खरीफ की फसलों में बीज उपचार के दौरान अपनाई जाने वाली सावधानियाँ

Precautions to be followed during seed treatment in Kharif crops
  • खरीफ सीजन में मुख्य रूप से कपास, मिर्च, सोयाबीन, टमाटर आदि फसलों की बुआई की जाती है।

  • इन फसलों से अच्छे उत्पादन के लिए बुआई के पहले बीज़ उपचार करना बहुत लाभकारी होता है परंतु बीज उपचार करते समय सावधानी रखना बहुत आवश्यक होता है।

  • बीज उपचार को एफ.आई.आर (FIR) के क्रम में, यानी सबसे पहले कवकनाशी का उपयोग उसके बाद कीटनाशक का और सबसे आखिर में किसी भी जैविक उत्पाद (PSB / राइजोबियम) का उपयोग करें।

  • बीज़ को एक मिट्टी के बर्तन या पालीथीन शीट पर, फैला कर कवक नाशक एवं कीट नाशक के सूखे या तरल रूप को बीजों पर अच्छे से बिखेर कर मिला दें। इस प्रकार के उपचार में एक बात का ध्यान रखें कि रसायन अच्छे से बीजों पर चिपक जाये।

  • बीज उपचार की दूसरी विधि में रसायनों को बीजों पर चिपकाने वाले उत्पाद के साथ मिलाकर बीजों को उपचारित करें।

  • दवा की मात्रा या रसायन को बीजों पर लेपित करने के लिए आवश्यकता अनुसार पानी का उपयोग करें।

  • कवकनाशी एवं कीटनाशक की सुझाई गयी मात्रा का ही उपयोग करें।

  • बीजों को बुआई के समय से पहले उपचारित करके रख सकते है।

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कपास की फसल में लीफ माइनर कीट की पहचान एवं नियंत्रण

Identification and control of leaf miner pest in cotton crop
  • लीफ माइनर (पत्ती सुरंगक) कीट बहुत ही छोटे होते हैं। ये पत्तियों के अंदर जाकर सुरंग बनाते हैं। इससे पत्तियों पर सफेद लकीर दिखाई देती है।

  • इसके वयस्क कीट हल्के पीले रंग के एवं शिशु कीट बहुत छोटे व पैर विहीन पीले रंग के होते हैं।

  • कीट का प्रकोप पत्तियों पर शुरू होता है। यह कीट पत्तियों में सर्पिलाकार सुरंग बनाता है।

  • लार्वा पत्ती के अंदर प्रवेश करता है एवं पत्तियों को खाना शुरू करता है। इससे पत्तियों के दोनों तरफ भूरे रंग के सर्पिलाकार आकृति दिखाई देने लगते हैं।

  • इसके प्रकोप से प्रभावित पौधों पर फल कम लगते हैं और पत्तियां समय से पहले गिर जाती हैं।

  • इसके आक्रमण के कारण पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया प्रभावित होती है।

  • इस कीट के नियंत्रण के लिए एबामेक्टिन 1.9% EC@ 150 मिली/एकड़ या क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 8.8% + थायोमेथोक्जाम 17.5 SC @ 200 मिली/एकड़ या सायनट्रानिलीप्रोल 10.26% OD@ 300 मिली/एकड़ का छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ दर से छिड़काव करें।

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बस ग्रामोफ़ोन पर उपलब्ध है बंपर उपज देने वाली प्याज की ये किस्म, पढ़ें इसकी विशेषताएं

Bhoomi Onion Seeds of Hyveg

खरीफ सीजन में प्याज की खेती करने वाले किसान इस समय इस कश्मकश में हैं की वे बीज कौन सा चुनें? ग्रामोफ़ोन किसानों की इसी कश्मकश को दूर करने के लिए आज के इस लेख में एक बेहतरीन खरीफ प्याज की किस्म से जुड़ी जानकारियां देने जा रहा है। यह किस्म है हाइवेज की भुमी।

