देश के विभिन्न शहरों में फलों और फसलों की कीमतें क्या हैं? |
|||
मंडी |
फसल |
न्यूनतम मूल्य (किलोग्राम में) |
अधिकतम मूल्य (किलोग्राम में) |
लखनऊ |
प्याज़ |
10 |
11 |
लखनऊ |
प्याज़ |
12 |
13 |
लखनऊ |
प्याज़ |
14 |
– |
लखनऊ |
प्याज़ |
15 |
16 |
लखनऊ |
प्याज़ |
10 |
– |
लखनऊ |
प्याज़ |
12 |
– |
लखनऊ |
प्याज़ |
15 |
– |
लखनऊ |
प्याज़ |
17 |
– |
लखनऊ |
लहसुन |
25 |
– |
लखनऊ |
लहसुन |
30 |
– |
लखनऊ |
लहसुन |
30 |
38 |
लखनऊ |
लहसुन |
45 |
50 |
लखनऊ |
आलू |
20 |
– |
लखनऊ |
आम |
30 |
– |
लखनऊ |
अनन्नास |
20 |
25 |
लखनऊ |
हरा नारियल |
46 |
50 |
लखनऊ |
मोसंबी |
32 |
36 |
लखनऊ |
शिमला मिर्च |
50 |
60 |
लखनऊ |
हरी मिर्च |
40 |
45 |
लखनऊ |
नींबू |
40 |
45 |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
14 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
16 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
18 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
19 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
13 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
17 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
18 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
19 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
15 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
20 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
21 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
22 |
– |
गुवाहाटी |
लहसुन |
22 |
27 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
28 |
35 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
35 |
40 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
40 |
42 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
23 |
26 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
27 |
35 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
35 |
40 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
40 |
42 |
शाजापुर |
प्याज़ |
3 |
4 |
शाजापुर |
प्याज़ |
5 |
7 |
शाजापुर |
प्याज़ |
9 |
13 |
शाजापुर |
प्याज़ |
15 |
– |
जयपुर |
प्याज़ |
13 |
14 |
जयपुर |
प्याज़ |
16 |
– |
जयपुर |
प्याज़ |
19 |
20 |
जयपुर |
प्याज़ |
5 |
6 |
जयपुर |
प्याज़ |
8 |
– |
जयपुर |
प्याज़ |
9 |
– |
जयपुर |
प्याज़ |
12 |
– |
जयपुर |
लहसुन |
8 |
10 |
जयपुर |
लहसुन |
15 |
18 |
जयपुर |
लहसुन |
22 |
25 |
जयपुर |
लहसुन |
30 |
35 |
सोयाबीन में 15 से 20 दिनों की अवस्था पर रोग एवं कीट नियंत्रण के उपाय
सोयाबीन की फसल में 15 से 20 दिन की अवधि में सामान्यतः रस चूसक कीट – सफ़ेद मक्खी , जैसिड, एवं लीफ ईटिंग कैटरपिलर, गर्डल बीटल एवं कवक जनित रोग जैसे आद्र गलन, जड़ गलन, रस्ट आदि की समस्या दिखाई देती है।
नियंत्रण –
-
पत्ता खाने वाली इल्ली एवं फफूंद जनित रोग की समस्या के लिए – इमानोवा (इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एस जी ) @ 100 ग्राम + सिलिको मैक्स @ 50 मिली,+ रोको (थायोफिनेट मिथाइल 70 % W/W) @ 300 ग्राम, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें |
-
