मूंग की फसल को पाउडरी मिल्ड्यू से होगा नुकसान, ऐसे करें बचाव

Management of powdery mildew in green gram crop
  • आमतौर पर यह रोग मूंग की पत्तियों को प्रभावित करता है और पत्तियों के निचले एवं ऊपरी भाग पर आक्रमण करता है।
  • इसके कारण मूंग की पत्तियों के ऊपरी एवं निचली सतह पर पीले से सफेद रंग का पाउडर दिखाई देता है।
  • इनके प्रबंधन के लिए एजेस्ट्रोबिन 11% + टेबूकोनाज़ोल 18.3% SC @ 300 मिली/एकड़ या एजेस्ट्रोबिन@ 300 मिली/एकड़ का उपयोग करें।
  • जैविक उपचार रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी 500 ग्राम/एकड़ + स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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मौसम बदलाव के कारण हो सकते है कीट आक्रमण

Pest attacks may occur in the change of weather
  • मौसम बदलाव को देखते हुए कई तरह के कीट फसलों पर हमले कर सकते हैं क्योंकि नमीयुक्त वातावरण इनके लिए उपयुक्त होता है।
  • ग्रीष्मकालीन कद्दूवर्गीय सब्जियों में लाल भृंग कीट के आक्रमण की संभावना रहती है। इस कीट की संख्या अधिक हो तो साइपरमैथ्रिन 4% ईसी + प्रोफेनोफॉस 40% ईसी 400 मिली या बाइफेंथ्रीन 10% ईसी 200 मिली या डाइक्लोरोवोस 76 ईसी 300 मिली/एकड़ का छिड़काव करें।
  • भिंडी में रस सूचक कीट जैसे सफेद मक्खी, एफिड, जैसिड आदि के नियंत्रण के लिए थायोमेथोक्सोम 25 डब्लू जी 5 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें।
  • प्याज में थ्रिप्स (तेला) के प्रकोप की अधिक संभावना बनी हुई रहती है अतः प्रोफेनोफोस 50 ई.सी. @ 45 मिली या लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 4.9% सी.एस. @ 20 मिली या स्पिनोसेड @ 10 मिली या फिप्रोनिल 5 एस.सी. प्रति 15 लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
  • रासायनिक दवा के साथ इस मौसम में 0.5 मिली चिपको प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर प्रयोग करें ताकि दवा पौधों द्वारा अवशोषित हो जाये।
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गेहूँ में कण्डुआ रोग का प्रबंधन

  • यह रोग फफूंद से होता है |
  • इसके लक्षण 10-14 दिनों में दिखने लग जाते है
  • यह फफूंद पत्तियों के ऊपरी सतह से शुरू होकर तनों पर लाल-नारंगी रंग के धब्बे बनता है | यह धब्बे 1.5 एम.एम.के अंडाकार आकृति के होते है|
  • यह रोग 15 -20°से.ग्रे. तापमान पर फैलता है
  • इसके बीजाणु विभिन्न माध्यमों जैसे- हवा, बरसात और सिंचाई के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पहुँचते है |

नियंत्रण-

  • फसल चक्र अपनाना चाहिए|
  • रोग प्रति-रोधी किस्मों की बुवाई करें |
  • बीज या उर्वरक उपचार बुवाई के चार सप्ताह तक कण्डुआ को नियंत्रित कर सकता है और उसके बाद इसे दबा सकते है।
  • एक ही सक्रिय घटक वाले कवकनाशी का बार-बार उपयोग नहीं करें।
  • कासुगामाईसिन 5% +कॉपर ऑक्सीक्लोरिड 45% डब्लू.पी. 320 ग्राम/एकड़ या प्रोपिकोनाज़ोल 25% ई.सी. 240 मिली /एकड़ का छिड़काव करें|

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आलू में अगेती झुलसा रोग का प्रबंधन

आलू में अगेती झुलसा रोग का प्रबंधन:-

  • रोगग्रस्त पौधों को ठीक से नष्ट किया जाना चाहिए, ठन्डे बादली मौसम में सिचाई नहीं करनी चाहिए, सिचाई का समय ऐसा हो की रात तक पौधे सुख जाये|
  • मिट्टी की उर्वरता और फसल की शक्ति को बनाए रखें| फसल खुदाई जब करे तब कंदों की छिलका सख्त हो जाए जिससे की उस पर खरोच के कारण संक्रमण ना हो |
  • 2 ग्राम मेन्कोजेब 75 डब्लूपी + 10 ग्राम यूरिया प्रति लीटर 15 दिन के अंतराल पर जब लक्षण शुरू होते हैं या कार्बेन्डाजिम 12% + मेन्कोजेब 63% WP @ 50 ग्रा / 15 लीटर पानी या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 % WP @ 50 ग्रा। / 15 लीटर पानी का छिडकाव करे |

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Management of Downy Mildew in Onions

