गोभी वर्गीय फसलों में इन कीटों के प्रकोप से होगा नुकसान, जानें बचाव के उपाय

Integrated pest management of Diamondback Moth in cole crops
  • फूलगोभी, पत्तागोभी, ब्रोकोली और अन्य गोभी वर्गीय फसलों का प्रमुख कीट है डाइमंड बैक मॉथ।

  • इस कीट की इल्लियाँ पत्ते के हरे पदार्थ को खुरचकर खाती हैं तथा खाई गई जगह पर केवल सफ़ेद झिल्ली रह जाती है जो बाद में छिद्रों में बदल जाती हैं और धीरे धीरे पूरे फसल को क्षति पहुँचाती हैं l

  • यह कीट उपज में 50-80% तक कमी ला सकता हैं l इसका प्रकोप सितम्बर से अक्टूबर और मार्च से अप्रैल माह में अधिक दिखाई देता हैंl

प्रबंधन:

  • ट्रैप फसल के रूप में फूलगोभी, पत्तागोभी की प्रत्येक 25 पंक्तियों के बाद सरसों की 2 पंक्तियाँ लगाएंl सरसों की एक कतार गोभी बोने से 15 दिन पहले और दूसरी गोभी की बुआई के 25 दिन बाद बोई जाती है। खेत की पहली और अंतिम कतार सरसों की ही होनी चाहिए।

  • वयस्क डीबीएम के लिए 3-4 प्रकाश पाश प्रति एकड़ लगाएं।

  • बैसिलस थुरिंजिनिसिस 200 ग्राम या स्पिनोसेड 45% SC 75 मिली प्रति एकड़ का छिड़काव करें और 10-15 दिनों के अंतराल में इसे दोहराते रहें।

  • रासायनिक नियंत्रण: इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG 100 ग्राम या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC 60 मिली 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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बैंगन की फसल में फल एवं तना छेदक कीट का ऐसे करें नियंत्रण

How to control Fruit and Shoot Borer in brinjal crop
  • फल एवं तना छेदक बैंगन की फसल का एक अति हानिकारक कीट हैं। इसकी अत्यधिक नुकसान पहुंचाने वाली अवस्था लार्वा होती है, जो शुरूआती अवस्था में बड़ी पत्तियों, कोमल टहनियों व तने को नुकसान पहुंचाता है, और बाद में कलियों एवं फलों पर गोल छिद्र बना कर के अंदर की सतह को खोखला बना देता हैं l यह कीट बैंगन की फसल को 70 से 100% तक नुकसान पहुंचा सकता है।

  • इससे बचाव के लिए रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए।

  • रोग ग्रस्त पौधों और फलों को उखाड़कर खेत से बाहर फेंक देंl

  • 10 फेरामोन ट्रैप प्रति एकड़ की दर से उपयोग करेंl

  • फसल में समयानुसार कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करेंl

  • रासायनिक नियंत्रण: इस कीट के नियंत्रण के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG 100 ग्राम या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC 60 मिली या स्पिनोसेड 45% SC 60 मिली या क्युँनालफॉस 25% EC 400 मिली 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ का छिड़काव करेंl

  • जैविक नियंत्रण: बवेरिया बेसियाना 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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मक्का की फसल में बढ़ रहा है एफिड प्रकोप, ऐसे करें नियंत्रण

How to control Aphid in Maize Crop
  • एफिड के शिशु व वयस्क रूप कोमल नाशपाती के आकार के काले रंग के होते हैं और ये समूह में पत्तियों की निचली सतह पर चिपके रहते हैं साथ ही पत्तियों का रस भी चूसते है।

  • पत्तियों के एफिड ग्रस्त भाग पीले होकर सिकुड़ कर मुड़ जाते हैं। अत्यधिक संक्रमण की अवस्था में पत्तियां सूख जाती है व धीरे-धीरे पूरा पौधा सूख जाता है।इसके अलावा फलों का आकार एवं गुणवत्ता भी कम हो जाती है।

