मध्य प्रदेश की प्रमुख मंडियों में गेहूँ भाव में दिखी कितनी तेजी?

wheat mandi rates

मध्य प्रदेश के अलग अलग मंडियों जैसे खातेगांव, मन्दसौर, बदनावर, खंडवा, खरगोन, खातेगांव, कालापीपल और झाबुआ आदि में क्या चल रहे हैं गेहूँ के भाव? आइये देखते हैं पूरी सूची।

विभिन्न मंडियों में गेहूं के ताजा मंडी भाव

कृषि उपज मंडी

न्यूनतम मूल्य (प्रति क्विंटल)

अधिकतम मूल्य (प्रति क्विंटल)

आगर

1968

2157

अजयगढ़

1980

2060

अमरपाटन

1950

2100

बड़नगर

1856

2409

बड़नगर

1860

2260

बदनावरी

2015

2425

बड़वाह

2059

2251

बैकुंठपुर

1945

2070

बाणपुरा

2060

2180

बनखेड़ी

2131

2158

बैतूल

2000

2190

भानपुरा

2015

2015

भानपुरा

1970

2040

भीकनगांव

2109

2246

छपरा

2000

2075

धामनोद

2162

2234

गंधवानी

2128

2210

गरोठ

1950

2010

हाटपिपलिया

1940

2300

हरपालपुर

1860

2050

इछावर

1974

2341

इछावर

2400

3060

ईसागढ़

2300

2700

ईसागढ़

1905

2230

जबलपुर

1968

2140

जावद

2062

2280

झाबुआ

2005

2200

जोबाट

1909

2150

कैलारास

2070

2120

कालापीपाल

1850

2050

कालापीपाल

1750

1950

कालापीपाल

1950

2750

खाचरोडी

2025

2321

खंडवा

2050

2300

खानियाधना

1930

1970

खरगोन

2125

2288

खातेगांव

1401

2386

खातेगांव

1939

2386

खिरकिया

1775

2199

खुजनेर

1940

2095

खुजनेर

1960

2090

कोलारास

1961

2115

लटेरी

1880

1955

लटेरी

2400

2490

लटेरी

2000

2185

लोहरदा

1975

2075

मन्दसौर

1990

2442

मोमनबादोदिया

1900

2075

मुरैना

2012

2090

स्रोत: एगमार्कनेट

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मक्के की फसल में फॉल आर्मी वर्म नियंत्रण के उपाय

यह कीट मक्के की सभी अवस्था में आक्रमण करते हैं | सामान्यता यह मक्के की पत्तियों पर आक्रमण करता है परन्तु अधिक प्रकोप होने पर यह भुट्टे को भी नुकसान पहुंचाने लगता है। लार्वा के पौधे के ऊपरी भाग या कोमल पत्तियों पर अधिक आक्रमण करता है ग्रसित पौधे की पत्तियों पर छोटे- छोटे छेद दिखाई देते है

नवजात लार्वा पौधे की पत्तियों को खुरच कर खाते हैं, जिससे पत्तियों पर सफेद धारियां दिखाई देते हैं। जैसे-जैसे लार्वा बड़ा होता है, पौधे की ऊपरी पत्तियों को पूर्ण रूप से खाता जाता है। इसके अलावा पौधे के अंदर घुसकर मुलायम पत्तियों को भी खा जाते हैं।

नियंत्रण के उपाय  

इसके नियंत्रण के लिए इमानोवा (इमामेक्टिन बेंजोएट 5 एसजी) @ 80 ग्राम या बाराज़ाइड (नोवालुरॉन 5.25% + एमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% एससी) @ 600 मिली + सिलिको मैक्स @ 50 मि ली प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।  

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मक्का की फसल में बुवाई के 15 से 20 दिनों की अवस्था पर पोषक तत्व प्रबंधन

मक्का खरीफ ऋतु की प्रमुख फसल है, परन्तु जहां सिंचाई के साधन हैं वहां रबी और खरीफ की अगेती फसल के रूप में मक्का की खेती की जा सकती है। मक्का कार्बोहाइड्रेट का बहुत अच्छा स्रोत है। यह एक बहुपयोगी फसल है, मनुष्य के साथ- साथ पशुओं के आहार का प्रमुख अवयव भी है तथा मक्का की खेती का औद्योगिक क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण स्थान है।

