व निकलता है|
  • रोग विभिन्न माध्यमों जैसे -सिंचाई, बरसात और हवा के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पहुँचता है और अन्य फसलों को क्षति पहुँचाता है |
  • काला कण्डुआ अन्य कण्डुआ की तुलना में अधिक तापमान 18 -30°से.ग्रे.पर फैलता है|

नियंत्रण-

  • कंडुआ रोग के नियंत्रण के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिए|
  • रोग प्रति-रोधी किस्मों की बुवाई करें |
  • बीज उपचार बुवाई के चार सप्ताह तक कण्डुआ को नियंत्रित कर सकता है और उसके बाद इसे दबा सकते है।
  • एक ही सक्रिय घटक वाले कवकनाशी का बार-बार उपयोग नहीं करें।
  • कासुगामीसिन 5%+कॉपर ऑक्सीक्लोरिड 45% डब्लू.पी. 320 ग्राम/एकड़ या प्रोपिकोनाज़ोल 25% ई.सी.240 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें|

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Management of Yellow Rust disease in Wheat

  • यह रोग फफूंद से होता है|
  • यह फफूंद नारंगी-पीले रंग के बीजाणु के द्वारा रोगी खेत से स्वस्थ खेत में फैलता है|
  • यह पत्तों की नसों की लंबाई के साथ पट्टियों में विकसित होकर छोटे-छोटे, बारीक़ धब्बे विकसित कर देता है|
  • धीरे-धीरे यह पत्तियों की दोनों सतह पर फ़ैल जाता है|
  • इस पर बने हुए पॉवडरी धब्बे 10-14 दिनों में फूट जाते है
  • यह रोग अधिक ठण्ड और नम जलवायु लगभग 10-15°से.ग्रे. तापमान पर फैलता है|

नियंत्रण-

  • कंडुआ रोग के नियंत्रण के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिए|
  • रोग प्रति-रोधी किस्मों की बुवाई करें |
  • बीज या उर्वरक उपचार बुवाई के चार सप्ताह तक कण्डुआ को नियंत्रित कर सकता है और उसके बाद इसे दबा सकते है।
  • एक ही सक्रिय घटक वाले कवकनाशी का बार-बार उपयोग नहीं करें।
  • कासुगामीसिन 5%+कॉपर ऑक्सीक्लोरिड 45% डब्लू.पी. 320 ग्राम/एकड़ या प्रोपिकोनाज़ोल 25% ई.सी.240 मिली /एकड़ का छिड़काव करें|

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Irrigation Management of Wheat

गेहू मे सिंचाई प्रबंधन:-

  • अच्छी फसल की प्राप्ति के लिए समय पर सिंचाई करना बहुत जरुरी होता है।
  • फसल में गाभा के समय और दानो में दूध भरने के समय सिंचाई करनी चाहिए।
  • ठंड के मौसम में अगर वर्षा हो जाये तो सिंचाई कम भी कर सकते है
  • कृषि वैज्ञानिको के मुताबिक जब तेज हवा चलने लगे तब सिंचाई को कुछ समय तक रोक देना चाहिए।
  • कृषि वैज्ञानिको का ये भी कहना है की खेत में 12 घंटे से ज्यादा देर तक पानी जमा नहीं रहने देना चाहिए ।
  • गेहूँ की खेती में पहली सिंचाई बुआई के लगभग 25 दिन बाद करनी चाहिए।
  • दूसरी सिंचाई लगभग 60 दिन बाद और तीसरी सिंचाई लगभग 80 दिन बाद करनी चाहिए।

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Major Diseases and Their Control Measures of Wheat

गेंहू की प्रमुख बीमारियाँ एवं उनका नियंत्रण:-

गेंहू की प्रमुख बीमारियों में कण्डुआ (रस्ट) रोग प्रमुख है| कंडुआ रोग 3 प्रकार का होता है | पीला कंडुआ, भूरा कंडुआ और काला कंडुआ |

 

