बाढ़ सिंचित मिर्च की 40-60 दिनों की फसल में जरूर करें उर्वरक प्रबधन

Fertilizer management in 40-60 days in flood irrigated chilli crop
  • मिर्च की फसल 40-60 दिनों में रोपाई के बाद दूसरी वृद्धि अवस्था में रहती है। इस समय मिर्च की फसल में फूल की अवस्था होती है। अच्छे फूल लगने के लिए फसल में उर्वरक प्रबंधन करना आवश्यक होता है। पौधे के विकास के साथ साथ, अच्छे फूल एवं फल विकास के लिए प्रमुख और सूक्ष्म पोषक तत्व का फसल में उपयोग करना उपयोगी होता है।

  • ये सभी पोषक तत्व मिर्च की फसल में सभी तत्वों की पूर्ति करते है, साथ ही फल विकास के समय, मिर्च की फसल में रोगों से लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता का भी विकास करते हैं।

  • पोषक तत्व प्रबंधन के लिए यूरिया 45 किग्रा/एकड़ + डीएपी 50 किग्रा/एकड़ + मैग्नीशियम सल्फेट 10 किग्रा/एकड़ + सूक्ष्मपोषक तत्व 10 किग्रा/एकड़ + कैल्शियम नाइट्रेट @ 5 किलो/एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • यूरिया: मिर्च की फसल में यूरिया नाइट्रोज़न की पूर्ति का सबसे बड़ा स्त्रोत है। इसके उपयोग से पत्तियों में पीलापन एवं सूखने की समस्या नहीं आती है। यूरिया प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को भी तेज़ करता है।

  • DAP (डाय अमोनियम फॉस्फेट): इसका उपयोग फसल में फास्फोरस की पूर्ति के लिए किया जाता है। इसके उपयोग से जड़ की वृद्धि अच्छी होती है और पौधे की बढ़वार में सहायता मिलती है।

  • मैग्नीशियम सल्फेट: मिर्च की फसल में मेग्नेशियम सल्फेट के प्रयोग से हरियाली बढ़ती है एवं प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में तेज़ी आती है। अंततः उच्च पैदावार और फसल की गुणवत्ता बढ़ती है।

  • सूक्ष्म पोषक तत्व: यह मिर्च के पौधे में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया सुगम करता है। फसल के उत्पादन को बढ़ाने एवं मिट्टी के स्वास्थ्य को बेहतर करने में मदद करता है।

  • कैल्शियम नाइट्रेट: फसल के उत्पादन को बढ़ाने में यह सहायता करता है। पौधों के भीतर विषाक्त रसायनों को निष्क्रिय करने में सहायता करता है।

  • बताये गए सभी पोषक तत्व का उपयोग मिट्टी में मिलाकर करें और उपयोग के बाद हल्की सिंचाई अवश्य करें।

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पत्ता गोभी की फसल में पत्ते खाने वाली इल्ली का हुआ प्रकोप, जानें नियंत्रण के उपाय

How to control leaf eating caterpillar in Cabbage crop
  • इस कीट की इल्लियाँ, पत्तों के हरे पदार्थ को खाकर नुकसान पहुंचाती है तथा खाई गई जगह पर केवल सफेद झिल्ली रह जाती है जो बाद में छेदों में बदल जाती है।

  • इस इल्ली को डायमण्ड बैक मोथ के नाम से जानते हैं और इसके अंडे सफ़ेद-पीले रंग के होते हैं।

  • इस कीट की इल्लियाँ 7-12 मिमी लंबी होती है साथ ही इसके पूरे शरीर पर बारीक रोयें भी होते हैं।

  • इसके वयस्क 8-10 मिमी लम्बे, मटमैले रंग के या हल्के भूरे रंग के होते हैं। इनके पीठ पर हीरे नुमा चमकीले धब्बे भी होते हैं।

  • वयस्क मादा पत्तियों पर एक एक कर या समूह में अंडे देती है। छोटी हरी इल्लियाँ, अंडों से निकलने के बाद, पत्तियों की बाहरी परत को खाकर छेद कर देती हैं।

