ओमेगा 3 से भरपूर अलसी से मिलते हैं फायदे

linseeds provide healthy benefits
  • अलसी या तीसी समसीतोष्ण प्रदेशों का पौधा है।

  • रेशेदार फसलों में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। इसके रेशे से मोटे कपड़े, डोरी, रस्सी और टाट बनाए जाते हैं।

  • इसके बीजों से तेल निकाला जाता है और तेल का प्रयोग वार्निश, रंग, साबुन, रोगन, पेंट तैयार करने में किया जाता है।

  • अलसी में ‘ओमेगा-3’ पाया जाता है जिस के उपयोग से हृदय को रक्त पहुंचाने वाली वाहिनी सिकुड़ती नहीं है।

  • अलसी रक्त के कोलेस्ट्रॉल को 9 से 18 प्रतिशत कम करती है। इससे गठिया की समस्या से भी आराम मिलता है।

  • इससे ‘ट्राईग्लिसराइड’ का प्रमाण कम होता है साथ ही इसके सेवन से कर्करोग नहीं होता है।

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रोगों से बचाने के साथ साथ पौधों को पोटेशियम से मिलते हैं कई और लाभ

Potassium contributes to plant nutrition
  • पोटेशियम पत्तियों में शर्करा और स्टार्च के निर्माण में सहायता करता है।

  • यह दोनों के आकार तथा भार को बढ़ाता है साथ ही नाइट्रोजन की दक्षता को भी बढ़ाता है।

  • पोटेशियम कोशिका पारगम्यता में सहायक होता है कार्बोहाइड्रेट के स्थानांतरण में सहायता करता है।

  • पोटेशियम पौधों में रोगों के प्रति प्रतिरोधिता को बढ़ाता है और प्रोटीन संक्ष्लेषण को बढ़ाता है।

  • पौधे की सम्पूर्ण जल व्यवस्था को नियंत्रित करने में भी पोटेशियम सहायक होता है।

  • इसके अलावा यह पौधों के तने को कठोरता प्रदान करता है और गिरने से बचाता है।

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फसलों में फास्फोरस की कमी के सामान्य लक्षण को पहचानें

What are the common symptoms of phosphorus deficiency
  • फास्फोरस की कमी से पौधों की पत्तियों का रंग बैंगनी या गहरा हो जाता है।

  • पुरानी पत्तियां शुरुआत में पीली और बाद में लाल-भूरी पड़ हो जाती हैं।

  • पत्तियों के सिरे सूखने लगते हैं और पौधों की वृद्धि लगातार कम होने लग जाती है।

  • इसकी वजह से पौधे बौने, कमजोर एवं कम पत्तियों वाले हो जाते हैं और जड़ों का फैलाव भी कम होता है।

  • इससे पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।

  • दलहनी फसलों में जीवाणुओं द्वारा नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कम होता है।

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बैटरी पंप की मदद से फसलों में जल छिड़काव करने से मिलेंगे कई लाभ

Importance of water spraying by a battery-based pump
  • आजकल किसान अपनी खेती को आधुनिक बनाने के लिए बहुत से यंत्रों का उपयोग करते हैं।

  • इनमें बैटरी आधारित जल छिड़काव यंत्र भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

  • यह एक प्रकार का छिड़काव यंत्र ही है जिसका उपयोग कीटनाशक छिड़काव में भी किया जा सकता है।

  • इसके उपयोग ऐसे किसानों के लिए लाभकारी है जिनके पास पानी की कमी होती है क्योंकि इससे पानी बर्बाद नहीं होता है।

कृषि एवं कृषि उत्पादों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। उपर्युक्त बताये गए बैटरी पंप की खरीदी के लिए एप के बाजार विकल्प पर जाएँ।

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मिर्च की इन उन्नत किस्म के बीजों का करें चयन, मिलेगा बंपर उत्पादन

