मिट्टी में पोटाश तत्व की कमी एवं अधिकता के कारण एवं निदान के उपाय

Potash deficiency and excess causes and diagnosis
  • पोटेशियम (पोटाश) की कमी के कारण: अधिक क्षारीय मिट्टी होने, कार्बनिक खाद का उपयोग नहीं होने या कम होने के कारण तथा लगातार सघन फसल चक्र अपनाने से भूमि में पोटाश तत्व की कमी दिखने लगी है।

  • पोटेशियम की किमी के लक्षण: पोटाश की कमी के कारण पौधा वातावरणीय तनाव के प्रति अधिक सवेदनशील हो जाता है एवं बीज़ व फल का आकार सही से विकसित नहीं हो पाता है।

  • पोटेशियम की अधिकता: MOP एवं अन्य पोटाश उर्वरकों के अधिक उपयोग के कारण मिट्टी में पोटाश की अधिकता हो जाती है। इसकी अधिकता के कारण पत्तियों का आकार बिगड़ जाता है।

  • पोटाश के कार्य: फसलों के लिए पोटाश एक अति आवश्यक पोषक तत्व है। पोटाश पौधों में संश्लेषित शर्करा को फलों तक पहुंचाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पोटाश प्राकृतिक नत्रजन की कार्य क्षमता को बढ़ावा देता है। टमाटर के सुर्ख़ लाल रंग के लिए आवश्यक लाइकोपेन का निर्माण के लिए पोटाश जरूरी है। पोटाश फल के वजन को बढ़ाता है।

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मक्का की इन उन्नत किस्म के बीजों से मिलेगी अच्छी उपज, जानें इनकी विशेषताएं

Seeds of these improved varieties of maize will give good yield
  • Syngenta S 6668: इस किस्म की बीज दर 5 से 8 किग्रा/एकड़ होती है और इसमें बुआई के समय पौधे से पौधे की दूरी 60 x 30-45 cm तथा बुआई की गहराई 4 से 5 cm रखनी चाहिए। इसकी फसल अवधि 120 दिन की होती है। इसके अलावा यह सिंचित क्षेत्र के लिए उपयुक्त, अधिक उपज क्षमता वाली तथा अंत तक भरे रहने वाले बड़े भुट्टे वाली किस्म है।

  • NK-30: इस किस्म की बीज दर 5 से 8 किग्रा/एकड़ रहती है। इसमें पौधे से पौधे की दूरी 1 से 1.5 फिट और कतार से कतार की दूरी 2 फीट तथा बुआई की गहराई 4 से 5 cm रखनी चाहिए। इसकी फसल अवधि 100 से 105 दिन होती है। यह किस्म उष्णकटिबंधीय वर्षा के लिए अनुकूल, तनाव/सूखा आदि की स्थिति को सहन करने की क्षमता वाली, उत्कृष्ट टिप भरने के साथ गहरे नारंगी रंग के दाने वाली, उच्च उपज वाली और चारे के रूप में उपयोग के अनुकूल है।

  • Pioneer-3396: इस किस्म की बीज दर 5 से 8 किग्रा/एकड़ होती है। इसमें पौधे से पौधे के बीच दूरी 60 x 30-45 cm तथा बुआई की गहराई 4-5 cm रखनी चाहिए। इसकी फसल अवधि 115 से 120 दिन की होती है तथा यह खरीफ और रबी मौसम की एक उच्च उपज देने वाली संकर किस्म है। इसके पौधे की संरचना इसे घनी बुआई पर भी अधिक उपज देने के लिए उपयुक्त बनाती है। 

  • Pioneer 3401: इस किस्म में बीज की दर 5 से 8 किग्रा/एकड़ होती है। इसमें पौधे से पौधे की दूरी 60 x 30-45 cm तथा बुआई की गहराई 4 से 5 cm रखनी होती है। इसकी फसल अवधि 115  से 120  दिन होती है। इस किस्म में दाने भरने की क्षमता अधिक होती है और लगभग 80 से 85% भुट्टे में 16 से 20 लाइनें होती हैं साथ ही अंत तक भुट्टे भरे होते हैं। इसके अलावा इस किस्म से उपज भी अच्छी मिलती है। 

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मिर्च के पौध की रोपाई के पूर्व मिर्च समृद्धि किट से जरूर करें मिट्टी उपचार

