- कपास की बुआई के 15-20 दिनों के बाद उसमे आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति की बहुत आवश्यकता होती है।
- बुआई के कुछ दिनों बाद कवक जनित एवं किट जनित बीमारियों का प्रकोप होने लगता है। इसका निवारण बहुत आवश्यक होता है।
- एसीफेट @ 300 ग्राम/एकड़ + मोनोक्रोटोफ़ॉस 36% SL@ 400 मिली/एकड़ + सीविड @ 400 मिली/एकड़ + क्लोरोथायोनिल @ 400 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें।
- इस छिड़काव का महत्व रस चूसने वाले कीट जैसे थ्रिप्स/एफिड एवं कवक से होने वाली बीमारियों के प्रारंभिक संक्रमण को रोकना और पौधों को पोषक तत्व उपलब्ध करवाना है।
मक्का समृद्धि किट में उपस्थित जैविक उत्पाद और इनके उपयोग का तरीका
- मक्का की उपज बढ़ाने में मक्का समृद्धि किट महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- मक्का समृद्धि किट में पोटाश एवं फास्फोरस के जीवाणु, नाइट्रोज़न के बैक्टीरिया, ज़िंक सोलुबलाइज़िंग बैक्टीरिया, ह्यूमिक एसिड, एमिनो एसिड, समुद्री शैवाल और माइकोराइजा जैसे जैविक उत्पाद हैं।
- इस किट का पहला उत्पाद तीन प्रकार के बैक्टीरिया ‘नाइट्रोजन फिक्सेशन बैक्टीरिया, PSB और KMB’ से बना है। यह मिट्टी और फसल में तीन प्रमुख तत्वों नाइट्रोजन, पोटाश और फास्फोरस की आपूर्ति में मदद करता है। जिसके कारण पौधे को समय पर आवश्यक तत्व मिलते हैं, विकास अच्छा होता है, फसल उत्पादन बढ़ता है और साथ ही मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता भी बढ़ती है।
- इस किट का दूसरा उत्पाद ज़िंक सोलुबलाइज़िंग बैक्टीरिया है जो मिट्टी में मौजूद अघुलनशील ज़िंक को घुलनशील रूप में पौधों को उपलब्ध कराता है। यह पौधों के विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्वों में से एक है। इसकी 100 ग्राम की मात्रा प्रति एकड़ मिट्टी उपचार हेतु उपयोग की जाती है।
- किट का अंतिम उत्पाद में ह्यूमिक एसिड, एमिनो एसिड, समुद्री शैवाल और माइकोराइजा तत्वों का खजाना होता है। यह 2 किलो प्रति एकड़ की दर से मिट्टी में उपयोग किया जाता है।
- मक्का समृद्धि किट की 4.1 किलो (जिसमें उपरोक्त सभी जैविक उत्पाद सम्मलित है) को 4 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में अंतिम जुताई के समय या बुआई से पहले एक एकड़ खेत में मिला देना चाहिए ताकि फसल को इसका पूरा लाभ मिल सके।
धान की सीधी या ज़ीरो टिल से बुआई का महत्व
- धान की सीधी बुआई उचित नमी पर यथासंभव खेत की कम जुताई करके अथवा बिना जोते हुए खेतों में आवश्यकतानुसार नॉनसेलेक्टिव खरपतवारनाशी का प्रयोग कर जीरो टिल मशीन से की जाती है।