हाइवेज कम्पनी की भुमी खरीफ और पछेती खरीफ सीजन में लगाई जाने वाली एक उन्नत किस्म है। इस किस्म की परिपक्वता अवधि 140 से 150 दिन की होती है। इस किस्म के पौधे मजबूत होते हैं। इसके बल्ब आकार में गोल एवं लाल रंग के और चमकदार होते हैं तथा बल्ब का औसत वज़न 90 से 100 ग्राम तक रहता है।

यह किस्म आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प है जो ना सिर्फ अच्छा उत्पादन देगी बल्कि उपज की गुणवत्ता भी ऐसी बेहतर होगी जिसे बाजार में अच्छा दाम मिलेगा। इस बार मध्य प्रदेश के किसानों के लिए ग्रामोफ़ोन ने विशेष तौर पर इस किस्म का चुनाव किया है। यह किस्म आपको सिर्फ ग्रामोफ़ोन पर ही मिलेगी। इसलिए देर ना करें और तुरंत इसकी खरीदी करें।

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मिट्टी में pH की कमी एवं अधिकता के कारण एवं इनसे फसलों को होने वाले नुकसान

Causes of low and excess pH in soil and damage to crops
  • pH कम होने का कारण: अधिक वर्षा के कारण मिट्टी की ऊपरी सतह से क्षारीय तत्व जैसे कैल्शियम, मैग्नीशियम आदि पानी में बह जाते हैं जिसके कारण मिट्टी का पी. एच. मान 6.5 से कम हो जाता है। ऐसी भूमि को हम अम्लीय भूमि कहते हैं।

  • pH की अधिकता का कारण: वैसी मिट्टी जिसमें क्षार तथा लवण उच्च मात्रा में पाए जाते हैं। यह लवण भूरे-श्वेत रंग के रूप में मिट्टी पर जमा हो जाते हैं। इस प्रकार की मिट्टी पूर्णतया अनुपजाऊ एवं ऊसर होती हैं जिसके कारण मिट्टी का पी. एच. मान 7.5 से ज्यादा हो जाता है। इस प्रकार की मिट्टी क्षारीय कहलाती है। मिट्टी में कैल्शियम एवं मैग्नीशियम उर्वरकों के अधिक उपयोग के कारण मिट्टी का pH अधिक हो जाता है जिसके कारण मिट्टी में उर्वरक एवं पोषक तत्वों की उपलब्धता में कमी आ जाती है।

  • pH मान में कमी के कारण पौधों की जड़ों की समान्य वृद्धि रुक जाती है, जिसके कारण जड़ें छोटी, मोटी और इकट्ठी रह जाती हैं। भूमि में मैगनीज और आयरन की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे पौधे कई प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं। इसके कारण फास्फोरस व मोलिब्डेनम की घुलनशीलता कम हो जाती है, पौधों को इसकी उपलब्धता कम हो जाती है, पौधे के लिए आवश्यक पोषक तत्वों में असंतुलन आ जाता है और इन सब की वजह से पैदावार कम हो जाती है।

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मिट्टी में पोटाश तत्व की कमी एवं अधिकता के कारण एवं निदान के उपाय

Potash deficiency and excess causes and diagnosis
  • पोटेशियम (पोटाश) की कमी के कारण: अधिक क्षारीय मिट्टी होने, कार्बनिक खाद का उपयोग नहीं होने या कम होने के कारण तथा लगातार सघन फसल चक्र अपनाने से भूमि में पोटाश तत्व की कमी दिखने लगी है।

  • पोटेशियम की किमी के लक्षण: पोटाश की कमी के कारण पौधा वातावरणीय तनाव के प्रति अधिक सवेदनशील हो जाता है एवं बीज़ व फल का आकार सही से विकसित नहीं हो पाता है।

  • पोटेशियम की अधिकता: MOP एवं अन्य पोटाश उर्वरकों के अधिक उपयोग के कारण मिट्टी में पोटाश की अधिकता हो जाती है। इसकी अधिकता के कारण पत्तियों का आकार बिगड़ जाता है।