How to do soil treatment with Chilli Samridhi Kit before transplanting Chilli
  • मिर्च की फसल यद्यपि अनेक प्रकार की मिट्टियों में उगाई जा सकती है, फिर भी अच्छी जल निकास व्यवस्था वाली कार्बनिक तत्वों से युक्त दोमट मिट्टी इसके लिए सर्वोत्तम होती है।

  • खेत में सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई करनी चाहिए। ऐसा करने से मिट्टी में उपस्थित हानिकारक कीट, उनके अंडे, कीट की प्यूपा अवस्था तथा कवकों के बीजाणु भी नष्ट हो जाते हैं।

  • इसके बाद हैरो या हल से 3-4 बार जुताई करके, खेत को समतल कर लेना चाहिये। अंतिम जुताई के पहले ग्रामोफोन की खास पेशकश ‘मिर्च समृद्धि किट’ जिसकी मात्रा 3.2 किलो है, को 50 किलो सड़ी हुई गोबर की खाद में प्रति एकड़ की दर से मिलाकर खेत में मिला देना चाहिए। इसके बाद हल्की सिंचाई कर दें।

  • यह ‘मिर्च समृद्धि किट’ आपकी मिर्च की फसल का सुरक्षा कवच बनेगा। इस किट में मिर्च के पोषण से संबंधित सभी उत्पाद है जो मिर्च की फसल को एक अच्छी शुरुआत प्रदान करेंगे।

  • मिर्च समृद्धि किट मिर्च की फसल में जड़ गलन, तना गलन एवं उकठा रोग से बचाव करती है। साथ ही फसल में सफ़ेद जड़ों के विकास को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

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सोयाबीन में कवकनाशी, कीटनाशक एवं राइजोबियम से बीजोपचार के लाभ

Benefits of seed treatment with fungicides insecticides and Rhizobium in Soybean
  • अधिकतर किसान सोयाबीन की खेती वर्षों से एक ही खेत में करते चले आ रहे हैं, लगातार एक ही खेत में खेती करने के कारण सोयाबीन की उपज बहुत प्रभावित होती है।

  • लगातार एक ही खेत में सोयाबीन लगाने से सोयाबीन फसल के रोगों के जीवाणु, फफूंद भी भूमि व बीज में स्थापित हो गये हैं।

  • सोयाबीन में लगने वाले अधिकतर रोग भूमि व बीज जनित होते हैं। सोयाबीन की फसल को भूमि तथा बीज जनित रोगों से बचाने के लिए बीज उपचार बहुत लाभकारी सिद्ध होता है।

  • सोयाबीन की फसल की प्रारम्भिक अवस्था में अच्छी वृद्धि के लिए बीज उपचार एक कम मेहनत और खर्च का साधन है। इसलिए बीज उपचार आवश्यक है।

  • कवकनाशी से बीज़ उपचार करने से सोयाबीन की फसल उकठा व जड़ सड़न रोग से सुरक्षित रहती है।

  • कीटनाशक से बीज़ उपचार करने से मिट्टी के कीटों जैसे सफ़ेद ग्रब, चींटी, दीमक आदि से सोयाबीन की फसल की रक्षा होती है। बीज का अंकुरण सही ढंग से होता है अंकुरण प्रतिशत बढ़ता है।

  • राइज़ोबियम से बीज़ उपचार सोयाबीन की फसल की जड़ों में गाठो (नॉड्यूलेशन) को बढ़ाता है एवं अधिक नाइट्रोज़न का स्थिरीकरण करता है।

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जानें मिट्टी में फास्फोरस की कमी के कारण एवं इसके निदान के उपाय

Cause and diagnosis of phosphorus deficiency in soil

फॉस्फोरस मिट्टी में पाए जाने वाले प्रमुख पोषक तत्वों में से एक है। इसकी कमी यदि मिट्टी में रहती है तो इसका असर फसल पर बहुत आसानी से देखा जा सकता है। इसकी कमी के लक्षण सबसे पहले युवा पत्ते या पौधे पर दिखाई देते हैं।

