टमाटर में बेहतर फूल वृद्धि के लिए करें इन उपायों का उपयोग

What measures should be taken at the stage of flowering in the tomato crop
  • टमाटर की फसल में 35-40 दिनों की अवस्था में फूल आने प्रारम्भ हो जाते हैं।

  • टमाटर की फसल में फलों का उत्पादन, फूलों की संख्या पर बहुत अधिक निर्भर करता है। इसलिए इस समय फूलों को बचाना और फूल वृद्धि को बढ़ाना अति आवश्यक होता है।

  • नीचे दिए गए कुछ उत्पादों के द्वारा टमाटर की फसल में फूलों की संख्या को बढ़ाया जा सकता है और इसे गिरने से भी बचाया जा सकता है।

  • होमोब्रासिनोलॉइड 0.04% w/w 100-120 मिली/एकड़ या पेक्लोबुटाजोल 30 मिली/एकड़ का छिड़काव करें।

  • जिब्रेलिक एसिड @ 200 मिली/एकड़ छिड़काव के रूप में उपयोग करें।

  • इस समय फसल में कवक एवं कीटों का प्रकोप होने की सम्भावना अधिक होती है।

  • इस स्थिति में आवश्यकता अनुसार कवकनाशी एवं कीटनाशी का छिड़काव करें।

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सोयाबीन का हरी इल्ली के प्रकोप से करें बचाव

Control of green caterpillar in soybean crop
  • यह इल्ली वयस्क व्वस्था में मध्यम आकार एवं सुनहरा पीले रंग की होता है। इसके आगे के पंखों का रंग भूरा होता है जिस पर बड़ा सुनहरा तिकोना धब्बा होता है। इसके अंडे पीले रंग के एवं गोल होते हैं। नवजात इल्लियाँ हरे रंग की होती है वहीं पूर्ण विकसित इल्लियाँ 4 मि.मी. लम्बी होती हैं।

  • प्रकोप: अंडों से निकलने के बाद छोटी–छोटी इल्लियाँ, सोयाबीन के कोमल पत्तियाँ को खुरच कर खाती हैं। इसके अत्यधिक प्रकोप की स्थिति में पौधे का हरापन ख़त्म हो जाता है। जब आसमान में अधिक बादल होते हैं तब इस इल्ली का प्रकोप अधिक होता है। बड़ी इल्ली पहले सोयाबीन की पत्तियों में और बाद में फलियों में छेद करके दानो को नुकसान पहुँचाती है।

  • सोयाबीन की फसल को इस इल्ली से बचाने के लिए, तीन प्रकार यांत्रिक, रासायनिक एवं जैविक विधि से रोकथाम की जा सकती है।

  • यांत्रिक नियंत्रण: सोयाबीन की बुवाई के पहले गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें। इससे इस इल्ली के प्यूपा ज़मीन में ही नष्ट हो जाएगा। मानसून पूर्व बुवाई ना करें क्योंकि इससे इल्ली को अपनी संख्या बढ़ाने के लिए उचित तापमान मिल जाता है। बहुत अधिक घनी फसल की बुवाई ना करें। यदि कोई संक्रमित पौधा दिखाई दे तो उसे उखाड़ कर नष्ट कर दें। इल्ली के अच्छे नियंत्रण के लिए खेत में 10 नग प्रति एकड़ की दर फेरामोन ट्रैप स्थापित करें। इस ट्रैप में लगने वाला ल्युर हर 3 सप्ताह के अंतराल से बदलते रहना चाहिए।

  • रासायनिक नियंत्रण: प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिली/एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @ 100 ग्राम/एकड़ या फ्लूबेण्डामाइड 20% WG @ 100 ग्राम/एकड़ या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC @ 60 मिली/एकड़ का छिड़काव करें।

  • जैविक नियंत्रण: बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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कपास की फसल की डेंडू अवस्था में जरूरी है पोषण प्रबध

Nutritional management during the ball formation in cotton crop

कपास की फसल में 40-45 दिनों की अवस्था डेंडू बनने की शुरुआती अवस्था होती हैं। इस अवस्था में कपास की फसल को अधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इसके लिए उचित पोषक तत्वों का उपयोग कर सकते हैं, जिससे कपास की फसल में डेंडू का निर्माण एवं उत्पादन अच्छा हो एवं किसान को लाभ प्राप्त हो।

