सोयबीन में बढ़ेगा चारे का प्रकोप, चारामार के उपयोग में जरूर रखें ये सावधानियाँ

What precautions should be taken while using weedicide in soybean crop

सोयाबीन की फसल में इस समय चारे यानी की खरपतवार का प्रकोप बढ़ रहा है। ऐसे में आप अच्छे ब्रांड्स के चारामार का उपयोग कर सकते हैं। चारामार के उपयोग के समय कुछ बातों का ध्यान रखने की जरूरत होती है।

  • चारे की दो से तीन पत्ती की अवस्था में ही चारामार का उपयोग करें।

  • चारामार के उपयोग के पूर्व यह सुनिश्चित करें की खेत में पर्याप्त नमी हों।

  • चारामार के छिड़काव के लिए ऐसे स्प्रे पंप का इस्तेमाल करें जिसमे कट नोज़ल हो। इससे चारामार दवा का फसल पर कोई विपरीत असर नहीं होता है। आप एक एकड़ के लिए 150-200 लीटर पानी का उपयोग करें।

  • चारे पर इसका अच्छा असर हो इसके लिए चारामार दवाई में चिपको मिलाकर उपयोग करें। इस बात का ध्यान रखें की जिस खरपतवार नाशक का उपयोग कर रहे हैं वह चौड़ी एवं सकरी दोनों तरह की खरपतवारों का नियंत्रण करता हो।

  • चारामार दवाई का घोल बनाते समय इसे सही क्रम मे मिलाएं तथा इसकी जानकारी के लिए साथ मिले पर्चे या डब्बे पर लिखी विधी को अच्छे से पढ़ें। चारामार खरीदने से पहले उसके अवसान की तिथि एवं उपयोग का तरीका ठीक से पढ़ लेना चाहिए।

  • फसल एवं खरपतवार की आवश्यकता अनुसार शाकनाशी का चुनाव करें। चारामार के साथ किसी भी कीटनाशक एवं कवकनाशक को साथ में ना मिलाएं।

  • चारामार दवाई का घोल बनने के लिए साफ पानी का इस्तमाल करें एवं छिड़काव के बाद स्प्रे पंप की अच्छे से साफ पानी से सफाई कर लें।

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मिर्च में हो रहा एन्थ्रेक्नोज रोग का प्रकोप, ऐसे करें नियंत्रण

How to control anthracnose disease in chilli crop
  • मिर्च की फसल में इस बीमारी के लक्षण पौधे में पत्ती, तना और फल पर दिखाई देते हैं।

  • इसके कारण मिर्च के फल पर छोटे, गोलाकार धब्बे दिखाई देते हैं, जो बाद में धीरे- धीरे फैलकर आपस में मिल जाते हैं।

  • इसके कारण फल बिना पके ही गिरने लगते हैं और फसल से प्राप्त उपज में भारी नुकसान होता है।

  • यह एक कवक जनित रोग है जो सबसे पहले मिर्च के फल के डंठल पर आक्रमण करता है और बाद में पूरे पौधे पर फैल जाता है।

  • रासायनिक नियंत्रण: इस रोग के नियंत्रण के लिए टेबुकोनाज़ोल 25.9% EC @ 250 मिली/एकड़ या कैपटान 70% + हेक्साकोनाज़ोल 5% WP @ 250 ग्राम/एकड़ या कीटाजिन 48% EC @ 200 मिली/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 70% WP @ 400 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक प्रबंधन: जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ का उपयोग मिट्टी उपचार के रूप में करें। स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम की दर छिड़काव करें।

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सोयाबीन व अन्य दलहनी फसलों में क्यों होती है कम नाइट्रोजन की आवश्यकता?

Why is the requirement of nitrogen less in pulse crops like soybean?
  • सोयाबीन व अन्य दलहनी फसलों की जडों की ग्रंथिकाओं में राइज़ोबियम नामक जीवाणु पाया जाता है, जो वायुमंडलीय इट्रोजन का स्थिरीकरण कर फसल को उपलब्ध कराता है।

  • राइजोबियम एक नाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवाणु है, यह दलहनी फसल के पौधों की जड़ों पर मौजूद रहता है और वायुमंडलीय नाइट्रोजन को उस रूप में परिवर्तित करता है जिस रूप में पौधे द्वारा इस्तेमाल किया जा सकता है।

