- आलू की फसल में कवक जनित एवं जीवाणु जनित रोगों का बहुत अधिक प्रकोप होता है।
- आलू की फसल इस समय 20 -25 दिनों की अवस्था में है और इस समय फसल में जड़ गलन तना गलन जैसे रोगों का प्रकोप बहुत अधिक होता है।
- जड़ गलन रोग तापमान के अचानक गिरने व बढ़ने के कारण होता है।
- जड गलन रोग की फंगस जमीन में पनपती है जिसके प्रकोप से आलू की फसल की जड़ें काली पड़ जाती हैं, जिससे पौधे आवश्यक पोषक तत्व नहीं ले पातें हैं तथा पौधे पीले होकर और मुरझा जाते हैं।
- तना गलन रोग एक मृदा जनित रोग है और इस रोग में आलू के पौधे का तना काला पड़ कर गल जाता है। इस रोग में तना मध्य भाग से चिपचिपा पानी निकालता है जिसके कारण मुख्य पोषक तत्व पौधे के ऊपरी भाग तक नहीं पहुंच पाते हैं एवं पौधा मर जाता है।
- इन रोगों के निवारण के लिए एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाजोल 18.3% SC@ 300 मिली/एकड़ या कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75% WP@ 400 ग्राम/एकड़ या थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W@ 300 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।
- जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- फसल की बुआई हमेशा मिट्टी उपचार एवं बीज़ उपचार करने के बाद ही करें।
गेहूँ की उन्नत खेती के लिए गेहूँ की उन्नत किस्मों का करें चुनाव
महिको Lok-1: इस किस्म की फसल अवधि 105-115 दिन होती है, पौधे की ऊंचाई माध्यम होती है, बीज़ दर 30-35 किलो/एकड़ तक रहती है, कल्लो की संख्या अच्छी होती है, बाली की लम्बाई अधिक होती है, दानों का आकार बड़ा एवं यह रस्ट रोग के प्रति प्रतिरोधी किस्म होती है। गेहूँ की यह पुरानी प्रजाति जो किसानों में अधिक लोकप्रिय है, इसकी कुल उपज 15-18 कुन्टल/एकड़ तक रहती है।
श्रीराम सुपर 111: इस किस्म की फसल अवधि 115-120 दिन की होती है, पौधे की ऊंचाई 107 सेमी होती है, बीज़ दर 40 किलो/एकड़ तक रहती है, कल्लो की संख्या अधिक होती है, बाली लम्बी तथा प्रति बाली दानो की संख्या अधिक एवं दानों का आकार बड़ा रहता है। यह किस्म रस्ट रोग के प्रति प्रतिरोधी होती है एवं इसमें कुल उपज 22-25 कुन्टल/एकड़ प्राप्त होती है।
Shareगेहूँ की उन्नत किस्में तथा इनके गुण एवं विशेषताएं
महिको गोल: इस किस्म की फसल अवधि 130-135 दिन होती है तथा कुल उपज 18-20 कुन्टल/एकड़ तक रहती है। इस किस्म के पौधे की ऊंचाई 100-110 सेमी होती है, बीज़ दर 40 किलो/एकड़, कल्लो की संख्या 8 से 12, बाली की लम्बाई 14 से 16 सेमी, प्रति बाली दानो की संख्या 70-90 दाने, आकार में बड़े एवं रस्ट रोग के प्रति प्रतिरोधी होते हैं।
महिको मुकुट प्लस MWL 6278: इस किस्म में फसल अवधि 110-115 दिन, बीज़ दर 40 किलो, पौधे की ऊंचाई 105-110 सेमी, कल्लो की संख्या अधिक, अधिक एवं लम्बी बाली, प्रति बाली दानो की संख्या अधिक, दानो का आकार मध्यम बड़ा, चमकदार दाना, रस्ट रोग के प्रति प्रतिरोधी तथा इसकी कुल उपज 15-18 कुन्टल/एकड़ तक प्राप्त होती है।
Shareचने की फसल कीट प्रबंधन कैसे करें?