  • इसका अधिक आक्रमण होने पर इल्लियाँ पत्तियों को खाकर जालेनुमा आकार छोड़ती है।

  • इसके नियंत्रण के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG@ 100 ग्राम/एकड़ या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC @ 60 मिली/एकड़ या नोवालूरान 5.25% + इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% SC@ 600 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक नियंत्रण के रूप में हर छिड़काव के साथ बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।

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मिर्च में बढ़ रही हैं पत्ती मुड़ने की समस्या, जानें नियंत्रण के उपाय

What is the reason for the problem of leaf curling in chilly crops and its solution
  • मिर्च की फसल में सबसे अधिक नुकसान पत्तियों के मुड़ने से होता है, जिसे विभिन्न स्थानों में कुकड़ा या चुरड़ा-मुरड़ा रोग के नाम से जाना जाता है। इसके कारण मिर्च की पत्तियां मुड़ जाती हैं।

  • यह समस्या मिर्च की फसल में थ्रिप्स के प्रकोप के कारण होती है। इसके कारण मिर्च की पत्तियां ऊपर की ओर मुड़ कर नाव के आकार की हो जाती हैं। इससे पत्तियां सिकुड़ भी जाती हैं और पौधा झाड़ीनुमा दिखने लगता है।

  • इससे प्रभावित पौधों में फल नहीं लगते है इसीलिए ग्रसित पौधे में ऐसे लक्षण देखते ही खेत से उखाड़ कर बाहर कर दें। खेत को खरपतवार से मुक्त रखें।

  • इस समस्या के निवारण के लिए मिर्च के खेत में थ्रिप्स का प्रकोप ना होने दें एवं यदि थ्रिप्स का प्रकोप दिखाई दे तो इसके प्रबधन के लिए फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़, थियामेंथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 9.5% ZC @ 80 मिली/एकड़, लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 300 मिली/एकड़, स्पिनोसेड 45% SC @ 60 मिली/एकड़, सायनट्रानिलीप्रोल 10.26% OD @ 240 मिली/एकड़, की दर से छिड़काव करें।

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कपास की पत्तियों में आ रही है पीलेपन की समस्या, जानें निवारण के उपाय

Reason and Solution for the problem of yellowing of leaves in the cotton crop
  • मौसम में लगातार हो रहे परिवर्तन एवं जरुरत से कम बारिश की वजह से कपास की फसल में, पत्तियों के पीलेपन की बहुत अधिक समस्या आ रही है और इस समस्या के कारण, फसल की वृद्धि एवं विकास पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ रहा है।

  • कपास की फसल में पत्तियों का पीलापन कवक, कीट एवं पोषण संबंधी समस्या के कारण भी हो सकता है।

  • यदि यह कवक के कारण होता है तो क्लोरोथालोनिल 75% WP@ 400 ग्राम/एकड़ या थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W @ 300 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।

  • मौसम के परिवर्तन या पोषण के कारण ऐसा होने पर सीवीड (विगरमैक्स जेल) @ 400 ग्राम/एकड़ या ह्यूमिक एसिड 100 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • कीटों के प्रकोप के कारण ऐसा होने पर प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG @ 80 ग्राम/एकड़ की दर उपयोग करें।

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कपास की फसल में फूल लगने के पहले जरूर कर लें कीट व रोग प्रबधन

  • कपास की फसल के पुष्प गूलर तथा अन्य बढ़वार अवस्थाओं में, भिन्न-भिन्न किस्म के कीट एवं रोग सक्रिय रहते हैं।

  • इन कीटों एवं बीमारियों के नियंत्रण के लिए 40-45 दिनों में छिड़काव प्रबंधन करना बहुत आवश्यक है।

  • गुलाबी सुंडी के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए बीटासायफ्लूथ्रिन 8.49% + इमिडाक्लोप्रिड19.81 OD% @ 150 मिली/एकड़ का या मकड़ी की रोकथाम के लिए एबामेक्टिन 1.9% EC @ 150 मिली/एकड़ का या जैविक नियंत्रण के लिए बेवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें।

