कपास समृद्धि किट से कपास की फसल एवं मिट्टी को मिलेंगे कई लाभ

Benefits of cotton samridhi kit to cotton crop and soil
  • ग्रामोफ़ोन लेकर आया है ‘कपास समृद्धि किट’ जो कपास की फसल के लिए सुरक्षा कवच की तरह कार्य करती है। इस किट की मदास से कपास की फसल को वो सब कुछ एक साथ मिलेगा जिसकी जरूरत कपास की फसल को होती है। इस किट में कई उत्पाद संलग्न हैं, इन सभी उत्पादों को 50-100 किलो FYM के साथ मिश्रित कर मिट्टी में मिलाने से, फसल को सम्पूर्ण सुरक्षा मिलती है। इस किट का उपयोग ड्रिप एवं मिट्टी उपचार दोनों के लिए किया जा सकता है।

  • यह मिट्टी एवं फसल में तीन प्रमुख तत्व नाइट्रोजन, पोटाश एवं फास्फोरस की पूर्ति में सहायक होता है। जिससे पौधे को समय पर आवश्यक तत्व मिल जाते हैं, बढ़वार अच्छी होती है, फसल का उत्पादन बढ़ता है साथ ही मिट्टी में भी पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि होती है।

  • जिंक सोल्यूबिलाइजिंग बैक्टीरिया मिट्टी में जिंक की उपलब्धता में सुधार करता है और फसल की पैदावार बढ़ जाती है। जिंक बैक्टीरिया की आवश्यकता प्रकाश संश्लेषण, और पौधे में हार्मोन को बढ़ावा देने के लिए एवं पौधों के विकास के जैव संश्लेषण के लिए होती है।

  • ट्राइकोडर्मा फफूंद पर आधारित घुलनशील जैविक कवकनाशी है, जो मिट्टी और बीज में होने वाले रोगजनकों को मारता है जिसकी वजह से जड़ सड़न, तना गलन, उकठा रोग जैसी गंभीर बीमारियों से रोकथाम होती है। ट्राइकोडर्मा पौधों के जड़-विन्यास क्षेत्र (राइजोस्फेयर) में अनवरत कार्य करने वाला सूक्ष्म जीव है। इसके अलावा ये सूत्रकृमि से होने वाले रोगों से भी पौधों की रक्षा करते हैं।

  • ह्यूमिक एसिड मिट्टी की संरचना में सुधार करके जल धारण क्षमता में वृद्धि करता और सफेद जड़ के विकास को बढ़ाता है। समुद्री शैवाल पौधों को पोषक तत्व ग्रहण करने में मदद करता है और अमीनो एसिड प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया को बढ़ाता है। जिसके परिणामस्वरूप बेहतर वनस्पति विकास होता है और पौधों के स्वास्थ्य में भी सुधार होता है। मायकोराइज़ा पौधे की प्रत्येक अवस्था जैसे फूल, फल, पत्ती आदि की वृद्धि में मदद करता है साथ ही साथ सफेद जड़ के विकास में भी मदद करता है।

कपास समृद्धि किट ऑर्डर करने के लिए क्लिक करें

फसल की बुआई के साथ ही अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

Share

मिर्च की रोपाई के पूर्व मिट्टी उपचार के रूप में जरूर करें पोषण प्रबंधन

How to manage nutrition as soil treatment before transplanting chilli
  • मिर्च की रोपाई के पहले पोषण प्रबंधन करने के बहुत लाभ हैं। पोषण प्रबंधन करने से फसल में पोषक तत्वों की कमी नहीं होती है एवं फसल का विकास बहुत अच्छे से होता है।

  • रोपाई के पूर्व पोषण प्रबधन करने के लिए यूरिया @ 45 किलो/एकड़ + एसएसपी @ 200 किलो + MOP @ 50 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी में भुरकाव करें।

  • मिर्च की फसल में यूरिया नाइट्रोज़न की पूर्ति का सबसे बड़ा स्रोत है। इसके उपयोग से पत्तियों में पीलापन और सूखने जैसी समस्या नहीं आती है। यूरिया प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को भी तेज़ करता है।