  • माहू के द्वारा पत्तियों की सतह पर मधुरस का स्राव किया जाता है जिससे फंगस का विकास हो जाता है। इसके कारण पौधे की प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है और अंततः पौधे की वृद्धि रुक जाती है।

  • इसके नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL @ 100 मिली/एकड़ या एसीफेट 75% SP @ 300 ग्राम/एकड़ या एसिटामिप्राइड 20% SP @ 100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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सोयाबीन में एन्थ्रेक्नोज रोग के लक्षण व नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of anthracnose disease in soybean
  • एन्थ्रेक्नोज रोग का संक्रमण सोयाबीन के पौधे की फली पर अनियमित आकार के धब्बे के रूप में नजर आते हैं। यह रोग आमतौर पर परिपक्वता के समय, सोयाबीन के तने पर देखा जाता है। एन्थ्रेक्नोज सोयाबीन के ऊतकों के मरने का कारण बनती है। यह रोग आमतौर पर विकासशील तने और पत्तियों को संक्रमित करता है। इसके लक्षण, पत्तियों, तने, फल या फूलों पर विभिन्न रंगों के धब्बे या घाव (ब्लाइट) के रूप में देखे जा सकते हैं।

  • इस रोग के प्रकोप से बचने के लिए खेतों को साफ रखे एवं उचित फसल चक्र अपनाएँ। बुआई से पहले बीजों को कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63%WP से, 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें।

  • फसल में इस रोग का प्रकोप हो जाए तो इसके निवारण के लिए मैनकोज़ेब 75% WP @ 500 ग्राम/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75% WP @ 400 ग्राम/एकड़ या हेक्साकोनाज़ोल 5% SC @ 4 00 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ या ट्राइकोडर्मा विरिड @ 500 ग्राम/एकड़ के रूप में उपयोग करें।

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मिर्च में हो रहा है मकड़ी का प्रकोप, जल्द करें नियंत्रण

How to control Mites in chilli crop
  • यह कीट छोटे एवं लाल रंग के होते हैं जो मिर्च की फसल के कोमल भागों जैसे पत्ती, फूल, कली, एवं टहनियों पर भारी मात्रा में पाए जाते हैं। जिन पौधों पर मकड़ी का प्रकोप होता है उनपर जाले दिखाई देते हैं। यह कीट पौधे के कोमल भागों का रस चूसकर कमज़ोर कर देते हैं जिसकी वजह से पौधे की बढ़वार पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

  • रासायनिक प्रबंधन: मिर्च की फसल में मकड़ी कीट के नियंत्रण के लिए प्रॉपरजाइट 57% EC @ 400 मिली/एकड़ या स्पाइरोमैसीफेन 22.9% SC @ 200 मिली/एकड़ या एबामेक्टिन 1.9% EC @ 150 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार: जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना@ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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टमाटर में बेहतर फूल वृद्धि के लिए करें इन उपायों का उपयोग

What measures should be taken at the stage of flowering in the tomato crop
  • टमाटर की फसल में 35-40 दिनों की अवस्था में फूल आने प्रारम्भ हो जाते हैं।

  • टमाटर की फसल में फलों का उत्पादन, फूलों की संख्या पर बहुत अधिक निर्भर करता है। इसलिए इस समय फूलों को बचाना और फूल वृद्धि को बढ़ाना अति आवश्यक होता है।

  • नीचे दिए गए कुछ उत्पादों के द्वारा टमाटर की फसल में फूलों की संख्या को बढ़ाया जा सकता है और इसे गिरने से भी बचाया जा सकता है।

  • होमोब्रासिनोलॉइड 0.04% w/w 100-120 मिली/एकड़ या पेक्लोबुटाजोल 30 मिली/एकड़ का छिड़काव करें।

  • जिब्रेलिक एसिड @ 200 मिली/एकड़ छिड़काव के रूप में उपयोग करें।

  • इस समय फसल में कवक एवं कीटों का प्रकोप होने की सम्भावना अधिक होती है।

  • इस स्थिति में आवश्यकता अनुसार कवकनाशी एवं कीटनाशी का छिड़काव करें।

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सोयाबीन का हरी इल्ली के प्रकोप से करें बचाव

