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इस रोग के लक्षण सबसे पहले पुरानी पत्तियों पर नजर आते हैं और धीरे धीरे पौधे के अन्य भाग पर असर दिखाई देने लगता है।
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इसके कारण मटर की पत्तियों के दोनो सतहों पर पाउडर जमा हो जाता है।
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इसके प्रभाव के कारण बाद में कोमल तनों, फली आदि पर चूर्णिल धब्बे बनते हैं।
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इसके कारण पौधे की सतह पर भी सफ़ेद चूर्ण दिखाई देता है और पौधे में फल या तो लगते नहीं हैं या फिर छोटे रह जाते हैं।
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इससे बचाव के लिए प्रतिरोधी किस्म का उपयोग करें। इस बीमारी के कुछ प्रतिरोधी किस्मों में प्रमुख हैं अर्का अजीत, PSM-5, जवाहर मटर-4, जेपी-83, जेआरएस-14 इत्यादि।
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इसके प्रकोप को खत्म करने के लिए हेक्साकोनाज़ोल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ या सल्फर 80% WDG @ 500 ग्राम/एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG@500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम की दर छिड़काव करें।
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