- धान की बुआई मानसून आने के पूर्व (15-20 जून) अवश्य कर लेना चाहिए, ताकि बाद में अधिक नमी या जल जमाव से पौधे प्रभावित न हो। इसके लिए सर्वप्रथम खेत में हल्का पानी देकर उचित नमी आने पर आवश्यकतानुसार हल्की जुताई या बिना जोते जीरो टिल मशीन से बुआई करनी चाहिए।
- धान की नर्सरी उगाने में होने वाला खर्च बच जाता है। इस विधि में जीरो टिल मशीन द्वारा 10-15 किग्रा. बीज प्रति⁄एकड़ बुआई के लिए पर्याप्त होता है।
- इस तरह से धान की बुआई करने के पूर्व खरपतवारनाशी का उपयोग कर लेना चाहिए
राजस्थान से बढ़ा 12 किमी लंबा टिड्डी दल, यूपी और एमपी में फ़सलों को पहुँचा सकता है भारी नुकसान
पिछले कुछ हफ्ते से टिड्डी दलों का कहर भारत के कई राज्यों में देखने को मिल रहा है। ये टिड्डी दल ईरान से पाकिस्तान होते हुए राजस्थान में प्रवेश करते हैं और उसके बाद भारत के भीतरी राज्यों में फ़सलों को भारी नुकसान पहुँचाते हैं। खबर है की पाकिस्तान से 9 से भी ज्यादा नए टिड्डी दल राजस्थान के अलग-अलग जिलों में पहुँच गए हैं और वे जल्द ही मध्यप्रदेश तथा उत्तरप्रदेश के कई क्षेत्रों में नुकसान पहुंचा सकते हैं।
राजस्थान पहुँच चुके इन नए टिड्डी दलों के मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में आने की संभावनाओं को देखकर कृषि विभाग भी अलर्ट पर है। आने वाले दिनों में हवा की दिशा यह तय करेगी की यह दूसरे राज्यों में प्रवेश करता है या नहीं। अगर हवा की दिशा नहीं बदली तो 12 किलोमीटर लंबा टिड्डी दल अगले कुछ दिनों में एमपी और यूपी में प्रवेश कर जाएगा।
स्रोत: जागरण
Shareग्रामोफ़ोन की सलाह से की खेती तो कपास किसान को हुआ 18 लाख का मुनाफ़ा
कभी कभी एक सही मशवरा भी आपकी जिंदगी में बड़ा बदलाव लेकर आ सकता है। कुछ ऐसा ही बदलाव बड़वानी जिले के राजपुर तहसील के साली गांव के किसान श्री बजरंग बरफा जी के जिंदगी में तब आया जब वे ग्रामोफ़ोन के संपर्क में आये। हालांकि ऐसा नहीं था की बजरंग को खेती में सफलता नहीं मिल रही थी। वे कपास की खेती से कभी थोड़ा बहुत लाभ तो कभी औसत कमाई कर लेते थे पर उन्हें इससे आगे बढ़ना था और इसी दौरान वे टीम ग्रामोफ़ोन के फील्ड स्टाफ से मिले और फिर उन्होंने ऐसी सफलता पाई की जिसे देख हर कोई आश्चर्यचकित हो गया।
दरअसल ग्रामोफ़ोन के संपर्क में आने के बाद उन्होंने ग्रामोफ़ोन से उन्नत किस्म के बीज मंगवाए, कृषि विशेषज्ञों की राय से कपास की खेती के हर चरण में जरूरी उर्वरक और अन्य दवाइयाँ दी। इन सब से न सिर्फ बजरंग की कृषि लागत घटी बल्कि खेती से होने वाला मुनाफ़ा भी डबल हो गया।
जहाँ पहले बजरंग की कपास की खेती की लागत 2.5 लाख तक चली जाती थी वहीं अब यह घटकर 1.78 लाख रह गई। इसके अलावा मुनाफ़ा भी 1029000 रूपये से बढ़ कर 1974500 रूपये हो गया।
