कपास की प्रारंभिक अवस्था में झुलसा रोग का ऐसे करें नियंत्रण

How to control blight disease in the early stages of cotton crop
  • कपास की फसल की बुआई के बाद अंकुरण की प्रारंभिक अवस्था में झुलसा रोग का प्रकोप होने लगता है जिसके कारण फसल की वृद्धि बहुत प्रभावित होती है।

  • यह रोग जीवाणु जनित है। इस रोग का प्रकोप कपास के खेत में एक साथ न शुरू होकर धीरे-धीरे कुछ कुछ हिस्सों पर होता है तथा धीरे-धीरे यह पूरे खेत में फैल जाता है। इस रोग में पत्तियाँ ऊपर से नीचे की ओर सुखना शुरू होती है।

  • इस रोग के प्रारंभिक लक्षण फसल बुआई के 20 से 35 दिन बाद पत्तियों पर दिखाई देते हैं। अधिक संक्रमण की दशा में पत्तियों का रंग मटमैला हरा हो जाता है। इसके प्रकोप के कारण फसल कमजोर हो जाती है।

  • आर्द्रता के 95 प्रतिशत से अधिक हो जाने पर रोग के तीव्रता से फैलने की संभावना होती है। इस रोग के रोगाणु मिट्टी में बहुत समय तक रहते हैं जिसके कारण यह रोग अगली फसल को भी नुकसान पहुंचाता है।

  • इसके नियंत्रण के लिए कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP @ 300 ग्राम/प्रति एकड़ जमीन में जड़ के पास छिड़काव करें।

  • कासुगामायसिन 3% SL @ 400 मिली/एकड़ या स्ट्रेप्टोमायसिन सल्फेट 90% + टेट्रासायक्लीन हाइड्रोक्लोराइड 10% W/W @ 20 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से जमीन से दे एवं छिड़काव भी करें।

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मिर्च की रोपाई से पहले रोपाई उपचार है जरूरी, जानें इसका महत्व

How to do transplantation treatment and its importance before transplanting chilli
  • नर्सरी में बुआई के 35 से 40 दिनों बाद मिर्च की पौध रोपाई के लिए तैयार हो जाती है। रोपाई का उपयुक्त समय मध्य जून से मध्य जुलाई तक है। पौधे नर्सरी से उखाड़ने से पूर्व हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए, ऐसा करने से पौध की जड़ को नुकसान नहीं होता, और पौध आसानी से लग जाती है। पौध को नर्सरी से निकालने के बाद सीधे धूप मे नहीं रखना चाहिये।

  • नर्सरी से मिर्च की पौध को उखाड़ कर खेत में लगाने से पहले पौध का उपचार करना अतिआवश्यक है। अतः जड़ों के अच्छे विकास के लिए 5 ग्राम माइकोरायज़ा प्रति लीटर की दर से एक लीटर पानी में घोल बना लें, इसके बाद मिर्च की पौध की जड़ों को इस के घोल में 10 मिनट के लिए डूबा के रखें। यह प्रक्रिया अपनाने के बाद ही खेत में पौध प्रत्यारोपण करें। रोपाई के तुरन्त बाद खेत में हल्का पानी देना चाहिए।

  • मिर्च की पौध की रोपाई में लाइन से लाइन एवं पौधे से पौधे की दूरी 90-120 X 45-60 सेमी रखनी चाहिए।

  • मिर्च की रोप उपचार के लिए मायकोराइज़ा का उपयोग करने के बहुत लाभ हैं। माइकोराइजा एक ऐसा सहजीवी कवक है जो पौधे की जड़ों और उनके आस-पास की मिट्टी के बीच एक विशाल संबंध बनाने में सक्षम है, जिससे यह जड़ों के कार्य क्षेत्र का विस्तार करता है, और यह पौधे के लिए नाइट्रोजन और फास्फोरस जैसे पोषक तत्व की उपलब्धता को भी बढ़ाता है।

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ऐसे करें कपास की फसल में पत्ते काटने वाली इल्ली का नियंत्रण

How to control foliar caterpillar in cotton crop
  • कपास की फसल में इस कीट का प्रकोप आम तौर पर अंकुरण की शुरुआती अवस्था में ही हो जाता है। इसके मादा कीट पत्तियों के दोनों और गुच्छों में लगभग 2000 अंडे देती है।

  • ये इल्ली कपास की पत्तियों के हरे पदार्थ को खाते हैं जिससे पत्तियां भूरे या गहरे भूरे या काले रंग में बदल जाते हैं।

