मिर्च की ड्रिप सिंचित फसल में रोपाई के 5-10 दिनों इन उर्वरकों के उपयोग से होगा लाभ

Which fertilizers to use in 5-10 days after transplanting in drip irrigated crop of chilli
  • मिर्च के पौध की मुख्य खेत में रोपाई के बाद, मिर्च की फसल की अच्छी बढ़वार एवं रोगों के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए उर्वरक प्रबधन करना लाभकारी होता है।

  • इस समय मिर्च के पौधों की जड़ें भूमि में फैलती है। जड़ों की अच्छी बढ़वार के लिए उर्वरक प्रबंधन बहुत आवश्यक है।

  • खरीफ का मौसम में मिट्टी में नमी अधिक होती है एवं तापमान में परिवर्तन होता रहता है जिसके कारण मिर्च के पौधे में तनाव की स्थिति हो जाती है। इस प्रकार के वातावरणीय तनाव से फसल को बचाने के लिए मिर्च की फसल में उर्वरक प्रबंधन करना आवश्यक होता है।

  • मिर्च की फसल में उर्वरक प्रबंधन करने के लिए रोपाई के 5वें दिन से अगले 20 दिनों तक यूरिया @ 2 किलो/एकड़ + 19:19:19 @ 1 किलो/एकड़ की दर से ड्रिप के माध्यम से चलाएं।

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सोयाबीन की फसल से लें जबरदस्त उपज, सोया समृद्धि किट का करें उपयोग

SOYA SAMRIDHI KIT

  • ‘सोया समृद्धि किट’ आपकी सोयाबीन की फसल को संपूर्ण पोषण प्रदान करेगा। इस किट में आपको वो सब कुछ एक साथ मिलेगा जिसकी जरूरत सोयाबीन की फसल को होती है।

  • इस किट का उपयोग बुआई के समय मिट्टी उपचार के रूप में किया जा सकता है या फिर बुआई के बाद 15-20 दिनों में मिट्टी में भुरकाव के रूप में भी इसका उपयोग किया जा सकता है।

  • सोया समृद्धि किट की खरीदी पर ग्रामोफ़ोन लाया है ख़ास ऑफर

सोया समृद्धि किट में निम्नलिखित उत्पादों को शामिल किया गया है

पीके बैक्टीरिया का कंसोर्टिया: यह उत्पाद दो प्रकार के बैक्टीरिया पीएसबी (फॉस्फोरस सोल्यूब्लिज़िंग बैक्टेरिया) और केएमबी (पोटाश मोबीलाइज़िंग बैक्टेरिया) से मिलकर बना है। यह मिट्टी एवं फसल में प्रमुख तत्व पोटाश एवं फास्फोरस की पूर्ति में सहायक होता है।

ट्राइकोडर्मा विरिडी: यह एक जैविक कवकनाशी है, जो मिट्टी और बीज में होने वाले रोगजनकों को मारता है जिसकी वजह से जड़ सड़न, तना गलन, उकठा रोग जैसी गंभीर बीमारियों से रोकथाम होती है।

ह्यूमिक एसिड, समुद्री शैवाल, अमीनो एसिड एवं मायकोराइज़ा: ह्यूमिक एसिड मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करके मिट्टी की जल धारण क्षमता में वृद्धि करता और सफेद जड़ के विकास को बढ़ाता है। मायकोराइज़ा एक ऐसा कवक है जो पौधे एवं मिट्टी के बीच सहजीवी संबंध बनाता है। मायकोराइज़ा कवक पौधे की जड़ प्रणाली में प्रवेश करता है, जिससे पानी और पोषक तत्वों की अवशोषण क्षमता बढ़ जाती है।

राइज़ोबियम सोयाबीन कल्चर: इस उत्पाद में नाइट्रोजन का जीवाणु पाया जाता है जो सोयाबीन की जड़ों में रह कर वायुमंडलीय नाइट्रोज़न को स्थिर कर पौधों को प्रदान करता है।

कृषि एवं कृषि उत्पादों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। उन्नत कृषि उत्पादों की खरीदी के लिए ग्रामोफ़ोन के बाजार विकल्प पर जाना ना भूलें।

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सोयाबीन की फसल में बुआई के बाद पूर्व उद्भव खरपतवारों का ऐसे करें नियंत्रण

How to control pre-emergence weeds after sowing in soybean crop
  • सोयाबीन की खेती में मुख्य रूप से खरपतवार, कीट व रोगों के प्रकोप से उत्पादन बहुत प्रभावित होता है। इनमें सबसे ज्यादा 35 से 70 प्रतिशत तक हानि केवल खरपतवारों के कारण होती है।

  • खरपतवार नैसर्गिक संसाधन जैसे प्रकाश, मिट्टी, जल, वायु के साथ-साथ पोषक तत्व इत्यादि के लिये भी फसल से प्रतिस्पर्धा कर उपज में भारी कमी लाते हैं।

