Flower promotion in snake gourd

  • ककड़ी में फूल वाली अवस्था बहुत ही महत्वपूर्ण होती हैंं|
  • बुवाई के 40-45 दिनों बाद ककड़ी की फसल में फूल वाली अवस्था प्रारम्भ होती हैंं|
  • नीचे दिए गए कुछ उत्पादों के द्वारा ककड़ी की फसल में फूलों की संख्या को बढ़ाया जा सकता हैंं|
    • होमोब्रासिनोलॉइड 0.04% डब्लू/डब्लू 100-120 मिली./एकड़ का स्प्रे करें|
    • समुद्री शैवाल का सत् 180-200 मिली/एकड़ का उपयोग करें|
    • सूक्ष्म पोषक तत्त्व 300 ग्राम/एकड़ का स्प्रे करें|
    • 2 ग्राम/एकड़ जिब्रेलिक एसिड का स्प्रे भी कर सकते हैंं|

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Basis for selection of Cotton vareity

मिट्टी के प्रकार के आधार पर :-

  • हल्की से मध्यम मिट्टी के लिए :- नीयो  (रासी)।
  • भारी मिट्टी के लिए :-Rch 659 BG II, मैग्ना (रासी), मोक्ष बीजी-II (आदित्य), सुपर कॉट Bt-II (प्रभात)

सिचाई के आधार पर :-

  • वर्षा आधारित:- जादु (कावेरी), मोक्ष बीजी 2 (आदित्य)।
  • अर्ध सिंचित: – नीयो, मैग्ना (रासी), मनीमेकर (कावेरी), सुपर कॉट Bt- II (प्रभात)।
  • सिंचित: – Rch 659 BG II (रासी), जादू (कावेरी)।

पौधे के बढने के स्वभाव के  आधार पर:

  • सीधी बढने वाली किस्मे: – जादु (कावेरी), मोक्ष बीजी-II (आदित्य), भक्ति (नुजिवीडु)।
  • फैलने वाली किस्मे:-  Rch 659 BG-II (रासी), सुपर कॉट Bt- II (प्रभात)।

फसल समय अवधि के आधार पर : –

  • अगेती किस्में (140-150 दिन)
  • Rch 659 BG-II (रासी)।
  • भक्ति (नुजिवीडु)।
  • सुपर कॉट Bt- II (प्रभात)।

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Importance of Microbes in Soil (ZnSB )

  1. भारत की कृषि योग्य भूमि में 50% तक ज़िंक की कमी पाई जाती हैं जो की 2025 तक 63% तक हो जाएगी|
  2. जिंक एक अनिवार्य सुक्ष्म पोषक तत्व है जो पौधों के विकास के लिए आवश्यक हैं। परन्तु यह मिट्टी में अनुपलब्ध रूप में रहता हैं जिसे पौधे आसानी से उपयोग नहीं कर पाते |
  3. यह जीवाणु पौधों को जिंक उपलब्ध करवाते हैं परिणामस्वरूप धान में ‘खैरा रोग’ का नियंत्रण करते हैं, फसल की उपज और गुणवत्ता की वृद्धि में सहायक होते हैं, मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार और हार्मोन की सक्रियता को बढ़ाते हैं और प्रकाश संश्लेषण की गतिविधि को भी बढ़ाते हैं।
  4. जिंक घोलने वाले जीवाणु मिट्टी में कार्बनिक अम्ल उत्पन्न करते हैं जिससे अघुलनशील जिंक (जिंक सल्फाइड, जिंक ऑक्साइड और जिंक कार्बोनेट), Zn+ (पौधों के लिए उपलब्ध रूप ) में बदल जाता हैं इसके अलावा ये मिट्टी के pH का संतुलन बनाए रखते हैं।
  5. जिंक घुलनशील जीवाणु 2 किलो/ एकड़ की दर से 50 किलो अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद में मिला कर खेत में बुरकाव करे |

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An Improved Variety of Soybean:- JS 20-29

  • जेएस 20-29 एक नई किस्म हैं जो JNKVV  द्वारा विकसित की गई हैं यह ज्यादा उपज लगभग 10 -12 क्विण्टल/एकड़ होती हैं |
  • इस किस्म की अंकुरण क्षमता अधिक होती हैं तथा यह विभिन्न रोगो के प्रति प्रतिरोधी हैं |
  • पत्ती नुकीली और अण्डाकार  गहरे हरे रंग की होती हैं । शाखाएं तीन से चार, पौधा मध्यम लम्बाई लगभग 100 सेमी का होता हैं
  • फूल का रंग सफ़ेद होता हैं |
  • यह  किस्म लगभग 90-95  दिन में पक कर तैयार हो जाती हैं एवं इसके 100 दानो का वजन 13 ग्राम होता हैं |   

