कोरोना की दूसरी लहर में रबी फ़सलों की कटाई व थ्रेसिंग के दौरान बरतें ये सावधानियाँ

Take these precautions during the harvesting and threshing of the Rabi crops in the second wave of Corona

कोरोना वैश्विक महामारी के बढ़ते ग्राफ़ के बीच भारत में ये समय रबी फ़सलों की कटाई और थ्रेसिंग का है। ऐसे में कटाई और थ्रेसिंग के दौरान किसान भाइयों को संक्रमण से बचने के लिए सावधानियाँ बरतनी चाहिए। ग्रामोफ़ोन आज आपको ऐसी ही कुछ सावधानियों के बारे में बताने जा रहा है।

  • कटाई में लगे किसानों और श्रमिकों को कटाई के वक़्त आपस में 4-5 फिट की दूरी बनाकर रखनी चाहिए।  

  • इन कार्यों को करने में किसानों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं होनी चाहिए। कम किसान अलग अलग वक़्त पर इन कामों को कर सकते हैं। 

  • इन कार्यों में लगे किसानों को कार्य के दौरान मास्क ज़रूर लगाना चाहिए और कुछ कुछ समयांतराल पर साबुन से 20 सेकेंड तक हाथ धोते रहना चाहिए।

  • कार्य में लगे सभी लोगों को कार्य के दौरान, आराम करते समय, भोजन करते समय, काटी फ़सलों का भण्डारण और स्थानांतरण करते समय भी 4-5 फिट की दूरी बना कर रखनी चाहिए।

  • कटाई और थ्रेसिंग से जुड़े सभी मशीन को कुछ समयांतराल पर साफ़ (सेनेटाइज) किया जाना चाहिए साथ ही साथ परिवहन वाहन, बोरियां आदि सभी अन्य सामग्रियों को भी साफ़ करना चाहिए।

  • कटाई के बाद फ़सल का संग्रह खेत में कुछ कुछ दूरी बना कर करना चाहिए और प्रसंस्करण के कार्य को भी कम लोगों के द्वारा पूरा किया जाना चाहिए। 

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तरबूज की फसल में ना होने दें कैल्शियम की कमी

Importance of calcium for watermelon crop
  • तरबूज की फसल में कैल्शियम की कमी से कई शारीरिक विकार उत्पन हो जाते हैं।

  • इसके कारण तरबूज के फलों में सड़न पैदा हो जाती है। यह विकार कोई कीट या रोगाणु से नहीं बल्कि यह कैल्शियम की कमी के कारण होता है।

  • मिट्टी में अगर कैल्शियम की कमी हो तो तरबूज के पौधे में इसकी पूर्ति नहीं हो पाती है और फलों में इसकी कमी के लक्षण देखने को मिलते हैं।

  • इसकी कमी को दूर करने के लिए कैल्शियम नाइट्रेट @ 10 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें।

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जिंक एवं विटामिन पशुओं के लिए है काफी जरूरी

Loss due to deficiency of zinc and vitamins in animals

जिंक पशुओं में कई एंजाइम के निर्माण में मदद करता है। इसकी कमी से पशुओं में प्रोटीन संश्लेषण में कमी एवं कार्बोहाइड्रेट के उपापचय में बाधा उत्पन्न होने लगती है तथा त्वचा संबंधी विकार जैसे त्वचा रूखी, कड़ी एवं मोटी हो जाती है।

विटामिन ई एवं सेलेनियम पशुओं के वृद्धि एवं प्रजनन के लिये बहुत ही आवश्यक खनिज होते हैं। विटामिन ई एवं सेलेनियम दोनों ही शरीर को रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करते हैं।

कृषि एवं पशुपालन से संबंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों के साथ भी साझा करें।

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जीवाणु अंगमारी के फसलों पर ऐसे होते हैं लक्षण, जानें बचाव के उपाय