  • इसके प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @ 100 ग्राम/एकड़ या नोवालूरान 5.25% + इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% SC @ 600मिली/एकड़ या प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • इस कीट से प्रभावित पौधों को खेत से निकाल कर बाहर कर दें एवं कीटनाशक के छिड़काव के कुछ समय बाद फसल की अच्छी वृद्धि के लिए विगरमैक्स जेल @ 400 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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किसान को दिखा मिर्च समृद्धि ड्रिप किट का कमाल, मिली जबरदस्त शुरूआती बढ़वार

Chilli Samridhi Drip Kit

भारतीय कृषक खेतों में खूब मेहनत करते हैं, पर ज्यादातर किसान इसलिए अपनी मेहनत का अच्छा फल नहीं प्राप्त कर पाते क्योंकि वे अपनी जानकारी के अनुसार पारंपरिक कृषि पर जोर देते हैं। जबकि आज के जमाने में कृषि क्षेत्र में कई बड़े अनुसंधान हुए हैं जिसके परिणाम स्वरूप कई नए कृषि उत्पादों की मदद से कृषि आधुनिक होने के साथ साथ लाभकारी भी हो गई है। मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले के हाथोला गांव के निवासी किसान कैलाश मुकाती जी ने ग्रामोफ़ोन की सानिध्य में अपनी पारंपरिक कृषि को आधुनिक बनाया जिसका लाभ अब उन्हें देखने को मिल रहा है।

पिछले दिनों ग्रामोफ़ोन के कृषि विशेषज्ञ कैलाश जी के मिर्च के खेत का मुआयना करने पहुंचे थे जिसकी खेती उन्होंने पूरी तरह ग्रामोफ़ोन की सलाह पर की है। कैलाश जी ने इस दौरान बताया की वे फसल की बढ़वार देख कर वे पूरी तरह संतुष्ट हैं। उन्होंने अपनी फसल में ग्रामोफ़ोन मिर्च ड्रिप किट का इस्तेमाल किया था जिसके फलस्वरूप पौधों का विकास दूसरे आसपास के किसानों के पौधों की तुलना में ज्यादा बेहतर हुई है।

किसान भाई ने ड्रिप किट के इस्तेमाल से विकसित पौधे और बिना ड्रिप किट के इस्तेमाल से विकसित पौधे की तुलना करते हुए बताया की जड़, तना, पत्तियां सब कुछ ड्रिप किट के कारण बेहतर विकास प्राप्त कर रही है और फल भी आने लगे हैं।

ग़ौरतलब है की ग्रामोफ़ोन मिर्च ही नहीं बल्कि अन्य फ़सलों जैसे मक्का, कपास, सोयाबीन, मूंग आदि के लिए भी समृद्धि किट और ड्रिप किट निकाल चुका है जिसका परिणाम बहुत अच्छा देखने को मिल रहा है। कैलाश मुकाती के साथ साथ अन्य कई किसानों ने इसके इस्तेमाल से बेहतर परिणाम प्राप्त किये हैं। अगर आप भी इनमें से किसी किट का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो ग्रामोफ़ोन के बाजार विकल्प पर जाना ना भूलें।

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बुआई के पूर्व सोयाबीन की फसल में की जाने वाली तैयारियां

Preparations to be done in soybean crop before sowing
  • सोयाबीन की बुआई के पूर्व ऐसे खेत का चयन करें जहाँ अधिक वर्षा की स्थिति में पर्याप्त जल निकासी की व्यवस्था हो।

  • पथरीली भूमि को छोड़कर कर सभी जगह सोयाबीन को बोया जा सकता है। खेत को समतल करके बुआई करने से पानी का निकास अच्छा होगा और पैदावार भी अच्छी प्राप्त होगी। मध्यम दोमट भूमि सोयाबीन की खेती के लिए उपयुक्त होती है।

  • खाली खेत की ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से 10 से 12 इंच गहराई तक करना चाहिए। एक बार हल चलाकर खेत को अच्छे से तैयार कर लें।

  • इसके बाद मिट्टी जनित कीटों के नियंत्रण के लिए मेट्राजियम कल्चर से मिट्टी उपचार करें। इस उपचार के द्वारा सफ़ेद ग्रब जैसे कीटों का नियंत्रण बहुत अच्छे से किया जा सकता है।

  • इसी के साथ पुरानी फसल के अवशेषों को सड़ाने के लिए डीकम्पोजर कल्चर का उपयोग करें। इसके कारण पुरानी फसल के अवशेष बहुत आसानी से उपयोगी खाद में बदल जाते हैं। इसका लाभ फसल को रोग मुक्त रखने में भी मिलता है।

  • बुआई के लिए ऐसी किस्म का चयन करें जो रोग एवं कीट प्रतिरोधी हो। बीजों का चयन करने के बाद बुआई के पहले बीजों की अंकुरण क्षमता परीक्षण अवश्य करें।