मक्का फसल को शुरुआती अवस्था में खरपतवार रहित होना चाहिए अन्यथा उत्पादन में कमी आती है। बुवाई के 15-20 दिन बाद फसल में डोरा चलाकर निराई-गुड़ाई करे या रासायनिक शाकनाशी का प्रयोग करके पहले खरपतवार को नष्ट कर दे, उसके पश्चात पोषक तत्व का उपयोग करें। जिससे सीधे मुख्य फसल ही पोषक तत्व ग्रहण करेंगे और पोषक तत्व का नुकसान नहीं होगा एवं फसल भी स्वस्थ रहेगी। 

पौधों की इस अवस्था में, यूरिया @ 35 किग्रा + मल्टिप्लेक्स /ग्रोमोर (मैग्नीशियम सल्फेट @ 5 किग्रा)  + दयाल (जिंक सल्फेट @ 5 किग्रा), प्रति एकड़ के हिसाब से उर्वरकों को मिलाकर मिट्टी में मिलाएं।

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कपास की फसल में गुलाबी इल्ली के नियंत्रण के उपाय

किसान भाइयों, गुलाबी सुंडी या इल्ली आपकी कपास के डेंडु को बहुत अधिक नुकसान पहुँचाती है। शुरुआती दौर में ये कपास के फूल पर पायी जाती है। ये फूल से कपास के परागकण को खाने के साथ ही कपास के बन रहे नए डेंडु में छेद करके अंदर चली जाती है और कपास के बीज को खाना शुरू कर देती है। इस कारण कपास का डेंडु अच्छी तरह से तैयार नहीं हो पाते है और कपास में दाग लग जाता है। 

इस कीट की पहचान करने के लिए फेरोमोन ट्रैप का उपयोग करें, यह इंगित करता है कि फसलों में कौनसे कीट का प्रकोप है और कितनी मात्रा में है। 

गुलाबी सुंडी या इल्ली के रोकथाम के लिए आपको रासायनिक उत्पाद के कम से कम 3 छिड़काव करने होंगे, आइये जानते हैं कि ये छिड़काव आपको कब और कितनी मात्रा में करने हैं। कपास की बुआई के 40 से 45 दिन में कपास की फसल में फूली पूड़ी की अवस्था आती है। जैसे ही आपके कपास में 20% से 30% फूल आना शुरू हो जाते हैं उसी दौरान आपको – 

नियंत्रण के उपाय 

@ 250 ग्राम  + न्यूट्रीफुल मैक्स (फुल्विक + अमीनो + ट्रेस एलिमेंट्स) @ 250 मिली + सिलिको मैक्स @ 50 मिली/एकड़ की दर से पहला छिड़काव करें। 

  • इसके बाद दूसरा छिड़काव पहले छिड़काव के 13 से 15 दिन के बाद करना है। इस छिड़काव के लिए प्रोफेनोवा सुपर (प्रोफेनोफॉस 40% ईसी + साइपरमैथिन 4% ईसी) @ 400 – 600 मिली + बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना 5% डब्ल्यूपी) @ 250 ग्राम + सिलिको मैक्स @ 50 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

  • तीसरा छिड़काव आपको दूसरे छिड़काव के 15 दिन बाद करना है। बाराज़ाइड (नोवालुरॉन 5.25% + इमामेक्टिन 0.9% एससी) @ 600 मिली + बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना 5% डब्ल्यूपी) @ 250 ग्राम  + सिलिको मैक्स @ 50 मिली / एकड़ के  हिसाब  से छिड़काव करके किसान भाई गुलाबी इल्ली प्रकोप से अपनी कपास की फसल को बचा सकते है। 

कपास की गुलाबी इल्ली के लिए सावधानियाँ:- 

  • कपास की फसल को गुलाबी इल्ली से बचाने के लिए गर्मी के दिनों में गहरी जुताई करना चाहिए | 

  • पुरानी फसल के अवशेष एवं खरपतवारों को नष्ट करना चाहिए |

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सोयाबीन में गर्डल बीटल (रिंग कटर) की रोकथाम के उपाय