Crops will be harmed due to bacterial blight
  • इस रोग की वजह से फसल की पत्तियों के सतह पर भूरे, सूखे और उभरे हुए धब्बे बन जाते हैं।

  • पत्तियों की सतह पर ये धब्बे लाल रंग के सदृश्य पाए जाते हैं।

  • जब रोग का प्रकोप बढ़ता है तो ये धब्बे आपस में मिल जाते हैं, पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और आखिर में ये पत्तियां समय से पहले झड़ जाती हैं।

  • इससे नियंत्रण हेतु स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट आईपी 90% + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10% w/w @ 20 ग्राम प्रति एकड़ या कसुगामाइसिन 3% SL @ 300 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

  • या फिर कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP @ 250 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

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लहसुन के भंडारण के समय जरूर बरतें ये सावधानियां

What are the precautions to be taken for storing of garlic
  • आजकल सभी स्थानों पर लहसुन की कटाई लगभग पूर्ण हो चुकी है और किसान लहसुन को भंडारित करके रख रहे हैं।

  • लहसुन का भंडारण करने की स्थिति में किसान को कुछ सावधानियां बरतनी बहुत जरूरी होती है।

  • भंडारण के पहले लहसुन को धूप में अच्छे से सुखा लें। ऐसा करने से लहसुन में नमी बिलकुल खत्म हो जाएगी। दरअसल थोड़ी भी नमी होने से लहसुन के ख़राब होने की सम्भावना बढ़ जाती है।

  • यदि आपके पास पर्याप्त जगह हो और आप लहसुन को ज्यादा समय तक सुरक्षित रखना चाहते हों तो तने से कंद को न काटें, जब जरूरत हो तभी काटें। उन्हें एक गुच्छे में बांध कर फैला कर रख दें।

  • यदि कटाने की आवश्यकता हो तो सबसे पहले उन्हें 8-10 दिन तक तेज धूप में सूखने दें।

  • लहसुन के कंद की जड़ को तब तक सूखने दें जब तक जड़े बिखर न जाए।

  • इसके बाद कंद से तने के बीच में 2 इंच की दूरी रख कर ही काटें ताकी उनकी परत हटने पर कली ना बिखरे और कंद ज्यादा समय तक सुरक्षित रहे।

  • कई बार कुदाली या फावड़े से कंद को चोट लग जाती है। लहसुन के कंद की छटाई करते वक्त दाग लगे हुए कंद को अलग निकाल दें, बाद में इन्हीं दागी कंदो में सड़न पैदा हो कर अन्य दूसरे कंदों में भी सड़न फैल जाती है।

कृषि, फसल भंडारण एवं फसल बिक्री से संबंधित हर जानकारी आपको मिलती रहेगी ग्रामोफ़ोन एप पर। अपनी फसल बिक्री के लिए ग्राम व्यापार पर जाएँ और बिक्री सूची बनाएं।

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मूंग की फसल में इन उपायों को अपनाने से होगी फूल वृद्धि

What are the preventions to follow for flower growth in green gram crop
  • मूंग की फसल में पोषक तत्वों की कमी के कारण फूल गिरने की समस्या होती है।

  • अधिक मात्रा में फूल गिरने के कारण फसल उत्पादन बहुत प्रभावित होता है।

मूंग में अधिक फूल वृद्धि के लिए निम्र उत्पादों का छिड़काव करें

  • इस समस्या के निवारण के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • फूल गिरने से रोकने के लिए होमोब्रेसिनोलाइड @ 100 मिली/एकड़ या पिक्लोबूट्राज़ोल 40% SC @ 30 मिली/एकड़ की दर से उपयोग करें।

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तरबूज की फसल में मकड़ी के प्रकोप का ऐसे करें नियंत्रण

How to control mites in watermelon crop
  • मकड़ी छोटे एवं लाल रंग के कीट होते है जो तरबूज की फसल के कोमल भागों जैसे पत्ती, फूल, कली एवं टहनियों आदि पर भारी मात्रा में पाए जाते हैं।