  • इससे सोयाबीन के बीज़ स्वस्थ हैं या नहीं यह भी पता चल जाता है साथ ही बुआई के लिए बीज की मात्रा की गणना करने में भी मदद मिलती है।

  • बुआई के पूर्व मिट्टी उपचार एवं बीज उपचार अवश्य करना चाहिए, ऐसा करने से मिट्टी एवं बीज़ जनित रोगों का नियंत्रण किया जा सकता है।

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मक्का में बीज उपचार के माध्यम से फॉल आर्मी वॉर्म कीट का करें नियंत्रण

How To Control Fall ArmyWorm In Maize By Seed Treatment
  • मक्का खरीफ की मौसम की मुख्य फसल है और हम जानते हैं की खरीफ के मौसम में मिट्टी में बहुत नमी रहती है जिसके कारण मक्का में फॉल आर्मी वर्म कीट का प्रकोप बहुत अधिक मात्रा में होता है।

  • इस कीट के नियंत्रण के लिए मक्का की बुआई के समय ही उपाय करना बहुत आवश्यक होता है। ऐसा करने से मक्का की फसल को यह कीट नुकसान नहीं पहुंचा पाता है।

  • मक्का के बुआई से पहले खेत की जुताई करने से कीटों के प्यूपा को पक्षी खा जाते हैं।

  • फॉल आर्मी वर्म की रोकथाम के लिए बीजों को कीटनाशक से उपचारित करने के बाद ही बुआई करें।

  • इसके लिए सुझाये गए कीटनाशकों का उपयोग करें जैसे इमिडाक्लोप्रिड 48% FS @ 5 मिली/किलो बीज़ या क्लोरानिट्रानिलीप्रोल 19.8 + थियामेंथोक्साम 19.8 FS @ 6 मिली/किलो बीज़ से उपचारित करें।

  • जैविक बीज उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 5 ग्राम/किलो बीज उपचारित करें।

  • इसी के साथ कुछ और सावधानियाँ अवश्य अपनाएँ जैसे मक्का की बुआई पूरे खेत में एक साथ करें, अलग-अलग न करें।

  • फॉल आर्मी वर्म के प्रकोप को कम करने के लिए संकर मक्का किस्मों की बुआई करें क्योंकि इसका बीज कवच कड़ा होता है। मक्का के साथ अन्तर्वर्ती फसलों की भी बुआई कर सकते हैं।

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खरीफ की फसलों में बीज उपचार के दौरान अपनाई जाने वाली सावधानियाँ

Precautions to be followed during seed treatment in Kharif crops
  • खरीफ सीजन में मुख्य रूप से कपास, मिर्च, सोयाबीन, टमाटर आदि फसलों की बुआई की जाती है।

  • इन फसलों से अच्छे उत्पादन के लिए बुआई के पहले बीज़ उपचार करना बहुत लाभकारी होता है परंतु बीज उपचार करते समय सावधानी रखना बहुत आवश्यक होता है।

  • बीज उपचार को एफ.आई.आर (FIR) के क्रम में, यानी सबसे पहले कवकनाशी का उपयोग उसके बाद कीटनाशक का और सबसे आखिर में किसी भी जैविक उत्पाद (PSB / राइजोबियम) का उपयोग करें।

  • बीज़ को एक मिट्टी के बर्तन या पालीथीन शीट पर, फैला कर कवक नाशक एवं कीट नाशक के सूखे या तरल रूप को बीजों पर अच्छे से बिखेर कर मिला दें। इस प्रकार के उपचार में एक बात का ध्यान रखें कि रसायन अच्छे से बीजों पर चिपक जाये।

  • बीज उपचार की दूसरी विधि में रसायनों को बीजों पर चिपकाने वाले उत्पाद के साथ मिलाकर बीजों को उपचारित करें।

  • दवा की मात्रा या रसायन को बीजों पर लेपित करने के लिए आवश्यकता अनुसार पानी का उपयोग करें।

  • कवकनाशी एवं कीटनाशक की सुझाई गयी मात्रा का ही उपयोग करें।

  • बीजों को बुआई के समय से पहले उपचारित करके रख सकते है।

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कपास की फसल में लीफ माइनर कीट की पहचान एवं नियंत्रण

Identification and control of leaf miner pest in cotton crop
  • लीफ माइनर (पत्ती सुरंगक) कीट बहुत ही छोटे होते हैं। ये पत्तियों के अंदर जाकर सुरंग बनाते हैं। इससे पत्तियों पर सफेद लकीर दिखाई देती है।

  • इसके वयस्क कीट हल्के पीले रंग के एवं शिशु कीट बहुत छोटे व पैर विहीन पीले रंग के होते हैं।

