सोयाबीन व अन्य दलहनी फसलों में क्यों होती है कम नाइट्रोजन की आवश्यकता?

  • सोयाबीन व अन्य दलहनी फसलों की जडों की ग्रंथिकाओं में राइज़ोबियम नामक जीवाणु पाया जाता है, जो वायुमंडलीय इट्रोजन का स्थिरीकरण कर फसल को उपलब्ध कराता है।

  • राइजोबियम एक नाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवाणु है, यह दलहनी फसल के पौधों की जड़ों पर मौजूद रहता है और वायुमंडलीय नाइट्रोजन को उस रूप में परिवर्तित करता है जिस रूप में पौधे द्वारा इस्तेमाल किया जा सकता है।

  • यह किसानों के लिए एक मददगार जीवाणु है, यह पौधों को अच्छी तरह से विकसित करने में मदद करता है। यह पौधों को श्वसन आदि जैसी विभिन्न जीवन प्रक्रियाओं में अच्छा प्रदर्शन करने में मदद करता है।

  • इसके उपयोग से दलहनी फसल की उपज में 50-60 फीसदी तक का इज़ाफा होता है। राइजोबियम कल्चर के प्रयोग से भूमि में लगभग 30-40 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर तक बढ़ जाती है।

  • इसलिए दलहनी फसल में, अतिरिक्त नाइट्रोज़न की आवश्यकता नहीं होती है। दलहनी फसल की कटाई के बाद, इनके अवशेष मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा बनाए रखने में सहायक होते हैं। यह अगली फसल के उत्पादन में नाइट्रोजन उर्वरकों की मात्रा के उपयोग को भी कम कर देते हैं।

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