Control of anthracnose in cowpea

  • बरबटी की पत्तियाँ, तने व फलियाँ इस रोग के संक्रमण से प्रभावित होती हैं।
  • छोटे-छोटे लाल-भूरे रंग के धब्बे फलियों पर बनते है व शीघ्रता से बढ़ते हैं |
  • आर्द्र मौसम में इन धब्बों पर गुलाबी रंग के जीवणु पनपते हैं।
  • रोग रहित प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
  • रोग ग्रसित खेत में कम से कम दो वर्ष तक बरबटी न उगाये।
  • रोग ग्रसित पौधों को निकाल कर नष्ट करें।
  • बीज को कार्बोक्सिन 37.5 + थायरम  37.5 @ 2.5 ग्राम / किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें|
  • मैनकोजेब 75% डब्ल्यू पी @ 400-600/एकड़ की दर पानी में घोल बनाकर प्रति सप्ताह छिड़काव करें।

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Control of wilt in okra

  • प्रारंभिक अवस्था में पौधा अस्थाई रुप से मुरझा जाता है किंतु बीमारी का प्रभाव बढ़ जाने पर पौधा स्थाई रुप से मुरझाकर सूख जाता है ।
  • ग्रसित पौधों की पत्तियाँ पीली हो जाती है ।
  • ग्रसित पौधों के तने को काटने पर आधार गहरे भूरे रंग का दिखाई देता है ।
  • भिण्डी को लगातार एक ही खेत में नहीं उगाना चाहिए ।
  • फसल चक्र अपनाना चाहिए ।
  • थायोफनेट मिथाइल 70% WP @ 200-300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • हेक्साकोनाजोल 5% ईसी @ 250-400 मिली/एकड़ का उपयोग भी इस बीमारी की रोकथाम के लिए किया जा सकता हैं ।

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Control of fruit rot in brinjal

  • अत्यधिक नमी इस रोग के विकास में सहायक होती है।
  • फलों पर जलीय सूखे हुये धब्बे दिखाई देते है जो बाद में धीरे-धीरे पुरे फलों में फैल जाते है।
  • प्रभावित फलों की ऊपरी सतह भूरे रंग की हो जाती है, जिन पर सफेद रंग की कवक का निर्माण हो जाता है।
  • इस रोग से ग्रसित पौधे की पत्तियों एवं अन्य भागों को तोड़कर नष्ट कर दे।
  • मेंकोजेब 75% WP @ 400 ग्राम प्रति एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 25 % ईसी @ 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें|

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Control of fusarium wilt in muskmelon

  • फ्यूजेरियम विल्ट के पहले लक्षण पुरानी पत्तियो पर दिखाई देते हैं। पत्तिया पीलापन लिए हुए सुख जाती हैं। इस बीमारी के लक्षण दिन में गर्मी के समय स्पष्ट रूप से दिखाई देते है।
  • तने में  भूरे रंग की दरारें दिखाई देती हैं, जिसमे से लाल-भूरे रंग का गाढ़ा रिसाव निकलता हैं।
  • बुवाई के लिए स्वस्थ बीजो का प्रयोग करें।
  • खेत की गहरी जुताई, खरपतवार प्रबंधन, तथा उचित जलनिकास आवश्यक हैं |
  • फ्यूजेरियम विल्ट के प्रभावी नियंत्रण के लिए प्रोपिकोनाजोल 25% ईसी @ 200 मिली / एकड़ या थियोफैनेट-मिथाइल 500 ग्राम प्रति एकड़ का उपयोग करें।

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Control of damping off in tomato