  • पीला कंडुआ:- यह रोग पकसीनिया स्ट्रीफोर्मियस नामक फफूंद से होता है | यह फफूंद नारंगी-पीले रंग के बीजाणु के द्वारा ग्रसित खेत से स्वस्थ खेत को प्रभावित करता है यह पत्तों की नसों की लंबाई के साथ पट्टियों में विकसित होकर छोटे-छोटे, बारीक़ धब्बे विकसित कर देता है| धीरे-धीरे यह पत्तियों की दोनों सतह पर फ़ैल जाता है| |
  • अनुकूल परिस्थितियां:- यह रोग अधिक ठण्ड और आद्र जलवायु लगभग 10-15° से.ग्रे. तापमान पर फैलता है| इस पर बने हुए पॉवडरी धब्बे 10-14 दिनों में फूट जाते है और विभिन्न माध्यमों जैसे- हवा, बरसात और सिंचाई के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पहुँचते है | इससे लगभग गेंहू की फसल में  25% हानि होती है|
  • भूरा कण्डुआ:- यह रोग पकसीनिया ट्रीटीसीनिया नामक फफूंद से होता है | यह फफूंद पत्तियों के ऊपरी सतह से शुरू होकर तनों पर लाल-नारंगी रंग के धब्बे बनता है | यह धब्बे 1.5 एम.एम.के अंडाकार आकृति के होते है|
  • अनुकूल परिस्थितियां:- यह रोग 15 -20°से.ग्रे. तापमान पर फैलता है| इसके बीजाणु विभिन्न माध्यमों जैसे- हवा,बरसात और सिंचाई के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान  पहुँचते है | इसके लक्षण 10-14 दिनों में दिखने लग जाते है|
  • काला कण्डुआ:- यह रोग पकसीनिया ग्रेमिनिस नामक फफूंद से होता है | यह रोग बाजरे की फसल पर भी क्षति पहुँचाता है| यह फफूंद पौधों की पत्तियों और तनों पर लम्बे,अण्डाकार आकृति में लाल-भूरे रंग के धब्बे बनाता है| कुछ दिनों बाद यह धब्बे फट जाते है और इनमे से पाउडरी तत्त्व निकलता है जो की विभिन्न माध्यमों जैसे- सिंचाई, बरसात और हवा के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पहुँचता है और अन्य फसलों को क्षति पहुँचाता है |
  • अनुकूल परिस्थितियां:- काला कण्डुआ अन्य कण्डुआ की तुलना में अधिक तापमान 18 -30°से.ग्रे.पर फैलता है| बीजों को नमी (ओस, बारिश या सिंचाई) की आवश्यकता होती है और फसल को संक्रमित करने के लिए छह घंटे तक लगते हैं और संक्रमण के 10-20 दिनों के बाद धब्बे देखे जा सकते है|
  • नियंत्रण:-
  • कंडुआ रोग के नियंत्रण के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिए|
  • रोग प्रति-रोधी किस्मों की  बुवाई करें |
  • बीज या उर्वरक उपचार बुवाई के चार सप्ताह तक कण्डुआ को नियंत्रित कर सकता है और उसके बाद इसे दबा सकता है।
  • एक ही सक्रिय घटक वाले कवकनाशी  का बार-बार उपयोग नहीं करें।
  • कासुगामीसिन 5%+कॉपर ऑक्सीक्लोरिड 45% डब्लू.पी. 320 ग्राम/एकड़ या प्रोपिकोनाज़ोल 25% ई.सी.240 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें|

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Nutrient Management in Wheat

गेहूं मे पौषक तत्व प्रबंधन:- गेंहू की उपज में पौषक तत्त्व प्रबंधन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है मृदा मे उपलब्ध पौषक तत्त्व की जानकारी हेतु मिट्टी की जाँच बहुत आवश्यक है| इसी के आधार पर फसलो में पौषक तत्त्व प्रबंधन की रणनीति अपनाई जाती है|-