  • कीट का प्रकोप पत्तियों पर शुरू होता है। यह कीट पत्तियों में सर्पिलाकार सुरंग बनाता है।

  • लार्वा पत्ती के अंदर प्रवेश करता है एवं पत्तियों को खाना शुरू करता है। इससे पत्तियों के दोनों तरफ भूरे रंग के सर्पिलाकार आकृति दिखाई देने लगते हैं।

  • इसके प्रकोप से प्रभावित पौधों पर फल कम लगते हैं और पत्तियां समय से पहले गिर जाती हैं।

  • इसके आक्रमण के कारण पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया प्रभावित होती है।

  • इस कीट के नियंत्रण के लिए एबामेक्टिन 1.9% EC@ 150 मिली/एकड़ या क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 8.8% + थायोमेथोक्जाम 17.5 SC @ 200 मिली/एकड़ या सायनट्रानिलीप्रोल 10.26% OD@ 300 मिली/एकड़ का छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ दर से छिड़काव करें।

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बस ग्रामोफ़ोन पर उपलब्ध है बंपर उपज देने वाली प्याज की ये किस्म, पढ़ें इसकी विशेषताएं

Bhoomi Onion Seeds of Hyveg

खरीफ सीजन में प्याज की खेती करने वाले किसान इस समय इस कश्मकश में हैं की वे बीज कौन सा चुनें? ग्रामोफ़ोन किसानों की इसी कश्मकश को दूर करने के लिए आज के इस लेख में एक बेहतरीन खरीफ प्याज की किस्म से जुड़ी जानकारियां देने जा रहा है। यह किस्म है हाइवेज की भुमी।

हाइवेज कम्पनी की भुमी खरीफ और पछेती खरीफ सीजन में लगाई जाने वाली एक उन्नत किस्म है। इस किस्म की परिपक्वता अवधि 140 से 150 दिन की होती है। इस किस्म के पौधे मजबूत होते हैं। इसके बल्ब आकार में गोल एवं लाल रंग के और चमकदार होते हैं तथा बल्ब का औसत वज़न 90 से 100 ग्राम तक रहता है।

यह किस्म आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प है जो ना सिर्फ अच्छा उत्पादन देगी बल्कि उपज की गुणवत्ता भी ऐसी बेहतर होगी जिसे बाजार में अच्छा दाम मिलेगा। इस बार मध्य प्रदेश के किसानों के लिए ग्रामोफ़ोन ने विशेष तौर पर इस किस्म का चुनाव किया है। यह किस्म आपको सिर्फ ग्रामोफ़ोन पर ही मिलेगी। इसलिए देर ना करें और तुरंत इसकी खरीदी करें।

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मिट्टी में pH की कमी एवं अधिकता के कारण एवं इनसे फसलों को होने वाले नुकसान

Causes of low and excess pH in soil and damage to crops
  • pH कम होने का कारण: अधिक वर्षा के कारण मिट्टी की ऊपरी सतह से क्षारीय तत्व जैसे कैल्शियम, मैग्नीशियम आदि पानी में बह जाते हैं जिसके कारण मिट्टी का पी. एच. मान 6.5 से कम हो जाता है। ऐसी भूमि को हम अम्लीय भूमि कहते हैं।

  • pH की अधिकता का कारण: वैसी मिट्टी जिसमें क्षार तथा लवण उच्च मात्रा में पाए जाते हैं। यह लवण भूरे-श्वेत रंग के रूप में मिट्टी पर जमा हो जाते हैं। इस प्रकार की मिट्टी पूर्णतया अनुपजाऊ एवं ऊसर होती हैं जिसके कारण मिट्टी का पी. एच. मान 7.5 से ज्यादा हो जाता है। इस प्रकार की मिट्टी क्षारीय कहलाती है। मिट्टी में कैल्शियम एवं मैग्नीशियम उर्वरकों के अधिक उपयोग के कारण मिट्टी का pH अधिक हो जाता है जिसके कारण मिट्टी में उर्वरक एवं पोषक तत्वों की उपलब्धता में कमी आ जाती है।

  • pH मान में कमी के कारण पौधों की जड़ों की समान्य वृद्धि रुक जाती है, जिसके कारण जड़ें छोटी, मोटी और इकट्ठी रह जाती हैं। भूमि में मैगनीज और आयरन की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे पौधे कई प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं। इसके कारण फास्फोरस व मोलिब्डेनम की घुलनशीलता कम हो जाती है, पौधों को इसकी उपलब्धता कम हो जाती है, पौधे के लिए आवश्यक पोषक तत्वों में असंतुलन आ जाता है और इन सब की वजह से पैदावार कम हो जाती है।

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