  • प्रायः फंगस का आक्रमण अंकुरित बीजों के द्वारा शुरू होता है, जो धीरे-धीरे नई जड़ से फैलकर तनों के निचले भागों एवं विकसित हो रही मूसला जड़ों पर होता है।
  • इससे संक्रमित पौधों के तनों के निचले भाग पर हल्के-हरे, भूरे एवं पानी के रंग के जले हुये धब्बे दिखाई देते है।
  • पौधशाला की सतह कम से कम 10 से.मी. ऊँची बनना चाहिये।
  • बीज को कार्बेन्डाजिम 50% WP @ 2 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें।
  • पौधशाला में आर्द्रगलन के नियंत्रण के लिये मैनकोज़ेब 75% WP @ 400-600 ग्राम/एकड़ की दर से घोल बनाकर अच्छी तरह से जड़ो के पास ड्रेंचिंग करे।

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Control of fusarium wilt in watermelon

  • रेतीली मिट्टी में यह रोग अधिक पाया जाता है।
  • संक्रमित पौधो को नष्ट करें।
  • रोग मुक्त बीज का उपयोग करे।
  • बुवाई से पहले कार्बेन्डाजिम @ 2 ग्राम/किलोग्राम बीज के साथ बीजोपचार करें।
  • जब तरबूज के पौधे पर बीमारी दिखाई दे तो प्रोपिकोनाजोल @ 80-100 मिली/एकड़ का प्रयोग करें।

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Control of bacterial leaf spot in coriander

  • बुवाई के लिये स्वस्थ एवं रोग रहित बीजो का चुनाव करे।
  • आवश्यकता पड़ने पर ही सिंचाई करे और अतिरिक्त पानी देने से बचे।
  • नाइट्रोजन उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से बचें, क्योंकि अधिक नत्रजन रोग के विकास के लिए जिम्मेदार हो सकता हैं।
  • जब धनिया के पौधे पर रोग लग जाए तो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्लूपी का 400-500 ग्राम प्रति एकड़ का छिडकाव करें।

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Control of damping off in coriander

  • इस बीमारी मे बीज या तो मिट्टी से बाहर निकलने से पहले ही सड़ जाते हैं या उगने के तुरंत बाद गिर जाते हैं।
  • धनिया की बुवाई से पहले, खेत की गहरी जुताई कर पुरानी फसल के अवशेषों व खरपतवारो को नष्ट करे|
  • रोग रहित बीज तथा प्रतिरोधी किस्मो का उपयोग करें |
  • बीज को कार्बोक्सिन 37.5% + थाइरम 37.5% @ 2 ग्राम/किलो बीज की दर से बुवाई से पहले उपचारित करें।
  • थियोफैनेट मिथाइल 70% डब्ल्यू पी 300 ग्राम/एकड़ की दर से घोल बना कर जड़ो के पास छिड़काव करें|

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Control of bacterial wilt in tomato

  • रोगग्रस्त पौधों की पत्तियां पीले रंग की होकर सूखने लगती हैं एवं कुछ समय बाद पौधा सूख जाता हैं
  • नीचे की पत्तियां पौधे के सूखने से पहले गिर जाती हैं
  • पौधे के तने के नीचे के भाग को काटने पर उसमें से जीवाणु द्रव दिखाई देता हैं
  • पौधों के तने के बाहरी भाग पर पतली एवं छोटी जड़े निकलने लगती हैं
  • कद्दू वर्गीय सब्जिया, गेंदा या धान की फसल को उगाकर फसल चक्र अपनायें।
  • खेत में पौधे लगाने से पहले ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव 6 कि.ग्राम प्रति एकड़ की दर से करें।
  • स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट I.P. 90% w/w + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड I.P. 10% w/w  20 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग।
  • कसुगामाइसिन 3% एस.एल. 300 मिली/एकड़ के प्रयोग करके भी इस रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।

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Control of Powdery Mildew of muskmelon

  • पत्तियों पर सफ़ेद या धूसर रंग के धब्बों का निर्माण होता है| जो बाद में बढ़कर सफ़ेद रंग का पाउडर में बदल जाते है|
  • पंद्रह दिन के अंतराल से हेक्ज़ाकोनाजोल 5% SC 300 मिली. प्रति एकड़ या थायोफिनेट मिथाईल 400 ग्राम प्रति एकड़ का घोल बनाकर छिडकाव करें|

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