इस अवस्था में उर्वरक प्रबधन करने के लिए निम्र उत्पादों का उपयोग लाभकारी होता है।

  • यूरिया @ 30 किलो + MOP @ 30 किलो + मैग्नीशियम सल्फेट @ 10 किलो/एकड़ की दर से भूमि में मिलाएं।

  • यूरिया: कपास की फसल में, यूरिया नाइट्रोज़न की पूर्ति का सबसे बड़ा स्त्रोत है। इसके उपयोग से पत्तियों में पीलापन एवं सूखने जैसी समस्या नहीं आती है। यूरिया प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को भी तेज़ करता है।

  • MOP (पोटाश): पोटाश कपास के पौधे में संश्लेषित शर्करा को पौधे के सभी भागों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पोटाश प्राकृतिक नत्रजन की कार्य क्षमता को बढ़ावा देता है साथ ही पौधों में प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है।

  • मैग्नीशियम सल्फेट: इसके उपयोग से कपास की फसल में हरियाली बढ़ती है एवं प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में तेज़ी आती है। अंततः इसकी मदद से उच्च पैदावार तो मिलती ही है साथ ही उत्पादन की गुणवत्ता भी बढ़ती है।

  • इस प्रकार पोषण प्रबधन करने से कपास की फसल में नाइट्रोज़न की पूर्ति बहुत अच्छे से होती है। पोटाश के कारण डेंडु की संख्या और आकार में बढ़ोतरी होती है। मैग्नीशियम सल्फेट सूक्ष्म पोषक तत्व की पूर्ति करता है। इससे स्वस्थ डेंडू का निर्माण होता है और कपास का उत्पादन भी बहुत अधिक होता है।

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प्याज की फसल में बढ़ेगा चारे का प्रकोप, जल्द करें प्रबंधन

How to manage weeds in onion crop
  • मिट्टी में प्रकृतिक रूप से बहुत सारे मुख्य एवं सूक्ष्म पोषक तत्व पाए जाते हैं जो फसल में चारे के प्रकोप का कारण बनते हैं। प्याज की फसल में भी इस मौसम में चारों का प्रकोप बहुत ज्यादा देखने को मिलता है।

  • इसके कारण फसलों में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है और फसल की कुल उपज पर भी बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।

  • प्याज की अच्छी फसल उत्पादन के लिए चारे जिसे खरपतवार भी कहते हैं का प्रबंधन समय-समय पर करना बहुत आवश्यक होता है।

  • खरपतवार प्रबंधन के लिए पेंडिमेथालीन 38.7% CS @ 700 मिली/एकड़ की दर से रोपाई के 3 दिनों के अंदर उपयोग करें।

  • प्रोपेक़्युज़ाफॉप 5% + ऑक्सीफ़्लोर्फिन 12% EC @ 250-350 मिली/एकड़ फसल में लगाने के 25-30 दिनों के बाद उपयोग करें।

  • ऑक्सीफ़्लोर्फिन 23.5% EC @ 100 मिली/एकड़ + प्रोपेक़्युज़ाफॉप 10% EC @ 300 मिली/एकड़ या क्युजालोफॉप इथाइल 5% EC @ 300 मिली/एकड़ की दर से 20 से 25 दिनों में छिड़काव करें।

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कपास में इन लक्षणों से पहचानें कोणीय धब्बा रोग, करें नियंत्रण

Symptoms and control of angular spot disease in cotton crop
  • कपास का कोणीय धब्बा रोग जिसे बैक्टीरियल ब्लाइट, बॉल रॉट और ब्लैक लेग भी कहा जाता है, एक संभावित विनाशकारी जीवाणु रोग है।

  • कोणीय धब्बा रोग मुख्यतः पत्तियों को प्रभावित करता है। इसके कारण पत्तियों पर जलसक्त धब्बे दिखाई देते हैं एवं यह धब्बे शुरुआती समय में पत्तियों पर दिखाई देते हैं।

  • यह धब्बे पत्तियों की ऊपरी सतह पर दिखाई देता है और बाद में पूरी पत्ती पर फैल जाता है। इन धब्बों का आकर धीरे-धीरे बढ़ कर कोणीय आकार का हो जाता है। धब्बे जैसे जैसे पुराने होते जाते हैं वैसे वैसे भूरे-काले हो जाते है।

  • रासायनिक प्रबधन: कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP @ 300 ग्राम/एकड़ या कासुगामायसिन 3% SL@ 400 मिली/एकड़ या स्ट्रेप्टोमायसिन सल्फेट 90% + टेट्रासायक्लीन हाइड्रोक्लोराइड 10% W/W @ 20 ग्राम/एकड़ की दर से छिडकाव करें।