  • तरबूज के जिन पौधों पर मकड़ी का प्रकोप होता है उन पौधे पर जाले दिखाई देते हैं।

  • यह कीट पौधे के कोमल भागों का रस चूसकर उनको कमज़ोर कर देते हैं जिसके कारण अंत में पौधा मर भी जाता है।

रासायनिक प्रबंधन: प्रोपरजाइट 57% EC @ 400 मिली/एकड़ या स्पाइरोमैसीफेन 22.9% SC @ 200 मिली/एकड़ या ऐबामेक्टिन 1.8% EC @150 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

जैविक प्रबधन: जैविक उपचार के रूप में मेट्राजियम @ 1 किलो/एकड़ की दर से उपयोग करें।

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डम्पिंग ऑफ रोग से फसलों को होता है काफी नुकसान, जानें इसका निदान

Dumping of disease causes great damage to crops, know its prevention
  • यह रोग किसी भी फसल के शुरुआती दौर में अंकुरण के समय लगता है।

  • इस रोग के कारण जड़ गलने लग जाती है और पौधे नष्ट होने लग जाते हैं।

  • मौसम की अनुकूलता, अधिक नमी एवं तापमान में परिवर्तन इस रोग का मुख्य कारण है।

  • इसके प्रबंधन के लिए थियोफैनेट मिथाइल 70% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 70% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या मेटालेक्सिल 4% + मेंकोजेब 64% WP@ 500 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।

  • जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ दर से उपयोग करें।

फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले घातक रोगों से जुड़ी ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन दबा के अपने मित्रों के साथ भी साझा करें।

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मिर्च की नर्सरी की तैयारी के पहले मिट्टी का सौरीकरण जरूर करें, जानें विधि

How to do solarization of soil before preparation of Chilli nursery
  • मिर्ची की नर्सरी मई माह के शुरुआती सप्ताह में लगायी जाती है।

  • इसके लिए खेत के चयन व खेत की तैयारी आदि का कार्य अप्रैल माह में करना बहुत आवश्यक होता है।

  • मिर्च की नर्सरी लगाने के लिए सबसे पहले मिट्टी का सौरीकरण करना बहुत आवश्यक होता है।

  • इस क्रिया में हल और पाटा चलाकर मिट्टी को ऊपर नीचे करके उसके बाद मिट्टी को पानी से गीला करना होता है।

  • इसके बाद लगभग 5-6 सप्ताह के लिए पूरे नर्सरी क्षेत्र पर 200 गेज (50 माइक्रोन) की पारदर्शी पॉलीथीन फैलाना होता है।

  • पॉलिथीन के किनारों को गीली मिट्टी की सहायता से ढंकना चाहिए जिससे हवा का प्रवेश पॉलीथिन के अंदर न होने पाए।

  • 5-6 सप्ताह के बाद पॉलीथिन शीट को हटा देना चाहिए।

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करेले की फसल में आएगी पौध गलन की समस्या, कर लें निवारण की तैयारी

How to manage plant rotting problem in bitter gourd crop
  • पौध गलन रोग अक्सर तापमान अचानक गिरने या फिर बढ़ने के कारण होता है और इसके फंगस जमीन में पनपते हैं।

  • यह एक मिट्टी जनित रोग है जो करेले के पौधे के तने को काला कर देता है जिससे तना गल जाता है। इस रोग में तने के मध्य भाग से चिपचिपा पानी निकलने लगता है जिसके कारण मुख्य पोषक तत्व पौधे के ऊपरी भाग तक नहीं पहुंच पाते हैं और इस वजह से पढ़े मर जाते हैं।

  • इनके निवारण के लिए एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाजोल 18.3% SC@ 300 मिली/एकड़ या कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75% WP@ 400 ग्राम/एकड़ या थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W @ 300 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।

  • जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • ध्यान रखें की फसल की बुआई हमेशा मिट्टी उपचार एवं बीज़ उपचार करके ही करें।

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