रस चूसक कीट, सफ़ेद मक्खी, माहू एवं हरा तेला के नियंत्रण के लिए, थियानोवा-25 (थियामेंथोक्साम 25% WG)@100 ग्राम + विगरमैक्स जेल गोल्ड (वानस्पतिक अर्क, समुद्री शैवाल के अर्क और ट्रेस तत्व) @ 400 ग्राम + सिलिको मैक्स @ 50 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
-
खड़ी फसल में सफेद ग्रब के नियंत्रण के लिए डेनिटोल (फेनप्रोपाथ्रिन 10% ईसी) @ 500 मिली ,या डेनटोटसु (क्लोथियानिडिन 50.00% डब्ल्यूजी) @ 100 ग्राम को,15 -20 किलो रेत में मिलाकर प्रति एकड़ भुरकाव या ड्रेन्च करें |
-
गर्डल बीटल के नियंत्रण के लिए लैमनोवा (लैम्ब्डा-साइहलोथ्रिन 4.9% ईसी) @ 200 मिली या नोवालक्सम (थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% जेडसी) @ 80 मिली + सिलिको मैक्स @ 50 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
-
रस्ट के नियंत्रण के लिए मिल्ड्यूविप (थियोफैनेट मिथाइल 70% डब्ल्यूपी) @ 300 ग्राम या नोवाकोन (हेक्साकोनाजोल 5% एससी) 400 मिली + सिलिको मैक्स @ 50 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
Shareमहत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। आज की जानकारी पसंद आई हो तो लाइक और शेयर करना ना भूलें।
धान की फसल में रोपाई के 10 से 15 दिन बाद खरपतवार एवं पोषक प्रबंधन
नॉमिनी गोल्ड (उद्भव के बाद)
-
धान खरीफ ऋतु की प्रमुख फसल है, परन्तु जहां सिंचाई के साधन हैं, वहां रबी और खरीफ दोनों ऋतुओं में धान की खेती की जा सकती है। खरीफ की फसल में रबी की अपेक्षा ज्यादा खरपतवार होता है। खरपतवार के नियंत्रण के लिए – धान की रोपाई के 10 से 15 दिन बाद, 2 से 5 पत्ती वाली अवस्था में, बिस्पायरीबैक सोडियम 10% एस सी (नॉमिनी गोल्ड) @ 80 -100 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
-
फ्लैट फैन नोज़ल का प्रयोग करें। आवेदन के समय खेत से पानी को बाहर निकाल दे, आवेदन के 48 – 72 घंटे के भीतर खेत में फिर से पानी चला दे। एवं खरपतवार उभरने को रोकने के लिए 5-7 दिनों तक पानी बनाए रखें।
विशेषताएँ
-
नॉमिनी गोल्ड सभी प्रकार की धान की खेती यानी सीधे बोए गए धान, धान की नर्सरी और रोपित धान के लिए एक पोस्ट इमर्जेंट, व्यापक स्पेक्ट्रम, प्रणालीगत शाकनाशी है।
-
नॉमिनी गोल्ड धान की प्रमुख घास और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को नियंत्रित करता है।
-
नॉमिनी गोल्ड धान के लिए सुरक्षित है। नोमिनी गोल्ड जल्दी से खरपतवार में अवशोषित हो जाता है और उपयोग के 6 घंटे बाद भी बारिश होने पर भी परिणाम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
2,4 डी से खरपतवार प्रबंधन
चौड़ी पत्ती के खरपतवार को नियंत्रण करने के लिए, रोपाई के 20 से 25 दिन बाद, 2,4-डी एथिल एस्टर 38% ईसी (वीडमार /सैकवीड 38) @ 400 से 1000 मिली, प्रति एकड़ 150 – 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
पोषक प्रबंधन
खरपतवार नाशक प्रयोग के एक सप्ताह बाद, यूरिया @ 40 किग्रा, जिंक सल्फेट (ज़िंकफेर) @ 5 किग्रा, सल्फर 90% WG (कोसावेट) @ 3 किग्रा, कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4% जीआर (केलडान) @ 7.5 किग्रा, या फिप्रोनिल 0.3% जीआर (फैक्स, रीजेंट), फिपनोवा 7.5 किग्रा क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 4% जीआर (फरटेरा) @ 4 किग्रा को आपस में मिलकर मिट्टी में प्रयोग करें।
Shareमहत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। आज की जानकारी पसंद आई हो तो लाइक और शेयर करना ना भूलें।