  • जैविक प्रबधन: जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर छिड़काव करें।

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सोयबीन में बढ़ेगा चारे का प्रकोप, चारामार के उपयोग में जरूर रखें ये सावधानियाँ

What precautions should be taken while using weedicide in soybean crop

सोयाबीन की फसल में इस समय चारे यानी की खरपतवार का प्रकोप बढ़ रहा है। ऐसे में आप अच्छे ब्रांड्स के चारामार का उपयोग कर सकते हैं। चारामार के उपयोग के समय कुछ बातों का ध्यान रखने की जरूरत होती है।

  • चारे की दो से तीन पत्ती की अवस्था में ही चारामार का उपयोग करें।

  • चारामार के उपयोग के पूर्व यह सुनिश्चित करें की खेत में पर्याप्त नमी हों।

  • चारामार के छिड़काव के लिए ऐसे स्प्रे पंप का इस्तेमाल करें जिसमे कट नोज़ल हो। इससे चारामार दवा का फसल पर कोई विपरीत असर नहीं होता है। आप एक एकड़ के लिए 150-200 लीटर पानी का उपयोग करें।

  • चारे पर इसका अच्छा असर हो इसके लिए चारामार दवाई में चिपको मिलाकर उपयोग करें। इस बात का ध्यान रखें की जिस खरपतवार नाशक का उपयोग कर रहे हैं वह चौड़ी एवं सकरी दोनों तरह की खरपतवारों का नियंत्रण करता हो।

  • चारामार दवाई का घोल बनाते समय इसे सही क्रम मे मिलाएं तथा इसकी जानकारी के लिए साथ मिले पर्चे या डब्बे पर लिखी विधी को अच्छे से पढ़ें। चारामार खरीदने से पहले उसके अवसान की तिथि एवं उपयोग का तरीका ठीक से पढ़ लेना चाहिए।

  • फसल एवं खरपतवार की आवश्यकता अनुसार शाकनाशी का चुनाव करें। चारामार के साथ किसी भी कीटनाशक एवं कवकनाशक को साथ में ना मिलाएं।

  • चारामार दवाई का घोल बनने के लिए साफ पानी का इस्तमाल करें एवं छिड़काव के बाद स्प्रे पंप की अच्छे से साफ पानी से सफाई कर लें।

फसल की बुआई के साथ ही अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

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मिर्च में हो रहा एन्थ्रेक्नोज रोग का प्रकोप, ऐसे करें नियंत्रण

How to control anthracnose disease in chilli crop
  • मिर्च की फसल में इस बीमारी के लक्षण पौधे में पत्ती, तना और फल पर दिखाई देते हैं।

  • इसके कारण मिर्च के फल पर छोटे, गोलाकार धब्बे दिखाई देते हैं, जो बाद में धीरे- धीरे फैलकर आपस में मिल जाते हैं।

  • इसके कारण फल बिना पके ही गिरने लगते हैं और फसल से प्राप्त उपज में भारी नुकसान होता है।

  • यह एक कवक जनित रोग है जो सबसे पहले मिर्च के फल के डंठल पर आक्रमण करता है और बाद में पूरे पौधे पर फैल जाता है।

  • रासायनिक नियंत्रण: इस रोग के नियंत्रण के लिए टेबुकोनाज़ोल 25.9% EC @ 250 मिली/एकड़ या कैपटान 70% + हेक्साकोनाज़ोल 5% WP @ 250 ग्राम/एकड़ या कीटाजिन 48% EC @ 200 मिली/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 70% WP @ 400 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक प्रबंधन: जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ का उपयोग मिट्टी उपचार के रूप में करें। स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम की दर छिड़काव करें।

फसल की बुआई के साथ ही अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

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सोयाबीन व अन्य दलहनी फसलों में क्यों होती है कम नाइट्रोजन की आवश्यकता?