  • पोटाश के कार्य: फसलों के लिए पोटाश एक अति आवश्यक पोषक तत्व है। पोटाश पौधों में संश्लेषित शर्करा को फलों तक पहुंचाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पोटाश प्राकृतिक नत्रजन की कार्य क्षमता को बढ़ावा देता है। टमाटर के सुर्ख़ लाल रंग के लिए आवश्यक लाइकोपेन का निर्माण के लिए पोटाश जरूरी है। पोटाश फल के वजन को बढ़ाता है।

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मक्का की इन उन्नत किस्म के बीजों से मिलेगी अच्छी उपज, जानें इनकी विशेषताएं

Seeds of these improved varieties of maize will give good yield
  • Syngenta S 6668: इस किस्म की बीज दर 5 से 8 किग्रा/एकड़ होती है और इसमें बुआई के समय पौधे से पौधे की दूरी 60 x 30-45 cm तथा बुआई की गहराई 4 से 5 cm रखनी चाहिए। इसकी फसल अवधि 120 दिन की होती है। इसके अलावा यह सिंचित क्षेत्र के लिए उपयुक्त, अधिक उपज क्षमता वाली तथा अंत तक भरे रहने वाले बड़े भुट्टे वाली किस्म है।

  • NK-30: इस किस्म की बीज दर 5 से 8 किग्रा/एकड़ रहती है। इसमें पौधे से पौधे की दूरी 1 से 1.5 फिट और कतार से कतार की दूरी 2 फीट तथा बुआई की गहराई 4 से 5 cm रखनी चाहिए। इसकी फसल अवधि 100 से 105 दिन होती है। यह किस्म उष्णकटिबंधीय वर्षा के लिए अनुकूल, तनाव/सूखा आदि की स्थिति को सहन करने की क्षमता वाली, उत्कृष्ट टिप भरने के साथ गहरे नारंगी रंग के दाने वाली, उच्च उपज वाली और चारे के रूप में उपयोग के अनुकूल है।

  • Pioneer-3396: इस किस्म की बीज दर 5 से 8 किग्रा/एकड़ होती है। इसमें पौधे से पौधे के बीच दूरी 60 x 30-45 cm तथा बुआई की गहराई 4-5 cm रखनी चाहिए। इसकी फसल अवधि 115 से 120 दिन की होती है तथा यह खरीफ और रबी मौसम की एक उच्च उपज देने वाली संकर किस्म है। इसके पौधे की संरचना इसे घनी बुआई पर भी अधिक उपज देने के लिए उपयुक्त बनाती है। 

  • Pioneer 3401: इस किस्म में बीज की दर 5 से 8 किग्रा/एकड़ होती है। इसमें पौधे से पौधे की दूरी 60 x 30-45 cm तथा बुआई की गहराई 4 से 5 cm रखनी होती है। इसकी फसल अवधि 115  से 120  दिन होती है। इस किस्म में दाने भरने की क्षमता अधिक होती है और लगभग 80 से 85% भुट्टे में 16 से 20 लाइनें होती हैं साथ ही अंत तक भुट्टे भरे होते हैं। इसके अलावा इस किस्म से उपज भी अच्छी मिलती है। 

कृषि एवं कृषि उत्पादों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। उन्नत कृषि उत्पादों व उपर्युक्त बताये गए बीजों की खरीदी के लिए ग्रामोफ़ोन के बाजार विकल्प पर जाना ना भूलें।

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मिर्च के पौध की रोपाई के पूर्व मिर्च समृद्धि किट से जरूर करें मिट्टी उपचार

How to do soil treatment with Chilli Samridhi Kit before transplanting Chilli
  • मिर्च की फसल यद्यपि अनेक प्रकार की मिट्टियों में उगाई जा सकती है, फिर भी अच्छी जल निकास व्यवस्था वाली कार्बनिक तत्वों से युक्त दोमट मिट्टी इसके लिए सर्वोत्तम होती है।