Control of green caterpillar in soybean crop
  • यह इल्ली वयस्क व्वस्था में मध्यम आकार एवं सुनहरा पीले रंग की होता है। इसके आगे के पंखों का रंग भूरा होता है जिस पर बड़ा सुनहरा तिकोना धब्बा होता है। इसके अंडे पीले रंग के एवं गोल होते हैं। नवजात इल्लियाँ हरे रंग की होती है वहीं पूर्ण विकसित इल्लियाँ 4 मि.मी. लम्बी होती हैं।

  • प्रकोप: अंडों से निकलने के बाद छोटी–छोटी इल्लियाँ, सोयाबीन के कोमल पत्तियाँ को खुरच कर खाती हैं। इसके अत्यधिक प्रकोप की स्थिति में पौधे का हरापन ख़त्म हो जाता है। जब आसमान में अधिक बादल होते हैं तब इस इल्ली का प्रकोप अधिक होता है। बड़ी इल्ली पहले सोयाबीन की पत्तियों में और बाद में फलियों में छेद करके दानो को नुकसान पहुँचाती है।

  • सोयाबीन की फसल को इस इल्ली से बचाने के लिए, तीन प्रकार यांत्रिक, रासायनिक एवं जैविक विधि से रोकथाम की जा सकती है।

  • यांत्रिक नियंत्रण: सोयाबीन की बुवाई के पहले गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें। इससे इस इल्ली के प्यूपा ज़मीन में ही नष्ट हो जाएगा। मानसून पूर्व बुवाई ना करें क्योंकि इससे इल्ली को अपनी संख्या बढ़ाने के लिए उचित तापमान मिल जाता है। बहुत अधिक घनी फसल की बुवाई ना करें। यदि कोई संक्रमित पौधा दिखाई दे तो उसे उखाड़ कर नष्ट कर दें। इल्ली के अच्छे नियंत्रण के लिए खेत में 10 नग प्रति एकड़ की दर फेरामोन ट्रैप स्थापित करें। इस ट्रैप में लगने वाला ल्युर हर 3 सप्ताह के अंतराल से बदलते रहना चाहिए।

  • रासायनिक नियंत्रण: प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिली/एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @ 100 ग्राम/एकड़ या फ्लूबेण्डामाइड 20% WG @ 100 ग्राम/एकड़ या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC @ 60 मिली/एकड़ का छिड़काव करें।

  • जैविक नियंत्रण: बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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कपास की फसल की डेंडू अवस्था में जरूरी है पोषण प्रबध

Nutritional management during the ball formation in cotton crop

कपास की फसल में 40-45 दिनों की अवस्था डेंडू बनने की शुरुआती अवस्था होती हैं। इस अवस्था में कपास की फसल को अधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इसके लिए उचित पोषक तत्वों का उपयोग कर सकते हैं, जिससे कपास की फसल में डेंडू का निर्माण एवं उत्पादन अच्छा हो एवं किसान को लाभ प्राप्त हो।

इस अवस्था में उर्वरक प्रबधन करने के लिए निम्र उत्पादों का उपयोग लाभकारी होता है।

  • यूरिया @ 30 किलो + MOP @ 30 किलो + मैग्नीशियम सल्फेट @ 10 किलो/एकड़ की दर से भूमि में मिलाएं।

  • यूरिया: कपास की फसल में, यूरिया नाइट्रोज़न की पूर्ति का सबसे बड़ा स्त्रोत है। इसके उपयोग से पत्तियों में पीलापन एवं सूखने जैसी समस्या नहीं आती है। यूरिया प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को भी तेज़ करता है।

  • MOP (पोटाश): पोटाश कपास के पौधे में संश्लेषित शर्करा को पौधे के सभी भागों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पोटाश प्राकृतिक नत्रजन की कार्य क्षमता को बढ़ावा देता है साथ ही पौधों में प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है।