  • अच्छे से सडी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट को 15-20 टन/हे. के हिसाब से हर 2 साल में मिट्टी में मिलाना चाहिये|
  • गोबर की खाद डालने से भूमि की संरचना में सुधार और पैदावार में बढ़ोतरी होती है।
  • गेंहू में 88  कि.ग्रा. यूरिया, 160 कि.ग्रा ,सिंगल सुपर फॉस्फेट एवं 40 कि.ग्रा. म्युरेट ऑफ़ पोटाश प्रति एकड़ के हिसाब से उपयोग करना चाहिये|
  • युरिया का उपयोग तीन भागों में करना चाहिए|
    1.) 44  कि.ग्रा. यूरिया की मात्रा बोनी के समय करें।
    2.) शेष 22 कि.ग्रा. पहली सिंचाई के समय डाले।
    3.) शेष 22 कि.ग्रा., दुसरी सिंचाई के समय डाले।
  • आशिंक सिंचाई उपलब्ध हो एवं अधिकतम दो सिंचाई होने पर यूरिया @ 175 , सुपर सिंगल फॉस्फेट@ 250 और म्युरेट ऑफ़ पोटाश @ 35-40 कि.ग्रा प्रति हेक्टेयर डाले।
    असिंचित अवस्था में नाइट्रोजन फास्फोरस एवं पोटॉश की पूरी मात्रा डालें|
  • यदि गेंहू की बुवाई मध्य दिसम्बर में करते है तो नत्रजन की 25 प्रतिशत मात्रा कम डालना चाहिये|

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Soil Preparation and Sowing Time for Wheat

गैंहू के लिए खेत की तैयारी एवं बुआई का समय:-

  • ग्रीष्मकालीन जुताई करें |
  • तीन वर्षों में एक बार गहरी जुताई करें |
  • 2 -3 बार कल्टीवेटर कर खेत को समतल करें |
  • बुवाई का उचित समय
  • असिंचित:- मध्य अक्टूबर से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक|
  • अर्धसिंचित:- नवम्बर माह का प्रथम पखवाड़ा|
  • सिंचित (समय से):- नवम्बर माह का द्वितीय पखवाड़ा|
  • सिंचित (देरी से):- दिसंबर माह का द्वितीय सप्ताह से|

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Storage of Wheat

गेहू का भंडारण:-

  • सुरक्षित भंडारण हेतु दानों में 10-12% से अधिक नमी नहीं होना चाहिए।
  • भंडारण के पूर्व कोठियों तथा कमरो को साफ कर लें और दीवालों व फर्श पर मैलाथियान 50%  के घोल  को 3 लीटर प्रति 100 वर्गमीटर की दर से छिड़कें।
  • अनाज को बुखारी, कोठियों  या कमरे में रखने के बाद एल्युमिनियम फास्फाइड 3 ग्राम की दो गोली प्रति टन की दर से रखकर बंद कर देना चाहिए।

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Suitable Climate for Wheat

गेहू के लिए उपयुक्त जलवायु:-

  • गेहूँ मुख्यतः एक ठण्डी एवं शुष्क जलवायु की फसल है अतः फसल :बोने के समय 20 से 22 डि. से. , बढ़वार के समय इष्टतम ताप 25 डि. से. तथा पकने के समय 14 से 15 डि. से. तापक्रम उत्तम रहता है।
  • तापमान अधिक होने पर फसल जल्दी पक जाती है और उपज घट जाती है। पाले से फसल को बहुत नुकसान होता है। बाली लगने के समय पाला पड़ने पर बीज अंकुरण शक्ति खो देते है और उसका विकास रूक जाता है ।
  • छोटे दिनो में पत्तियां और कल्लो की वृद्धि अधिक होती है जबकि दिन बड़े होने के साथ-साथ बाली निकलना आरम्भ होता है। इसकी खेती के लिए 60-100 से. मी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र उपयुक्त रहते है।
  • पौधों की वृद्धि के लिए वातावरण में 50-60 प्रतिशत आर्द्रता उपयुक्त पाई गई है। ठण्डा शीतकाल तथा गर्म ग्रीष्मकाल गेंहूँ की बेहतर फसल के लिए उपयुक्त माना जाता है ।

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Seed treatment of wheat

गेंहू का बीज उपचार:-

  • गेंहू को बुआई से पहले फफुद जनित बिमारियों जैसे जड़ सडन, कंडवा रोग, ध्वज कंडवारोग एवं अन्य से बचने के लिए कार्बोक्सिन 37.5% + थायरम 37.5% या कार्बेन्डाजिम 12% + मेनकोझेब 63% 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज या टेबुकोनाज़ोल DS 1 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित करना चाहिए |
  • दीमक से बचाव के लिए क्लोरोपायरीफास 4 मिली प्रति किलो बीज से उपचारित करना चाहिए |

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share