धान की सीधी बुआई दो विधियों से की जाती है। एक विधि में खेत तैयार कर ड्रिल द्वारा बीज बोया जाता है। दूसरी विधि में खेत में पाटा लगाकर अंकुरित बीजों को ड्रम सीडर द्वारा बोया जाता है। इस विधि में वर्षा आगमन से पूर्व खेत तैयार कर सूखे खेत में धान की बुवाई की जाती है। अधिक उत्पादन के लिए, इस विधि में जुताई करने के उपरांत, बुआई जून के प्रथम सप्ताह में बैल चलित बुआई यंत्र (नारी हल में पोरा लगाकर) अथवा ट्रैक्टर चलित सीड ड्रिल द्वारा कतारों में करना चाहिए।
धान की सीधी बुवाई तकनीक से फायदे
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धान की कुल सिंचाई की आवश्यकता का लगभग 20 प्रतिशत पानी रोपाई हेतु खेत मचाने में प्रयुक्त होता है। सीधी बुआई तकनीक अपनाने से 20 से 25 प्रतिशत पानी की बचत होती है क्योंकि इस इस विधि से धान की बुवाई करने पर खेत में लगातार पानी बनाए रखने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
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सीधी बुआई करने से रोपाई की तुलना में श्रमिक प्रति हेक्टेयर की बचत होती है। इस विधि में समय की बचत भी हो जाती है क्योंकि इस विधि में धान की पौध तैयार और रोपाई करने की जरूरत नहीं पड़ती है।
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धान की नर्सरी उगाने, खेत मचाने तथा खेत में पौध रोपण का खर्च बच जाता है। इस प्रकार सीधी बुआई में उत्पादन व्यय कम आता है।
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रोपाई वाली विधि की तुलना में इस तकनीक में ऊर्जा व ईंधन की बचत होती है
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समय से धान की बुआई संपन्न हो जाती है, इससे उपज अधिक मिलने की संभावना होती है।
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धान की खेती रोपाई विधि से करने पर खेत की मचाई (लेव) करने की जरूरत पड़ती है जिससे भूमि की भौतिक दशा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है जबकि सीधी बुवाई तकनीक से मिट्टी की भौतिक दशा पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है।
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इस विधि से जीरो टिलेज मशीन में खाद व बीज डालकर आसानी से बुवाई कर सकते हैं। इससे बीज की बचत होती है और उर्वरक उपयोग क्षमता बढ़ती है।
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सीधी बुआई का धान, रोपित धान की अपेक्षा 7-10 दिन पहले पक जाता है जिससे रबी फसलों की समय पर बुआई की जा सकती है।
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