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Save cauliflower to diseases – May cause serious damage

  • फफूंद जनित रोगों के कारण उत्पादन में लगभग 4 – 25 % तक नुकसान हो सकता हैं |
  • फूलगोभी भारत की महत्वपूर्ण सब्जी वाली फ़सलों में से एक है।
  • फूलगोभी में लगने वाले रोग जैसे :- काली सड़ांध, फूल गलन, मृदुल आसिता, उकटा आदि रोग फसल की गुणवत्ता को कम करते हैं और गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं।
  • रोगो के नियंत्रण के लिए प्रबंधन अधिक महत्वपूर्ण है: –
  • काली सड़ांध और फूल गलन से बचाने के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन @ 20 ग्राम/एकड़ और कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% @ 300 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें।
  • फफूंद से होने वाले रोगों की रोकथाम के लिए मेन्कोजेब 75% डब्लूपी @ 400 ग्राम / एकड़ या कार्बेन्डाजिम 50% @ 300 ग्राम /एकड़ टेबुकोनाजोल 50% + ट्राइफ्लोक्सिस्ट्रोबिन 25% डब्लूपी @ 100-120 ग्राम / एकड़ का छिड़काव करें।

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Importance of Iron in Crop Production

  • फसल वृद्धि और उत्पादन के लिए लौह तत्व (Fe) आवश्यक माना जाता हैं। पौधे में कई एन्ज़इम्स जो पौधे में ऊर्जा हस्तांतरण तथा नाइट्रोजन के फिक्ससेसशन के लिए उपयोगी होते हैं का एक घटक हैं।
  • लौह तत्व की कमी आमतौर पर अधिक pH वाली मिट्टी में देखी जाती है क्योंकि ऐसी मिट्टी में लौह तत्व पौधे को उपलब्ध नहीं हो पाता।
  • नई पत्तियाँ क्लोरोफिल या पर्णक विहिन दिखाई देती है ।
  • पत्तियाँ नीचे से हल्की-पीली, चितकबरी रंग की होना शुरु हो जाती है, साथ ही चित्तकबरापन मध्य शिराओं के ऊपर व नीचे की ओर बढ़ने लगता है ।
  • इसकी कमी को @150-200g/एकड़ की दर से  चिलेटेड आयरन का घोल बनाकर, पत्तियों पर छिड़काव करके दूर कर सकते है ।

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How to maintain healthy chilli nursery

एक मुख्य समस्या :-डम्पिंग ऑफ

  • डम्पिंग ऑफ बीमारी के लक्षण नर्सरी की शुरुआती दिनों में दिखाई देते है |
  • डम्पिंग ऑफ बीमारी का प्रभाव कभी-कभी बीजो पर भी दिखाई देता है,ध्यान से मिट्टी को खोदने पर हमें नरम और सड़े हुए बीज दिखाई देते है |
  • नर्सरी पौधे के तने के ऊपर पनीले धब्बे आने के बाद तना भूरा दिखाई देता है और अंत में पौधा सिकुड़कर मर जाता है|
  • इस बीमारी के संक्रमण के लिए उपयुक्त परिस्थितियां –
  1. नमी की मात्रा (90-100%) |
  2. मिट्टी का तापमान (20-28°C) |
  3. जल निकासी की उचित व्यवस्था न होना |

प्रबंधन –   

  • बेहतर जल निकासी के साथ उपयुक्त अन्तराल पर सिंचाई करे |
  • नर्सरी बेड की तैयारी के समय 0.5 ग्राम/वर्ग मीटर की दर से थियोफैनेट मिथाइल की मात्रा को मिट्टी में मिलाये  |
  • रोग के अत्यधिक आक्रमण होने पर 20 दिन बाद मेटालैक्सिल-एम (मेफानोक्सम) 4%+मैनकोजेब 64% डब्ल्यू पी 500 ग्राम/एकड़ का स्प्रे करना चाहिए |

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Virus problem and solution in mungbean

  • मूँग की फसल के विकास के दौरान, वायरस द्वारा पीला मोज़ेक, चुर्रा-मुर्रा और पत्ती का कुंचन रोग के लक्षणों को देखा जा सकता है।
  • पौधे की उम्र और रोग के लक्षणों की शुरुआत के आधार पर वायरस द्वारा मूँग में अनाज की पैदावार में  2-95% तक की कमी हो सकती है।
  • इन रोगों के नियंत्रण के लिए बुवाई के 15 दिन बाद थायमेथोक्साम 25% डब्ल्यूजी @ 60-100 ग्राम प्रति एकड़ का पत्तियों पर स्प्रे करे या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एसएल @ 100 मिली  प्रति एकड़ का पत्तियों पर स्प्रे करे

