जिप्सम का उपयोग खेतों में कब करना होता है लाभकारी?

When should farmers use gypsum?
  • जिप्सम एक अच्छा भू सुधारक है। यह क्षारीय भूमि को सुधारने का कार्य करता है।

  • जिप्सम का उपयोग किसी भी फसल की बुआई के पूर्व खेत में करना चाहिए।

  • जिप्सम को खेत में बिखेर दें और खेत की हल्की जुताई करें।

  • जिप्सम को मृदा में अधिक गहराई तक नहीं मिलाना चाहिए।

  • जिप्सम का उपयोग करने पर, फसल को कैल्शियम 22% एवं सल्फर 18% मिलता है।

  • मृदा परिक्षण के परिणाम के अनुसार ही, जिप्सम की उचित मात्रा का उपयोग अपने खेत में करें।

  • फसलों में जड़ों की सामान्य वृद्धि एवं विकास में जिप्सम के उपयोग से सहायता मिलती है।

  • जिप्सम का उपयोग सभी प्रकार की फसल में कर सकते हैं, खासकर के सब्जी और तिलहनी फसल में इसके प्रयोग से काफी लाभ होता है।

स्मार्ट कृषि एवं उन्नत कृषि उत्पादों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। उन्नत कृषि उत्पादों व यंत्रों की खरीदी के लिए ग्रामोफ़ोन के बाजार विकल्प पर जाना ना भूलें।

Share

सोयाबीन में होगा गर्डल बीटल का प्रकोप, जानें रोकथाम के उपाय

Damage and prevention measures of girdle beetle in soybean

गर्डल बीटल कीट की मादा तने के अंदर अंडे देती है एवं जब अंडे से इल्ली निकलती है तो वो तने को अंदर से खाकर कमजोर कर देती है। इसके कारण, तना खोखला हो जाता है, पोषक तत्व पत्तियों तक नहीं पहुंच पाते है एवं पत्तियां मुरझाकर सूख जाती हैं। फसल के उत्पादन में भी काफी कमी हो जाती है।

यांत्रिक प्रबंधन: गर्मियों में खाली खेत की गहरी जुताई करें। अधिक घनी फसल ना बोयें। अधिक नाइट्रोजन युक्त उर्वरक का उपयोग ना करें, यदि संक्रमण बहुत अधिक हो तो उचित रसायनों का उपयोग करें।

रासायनिक प्रबंधन: लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% EC @ 200 मिली/एकड़ या बीटासायफ्लूथ्रिन 8.49% + इमिडाक्लोप्रिड 19.81 OD% @ 150 मिली/एकड़ प्रोफेनोफोस 40% + साइपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिली/एकड़ या थियामेंथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 9.5% ZC @ 80 मिली/एकड़, फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG @ 40 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

जैविक प्रबंधन: बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

फसल की बुआई के साथ ही अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

Share

मक्का की फसल फॉल आर्मी वर्म से हो जायेगी बर्बाद, जल्द कर लें बचाव

Management of fall army worm in Maize Crop,

फॉल आर्मी वर्म दिन में मिट्टी के ढेलों, पुआल, खर-पात के ढेर में छिप जाता है और रात भर फ़सलों को खाता रहता है। प्रभावित खेत/फसल में इसकी संख्या काफी देखी जा सकती है। इस कीट की प्रवृत्ति बड़ी तेजी से खाने की होती है और यह काफी कम समय में पूरे खेत की फसल को खाकर प्रभावित कर सकता है। आर्मी वर्म एक साथ समूह में फसल पर आक्रमण करता है एवं मूलतः रात में फ़सलों की पत्तियों या अन्य हरे भाग को किनारे से काटता है तथा दिन में यह खेत में स्थित दरार या ढेले के नीचे या घने फसल के छाये में छिपा रहता है। जिन क्षेत्रों में इस कीट की संख्या अधिक है उन क्षेत्रों में कीटनाशी का छिड़काव तत्काल किया जाना चाहिए।

  • रासायनिक प्रबधन: नोवालूरान 5.25% + इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% SC @ 600 मिली/एकड़ या फ्लूबेण्डामाइड 39.35% SC @ 50 मिली/एकड़ या क्लोरांट्रानिलप्रोल 18.5% SC @ 60 मिली/एकड़, या इमाबेक्टीन बेंजोएट 5% SG @ 100 ग्राम/एकड़ + बवेरिया बैसियना @ 250 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।

  • जैविक प्रबधन: बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जिन क्षेत्रों में इसकी संख्या कम हो, उन क्षेत्रों में कृषक बंधु अपने खेत के मेड़ पर एवं खेत के बीच में जगह-जगह पुआल का छोटे-छोटे ढेर लगा कर रखें। धूप में आर्मी वर्म (सैनिक कीट) छाया की खोज में इन पुआल के ढेर में छिप जाता है। शाम को इन पुआल के ढेर को इकट्ठा करके जला देना चाहिए।