ग्रामोफ़ोन से सलाह प्राप्त कर कई किसान भाई अपनी खेती में सुधार कर रहे हैं जिसका लाभ भी उन्हें मिल रहा है। अगर आप भी बजरंग की तरह ही अपनी खेती से ज्यादा मुनाफ़ा कमाना चाहते हैं तो ग्रामोफ़ोन से कृषि सलाह ज़रूर लें। ग्रामोफ़ोन से संपर्क करने के लिए आप टोल फ्री नंबर 18003157566 पर मिस्डकॉल कर सकते हैं या फिर ग्रामोफ़ोन कृषि मित्र एप पर लॉगिन कर सकते हैं।
Shareगैर दलहनी फसलों में नाइट्रोजन कल्चर का महत्व
- सभी प्रकार के पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए मुख्यतः 17 तत्वों की आवश्यकता होती है, जिनमें नाइट्रोजन अति आवश्यक तत्व हैं।
- गैर दलहनी फसलें जैसे गेहूँ, मक्का, कपास, सब्ज़ियाँ, धान, गन्ना आदि की अच्छे उत्पादन के लिए नाइट्रोज़न आवश्यक है।
- नाइट्रोजन स्थिरीकरण के लिए प्राकृतिक रूप से मिट्टी में कुछ ऐसे जीवाणु पाये जाते हैं, जो वायुमंडलीय नत्रजन को अमोनिया में बदल देते हैं।
- एजोटोबेक्टर, एजोस्पीरिलम, ऐसीटोबैक्टेर या सभी नाइट्रोज़न स्थिरीकरण बेक्टेरिया है इनका प्रयोग करने से 20 से 30 किग्रा० नत्रजन की बचत भी की जा सकती है।
- इनके उपयोग से फ़सलों की 10 से 20 प्रतिशत तक पैदावार में बढ़ोत्तरी होती है तथा फलों एवं दानों का प्राकृतिक स्वाद बना रहता है।
- इनके प्रयोग करने से अंकुरण शीघ्र और स्वस्थ होते हैं तथा जड़ों का विकास अधिक एवं शीघ्र होता है।
- फसलें भूमि से फास्फोरस का अधिक प्रयोग कर पाती हैं जिससे किल्ले अधिक बनते हैं। ऐसे जैव उर्वरकों का प्रयोग करने से जड़ एवं तने का अधिक विकास होता है।
- इन जैव उर्वरकों के जीवाणु बीमारी फैलाने वाले रोगाणुओं का दमन करते हैं, जिससे फसलों का बीमारियों से बचाव होता है तथा पौधों में रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ती है।
इस योजना से किसानों को कृषि यंत्रों पर मिलेगी 50 से 80% की सब्सिडी, जानें पूरी जानकारी
भारतीय कृषि को रफ़्तार देने में काफी मददगार हो रहे हैं आधुनिक कृषि यंत्र। इनकी मदद से न केवल कृषि विकास दर को गति मिलता है बल्कि किसानों की आर्थिक स्थिति को मज़बूती भी मिलती है। आज कृषि में जुताई, बुआई, सिंचाई, कटाई, मड़ाई एवं भंडारण आदि सभी प्रकार के कृषि कार्य आधुनिक कृषि यंत्रों से करना ही संभव है। इसी को देखते हुए केंद्र सरकार SMAM योजना के अंतर्गत कृषि यंत्रों पर 50 से 80% तक सब्सिडी दे रही है।
यह योजना देश के सभी राज्यों के किसानों के लिए उपलब्ध है और देश का कोई भी किसान इस योजना कि पात्रता रखने वाला इस योजना के लिए आवेदन कर सकता है। इसका आवेदन ऑनलाइन माध्यम से किया जा सकता है।
कैसे करें आवेदन?