  • खेत में सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई करनी चाहिए। ऐसा करने से मिट्टी में उपस्थित हानिकारक कीट, उनके अंडे, कीट की प्यूपा अवस्था तथा कवकों के बीजाणु भी नष्ट हो जाते हैं।

  • इसके बाद हैरो या हल से 3-4 बार जुताई करके, खेत को समतल कर लेना चाहिये। अंतिम जुताई के पहले ग्रामोफोन की खास पेशकश ‘मिर्च समृद्धि किट’ जिसकी मात्रा 3.2 किलो है, को 50 किलो सड़ी हुई गोबर की खाद में प्रति एकड़ की दर से मिलाकर खेत में मिला देना चाहिए। इसके बाद हल्की सिंचाई कर दें।

  • यह ‘मिर्च समृद्धि किट’ आपकी मिर्च की फसल का सुरक्षा कवच बनेगा। इस किट में मिर्च के पोषण से संबंधित सभी उत्पाद है जो मिर्च की फसल को एक अच्छी शुरुआत प्रदान करेंगे।

  • मिर्च समृद्धि किट मिर्च की फसल में जड़ गलन, तना गलन एवं उकठा रोग से बचाव करती है। साथ ही फसल में सफ़ेद जड़ों के विकास को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

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सोयाबीन में कवकनाशी, कीटनाशक एवं राइजोबियम से बीजोपचार के लाभ

Benefits of seed treatment with fungicides insecticides and Rhizobium in Soybean
  • अधिकतर किसान सोयाबीन की खेती वर्षों से एक ही खेत में करते चले आ रहे हैं, लगातार एक ही खेत में खेती करने के कारण सोयाबीन की उपज बहुत प्रभावित होती है।

  • लगातार एक ही खेत में सोयाबीन लगाने से सोयाबीन फसल के रोगों के जीवाणु, फफूंद भी भूमि व बीज में स्थापित हो गये हैं।

  • सोयाबीन में लगने वाले अधिकतर रोग भूमि व बीज जनित होते हैं। सोयाबीन की फसल को भूमि तथा बीज जनित रोगों से बचाने के लिए बीज उपचार बहुत लाभकारी सिद्ध होता है।

  • सोयाबीन की फसल की प्रारम्भिक अवस्था में अच्छी वृद्धि के लिए बीज उपचार एक कम मेहनत और खर्च का साधन है। इसलिए बीज उपचार आवश्यक है।

  • कवकनाशी से बीज़ उपचार करने से सोयाबीन की फसल उकठा व जड़ सड़न रोग से सुरक्षित रहती है।

  • कीटनाशक से बीज़ उपचार करने से मिट्टी के कीटों जैसे सफ़ेद ग्रब, चींटी, दीमक आदि से सोयाबीन की फसल की रक्षा होती है। बीज का अंकुरण सही ढंग से होता है अंकुरण प्रतिशत बढ़ता है।

  • राइज़ोबियम से बीज़ उपचार सोयाबीन की फसल की जड़ों में गाठो (नॉड्यूलेशन) को बढ़ाता है एवं अधिक नाइट्रोज़न का स्थिरीकरण करता है।

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जानें मिट्टी में फास्फोरस की कमी के कारण एवं इसके निदान के उपाय

Cause and diagnosis of phosphorus deficiency in soil

फॉस्फोरस मिट्टी में पाए जाने वाले प्रमुख पोषक तत्वों में से एक है। इसकी कमी यदि मिट्टी में रहती है तो इसका असर फसल पर बहुत आसानी से देखा जा सकता है। इसकी कमी के लक्षण सबसे पहले युवा पत्ते या पौधे पर दिखाई देते हैं।