  • खरपतवारों की अधिकता के कारण, सोयाबीन की फसल में रोगों का भी प्रकोप बहुत अधिक होता है।

  • पूर्व उद्भव खरपतवारनाशक से आशय यह है की ये वे शाकनाशी है, जो फसल की बुवाई के बाद तथा खरपतवार या फसल के अंकुरण से पूर्व खेत में प्रयोग किये जाते हैं। इनका भूमि की सतह पर छिड़काव करते हैं।

  • बुआई के बाद, खरपतवार के उगने से पहले ही इसे नियंत्रित करना बहुत लाभकारी होता है। इसके लिए इमिजाथपायर 2% + पेंडीमेथलीन 30% @ 1 लीटर/एकड़ या डाइक्लोसुलम 84% WDG @ 12.4 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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सोयबीन की बुआई के 15-20 दिनों में रोग व कीटों से बचाव हेतु जरूर अपनाएं ये प्रबंधन उपाय

How to manage diseases and pests in soybean crop in 15-20 days after sowing
  • सोयाबीन की बुआई के बाद 15-20 दिनों की अवस्था में छिड़काव करना बहुत आवश्यक होता है।

  • इस छिड़काव के कारण तना गलन, जड़ गलन जैसे रोगों का सोयाबीन की फसल में आक्रमण नहीं होता है।

  • यह छिड़काव सोयाबीन की फसल में लगने वाले कीटों से सुरक्षा के लिए बहुत मददगार साबित होता है।

  • इस अवस्था में सोयाबीन की फसल में गर्डल बीटल एवं चूसक कीटों के नियंत्रण के लिए लैंबडा-साइफलोथ्रिन 4.9% CS @ 200 मिली/एकड़ या प्रोफेनोफॉस 50% SC @ 500 मिली/एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • सोयाबीन की इस अवस्था में, तना गलन, जड़ गलन एवं पत्ती झुलसा जैसे रोगों के नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ब 63% WP @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • सोयाबीन की फसल में अधिक नमी, कीट एवं रोग के प्रकोप के कारण फसल का विकास ठीक से नहीं होता है। सोयाबीन की फसल की अच्छी वृद्धि के लिए समुद्री शैवाल @ 400 ग्राम/एकड़ या एमिनो एसिड@ 250 मिली/एकड़ या जिब्रेलिक एसिड 0.001%@ 300 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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खरीफ मूंग की उन्नत खेती के लिए बुआई से पहले जरूर करें बीज़ उपचार

seed treatment in kharif Green Gram
  • मूंग की फसल में बुआई से पहले बीज उपचार करना बहुत आवश्यक होता है।

  • बीज़ उपचार जैविक एवं रासयनिक दोनों विधियों से किया जा सकता है।

  • मूंग में बीज़ उपचार एफआईआर पद्धति से करना चाहिए अथार्त पहले कवकनाशी, फिर कीटनाशी अंत में राइज़ोबियम का उपयोग करना चाहिए।

  • कवकनाशी से बीज़ उपचार करने के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 2.5 ग्राम/किलो बीज़ या कार्बोक्सिन 17.5% + थायरम 17.5% @ 2.5 मिली/किलो बीज़ से या ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 5-10 ग्राम/किलो बीज़ से उपचारित करें।

  • कीटनाशी से बीज़ उपचार करने के लिए, थियामेंथोक्साम 30% FS @ 4 मिली/किलो बीज़ या इमिडाक्लोरोप्रिड 48% FS @ 4-5 मिली/किलो बीज़ से बीज़ उपचार करें।

  • मूंग में नाइट्रोज़न स्थिरीकरण को बढ़ाने के लिए, राइजोबियम @ 5 ग्राम/किलो बीज़ से उपचारित करें।

  • कवकनाशी से बीज़ उपचार करने से मूंग की फसल उकठा रोग एवं जड़ सड़न रोग से सुरक्षित रहती है, साथ ही बीज का अंकुरण सही ढंग से होता है एवं अंकुरण प्रतिशत बढ़ता है। इससे मूंग की फसल का प्रारंभिक विकास समान रूप से होता है।

  • राइज़ोबियम से बीज़ उपचार करने से, मूंग की फसल की जड़ में गाठों (नॉड्यूलेशन) को बढ़ाता है एवं अधिक नाइट्रोज़न को स्थिर करता है।

  • कीटनाशकों से बीज़ उपचार करने से मिट्टी जनित कीटों जैसे सफ़ेद ग्रब, चींटी, दीमक आदि से मूंग की फसल की रक्षा होती है। प्रतिकूल परिस्थितियों (कम/उच्च नमी) में भी अच्छी फसल प्राप्त होती है।

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मक्का की फसल से पाएं जबरदस्त उपज, इस्तेमाल करें मक्का समृद्धि किट

मक्का समृद्धि किट
  • मक्का समृद्धि किट कई उन्नत जैविक उत्पादों से भरा एक किट है जिसका उपयोग मक्का की फसल में बुआई से पहले मिट्टी उपचार रूप में किया जाता है। आइये जानते हैं इस किट में कौन कौन से उत्पाद शामिल हैं?