गर्डल बीटल क्या है:-

किसान भाइयों, गर्डल बीटल सोयाबीन के मुख्य कीटों में से एक है। मादा बीटल, मुलायम शरीर एवं गहरे रंग की होती है। वयस्क बीटल कठोर खोल जैसा होता है। सिर पर एक एंटीना होता है। इसका लार्वा सफेद रंग एवं नरम सर वाली कीट है,  फसल पर इसका आक्रमण जुलाई से अगस्त के बीच अधिक होता है।

क्षति के लक्षण:- 

यह कीट सोयाबीन की फसल में सर्वाधिक नुकसान पहुंचाता है। इस कीट की मादा तने पर दो रिंग बनती है और नीचे वाले रिंग में 3 छेद बनाती है और बीच वाले छेद में अंडा रखती है। जब अंडे से शिशु निकलते है तो वो वही तने के गूदे को खाकर कमजोर कर देते है l जिसके कारण तना बीच में से खोखला हो जाता है, खनिज तत्व पत्तियों तक नहीं पहुंच पाते एवं पत्तियाँ सूख जाती है, इसके कारण फसल के उत्पादन में काफी कमी आती है।

नियंत्रण के उपाय -: 

नोवालैक्सम (थायोमिथोक्साम 12.60% + लैम्ब्डा-साइहलोथ्रिन 09.50% जेडसी) @ 50 मिली या सोलोमोन (बीटा-साइफ्लुथ्रिन 08.49% + इमिडाक्लोप्रिड 19.81% ओडी) @ 140 मिली +  सिलिको मैक्स @ 50 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

जैविक नियंत्रण:- बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना 5% डब्ल्यू.पी) @ 250 -500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

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करेले की फसल में कीट क्षति की पहचान एवं नियंत्रण के उपाय

रेड पंपकिन बीटल (लाल कद्दू भृंग)

क्षति के लक्षण –

  • यह हानिकारक कीट है, जो करेला पर प्रारम्भिक अवस्था पर लगता है।

  • यह कीट पत्तियों को खा कर पौधे की बढ़ाव को रोकता है। 

  • इसकी सूंडी खतरनाक होती है, यह करेला के पौधे की जड़ों को काटकर फसल को नष्ट कर देती है।

नियंत्रण के उपाय 

नोवालैक्सम (थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% ZC) @ 80 मिली + सिलिको मैक्स @ 50 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

मकड़ी 

क्षति के लक्षण – 

  • यह कीट आकार में छोटा होता है जो की फसलों के कोमल अंगों जैसे पत्तियां ,फूल कलियों ,एवं टहनियों पर भारी मात्रा में पाए जाते है।

  • पत्तियों पर सफेद धब्बे दिखाई देते हैं।

  • जिन पोधो पर मकड़ी का प्रकोप होता है उस पौधे पर जाले दिखाई देते है। यह किट पौधे के कोमल भागो का रस चूसकर उनको कमज़ोर कर देते है एवं अंत में पौधा मर जाता है। 

 नियंत्रण के उपाय –

अबासीन (एबामेक्टिन 1.8% ईसी) @ 150 मिली या ओमाइट (प्रोपरगाइट 57% ईसी) @ 200 मिली  + सिलिको मैक्स @ 50 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें

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फसलों में ट्राइकोडर्मा विरडी) का कैसे उपयोग करें एवं इसके फायदे?

ट्राइकोडर्मा  के फायदे 

  • यह एक घुलनशील जैविक फफूंदी नाशक दवा होती है. जिसको धान, गन्ना, दलहन, गेहूं, औषधीय और सब्जियों वाली फसल में उपयोग किया जाता है। इसको अपना कर फसल का उत्पादन बड़ा सकते हैं।  

  • मिट्टी में कई तरह के रोग पाए जाते हैं, जैसे – आर्द्र गलन, जड़ गलन, उकठा, सफेद तना गलन, फल सड़न, तना झुलसा, जीवाण्वीय उकठा और मूल ग्रंथि| इन सभी रोगों से निजात मिलती है।

  • रोग उत्पन्न करने वाले कारकों को  रोकता है, फ्यूजेरियम, पिथियम, फाइटोफ्थोरा, राइजोक्टोनिया, स्क्लेरोशियम, स्क्लेरोटिनिया आदि मृदा जनित रोगों को मारता है, साथ ही पौधों की रोगों से सुरक्षा करता है। ये दवा फलदार वृक्षों के लिए भी लाभदायक साबित है।

