An Improved Variety of Soybean:- JS 20-29

  • जेएस 20-29 एक नई किस्म हैं जो JNKVV  द्वारा विकसित की गई हैं यह ज्यादा उपज लगभग 10 -12 क्विण्टल/एकड़ होती हैं |
  • इस किस्म की अंकुरण क्षमता अधिक होती हैं तथा यह विभिन्न रोगो के प्रति प्रतिरोधी हैं |
  • पत्ती नुकीली और अण्डाकार  गहरे हरे रंग की होती हैं । शाखाएं तीन से चार, पौधा मध्यम लम्बाई लगभग 100 सेमी का होता हैं
  • फूल का रंग सफ़ेद होता हैं |
  • यह  किस्म लगभग 90-95  दिन में पक कर तैयार हो जाती हैं एवं इसके 100 दानो का वजन 13 ग्राम होता हैं |   

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Save cauliflower to diseases – May cause serious damage

  • फफूंद जनित रोगों के कारण उत्पादन में लगभग 4 – 25 % तक नुकसान हो सकता हैं |
  • फूलगोभी भारत की महत्वपूर्ण सब्जी वाली फ़सलों में से एक है।
  • फूलगोभी में लगने वाले रोग जैसे :- काली सड़ांध, फूल गलन, मृदुल आसिता, उकटा आदि रोग फसल की गुणवत्ता को कम करते हैं और गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं।
  • रोगो के नियंत्रण के लिए प्रबंधन अधिक महत्वपूर्ण है: –
  • काली सड़ांध और फूल गलन से बचाने के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन @ 20 ग्राम/एकड़ और कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% @ 300 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें।
  • फफूंद से होने वाले रोगों की रोकथाम के लिए मेन्कोजेब 75% डब्लूपी @ 400 ग्राम / एकड़ या कार्बेन्डाजिम 50% @ 300 ग्राम /एकड़ टेबुकोनाजोल 50% + ट्राइफ्लोक्सिस्ट्रोबिन 25% डब्लूपी @ 100-120 ग्राम / एकड़ का छिड़काव करें।

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Importance of Iron in Crop Production

  • फसल वृद्धि और उत्पादन के लिए लौह तत्व (Fe) आवश्यक माना जाता हैं। पौधे में कई एन्ज़इम्स जो पौधे में ऊर्जा हस्तांतरण तथा नाइट्रोजन के फिक्ससेसशन के लिए उपयोगी होते हैं का एक घटक हैं।
  • लौह तत्व की कमी आमतौर पर अधिक pH वाली मिट्टी में देखी जाती है क्योंकि ऐसी मिट्टी में लौह तत्व पौधे को उपलब्ध नहीं हो पाता।
  • नई पत्तियाँ क्लोरोफिल या पर्णक विहिन दिखाई देती है ।
  • पत्तियाँ नीचे से हल्की-पीली, चितकबरी रंग की होना शुरु हो जाती है, साथ ही चित्तकबरापन मध्य शिराओं के ऊपर व नीचे की ओर बढ़ने लगता है ।
  • इसकी कमी को @150-200g/एकड़ की दर से  चिलेटेड आयरन का घोल बनाकर, पत्तियों पर छिड़काव करके दूर कर सकते है ।

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How to maintain healthy chilli nursery

एक मुख्य समस्या :-डम्पिंग ऑफ

  • डम्पिंग ऑफ बीमारी के लक्षण नर्सरी की शुरुआती दिनों में दिखाई देते है |
  • डम्पिंग ऑफ बीमारी का प्रभाव कभी-कभी बीजो पर भी दिखाई देता है,ध्यान से मिट्टी को खोदने पर हमें नरम और सड़े हुए बीज दिखाई देते है |
  • नर्सरी पौधे के तने के ऊपर पनीले धब्बे आने के बाद तना भूरा दिखाई देता है और अंत में पौधा सिकुड़कर मर जाता है|
  • इस बीमारी के संक्रमण के लिए उपयुक्त परिस्थितियां –
  1. नमी की मात्रा (90-100%) |
  2. मिट्टी का तापमान (20-28°C) |
  3. जल निकासी की उचित व्यवस्था न होना |

प्रबंधन –   

  • बेहतर जल निकासी के साथ उपयुक्त अन्तराल पर सिंचाई करे |
  • नर्सरी बेड की तैयारी के समय 0.5 ग्राम/वर्ग मीटर की दर से थियोफैनेट मिथाइल की मात्रा को मिट्टी में मिलाये  |
  • रोग के अत्यधिक आक्रमण होने पर 20 दिन बाद मेटालैक्सिल-एम (मेफानोक्सम) 4%+मैनकोजेब 64% डब्ल्यू पी 500 ग्राम/एकड़ का स्प्रे करना चाहिए |