  • कवक जनित रोग के नियंत्रण के लिए, कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% WP @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें या जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • होमोब्रेसिनोलाइड 0.04 W/W @ 100मिली/एकड़ का उपयोग करें, पौधे की अच्छी वृद्धि एवं फूलों के अच्छे विकास के लिए यह छिड़काव करना बहुत आवश्यक है।

  • छिड़काव के 24 घंटे के अंदर अगर वर्षा हो जाये तो पुनः छिड़काव करें।

    पत्तियों की निचली सतह पर अच्छी तरह से छिड़काव किया जाना चाहिए क्योंकि कीट पत्तियों की निचली सतह पर अधिक सक्रिय होते हैं।

  • कवक रोग, कीट नियंत्रण एवं पोषण प्रबंधन के लिए उपाय करने से कपास की फसल का उत्पादन अच्छा होता है। इस प्रकार से छिड़काव करने से डेंडू का निर्माण बहुत अच्छा होता है एवं उपज की गुणवत्ता बढती है।

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कपास की फसल में 40-50 दिनों में इन उर्वरकों की पूर्ति है जरूरी

How to supply fertilizer in cotton crop in 40-50 days
  • कपास की फसल में 40-45 दिनों की अवस्था, डेंडू बनने की शुरुआती अवस्था होती है। इस अवस्था में कपास की फसल को अधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है इस हेतु निम्नलिखित पोषक तत्वों का उपयोग करना जरूरी हो जाता है।

  • यूरिया @ 30 किलो + MOP @ 30 किलो + मैग्नीशियम सल्फेट @ 10 किलो/एकड़ की दर से भूमि में मिलाएं।

  • यूरिया: कपास की फसल में यूरिया नाइट्रोज़न की पूर्ति का सबसे बड़ा स्त्रोत है। इसके उपयोग से पत्तियों में पीलापन एवं सूखने जैसी समस्या नहीं आती है, यूरिया प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को भी तेज़ करता है।

  • MOP (पोटाश): पोटाश संश्लेषित शर्करा को कपास के पौधे के सभी भागों तक पहुंचाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पोटाश प्राकृतिक नत्रजन की कार्य क्षमता को बढ़ावा देता है और पौधों में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ता है।

  • मैग्नीशियम सल्फेट: मेग्नेशियम सल्फेट अनुप्रयोग से कपास की फसल में हरियाली बढ़ती है एवं प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में तेज़ी आती है। अंततः उच्च पैदावार और उत्पादन की गुणवत्ता भी बढ़ती है।

  • इस प्रकार पोषण प्रबधन करने से कपास की फसल में नाइट्रोज़न की पूर्ति बहुत अच्छे से होती है। पोटाश के कारण डेंडु की संख्या और आकार में बढ़ोतरी होती है। मैगनेशियम सल्फेट सूक्ष्म पोषक तत्वों की पूर्ति करता है। यदि डेंडू का निर्माण बहुत अच्छा होता है तो कपास का उत्पादन भी अधिक होता है।

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खरतपतवारों की ऐसे करें पहचान, जानें इससे फसलों को होते हैं किस प्रकार के नुकसान

Know what kind of damage weed causes to crops

फसलों को होने वाले नुकसान में सबसे ज्यादा करीब 35 से 70 प्रतिशत तो सिर्फ खरपतवारों के प्रकोप से होता होता है। खरपतवार नैसर्गिक संसाधन जैसे प्रकाश, जगह, जल, वायु के साथ-साथ पोषक तत्व के लिये फसल से प्रतिस्पर्धा करते हैं और उपज में भारी कमी लाते हैं। खरपतवारों के अधिक प्रकोप के कारण फसल में रोगों का प्रकोप भी बहुत अधिक बढ़ जाता है।