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How to improve production by improving soil health

मिट्टी की सेहत कैसे सुधारे-

  फसलों के उत्पादन को 50 % तक बढ़ाने के लिए हमें मिट्टी में तीन महत्वपूर्ण उपाय करने चाहिए |

 

  • मिट्टी में पोषक तत्वो की मात्रा को बढ़ाना |
  • मिट्टी की भौतिक अवस्था में सुधार करना |
  • मिट्टी में pH  के संतुलन को बनाये रखना |

 

  1.  मिट्टी में पोषक तत्व की  मात्रा को बढ़ाने हेतु –                        
  • पिछली फसल की कटाई के बाद बचे हुए फसल अवशेष को आग लगा कर नष्ट नहीं करना चाहिये |
  • कटाई के उपरान्त खेत की दो बार जुताई करे, जिससे फसल के अवशेष  विघटित होकर पौधों को पोषक तत्व प्रदान करेंगे |
  • खेत की जुताई के समय FYM 10 टन/एकड़ या वर्मीकम्पोस्ट 2.5 टन/एकड़ + एस.एस.पी. 100 किलो/एकड़ की दर से मिला कर दे |  
  • 1 kg माइक्रोन्यूट्रिएंट  + PSB 2 kg+ KMB 2 kg + NFB 2 kg + ZnSB 4 kg + ट्राइकोडर्मा 3 kg/एकड़ बुवाई के समय देने से पोषक तत्व की मात्रा में वृद्धि होती हैं |
  1. मिट्टी की भौतिक अवस्था में सुधार हेतु –
  • यदि किसान के पास पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध हो तो फसल की कटाई के बाद खेत की जुताई करे और स्पीड कम्पोस्ट की 4kg/एकड़ की दर से मिट्टी में बिखेर कर सिचाई कर दे |
  • 15 – 20 दिन में  स्पीड कम्पोस्ट की सहायता से फसल अवशेष अच्छी तरह से विघटित होकर मिट्टी की संरचना को सुधारते हैं|
  1. मिट्टी के pH संतुलन हेतु –
  • मिट्टी के pH को नियंत्रित करने लिए धीमी गति से रिलीज होने वाले पोषक तत्वों का उपयोग करना चाहिए |  
  • अधिक क्षार तथा अम्ल स्वभाव के उर्वरको का उपयोग संतुलित मात्रा में करना चाहिए |
  • फसलों के अच्छे उत्पादन हेतु मिट्टी का pH 6.0 से 7.0  तक होना चाहिए |
  • अम्लीय मिट्टी के सुधार हेतु चूने (कैल्शियम कार्बोनेट) की मात्रा मिट्टी परीक्षण की रिपोर्ट के अनुसार डालना चाहिए |
  • क्षारीय मिट्टी के सुधार हेतु जिप्सम की मात्रा मिट्टी परीक्षण की रिपोर्ट के अनुसार डालना चाहिए |

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Yellowing leaves may cause more damage in Brinjal

  • बैंगन भारत सहित पूरी दुनिया में सबसे व्यापक रूप से उगाई जाने वाली सब्जियों में से एक हैं
  • पत्तियों का पीलापन बैगन की फसल के लिए बहुत नुकसानदायक होता हैं ।
  • पत्तियों में पीलापन विभिन्न कारणों से हो सकता हैं जैसे कीट ( मकड़ी, बग, एवं रस चुसक कीट), बीमारियाँ ( विल्ट और वायरस जनित रोग ) एवं नाइट्रोजन की कमी आदि | पौधों में पीलापन आने से उपज कम होती हैं परिणामस्वरुप आर्थिक नुकसान होता हैं।
  • नाइट्रोजन  की उपलब्धता को बढाने के लिए  नाइट्रोजन उर्वरको का प्रयोग करे साथ ही वातावरणीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण एवं फास्फोरस की उपलब्धता बढ़ाने हेतु नाइट्रोजन स्थिरीकरण एवं फास्फोरस घोलक जीवाणु @ 2 किलोग्राम/एकड की दर से खेत में अच्छी तरह से मिला दे
  • बैंगन की फसल को कीट समस्या से बचाने के लिए प्रोपरजाईट 50% EC @ 400 ml ( मकड़ी के लिए ) व डाईक्लोरोवस 76% EC @ 300 ml ( सफ़ेद बग  के लिए ) का प्रति एकड़ की दर से छिडकाव करना चाहिए |
  • बीमारियों से हो रहे पीलेपन को रोकने के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोजेब 63% WP @ 200 ग्राम और स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 20 ग्राम / एकड़ की दर से छिडकाव करे, तथा रोग फ़ैलाने वाले कीटो का नियंत्रण करे।

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