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Virus problem and solution in mungbean

  • मूँग की फसल के विकास के दौरान, वायरस द्वारा पीला मोज़ेक, चुर्रा-मुर्रा और पत्ती का कुंचन रोग के लक्षणों को देखा जा सकता है।
  • पौधे की उम्र और रोग के लक्षणों की शुरुआत के आधार पर वायरस द्वारा मूँग में अनाज की पैदावार में  2-95% तक की कमी हो सकती है।
  • इन रोगों के नियंत्रण के लिए बुवाई के 15 दिन बाद थायमेथोक्साम 25% डब्ल्यूजी @ 60-100 ग्राम प्रति एकड़ का पत्तियों पर स्प्रे करे या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एसएल @ 100 मिली  प्रति एकड़ का पत्तियों पर स्प्रे करे

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How to improve production by improving soil health

मिट्टी की सेहत कैसे सुधारे-

  फसलों के उत्पादन को 50 % तक बढ़ाने के लिए हमें मिट्टी में तीन महत्वपूर्ण उपाय करने चाहिए |

 

  • मिट्टी में पोषक तत्वो की मात्रा को बढ़ाना |
  • मिट्टी की भौतिक अवस्था में सुधार करना |
  • मिट्टी में pH  के संतुलन को बनाये रखना |

 

  1.  मिट्टी में पोषक तत्व की  मात्रा को बढ़ाने हेतु –                        
  • पिछली फसल की कटाई के बाद बचे हुए फसल अवशेष को आग लगा कर नष्ट नहीं करना चाहिये |
  • कटाई के उपरान्त खेत की दो बार जुताई करे, जिससे फसल के अवशेष  विघटित होकर पौधों को पोषक तत्व प्रदान करेंगे |
  • खेत की जुताई के समय FYM 10 टन/एकड़ या वर्मीकम्पोस्ट 2.5 टन/एकड़ + एस.एस.पी. 100 किलो/एकड़ की दर से मिला कर दे |  
  • 1 kg माइक्रोन्यूट्रिएंट  + PSB 2 kg+ KMB 2 kg + NFB 2 kg + ZnSB 4 kg + ट्राइकोडर्मा 3 kg/एकड़ बुवाई के समय देने से पोषक तत्व की मात्रा में वृद्धि होती हैं |
  1. मिट्टी की भौतिक अवस्था में सुधार हेतु –
  • यदि किसान के पास पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध हो तो फसल की कटाई के बाद खेत की जुताई करे और स्पीड कम्पोस्ट की 4kg/एकड़ की दर से मिट्टी में बिखेर कर सिचाई कर दे |
  • 15 – 20 दिन में  स्पीड कम्पोस्ट की सहायता से फसल अवशेष अच्छी तरह से विघटित होकर मिट्टी की संरचना को सुधारते हैं|
  1. मिट्टी के pH संतुलन हेतु –
  • मिट्टी के pH को नियंत्रित करने लिए धीमी गति से रिलीज होने वाले पोषक तत्वों का उपयोग करना चाहिए |  
  • अधिक क्षार तथा अम्ल स्वभाव के उर्वरको का उपयोग संतुलित मात्रा में करना चाहिए |
  • फसलों के अच्छे उत्पादन हेतु मिट्टी का pH 6.0 से 7.0  तक होना चाहिए |
  • अम्लीय मिट्टी के सुधार हेतु चूने (कैल्शियम कार्बोनेट) की मात्रा मिट्टी परीक्षण की रिपोर्ट के अनुसार डालना चाहिए |
  • क्षारीय मिट्टी के सुधार हेतु जिप्सम की मात्रा मिट्टी परीक्षण की रिपोर्ट के अनुसार डालना चाहिए |

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Yellowing leaves may cause more damage in Brinjal