- चने की फसल कीट प्रकोप के प्रति बहुत अधिक संवेदनशील होती है क्योंकि चने की फसल रबी के कम तापमान वाले मौसम में लगायी जाती है।
- चने की फसल में हेलिकोवरपा आर्मीजेरा (पोड बोरर) के प्रकोप का अभी अनुकूल समय है।
- इसके प्रकोप के कारण चने की पत्तियों को बहुत अधिक नुकसान होता है एवं अविकसित फलों एवं फूलों को भी यह कीट बहुत अधिक नुकसान पहुंचाते हैं।
- इस कीट के निवारण के लिए क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC@ 60मिली/एकड़ या नोवालूरान 5.25% + इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% SC@ 600 मिली/एकड़ या प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC@ 400 मिली/एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG@ 100 ग्राम/एकड़ की दर छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
चने की फसल में बुआई पूर्व राइज़ोबियम का उपयोग एवं लाभ
- दलहनी फसलों में राइज़ोबियम बैक्टेरिया का बहुत महत्व है। इस कल्चर में नाइट्रोज़न फिक्सिंग बैक्टीरिया को शामिल किया गया है।
- यह दलहनी फसल के पौधों की जड़ों में सहजीवी के रूप में रहता है और वायुमंडलीय नाइट्रोजन को सरल रूप में परिवर्तित करता है जिसे पौधे द्वारा इस्तेमाल किया जा सकता है।
- यह किसानों की मदद करता है क्योंकि यह पौधों को अच्छी तरह से विकसित करने में मदद करता है। यह पौधों को श्वसन जैसी विभिन्न जीवन प्रक्रियाओं में अच्छा प्रदर्शन करने में मदद करता है।
- इसका उपयोग बुआई से पहले मिट्टी उपचार एवं बीज़ उपचार के रूप में किया जाता है।
- 1 किलो राइज़ोबियम कल्चर को 50 किलो FYM या खेत की मिट्टी में मिलाकर उपयोग करें या 5 ग्राम/किलो की दर से बीज़ उपचार करें।
गेहूँ की बुआई से पहले कीटनाशकों के द्वारा बीज़ उपचार के फायदे
- गेहूँ की फसल बुआई से पूर्व कीटनाशकों से बीज़ उपचार बहुत आवश्यक होता है।
- गेहूँ की फसल में फॉल आर्मी वर्म, कटवर्म, रुट एफिड आदि कीटों का प्रकोप होता है।
- इन कीटों के निवारण के लिए गेहूँ की फसल में बुआई के पहले कीटनाशकों से बीज़ उपचार करना बहुत आवश्यक होता है।
- सायनट्रानिलीप्रोल 19.8% + थियामेंथोक्साम 19.8% FS@ 6 मिली/किलो बीज़ या इमिडाक्लोप्रिड 48% FS@ 9-10 मिली/किलो बीज़ या थियामेंथोक्साम 30% FS @ 4 मिली/किलो बीज़ से उपचारित करें।
- इन उत्पादों से बीज़ उपचार करने से गेहूँ में कीटों के प्रकोप को नियंत्रित किया जा सकता है।
लहसुन की फसल में जड़ सड़न रोग का नियंत्रण
- जड़ गलन रोग दरअसल तापमान के अचानक गिरने व बढ़ने के कारण होता है।
- इस रोग के फंगस जमीन में पनपते हैं जिसके प्रकोप से लहसुन की फसल की जड़ें काली पड़ जाती हैं, जिससे पौधे आवश्यक पोषक तत्व नहीं ले पाते तथा पौधे पीले होकर और मुरझा जाते हैं।
- इस रोग के निवारण के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 300 ग्राम/एकड़ या कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या कीटाजिन 48% EC@ 200 मिली/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- इसके अलावा फसल की बुआई हमेशा मिट्टी उपचार एवं बीज़ उपचार करने के बाद ही करें।
प्याज की फसल में पत्तों के किनारे जल रहे हों तो ऐसे करें बचाव
- प्याज़ की फसल में पत्तों के किनारे जल जाने की समस्या काफी देखने को मिलती है।
- इसका कारण कवक जनित या कीट जनित रोगों का प्रकोप एवं पोषक तत्व की कमी भी हो सकता है।
- यदि मिट्टी या पत्तों पर किसी भी प्रकार के कवक का आक्रमण होता है तो भी प्याज़ के पत्तों के किनारे जलते हैं।
- यदि फसल की जड़ों में किसी प्रकार के कीट का प्रकोप हो तो भी यह समस्या होती है।
- प्याज़ की फसल में नत्रजन या किसी महत्वपूर्ण पोषक तत्व की यदि कमी हो जाती है तो भी पत्ते जलने की समस्या हो जाती है।
- इसके निवारण के लिए निम्र उत्पादों का उपयोग लाभकरी होता है।
- कवक के निवारण के लिए कीटाजिन 48% EC@ 200 मिली/एकड़ या कासुगामाइसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ की दर उपयोग करें।
- कीट निवारण के लिए प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC@ 400 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG@ 80 ग्राम/एकड़ की दर उपयोग करें।
- पोषक तत्वों के कमी की पूर्ति के लिए सीवीड@ 400 मिली/एकड़ या ह्यूमिक एसिड 100 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
सरकार ने क्यों रद्द किए 43 लाख 90 हजार राशन कार्ड, जानें क्या थी वजह?
राशन कार्ड को लेकर सरकार की तरफ से बहुत बड़ा निर्णय लिया गया है। पब्लिक डिस्ट्रीब्युशन सिस्टम से सरकार ने 43 लाख 90 हजार राशन कार्ड को रद्द कर दिया है। बताया जा रहा है की ये राशन कार्ड फर्जी थे और इसी वजह से इन्हे रद्द कर दिया गया।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत सिर्फ योग्य लाभार्थियों को अनाज मिल सके इसी उद्देश्य से सरकार ने यह बड़ा कदम उठाया है। ख़बरों से अनुसार सरकार ने राशन कार्ड पर बड़ा कदम उठाने से पहले पिछले सात साल तक नजर रखा धोखाधड़ी को रोका जा सके। इसे रोकने में डिजिटलीकरण अभियान ने भी काफी मदद की है।
स्रोत: कृषि जागरण
Shareरबी फसलों में उकठा रोग का नियंत्रण
- यह रोग जीवाणु एवं कवक जनित है जो फसल को काफी नुकसान पहुंचाता है।
- बैक्टीरियल विल्ट संक्रमण के लक्षण संक्रमित पौधों के सभी भागों पर देखे जा सकते हैं।
- इसके कारण पत्तियां पीली हो जाती हैं और धीरे धीरे पूरा पौधा सूख कर मर जाता है।
- इसके कारण फसले गोल घेरे में सूखना शुरू हो जाती है।
- इस रोग का मुख्य कारण मौसम में बदलाव भी है।
- इस रोग के निवारण के लिए मिट्टी उपचार सबसे कारगर उपाय है।
- जैविक उपचार के रूप मायकोराइजा @ 4 किलो/एकड़ या ट्राइकोडर्मा विरिडी @ 1 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार करें।
- ट्राइकोडर्मा विरिडी@ 5 ग्राम/किलो बीज़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 5 ग्राम/किलो बीज़ की दर से बीज़ उपचार करें।
- स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव के रूप में उपयोग करें।