  • यह किसानों के लिए एक मददगार जीवाणु है, यह पौधों को अच्छी तरह से विकसित करने में मदद करता है। यह पौधों को श्वसन आदि जैसी विभिन्न जीवन प्रक्रियाओं में अच्छा प्रदर्शन करने में मदद करता है।

  • इसके उपयोग से दलहनी फसल की उपज में 50-60 फीसदी तक का इज़ाफा होता है। राइजोबियम कल्चर के प्रयोग से भूमि में लगभग 30-40 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर तक बढ़ जाती है।

  • इसलिए दलहनी फसल में, अतिरिक्त नाइट्रोज़न की आवश्यकता नहीं होती है। दलहनी फसल की कटाई के बाद, इनके अवशेष मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा बनाए रखने में सहायक होते हैं। यह अगली फसल के उत्पादन में नाइट्रोजन उर्वरकों की मात्रा के उपयोग को भी कम कर देते हैं।

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मोथा घास को मक्का की फसल में ऐसे करें नियंत्रित

How to control cyperus grass in a maize crop
  • मोथा एक बहुवर्षीय पौधा है जो 75 सें.मी. तक ऊँचा हो जाता है। भूमि से ऊपर यह सीधा, तिकोना, बिना शाखा वाला तना होता है। वहीं नीचे जड़ों में इसके 6 से 7 कंद होते हैं। ये कंद गद्देदार सफेद और बाद में रेशेदार भूरे रंग के तथा अंत में पुराने होने पर लकड़ी की तरह सख्त हो जाते हैं। इसकी पत्तियाँ लम्बी और प्रायः तने पर एक दूसरे को ढके हुए रहती हैं।

  • यह एक बहुवर्षीय घास है एवं लगभग सभी फसलों को बहुत ज्यादा प्रभावित करता है परंतु यह मुख्य रूप से मक्का की फसल को कुछ ज्यादा ही प्रभावित करता है|

  • मोथा को नियंत्रित करना बहुत आवश्यक होता है, इसके नियंत्रण के लिए बुवाई के बाद 20-25 दिनों में, हेलोसल्फ्यूरॉन मिथाइल 75% WG @ 36 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • अच्छे एवं लम्बे परिणाम के लिए, खेत में लंबे समय तक नमी का होना बहुत आवश्यक है, इसलिए अगर नमी कम हो रही हो तो हल्की सिंचाई अवश्य करें।

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सोयाबीन की फसल को कम बारिश की स्थिति में दें ऐसे बेहतर सुरक्षा

How to protect soybean crop in case of low rainfall
  • वर्तमान मौसम की स्थिति के कारण सोयबीन की फसल बहुत अधिक प्रभावित हो रही है। सोयाबीन खरीफ की फसल है एवं इसके अच्छे उत्पादन के लिए पर्याप्त बारिश का होना बहुत आवश्यक होता है। पर इस समय जिस प्रकार से बारिश कहीं पर बहुत अधिक हो रही है और कही पर बिलकुल नहीं हो रही है, ऐसी परिस्थिति में, कम बारिश में सोयाबीन की फसल की सुरक्षा के निम्र प्रकार से की जानी चाहिए।

  • सोयाबीन की बुआई मानसून आने के पहले नहीं करना चाहिए, क्योंकि यदि मानसून पूर्ण रूप से नहीं आता है तो सोयाबीन की फसल का अंकुरण बहुत प्रभावित होता है। इसलिए सोयाबीन की फसल की बुआई सही समय एवं मानसून आने पर ही करें।

  • यदि किसी किसान ने बुवाई कर दी है, और खेत में नमी की मात्रा कम हो, तो ऐसे में खेत की हल्की सिंचाई अवश्य करें, ताकि सोयाबीन की फसल में, अंकुरण या विकास संबधी कोई समस्या ना हो।

  • एक बात का अवश्य ध्यान रखें की जब खेत में सिंचाई की जा रही हो तब खेत में नमी की मात्रा अधिक ना हो वर्ना सोयबीन की फसल अधिक नमी के कारण ख़राब हो सकती है।

  • कम बारिश की स्थिति में, यदि फसल में कवक एवं कीटों का प्रकोप दिखाई दे, तो आवश्यकतानुसार छिड़काव भी जरूर करते रहें।

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बाढ़ सिंचित मिर्च की 40-60 दिनों की फसल में जरूर करें उर्वरक प्रबधन