  • इसके अलावा आप अपने खेत में फेरोमोन ट्रैप का उपयोग भी कर सकते हैं। एक एकड़ में 10 ट्रैप लगाएं।

फसल की बुआई के साथ ही अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

Share

कपास की फसल में रस चूसक कीट सफेद मक्खी का ऐसे करें नियंत्रण

How to control the sucking pest white fly in cotton crop

सफ़ेद मक्खी एक रस चूसक कीट है जो कपास की फसल को बहुत नुकसान पहुंचाता है।

कीट की पहचान कैसे करें?

यह मक्खियां सफेद रंग की होती हैं। इनके अंडे सफेद एवं मटमैले रंग के होते हैं। इसके निम्फ हल्के पीले रंग के होते हैं।

जानें इससे होने वाले नुकसान!

  • इस कीट के शिशु एवं वयस्क दोनों रूप कपास की फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाते हैं।

  • यह कीट पत्तियों के नीचे बैठ कर उनका रस चूसते हैं और पौधे के विकास को प्रभावित करते हैं।

  • सफेद मक्खियां पत्तियों का रस चूसती हैं जिससे पत्तियां सिकुड़ जाती हैं और ऊपर की और मुड़ जाती हैं। कुछ समय बाद ये पत्तियां लाल होने लगती हैं।

  • अधिक प्रकोप की स्थिति में, कपास की फसल पूर्णतः संक्रमित हो जाती है। फसल की किसी भी अवस्था पर इस कीट का प्रकोप हो सकता है।

  • प्रकोप अधिक होने पर, पौधों का विकास रुक जाता है जिससे पैदावार में भारी कमी हो जाती है।

  • इसके अलावा सफ़ेद मक्खी, वायरस जनित रोगों को फैलाने का काम भी करती हैं।

प्रबंधन: सफ़ेद मक्खी के नियंत्रण के लिए, डायफैनथीयुरॉन 50% WP @ 250 ग्राम/एकड़ या फ्लोनिकामिड 50% WG @ 60 ग्राम/एकड़ या एसिटामिप्रीड 20% SP @ 100 ग्राम/एकड़ या पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% EC @ 250 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

फसल की बुआई के साथ ही अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

Share

टमाटर की रोप का रोपाई के पूर्व उपचार जरूर करें और साथ ही बरतें ये सावधानियाँ

How to treat tomato seedlings before transplanting and precautions
  • टमाटर की फसल की बुआई नर्सरी में की जाती है और नर्सरी से स्वस्थ पौध को उखाड़कर मुख्य खेत में रोपाई की जाती है।

  • नर्सरी में बुआई के 20 से 30 दिनों बाद टमाटर की पौध मुख्य खेत में रोपाई के लिए तैयार हो जाती है। रोपाई का उपयुक्त समय मध्य जून से मध्य जुलाई तक होता है।

  • रोपाई के पूर्व नर्सरी में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए, ऐसा करने से पौध की जड़ नहीं टूटती, वृद्धि अच्छी होती है और पौध आसानी से जमीन से निकल जाती है। पौध को जमीन से निकालने के बाद सीधे धूप मे नहीं रखना चाहिए।

  • पौध की जड़ों के अच्छे विकास के लिए 5 ग्राम माइकोरायज़ा प्रति लीटर की दर से घोल बना लें, ध्यान रखें की पानी की मात्रा आवश्यकतानुसार ही हो। टमाटर की पौध की जड़ों को इस घोल में 10 मिनट के लिए डूबाकर रखें। यह प्रक्रिया अपनाने के बाद ही खेत में पौध का रोपण करना चाहिए।

  • मायकोराइज़ा से उपचार करने से, पोषक तत्वों का अवशोषण सुगम होता है। टमाटर की पौध को खेत में रोपाई के बाद अच्छी वृद्धि करने में सहायता मिलती है।

  • इससे सफेद जड़ का विकास बढ़ जाता है। पौधों को पोषक तत्व ग्रहण करने में मदद मिलती है और प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया भी बढ़ जाती है। टमाटर की फसल को वातावरणीय तनाव से सुरक्षित रखने में भी यह बहुत मदद करता है।

फसल की बुआई के साथ ही अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

Share

मिर्च की ड्रिप सिंचित फसल में रोपाई के 5-10 दिनों इन उर्वरकों के उपयोग से होगा लाभ

Which fertilizers to use in 5-10 days after transplanting in drip irrigated crop of chilli
  • मिर्च के पौध की मुख्य खेत में रोपाई के बाद, मिर्च की फसल की अच्छी बढ़वार एवं रोगों के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए उर्वरक प्रबधन करना लाभकारी होता है।