फसल में तीन प्रकार के खरपतवार होते हैं

  • सकरी पत्ती/एक बीज़ पत्रीय खरपतवार: घास परिवार के खरपतवारों की पत्तियाँ, पतली एवं लम्बी होती हैं तथा इन पत्तियों पर समांतर धारियां पाई जाती हैं। यह एक बीज पत्रीय पौधे होते हैं। इनके उदाहरणों में सांवक (इकाईनोक्लोआ कोलोना) तथा कोदों (इल्यूसिन इंडिका) इत्यादि शामिल हैं।

  • चौड़ी पत्ती/दो बीज़ पत्रीय खरपतवार: इस प्रकार के खरपतवारों की पत्तियाँ प्राय: चौड़ी होती हैं। यह मुख्यत: दो बीजपत्रीय पौधे होते हैं। इनमें छोटी और बड़ी दूधी, फुलकिया, दिवालिया, बोखाना, जंगली चौलाई (अमरेन्थस बिरिडिस), सफेद मुर्ग (सिलोसिया अजरेन्सिया), जंगली जूट (कोरकोरस एकुटैंन्गुलस) आदि शामिल होते हैं।

  • वार्षिक खरपतवार: इन खरपतवारों की पत्तियां लंबी तथा तना तीन किनारे वाला ठोस होता है। इनकी जड़ों में गांठे (ट्यूबर) पाए जाते हैं जो भोजन इकट्ठा करके नए पौधों को जन्म देने में सहायक होते हैं। इनमे दूब, मोथा (साइपेरस रोटन्ड्स, साइपेरस स्पीशीज) इत्यादि शामिल होते हैं।

खरपतवार के कारण फसल की उपज बहुत प्रभावित होती है। फसल को दिए जाने वाले पोषक तत्व भी खरपतवार के द्वारा ग्रहण कर लिए जाते हैं। सामान्यतः खरपतवार फसलों को मिलने वाली 47% फास्फोरस, 50% पोटाश, 39% कैल्शियम और 34 मैग्नीशियम तक का उपयोग कर लेते हैं। जिससे फसल की उपज घट जाती है। इन खरपतवारों के कारण फसल पर कवक जनित रोगों और कीटों का प्रकोप भी बहुत अधिक होता है।

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पत्तागोभी की नर्सरी के इन उत्पादों के साथ यह पहला छिड़काव जरूर करें

Which products should be used for the first spray in the cabbage nursery
  • पत्तागोभी की नर्सरी में बुवाई के बाद 10-15 दिनों की अवस्था में छिड़काव करना अति आवश्यक होता है।

  • इस छिड़काव के द्वारा पौध गलन और जड़ गलन जैसे रोग गोभी की फसल में नहीं लगते हैं।

  • पत्तागोभी की नर्सरी की प्रारंभिक अवस्था में लगने वाले कीटों का भी इस छिड़काव से आसानी से नियंत्रण किया जा सकता है।

  • 10 दिनों की नर्सरी अवस्था दरअसल अंकुरण के बाद की प्रारभिक अवस्था होती है, इस अवस्था में दो प्रकार से छिड़काव कर पौध की रक्षा की जा सकती है।

  • कीटों के प्रकोप से बचने के लिए, थायमेथोक्सम 25 % WP@ 10 ग्राम/पंप या बवेरिया @ 50 ग्राम/पंप की दर से छिड़काव करें।

  • किसी भी तरह के कवक जनित बीमारियों की रोकथाम के लिए थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W 30 ग्राम/पंप या ट्राइकोडर्मा 25 ग्राम + स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 25 ग्राम/पंप की दर से छिड़काव करें।

  • नर्सरी में अच्छी पौध बढ़वार के लिए ह्यूमिक एसिड @ 10 ग्राम/पंप की दर से छिड़काव करें।

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टमाटर की मुख्य खेत में रोपाई के बाद इस पहले छिड़काव से मिलेंगे कई लाभ

Benefits of first spraying after tomato transplanting
  • टमाटर के पौध की मुख्य खेत में रोपाई के बाद, फसल में रोगों व कीटों का प्रकोप होने की संभावना होती है। इनसे टमाटर की फसल की रक्षा करना बहुत आवश्यक होता है।