Fertilizer management in 40-60 days in flood irrigated chilli crop
  • मिर्च की फसल 40-60 दिनों में रोपाई के बाद दूसरी वृद्धि अवस्था में रहती है। इस समय मिर्च की फसल में फूल की अवस्था होती है। अच्छे फूल लगने के लिए फसल में उर्वरक प्रबंधन करना आवश्यक होता है। पौधे के विकास के साथ साथ, अच्छे फूल एवं फल विकास के लिए प्रमुख और सूक्ष्म पोषक तत्व का फसल में उपयोग करना उपयोगी होता है।

  • ये सभी पोषक तत्व मिर्च की फसल में सभी तत्वों की पूर्ति करते है, साथ ही फल विकास के समय, मिर्च की फसल में रोगों से लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता का भी विकास करते हैं।

  • पोषक तत्व प्रबंधन के लिए यूरिया 45 किग्रा/एकड़ + डीएपी 50 किग्रा/एकड़ + मैग्नीशियम सल्फेट 10 किग्रा/एकड़ + सूक्ष्मपोषक तत्व 10 किग्रा/एकड़ + कैल्शियम नाइट्रेट @ 5 किलो/एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • यूरिया: मिर्च की फसल में यूरिया नाइट्रोज़न की पूर्ति का सबसे बड़ा स्त्रोत है। इसके उपयोग से पत्तियों में पीलापन एवं सूखने की समस्या नहीं आती है। यूरिया प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को भी तेज़ करता है।

  • DAP (डाय अमोनियम फॉस्फेट): इसका उपयोग फसल में फास्फोरस की पूर्ति के लिए किया जाता है। इसके उपयोग से जड़ की वृद्धि अच्छी होती है और पौधे की बढ़वार में सहायता मिलती है।

  • मैग्नीशियम सल्फेट: मिर्च की फसल में मेग्नेशियम सल्फेट के प्रयोग से हरियाली बढ़ती है एवं प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में तेज़ी आती है। अंततः उच्च पैदावार और फसल की गुणवत्ता बढ़ती है।

  • सूक्ष्म पोषक तत्व: यह मिर्च के पौधे में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया सुगम करता है। फसल के उत्पादन को बढ़ाने एवं मिट्टी के स्वास्थ्य को बेहतर करने में मदद करता है।

  • कैल्शियम नाइट्रेट: फसल के उत्पादन को बढ़ाने में यह सहायता करता है। पौधों के भीतर विषाक्त रसायनों को निष्क्रिय करने में सहायता करता है।

  • बताये गए सभी पोषक तत्व का उपयोग मिट्टी में मिलाकर करें और उपयोग के बाद हल्की सिंचाई अवश्य करें।

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पत्ता गोभी की फसल में पत्ते खाने वाली इल्ली का हुआ प्रकोप, जानें नियंत्रण के उपाय

How to control leaf eating caterpillar in Cabbage crop
  • इस कीट की इल्लियाँ, पत्तों के हरे पदार्थ को खाकर नुकसान पहुंचाती है तथा खाई गई जगह पर केवल सफेद झिल्ली रह जाती है जो बाद में छेदों में बदल जाती है।

  • इस इल्ली को डायमण्ड बैक मोथ के नाम से जानते हैं और इसके अंडे सफ़ेद-पीले रंग के होते हैं।

  • इस कीट की इल्लियाँ 7-12 मिमी लंबी होती है साथ ही इसके पूरे शरीर पर बारीक रोयें भी होते हैं।

  • इसके वयस्क 8-10 मिमी लम्बे, मटमैले रंग के या हल्के भूरे रंग के होते हैं। इनके पीठ पर हीरे नुमा चमकीले धब्बे भी होते हैं।

  • वयस्क मादा पत्तियों पर एक एक कर या समूह में अंडे देती है। छोटी हरी इल्लियाँ, अंडों से निकलने के बाद, पत्तियों की बाहरी परत को खाकर छेद कर देती हैं।

  • इसका अधिक आक्रमण होने पर इल्लियाँ पत्तियों को खाकर जालेनुमा आकार छोड़ती है।

  • इसके नियंत्रण के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG@ 100 ग्राम/एकड़ या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC @ 60 मिली/एकड़ या नोवालूरान 5.25% + इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% SC@ 600 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक नियंत्रण के रूप में हर छिड़काव के साथ बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।

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मिर्च में बढ़ रही हैं पत्ती मुड़ने की समस्या, जानें नियंत्रण के उपाय