  • इस समय मिर्च के पौधों की जड़ें भूमि में फैलती है। जड़ों की अच्छी बढ़वार के लिए उर्वरक प्रबंधन बहुत आवश्यक है।

  • खरीफ का मौसम में मिट्टी में नमी अधिक होती है एवं तापमान में परिवर्तन होता रहता है जिसके कारण मिर्च के पौधे में तनाव की स्थिति हो जाती है। इस प्रकार के वातावरणीय तनाव से फसल को बचाने के लिए मिर्च की फसल में उर्वरक प्रबंधन करना आवश्यक होता है।

  • मिर्च की फसल में उर्वरक प्रबंधन करने के लिए रोपाई के 5वें दिन से अगले 20 दिनों तक यूरिया @ 2 किलो/एकड़ + 19:19:19 @ 1 किलो/एकड़ की दर से ड्रिप के माध्यम से चलाएं।

फसल की बुआई के साथ ही अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

Share

सोयाबीन की फसल से लें जबरदस्त उपज, सोया समृद्धि किट का करें उपयोग

SOYA SAMRIDHI KIT

  • ‘सोया समृद्धि किट’ आपकी सोयाबीन की फसल को संपूर्ण पोषण प्रदान करेगा। इस किट में आपको वो सब कुछ एक साथ मिलेगा जिसकी जरूरत सोयाबीन की फसल को होती है।

  • इस किट का उपयोग बुआई के समय मिट्टी उपचार के रूप में किया जा सकता है या फिर बुआई के बाद 15-20 दिनों में मिट्टी में भुरकाव के रूप में भी इसका उपयोग किया जा सकता है।

  • सोया समृद्धि किट की खरीदी पर ग्रामोफ़ोन लाया है ख़ास ऑफर

सोया समृद्धि किट में निम्नलिखित उत्पादों को शामिल किया गया है

पीके बैक्टीरिया का कंसोर्टिया: यह उत्पाद दो प्रकार के बैक्टीरिया पीएसबी (फॉस्फोरस सोल्यूब्लिज़िंग बैक्टेरिया) और केएमबी (पोटाश मोबीलाइज़िंग बैक्टेरिया) से मिलकर बना है। यह मिट्टी एवं फसल में प्रमुख तत्व पोटाश एवं फास्फोरस की पूर्ति में सहायक होता है।

ट्राइकोडर्मा विरिडी: यह एक जैविक कवकनाशी है, जो मिट्टी और बीज में होने वाले रोगजनकों को मारता है जिसकी वजह से जड़ सड़न, तना गलन, उकठा रोग जैसी गंभीर बीमारियों से रोकथाम होती है।

ह्यूमिक एसिड, समुद्री शैवाल, अमीनो एसिड एवं मायकोराइज़ा: ह्यूमिक एसिड मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करके मिट्टी की जल धारण क्षमता में वृद्धि करता और सफेद जड़ के विकास को बढ़ाता है। मायकोराइज़ा एक ऐसा कवक है जो पौधे एवं मिट्टी के बीच सहजीवी संबंध बनाता है। मायकोराइज़ा कवक पौधे की जड़ प्रणाली में प्रवेश करता है, जिससे पानी और पोषक तत्वों की अवशोषण क्षमता बढ़ जाती है।

राइज़ोबियम सोयाबीन कल्चर: इस उत्पाद में नाइट्रोजन का जीवाणु पाया जाता है जो सोयाबीन की जड़ों में रह कर वायुमंडलीय नाइट्रोज़न को स्थिर कर पौधों को प्रदान करता है।

कृषि एवं कृषि उत्पादों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। उन्नत कृषि उत्पादों की खरीदी के लिए ग्रामोफ़ोन के बाजार विकल्प पर जाना ना भूलें।

Share

सोयाबीन की फसल में बुआई के बाद पूर्व उद्भव खरपतवारों का ऐसे करें नियंत्रण

How to control pre-emergence weeds after sowing in soybean crop
  • सोयाबीन की खेती में मुख्य रूप से खरपतवार, कीट व रोगों के प्रकोप से उत्पादन बहुत प्रभावित होता है। इनमें सबसे ज्यादा 35 से 70 प्रतिशत तक हानि केवल खरपतवारों के कारण होती है।

  • खरपतवार नैसर्गिक संसाधन जैसे प्रकाश, मिट्टी, जल, वायु के साथ-साथ पोषक तत्व इत्यादि के लिये भी फसल से प्रतिस्पर्धा कर उपज में भारी कमी लाते हैं।

  • खरपतवारों की अधिकता के कारण, सोयाबीन की फसल में रोगों का भी प्रकोप बहुत अधिक होता है।

