मिर्च की फसल में मकड़ी का नियंत्रण

Mites control in Chili crop
  • यह छोटे छोटे हल्के पीले-हरे रंग के कीट होते है जो पत्तियों की निचली सतह पर रह कर रस चूसते है। 
  • जिससे पत्तियां नीचे की ओर मुड जाती है। पत्तियों के खाने से सतह पर सफेद से पीले रंग के धब्बे हो जाते है। 
  • ये मकड़ियां पत्तियों की निचली सतह पर सफेद रंग के धागे नुमा गुच्छे का निर्माण करती है। 
  • अधिक आक्रमण होने पर फूलों व फलों की मात्रा के साथ- साथ गुणवत्ता में भी कमी आती है तथा पौधा सूखने लगता है। 
  • इस कीट के प्रभावी नियंत्रण के लिए प्रोपरजाईट 57% EC @ 400 मिली/एकड़ या स्पिरोमेसिफेन 22.9% SC @ 200 मिली प्रति एकड़ या एबामेक्टिन 1.9% EC  @ 150 मिली दवाई को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।
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सोयाबीन की फसल में राइजोबियम कल्चर का महत्व

Importance of Rhizobium culture in soybean crop
  • सोयाबीन की जडों की ग्रंथिकाओं में राइज़ोबियम नामक जीवाणु पाया जाता है जो वायुमंडलीय नत्रजन का स्थिरीकरण कर फसल की उपज बढ़ाता है। परन्तु आज के दौर मिट्टी में अवांछनीय तत्वों की मात्रा इतनी बढ़ गयी है कि सोयाबीन की फसल में प्राकृतिक रूप से राइज़ोबियम का जीवाणु अपने क्षमता के अनुसार कार्य नही कर पाते है।  
  • इसलिए राइज़ोबियम कल्चर का उपयोग करने से सोयाबीन की पौधों की जड़ों में तेजी से गांठे बनती है तथा सोयाबीन की उपज में 50-60 फीसदी तक का इज़ाफा होता है।
  • राइजोबियम कल्चर के उपयोग से मिट्टी में लगभग 12-16 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़ तक बढ़ जाती है। 
  • बीज उपचार के लिए राइजोबियम कल्चर 5 ग्राम प्रति किलो बीज तथा मिट्टी के उपचार के लिए बुआई से पहले 1 किलो कल्चर प्रति 50 किलो सड़ी हुई गोबर खाद में मिलाकर किया जाता है। 
  • दलहनी फ़सलों की जड़ों में मौजूद राइजोबियम जीवाणुओं द्वारा जमा की गई नाइट्रोजन अगली फसल में इस्तेमाल हो जाती है, जिससे अगली फसल में भी नत्रजन कम देने की आवश्यकता होती है।
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म.प्र में शुरू हुई एमएसपी पर उड़द और मूंग की खरीदी हेतु पंजीयन, ये है आखिरी तारीख

मूंग और उड़द की फसल की कटाई किसानों ने शुरू कर दी है, और मध्यप्रदेश सरकार की तरफ से मूंग और उड़द की एमएसपी पर खरीदी के लिए पंजीयन की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। यह प्रक्रिया 4 जून से शुरू की गई है और इसकी आखिरी तारीख 15 जून रखी गई है।

मध्यप्रदेश कृषि विभाग के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर के इन तारीखों की घोषणा की गई है। प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल ने भी अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से मंगलवार को कृषि विभाग के इस ट्वीट को रीट्वीट किया था।

ग़ौरतलब है की प्रदेश में गेहूं खरीदी का काम खत्म कर लिया गया है और इसके बाद अन्य फ़सलों की खरीदी का काम भी धीरे धीरे शुरू किया जा रहा है ताकि किसान अपनी अन्य फ़सलों पर ध्यान दे पाएं।

स्रोत: मध्यप्रदेश कृषि विभाग

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बदलते परिवेश में सोयाबीन की खेती से संबंधित सामयिक सलाह