  • एसएसपी जड़ वृद्धि और विकास में सुधार करने में मदद करता है जो पोषक तत्व और पानी के अवशोषण के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। एसएसपी मिट्टी के कटाव में सुधार करता है और जल धारण क्षमता को बढ़ाता है और जड़ वृद्धि को बढ़ाता है जिससे फसल की उपज में वृद्धि होती है। यह कैल्शियम एवं सल्फर का भी अच्छा स्त्रोत है।

  • मिर्च के लिए पोटाश एक अति आवश्यक पोषक तत्व है। पोटाश पौधों में संश्लेषित शर्करा को फलों तक पहुंचाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पोटाश प्राकृतिक नत्रजन की कार्य क्षमता को बढ़ावा देता है।

फसल की बुआई के साथ ही अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

Share

कपास की फसल में बुआई के बाद उर्वरक प्रबंधन है जरूरी, मिलेंगे कई लाभ

How to manage fertilizer after sowing in cotton crop and its benefits
  • कपास की बुआई के 10-15 दिनों में उर्वरक प्रबंधन करने से फसल की वृद्धि एक समान होती है।

  • इससे फसल वातावरणीय तनाव से सुरक्षित रहती है और रोगो से लड़ने की क्षमता भी विकसित हो जाती है।

  • बुआई के बाद उर्वरक प्रबधन के रूप में यूरिया@ 40 किलो/एकड़ + DAP@50 किलो/एकड़ + ज़िंक सल्फेट@ 5 किलो/एकड़ + सल्फर @ 5 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें।

  • कपास की फसल में यूरिया नाइट्रोज़न की पूर्ति का सबसे बड़ा स्त्रोत है। इसके उपयोग से पत्तियों में होने वाली समस्या जैसे पीलापन एवं सूखने जैसी समस्या नहीं आती है, यूरिया प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को भी तेज़ करता है।

  • डाय अमोनियम फॉस्फेट (DAP) का उपयोग फास्फोरस की कमी की पूर्ति के लिए किया जाता है। इसके उपयोग से मिट्टी का pH मान संतुलित रहता है एवं पत्तियों के बैंगनी रंग के होने की समस्या नहीं होती है।

  • जिंक सल्फेट के उपयोग के द्वारा मिट्टी एवं फसल में जिंक की कमी नहीं होती है।

    यह जिंक क्लोरोफिल और कुछ कार्बोहाइड्रेट के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

  • पौधों में प्रोटीन, एंजाइम, विटामिन और क्लोरोफिल बनाने वाला सल्फर (एस) एक आवश्यक तत्व है। यह जड़ों के विकास और नाइट्रोजन के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

फसल की बुआई के साथ ही अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

Share

सोयाबीन की बुआई के पूर्व जरूरी है मिट्टी उपचार, जानें पूरी प्रक्रिया

How to treat soil before sowing soybean
  • सोयाबीन की फसल में बुआई के पूर्व मिट्टी उपचार बहुत आवश्यक होता है।

  • मिट्टी उपचार दो बार किया जाता है, पहला उपचार पहली बारिश के पहले या बाद में, वहीं दूसरा उपचार बुआई के पहले किया जाता है

  • इसके लिए निम्न तरीके अपनाये जाते हैं

  • बीजों के अच्छे अंकुरण के लिए मिट्टी का भुरभुरा होना आवश्यक है, पिछली फसल की कटाई के बाद एक जुताई सामान्य हल से तथा 2-3 जुताई हैरो की सहायता से करें।

  • पकी हुई गोबर की खाद की 50 किलो मात्रा को मेट्राजियम कल्चर की 1 किलो मात्रा/एकड़ को मिलाकर सफ़ेद ग्रब का जैविक नियंत्रण आसानी से किया जा सकता है।