  • पूर्व उद्भव खरपतवारनाशक से आशय यह है की ये वे शाकनाशी है, जो फसल की बुवाई के बाद तथा खरपतवार या फसल के अंकुरण से पूर्व खेत में प्रयोग किये जाते हैं। इनका भूमि की सतह पर छिड़काव करते हैं।

  • बुआई के बाद, खरपतवार के उगने से पहले ही इसे नियंत्रित करना बहुत लाभकारी होता है। इसके लिए इमिजाथपायर 2% + पेंडीमेथलीन 30% @ 1 लीटर/एकड़ या डाइक्लोसुलम 84% WDG @ 12.4 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

फसल की बुआई के साथ ही अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

Share

सोयबीन की बुआई के 15-20 दिनों में रोग व कीटों से बचाव हेतु जरूर अपनाएं ये प्रबंधन उपाय

How to manage diseases and pests in soybean crop in 15-20 days after sowing
  • सोयाबीन की बुआई के बाद 15-20 दिनों की अवस्था में छिड़काव करना बहुत आवश्यक होता है।

  • इस छिड़काव के कारण तना गलन, जड़ गलन जैसे रोगों का सोयाबीन की फसल में आक्रमण नहीं होता है।

  • यह छिड़काव सोयाबीन की फसल में लगने वाले कीटों से सुरक्षा के लिए बहुत मददगार साबित होता है।

  • इस अवस्था में सोयाबीन की फसल में गर्डल बीटल एवं चूसक कीटों के नियंत्रण के लिए लैंबडा-साइफलोथ्रिन 4.9% CS @ 200 मिली/एकड़ या प्रोफेनोफॉस 50% SC @ 500 मिली/एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • सोयाबीन की इस अवस्था में, तना गलन, जड़ गलन एवं पत्ती झुलसा जैसे रोगों के नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ब 63% WP @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • सोयाबीन की फसल में अधिक नमी, कीट एवं रोग के प्रकोप के कारण फसल का विकास ठीक से नहीं होता है। सोयाबीन की फसल की अच्छी वृद्धि के लिए समुद्री शैवाल @ 400 ग्राम/एकड़ या एमिनो एसिड@ 250 मिली/एकड़ या जिब्रेलिक एसिड 0.001%@ 300 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

फसल की बुआई के साथ ही अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

Share

खरीफ मूंग की उन्नत खेती के लिए बुआई से पहले जरूर करें बीज़ उपचार

seed treatment in kharif Green Gram
  • मूंग की फसल में बुआई से पहले बीज उपचार करना बहुत आवश्यक होता है।

  • बीज़ उपचार जैविक एवं रासयनिक दोनों विधियों से किया जा सकता है।

  • मूंग में बीज़ उपचार एफआईआर पद्धति से करना चाहिए अथार्त पहले कवकनाशी, फिर कीटनाशी अंत में राइज़ोबियम का उपयोग करना चाहिए।

  • कवकनाशी से बीज़ उपचार करने के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 2.5 ग्राम/किलो बीज़ या कार्बोक्सिन 17.5% + थायरम 17.5% @ 2.5 मिली/किलो बीज़ से या ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 5-10 ग्राम/किलो बीज़ से उपचारित करें।

  • कीटनाशी से बीज़ उपचार करने के लिए, थियामेंथोक्साम 30% FS @ 4 मिली/किलो बीज़ या इमिडाक्लोरोप्रिड 48% FS @ 4-5 मिली/किलो बीज़ से बीज़ उपचार करें।

  • मूंग में नाइट्रोज़न स्थिरीकरण को बढ़ाने के लिए, राइजोबियम @ 5 ग्राम/किलो बीज़ से उपचारित करें।

  • कवकनाशी से बीज़ उपचार करने से मूंग की फसल उकठा रोग एवं जड़ सड़न रोग से सुरक्षित रहती है, साथ ही बीज का अंकुरण सही ढंग से होता है एवं अंकुरण प्रतिशत बढ़ता है। इससे मूंग की फसल का प्रारंभिक विकास समान रूप से होता है।

  • राइज़ोबियम से बीज़ उपचार करने से, मूंग की फसल की जड़ में गाठों (नॉड्यूलेशन) को बढ़ाता है एवं अधिक नाइट्रोज़न को स्थिर करता है।

  • कीटनाशकों से बीज़ उपचार करने से मिट्टी जनित कीटों जैसे सफ़ेद ग्रब, चींटी, दीमक आदि से मूंग की फसल की रक्षा होती है। प्रतिकूल परिस्थितियों (कम/उच्च नमी) में भी अच्छी फसल प्राप्त होती है।

फसल की बुआई के साथ ही अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

Share