Current advice related to Soybean cultivation in the changing environment

सोयाबीन की खेती हेतु बोनी 20 जून के बाद करें। इस वर्ष वर्षा सितम्बर माह के अंत तक होने की संभावना है अतः कम अवधि की सोयाबीन के किस्मों के लिए समस्या हो सकती है। अतः लंबी अवधि की सोयाबीन जल्दी लगाने के लिए उपयोग की जा सकती है। बीज उपचार के लिए सोयाबीन के बीज निकाल लें और उपचार कर बीज को तैयार कर लें।

बीज उपचार के लिए साफ और विटावैक्स 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज और झेलोरा 2.0 मिली प्रति किलो बीज, जैविक बीज उपचार के लिए पी राइज 2.0 ग्राम साथ में राइजो केयर 5 ग्राम प्रति किलो का उपयोग करें। सोयाबीन को राईजोबियम से 5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना अति आवश्यक है। यदि आपके खेत में सोयाबीन सूखने की समस्या दिखती है तो अच्छी पकी हुई गोबर की खाद के साथ राईजोकेयर 500 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से मिला कर बिखेर दें। बोनी से पूर्व सोयाबीन समृद्धि किट का उपयोग अवश्य करें।

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कपास की फसल का सफेद मक्खी से कैसे करें बचाव?

Protection of whitefly in cotton
  • इसके शिशु एवं वयस्क रूप पत्तियों पर चिपक कर रस चूसते हैं जिससे हल्के पीले रंग के घब्बे पत्तों पर पड़ जाते हैं। बाद में इसके कारण पत्तियाँ पूरी तरह से पीली पड़कर विकृत हो जाती हैं। 
  • यह कीट विषाणु जनित रोग को फैलाने में मदद करते हैं। 
  • इससे नियंत्रण हेतु डाइफेनथूरोंन 50% WP 250 ग्राम या पायरिप्रोक्सिफ़ेन 10% + बाइफेन्थ्रिन 10% EC 250 मिली या
  • फ्लॉनिकामिड़ 50% WG 60 ग्राम या एसिटामिप्रिड 20% SP 100 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 
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सोयाबीन की फसल की बुआई के लिए ऐसे करें खेत की तैयारी

How to prepare the field for sowing Soybean Crop
  • खेत की तैयारी एक गहरी जुताई से शुरू करनी चाहिए उसके बाद 2-3 जुताई हैरो या मिट्टी पलटने वाले हल की सहायता से कर के मिट्टी को भुरभुरा करें ताकि मिट्टी की जलधारण क्षमता बढ़ जाये और बीज अंकुरण भी अच्छे से हो सके। 
  • मई जून के महीनों में सूरज की रोशनी ज़मीन पर सीधे पड़ती है और अधिक तापमान होता है जिसके कारण गहरी जुताई करने पर मिट्टी में मौजूद खरपतवार, इनके  बीज, हानिकारक कीट व उनके अंडे, प्युपा नष्ट होने के साथ-साथ मिट्टी में उपस्थित कवकों के बीजाणु भी ख़त्म हो जाते है।
  • अंतिम जुताई के समय खेत में 4 टन सड़ी गोबर की खाद में ग्रामोफ़ोन द्वारा जारी किया गया 7 किलो का सोयाबीन समृद्धि किट मिला दें तथा पाटा चलाकर खेत को समतल बना लें। 
  • इस किट का उपयोग करते समय मिट्टी में नमी होनी चाहिए।
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बड़ा फैसला: आवश्यक वस्तु कानून में सुधार, मंडी से बाहर भी उपज बेच सकेंगे किसान

बुधवार को प्रधानमंत्री आवास पर हुई एक सप्ताह में दूसरी कैबिनेट बैठक में किसानों से संबंधित कई फैसले लिए गए हैं। इस बैठक में कहा गया कि भारत वन नेशन वन मार्केट की दिशा में आगे बढ़ रहा है। इस दौरान आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत खेती-किसानी की घोषणाओं पर मुहर लगाई गई और कई कृषि उत्पादों को आवश्यक वस्तु अधिनियम से बाहर किया गया।