प्याज में मृदुरोमिल आसिता रोग का प्रबंधन:-

लक्षण:-

  • पत्तियो और पुष्प वृंत पर बैगनी कवक वृद्धि करते हैं, जो कि बाद में हल्के हरे रंग के हो जाते है।
  • पत्तियाँ और पुष्प वृंत अंत मे गिर जाते है।
  • यह रोग अधिक नमी एवं अत्यधिक उर्वरक के उपयोग एवं सधी सिंचाई के कारण होती है

रोकथाम

  • बीज के लिए जिन प्याज के कन्दो का उपयोग करते है उन्हें 12 दिन के लिए सूर्य के प्रकाश में रखने से कवक ख़त्म हो जाती है
  • मेंकोजेब + मेटालेक्ज़ील या कार्बेंडाजीम+ मेंकोजेब @ 400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से 15 दिनों के अंतराल में छिड़काव करना चाहिये।

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Management of Fusarium basal rot/basal rot

  • ट्राईकोडर्मा @ 6 किलोग्राम/एकड़

  • कार्बेन्डिज़िम + मनकोजेब (साफ/टर्फ) @ 1 किग्रा/एकड़

  • किटजाइन @ 1 लीटर/एकड़

  • कोनिका (कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45%) WP @ 300 ग्राम/एकड़।

  • ट्रिगर प्रो (हेक्साकोनाजोल 5% SC) @ 400 ml/एकड़ + स्ट्रेप्टोसाइक्लिन (स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट IP90% W/W + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड आईपी 10% W/W) 12 ग्राम/एकड़

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Fusarium rot/basal rot in garlic

  • पौधे की बढ़वार रुक जाती तथा पत्तियो पर पीला पन आ जाता हैं तथा पौधा ऊपर से नीचे की ओर  सूखता चला जाता हैं |

  • संक्रमण के प्रारंभिक चरण में, पौधों की जड़ें रंग में गुलाबी हो जाती हैं और सड़ने लगती हैं। बल्ब निचले सिरे से सड़ने लगता है और अंततः पूरा पौधा मर जाता है।

  • उत्तरजीविता और प्रसार: – रोगज़नक़ मिट्टी और लहसुन के बल्ब में रहता है |

  • अनुकूल परिस्थितियां: – नम मिट्टी और 27 डिग्री सेल्सियस तापमान रोग के विकास के लिए अनुकूल होता है।

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Control of Fusarium Wilt in Gram

चने में उकठा रोग के नियंत्रण के उपाय:-चने में उकठा रोग फ्यूजेरियम ओक्सीस्पोरस फफुद के कारण होता है गर्म व नमी वाला वातावरण इसके लिए अनुकूल होता है इस बीमारी के रोकथाम के लिए निम्न सावधानिया रखनी पड़ती है |:-

  • छ: वर्षीय फसल चक्र अपनाए|
  • मानसून में खेत की नमी को संरक्षित करे |
  • गहरी जुताई (6-7 इन्च) करके खेत को समतल करे |
  • रोग मुक्त बीज का प्रयोग करे |
  • रोग प्रतिरोधी किस्में लगाये|
  • कार्बोक्सीन 37.5 % + थायरम 37.5 % @ 3 ग्राम/किलो बीज या ट्रायकोडर्मा विरिडी @  ग्राम/किलो बीज से बीज उपचार करे|
  • जब तापमान अधिक हो जब बुआई ना करे| अक्टूबर के दुसरे व तीसरे सप्ताह में बुआई करे |
  • सिचाई नवम्बर-दिसम्बर में करे |
  • माइकोराइज़ा @ 4 किलो प्रति एकड़ 15 दिन की फसल में भुरकाव करें|
  • फूल आने से पहले थायोफिनेट मिथाईल 75% @ 300 ग्राम/एकड़ का स्प्रे करें|
  • फली बनते समय प्रोपिकोनाज़ोल 25% @ 125 मिली/ एकड़ का स्प्रे करें|

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Control of late blight of tomato

  • कटाई के बाद फसल अवशेष को नष्ट करें
  • खेत पर जल भराव की स्थिति न होने दे | 
  • रोग नियंत्रण के लिए किसी भी एक फफूंद नाशक का स्प्रे करे | 
  • मेटलैक्सिल 8% + मैनकोजेब 64% @ 500 ग्राम/एकड़।
  • कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP @ 300 ग्राम/एकड़।
  • पायरोस्टॉकलोबिन 5% + मेटीराम 55% @ 600 ग्राम/एकड़।
  • डाइमेथोमॉर्फ 50% डब्लू पी @ 400 ग्राम/एकड़।

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Late blight of tomato

  • लेट ब्लाइट के लक्षण पुरानी पत्तियों की निचली साथ पर धूसर हरे रंग के पनीले धब्बो के रूप में नजर आते हैं | 
  • जैसे ही रोग बढ़ता हैं ये धब्बे काले पड़ जाते हैं और अंदर की तरफ सफेद कवक की वृद्धि होती है। तथा अंत में पूरा पौधा संक्रमित हो जाता हैं| 
  • इस रोग से फसलों को भारी नुकसान हो सकता है। यह रोग खेतों में शीघ्रता से फैलता है अगर उपचार नहीं होने पर कुल पूरी फसल नष्ट हो जाती हैं |

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