फास्फोरस की कमी का कारण: जिस मिट्टी में कैल्शियम की अधिकता होती है वहाँ फास्फोरस की कमी हो जाती है। मिट्टी का pH कम या ज्यादा होने पर भी फास्फोरस की उपलब्धता कम हो जाती है क्योंकि क्षारीय भूमि में, उपलब्ध फॉस्फोरस का अवशोषण जड़ों द्वारा कम हो जाता है। इसकी कमी होने का सबसे प्रमुख कारण यह है की फास्फोरस के कण मिट्टी में स्थिर हो जाते हैं और पौधे उसका अवशोषण नहीं कर पाते हैं। इसी के साथ यदि मिट्टी में नमी की मात्रा कम हो तो भी इस तत्व की कमी हो जाती है।

इसकी कमी का नियंत्रण दो तरीकों से किया जा सकता है

जैविक उपाय: जैविक उपाय के अंतर्गत जैविक खाद जो की फास्फोरस का अच्छा स्रोत मानी जाती है, का उपयोग फसल की अलग अलग वृद्धि अवस्थाओं में करना बहुत आवश्यक होता है। जैविक खाद जैसे वर्मीकम्पोस्ट, गोबर, पक्षियों की बीट एवं पुरानी फसलों के अवशेषो को सड़ा कर तैयार खाद को यदि मिट्टी में मिला दिया जाए तो इससे भी फॉस्फोरस की कमी को दूर किया जा सकता है। इसी के साथ फॉस्फोरस युक्त सूक्ष्म जीव जैसे फॉस्फेट सोल्यूब्लाइज़िंग बैक्टेरिया का भी उपयोग कर सकते हैं।

रासायनिक उपाय: फॉस्फोरस युक्त उर्वरक जैसे DAP, एसएसपी, 12:61:00, NPK आदि का उपयोग कर के भी इसकी कमी को दूर कर सकते हैं।

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मिट्टी में नत्रजन की कमी के कारण एवं इसके निदान की विधि

Cause and diagnosis of Nitrogen deficiency in soil
  • वनस्पति विकास के दौरान फसलों को नत्रजन की अधिक आवश्यकता होती है। यदि इस अवस्था में इसकी उपलब्धता में कमी रहती है तो फसल उत्पादन बहुत अधिक प्रभावित होता है।

  • नत्रजन की कमी का कारण: रेतीली मिट्टी और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में नत्रजन की कमी पाई जाती है, बार-बार बारिश, या भारी सिंचाई भी मिट्टी में नत्रजन की कमी का कारण बनती है।

  • नत्रजन की कमी से होने वाले नुकसान: नत्रजन की कमी से पौधों का रंग हल्का हरा, बढ़वार सामान्य से कम और कल्लों की संख्या में कमी हो जाती है। अनाज वर्गीय फसलों जैसे मकई, धान, गेहूँ आदि में सबसे पहले पौधे की निचली पत्तियां सूखना प्रारंभ कर देती है और धीरे-धीरे ऊपर की पत्तियां भी सूख जाती है, पत्तियों का रंग सफेद एवं पत्तियाँ कभी-कभी जल भी जाती है। इसकी अधिकता के कारण पत्तियों का पीलापन अधिक मात्रा में दिखाई देता है एवं इसके कारण अन्य पोषक तत्वों की मात्रा भी प्रभावित होती है।

नाइट्रोज़न की कमी की पूर्ति के लिए दो तरह से उपाय किये जा सकते हैं।

जैविक उपाय: जैविक उपाय के अंतर्गत जैविक खाद जो की नत्रजन का अच्छा स्रोत मानी जाती है का उपयोग फसल की अलग अलग वृद्धि अवस्थाओं में करना बहुत आवश्यक होता है। जैविक खाद जैसे वर्मीकम्पोस्ट, गोबर की खाद, एजोटोबैक्टर, एजोस्पिरिलम, राइजोबियम आदि नत्रजन की कमी को कम कर सकते हैं।

रासायनिक उपाय: नत्रजन की कमी को दूर करने एवं अच्छे फसल उत्पादन के लिए नत्रजन युक्त उर्वरकों जैसे यूरिया, NPK, अमोनियम नाइट्रेट, अमोनियम सल्फेट, 12:61:00, 13:00:45 का उपयोग किया जा सकता है।

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कपास समृद्धि किट से कपास की फसल एवं मिट्टी को मिलेंगे कई लाभ

