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किसान भाइयों, मूंग की फसल में विभिन्न प्रकार के रोग लगते हैं जो मूंग की उपज को प्रभावित करते हैं। इनमे से कुछ प्रमुख रोग निम्न हैं
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पत्ती धब्बा रोग: इस रोग के लक्षण पौधे के सभी भागों में पाए जाते हैं तथा पत्तियों पर इसका प्रभाव बहुत अधिक देखने को मिलता है l प्रारम्भ में रोग के लक्षण भूरे रंग के नाव के आकार के छोटे धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं, जो कि बड़े होकर पत्तियों के सम्पूर्ण भाग को झुलसा देते हैं तथा ऊतक मर जाते हैं जिससे पौधे का हरा रंग नष्ट हो जाता है।
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सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग:- इस रोग का संक्रमण पहले पुरानी पत्तियों से प्रारंभ होता है l पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं जिनके किनारे भूरे लाल रंग के होते हैं, बाद में धब्बे अनियमित आकार के हो जाते है। पत्तियां पीली हो जाती हैं और गिर जाती हैं। पुष्पीकरण के समय अत्यधिक प्रकोप पर पत्तियाँ झड़ जाती हैं तथा दाने सिकुड़े हुए एवं बदरंग नजर आते हैं l
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तना झुलसा रोग: रोग संक्रमण फसल की परिपक्वता के समय दिखाई देता है। इस रोग में भी पत्तियों पर अनियमित आकार के धब्बे दिखाई देते हैं।
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अंगमारी/झुलसा रोग: इस रोग में पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। तनों पर बैंगनी-काले रंग एवं फलियों पर लाल या भूरे रंग के अनियमित धब्बे दिखाई देते हैं। रोग की गंभीर अवस्था में तना कमजोर होने लगता है।
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उपयुक्त रोगों के लिए उचित प्रबंधन –
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रासायनिक प्रबंधन: थायोफिनेट मिथाइल 70% डब्ल्यूपी [मिल्ड्यू विप] @ 300 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% डब्ल्यूपी [कारमानोवा] @ 300 ग्राम या टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% डब्ल्यूजी [स्वाधीन ] @ 500 ग्राम या क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यूपी [जटायु] @ 400 ग्राम /एकड़ की दर से छिडकाव करें।
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जैविक प्रबंधन: इन सभी रोगों के जैविक उपचार के लिए ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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