सोयाबीन में बोखनी की समस्या एवं निवारण
बोखनी (कोमेलिना बैंगालेंसिस), यह बहुवर्षीय चौड़ी पत्ती वाला खरपतवार है, इसे स्थानीय भाषा में केना, बोकानदा, बोखना/बोखनी, कानकौआ आदि के नाम से जानते हैं। ये सोयाबीन के अलावा मक्का, धान आदि फसलों में भी अधिक देखने को मिलता है। इसे नियंत्रित करना विशेष रूप से कठिन है, क्योंकि जमीन के ऊपर और मिट्टी के नीचे, तने के टूटे हुए टुकड़े आसानी से जड़ पकड़ लेते हैं। सोयाबीन की बेहतर फसल उत्पादन के लिए खरपतवार प्रबंधन समय – समय पर करना बहुत आवश्यक होता है।
इससे फसलों में होने वाले नुकसान
ये हवा, पानी, सूर्य का प्रकाश , खाद, पोषक तत्व आदि को ग्रहण कर लेते हैं, जिससे की मुख्य फसल के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं। जिससे सोयाबीन की बढ़वार कम होती है और पौधा कमजोर रह जाता है। इसे आरम्भिक अवस्था में यदि नियन्त्रित न किया जाये, तो उपज में 40 से 50 % तक की गिरावट देखी जा सकती है।
नियंत्रण के उपाय
यांत्रिक विधि : सोयाबीन से अच्छे उत्पादन के लिए, फसल में पहली निराई, बुवाई के 15-20 दिन बाद और दूसरी निराई बुवाई के 40-45 दिनों बाद करनी जरूरी हो जाता है।
रासायनिक विधि : बोखनी या बोखना के अच्छे नियंत्रण के लिए अंकुरण के 12 से 20 दिन के अंदर 2 से 3 पत्ती की अवस्था में खरपतवार नाशक का उपयोग करें। क्लोबेन (क्लोरिमुरॉन एथिल) @ 15 ग्राम या वीडब्लॉक(इमिजाथापर 10 % एस एल) @ 400 मिलि + सिलिको मैक्स @ 50 मिली प्रति एकड़ 150 – 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। छिड़काव के समय फ्लैट फेन नोजल का प्रयोग करें एवं खेत में नमी बनाये रखे।
Shareमहत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। आज की जानकारी पसंद आई हो तो लाइक और शेयर करना ना भूलें।
सोयाबीन में पत्ती खाने वाली इल्ली के रोकथाम के उपाय
सोयाबीन की फसल में जिस प्रकार रस चूसक कीटों का प्रकोप होता है, ठीक उसी प्रकार इल्लियाँ जैसे तम्बाकू की इल्ली,सेमीलूपर,ग्राम पॉड बोरर आदि का प्रकोप बहुत अधिक होता है। ये सोयाबीन की फसल में तना, फूल एवं फल को नुकसान पहुंचाते हैं।
सेमीलूपर :- सेमीलूपर सोयाबीन की फसल पर बहुत अधिक आक्रमण करता है। सोयाबीन की फसल की कुल उपज में 30-40% तक हानि का कारण बनता है। सोयाबीन की फसल के प्रारंभिक चरणों से ही इसका प्रकोप हो जाता है। यह फसल की इस अवस्था में बहुत प्रभावित करता है और यदि इस इल्ली का प्रकोप फली या फूल वाली अवस्था में होता है तो, इससे सोयाबीन की उपज में काफी नुकसान होता है। इल्ली का प्रकोप आमतौर पर जुलाई के अंत और सितंबर माह के शुरुआत तक होता है।
बिहार हेयरी कैटरपिलर (स्पाइलोसोमा ओबलीकुआ) :-
नवजात इल्लियाँ झुंड में रहती हैं एवं सभी एक साथ मिलकर पत्तियों पर आक्रमण करके हरे भाग को खुरच कर खा जाती है। एवं बाद में पूरे पौधे पर फैल कर सम्पूर्ण पौधों को नुकसान पहुंचाती है। इन इल्लियों के द्वारा खाये गये पत्तियों पर सिर्फ जाली ही रह जाती है।
तम्बाकू की इल्ली
इस कीट के लार्वा सोयाबीन की पत्तियों को खुरचकर पत्तियों कें क्लोरोफिल को खाते हैं, जिससे खाये गए पत्ते पर सफ़ेद पीले रंग की रचना दिखाई देती है। अत्यधिक आक्रमण होने पर ये तना, कलिया, फूल और फलो को भी नुकसान पहुंचाते है। जिससे पौधों पर सिर्फ डन्डीया ही दिखाई देती है।