Benefits of cotton samridhi kit to cotton crop and soil
  • ग्रामोफ़ोन लेकर आया है ‘कपास समृद्धि किट’ जो कपास की फसल के लिए सुरक्षा कवच की तरह कार्य करती है। इस किट की मदास से कपास की फसल को वो सब कुछ एक साथ मिलेगा जिसकी जरूरत कपास की फसल को होती है। इस किट में कई उत्पाद संलग्न हैं, इन सभी उत्पादों को 50-100 किलो FYM के साथ मिश्रित कर मिट्टी में मिलाने से, फसल को सम्पूर्ण सुरक्षा मिलती है। इस किट का उपयोग ड्रिप एवं मिट्टी उपचार दोनों के लिए किया जा सकता है।

  • यह मिट्टी एवं फसल में तीन प्रमुख तत्व नाइट्रोजन, पोटाश एवं फास्फोरस की पूर्ति में सहायक होता है। जिससे पौधे को समय पर आवश्यक तत्व मिल जाते हैं, बढ़वार अच्छी होती है, फसल का उत्पादन बढ़ता है साथ ही मिट्टी में भी पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि होती है।

  • जिंक सोल्यूबिलाइजिंग बैक्टीरिया मिट्टी में जिंक की उपलब्धता में सुधार करता है और फसल की पैदावार बढ़ जाती है। जिंक बैक्टीरिया की आवश्यकता प्रकाश संश्लेषण, और पौधे में हार्मोन को बढ़ावा देने के लिए एवं पौधों के विकास के जैव संश्लेषण के लिए होती है।

  • ट्राइकोडर्मा फफूंद पर आधारित घुलनशील जैविक कवकनाशी है, जो मिट्टी और बीज में होने वाले रोगजनकों को मारता है जिसकी वजह से जड़ सड़न, तना गलन, उकठा रोग जैसी गंभीर बीमारियों से रोकथाम होती है। ट्राइकोडर्मा पौधों के जड़-विन्यास क्षेत्र (राइजोस्फेयर) में अनवरत कार्य करने वाला सूक्ष्म जीव है। इसके अलावा ये सूत्रकृमि से होने वाले रोगों से भी पौधों की रक्षा करते हैं।

  • ह्यूमिक एसिड मिट्टी की संरचना में सुधार करके जल धारण क्षमता में वृद्धि करता और सफेद जड़ के विकास को बढ़ाता है। समुद्री शैवाल पौधों को पोषक तत्व ग्रहण करने में मदद करता है और अमीनो एसिड प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया को बढ़ाता है। जिसके परिणामस्वरूप बेहतर वनस्पति विकास होता है और पौधों के स्वास्थ्य में भी सुधार होता है। मायकोराइज़ा पौधे की प्रत्येक अवस्था जैसे फूल, फल, पत्ती आदि की वृद्धि में मदद करता है साथ ही साथ सफेद जड़ के विकास में भी मदद करता है।

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मिर्च की रोपाई के पूर्व मिट्टी उपचार के रूप में जरूर करें पोषण प्रबंधन

How to manage nutrition as soil treatment before transplanting chilli
  • मिर्च की रोपाई के पहले पोषण प्रबंधन करने के बहुत लाभ हैं। पोषण प्रबंधन करने से फसल में पोषक तत्वों की कमी नहीं होती है एवं फसल का विकास बहुत अच्छे से होता है।

  • रोपाई के पूर्व पोषण प्रबधन करने के लिए यूरिया @ 45 किलो/एकड़ + एसएसपी @ 200 किलो + MOP @ 50 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी में भुरकाव करें।

  • मिर्च की फसल में यूरिया नाइट्रोज़न की पूर्ति का सबसे बड़ा स्रोत है। इसके उपयोग से पत्तियों में पीलापन और सूखने जैसी समस्या नहीं आती है। यूरिया प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को भी तेज़ करता है।

  • एसएसपी जड़ वृद्धि और विकास में सुधार करने में मदद करता है जो पोषक तत्व और पानी के अवशोषण के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। एसएसपी मिट्टी के कटाव में सुधार करता है और जल धारण क्षमता को बढ़ाता है और जड़ वृद्धि को बढ़ाता है जिससे फसल की उपज में वृद्धि होती है। यह कैल्शियम एवं सल्फर का भी अच्छा स्त्रोत है।