  • बुआई के पहले मिट्टी उपचार करने के लिए किसान सोयबीन समृद्धि किट का उपयोग कर सकते हैं। इस किट में कई उपयोगी उत्पाद हैं जो फसल में पोषक तत्वों की पूर्ति करने में मदद करते हैं।

  • इस किट में पीके बैक्टीरिया का कंसोर्टिया है जो पोटाश एवं फॉस्फोरस की पूर्ति करते हैं, इसमें ट्राइकोडर्मा विरिडी है जो जड़ गलन एवं तना गलन जैसे रोगों से फसल की रक्षा करता है। इसमें ह्यूमिक एसिड, समुद्री शैवाल, अमीनो एसिड एवं मायकोराइज़ा भी है। यह प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को तेज़ करता है एवं सफेद जड़ों का विकास करता है। राइज़ोबियम सोयाबीन कल्चर में नाइट्रोजन का जीवाणु पाया जाता है जो सोयाबीन की जड़ों में रह कर वायुमंडलीय नाइट्रोज़न को स्थिर कर पौधों को प्रदान करता है और पौधों को अच्छी तरह से विकसित करने में मदद करता है।

फसल की बुआई के साथ ही अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

Share

सोयाबीन की फसल में बीज उपचार से क्या लाभ होते हैं?

What are the benefits of seed treatment in soybean crop
  • सोयाबीन की फसल में बुआई से पहले बीज उपचार करना बहुत आवश्यक होता है।

  • बीज़ उपचार जैविक एवं रासयनिक दोनों विधियों से किया जा सकता है।

  • सोयाबीन में बीज़ उपचार कवक नाशी एवं कीट नाशी दोनों से किया जाता है।

  • कवक नाशी से बीज़ उपचार करने के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 2.5 ग्राम/किलो बीज़ या कार्बोक्सिन 17.5% + थायरम 17.5% @ 2.5 मिली/किलो बीज़ से उपचारित करें या ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 5-10 ग्राम/किलो बीज़ का उपयोग करें।

  • कीटनाशी से बीज़ उपचार करने के लिए थियामेंथोक्साम 30% FS @ 4 मिली/किलो बीज़ या इमिडाक्लोरोप्रिड 48% FS @ 4-5 मिली/किलो बीज़ से बीज़ उपचार करें।

  • सोयाबीन फसल में नाइट्रोज़न स्थिरीकरण को बढ़ाने के लिए राइजोबियम @ 5 ग्राम/किलो बीज़ से उपचारित करें।

  • कवकनाशी से बीज़ उपचार करने से सोयाबीन की फसल उकठा रोग और जड़ सड़न रोग से सुरक्षित रहती है।

  • इससे बीज का अंकुरण सही ढंग से होता है और अंकुरण प्रतिशत भी बढ़ता है।

  • सोयाबीन की फसल का प्रारंभिक विकास समान रूप से होता है।

  • राइज़ोबियम से बीज़ उपचार सोयाबीन की फसल की जड़ों में गाठों (नॉड्यूलेशन) को बढ़ाता है एवं अधिक नाइट्रोज़न का स्थिरीकरण करता है।

  • कीटनाशकों से बीज़ उपचार करने से मिट्टी जनित कीटों जैसे सफ़ेद ग्रब, चींटी, दीमक आदि से सोयाबीन की फसल की रक्षा होती है।

  • प्रतिकूल परिस्थितियों (कम/उच्च नमी) में भी अच्छी फसल प्राप्त होती है।

फसल की बुआई के साथ ही अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

Share

करेले की फसल में हो रहा पाउडरी मिल्ड्यू का प्रकोप, ऐसे करें नियंत्रण

How to control powdery mildew in bitter gourd
  • पाउडरी मिल्ड्यू एक कवक रोग है जो करेले की पत्तियों को प्रभावित करता है। इस रोग को भभूतिया रोग के रूप में भी जाना जाता है।

  • पाउडरी मिल्ड्यू में करेले के पौधे की पत्तियों की ऊपरी सतह पर सफेद पाउडर दिखाई देता है।