  • एनपीके बैक्टीरिया का कंसोर्टिया: यह उत्पाद तीन प्रकार के बैक्टीरिया ‘नाइट्रोजन फिक्सेशन बैक्टीरिया, पीएसबी और केएमबी से मिलकर बना है। यह मिट्टी एवं फसल में तीन प्रमुख पोषक तत्व नाइट्रोजन, पोटाश एवं फास्फोरस की पूर्ति में सहायक होता है। इससे मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि होती है जिससे पौधों को समय पर आवश्यक तत्व मिल जाते हैं और पौधे की बढ़वार अच्छी होती है साथ ही फसल का उत्पादन भी बढ़ता है।

  • ज़िंक सोलुब्लाइज़िंग बैक्टीरिया: यह उत्पाद मिट्टी में मौजूद, अघुलनशील जिंक को घुलनशील बनाने में मदद करता है और पौधों को यह उपलब्ध करवाता है। यह पौधों की वृद्धि के लिए सबसे महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्वों में से एक है।

  • ह्यूमिक एसिड, समुद्री शैवाल, अमीनो एसिड एवं मायकोराइज़ा: ह्यूमिक एसिड मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करके मिट्टी की जल धारण क्षमता में वृद्धि करता और सफेद जड़ के विकास को बढ़ाता है। समुद्री शैवाल पौधों को पोषक तत्व ग्रहण करने में मदद करता है और अमीनो एसिड प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया को बढ़ाता है।मायकोराइज़ा सफेद जड़ के विकास में मदद करता है।

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रस चूसक कीटों के प्रकोप पर अपनाएं ये उपाय, नहीं होगा फसल पर कोई प्रभाव

Follow these measures on the outbreak of sucking pests
  • खरीफ के मौसम में तापमान में काफी उतार-चढ़ाव तथा वातावरण में बहुत नमी रहती है जिसके कारण रस चूसक कीटों का आक्रमण फसलों के जीवन चक्र में कभी भी हो सकता है।

  • रसचूसक कीटों में थ्रिप्स, एफिड, जैसिड, मकड़ी, सफ़ेद मक्खी आदि शामिल हैं और यह सभी कीट फसलों की पत्तियो का रस चूसकर कर फसल को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं।

आइये जानते हैं इन कीटों के नियंत्रण के उपाय

  • थ्रिप्स नियंत्रण: प्रोफेनोफोस 50% EC @ 500 मिली/एकड़ या एसीफेट 75% SP @ 300 ग्राम/एकड़ लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 250 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • एफिड/जैसिड नियंत्रण: एसीफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% SP@ 400 ग्राम/एकड़ या एसिटामिप्रीड 20% SP @ 100 ग्राम/एकड़ या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL @ 100 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • सफ़ेद मक्खी नियंत्रण: डायफैनथीयुरॉन 50% WP @ 250 ग्राम/एकड़ या फ्लोनिकामिड 50% WG @ 60 ग्राम/एकड़ या एसिटामिप्रीड 20% SP @ 100 ग्राम/एकड़ की दर छिड़काव करें।

  • मकड़ी नियंत्रण: प्रॉपरजाइट 57% EC @ 400 मिली/एकड़ या स्पायरोमैसीफेन 22.9 % SC @ 200 मिली/एकड़ या एबामेक्टिन 1.9% EC @ 150 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • इन सभी कीटों के जैविक नियंत्रण के लिए बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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धान की नर्सरी की 15-20 दिनों की अवस्था में करें ये जरूरी छिड़काव

Benefits of spraying in paddy nursery in 15-20 days
  • धान की नर्सरी में बुआई के बाद 15-20 दिनों की अवस्था में छिड़काव करना बहुत आवश्यक होता है।

  • इस छिड़काव के कारण तना गलन, जड़ गलन जैसे रोग धान की फसल में आक्रमण नहीं करते हैं।

  • धान की नर्सरी में प्रारंभिक अवस्था में लगने वाले कीटों का आसानी से नियंत्रण किया जा सकता है।

  • धान की नर्सरी की इस अवस्था में इन उत्पादों का उपयोग बहुत लाभकारी होता है।

  • नर्सरी की 15-20 दिनों की अवस्था में उपचार: इस समय पौधा नर्सरी मे अंकुरण की प्रारभिक अवस्था में रहता है। इस अवस्था में दो प्रकार से छिड़काव किया जा सकता है।

