कपास की फसल में बुआई के बाद उर्वरक प्रबंधन है जरूरी, मिलेंगे कई लाभ

  • कपास की बुआई के 10-15 दिनों में उर्वरक प्रबंधन करने से फसल की वृद्धि एक समान होती है।

  • इससे फसल वातावरणीय तनाव से सुरक्षित रहती है और रोगो से लड़ने की क्षमता भी विकसित हो जाती है।

  • बुआई के बाद उर्वरक प्रबधन के रूप में यूरिया@ 40 किलो/एकड़ + DAP@50 किलो/एकड़ + ज़िंक सल्फेट@ 5 किलो/एकड़ + सल्फर @ 5 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें।

  • कपास की फसल में यूरिया नाइट्रोज़न की पूर्ति का सबसे बड़ा स्त्रोत है। इसके उपयोग से पत्तियों में होने वाली समस्या जैसे पीलापन एवं सूखने जैसी समस्या नहीं आती है, यूरिया प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को भी तेज़ करता है।

  • डाय अमोनियम फॉस्फेट (DAP) का उपयोग फास्फोरस की कमी की पूर्ति के लिए किया जाता है। इसके उपयोग से मिट्टी का pH मान संतुलित रहता है एवं पत्तियों के बैंगनी रंग के होने की समस्या नहीं होती है।

  • जिंक सल्फेट के उपयोग के द्वारा मिट्टी एवं फसल में जिंक की कमी नहीं होती है।

    यह जिंक क्लोरोफिल और कुछ कार्बोहाइड्रेट के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

  • पौधों में प्रोटीन, एंजाइम, विटामिन और क्लोरोफिल बनाने वाला सल्फर (एस) एक आवश्यक तत्व है। यह जड़ों के विकास और नाइट्रोजन के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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