Advanced varieties of chilies and their properties

एडवांटा AK-47: इस किस्म में पौधा आधा सीधा होता है, पहली फल परिपक्वता 60-65 दिनों में होती है, फल का रंग गहरा लाल एवं गहरा हरा होता है, लंबाई 6-8 सेंटीमीटर एवं मोटाई 1.1-1.2 सेंटीमीटर होती है। इस किस्म में तीखापन बहुत अधिक होता है, इसके फल को गिला एवं सुखाकर दोनों प्रकार से बेचा जा सकता है। यह किस्म लीफ कर्ल वायरस के लिए प्रतिरोधी होती है।

BASF आर्मर: इस किस्म में पौधा आधा सीधा व मजबूत होता है। इसकी पहली फल परिपक्वता 50-55 दिनों में होती है, फल का सतह भाग अर्द्ध झुर्रीदार होते हैं, ताज़े हरे फल की तुड़ाई 8-10 दिनों के अंतराल से होती रहती है एवं फल की मोटाई लंबाई 9X1 सेंटीमीटर होती है। इस किस्म में तीखापन बहुत अधिक होता है, यह लाल सुर्ख करके बेची जाती है। यह किस्म लीफ कर्ल वायरस के लिए प्रतिरोधी होती है।

दिव्या शक्ति (शक्ति-51): इस किस्म में पौधा मजबूत और अधिक शाखाओं वाला होता है। इस किस्म की पहली फल परिपक्वता 42-50 दिनों में हो जाती है, फल का रंग गहरा हरा होता है, लंबाई 6-8 सेंटीमीटर व मोटाई 0.7-0.8 सेंटीमीटर होती है। इस किस्म में तीखापन अधिक होता है, यह अत्यधिक गर्म और गहरे लाल रंग की होती है। इसके फल सूखने पर इसे बाजार में अच्छी कीमत मिलती है। यह किस्म लीफ कर्ल वायरस के लिए 100% प्रतिरोधी होती है।

हु वाज सानिया 03: इस किस्म में पौधा सीधा एवं पहली फल परिपक्वता 50-55 दिनों में हो जाती है। इसके परिपक्व फल लाल एवं अपरिपक्व फल पीले-हरे होते हैं। फल की लम्बाई 15-17 सेंटीमीटर एवं मोटाई 0.3 MM होती है। इस किस्म में तीखापन अधिक होता है और यह किस्म सुखाने के लिए उपयुक्त होती है।

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क्या होती गोबर और गोमूत्र की मदद से की जाने वाली जीरो बजट खेती?

zero budget farming
  • जीरो बजट खेती एक प्रकार से प्राकृतिक खेती होती है।

  • यह खेती देसी गाय के गोबर एवं गोमूत्र पर निर्भर होती है।

  • इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है।

  • इसमें रासायनिक खाद के स्थान पर किसान गोबर से तैयार की हुई खाद बनाते हैं।

  • देसी प्रजाति के गाय के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत तथा घनजीवामृत बनाया जाता है।

  • इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है।

  • जीवामृत का महीने में एक अथवा दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है।

  • जबकि जीवामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में कि जा सकता है।

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बेल वाली फसलों के लिए कई प्रकार के फायदे पहुंचाता है छाया घर

What is the importance of shade house for bailed crops
  • छाया घर एक जालों एवं अन्य बुनी हुई सामग्री से बना हुआ ऐसा ढांचा होता है जिसमें खुली जगहों से आवश्यक धूप, नमी व वायु का प्रवेश होता है।

  • यह पौधे के विकास के लिए सहायक तथा उचित सूक्ष्म वातावरण बनाता है।

  • यह बेलबूटेदार, सब्ज़ियों एवं पौधों की खेती में मदद करता है।

  • कीट प्रकोप के विरुद्ध सुरक्षा के लिये भी इसका उपयोग किया जाता है।

  • आंधी, वर्षा, ओले व पाले जैसे मौसम के प्राकृतिक प्रकोपों के विरुद्ध भी यह सुरक्षा प्रदान करता है।

  • गर्मियों के दिनों में पौधों की मृत्यु दर कम करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।