  • कीटों के प्रकोप से बचने के लिए फिप्रोनिल 5% SC 30 मिली/पंप या बवेरिया @ 50 ग्राम/पंप की दर से छिड़काव करें। कवक जनित बीमारियों की रोकथाम के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 30 ग्राम/पंप या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस + ट्राइकोडर्मा @ 25 + 50 ग्राम/पंप की दर से छिड़काव करें। नर्सरी की अच्छी बढ़वार के लिए ह्यूमिक एसिड @ 10 ग्राम/पंप की दर से छिड़काव करें।

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मिर्च के मुख्य खेत में रोपाई के बाद यह पहला छिड़काव है जरूरी

First spraying in chilli after transplanting in main field
  • मिर्च की मुख्य खेत में रोपाई के बाद मिर्च की फसल में रोगों एवं कीटों का प्रकोप होने की संभावना होती है। इन रोगों एवं कीटों से मिर्च की फसल की रक्षा करना बहुत आवश्यक होता है।

  • मिर्च की रोपाई के 10-15 दिनों में, कवक रोग जैसे झुलसा रोग, पत्ती धब्बा रोग, उकठा रोग आदि के लगने की पूरी संभावना रहती है। कीट प्रकोप की बात करें, तो रस चूसक कीट जैसे थ्रिप्स, एफिड, जेसिड, सफेद मक्खी, मकड़ी इत्यादि प्रमुख हैं जो इस वक़्त लग सकते हैं।

  • जब मिर्च की रोप को मुख्य खेत में लगाया जाता है तो मिर्च की पौध को अच्छे से अपनी जड़ों को भूमि में फैलाने के लिए पोषक तत्व की भी आवश्यकता होती है। इसके लिए, सूक्ष्म पोषक तत्व प्रबधन छिड़काव के रूप में करना बहुत आवश्यक है।

  • इन्ही कीट, कवक एवं जीवाणु रोगों से मिर्च की फसल की रक्षा के लिए एवं फसल की अच्छी बढ़वार के लिए छिड़काव करना बहुत आवश्यक होता है।

  • इसके लिए सीवीड एक्सट्रेक्ट + एमिनो एसिड + फल्विक एसिड 400 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें। इससे मिर्च की फसल में आवश्यक पोषक तत्व की पूर्ति एवं अच्छी बढ़वार होती है।

  • थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से कवक एवं जीवाणु जनित रोगों की रोकथाम लिए छिड़काव करें।

  • थियामेंथोक्साम 25% WG @ 100 ग्राम/एकड़ या सायनट्रानिलीप्रोल 10.26% OD@ 240 मिली/एकड़ की दर से रस चूसक कीटों के नियंत्रण के लिए छिड़काव करें।

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सोयाबीन की बुआई करने के बाद कवक रोगों से बचाव के ये उपाय जरूर करें

What measures to take to avoid fungal diseases after sowing soybean crop
  • वर्तमान समय में किसानों को सोयाबीन की फसल से बहुत अधिक लाभ नहीं मिल पाता है इसके पीछे बहुत से कारण है। इसका एक मुख्य कारण सोयाबीन की फसल में होने वाले कवक रोग हैं जिसके कारण फसल बहुत अधिक प्रभावित होती है।

  • सोयाबीन फसल में लगने वाले कवक रोगों में पौध सडन रोग, झुलसा रोग, पत्ती धब्बा रोग आदि प्रमुख हैं जिसके कारण बहुत ज्यादा नुकसान होता है।

  • इनके नियंत्रण के लिए रोग प्रबधन करना बहुत आवश्यक होता है। इसके लिए रोग रोधी किस्मों का चयन करें एवं बुआई के पूर्व, बीज़ एवं मिट्टी उपचार जरूर कर लें। साथ ही फसल में रोग के लक्षण दिखाई देने पर तुरंत छिड़काव करें।

  • सोयाबीन की फसल में पानी बहुत देर तक एवं अधिक मात्रा में रुकने ना दें, क्योंकि जितनी अधिक मात्रा में पानी जमा होगा, पौधे पर प्रभाव एवं फसल में कवक जनित रोगों का प्रकोप उतना ही ज्यादा होगा।

  • कवक रोगों के नियंत्रण के लिए हमेशा एक ही तरह के कवकनाशी का उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि एक ही कवकनाशी का बार बार उपयोग करने से रोग की उस कवकनाशी के प्रति प्रतिरोधकता उत्पन्न हो जाती है जिसके कारण रोग का नियंत्रण नहीं हो पाता है।

  • सोयाबीन को निश्चित दूरी पर बोयें, अधिक घना ना बोयें क्योंकि इससे भी कवक के आक्रमण की सम्भावना रहती है। खरपतवार का नियंत्रण करें क्योंकि कवक जनित रोगों को फैलाने में यह भी सहायक होते हैं।

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