Why is the requirement of nitrogen less in pulse crops like soybean?
  • सोयाबीन व अन्य दलहनी फसलों की जडों की ग्रंथिकाओं में राइज़ोबियम नामक जीवाणु पाया जाता है, जो वायुमंडलीय इट्रोजन का स्थिरीकरण कर फसल को उपलब्ध कराता है।

  • राइजोबियम एक नाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवाणु है, यह दलहनी फसल के पौधों की जड़ों पर मौजूद रहता है और वायुमंडलीय नाइट्रोजन को उस रूप में परिवर्तित करता है जिस रूप में पौधे द्वारा इस्तेमाल किया जा सकता है।

  • यह किसानों के लिए एक मददगार जीवाणु है, यह पौधों को अच्छी तरह से विकसित करने में मदद करता है। यह पौधों को श्वसन आदि जैसी विभिन्न जीवन प्रक्रियाओं में अच्छा प्रदर्शन करने में मदद करता है।

  • इसके उपयोग से दलहनी फसल की उपज में 50-60 फीसदी तक का इज़ाफा होता है। राइजोबियम कल्चर के प्रयोग से भूमि में लगभग 30-40 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर तक बढ़ जाती है।

  • इसलिए दलहनी फसल में, अतिरिक्त नाइट्रोज़न की आवश्यकता नहीं होती है। दलहनी फसल की कटाई के बाद, इनके अवशेष मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा बनाए रखने में सहायक होते हैं। यह अगली फसल के उत्पादन में नाइट्रोजन उर्वरकों की मात्रा के उपयोग को भी कम कर देते हैं।

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मोथा घास को मक्का की फसल में ऐसे करें नियंत्रित

How to control cyperus grass in a maize crop
  • मोथा एक बहुवर्षीय पौधा है जो 75 सें.मी. तक ऊँचा हो जाता है। भूमि से ऊपर यह सीधा, तिकोना, बिना शाखा वाला तना होता है। वहीं नीचे जड़ों में इसके 6 से 7 कंद होते हैं। ये कंद गद्देदार सफेद और बाद में रेशेदार भूरे रंग के तथा अंत में पुराने होने पर लकड़ी की तरह सख्त हो जाते हैं। इसकी पत्तियाँ लम्बी और प्रायः तने पर एक दूसरे को ढके हुए रहती हैं।

  • यह एक बहुवर्षीय घास है एवं लगभग सभी फसलों को बहुत ज्यादा प्रभावित करता है परंतु यह मुख्य रूप से मक्का की फसल को कुछ ज्यादा ही प्रभावित करता है|

  • मोथा को नियंत्रित करना बहुत आवश्यक होता है, इसके नियंत्रण के लिए बुवाई के बाद 20-25 दिनों में, हेलोसल्फ्यूरॉन मिथाइल 75% WG @ 36 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • अच्छे एवं लम्बे परिणाम के लिए, खेत में लंबे समय तक नमी का होना बहुत आवश्यक है, इसलिए अगर नमी कम हो रही हो तो हल्की सिंचाई अवश्य करें।

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सोयाबीन की फसल को कम बारिश की स्थिति में दें ऐसे बेहतर सुरक्षा

How to protect soybean crop in case of low rainfall
  • वर्तमान मौसम की स्थिति के कारण सोयबीन की फसल बहुत अधिक प्रभावित हो रही है। सोयाबीन खरीफ की फसल है एवं इसके अच्छे उत्पादन के लिए पर्याप्त बारिश का होना बहुत आवश्यक होता है। पर इस समय जिस प्रकार से बारिश कहीं पर बहुत अधिक हो रही है और कही पर बिलकुल नहीं हो रही है, ऐसी परिस्थिति में, कम बारिश में सोयाबीन की फसल की सुरक्षा के निम्र प्रकार से की जानी चाहिए।

  • सोयाबीन की बुआई मानसून आने के पहले नहीं करना चाहिए, क्योंकि यदि मानसून पूर्ण रूप से नहीं आता है तो सोयाबीन की फसल का अंकुरण बहुत प्रभावित होता है। इसलिए सोयाबीन की फसल की बुआई सही समय एवं मानसून आने पर ही करें।

  • यदि किसी किसान ने बुवाई कर दी है, और खेत में नमी की मात्रा कम हो, तो ऐसे में खेत की हल्की सिंचाई अवश्य करें, ताकि सोयाबीन की फसल में, अंकुरण या विकास संबधी कोई समस्या ना हो।

  • एक बात का अवश्य ध्यान रखें की जब खेत में सिंचाई की जा रही हो तब खेत में नमी की मात्रा अधिक ना हो वर्ना सोयबीन की फसल अधिक नमी के कारण ख़राब हो सकती है।

  • कम बारिश की स्थिति में, यदि फसल में कवक एवं कीटों का प्रकोप दिखाई दे, तो आवश्यकतानुसार छिड़काव भी जरूर करते रहें।

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