  • जो सफेद पाउडर पत्तियों के ऊपर जमा होते हैं और इसके कारण प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया काफी प्रभावित होती है।

  • शुष्क मौसम या हल्की बरसात पाउडरी मिल्ड्यू को फैलने में मदद करता है एवं अनियमित ओस या हवा के कारण भी यह रोग बहुत फैलता है।

  • इस रोग के नियंत्रण के लिए एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% SC@ 300 मिली/एकड़ या एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 23% SC @ 200 मिली/एकड़ या मायक्लोबुटानिल 10% WP@ 100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

फसल की बुआई के साथ ही अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

Share

सोयाबीन की फसल में राइजोबियम का होता है ख़ास महत्व

Rhizobium has special importance in soybean crop
  • सोयाबीन की जड़ों में विशेष प्रकार का जीवाणु पाया जाता है जिसे राइजोबियम कहते हैं।

  • राइजोबियम सोयाबीन की फसल को फायदा पहुंचाने वाला एक महत्वपूर्ण जीवाणु है, यह एक सहजीवी जीवाणु है।

  • राइजोबियम जीवाणु सोयाबीन की फसल की जड़ में सहजीवी के रूप में रहकर वायुमंडलीय नाइट्रोज़न को नाइट्रेट के रूप में परिवर्तित करके सोयाबीन की फसल में नाइट्रोजन की पूर्ति करता है।

  • राइजोबियम जीवाणु मिट्टी में स्थापित होने के बाद सोयाबीन की फसल की जड़ तंत्र में प्रवेश करके छोटी गाठें बना लेते हैं।

  • सोयाबीन के पौधे की जड़ों की गाठों में जीवाणु बहुत अधिक संख्या में होते हैं। पौधे का स्वस्थ होना गाठों की संख्या पर निर्भर करता है।

  • इन जीवाणुओं द्वारा नाइट्रोजन को मिट्टी में स्थिर किया जाता है, यह नाइट्रोजन अगली फसल को भी प्राप्त होती है, विशेषकर जब हम गेहूँ की फसल लगाते हैं तब नाइट्रोजन युक्त उर्वरक का कम प्रयोग कर सकते हैं।

  • दो प्रकार से, राइज़ोबियम का उपयोग फसलों में किया जा सकता है बीज़ उपचार और मिट्टी उपचार के रूप में।

कृषि एवं कृषि उत्पादों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। उन्नत कृषि उत्पादों की खरीदी के लिए ग्रामोफ़ोन के बाजार विकल्प पर जाना ना भूलें।