इनके नियंत्रण के लिए
प्रोफेनोवा (प्रोफेनोफोस 50% ईसी) @ 400 मिली या नोवालक्सम (थायमेथोक्सम 12.60% + लैम्ब्डा-सायहालोथ्रिन 9.50 % जेडसी) @ 50 मिली + सिलिको मैक्स @ 50 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
Shareमहत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। आज की जानकारी पसंद आई हो तो लाइक और शेयर करना ना भूलें।
सोयाबीन में पोषक तत्वों की कमी
सोयाबीन खरीफ ऋतू में बोई जाने वाली प्रमुख फसल है। सोयाबीन की फसल की बढ़वार व अच्छे विकास में, पोषक तत्वों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। पोषक तत्व की कमी के कारण पौधो की पूरी तरह से विकास नहीं होता है फलस्वरूप बढ़वार रुक जाती है और फूल फलियां भी कम लगते हैं। जिससे उत्पादन में गिरावट आ सकती है। साथ ही इन पोषक तत्व की कमी के कारण पौधों में शारीरिक विकार हो सकते हैं, जैसे – आयरन की कमी के कारण पौधों में हरिमाहीनता हो जाती है।
इसके पूर्ति हेतु फसलों में संतुलित मात्रा में सूक्ष्म एवं मुख्य पोषक तत्वों की, समय-समय पर छिड़काव किया जाना चाहिए। इस अवस्था में वानस्पतिक विकास के लिए, पानी में घुलनशील उरवर्क दयाल (अनमोल) 19:19:19 @ 1 किग्रा + मिक्सॉल (लौह, मैंगनीज, जस्ता, तांबा, बोरॉन, मोलिब्डेनम) @ 250 ग्राम + विगरमैक्स जेल गोल्ड (वानस्पतिक अर्क, समुद्री शैवाल) @ 400 ग्राम, 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
Shareफसल की बुआई के साथ ही अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।
फसलों में जलभराव से होने वाले नुकसान एवं जल निकासी के उचित उपाय
जलभराव एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करता है जब पानी अपनी इष्टतम आवश्यकता से अधिक मात्रा में खेत में मौजूद होता है।
खेत में अतिरिक्त जल से निम्न हानि होती है:
-
वायु संचार में बाधा, मृदा तापक्रम में गिरावट, हानिकारक लवणों का एकत्रित होना, बीजांकुरण कम होना और कभी कभी बीज का सड़ना, जड़ों का सड़ना, लाभदायक जीवाणुओं की सक्रियता कम होना, नाइट्रोजन स्थिरीकरण क्रिया का कम होना साथ ही हानिकारक रोगों व कीटों का आक्रमण बढ़ना आदि। खेत में जलभराव को कम करने के लिए जल निकास जरूरी हैl
-
जल निकास: फसल की उपज बढ़ाने हेतु भूमि की सतह अथवा अधोसतह से अतिरिक्त जल कृतिम रूप से बाहर निकालना ही जल निकास कहलाता हैं। कभी कभी अतिवृष्टि अथवा नहरों के कारण जल निकास जरूरी हो जाती है।
-
जल निकास के लाभ: उचित वायु संचार, मृदा ताप में सुधार, लाभदायक जीवाणुओं की सक्रियता बढ़ना, मृदा कटाव को रोकना, हानिकारक रोगों व कीटों की रोकथाम, पौधों में नाइट्रोजन की क्रिया का बढ़ना आदि।
Shareफसल की बुआई के साथ ही अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।
कद्दू वर्गीय फसल में लीफ माइनर कीट के नियंत्रण के उपाय
किसान भाइयों कद्दू वर्गीय फसल में लीफ माइनर कीट के शिशु बहुत अधिक हानि पहुंचाते है यह छोटे, पैर विहीन, पीले रंग के एवं प्रौढ़ कीट हल्के पीले रंग के होते है।
इसकी क्षति के लक्षण सबसे पहले पत्तियों पर दिखाई देते है। मादा पतंगा पत्तियों के अंदर कोशिकाओं में अंडे देती है जिससे लार्वा निकलकर पत्तियों के अंदर के हरित पदार्थ को खाकर सुरंग बनाते हैं। जिसके कारण पत्तियों पर सफेद लकीरें दिखाई देती हैं। प्रभावित पौधे पर फल कम लगते है और पत्तियां समय से पहले गिर जाती है।