What is the reason for the problem of leaf curling in chilly crops and its solution
  • मिर्च की फसल में सबसे अधिक नुकसान पत्तियों के मुड़ने से होता है, जिसे विभिन्न स्थानों में कुकड़ा या चुरड़ा-मुरड़ा रोग के नाम से जाना जाता है। इसके कारण मिर्च की पत्तियां मुड़ जाती हैं।

  • यह समस्या मिर्च की फसल में थ्रिप्स के प्रकोप के कारण होती है। इसके कारण मिर्च की पत्तियां ऊपर की ओर मुड़ कर नाव के आकार की हो जाती हैं। इससे पत्तियां सिकुड़ भी जाती हैं और पौधा झाड़ीनुमा दिखने लगता है।

  • इससे प्रभावित पौधों में फल नहीं लगते है इसीलिए ग्रसित पौधे में ऐसे लक्षण देखते ही खेत से उखाड़ कर बाहर कर दें। खेत को खरपतवार से मुक्त रखें।

  • इस समस्या के निवारण के लिए मिर्च के खेत में थ्रिप्स का प्रकोप ना होने दें एवं यदि थ्रिप्स का प्रकोप दिखाई दे तो इसके प्रबधन के लिए फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़, थियामेंथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 9.5% ZC @ 80 मिली/एकड़, लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 300 मिली/एकड़, स्पिनोसेड 45% SC @ 60 मिली/एकड़, सायनट्रानिलीप्रोल 10.26% OD @ 240 मिली/एकड़, की दर से छिड़काव करें।

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कपास की पत्तियों में आ रही है पीलेपन की समस्या, जानें निवारण के उपाय

Reason and Solution for the problem of yellowing of leaves in the cotton crop
  • मौसम में लगातार हो रहे परिवर्तन एवं जरुरत से कम बारिश की वजह से कपास की फसल में, पत्तियों के पीलेपन की बहुत अधिक समस्या आ रही है और इस समस्या के कारण, फसल की वृद्धि एवं विकास पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ रहा है।

  • कपास की फसल में पत्तियों का पीलापन कवक, कीट एवं पोषण संबंधी समस्या के कारण भी हो सकता है।

  • यदि यह कवक के कारण होता है तो क्लोरोथालोनिल 75% WP@ 400 ग्राम/एकड़ या थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W @ 300 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।

  • मौसम के परिवर्तन या पोषण के कारण ऐसा होने पर सीवीड (विगरमैक्स जेल) @ 400 ग्राम/एकड़ या ह्यूमिक एसिड 100 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • कीटों के प्रकोप के कारण ऐसा होने पर प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG @ 80 ग्राम/एकड़ की दर उपयोग करें।

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कपास की फसल में फूल लगने के पहले जरूर कर लें कीट व रोग प्रबधन

  • कपास की फसल के पुष्प गूलर तथा अन्य बढ़वार अवस्थाओं में, भिन्न-भिन्न किस्म के कीट एवं रोग सक्रिय रहते हैं।

  • इन कीटों एवं बीमारियों के नियंत्रण के लिए 40-45 दिनों में छिड़काव प्रबंधन करना बहुत आवश्यक है।

  • गुलाबी सुंडी के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए बीटासायफ्लूथ्रिन 8.49% + इमिडाक्लोप्रिड19.81 OD% @ 150 मिली/एकड़ का या मकड़ी की रोकथाम के लिए एबामेक्टिन 1.9% EC @ 150 मिली/एकड़ का या जैविक नियंत्रण के लिए बेवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें।

  • कवक जनित रोग के नियंत्रण के लिए, कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% WP @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें या जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • होमोब्रेसिनोलाइड 0.04 W/W @ 100मिली/एकड़ का उपयोग करें, पौधे की अच्छी वृद्धि एवं फूलों के अच्छे विकास के लिए यह छिड़काव करना बहुत आवश्यक है।

  • छिड़काव के 24 घंटे के अंदर अगर वर्षा हो जाये तो पुनः छिड़काव करें।

    पत्तियों की निचली सतह पर अच्छी तरह से छिड़काव किया जाना चाहिए क्योंकि कीट पत्तियों की निचली सतह पर अधिक सक्रिय होते हैं।

  • कवक रोग, कीट नियंत्रण एवं पोषण प्रबंधन के लिए उपाय करने से कपास की फसल का उत्पादन अच्छा होता है। इस प्रकार से छिड़काव करने से डेंडू का निर्माण बहुत अच्छा होता है एवं उपज की गुणवत्ता बढती है।

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