  • टिशू कल्चर के पौधों की मज़बूती के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।

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मल्चिंग का ऐसे करें उपयोग, फसलों को मिलेंगे कई लाभ

mulching benefits

खेत में लगायी गयी फसल को सुरक्षा प्रदान करने के लिए पौधे के चारो और घास या फिर प्लास्टिक की एक परत बिछाई जाती है इसी को मल्चिंग कहा जाता है।

मल्चिंग दो प्रकार की होती है

प्लास्टिक मल्चिंग विधि: जब खेत में लगाए गए पौधों की जमीन को चारों तरफ से प्लास्टिक शीट द्वारा अच्छी तरह ढक दिया जाता है, तो इस विधि को प्लास्टिक मल्चिंग कहा जाता है। इस तरह पौधों की सुरक्षा होती है और फसल उत्पादन भी बढ़ता है। बता दें कि यह शीट कई प्रकार और कई रंग में उपलब्ध होती है।

घास मल्चिंग विधि: इस विधि में खेत से निकले बीज़ रहित घास को पौधो के चारों तरफ बिछा दिया जाता है जिससे तेज़ रौशनी एवं कम पानी में भी फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

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बायोगैस के हैं कई फायदे, जानें कहाँ कहाँ कर सकते हैं उपयोग?

There are many benefits of biogas
  • बायोगैस सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा की तरह ही एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है।

  • यह गैस का वह मिश्रण है जो ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में जैविक सामग्री के विघटन से उत्पन्न होती है।

  • इसका मुख्य घटक हाइड्रोकार्बन है, जो ज्वलनशील है और जिसे जलाने पर ताप और ऊर्जा मिलती है।

  • बायोगैस का उत्पादन एक जैव-रासायनिक प्रक्रिया द्वारा होता है, जिसके तहत कुछ विशेष प्रकार के बैक्टीरिया जैविक कचरे को उपयोगी बायोगैस में बदलते हैं।

  • इस उपयोगी गैस का उत्पादन जैविक प्रक्रिया (बायोलॉजिकल प्रोसेस) द्वारा होता है, इसलिए इसे जैविक गैस (बायोगैस) कहते हैं। मिथेन गैस बायोगैस का मुख्य घटक है।

  • बायोगैस ऊर्जा का एक ऐसा स्रोत है, जिसका उपयोग बार-बार किया जा सकता है।

  • इसका इस्तेमाल घरेलू तथा कृषि कार्यों के लिए भी किया जा सकता है।

  • बायोगैस संयंत्र से प्राप्त गैस का उपयोग भोजन पकाने व रौशनी करने के लिए किया जाता है।

  • बायोगैस से द्वि ईंधन इंजन चलाकर 100 प्रतिशत तक पेट्रोल एवं 80 प्रतिशत तक डीजल की बचत भी की जा सकती है।

  • इस तरह के इंजनों का उपयोग बिजली उत्पादन एवं कुएँ से पानी पंप करने में किया जाता है।

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मिट्टी परीक्षण में ऑर्गेनिक कार्बन का क्या है महत्व?

Importance of Organic Carbon for soil
  • ऑर्गेनिक कार्बन मिट्टी में ह्यूमस के निर्माण में सहायता करता है। इससे मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार होता है और उर्वरता को बनाए रखता है।

  • मिट्टी में इसकी अधिकता होने से मिट्टी की भौतिक और रासायनिक गुणवत्ता बढ़ जाती है। मिट्टी की भौतिक गुणवत्ता जैसे मिट्टी की संरचना, जल धारण क्षमता, आदि को कार्बनिक कार्बन द्वारा बढ़ाया जाता है।

  • इसके अतिरिक्त पोषक तत्वों की उपलब्धता, स्थानांतरण एवं रूपांतरण और सूक्ष्मजीवी पदार्थों व जीवों की वृद्धि के लिए भी जैविक कार्बन बहुत उपयोगी होता है।

  • यह पोषक तत्वों की लिंचिंग (भूमि में नीचे जाना) को भी रोकता है।

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