पौधों की बढ़वार रुक जाती है एवं पौधे छोटे रह जाते है। इस कीट के आक्रमण के कारण पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया भी प्रभावित होती है।
नियंत्रण के उपाय:-
-
इस कीट के नियंत्रण के लिए, अबासीन (एबामेक्टिन 1.9% ईसी) @ 150 मिली + सिलिको मैक्स @ 50 मिली प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
-
जैविक उपचार के लिए बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना 5% डब्ल्यू.पी.) @ 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
Shareमहत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। आज की जानकारी पसंद आई हो तो लाइक और शेयर करना ना भूलें।
बेल वर्गीय फसलों में पंडाल लगाने के फायदे
पंडाल तैयार करने की विधि
लता या बेल वाली सब्जियों को किसी सहारे की सहायता से जमीन से ऊपर तैयार संरचना पर फैला देते हैं, जिसे मंडप, ट्रेलिस अथवा पंडाल ,मचान कहा जाता है। इसमें पौधों को लकड़ी, लोहे या सीमेंट के पोल पर तार अथवा प्लास्टिक जाल से तैयार संरचना पर फैला दिया जाता है। यह कई तरह से तैयार कर सकते हैं जैसे खड़ी पंडाल, छतनुता पंडाल, तिकोनी पंडाल आदि।
बेल वाली सब्जियों में सहारा देना अति आवश्यक होता है। खम्भों के ऊपरी सिरे पर तार बांध कर पौधों को पंडाल पर चढ़ाया जाता है। सहारा देने के लिए ऊर्ध्वाधर खंभों को सीधा खड़ा करते है 2-2.5 फीट के गहरे गड्ढे तैयार कर लें। गड्ढे से गड्ढे की दूरी लगभग 6 फीट की रखें, अधिक दूरी होने से फसल के भार से पंडाल झूलने लगती है। खंभों को सीधा खड़ा करके मिट्टी में अच्छी तरह दबा दें। सीमेंट के पोल का उपयोग कर रहे हैं, तो कोई समस्या नहीं आती, परन्तु जब लकड़ी के खंभों का प्रयोग करते हैं, तो दीमक से खराब हो जाते हैं। अतः इनके बचाव के लिए मिट्टी में दबने वाले हिस्से पर प्लास्टिक का पाईप अथवा पॉलीथीन चढ़ा दें। इसके तदुपरान्त सभी खंभों के ऊपरी सिरों को एक से दूसरे खंभे को जोड़ते हुए लोहे के तार से बांध दिया जाता है व फिर प्लास्टिक की रस्सी अथवा जाल से ऊपरी भाग को ढक दिया जाता है, जिससे बेल नीचे नहीं झूले। पंडाल की ऊंचाई 1.5-2.0 मीटर रख सकते हैं। लेकिन ऊंचाई फसल के अनुसार अलग-अलग होती है सामान्यतः करेला और खीरा के लिए 4.50 फीट, लेकिन लौकी आदि के लिए 5.50 फीट, रखते है ।
पंडाल लगाने के फायदे
-
तैयार संरचना पर पौधों को फैला देने से फैलने के लिए पर्याप्त जगह मिल जाती है, जिसके परिणामस्वरूप प्रकाश संश्लेषण के कारण पैदावार में बढ़ोतरी होती है।
-
फल, भूमि के संपर्क में नहीं आने से आकार में लंबे, मुलायम एवं एक समान रहते हैं, जिससे फलों का बाजार मूल्य अधिक मिलता है।
-
पंडाल विधि में पौधे भूमि से दूर रहने के कारण कीट व रोगों से कम प्रभावित होते हैं व नियंत्रण करना भी आसान होता है।
-
लता वाली सब्जियों को पंडाल पर चढ़ा देने की वजह से नीचे बची खाली जगह में आंशिक छाया वाली फसलें जैसे-धनिया, पालक, हल्दी, अरबी, मूली आदि उगाकर दोहरा लाभ ले सकते हैं।
-
इस विधि से खेती करने पर सम-सामयिक कार्य में आसानी होने के साथ ही फलों की तुड़ाई भी आसानी से कर सकते हैं।
Shareमहत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। आज की जानकारी पसंद आई हो तो लाइक और शेयर करना ना भूलें।
मध्यप्रदेश की चुनिंदा मंडियों में क्या चल रहे सोयाबीन के भाव ?