  • मिर्च के लिए पोटाश एक अति आवश्यक पोषक तत्व है। पोटाश पौधों में संश्लेषित शर्करा को फलों तक पहुंचाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पोटाश प्राकृतिक नत्रजन की कार्य क्षमता को बढ़ावा देता है।

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कपास की फसल में बुआई के बाद उर्वरक प्रबंधन है जरूरी, मिलेंगे कई लाभ

How to manage fertilizer after sowing in cotton crop and its benefits
  • कपास की बुआई के 10-15 दिनों में उर्वरक प्रबंधन करने से फसल की वृद्धि एक समान होती है।

  • इससे फसल वातावरणीय तनाव से सुरक्षित रहती है और रोगो से लड़ने की क्षमता भी विकसित हो जाती है।

  • बुआई के बाद उर्वरक प्रबधन के रूप में यूरिया@ 40 किलो/एकड़ + DAP@50 किलो/एकड़ + ज़िंक सल्फेट@ 5 किलो/एकड़ + सल्फर @ 5 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें।

  • कपास की फसल में यूरिया नाइट्रोज़न की पूर्ति का सबसे बड़ा स्त्रोत है। इसके उपयोग से पत्तियों में होने वाली समस्या जैसे पीलापन एवं सूखने जैसी समस्या नहीं आती है, यूरिया प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को भी तेज़ करता है।

  • डाय अमोनियम फॉस्फेट (DAP) का उपयोग फास्फोरस की कमी की पूर्ति के लिए किया जाता है। इसके उपयोग से मिट्टी का pH मान संतुलित रहता है एवं पत्तियों के बैंगनी रंग के होने की समस्या नहीं होती है।

  • जिंक सल्फेट के उपयोग के द्वारा मिट्टी एवं फसल में जिंक की कमी नहीं होती है।

    यह जिंक क्लोरोफिल और कुछ कार्बोहाइड्रेट के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

  • पौधों में प्रोटीन, एंजाइम, विटामिन और क्लोरोफिल बनाने वाला सल्फर (एस) एक आवश्यक तत्व है। यह जड़ों के विकास और नाइट्रोजन के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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सोयाबीन की बुआई के पूर्व जरूरी है मिट्टी उपचार, जानें पूरी प्रक्रिया

How to treat soil before sowing soybean
  • सोयाबीन की फसल में बुआई के पूर्व मिट्टी उपचार बहुत आवश्यक होता है।

  • मिट्टी उपचार दो बार किया जाता है, पहला उपचार पहली बारिश के पहले या बाद में, वहीं दूसरा उपचार बुआई के पहले किया जाता है

  • इसके लिए निम्न तरीके अपनाये जाते हैं

  • बीजों के अच्छे अंकुरण के लिए मिट्टी का भुरभुरा होना आवश्यक है, पिछली फसल की कटाई के बाद एक जुताई सामान्य हल से तथा 2-3 जुताई हैरो की सहायता से करें।

  • पकी हुई गोबर की खाद की 50 किलो मात्रा को मेट्राजियम कल्चर की 1 किलो मात्रा/एकड़ को मिलाकर सफ़ेद ग्रब का जैविक नियंत्रण आसानी से किया जा सकता है।

  • बुआई के पहले मिट्टी उपचार करने के लिए किसान सोयबीन समृद्धि किट का उपयोग कर सकते हैं। इस किट में कई उपयोगी उत्पाद हैं जो फसल में पोषक तत्वों की पूर्ति करने में मदद करते हैं।

  • इस किट में पीके बैक्टीरिया का कंसोर्टिया है जो पोटाश एवं फॉस्फोरस की पूर्ति करते हैं, इसमें ट्राइकोडर्मा विरिडी है जो जड़ गलन एवं तना गलन जैसे रोगों से फसल की रक्षा करता है। इसमें ह्यूमिक एसिड, समुद्री शैवाल, अमीनो एसिड एवं मायकोराइज़ा भी है। यह प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को तेज़ करता है एवं सफेद जड़ों का विकास करता है। राइज़ोबियम सोयाबीन कल्चर में नाइट्रोजन का जीवाणु पाया जाता है जो सोयाबीन की जड़ों में रह कर वायुमंडलीय नाइट्रोज़न को स्थिर कर पौधों को प्रदान करता है और पौधों को अच्छी तरह से विकसित करने में मदद करता है।

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