  • मैग्नीशियम सल्फेट: इसके उपयोग से कपास की फसल में हरियाली बढ़ती है एवं प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में तेज़ी आती है। अंततः इसकी मदद से उच्च पैदावार तो मिलती ही है साथ ही उत्पादन की गुणवत्ता भी बढ़ती है।

  • इस प्रकार पोषण प्रबधन करने से कपास की फसल में नाइट्रोज़न की पूर्ति बहुत अच्छे से होती है। पोटाश के कारण डेंडु की संख्या और आकार में बढ़ोतरी होती है। मैग्नीशियम सल्फेट सूक्ष्म पोषक तत्व की पूर्ति करता है। इससे स्वस्थ डेंडू का निर्माण होता है और कपास का उत्पादन भी बहुत अधिक होता है।

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प्याज की फसल में बढ़ेगा चारे का प्रकोप, जल्द करें प्रबंधन

How to manage weeds in onion crop
  • मिट्टी में प्रकृतिक रूप से बहुत सारे मुख्य एवं सूक्ष्म पोषक तत्व पाए जाते हैं जो फसल में चारे के प्रकोप का कारण बनते हैं। प्याज की फसल में भी इस मौसम में चारों का प्रकोप बहुत ज्यादा देखने को मिलता है।

  • इसके कारण फसलों में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है और फसल की कुल उपज पर भी बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।

  • प्याज की अच्छी फसल उत्पादन के लिए चारे जिसे खरपतवार भी कहते हैं का प्रबंधन समय-समय पर करना बहुत आवश्यक होता है।

  • खरपतवार प्रबंधन के लिए पेंडिमेथालीन 38.7% CS @ 700 मिली/एकड़ की दर से रोपाई के 3 दिनों के अंदर उपयोग करें।

  • प्रोपेक़्युज़ाफॉप 5% + ऑक्सीफ़्लोर्फिन 12% EC @ 250-350 मिली/एकड़ फसल में लगाने के 25-30 दिनों के बाद उपयोग करें।

  • ऑक्सीफ़्लोर्फिन 23.5% EC @ 100 मिली/एकड़ + प्रोपेक़्युज़ाफॉप 10% EC @ 300 मिली/एकड़ या क्युजालोफॉप इथाइल 5% EC @ 300 मिली/एकड़ की दर से 20 से 25 दिनों में छिड़काव करें।

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कपास में इन लक्षणों से पहचानें कोणीय धब्बा रोग, करें नियंत्रण

Symptoms and control of angular spot disease in cotton crop
  • कपास का कोणीय धब्बा रोग जिसे बैक्टीरियल ब्लाइट, बॉल रॉट और ब्लैक लेग भी कहा जाता है, एक संभावित विनाशकारी जीवाणु रोग है।

  • कोणीय धब्बा रोग मुख्यतः पत्तियों को प्रभावित करता है। इसके कारण पत्तियों पर जलसक्त धब्बे दिखाई देते हैं एवं यह धब्बे शुरुआती समय में पत्तियों पर दिखाई देते हैं।

  • यह धब्बे पत्तियों की ऊपरी सतह पर दिखाई देता है और बाद में पूरी पत्ती पर फैल जाता है। इन धब्बों का आकर धीरे-धीरे बढ़ कर कोणीय आकार का हो जाता है। धब्बे जैसे जैसे पुराने होते जाते हैं वैसे वैसे भूरे-काले हो जाते है।

  • रासायनिक प्रबधन: कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP @ 300 ग्राम/एकड़ या कासुगामायसिन 3% SL@ 400 मिली/एकड़ या स्ट्रेप्टोमायसिन सल्फेट 90% + टेट्रासायक्लीन हाइड्रोक्लोराइड 10% W/W @ 20 ग्राम/एकड़ की दर से छिडकाव करें।

  • जैविक प्रबधन: जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर छिड़काव करें।

अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

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