  • टमाटर की रोपाई के 10-15 दिनों में कवक रोग जैसे झुलसा, पत्ती धब्बा, उकठा रोग लगने की पूरी संभावना रहती है। कीट प्रकोप की बात करें तो रस चूसक कीट जैसे थ्रिप्स, एफिड, जेसिड, सफेद मक्खी, मकड़ी इत्यादि प्रमुख हैं।

  • टमाटर की रोप को मुख्य खेत में लगाया जाता है। इस अवस्था में पौधे को अच्छे से अपनी जड़ों को भूमि में फैलाने के लिए पोषक तत्व की आवश्यकता होती है। इसके लिए छिड़काव के रूप मे सूक्ष्म पोषक तत्व का प्रबधन करना बहुत आवश्यक है।

  • इन्ही कीट, कवक एवं जीवाणु रोगों से टमाटर की फसल की रक्षा के लिए एवं फसल की अच्छी बढ़वार के लिए छिड़काव करना बहुत आवश्यक होता है।

  • इसके लिए सीवीड एक्सट्रेक्ट + एमिनो एसिड + फल्विक एसिड 400 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें। इससे टमाटर की फसल में आवश्यक पोषक तत्व की पूर्ति एवं अच्छी बढ़वार होती है।

  • कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% WP @ 400 ग्राम/एकड़ की दर से कवक एवं जीवाणु जनित रोगों की रोकथाम लिए छिड़काव करें या जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • थियामेंथोक्साम 25% WG @ 100 ग्राम/एकड़ या सायनट्रानिलीप्रोल 10.26% OD@ 240 मिली/एकड़ या एसिटामिप्रीड 20% SP @ 100 ग्राम/एकड़ की दर से रस चूसक कीटों के नियंत्रण के लिए छिड़काव करें।

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सोयाबीन को काफी नुकसान पहुंचाएगी पत्ती खाने वाली ये इल्ली, जानें नियंत्रण विधि

How to control leaf eating caterpillar in soybean crop

इस कीट के लार्वा पत्ती पर आक्रमण करते हैं और पत्ती के नरम ऊतकों (भागों) को खाकर नुकसान पहुंचाते हैं। यह इल्ली एक पत्ती को खाने के बाद नई पत्तियों पर भी आक्रमण करती है फलस्वरूप यह इल्ली 40-50% सोयाबीन की फसल को नुकसान पहुंचाती हैं। जब सोयाबीन की फसल को अलग से यूरिया दी जाती है तो सोयाबीन की फसल में इल्ली के हमले की संभावना अधिक हो जाती है।

सोयाबीन की फसल को इस इल्ली से बचाने के लिए यांत्रिक, रसायनिक एवं जैविक
विधियों से रोकथाम की जा सकती है।

यांत्रिक नियंत्रण: सोयाबीन की बुआई के पहले गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें। इससे इस इल्ली के प्यूपा ज़मीन में ही नष्ट हो जाएंगे। मानसून पूर्व बुवाई ना करें क्योंकि इससे इल्ली को अपनी संख्या बढ़ाने के लिए उचित तापमान मिल जाता है। फसल की बहुत अधिक घनी बुवाई ना करें। यदि कोई संक्रमित पौधा दिखाई से तो उसे उखाड़ कर नष्ट कर दें। इल्ली के अच्छे नियंत्रण के लिए खेत में 10 नग प्रति एकड़ की दर से फेरामोन ट्रैप स्थापित करें और इस ट्रैप में लगने वाले ल्युर को हर 3 सप्ताह के अंतराल से बदलते रहें।

रासायनिक नियंत्रण: प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिली/एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @ 100 ग्राम/एकड़ या फ्लूबेण्डामाइड 20% WG @ 100 ग्राम/एकड़ या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC @ 60 मिली/एकड़ का छिड़काव करें।

जैविक नियंत्रण: बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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