ट्राइकोडर्मा के प्रयोग की विधि

बीज का उपचार – बीज के उपचार के लिये 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलो बीज के हिसाब से उपयोग करते है। बीज के उगने और बढ़ने के साथ.साथ ट्राईकोडरमा भी मिट्टी में चारो तरफ फैलता है और जड़ को चारों तरफ से घेरे रहता है जिससे कि उपरोक्त कोई भी कवक आसपास बढ़ने नहीं पाता।

मिट्टी का उपचार – 2 किग्रा ट्राईकोडर्मा पाउडर को 50 किग्रा गोबर की खाद (एफ वाई एम) में मिलाकर एक हफ्ते के लिये छायेदार स्थान पर रख देते हैं, जिससे की कवक का स्पोर जम जाय फिर इसे एक एकड़ खेत की मिट्टी में फैला देते हैं तथा इसके उपरान्त बोवाई कर सकते हैं।

सीड प्राइमिंग – बीज बोने से पहले खास तरह के घोल की बीज पर परत चढ़ाकर छाया में सुखाने की क्रिया को सीड प्राइमिंग कहा जाता है। ट्राइकोडर्मा से सीड प्राइमिंग करने हेतु सर्वप्रथम गाय के गोबर का स्लरी बनाएं। प्रति लीटर गारे में 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा मिलाएं और इसमें लगभग एक किलोग्राम बीज डुबोकर थोड़ी देर रखे। इसे बाहर निकालकर छाया में थोड़ी देर सूखने दें फिर बुवाई करें। यह प्रक्रिया खासकर अनाज, दलहन और तिलहन फसलों की बुवाई से पहले की जानी चाहिए।

पर्णीय छिड़काव – – कुछ खास तरह के रोगों जैसे पर्ण चित्ती, झुलसा आदि की नियंत्रण के लिये पौधों में रोग के लक्षण दिखाई देने पर 5 से 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

जड़ उपचार- 100 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति 10 लीटर पानी में मिलाये व रोपित किये जाने वाले पौधों की जड़ों (कन्द, राइजोम एवं कलम,नर्सरी पौध) को में 15 से 30 मिनट तक उस घोल में डुबोकर रखे, उसके पश्चात् खेत में रोपाई करे। 

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मध्यप्रदेश की चुनिंदा मंडियों में क्या चल रहे सोयाबीन के भाव ?

मध्य प्रदेश के अलग अलग मंडियों जैसे मन्दसौर, बदनावर, छिंदवाड़ा और खरगोन आदि में क्या चल रहे हैं सोयाबीन के भाव? आइये देखते हैं पूरी सूची।

विभिन्न मंडियों में सोयाबीन के ताजा मंडी भाव

कृषि उपज मंडी

न्यूनतम मूल्य (प्रति क्विंटल)

अधिकतम मूल्य (प्रति क्विंटल)

बदनावर

4700

6300

बमोरा

4000

5901

बाणपुरा

5500

6000

बेतुल

5800

6091

भीकनगांव

5500

6165

बुरहानपुर

6125

6125

छिंदवाड़ा

5565

6100

गंधवानी

5100

5500

खाचरोडी

5850

6234

खरगोन

5475

6001

खातेगांव

4090

6161

खातेगांव

3800

6540

खिरकिया

3762

6200

खुजनेर

6000

6190

लटेरी

3725

6000

मन्दसौर

5000

6340

महू

3400

3400

पचौरी

5700

6245

राहतगढ़

5500

5500

सांवेर

5758

6200

सतना

4951

5935

श्योपुरबडोद

5960

6070

श्योपुरकलां

5056

6030

सिराली

5185

6025

सुसनेर

5500

6130

स्रोत: एगमार्कनेट

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मध्य प्रदेश की प्रमुख मंडियों में गेहूँ भाव में दिखी कितनी तेजी?

wheat mandi rates

मध्य प्रदेश के अलग अलग मंडियों जैसे खातेगांव, मन्दसौर, बदनावर, खरगोन और झाबुआ आदि में क्या चल रहे हैं गेहूँ के भाव? आइये देखते हैं पूरी सूची।