  • बैंगन भारत सहित पूरी दुनिया में सबसे व्यापक रूप से उगाई जाने वाली सब्जियों में से एक हैं
  • पत्तियों का पीलापन बैगन की फसल के लिए बहुत नुकसानदायक होता हैं ।
  • पत्तियों में पीलापन विभिन्न कारणों से हो सकता हैं जैसे कीट ( मकड़ी, बग, एवं रस चुसक कीट), बीमारियाँ ( विल्ट और वायरस जनित रोग ) एवं नाइट्रोजन की कमी आदि | पौधों में पीलापन आने से उपज कम होती हैं परिणामस्वरुप आर्थिक नुकसान होता हैं।
  • नाइट्रोजन  की उपलब्धता को बढाने के लिए  नाइट्रोजन उर्वरको का प्रयोग करे साथ ही वातावरणीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण एवं फास्फोरस की उपलब्धता बढ़ाने हेतु नाइट्रोजन स्थिरीकरण एवं फास्फोरस घोलक जीवाणु @ 2 किलोग्राम/एकड की दर से खेत में अच्छी तरह से मिला दे
  • बैंगन की फसल को कीट समस्या से बचाने के लिए प्रोपरजाईट 50% EC @ 400 ml ( मकड़ी के लिए ) व डाईक्लोरोवस 76% EC @ 300 ml ( सफ़ेद बग  के लिए ) का प्रति एकड़ की दर से छिडकाव करना चाहिए |
  • बीमारियों से हो रहे पीलेपन को रोकने के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोजेब 63% WP @ 200 ग्राम और स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 20 ग्राम / एकड़ की दर से छिडकाव करे, तथा रोग फ़ैलाने वाले कीटो का नियंत्रण करे।

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Signs of Boron deficiency in the crop and ways to prevent it

 

  • विभिन्न  फसलों तथा उनकी अवस्था के अनुसार बोरान की कमी के लक्षण अलग अलग होते हैं पर सामान्यतः इसके लक्षण नई पत्तियों पर देखने को मिलते हैं |
  • इसकी कमी से नई पत्तिया मोटी तथा रंगविहीन हो जाती हैं |
  • बोरान की कमी अधिक होने पर पौधे का शीर्ष गलने लगता हैं ,कई फसलों में फलो का फटना भी बोरान की कमी के लक्षण होते हैं |
  • बोरान की कमी आमतौर पर अधिक pH  वाली मिट्टी में देखी जाती है क्योंकि ऐसी मिट्टी में बोरान उस मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में हो, तो भी पौधे को उपलब्ध नहीं हो पाता।
  • कम कार्बनिक पदार्थ वाली मिट्टी (<1.5%) या रेतीली मिट्टी (जिसमे पोषक तत्वों की लीचिंग के द्वारा नष्ट हो जाते हैं) में भी बोरान की कमी अधिक  होती हैं।
  • बोरान की कमी से बचने के उपाय:-
  • अधिक pH वाली मिट्टी में फसल की बुवाई नहीं करे |
  • सुखी मिट्टी में तथा अधिक वातावरण की नमी बोरान की उपलब्धता को कम करती हैं |
  • अधिक उर्वरक और चुना का प्रयोग नहीं करना चाहिए |
  • अधिक सिंचाई न करे |
  • मिट्टी का नियमित परीक्षण कर अपने क्षेत्र के पोषक तत्वों के स्तर की पूरी जानकारी लेते रहे।
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Management of stem fly in the mungbean

  • मूँग की फसल में तना मक्खी के द्वारा उपज में नुकसान 24.24-34.24% के बीच नुकसान बताया गया है।
  • तना मक्खी मूँग के अंकुरण के समय  एक गंभीर कीट है और इसे भारत में मूँग के एक प्रमुख कीटो के रूप में पहचाना गया है। यह कीट पौधे को प्रारंभिक अवस्था में प्रभावित करता है जिससे पोधा सूखने और मुरझाने लगता हैं ( अंकुरण के 4 सप्ताह बाद तक)।
  • तना मक्खी के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एसएल @ 100 मिली  प्रति एकड़ और बिफेन्थ्रिन 10% ईसी @ 300 मिली प्रति एकड़ प्रति एकड़ की दर से पत्तियों पर स्प्रे करें।

 

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How much harmful stem borer in sweet corn and how to control ?

  • भारत में कीट एवं रोग के प्रकोप से स्वीट कॉर्न की उपज में लगभग 13.2% कमी हो सकती  हैं |
  • हमारे देश के विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में, इस कीट से मक्का की कुल उपज में  26.7 से 80.4 % नुकसान अनुमानित हैं।
  • इस कीट की लार्वा तने के मध्य से प्रवेश कर आंतरिक ऊतको को खाकर तने में छेद बना देते हैं (इस स्थिति को “डेड हार्ट” कहा जाता हैं)
  • यह कीट बुवाई के 1-2 सप्ताह से लेकर कटाई तक नुकसान पहुँचाता हैं|
  • कार्बोफ्यूरान 3% G @ 5-7 किलोग्राम प्रति एकड़ का मिट्टी में बुरकाव करे।
  • डाइमेथोएट 30% EC @ 180-240 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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