मध्य प्रदेश के अलग अलग मंडियों जैसे मन्दसौर, बदनावर, खरगोन, कालापीपल और खातेगांव आदि में क्या चल रहे हैं सोयाबीन के भाव? आइये देखते हैं पूरी सूची।
विभिन्न मंडियों में सोयाबीन के ताजा मंडी भाव |
||
कृषि उपज मंडी |
न्यूनतम मूल्य (प्रति क्विंटल) |
अधिकतम मूल्य (प्रति क्विंटल) |
आगर |
2500 |
6069 |
बड़नगर |
4010 |
6097 |
बदनावर |
4825 |
6100 |
बड़वाह |
5055 |
5655 |
बाणपुरा |
5200 |
5200 |
बेगमगंज |
5100 |
6075 |
बैतूल |
5700 |
6061 |
भीकनगांव |
5661 |
6139 |
दमोह |
4810 |
5980 |
देवास |
3500 |
6150 |
धामनोद |
4405 |
6080 |
गंज बासौदा |
4500 |
5993 |
हाटपिपलिया |
5750 |
6010 |
हरदा |
4301 |
6070 |
इछावर |
5000 |
6111 |
ईसागढ़ |
5400 |
6200 |
जावरा |
4500 |
5970 |
जावद |
5900 |
5900 |
जवार |
3900 |
6116 |
जीरापुर |
5700 |
6300 |
झाबुआ |
5700 |
5700 |
जोबाट |
5800 |
5950 |
कालापीपाल |
4870 |
6320 |
कालापीपाल |
4500 |
5990 |
खाचरोडी |
5901 |
6020 |
खंडवा |
4000 |
6101 |
खरगोन |
5701 |
6014 |
खातेगांव |
3200 |
6050 |
खातेगांव |
3200 |
6050 |
खिरकिया |
5000 |
6129 |
खुजनेर |
5800 |
6010 |
खुजनेर |
6000 |
6180 |
खुराई |
5350 |
5945 |
कोलारासी |
2500 |
6060 |
लटेरी |
2905 |
5855 |
मन्दसौर |
4300 |
6021 |
महू |
3400 |
3400 |
नरसिंहगढ़ |
5000 |
6100 |
निवादी |
5800 |
5800 |
पंधाना |
6025 |
6100 |
पंधुरना |
5850 |
5850 |
पथरिया |
5405 |
6105 |
राजगढ़ |
5500 |
5930 |
सनावद |
3200 |
5775 |
सांवेर |
5965 |
6200 |
सतना |
5350 |
5841 |
सीहोर |
4800 |
6030 |
श्योपुरबडोद |
5521 |
5876 |
श्योपुरकलां |
4305 |
5965 |
स्रोत: एगमार्कनेट
Shareअब ग्रामोफ़ोन के ग्राम व्यापार से घर बैठे, सही रेट पर करें अपनी सोयाबीन जैसी फसलों की बिक्री। भरोसेमंद खरीददारों से खुद भी जुड़ें और अपने किसान मित्रों को भी जोड़ें। लेख पसंद आया हो तो लाइक और शेयर करना ना भूलें।