विभिन्न मंडियों में गेहूं के ताजा मंडी भाव

कृषि उपज मंडी

न्यूनतम मूल्य (प्रति क्विंटल)

अधिकतम मूल्य (प्रति क्विंटल)

अजयगढ़

1900

2000

अमरपाटन

1900

2100

बदनावर

1950

2375

बमोरा

1950

2170

बेतुल

1980

2170

भीकनगांव

2063

2198

बुरहानपुर

2060

2151

चाकघाटी

1920

1925

डबरा

1960

2180

गंधवानी

2075

2200

गौतमपुरा

1850

2000

जैसीनगर

1950

2000

जतारा

1960

2040

झाबुआ

1855

1910

खरगोन

1826

2240

खातेगांव

1890

2180

लटेरी

1850

1985

लटेरी

2405

2405

लटेरी

2000

2300

मन्दसौर

1980

2301

मुरैना

2030

2049

पचौरी

1901

2101

पलेरा

1840

1900

पन्ना

1850

1860

पवई

1900

1900

पवई

1875

1875

राहतगढ़

2000

2020

सांवेर

1795

2005

सिवनी

1970

1970

शाहगढ़

1910

1990

शाजापुर

2060

2060

शामगढ़

1900

2030

श्योपुरबडोद

1950

1965

श्योपुरकलां

1921

2170

सिमरिया

1820

1972

सिराली

1930

2018

सुसनेर

1923

2027

स्रोत: एगमार्कनेट

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जानें धान की सीधी बुवाई के फायदे

धान की सीधी बुआई दो विधियों से की जाती है। एक विधि में खेत तैयार कर ड्रिल द्वारा बीज बोया जाता है। दूसरी विधि में खेत में पाटा लगाकर अंकुरित बीजों को ड्रम सीडर द्वारा बोया जाता है। इस विधि में वर्षा आगमन से पूर्व खेत तैयार कर सूखे खेत में धान की बुवाई की जाती है। अधिक उत्पादन के लिए, इस विधि में जुताई करने के उपरांत, बुआई जून के प्रथम सप्ताह में बैल चलित बुआई यंत्र (नारी हल में पोरा लगाकर) अथवा ट्रैक्टर चलित सीड ड्रिल द्वारा कतारों में करना चाहिए।

धान की सीधी बुवाई तकनीक से फायदे

  • धान की कुल सिंचाई की आवश्यकता का लगभग 20 प्रतिशत पानी रोपाई हेतु खेत मचाने में प्रयुक्त होता है। सीधी बुआई तकनीक अपनाने से 20 से 25 प्रतिशत पानी की बचत होती है क्योंकि इस इस विधि से धान की बुवाई करने पर खेत में लगातार पानी बनाए रखने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

  • सीधी बुआई करने से रोपाई की तुलना में श्रमिक प्रति हेक्टेयर की बचत होती है। इस विधि में समय की बचत भी हो जाती है क्योंकि इस विधि में धान की पौध तैयार और रोपाई करने की जरूरत नहीं पड़ती है।

  • धान की नर्सरी उगाने, खेत मचाने तथा खेत में पौध रोपण का खर्च बच जाता है। इस प्रकार सीधी बुआई में उत्पादन व्यय कम आता है।

  • रोपाई वाली विधि की तुलना में इस तकनीक में ऊर्जा व ईंधन की बचत होती है

  • समय से धान की बुआई संपन्न हो जाती है, इससे उपज अधिक मिलने की संभावना होती है।

  • धान की खेती रोपाई विधि से करने पर खेत की मचाई (लेव) करने की जरूरत पड़ती है जिससे भूमि की भौतिक दशा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है जबकि सीधी बुवाई तकनीक से मिट्टी की भौतिक दशा पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है।

  • इस विधि से जीरो टिलेज मशीन में खाद व बीज डालकर आसानी से बुवाई कर सकते हैं। इससे बीज की बचत होती है और उर्वरक उपयोग क्षमता बढ़ती है।

  • सीधी बुआई का धान, रोपित धान की अपेक्षा 7-10 दिन पहले पक जाता है जिससे रबी फसलों की समय पर बुआई की जा सकती है।

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