इसके साथ ही किसानों को एपीएमसी कानून से बाहर भी उत्पाद बेचने की अनुमति दे दी गई है। अब किसान मंडी के अतिरिक्त अपनी उपज सीधे निर्यातकों को बेच सकेंगे, जिससे उन्हें अधिक लाभ मिल सकेगा।

ग़ौरतलब है की आवश्यक वस्तु कानून छह दशक से ज्यादा पुराना है जिसमें अब सरकार ने संशोधन किया है। इस संशोधन के अंतर्गत अब अनाज, दालें, आलू और प्याज आदि को आवश्यक वस्तु कानून से बाहर कर दिया गया है। सरकार ने यह फैसला कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए और किसानों की आय बढ़ाने के मकसद से लिया है।

स्रोत: अमर उजाला

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खेत में मिर्च की रोपाई विधि और रोपाई के समय उर्वरक प्रबंधन

Transplanting method and fertilizer management of Chilli
  • खेत में सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई करनी चाहिये। ऐसा करने से मिट्टी में उपस्थित हानिकारक कीट, उनके अंडे, कीट की प्युपा अवस्था तथा कवकों के बीजाणु भी नष्ट हो जाते हैं। इसके बाद हैरों या देशी हल से 3-4 जुताई करके, पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिये।
  • अंतिम जुताई के बाद ग्रामोफ़ोन की पेशकश ‘मिर्च समृद्धि किट’ जिसकी मात्रा 6.3 किलो है, को 5 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में प्रति एकड़ की दर से अच्छी तरह मिलाकर अंतिम जुताई या बुआई के समय साथ में मिला दे। इसके बाद हल्की सिंचाई कर दे।
  • बुआई के 30 से 40 दिनों बाद मिर्च की पौध रोपाई के लिए तैयार हो जाती है। वर्षाकालीन मिर्च के पौध की रोपाई का उपयुक्त समय मध्य जून से मध्य जुलाई तक होता है।
  • रोपाई के पूर्व नर्सरी में और खेत में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए, ऐसा करने से पौध की जड़ नहीं टूटती, वृद्धि अच्छी होती है और पौध आसानी से लग जाती है।
  • पौध को जमीन से निकालने के बाद सीधे धूप मे नहीं रखना चाहिये।
  • जड़ों के अच्छे विकास के लिए 5 ग्राम माइकोरायज़ा प्रति लीटर की दर से एक लीटर पानी में घोल बना लें। इसके बाद मिर्च के पौध की जड़ों को इस के घोल में 10 मिनट के लिए डूबा के रखना चाहिए। यह प्रक्रिया अपनाने के बाद ही खेत में पौध रोपण करें ताकि मिर्च की पौध खेत में भी स्वस्थ रहे।
  • मिर्च के पौध की रोपाई के लिए लाइन से लाइन की दूरी 60 सेमी० और पौधे से पौधे की दूरी 45 सेमी० चाहिये। रोपाई के तुरन्त बाद खेत में हल्का पानी देना चाहिए।
  • मिर्च की पौध के रोपाई के समय 45 किलो यूरिया, 200 किलो एस.एस.पी और 50 किलो एम.ओ.पी. उर्वरक को बेसल डोज के रूप में प्रति एकड़ की दर से खेत में बिखेर देना चाहिए।
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धान की फसल के लिए नर्सरी क्षेत्र का चुनाव और नर्सरी की तैयारी