फास्फोरस की कमी का कारण: जिस मिट्टी में कैल्शियम की अधिकता होती है वहाँ फास्फोरस की कमी हो जाती है। मिट्टी का pH कम या ज्यादा होने पर भी फास्फोरस की उपलब्धता कम हो जाती है क्योंकि क्षारीय भूमि में, उपलब्ध फॉस्फोरस का अवशोषण जड़ों द्वारा कम हो जाता है। इसकी कमी होने का सबसे प्रमुख कारण यह है की फास्फोरस के कण मिट्टी में स्थिर हो जाते हैं और पौधे उसका अवशोषण नहीं कर पाते हैं। इसी के साथ यदि मिट्टी में नमी की मात्रा कम हो तो भी इस तत्व की कमी हो जाती है।

इसकी कमी का नियंत्रण दो तरीकों से किया जा सकता है

जैविक उपाय: जैविक उपाय के अंतर्गत जैविक खाद जो की फास्फोरस का अच्छा स्रोत मानी जाती है, का उपयोग फसल की अलग अलग वृद्धि अवस्थाओं में करना बहुत आवश्यक होता है। जैविक खाद जैसे वर्मीकम्पोस्ट, गोबर, पक्षियों की बीट एवं पुरानी फसलों के अवशेषो को सड़ा कर तैयार खाद को यदि मिट्टी में मिला दिया जाए तो इससे भी फॉस्फोरस की कमी को दूर किया जा सकता है। इसी के साथ फॉस्फोरस युक्त सूक्ष्म जीव जैसे फॉस्फेट सोल्यूब्लाइज़िंग बैक्टेरिया का भी उपयोग कर सकते हैं।

रासायनिक उपाय: फॉस्फोरस युक्त उर्वरक जैसे DAP, एसएसपी, 12:61:00, NPK आदि का उपयोग कर के भी इसकी कमी को दूर कर सकते हैं।

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मिट्टी में नत्रजन की कमी के कारण एवं इसके निदान की विधि

Cause and diagnosis of Nitrogen deficiency in soil
  • वनस्पति विकास के दौरान फसलों को नत्रजन की अधिक आवश्यकता होती है। यदि इस अवस्था में इसकी उपलब्धता में कमी रहती है तो फसल उत्पादन बहुत अधिक प्रभावित होता है।

  • नत्रजन की कमी का कारण: रेतीली मिट्टी और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में नत्रजन की कमी पाई जाती है, बार-बार बारिश, या भारी सिंचाई भी मिट्टी में नत्रजन की कमी का कारण बनती है।

  • नत्रजन की कमी से होने वाले नुकसान: नत्रजन की कमी से पौधों का रंग हल्का हरा, बढ़वार सामान्य से कम और कल्लों की संख्या में कमी हो जाती है। अनाज वर्गीय फसलों जैसे मकई, धान, गेहूँ आदि में सबसे पहले पौधे की निचली पत्तियां सूखना प्रारंभ कर देती है और धीरे-धीरे ऊपर की पत्तियां भी सूख जाती है, पत्तियों का रंग सफेद एवं पत्तियाँ कभी-कभी जल भी जाती है। इसकी अधिकता के कारण पत्तियों का पीलापन अधिक मात्रा में दिखाई देता है एवं इसके कारण अन्य पोषक तत्वों की मात्रा भी प्रभावित होती है।

नाइट्रोज़न की कमी की पूर्ति के लिए दो तरह से उपाय किये जा सकते हैं।

जैविक उपाय: जैविक उपाय के अंतर्गत जैविक खाद जो की नत्रजन का अच्छा स्रोत मानी जाती है का उपयोग फसल की अलग अलग वृद्धि अवस्थाओं में करना बहुत आवश्यक होता है। जैविक खाद जैसे वर्मीकम्पोस्ट, गोबर की खाद, एजोटोबैक्टर, एजोस्पिरिलम, राइजोबियम आदि नत्रजन की कमी को कम कर सकते हैं।

रासायनिक उपाय: नत्रजन की कमी को दूर करने एवं अच्छे फसल उत्पादन के लिए नत्रजन युक्त उर्वरकों जैसे यूरिया, NPK, अमोनियम नाइट्रेट, अमोनियम सल्फेट, 12:61:00, 13:00:45 का उपयोग किया जा सकता है।

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