Share

चुनें सोयाबीन के उन्नत बीज किस्म और बंपर उपज से कमाएं जबरदस्त मुनाफ़ा

Soybean Advanced Seed Variety

जे एस 2034, जे एस 95-60 

  • फसल पकने की अवधि 87-88 दिन

  • उपज 8-10 क्विंटल/एकड़ 

  • कई रोगो के प्रति प्रतिरोधी किस्म

  • कम और मध्यम बारिश एवं हल्की व मध्यम मृदा के लिए उपयुक्त

जे एस 2029 

  • जेएस 2029 एक नई किस्म हैं जो JNKVV  द्वारा विकसित की गई है

  • उपज लगभग 10 -12 क्विण्टल/एकड़

  • फसल पकने की अवधि 90-95 दिन

  • इसके 100 दानों का वजन 13 ग्राम होता हैं

जे एस 93-05

  • फसल पकने की अवधि: अगेती, 90-95 दिन

  • उपज  8 -10  क्विंटल/एकड़ 

  • 100 दाने का वजन 13 ग्राम से ज्यादा 

जे एस-335

  • फसल पकने की अवधि 95-110 दिन

  • अधिक शाखाओं वाले पौधे

  • उपज 10 -12  क्विंटल/एकड़

  • 100 दाने का वजन 10-13 ग्राम

जे एस 97-52

  • अवधि: 100-110 दिन

  • उपज 10 -12  क्विंटल/एकड़

  • 100 दाने का वजन 12-13 ग्राम 

  • रोग एवं कीट के प्रति सहनशील

  • अधिक नमी वाले क्षेत्रों के लिये उपयोगी 

जे एस 72-44

  • अवधि: 95-105 दिन

  •  पौधा सीधा और करीब 70 सेमी लम्बा होता है ।

  • उपज क्षमता 10 -12  क्विंटल/एकड़

जे एस 90-41

  • अवधि: 90-100 दिन  

  • फूल बैंगनी रंग के होते है तथा हर फली में 4 दाने होते हैं 

  • उपज क्षमता 10 -12  क्विंटल/एकड़

अहिल्या-3, अहिल्या-4

  • अवधि: 99-105 दिन 

  • उपज क्षमता 10 -12  क्विंटल/एकड़ 

  •  विभिन्न कीट-रोगों के लिए प्रतिरोधी किस्म

कृषि एवं कृषि उत्पादों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। उन्नत कृषि उत्पादों की खरीदी के लिए ग्रामोफ़ोन के बाजार विकल्प पर जाना ना भूलें। उपर्युक्त बताये गए बीजों की खरीदी के लिए एप के बाजार विकल्प पर जाएँ।

Share

करेले की फसल को पोटाश से मिलते हैं कई लाभ

Importance of Potash in bitter gourd crops
  • करेले की फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने में पोटाश तत्व का महत्वपूर्ण योगदान होता है।

  • पोटाश की संतुलित मात्रा करेले की फसल में बहुत सारी प्रतिकूल परिस्थितियों जैसे बीमारियां, कीट प्रकोप, पोषण की कमी आदि के प्रति प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।

  • करेले के फल में चमक, वज़न बढ़ाने में भी यह सहायक होता है एवं फसलों की पैदावार एवं की गुणवत्ता को भी यह बेहतर करता है।

  • पोटाश फसल में जड़ के अच्छे विकास एवं मज़बूत तने के विकास में मदद करता है जिसके कारण पौधे की मिट्टी में पकड़ मजबूत हो जाती है।

  • पोटाश की संतुलित मात्रा मिट्टी में जल धारण क्षमता का विकास करती है।

  • इसके कारण पत्तियों का रंग गहरा हो जाता है।

  • इसकी कमी से करेले की फसल का विकास प्रभावित होता है।

  • पोटाश की कमी से फसल की पुरानी पत्तियां किनारे से पीली पड़ने लग जाती हैं एवं पत्तियों के ऊतक मर जाते है और बाद में पत्तियां सूख जाती हैं।

फसल की बुआई के साथ ही अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

Share

कपास की बुआई के समय पोषक तत्व का ऐसे करें उपयोग

How to use nutrient at the time of sowing in cotton crop
  • बुआई के समय या मानसून की पहली बौछार के बाद कपास की फसल में पोषक तत्वों का प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।

  • इस तरह से पोषण प्रबंधन करने से फसल का अंकुरण अच्छा होता है एवं फसल को एक अच्छी शुरुआत मिलती है।

  • पोषण प्रबंधन के लिए यूरिया @ 30 किलो/एकड़ + डीएपी @ 50 किलो/एकड़ + एमओपी @ 30 किलो/एकड़ मिट्टी में मिलाएं।

  • इस के साथ अंतिम जुताई के बाद बुआई के समय या मानसून की पहली बौछार के बाद ग्रामोफ़ोन की पेशकश ‘कपास समृद्धि किट’ जिसकी मात्रा 4.2 किलो है, को 50 किलो अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में प्रति एकड़ की दर से अच्छी तरह मिलाकर खेत में बिखेर दें और इसके बाद एक हल्की सिंचाई कर दें।

  • इस किट में NPK बैक्टीरिया + ZnSB + ट्राइकोडर्मा विरिडी + समुद्री शैवाल, एमिनो, ह्यूमिक और माइकोराइजा जैसे कई लाभकारी उत्पाद शामिल हैं।

फसल की बुआई के साथ ही अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

Share