Selection of nursery area and preparation of nursery for paddy crop
  • स्वस्थ एवं रोगमुक्त पौध तैयार करने के लिए उचित जल-निकास एवं उच्च पोषक तत्व युक्त दोमट मिट्टी उपयुक्त है तथा सिंचाई के स्रोत के पास पौधशाला का चयन करें। 
  • नर्सरी क्षेत्र को गर्मियों में अच्छी तरह 3-4 बार हल से जुताई करके खेत को खाली छोड़ने से मृदा संबंधित रोगों में काफी कमी आती है। 
  • बुआई के एक महीने पहले नर्सरी की तैयारी की जाती है। नर्सरी क्षेत्र में 15 दिनों के अंतराल पर पानी देकर खरपतवारों को उगने दिया जाए तथा हल चलाकर या 
  • नॉन सलेक्टिव खरपतवारनाशी जैसे कि पैराक्वाट डाइक्लोराइड 24% SL या ग्लाईफोसेट 41% SL @ 1000 मिली प्रति एकड़ का छिड़काव करके खरपतवारों को नष्ट कर दें। ऐसा करने से धान की मुख्य फसल में भी खरपतवारों की कमी आयेगी। 
  • 50 किलो सड़ी गोबर की खाद में 1 किलो कम्पोस्टिंग जीवाणुओं को मिलाएं। तब खेत की सिंचाई करें और दो दिनों तक खेत में पानी रखें।
  • क्यारियों की उचित देखभाल के लिए 1.5-2.0 मीटर चौड़ाई तथा 8-10 मीटर लंबाई रखनी चाहिए। नर्सरी के लिए 400 वर्ग मीटर क्षेत्र की आवश्यकता होती है।
  • नर्सरी में फसल को उचित वानस्पतिक वृद्धि के साथ-साथ जड़ के विकास की भी आवश्यकता होती है। यूरिया 20 किग्रा + ह्यूमिक एसिड 3 किग्रा प्रति एकड़ नर्सरी में बिखेर दें।  
  • वर्षा आरम्भ होते ही धान की बुआई का कार्य आरम्भ कर देना चाहिये। जून मध्य से जुलाई प्रथम सप्ताह तक बोनी का समय सबसे उपयुक्त होता है।
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बदलते परिवेश में किसान भाइयों के लिए कृषि से संबंधित सामयिक सलाह

Timely advice related to agriculture for farmers in the changing environment

मूंग की फसल हेतु सलाह:

वर्तमान में अच्छी वर्षा की संभावना को देखते हुए मूंग की फसल की कटाई अतिशीघ्र कर लें। जिनकी मूंग की फसल थोड़ी हरी है पर फलियां पूरी तरह परिपक्व हो गई हो वे पैराक्वाट डाइक्लोराइड 24% SL (ओजोन या ग्रामोक्सोन) का उपयोग 100 मिली प्रति एकड़ का छिड़काव कर अतिशीध्र फसल को काट लें।

कम्पोस्टिंग बैक्टीरिया का उपयोग:

जैसा की आप जानते है वर्षा समय से पूर्व हुई है अतः फफूंद के बढ़ने के पूरे आसार है तथा  इससे बचने के लिए खेतों में बचे हुए फसल के अवशेषों को सड़ाने की आवश्यकता है। इसके लिए स्पीड कम्पोस्ट 4 किलो और 500 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी (राइज़ोकेयर) प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में 50 किलो सड़ी गोबर की खाद के साथ मिला कर बिखेरें। अगर गेहूं का कचरा है तो 45 किलो यूरिया और हरी सब्जियों का कचरा हो तो 10 किलो यूरिया का उपयोग करें। इनका उपयोग पर्याप्त नमी होने पर ही करें।

यदि किसान भाई उपरोक्त जैविक उपचार के साथ हल्की जुताई करे तो अच्छे परिणाम की संभावना बढ़ती है।

मिर्च की फसल हेतु सलाह:

इस समय मिर्च के नर्सरी की सुरक्षा अति आवश्यक हैं। अतः रोप को फफूंद और कीट से बचाने के लिए 10 ग्राम थायोमेथोक्सोम 25 WG (ऐविडेंट या अरेवा) के साथ कासुगामायसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP (कोनिका) 30 ग्राम प्रति पंप का छिड़काव करें।

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