कृषि यंत्रों के लिए ऑनलाइन आवेदन के लिए सबसे पहले आप https://agrimachinery.nic.in/Farmer/SHGGroups/Registration पर जाएँ। इसके बाद पंजीकरण कॉर्नर पर जाएं जहाँ आपको तीन विकल्प मिलेंगे। इन विकल्पों में आपको Farmer विकल्प पर क्लिक करना है। इसके बाद आपसे जो भी विवरण मांगा जाएं उसे सावधानी से भरें। इस तरह आपके आवेदन की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी।
स्रोत: कृषि जागरण
Shareमेटारीजियम कल्चर का कृषि में महत्व
- मेटारीजियम एनीसोपली एक बहुत ही उपयोगी जैविक फफूंदी है।
- इसका उपयोग सफेद ग्रब, दीमक, ग्रासहोपर, प्लांट होपर, वुली एफिड, बग और बीटल आदि के करीब 300 कीट प्रजातियों के विरुद्ध किया जाता है।
- इसके उपयोग के पूर्व खेत में आवश्यक नमी का होना बहुत आवश्यक है।
- इस फफूंदी के स्पोर पर्याप्त नमी में कीट के शरीर पर अंकुरित हो जाते हैं।
- यह फफूंदी परपोषी कीट के शरीर को खा जाती है।
- इसका उपयोग गोबर की खाद के साथ मिलाकर मिट्टी उपचार में किया जाता है।
- इसका उपयोग खड़ी फसल में छिड़काव के रूप भी किया जा सकता है।
कपास की फसल के प्रारंभिक चरण में कीट और रोग प्रबंधन
- कपास की फसल के शुरूआती अवस्था में अनेक प्रकार के कीट एवं कवकों का प्रकोप बहुत अधिक होता है और इनके बचाव के उपाय यदि सही समय पर किये जाएँ तो इनका नियंत्रण बहुत अच्छी तरह से हो सकता है।
- कवक जनित रोगों के प्रभावी नियंत्रण के लिए कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP @300 ग्राम/एकड़ या थियोफैनेट मिथाइल 70% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या कीटाजिन @200 ग्राम/एकड़ या ट्राइकोडर्मा विरिडी @1 किलो/एकड़ (mix with FYM) का उपयोग करें।
- कीटों के प्रभावी नियंत्रण के लिए ऐसीफेट 75% SP @300 ग्राम/एकड़ + मोनोक्रोटोफॉस @ 400 मिली/एकड़ या इमिडाक्लोरोप्रिड 17.8% SL @ 100 मिली/एकड़ या एसिटामेंप्रिड 20% SP या बेवेरिया बेसियाना 500 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें।
गेहूं उपार्जन में पंजाब को पीछे छोड़ते हुए मध्य प्रदेश बना देश का नंबर एक राज्य
गेहूं के उत्पादन में मध्यप्रदेश के किसानों ने बड़ी कामयाबी हासिल की है। कोरोना वैश्विक महामारी और देशव्यापी लॉकडाउन के बावजूद मध्यप्रदेश ने गेहूं उपार्जन की प्रक्रिया में नया रिकॉर्ड बनाया है। इस बात की घोषणा किसान कल्याण तथा कृषि विकास मंत्री कमल पटेल ने स्वयं की। इस बात की घोषणा करते हुए उन्होंने प्रदेश के अन्नदाता किसानों को बधाई भी दी है।
इस विषय पर कृषि मंत्री ने कहा कि “किसानों के कठोर परिश्रम से आज हमारा प्रदेश देश में गेहूँ के उपार्जन में पहले नम्बर पर आ गया है। किसानों ने इस वर्ष विपुल मात्रा में गेहूँ का उत्पादन किया है।” बता दें की मध्यप्रदेश सरकार ने गेहूँ का 128 लाख मीट्रिक टन से अधिक का रिकार्ड तोड़ उपार्जन कर देश में पहला स्थान पाया है। इससे पहले गेहूँ उपार्जन के मामले में प्रथम स्थान पर पंजाब आया करता था।
इस गौरवशाली सफलता पर कृषि मंत्री ने प्रदेश के सभी किसान और गेहूँ उपार्जन करने वाले अधिकारी-कर्मचारियों की टीम को बधाई दी है। मंत्री श्री पटेल ने कहा कि “किसानों के परिश्रम से मध्यप्रदेश सरकार को लगातार 7 बार कृषि कर्मण अवार्ड मिल चुका है।” इसके साथ ही उन्होंने विश्वास जताया है कि भविष्य में भी प्रदेश के किसान इसी प्रकार से प्रदेश को गौरवान्वित करेंगे।
स्रोत: मध्यप्रदेश कृषि विभाग
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